अध्ययन लेख 13
प्रचार में लोगों से हमदर्दी रखें!
“उन्हें देखकर वह तड़प उठा, . . . और वह उन्हें बहुत-सी बातें सिखाने लगा।”—मर. 6:34.
गीत 70 योग्य लोगों को ढूँढ़ो
लेख की एक झलक *
1. यीशु की कौन-सी खूबी हमारे दिल को छू जाती है? समझाइए।
यीशु में बहुत-से मनभावने गुण हैं। लेकिन उसकी एक खूबी ऐसी है, जो हमारे दिल को छू जाती है। वह यह कि हम अपरिपूर्ण इंसानों की मुश्किलें वह अच्छी तरह समझता है। धरती पर रहते वक्त उसने ‘खुशी मनानेवालों के साथ खुशी मनायी’ और वह ‘रोनेवालों के साथ रोया।’ (रोमि. 12:15) उदाहरण के लिए, जब उसके 70 चेले प्रचार करके खुशी-खुशी वापस आए, तो वह भी “खुशी से फूला नहीं समाया।” (लूका 10:17-21) दूसरी तरफ, जब लाज़र की मौत हुई और उसने देखा कि उसकी मौत से उसके करीबी लोग कितने दुखी हैं, तब “उसने गहरी आह भरी और उसका दिल भर आया।”—यूह. 11:33.
2. यीशु किस वजह से लोगों का दर्द अच्छी तरह समझ पाया?
2 यीशु परिपूर्ण इंसान था, फिर भी वह अपरिपूर्ण इंसानों की भावनाएँ समझता था और उनसे हमदर्दी रखता था। किस वजह से वह ऐसा कर पाया? सबसे खास बात यह थी कि उसे लोगों से प्यार था। जैसे पिछले लेख में हमने देखा, उसे ‘इंसानों से गहरा लगाव था।’ (नीति. 8:31) इसी प्यार की वजह से वह इंसानों की सोच और भावनाएँ अच्छी तरह समझ पाया। प्रेषित यूहन्ना ने कहा, “वह जानता था कि इंसान के दिल में क्या है।” (यूह. 2:25) वह लोगों का दर्द महसूस कर सकता था। लोग भी समझ सकते थे कि वह उनसे कितना प्यार करता है, इसलिए वे राज का संदेश ध्यान से सुनते थे। आज हम भी लोगों से जितना ज़्यादा हमदर्दी रखेंगे, उतना ही अच्छी तरह हम प्रचार सेवा कर पाएँगे।—2 तीमु. 4:5.
3-4. (क) अगर हमें लोगों से हमदर्दी होगी, तो हम प्रचार के बारे में कैसा नज़रिया रखेंगे? (ख) इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?
3 प्रेषित पौलुस जानता था कि लोगों को खुशखबरी सुनाना उसका फर्ज़ है। उसी तरह हम भी जानते हैं कि प्रचार करना हमारा फर्ज़ है। (1 कुरिं. 9:16) लेकिन अगर हमें लोगों से हमदर्दी होगी, तो हम सिर्फ फर्ज़ समझकर यह काम नहीं करेंगे, बल्कि इसलिए भी करेंगे कि हमें लोगों की परवाह है और हम उनकी मदद करना चाहते हैं। हम जानते हैं कि “लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।” (प्रेषि. 20:35) अगर हम इन बातों को ध्यान में रखकर प्रचार करेंगे, तो इस काम में हमें और भी खुशी मिलेगी।
4 इस लेख में हम सीखेंगे कि प्रचार करते वक्त हम लोगों से किस तरह हमदर्दी रख सकते हैं। पहले हम जानेंगे कि यीशु ने लोगों को देखकर जो महसूस किया, उससे हम क्या सीख सकते हैं। उसके बाद हम गौर करेंगे कि किन चार तरीकों से हम यीशु के नक्शे-कदम पर चल सकते हैं।—1 पत. 2:21.
यीशु को लोगों से हमदर्दी थी
5-6. (क) यीशु किन्हें देखकर तड़प उठा? (ख) यशायाह 61:1, 2 में लिखी भविष्यवाणी के मुताबिक यीशु लोगों से हमदर्दी किस वजह से रख पाया?
