अध्ययन लेख 12
प्यार होगा, तो लोगों की नफरत सह पाएँगे
“मैंने तुम्हें इन बातों की आज्ञा इसलिए दी है ताकि तुम एक-दूसरे से प्यार करो। अगर दुनिया तुमसे नफरत करती है, तो याद रखो कि इसने तुमसे पहले मुझसे नफरत की है।”—यूह. 15:17, 18.
गीत 129 हम धीरज धरेंगे
लेख की एक झलक *
1. जब दुनिया हमसे नफरत करती है, तो मत्ती 24:9 के मुताबिक हमें हैरानी क्यों नहीं होती?
यहोवा ने हमें इस तरह बनाया है कि हम दूसरों से प्यार करें और दूसरे भी हमसे प्यार करें। लेकिन जब लोग हमसे नफरत करते हैं, तो हमें बुरा लगता है, कभी-कभी डर भी लगता है। जौर्जीना का उदाहरण लीजिए। वह यूरोप से है। वह कहती है, “जब मैंने 14 साल की उम्र में यहोवा की सेवा करने का फैसला किया, तो मम्मी बहुत नाराज़ हुईं। वे मुझसे नफरत करने लगीं। उनका व्यवहार देखकर मुझे दुख हुआ। मुझे लगा कि मैं बहुत बुरी हूँ।” * एक और भाई डैनिलो कहता है, “मेरे विश्वास की वजह से जब सैनिकों ने मुझे मारा-पीटा, मेरी बेइज़्ज़ती की, मुझे डराया-धमकाया, तो मैं डर गया था। मुझे बहुत बुरा लग रहा था।” जब लोग हमसे नफरत करते हैं तो हमें खुशी तो नहीं होती, लेकिन हैरानी भी नहीं होती। क्योंकि यीशु ने पहले से बताया था कि यह सब होगा।—मत्ती 24:9 पढ़िए।
2-3. दुनिया के लोग यीशु के चेलों से नफरत क्यों करते हैं?
2 यीशु ने कहा था कि उसके चेले ‘इस दुनिया के नहीं हैं।’ इस वजह से लोग हमसे नफरत करते हैं, हमारा विरोध करते हैं। (यूह. 15:17-19) हालाँकि हम इंसानी शासकों की इज़्ज़त करते हैं, लेकिन उपासना सिर्फ यहोवा की करते हैं। इसलिए हम राजनीति में हिस्सा नहीं लेते, न ही झंडे को सलामी देते हैं या राष्ट्र-गान गाते हैं। हम यहोवा की हुकूमत का साथ देते हैं, जबकि शैतान और उसका “वंश” उसकी हुकूमत का विरोध करते हैं। (उत्प. 3:1-5, 15) हम प्रचार करते हैं कि परमेश्वर की सरकार ही इंसानों की तकलीफें दूर करेगी और जो इसका विरोध करता है, उसे खत्म कर देगी। (दानि. 2:44; प्रका. 19:19-21) यह दीन लोगों के लिए खुशी की खबर है, पर दुष्टों के लिए बुरी खबर।—भज. 37:10, 11.
यहू. 7) इसलिए जब हम बाइबल के उसूलों के मुताबिक चलते हैं, तो लोग हमारा मज़ाक उड़ाते हैं, हमें छोटी सोचवाले कहते हैं।—1 पत. 4:3, 4.
3 लोग हमसे इसलिए भी नफरत करते हैं कि हम परमेश्वर के ऊँचे नैतिक उसूलों पर चलते हैं। परमेश्वर के उसूलों और दुनिया के उसूलों में बहुत फर्क है। उदाहरण के लिए, यहोवा ने जिन घिनौने अनैतिक कामों के लिए सदोम और अमोरा का नाश किया था, आज उन्हीं कामों को लोग सही मान रहे हैं। (4. लोगों की नफरत सहने के लिए हममें कौन-से गुण होने चाहिए?
4 अगर हम लोगों की नफरत सहना चाहते हैं, तो हममें मज़बूत विश्वास होना चाहिए कि यहोवा हमारी मदद करेगा। विश्वास एक ढाल की तरह है जो “शैतान के सभी जलते हुए तीरों को बुझा” सकता है। (इफि. 6:16) लेकिन विश्वास के साथ-साथ हममें प्यार भी होना चाहिए। क्योंकि प्यार “भड़क नहीं उठता,” सब बुरी बातों को बरदाश्त कर लेता है, सबकुछ धीरज से सहता है। (1 कुरिं. 13:4-7, 13) हम इस लेख में चर्चा करेंगे कि यहोवा के लिए, अपने भाई-बहनों के लिए, यहाँ तक कि दुश्मनों के लिए प्यार होने से हम दुनिया की नफरत कैसे सह पाएँगे।
यहोवा से प्यार होगा, तो नफरत सह पाएँगे
5. यीशु को यहोवा से प्यार था, इसलिए वह क्या कर पाया?
