अध्ययन लेख 12
हमें कब बोलना चाहिए और कब नहीं?
“हर चीज़ का एक समय होता है . . . चुप रहने का समय और बोलने का समय।”—सभो. 3:1, 7.
गीत 124 हमेशा वफादार
लेख की एक झलक *
1. सभोपदेशक 3:1, 7 से हम क्या सीखते हैं?
हममें से कुछ लोगों को बात करना बहुत अच्छा लगता है। वहीं कुछ लोग चुप रहना पसंद करते हैं। जैसे इस लेख की आयत कहती है, बोलने और चुप रहने का एक समय होता है। (सभोपदेशक 3:1, 7 पढ़िए।) जो भाई-बहन बहुत शांत रहते हैं, उनके बारे में हम शायद सोचें कि अगर वे थोड़ा बात करें तो अच्छा रहेगा और जो ज़्यादा बात करते हैं, उनके बारे में हम शायद सोचें कि वे थोड़ा कम बोलें तो अच्छा रहेगा।
2. कौन हमें बता सकता है कि हमें कब बात करनी चाहिए और कैसी बातें करनी चाहिए?
2 बात करने की काबिलीयत यहोवा से मिला एक वरदान है। (निर्ग. 4:10, 11; प्रका. 4:11) यहोवा ने हमें बाइबल में बताया है कि हमें उस वरदान या तोहफे का सही इस्तेमाल कैसे करना चाहिए। इस लेख में हम बाइबल में बताए कुछ लोगों के उदाहरण पर चर्चा करेंगे और जानेंगे कि हमें कब बोलना चाहिए और कब चुप रहना चाहिए। हम यह भी देखेंगे कि हम दूसरों से जो कहते हैं, वह सुनकर यहोवा को कैसा लगता है। सबसे पहले आइए जानें कि हमें कब बोलना चाहिए।
कब बोलना चाहिए?
3. रोमियों 10:14 के मुताबिक हमें कब बोलने के लिए तैयार रहना चाहिए?
3 जब भी हमें यहोवा और उसके राज के बारे में किसी को बताने का मौका मिलता है, तो हमें बोलने के लिए तैयार रहना चाहिए। (मत्ती 24:14; रोमियों 10:14 पढ़िए।) ऐसा करने से हम यीशु के आदर्श पर चल रहे होंगे। उसने दूसरों को अपने पिता के बारे में सच्चाई बतायी, क्योंकि धरती पर उसके आने की एक खास वजह यही थी। (यूह. 18:37) लेकिन किसी को गवाही देते वक्त हमें ध्यान रखना है कि हम उससे सही तरीके से बात करें। हमें “कोमल स्वभाव और गहरे आदर के साथ” बात करनी चाहिए। (1 पत. 3:15) हमें उसकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाना चाहिए और उसकी धारणाओं का खंडन नहीं करना चाहिए। इन बातों का ध्यान रखने से हम उसे सच्चाई के बारे में कुछ सिखा पाएँगे और हमारी बातें उसके दिल पर असर करेंगी।
4. जैसे नीतिवचन 9:9 में बताया गया है, प्राचीनों को क्यों बोलने से पीछे नहीं हटना चाहिए?
4 जब प्राचीन देखते हैं कि किसी मामले में एक भाई या बहन की सोच सही नहीं है, तो उन्हें सलाह देने से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। हाँ यह ज़रूरी है कि उन्हें सलाह देने के लिए देखना होगा कि कौन-सा वक्त सही रहेगा ताकि वह भाई या बहन शर्मिंदा न हो जाए। उन्हें यह भी ध्यान रखना है कि सलाह देते समय आस-पास दूसरे लोग न हों। प्राचीनों को उसकी गरिमा बनाए रखनी है। मगर साफ-साफ बाइबल के सिद्धांत भी बताने हैं ताकि वह अपनी सोच सुधार सके। (नीतिवचन 9:9 पढ़िए।) यह क्यों ज़रूरी है कि जब किसी को उसकी गलती बतानी हो, तो हम हिम्मत से बोलें और पीछे न हटें? इसे समझने के लिए आइए दो लोगों के उदाहरण पर ध्यान दें। एक ने हिम्मत से बात की जबकि दूसरा ऐसा करने से पीछे हट गया। पहला उदाहरण एक आदमी का है जिसे अपने बेटों की गलती सुधारने की ज़रूरत थी। दूसरा उदाहरण एक औरत का है। उसे एक आदमी को बताना था कि वह जो करने जा रहा है वह गलत है। वह आदमी आगे चलकर एक राजा बननेवाला था।
5. महायाजक एली को कब बोलना चाहिए था?
