अध्ययन लेख 9
जवान भाइयो, आप दूसरों का भरोसा कैसे जीत सकते हैं?
‘तेरे साथ तेरे जवानों का दल होगा, वे ओस की बूँदों के समान हैं।’—भज. 110:3.
गीत 39 परमेश्वर की नज़रों में अच्छा नाम बनाएँ
लेख की एक झलक *
1. जवान भाइयों के बारे में क्या कहा जा सकता है?
जवान भाइयो, आपमें जोश है, आपमें ताकत है। (नीति. 20:29) आप मंडली के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। आप शायद सोचें, ‘मैं सहायक सेवक बनकर भाई-बहनों की सेवा करूँगा।’ मगर दूसरों को लगता हो कि आप अभी बहुत छोटे हैं, आपको ज़िंदगी का तजुरबा भी नहीं है। आप यह ज़िम्मेदारी नहीं सँभाल पाएँगे। भले ही आज आप छोटे हों, मगर आप अब भी बहुत कुछ कर सकते हैं जिससे मंडली में आपका एक अच्छा नाम हो और आप दूसरों का भरोसा जीत पाएँ।
2. इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?
2 इस लेख में हम राजा दाविद की ज़िंदगी के बारे में बात करेंगे। हम यहूदा के दो राजाओं, आसा और यहोशापात से भी कुछ सीखेंगे। हम जानेंगे कि उनकी ज़िंदगी में कौन-सी मुश्किलें आयीं, उन्होंने क्या किया और जवान भाई उनसे क्या सीख सकते हैं।
आप राजा दाविद से क्या सीख सकते हैं?
3. जवान लोग बुज़ुर्ग भाई-बहनों की किस तरह मदद कर सकते हैं?
3 जब दाविद जवान था, तब से यहोवा के साथ उसका गहरा रिश्ता था। उसने कुछ ऐसे हुनर भी सीखे जिनसे दूसरों को बहुत फायदा हुआ। जैसे, वह राजा शाऊल के लिए सुरमंडल बजाया करता था। (1 शमू. 16:16, 23) जवान भाइयो, क्या आपमें भी ऐसी कोई काबिलीयत है जिससे आप दूसरों की मदद कर सकते हैं? हमारे कुछ बुज़ुर्ग भाई-बहनों को मोबाइल या टैबलेट ठीक से चलाना नहीं आता। लेकिन अगर आप इन उपकरणों को चलाने में उनकी मदद करें, तो उन्हें बहुत अच्छा लगेगा। वे अपना निजी अध्ययन कर पाएँगे और सभाओं में भी इनका अच्छा इस्तेमाल कर पाएँगे। इन उपकरणों के बारे में आप जो कुछ जानते हैं, उससे बुज़ुर्ग भाई-बहनों की बहुत मदद होगी।
4. दाविद की तरह जवान भाइयों को क्या करना चाहिए? (बाहर दी तसवीर देखें।)
1 शमू. 17:34, 35) दाविद को जो ज़िम्मेदारी दी गयी थी, उसने उसे दिलो-जान से किया। वह भेड़ों की हिफाज़त करने के लिए बड़ी हिम्मत से जंगली जानवरों से भी लड़ा। जवान भाइयो, दाविद की तरह बनिए। आपको जो भी काम दिया जाता है, उसे दिल लगाकर कीजिए।
4 जब दाविद जवान था, तो वह अपने पिता की भेड़ों की देखभाल करता था। यह काम खतरे से खाली नहीं था। एक बार उसने राजा शाऊल को बताया, “तेरा यह दास अपने पिता की भेड़ों का चरवाहा भी है। एक बार जब एक शेर मेरी एक भेड़ को उठाकर ले जाने लगा और दूसरी बार एक भालू एक भेड़ को उठाकर ले जाने लगा, तो मैंने उनका पीछा किया और उन्हें मारा और भेड़ को उनके मुँह से बचाया।” (5. भजन 25:14 के मुताबिक कौन-सी बात सबसे ज़्यादा मायने रखती है?