5 ध्यान दीजिए कि यीशु ने किस तरह लोगों से हमदर्दी रखी। एक बार यीशु और उसके चेले देर तक प्रचार करने की वजह से बहुत थक गए थे। “उन्हें खाने तक की फुरसत नहीं मिली थी।” इस वजह से यीशु अपने चेलों को “किसी एकांत जगह में” ले गया, ताकि वे “थोड़ा आराम कर” सकें। लेकिन लोगों की एक बड़ी भीड़ उनसे पहले ही वहाँ जा पहुँची। जब यीशु ने लोगों को देखा, तो उसे कैसा लगा? बाइबल बताती है, “उन्हें देखकर वह तड़प उठा, * क्योंकि वे ऐसी भेड़ों की तरह थे जिनका कोई चरवाहा न हो। और वह उन्हें बहुत-सी बातें सिखाने लगा।”—मर. 6:30-34.
6 यीशु किस वजह से लोगों को देखकर तड़प उठता था या उनका दर्द महसूस कर सकता था? उसने देखा कि लोग “ऐसी भेड़ों की तरह थे जिनका कोई चरवाहा न हो।” शायद यीशु ने गौर किया कि उनमें से कुछ लोग गरीब हैं और अपने परिवार का पेट पालने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। शायद कुछ ऐसे थे जो अपने अज़ीज़ों की मौत का गम सह रहे थे। यीशु ऐसे लोगों के हालात अच्छी तरह समझ सकता था। जैसे हमने पिछले लेख में चर्चा की, यीशु खुद इनमें से कुछ तकलीफों से गुज़रा था। वाकई यीशु को लोगों की फिक्र थी, तभी उसने उन्हें दिलासा दिया और बहुत-सी बातें सिखायीं।—यशायाह 61:1, 2 पढ़िए।
7. यीशु की तरह हम क्या करते हैं?
प्रका. 14:6) अपने गुरु की तरह हमें भी “दीन-दुखियों और गरीबों पर तरस” आता है। (भज. 72:13) लोगों को देखकर हमारा दिल भर आता है, हम उनकी मदद के लिए कुछ करना चाहते हैं। इसीलिए हम उन्हें राज की खुशखबरी सुनाते हैं।
7 हम यीशु से क्या सीख सकते हैं? उसके दिनों की तरह आज भी बहुत-से लोग “ऐसी भेड़ों की तरह [हैं] जिनका कोई चरवाहा न हो।” लोग तरह-तरह की मुश्किलों से घिरे हुए हैं। मगर हमारे पास वह है, जिसकी उन्हें सख्त ज़रूरत है, राज का संदेश। (हम लोगों से हमदर्दी कैसे रख सकते हैं?
8. प्रचार करते वक्त लोगों से हमदर्दी रखने का एक तरीका क्या है? उदाहरण देकर समझाइए।
8 प्रचार करते वक्त हम लोगों से हमदर्दी कैसे रख सकते हैं? हमें खुद को उनकी जगह पर रखकर देखना चाहिए और फिर उनके साथ वैसे ही पेश आना चाहिए, जैसे हम चाहेंगे कि लोग हमारे साथ पेश आएँ। * (मत्ती 7:12) आइए ऐसा करने के चार तरीकों पर गौर करें। पहला, हर व्यक्ति की ज़रूरतों के बारे में सोचिए। जब हम लोगों को खुशखबरी सुनाते हैं, तो हमारी भूमिका एक डॉक्टर की तरह होती है। अच्छा डॉक्टर अपने हर रोगी की ज़रूरतें समझने की कोशिश करता है। वह रोगी से सवाल करता है और जब रोगी अपनी परेशानी बताता है, तो वह ध्यान से सुनता है। वह फौरन कोई दवाई नहीं लिख देता, इसके बजाय पहले पूरी बात सुनता है और अच्छे-से उसकी जाँच करता है, फिर कोई इलाज बताता है। उसी तरह प्रचार में हम सभी लोगों से बात करने के लिए एक जैसा तरीका नहीं अपनाएँगे। इसके बजाय पहले हम हर व्यक्ति के हालात और उसकी सोच जानने की कोशिश करेंगे और फिर उस हिसाब से उससे बात करेंगे।
9. हमें क्या नहीं मान लेना चाहिए? समझाइए।