5 महायाजक एली के दो बेटे थे जिनसे वह बहुत प्यार करता था। लेकिन उसके बेटे यहोवा का आदर नहीं करते थे। वे दोनों याजक थे और उन्हें पवित्र डेरे में काफी अधिकार सौंपा गया था। लेकिन वे दोनों अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल करते थे। वे यहोवा को चढ़ाए जानेवाले बलिदानों का घोर अपमान करते थे और पवित्र डेरे में सेवा करनेवाली औरतों के साथ बेधड़क होकर नाजायज़ संबंध रखते थे। (1 शमू. 2:12-17, 22) मूसा के कानून के मुताबिक उन दोनों को मौत की सज़ा दी जानी थी, लेकिन एली ने उन्हें बस थोड़ी-बहुत डाँट लगाकर छोड़ दिया और पवित्र डेरे में सेवा करने दिया। (व्यव. 21:18-21) जब यहोवा ने देखा कि उसने अपने बेटों को ढीला छोड़ दिया है, तो उसे कैसा लगा? उसने एली से कहा, “तू क्यों हमेशा मुझसे ज़्यादा अपने बेटों का आदर करता है?” यहोवा ने एली के दुष्ट बेटों को मौत की सज़ा देने का फैसला किया।—1 शमू. 2:29, 34.
6. एली की गलती से हमें क्या सबक मिलता है?
6 एली की गलती से हमें एक अच्छा सबक मिलता है। जब हमें पता चलता है कि हमारे एक दोस्त या परिवार के सदस्य ने परमेश्वर का कोई नियम तोड़ा है, तो उसे उसकी गलती बतानी चाहिए। हमें उसे समझाना चाहिए कि उसने परमेश्वर के किन सिद्धांतों के खिलाफ काम किया है। हमें उसे यह भी बताना चाहिए वह उन भाइयों को अपनी गलती बताए जिन्हें यहोवा ने ठहराया है ताकि वे सुधार करने में उसकी मदद करें। (याकू. 5:14) हमें एली की तरह बोलने से पीछे नहीं हटना चाहिए। यहोवा से ज़्यादा अपने दोस्त या परिवार के लोगों का आदर नहीं करना चाहिए। किसी को उसकी गलती बताने के लिए हिम्मत की ज़रूरत होती है, मगर ऐसा करने से अच्छे नतीजे मिलते हैं। इस बात को समझने के लिए आइए देखें कि अबीगैल ने क्या किया था।
7. अबीगैल ने क्यों दाविद से बात करने का फैसला किया?