5 दाविद बहुत हुनरमंद और हिम्मतवाला था। लेकिन ये सारी चीजें उसके लिए उतना मायने नहीं रखती थीं, जितना यहोवा के साथ उसका रिश्ता। इसलिए उसने यहोवा के साथ गहरी दोस्ती की। यहोवा सिर्फ उसका परमेश्वर नहीं, उसका सबसे अच्छा दोस्त भी था। (भजन 25:14 पढ़िए।) जवान भाइयो, याद रखिए कि यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्ता होना ही सबसे ज़्यादा मायने रखता है। अगर यहोवा के साथ आपका एक अच्छा रिश्ता होगा, तो आगे चलकर आपको मंडली में ज़िम्मेदारियाँ भी मिल सकती हैं।
6. कुछ लोग दाविद के बारे में क्या सोचते थे?
6 कुछ लोगों को लगता था कि दाविद बहुत छोटा है, वह गैर-ज़िम्मेदार है। एक बार जब दाविद गोलियात से लड़ना चाहता था, तो राजा शाऊल ने उसे यह कहकर रोकने की कोशिश की, “तू बस एक छोटा-सा लड़का है।” (1 शमू. 17:31-33) इसके पहले दाविद के भाई ने भी उसे डाँटा और कहा था कि वह गैर-ज़िम्मेदार है। (1 शमू. 17:26-30) लेकिन यहोवा दाविद को बहुत अच्छे-से जानता था। वह उसे गैर-ज़िम्मेदार या बच्चा नहीं समझता था। अपने दोस्त यहोवा की मदद से दाविद ने गोलियात को मार गिराया।—1 शमू. 17:45, 48-51.
7. आप दाविद से क्या सीख सकते हैं?
7 जवान भाइयो, इस घटना से आपने दाविद से क्या सीखा? आपको सब्र रखना है। जिन लोगों ने आपको बचपन से देखा है, शायद उन्हें यह मानने में थोड़ा वक्त लगे कि अब आप बड़े हो गए हैं। लेकिन आप यकीन रख सकते हैं कि यहोवा आपका सिर्फ बाहरी रूप नहीं देखता। वह आपका दिल देखता है और जानता है कि आप कैसे इंसान हैं और 1 शमू. 16:7) दाविद से आप एक और बात सीख सकते हैं। उसने यहोवा की सृष्टि पर मनन करके उसके बारे में काफी कुछ सीखा। इस तरह यहोवा के साथ उसका एक मज़बूत रिश्ता बना। आप भी यहोवा के साथ एक मज़बूत रिश्ता बना सकते हैं। (भज. 8:3, 4; 139:14; रोमि. 1:20) आप दाविद से एक और बात सीख सकते हैं। मान लीजिए आप किसी मुश्किल में हैं, आपकी क्लास के बच्चे आपका मज़ाक उड़ा रहे हैं कि आप एक यहोवा के साक्षी है। ऐसे में यहोवा से प्रार्थना कीजिए, उससे मदद माँगिए। बाइबल, बाइबल पर आधारित प्रकाशनों और वीडियो में दिए सुझाव मानिए। इस तरह जब आप यहोवा की मदद से हर मुश्किल पार करेंगे, तो उस पर आपका भरोसा बढ़ता जाएगा। और जब दूसरे देखेंगे कि आप यहोवा पर भरोसा करते हैं, तो वे आप पर भरोसा करेंगे।
आप क्या-क्या कर सकते हैं। (8-9. (क) जब तक दाविद राजा नहीं बना उसने क्या किया? (ख) जवान भाई दाविद से क्या सीख सकते हैं?
8 दाविद को एक और मुश्किल का सामना करना पड़ा। उसे राजा तो बहुत पहले चुन लिया गया था, लेकिन यहूदा का राजा बनने के लिए उसे काफी लंबा समय इंतज़ार करना पड़ा। (1 शमू. 16:13; 2 शमू. 2:3, 4) इस दौरान दाविद ने क्या किया? क्या वह निराश हो गया? नहीं। उसने सब्र रखा और वह जो कर सकता था, उसने किया। जैसे, जब वह शाऊल से भागकर पलिश्तियों के देश गया, तो वहाँ रहते हुए भी उसने इसराएल के दुश्मनों से लड़ाई की। और उसने यहूदा के इलाके की हिफाज़त की।—1 शमू. 27:1-12.