9 जब आप प्रचार में किसी से मिलते हैं, तो यह मत मान बैठिए कि आप उसके हालात जानते हैं या आपको पता है कि वह क्या मानता है और क्यों मानता है। (नीति. 18:13) इसके बजाय सोच-समझकर सवाल कीजिए और उस व्यक्ति को जानने की कोशिश कीजिए। (नीति. 20:5) अगर आपकी संस्कृति में बुरा न माना जाता हो, तो उसके और उसके परिवार के बारे में, उसके काम और उसके सोच-विचार के बारे में पूछिए। इस तरह सवाल करने से हम जान पाएँगे कि उनकी परेशानी या ज़रूरतें क्या हैं। जब हम उनकी ज़रूरतें समझ जाएँगे, तो हम उनसे हमदर्दी रख पाएँगे और उनकी मदद कर पाएँगे, ठीक जैसे यीशु करता था।—1 कुरिंथियों 9:19-23 से तुलना करें।
10-11. दूसरा कुरिंथियों 4:7, 8 को ध्यान में रखते हुए लोगों से हमदर्दी रखने का दूसरा तरीका क्या है? एक उदाहरण दीजिए।
10 दूसरा तरीका, कल्पना कीजिए कि लोग किस तरह ज़िंदगी जी रहे होंगे। देखा जाए तो कुछ हद तक हम उनके हालात समझ सकते हैं। वह इसलिए कि हम भी अपरिपूर्ण हैं और हम भी उन समस्याओं का 1 कुरिं. 10:13) हम जानते हैं कि इस दुनिया में जीना आसान नहीं और हम सिर्फ यहोवा की मदद से समस्याओं का सामना कर पाते हैं। (2 कुरिंथियों 4:7, 8 पढ़िए।) लेकिन ज़रा सोचिए, जो लोग यहोवा को नहीं जानते, उनके लिए ज़िंदगी गुज़ारना कितना मुश्किल होता होगा। यीशु की तरह हम ऐसे लोगों के हालात देखकर तड़प उठते हैं, इसलिए हम उन्हें “अच्छी बातों की खुशखबरी” सुनाना चाहते हैं।—यशा. 52:7.
सामना करते हैं, जिनका वे सामना करते हैं। (11 सरगे नाम के एक भाई का उदाहरण लीजिए। सच्चाई सीखने से पहले वह शर्मीला था। दूसरों से बात करना उसे बहुत मुश्किल लगता था। फिर उसने बाइबल अध्ययन करना शुरू किया। वह बताता है, “मैंने बाइबल से सीखा कि दूसरों को अपने विश्वास के बारे में बताना हर मसीही की ज़िम्मेदारी है। लेकिन मुझे लगता था कि मैं यह कभी नहीं कर पाऊँगा।” फिर भी सरगे ने उन सबके बारे में सोचा, जो यहोवा को नहीं जानते थे। उसे एहसास हुआ कि ऐसे लोगों की ज़िंदगी कितनी मुश्किल होगी। वह कहता है, “बाइबल से जो नयी-नयी बातें मैं सीख रहा था, उनसे मुझे बेहद खुशी और सच्चा सुकून मिला। मुझे एहसास हुआ कि ये सच्चाइयाँ दूसरों को भी बताना ज़रूरी है।” इस वजह से सरगे को लोगों पर तरस आने लगा और उन्हें गवाही देने की उसकी हिम्मत भी बढ़ने लगी। वह कहता है, “हैरानी की बात है कि लोगों को बाइबल के बारे में बताने से मेरा आत्म-विश्वास बढ़ गया। यही नहीं, बाइबल की सच्चाइयों पर मेरा विश्वास भी मज़बूत हुआ।” *
12-13. जिन लोगों को हम सच्चाई सिखाते हैं, उनके साथ हमें सब्र क्यों रखना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।
12 तीसरा तरीका, जिन्हें आप सिखाते हैं, उनके साथ सब्र रखिए। याद रखिए कि बाइबल की जो सच्चाइयाँ हम अच्छी तरह जानते हैं, उनमें से कुछ के बारे में शायद उन्होंने कभी न सुना हो। यही नहीं, बहुत-से लोगों को अपने धार्मिक विश्वास से गहरा लगाव होता है। शायद उन्हें लगे कि उनका विश्वास उन्हें उनकी संस्कृति, उनके परिवार और समाज से जोड़े रखता है। ऐसे लोगों की हम कैसे मदद कर सकते हैं?
13 ज़रा एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए। जब एक पुराने और जर्जर पुल की जगह नया पुल बनाना हो, रोमि. 12:2.