7 अबीगैल, नाबाल नाम के एक बड़े ज़मींदार की पत्नी थी। जब दाविद और उसके आदमी राजा शाऊल से बचकर भाग रहे थे, तो उस दौरान उन्होंने नाबाल के चरवाहों की बहुत मदद की थी और नाबाल की भेड़-बकरियों को लुटेरों से बचाया था। मगर क्या नाबाल दाविद और उसके आदमियों का ज़रा भी एहसानमंद था? नहीं। जब दाविद ने नाबाल से कहा कि वह उसके आदमियों को थोड़ी खाने-पीने की चीज़ें दे, तो नाबाल गुस्सा हो गया और उसने दाविद और उसके आदमियों के बारे में उलटी-सीधी बातें कहीं। (1 शमू. 25:5-8, 10-12, 14) इसलिए दाविद ने फैसला किया कि वह नाबाल के घराने के हर आदमी को मार डालेगा। (1 शमू. 25:13, 22) अबीगैल समझ गयी कि इस मुसीबत को टालने के लिए दाविद से बात करना ज़रूरी है। यह बोलने का समय है। उसने हिम्मत जुटायी और उससे बात करने निकल पड़ी। वह दाविद और उसके 400 हथियारबंद आदमियों से मिलने गयी जो भूखे थे और गुस्से से उबल रहे थे।
8. अबीगैल से हम कौन-सी अच्छी बात सीखते हैं?
8 जब अबीगैल दाविद से मिली, तो वह बड़ी हिम्मत और आदर के साथ बोली। उसने दाविद को अपनी बात पर यकीन दिलाने की कोशिश की। जो मुसीबत खड़ी हुई थी, उसमें अबीगैल का कोई कसूर नहीं था। फिर भी उसने दाविद से माफी माँगी। अबीगैल को यहोवा पर भरोसा था कि वह उसकी मदद करेगा। उसने दाविद से कहा कि वह एक भला इंसान है, इसलिए उसे पूरा यकीन है कि वह ज़रूर सही काम करेगा। (1 शमू. 25:24, 26, 28, 33, 34) जब हम भी देखते हैं कि कोई गलत राह पर निकल पड़ा है, तो हमें अबीगैल की तरह हिम्मत जुटाकर उसे रोकना चाहिए। (भज. 141:5) हमें उससे इज़्ज़त के साथ बात करनी चाहिए मगर बोलने से डरना नहीं चाहिए। जब हम किसी को प्यार से समझाते हैं, तो हम उसके सच्चे दोस्त साबित होते हैं।—नीति. 27:17.
9-10. किसी की गलती सुधारते समय प्राचीनों को क्या याद रखना चाहिए?
गला. 6:1) प्राचीन जानते हैं कि वे खुद भी गलतियाँ करते हैं और उन्हें भी एक दिन सलाह की ज़रूरत पड़ेगी। मगर इस वजह से उन्हें दूसरों की गलत सोच सुधारने से झिझकना नहीं चाहिए। (2 तीमु. 4:2; तीतु. 1:9) जब वे किसी को सलाह देते हैं, तो उन्हें कुशलता से बात करनी चाहिए और सब्र से काम लेना चाहिए। किसी भाई या बहन की सोच सुधारने की एक वजह यह है कि वे उससे प्यार करते हैं। (नीति. 13:24) मगर सबसे बड़ी वजह यह है कि वे यहोवा का आदर करते हैं, उसके सिद्धांतों को मानने का बढ़ावा देते हैं और मंडली को खतरे से बचाना चाहते हैं।—प्रेषि. 20:28.
9 खासकर प्राचीनों में बोलने की हिम्मत होनी चाहिए। जब एक भाई या बहन कुछ गलती करता है, तो उससे बात करने से उन्हें पीछे नहीं हटना चाहिए। (10 अब तक हमने देखा कि हमें कब बोलना चाहिए। अब आइए देखें कि हमें कब चुप रहना चाहिए और चुप रहना क्यों मुश्किल लग सकता है।
कब चुप रहना चाहिए?
11. याकूब ने क्या मिसाल दी? यह क्यों एक बढ़िया मिसाल है?