5 यीशु ने अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात अपने चेलों से कहा, “मैं पिता से प्यार करता हूँ इसलिए मैं ठीक वैसा ही करता हूँ जैसा पिता ने मुझे आज्ञा दी है।” (यूह. 14:31) यीशु यहोवा से प्यार करता था इसलिए जब उसके दुश्मनों ने उसकी मौत से पहले उसे सताया, तो वह सबकुछ सह पाया। अगर हमें यहोवा से प्यार होगा, तो हम भी दुनिया की नफरत सह पाएँगे।
6. रोमियों 5:3-5 के मुताबिक जब यहोवा के सेवकों को सताया जाता है, तो उन्हें कैसा लगता है?
6 यहोवा के लिए प्यार होने की वजह से उसके सेवक ज़ुल्म सह पाए हैं। जैसे, पहली सदी में जब यहूदियों की सबसे बड़ी अदालत ने प्रेषितों को प्रचार करने से रोका, तो वे नहीं रुके। उन्हें यहोवा से प्यार था, इसलिए उन्होंने ‘इंसानों के बजाय परमेश्वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानी।’ (प्रेषि. 5:29; 1 यूह. 5:3) आज भी ऐसे बहुत-से मसीही हैं जो बेरहम और ताकतवर सरकारों के ज़ुल्म सह पाते हैं। ज़ुल्मों के बावजूद वे निराश नहीं होते बल्कि खुश रहते हैं।—प्रेषि. 5:41; रोमियों 5:3-5 पढ़िए।
7. जब हमारे परिवारवाले हमारा विरोध करते हैं, तो हमें क्या करना चाहिए?
7 जब हमारे परिवारवाले हमें सताते हैं, तो शायद उसे सहना और भी बहुत मुश्किल हो। शायद वे सोचें कि किसी ने हमें बहका दिया है या हमारा दिमाग खराब हो गया है। (मरकुस 3:21 से तुलना करें।) हमें रोकने के लिए शायद वे किसी भी हद तक जाएँ। ऐसे में हम हैरान नहीं होते क्योंकि यीशु ने कहा था, “एक आदमी के दुश्मन उसके अपने ही घराने के लोग होंगे।” (मत्ती 10:36) भले ही वे हमसे नफरत करें, लेकिन हम उन्हें अपना दुश्मन नहीं मानते। इसके बजाय जैसे-जैसे यहोवा के लिए हमारा प्यार बढ़ता है, लोगों के लिए भी हमारा प्यार बढ़ता है। (मत्ती 22:37-39) लेकिन उन्हें खुश करने के लिए हम कभी-भी बाइबल के नियमों या सिद्धांतों से समझौता नहीं करेंगे।
8-9. जौर्जीना अपने हालात का सामना कैसे कर पायी?
8 जौर्जीना, जिसका पहले ज़िक्र किया गया है, विरोध के बावजूद डटी रही। वह कहती है, “मैंने और मम्मी ने साथ में बाइबल अध्ययन करना शुरू किया था। लेकिन छ: महीने बाद जब मैं सभाओं में जाना चाहती थी, तो मम्मी विरोध करने लगीं। बाद में मुझे पता चला कि वे धर्मत्यागियों के संपर्क में हैं।
मुझे रोकने के लिए वे उनके तर्क देती थीं। वे कभी मेरी बेइज़्ज़ती करती थीं, कभी मेरे बाल नोचती थीं, गला दबाती थीं और कभी तो मेरी किताबें फेंक देती थीं। जब मैं 15 साल की हुई तो मैंने बपतिस्मा लिया। लेकिन मम्मी मेरा विरोध करती रहीं। उन्होंने मुझे एक ऐसी जगह डाल दिया, जहाँ ड्रग्स लेनेवाले और अपराध करनेवाले बच्चों को रखा जाता है। जब हमारे अपने ही हमारे साथ ऐसा करते हैं तो बहुत दुख होता है।”9 जौर्जीना अपने हालात का सामना कैसे कर पायी? वह कहती है, “जब मम्मी ने पहली बार मेरा विरोध किया तब तक मैं पूरी बाइबल पढ़ चुकी थी। मुझे यकीन हो गया था कि यही सच्चाई है। यहोवा के साथ मेरा रिश्ता भी मज़बूत हो गया था। मैं उससे अकसर प्रार्थना करती थी और वह मेरी सुनता था। जब मैं उन बच्चों के साथ रहती थी, तो एक बहन ने मुझे अपने घर बुलाया। हमने साथ मिलकर बाइबल का अध्ययन किया। भाई-बहनों ने भी मेरी हिम्मत बँधायी। उन्होंने मुझे अपनों जैसा प्यार दिया। मुझे पूरा यकीन हो गया कि यहोवा हमारा विरोध करनेवालों से बहुत ताकतवर है।”
10. हम किस बात का भरोसा रख सकते हैं?