तो क्या किया जाता है? अकसर नया पुल बनाते समय पुराना पुल तोड़ा नहीं जाता। एक बार जब नया पुल बनकर तैयार हो जाता है, तब पुराने पुल को तोड़ दिया जाता है। उसी तरह इससे पहले कि लोग अपने “पुराने” विश्वास को छोड़ें, जिससे उन्हें लगाव है, उन्हें “नयी” सच्चाइयाँ जाननी होंगी और उनके लिए लगाव पैदा करना होगा। ये सच्चाइयाँ बाइबल की ऐसी शिक्षाएँ हैं, जिनसे वे शुरू में अनजान थे। इनके लिए लगाव पैदा करने में हमें उनकी मदद करनी होगी। जब वे बाइबल की सच्चाइयाँ अच्छी तरह समझ लेंगे, तभी वे अपनी पुरानी शिक्षाएँ छोड़ने के लिए तैयार होंगे। ऐसा करने में लोगों को वक्त लग सकता है।—14-15. हम उन लोगों की कैसे मदद कर सकते हैं, जिन्हें धरती पर हमेशा जीने के बारे में कुछ नहीं पता? एक उदाहरण दीजिए।
14 अगर हम प्रचार में मिलनेवाले लोगों के साथ सब्र रखें, तो हम यह उम्मीद नहीं करेंगे कि वे पहली मुलाकात में ही सच्चाई समझ लें या उसे स्वीकार कर लें। इसके बजाय हम उनके हालात समझने की कोशिश करेंगे और शास्त्र से उनके साथ तर्क करेंगे, ताकि वे बाइबल की बातों पर गहराई से सोचें। मान लीजिए, हम किसी को धरती पर हमेशा जीने के बारे में समझाना चाहते हैं। इस शिक्षा के बारे में कई लोग कुछ नहीं जानते। उन्हें लगता है कि मरने के बाद इंसान फिर से नहीं जी सकता या शायद उनका मानना हो कि सभी अच्छे लोग स्वर्ग जाते हैं। ऐसे लोगों की हम कैसे मदद कर सकते हैं?
15 एक भाई बताता है कि वह क्या करता है। सबसे पहले वह उन्हें उत्पत्ति 1:28 पढ़कर सुनाता है। फिर वह उनसे पूछता है, ‘परमेश्वर क्या चाहता था कि इंसान कहाँ रहे और कैसी ज़िंदगी जीए?’ ज़्यादातर लोग जवाब देते हैं, “शायद यह कि इंसान धरती पर रहे और खुशहाल ज़िंदगी जीए।” फिर भाई यशायाह 55:11 पढ़ता है और सवाल करता है कि क्या परमेश्वर का मकसद अधूरा रह गया है। आम तौर पर लोगों का जवाब होता है, ‘नहीं।’ आखिर में भाई भजन 37:10, 11 पढ़ता है और पूछता है कि इंसान का भविष्य कैसा होगा। इस तरह तर्क करके उसने यह समझने में कई लोगों की मदद की है कि परमेश्वर अब भी चाहता है कि अच्छे लोग खूबसूरत धरती पर हमेशा जीएँ।
16-17. नीतिवचन 3:27 में दिए सिद्धांत के आधार पर हमदर्दी रखने के कुछ तरीके क्या हैं? उदाहरण देकर समझाइए।
16 चौथा तरीका, अपने व्यवहार और कामों से ज़ाहिर कीजिए कि आपको लोगों की परवाह है। उदाहरण के लिए, क्या हम प्रचार में किसी के घर ऐसे समय पर गए हैं, जब वह बहुत व्यस्त है? हम उससे माफी माँग सकते हैं और कह सकते हैं कि किसी और समय पर आएँगे, जब वह थोड़ा फुरसत में होगा। अगर घर-मालिक को किसी छोटे-मोटे काम में मदद चाहिए, तो हम क्या कर सकते हैं? या अगर कोई बीमार या बुज़ुर्ग हो और घर से बाहर नहीं जा सकता और उसे अपना कोई काम करवाना हो, तब हम क्या कर सकते हैं? इन हालात में हो सके तो उसकी मदद कीजिए।—नीतिवचन 3:27 पढ़िए।
17 एक बहन ने कुछ ऐसा ही किया। भले ही उसने जो किया, वह दिखने में मामूली लगे, पर उसके अच्छे
नतीजे निकले। दरअसल बहन ने एक परिवार को खत लिखा, जिसमें एक बच्चे की मौत हो गयी थी। उनके हालात के बारे में सोचकर वह तड़प उठी, इसलिए उसने उन्हें खत लिखा। उसने बाइबल की कुछ आयतों से उन्हें दिलासा दिया। खत पढ़कर उस परिवार को कैसा लगा? बच्चे की माँ ने लिखा, “कल मेरे लिए एक-एक पल काटना बहुत मुश्किल था, तभी आपका खत मिला। शायद आपको अंदाज़ा नहीं होगा कि आपके खत से मुझे कितना सुकून मिला। आपका बहुत -बहुत शुक्रिया! मैंने कल आपका खत कम-से-कम 20 बार पढ़ा होगा। मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि कोई खत लिखकर हमारा हौसला बढ़ाएगा, हमारे लिए अपना प्यार और परवाह जताएगा। मैं एक बार फिर आपका दिल से शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ।” इस उदाहरण से साफ पता चलता है कि जब हम दूसरों का दर्द समझने की कोशिश करते हैं और उनकी मदद के लिए कुछ करते हैं, तो इसके अच्छे नतीजे निकलते हैं।अपनी भूमिका के बारे में सही सोच रखिए
18. पहला कुरिंथियों 3:6, 7 के मुताबिक प्रचार के बारे में कौन-सी सोच रखना सही होगा और क्यों?