11 अपनी ज़बान को काबू में रखना कभी-कभी हमें मुश्किल लग सकता है। इस बात को समझाने के लिए बाइबल के एक लेखक याकूब ने एक बढ़िया मिसाल दी। उसने कहा, “अगर कोई इंसान बोलने में गलती नहीं करता, तो वह परिपूर्ण है और अपने पूरे शरीर को भी काबू में रख सकता है। हम घोड़े के मुँह में लगाम लगाते हैं ताकि वह हमारी बात माने और इससे हम उसके पूरे शरीर को भी काबू में कर पाते हैं।” (याकू. 3:2, 3) लगाम का एक हिस्सा घोड़े के सिर पर डाला जाता है और दूसरा हिस्सा जिसे बिट कहते हैं उसके मुँह में डाला जाता है ताकि घोड़ा काबू में रहे। अगर एक घुड़सवार घोड़े को बेलगाम छोड़ दे, तो वह जहाँ मरज़ी भागने लगेगा। वह खुद भी चोट खाएगा और घुड़सवार को भी ज़ख्मी कर देगा। उसी तरह अगर हम भी अपनी ज़बान पर लगाम न लगाएँ, तो हमारी वजह से आफत खड़ी हो सकती है। तो आइए देखें कि हमें कब-कब अपनी ज़बान पर लगाम लगाना होगा।
12. हमें कब अपनी ज़बान पर लगाम लगाना होगा?
12 अगर किसी भाई या बहन के पास ऐसी जानकारी है जो उसे दूसरों को नहीं बतानी चाहिए, तो आप क्या करते हैं? उदाहरण के लिए, कुछ देशों में हमारे काम पर रोक लगायी गयी है। वहाँ के भाई-बहनों से उम्मीद की जाती है कि वे दूसरे देशों के भाई-बहनों को न बताएँ कि उनके यहाँ प्रचार काम वगैरह कैसा चल रहा है। अगर ऐसे देश के किसी भाई या बहन से आपकी मुलाकात होती है, तो क्या आपका मन करता है कि उससे पूछें कि वहाँ हमारा काम कैसा चल रहा है? शायद आपका इरादा गलत न हो। हम सब अपने भाई-बहनों से प्यार करते हैं और उनका हाल-चाल जानना चाहते हैं। उन्हें ठीक किस बात में मदद की ज़रूरत है, यह जानकर हम उसके लिए प्रार्थना करना चाहते हैं। लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना है कि ऐसे भाई या बहन से मिलते समय हमें अपनी ज़बान पर लगाम लगाना होगा। वह क्यों? अगर हम उस पर दबाव डालें कि वहाँ के काम के बारे में बताए, तो हम उसका भला नहीं कर रहे होंगे। हम उसके देश के भाई-बहनों को खतरे में डाल रहे होंगे। उसके देश के भाई-बहन उससे यही उम्मीद करते होंगे कि वह जहाँ कहीं जाएगा, उस जानकारी को गुप्त रखेगा। हम नहीं चाहते कि हमारी वजह से उन भाई-बहनों की मुश्किलें बढ़ जाएँ। और उन देशों के भाई-बहनों को भी ध्यान रखना है कि वे किसी को न बताएँ कि उनके यहाँ प्रचार काम किस तरीके से होता है या सभाएँ कैसे चलायी जाती हैं।
13. (क) नीतिवचन 11:13 के मुताबिक प्राचीनों को किस बात का ध्यान रखना चाहिए? (ख) और क्यों?
13 खासकर प्राचीनों को ध्यान देना है कि वे नीतिवचन 11:13 में बताए गए सिद्धांत को मानें और गुप्त जानकारी को गुप्त ही रखें। (पढ़िए।) यह एक प्राचीन के लिए मुश्किल हो सकता है, खासकर अगर वह शादीशुदा हो। यह सच है कि जब पति-पत्नी एक-दूसरे को अपने दिल की बात बताते हैं और अपने मन का बोझ हलका करते हैं, तो उनका रिश्ता गहरा होता है। लेकिन एक प्राचीन को कभी-भी मंडली के भाई-बहनों की “राज़” की बातें अपनी पत्नी को नहीं बतानी चाहिए। अगर वह ऐसा करेगा, तो भाई-बहनों का भरोसा उस पर से उठ जाएगा। प्राचीनों पर भरोसा करके उन्हें मंडली में ज़िम्मेदारी दी जाती है, इसलिए वे “दोगली बातें” या धोखा देनेवाली बातें नहीं बोल सकते। (1 तीमु. 3:8, फुटनोट) इसका मतलब यह है कि वे अपने भाई-बहनों का राज़ खोलकर उन्हें धोखा नहीं दे सकते। अगर एक प्राचीन वाकई अपनी पत्नी से प्यार करता है, तो वह उसे ऐसी बातें नहीं बताएगा जो उसे जानने की ज़रूरत नहीं है ताकि वह बेवजह परेशान न हो।
14. एक प्राचीन का अच्छा नाम बना रहे, इसके लिए उसकी पत्नी क्या कर सकती है?