9 जवान भाइयो, आप दाविद से क्या सीख सकते हैं? जब तक आपको मंडली में कोई ज़िम्मेदारी नहीं मिलती, तब तक आप भाई-बहनों के लिए और यहोवा की सेवा में जो भी कर सकते हैं, वह करते रहिए। रिकार्डो * के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। वह तब से पायनियर बनना चाहता था, जब वह करीब दस साल का था। लेकिन प्राचीनों ने उससे कहा कि वह अभी तैयार नहीं है। क्या रिकार्डो निराश हो गया और उसने हार मान ली? नहीं। वह जो कर सकता था, वह करता रहा। वह प्रचार में ज़्यादा जाने लगा। रिकार्डो कहता है, “एक तरह से अच्छा ही हुआ कि उस वक्त मुझे पायनियर नहीं बनाया गया। मुझे अपना हुनर बढ़ाने का वक्त मिल गया। मैंने और अच्छी तरह वापसी भेंट करना सीखा। मैंने पहली बार किसी का बाइबल अध्ययन भी कराया। जितना ज़्यादा मैं प्रचार में वक्त बिताने लगा उतनी मेरी घबराहट दूर होने लगी। और मैं पूरे यकीन से दूसरों को बाइबल के बारे में सिखाने लगा।” रिकार्डो आज एक अच्छा पायनियर और सहायक सेवक है।
10. एक बार जब दाविद को कोई ज़रूरी फैसला लेना था, तो उसने क्या किया?
10 जब दाविद शाऊल से भाग रहा था, तब उसकी ज़िंदगी में एक और घटना घटी। एक बार वह अपने आदमियों को लेकर युद्ध करने गया था। इस बीच लुटेरे आए और उनका सबकुछ लूटकर ले गए। उनके बीवी-बच्चों को भी बंदी बनाकर ले गए। जब दाविद को यह सब पता चला, तो वह सोच सकता था, ‘मैं खुद उन्हें छुड़ाकर ला सकता हूँ। मैं तो एक योद्धा हूँ, मुझे मालूम है दुश्मनों से कैसे लड़ना है।’ लेकिन दाविद ने ऐसा नहीं किया। उसने यहोवा से सलाह ली। उसने याजक अबियातार के ज़रिए यहोवा से पूछा, “क्या मैं लुटेरों के उस दल का पीछा करने जाऊँ?” यहोवा ने उसे जाने के लिए कहा और उसे यकीन दिलाया कि वह उन लुटेरों से ज़रूर जीतेगा। (1 शमू. 30:7-10) आप इस घटना से क्या सीखते हैं?
11. कोई भी फैसला करने से पहले आपको क्या करना चाहिए?
11 कोई भी फैसला लेने से पहले दूसरों से सलाह लीजिए। आप अपने माता-पिता से सलाह ले सकते हैं। आप मंडली के प्राचीनों से भी बात कर सकते इफि. 4:8) अगर आप सही फैसले करना चाहते हैं, तो इन प्राचीनों की तरह विश्वास रखिए और उनके सुझाव मानिए। अब आइए राजा आसा की ज़िंदगी से कुछ सीखते हैं।
हैं। प्राचीनों पर आप भरोसा कर सकते हैं, क्योंकि यहोवा उन पर भरोसा करता है। प्राचीन, यहोवा की तरफ से मंडलियों के लिए “तोहफे” जैसे हैं। (आप राजा आसा से क्या सीख सकते हैं?
12. जब आसा राजा बना, तो उसमें कौन-से अच्छे गुण थे?