18 प्रचार में अपनी भूमिका के बारे में सही सोच रखना बहुत ज़रूरी है। यह सच है कि लोगों को सच्चाई सिखाने में हम बहुत मेहनत करते हैं, पर हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हमारी भूमिका ही सबसे बड़ी है। (1 कुरिंथियों 3:6, 7 पढ़िए।) इस काम में सबसे अहम भूमिका यहोवा निभा रहा है, वही लोगों को अपने पास खींचता है। (यूह. 6:44) लेकिन एक व्यक्ति खुशखबरी कबूल करेगा या नहीं, यह उसके दिल की हालत पर निर्भर करता है। (मत्ती 13:4-8) यह भी याद रखिए कि यीशु धरती पर जीनेवाला सबसे महान शिक्षक था, फिर भी ज़्यादातर लोगों ने उसका संदेश स्वीकार नहीं किया। तो जब ज़्यादातर लोग हमारे संदेश पर ध्यान नहीं देते, तब हमें निराश नहीं होना चाहिए।
19. प्रचार में लोगों से हमदर्दी रखने से कौन-से अच्छे नतीजे मिलते हैं?
19 अगर हम प्रचार में मिलनेवाले लोगों से हमदर्दी रखें, तो हमें इसके अच्छे नतीजे मिलेंगे। हमें इस काम में और भी मज़ा आएगा। हम वह खुशी महसूस करेंगे, जो देने से मिलती है। इतना ही नहीं, हम उन लोगों की मदद कर पाएँगे, जो “हमेशा की ज़िंदगी पाने के लायक अच्छा मन रखते” हैं। (प्रेषि. 13:48) तो फिर आइए “जब तक हमारे पास मौका है, . . . हम सबके साथ भलाई करें।” (गला. 6:10) ऐसा करने से हमारे पिता यहोवा की महिमा होगी और यह देखकर हमें बहुत खुशी मिलेगी।—मत्ती 5:16.
गीत 64 कटनी में खुशी से हिस्सा लें
^ पैरा. 5 इस लेख में हम देखेंगे कि जब हम प्रचार में लोगों से हमदर्दी रखते हैं, तो हमें और भी खुशी मिलती है और अकसर अच्छे नतीजे मिलते हैं। हम चर्चा करेंगे कि हमदर्दी रखने के मामले में हम यीशु से क्या सीख सकते हैं। हम यह भी गौर करेंगे कि किन चार तरीकों से हम प्रचार में मिलनेवाले लोगों से हमदर्दी रख सकते हैं।
^ पैरा. 5 इसका क्या मतलब है? बाइबल में तड़प उठने का मतलब है, उन लोगों का दर्द महसूस करना, जो किसी तकलीफ में हैं या जिनके साथ बुरा सलूक किया जा रहा है। लोगों का दर्द महसूस करने से हमारा मन करेगा कि हमसे जो बन पड़ता है, हम उनके लिए करें।
^ पैरा. 8 15 मई, 2014 की प्रहरीदुर्ग में दिया लेख, “प्रचार करते वक्त सुनहरे नियम पर अमल कीजिए” देखें।