14 एक प्राचीन की पत्नी को भी ध्यान रखना है कि वह कभी-भी अपने पति से ऐसी बातें उगलवाने की कोशिश न करे जिन्हें गुप्त रखना ज़रूरी है। तब मंडली में उसके पति का अच्छा नाम बना रहेगा। जो पत्नी इस सलाह को मानती है, वह अपने पति का साथ देती है। वह उन लोगों की भी इज़्ज़त करती है जिन्होंने उसके पति को अपना राज़ बताया है। सबसे खास बात, वह यहोवा को खुश करती है, क्योंकि उसके अच्छे व्यवहार से मंडली की शांति और एकता बनी रहती है।—रोमि. 14:19.
हमारी बातें सुनकर यहोवा को कैसा लगता है?
15. अय्यूब के तीन साथियों की बातें सुनकर यहोवा को कैसा लगा? और क्यों?
15 हम बाइबल की किताब अय्यूब से इस बारे में काफी कुछ सीख सकते हैं कि हमें कब बोलना चाहिए और कैसी बातें करनी चाहिए। जब अय्यूब पर बड़ी-बड़ी मुश्किलें आयीं और वह अंदर से बिलकुल टूट चुका था, तब चार आदमी उसे दिलासा देने और कुछ समझाने के लिए आए। पहले तो वे काफी देर तक चुप बैठे रहे। मगर इसके बाद उनमें से तीन आदमी बोलने लगे। वे थे एलीपज, बिलदद और सोपर। उनकी बातों से पता चलता है कि जब वे चुप बैठे थे, तो वे यह नहीं सोच रहे थे कि अय्यूब की हिम्मत बँधाने के लिए क्या कहना अच्छा रहेगा। इसके बजाय, वे सोच रहे थे कि वे कैसे साबित करेंगे कि अय्यूब ने कोई पाप किया होगा। उनकी कुछ बातें सच थीं मगर उन्होंने अय्यूब को चुभनेवाली बातें कहीं और उसे एक बुरा इंसान बताया। उन्होंने यहोवा के बारे में भी गलत बातें कहीं। (अय्यू. 32:1-3) उन तीनों आदमियों की बातें सुनकर यहोवा को कैसा लगा? उसका गुस्सा उन पर भड़क उठा। उसने कहा कि उन तीनों ने मूर्खता की बातें की हैं। फिर उसने उन तीनों आदमियों से कहा कि वे अय्यूब से गुज़ारिश करें कि वह उनकी तरफ से यहोवा से माफी माँगे।—अय्यू. 42:7-9.
16. एलीपज, बिलदद और सोपर की बुरी मिसाल से हम क्या सीखते हैं?
16 एलीपज, बिलदद और सोपर की बुरी मिसाल से हमें काफी कुछ सीखने को मिलता है। पहली बात, हमें अपने भाई-बहनों पर दोष नहीं लगाना चाहिए। (मत्ती 7:1-5) हमें उनसे कुछ कहने से पहले उनकी बात ध्यान से सुननी चाहिए। तभी हम समझ पाएँगे कि उन पर क्या बीत रही है। (1 पत. 3:8) दूसरी बात, जब हम बोलना शुरू करते हैं, तो हमें ध्यान रखना है कि हम जो कह रहे हैं वह सच हो और हमारे भाई-बहनों को चोट न लगे। (इफि. 4:25) तीसरी बात, यहोवा गौर से सुनता है कि हम एक-दूसरे से कैसी बातें कहते हैं।
17. एलीहू से हम क्या सीखते हैं?