12 जब आसा जवान था, तो वह बहुत नम्र और हिम्मतवाला था। अपने पिता अबियाह के बाद जब उसे राजा बनाया गया, तो उसने पूरे देश में मूर्तिपूजा को मिटाने के लिए बहुत बड़ा कदम उठाया। उसने “यहूदा के लोगों को बढ़ावा दिया कि वे अपने पुरखों के परमेश्वर यहोवा की खोज करें और उसके कानून और उसकी आज्ञाओं का पालन करें।” (2 इति. 14:1-7) बाद में जब इथियोपिया का राजा जेरह दस लाख सैनिक लेकर यहूदा पर हमला करने आया, तो आसा ने यहोवा पर भरोसा रखा और उससे मदद माँगी। उसने कहा, “हे यहोवा, तू जिन लोगों की मदद करना चाहता है, उनकी मदद ज़रूर कर सकता है, फिर चाहे वे गिनती में ज़्यादा हों या उनके पास ताकत न हो। हे हमारे परमेश्वर यहोवा, हमारी मदद कर क्योंकि हमने तुझ पर भरोसा किया है।” इस प्रार्थना से पता चलता है कि आसा को यहोवा पर पूरा यकीन था कि वह उसे और उसके लोगों को ज़रूर बचाएगा। आसा ने यहोवा पर भरोसा किया और ‘यहोवा ने इथियोपिया के लोगों को हरा दिया।’—2 इति. 14:8-12.
13. बताइए कि आसा ने बाद में क्या किया।
13 ज़रा सोचिए, दस लाख लोगों की सेना का मुकाबला करना कोई आसान बात नहीं थी। पर आसा ने यहोवा पर भरोसा रखा, इसलिए वह उनका मुकाबला कर सका। लेकिन कुछ समय बाद, इसराएल का दुष्ट राजा बाशा एक छोटी-सी सेना लेकर यहूदा पर हमला करने आया। उस वक्त आसा ने यहोवा पर भरोसा नहीं किया बल्कि उसने सीरिया के राजा से मदद माँगी। इस फैसले का बहुत बुरा अंजाम हुआ। तब से आसा लगातार युद्ध में ही उलझा रहा। यहोवा ने अपने भविष्यवक्ता हनानी के ज़रिए आसा से कहा, “तूने अपने परमेश्वर यहोवा पर भरोसा करने के बजाय सीरिया के राजा पर भरोसा किया, इसलिए सीरिया के राजा की सेना तेरे हाथ से निकल गयी है।” (2 इति. 16:7, 9; 1 राजा 15:32) इससे आप क्या सीखते हैं?
14. (क) यहोवा पर भरोसा रखने के लिए आपको क्या करना चाहिए? (ख) 1 तीमुथियुस 4:12 के मुताबिक ऐसा करने का क्या अच्छा नतीजा होगा?
नीति. 3:5, 6) इससे यहोवा खुश होगा और आप मंडली में एक अच्छा नाम बना पाएँगे।—1 तीमुथियुस 4:12 पढ़िए।
14 नम्र रहिए और यहोवा पर भरोसा करते रहिए। जब आपने बपतिस्मा लिया, तब आपको यहोवा पर पूरा भरोसा था और यहोवा आपके इस फैसले से खुश था। लेकिन यहोवा पर भरोसा करना मत छोड़िए। यह सच है कि जब आपको ज़िंदगी में बड़े-बड़े फैसले करने होते हैं, तो आप यहोवा पर निर्भर रहते हैं। लेकिन छोटे-छोटे फैसलों के बारे में क्या? क्या तब भी आप यहोवा पर भरोसा करते हैं? आपको छोटे-बड़े सभी फैसलों में यहोवा पर निर्भर रहना चाहिए, फिर चाहे मनोरंजन करने की बात हो, नौकरी करने की बात हो या ज़िंदगी में कोई लक्ष्य रखने की। इन मामलों में बाइबल के सिद्धांत ढूँढ़िए और फिर फैसले कीजिए। (आप राजा यहोशापात से क्या सीख सकते हैं?
15. दूसरा इतिहास 18:1-3 और 19:2 के मुताबिक यहोशापात ने क्या गलतियाँ कीं?
15 हम सबसे गलतियाँ होती हैं, आपसे भी होंगी क्योंकि हम सब अपरिपूर्ण हैं। लेकिन इस वजह से निराश होकर यहोवा की सेवा करना मत छोड़िए। आपसे जो हो सकता है, करते रहिए। राजा यहोशापात में कई खूबियाँ थीं। बाइबल बताती है कि जब उसने राज करना शुरू किया, तो उसने “अपने पिता परमेश्वर की खोज की और उसकी आज्ञाएँ मानीं।” उसने हाकिमों को यहूदा के शहरों में भेजा ताकि वे लोगों को यहोवा के बारे में सिखाएँ। (2 इति. 17:4, 7) लेकिन यहोशापात से गलतियाँ भी हुईं। उसने एक ऐसा फैसला किया जिससे यहोवा बहुत नाराज़ हुआ। उसकी गलती का एहसास दिलाने के लिए यहोवा ने अपने एक सेवक को भेजा। (2 इतिहास 18:1-3; 19:2 पढ़िए।) इससे आप क्या सीख सकते हैं?
16. आपने राजीव से क्या सीखा?
16 दूसरों की सलाह मानिए। हो सकता है, दूसरे जवानों की तरह यहोवा की सेवा को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देना आपको मुश्किल लगे। लेकिन दिल छोटा मत कीजिए। राजीव नाम के एक जवान भाई के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। वह अपनी जवानी के दिनों के बारे में बताता है, “मुझे खेलना-कूदना, मस्ती करना ज़्यादा पसंद था। प्रचार और सभाओं में मेरा मन नहीं लगता था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कौन-सी बातें ज़्यादा मायने रखती हैं।” फिर एक प्राचीन ने राजीव को इस बारे में बहुत प्यार से 1 तीमुथियुस 4:8 में दिए सिद्धांत के बारे में बताया।” राजीव ने भाई की बातों के बारे में सोचा और बाइबल की सलाह मानी। उसने फैसला किया कि वह अब से यहोवा की सेवा को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देगा। इसका नतीजा क्या हुआ? राजीव कहता है, “उस सलाह को मानने के कुछ साल बाद मैं एक सहायक सेवक बन गया।”
समझाया। राजीव कहता है, “उसने मुझेअपने पिता यहोवा का दिल खुश कीजिए
17. जवान भाइयों को यहोवा की सेवा करते देखकर भाई-बहनों को कैसा लगता है?
17 मंडली के भाई-बहनों को यह देखकर बहुत खुशी होती है कि आप उनके साथ “कंधे-से-कंधा मिलाकर” यहोवा की सेवा कर रहे हैं। (सप. 3:9) जब आपको कोई काम दिया जाता है और आप उसे पूरी ताकत लगाकर और जोश से करते हैं, तो यह देखकर उन्हें अच्छा लगता है। आप उनके लिए बहुत अनमोल हैं।—1 यूह. 2:14.
18. नीतिवचन 27:11 के मुताबिक जवान भाइयों के बारे में यहोवा कैसा महसूस करता है?
18 जवान भाइयो, याद रखिए कि यहोवा आपसे प्यार करता है और आप पर भरोसा करता है। उसने पहले से बताया था कि आखिरी दिनों में बहुत-से जवान भाई खुशी-खुशी उसकी सेवा करेंगे। (भज. 110:1-3) वह जानता है कि आप उससे प्यार करते हैं और जी-जान से उसकी सेवा करना चाहते हैं। इसलिए दूसरों के साथ और खुद के साथ भी सब्र रखिए। अगर आपसे कोई गलती हो जाए और आपको सुधारा जाए, तो निराश मत होइए। आपको जो सलाह दी जाए उसे मानिए। यह समझिए कि यहोवा आपको सुधार रहा है। (इब्रा. 12:6) आपको मंडली में जो भी ज़िम्मेदारी दी जाती है, उसे पूरी लगन से कीजिए। सबसे बढ़कर, अपने हर काम से अपने पिता यहोवा का दिल खुश कीजिए।—नीतिवचन 27:11 पढ़िए।
गीत 135 यहोवा की प्यार-भरी गुज़ारिश: “मेरे बेटे, बुद्धिमान बन”