17 अय्यूब से मिलने जो आदमी आए थे, उनमें से चौथा आदमी एलीहू था। वह अब्राहम का एक रिश्तेदार था। जब अय्यूब और बाकी तीन आदमी बात कर रहे थे, तो वह उनकी बातें ध्यान से सुन रहा था। इसीलिए वह अय्यूब को अच्छी सलाह दे पाया। उसने अय्यूब से प्यार से बात की, पर साथ ही उसे साफ-साफ बताया कि उसकी सोच क्यों गलत है। इसलिए अय्यूब अपनी सोच सुधार पाया। (अय्यू. 33:1, 6, 17) एलीहू अपनी बातों से यहोवा की बड़ाई करना चाहता था, न कि अपनी या किसी इंसान की। (अय्यू. 32:21, 22; 37:23, 24) एलीहू से हम सीखते हैं कि चुप रहने और बोलने का एक समय होता है। (याकू. 1:19) हम यह भी सीखते हैं कि जब हम किसी को सुधार करने के लिए सलाह देते हैं, तो हमारी बातों से यहोवा की बड़ाई होनी चाहिए, न कि हमारी।
18. अगर हम यहोवा के दिए वरदान की कदर करते हैं, तो हम क्या करेंगे?
18 हमें कब बात करनी चाहिए और कैसी बातें करनी चाहिए, इस बारे में बाइबल में कितनी बढ़िया सलाह दी गयी है! अगर हम यहोवा के एहसानमंद हैं कि उसने हमें बोलने का वरदान दिया है, तो हम बाइबल की सलाह मानेंगे। बुद्धिमान राजा सुलैमान ने ईश्वर-प्रेरणा से लिखा, “जैसे चाँदी की नक्काशीदार टोकरी में सोने के सेब, वैसे ही सही वक्त पर कही गयी बात होती है।” (नीति. 25:11) जब कोई बात कर रहा होता है तब अगर हम ध्यान से सुनें और बोलने से पहले सोचें, तो हमारे बोल सोने के सेब जैसे होंगे जो सुंदर होने के साथ-साथ बहुत अनमोल होते हैं। फिर चाहे हम ज़्यादा बोलें या कम, हमारी बातों से दूसरों का हौसला बढ़ेगा और यहोवा खुश होगा। (नीति. 23:15; इफि. 4:29) यहोवा के दिए वरदान की कदर करने का यह कितना बढ़िया तरीका है!
गीत 82 ‘तुम्हारी रौशनी चमके’
^ पैरा. 5 हमें कब बोलना चाहिए और कब चुप रहना चाहिए, इस बारे में बाइबल में कुछ सिद्धांत दिए गए हैं। जब हम इन सिद्धांतों को मानेंगे, तो यहोवा हमसे खुश होगा।
^ पैरा. 62 तसवीर के बारे में: एक बहन दूसरी बहन को अच्छी सलाह दे रही है।
^ पैरा. 64 तसवीर के बारे में: एक भाई दूसरे भाई को साफ-सफाई के बारे में कुछ सुझाव दे रहा है।
^ पैरा. 66 तसवीर के बारे में: अबीगैल ने सही समय पर दाविद से बात की, इसलिए अच्छा नतीजा निकला।
^ पैरा. 68 तसवीर के बारे में: एक भाई और उसकी पत्नी ऐसे देश में होनेवाली सेवा के बारे में कुछ नहीं बता रहे हैं जहाँ रोक लगी है।
^ पैरा. 70 तसवीर के बारे में: एक प्राचीन ने इस बात का ध्यान रखा है कि मंडली की गुप्त बातें किसी को सुनायी न दें।