10 प्रेषित पौलुस ने कहा कि कोई भी चीज़ ‘हमें परमेश्वर के उस प्यार से अलग नहीं कर सकेगी जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है।’ (रोमि. 8:38, 39) शायद हमें कुछ समय के लिए तकलीफों से गुज़रना पड़े। लेकिन यहोवा हमेशा हमारे साथ रहेगा, हमें दिलासा और हिम्मत देगा। जौर्जीना के उदाहरण से हमने यह भी सीखा कि यहोवा भाई-बहनों के ज़रिए हमारी मदद करता है।
भाई-बहनों से प्यार होगा, तो नफरत सह पाएँगे
11. जब चेलों में वैसा प्यार होगा जैसा यूहन्ना 15:12, 13 में बताया है, तो वे क्या कर पाएँगे? उदाहरण दीजिए।
11 यीशु की मौत से एक रात पहले उसने अपने चेलों से कहा कि एक-दूसरे से प्यार करते रहो। (यूहन्ना 15:12, 13 पढ़िए।) वह जानता था कि अगर उनके बीच सच्चा प्यार होगा, तो उनमें एकता होगी और वे दुनिया की नफरत सह पाएँगे। थिस्सलुनीके की मंडली का उदाहरण लीजिए। जब से वह मंडली बनी थी तब से उन पर ज़ुल्म किए जा रहे थे। लेकिन वे यहोवा के वफादार रहे और एक-दूसरे से प्यार करते रहे। (1 थिस्स. 1:3, 6, 7) पौलुस ने उन्हें बढ़ावा दिया, “तुम और भी ज़्यादा ऐसा करते रहो।” (1 थिस्स. 4:9, 10) पौलुस जानता था कि अगर उनमें प्यार होगा तो वे मायूस लोगों को तसल्ली और कमज़ोरों को सहारा दे पाएँगे। (1 थिस्स. 5:14) थिस्सलुनीके के भाई-बहनों ने पौलुस की बात मानी। इसलिए एक साल बाद पौलुस ने अपनी दूसरी चिट्ठी में लिखा, ‘एक-दूसरे के लिए तुम सबका प्यार बढ़ता जा रहा है।’ (2 थिस्स. 1:3-5) इसी प्यार की वजह से वे हर तरह का ज़ुल्म और नफरत सह पाए।
12. युद्ध के समय में एक देश के भाई-बहनों ने कैसे दिखाया कि उन्हें एक-दूसरे से प्यार है?
12 चलिए डैनिलो का उदाहरण देखते हैं, जिसका ज़िक्र पहले किया गया था। उसके देश में युद्ध चल रहा था। बाद में उसका शहर भी युद्ध की चपेट में आ गया। फिर भी वह और उसकी पत्नी सभाओं में जाते रहे, जितना हो सके प्रचार करते रहे और खाने-पीने का सामान भाई-बहनों के साथ बाँटते रहे। लेकिन एक दिन कुछ सैनिक उनके घर घुस आए। डैनिलो बताता है, “उन्होंने मुझसे कहा कि मैं यहोवा की सेवा करना छोड़ दूँ। जब मैंने मना किया तो उन्होंने मुझे मारा, डराने के लिए मेरे सिर के ऊपर से गोलियाँ चलायीं। उन्होंने धमकी भी दी कि अगली बार वे मेरी बीवी का बलात्कार कर देंगे। जब भाइयों को पता चला, तो उन्होंने तुरंत हमें ट्रेन में बिठाकर दूसरे शहर भेज दिया। मैं उनका प्यार कभी नहीं भूल सकता। जब हम दूसरे शहर पहुँचे, तो वहाँ के भाई-बहनों ने हमारा बहुत खयाल रखा। उन्होंने हमें खाना दिया, हमारे लिए घर ढूँढ़ा, नौकरी ढूँढ़ी। हमने भी बाद में ऐसे भाई-बहनों की मदद की, जिन्हें युद्ध की वजह से अपना घर छोड़ना पड़ा।“ सच में अगर हमारे बीच प्यार होगा तो हम दुनिया की नफरत सह पाएँगे।
दुश्मनों से प्यार होगा, तो नफरत सह पाएँगे
13. जब लोग हमसे नफरत करते हैं, तो पवित्र शक्ति हमारी किस तरह मदद करती है?
13 यीशु ने कहा था कि हमें अपने दुश्मनों से प्यार करना चाहिए। (मत्ती 5:44, 45) यह आसान तो नहीं है लेकिन पवित्र शक्ति की मदद से हम ऐसा कर पाएँगे। पवित्र शक्ति प्यार, सब्र, कृपा, कोमलता और संयम जैसे गुण बढ़ाने में हमारी मदद कर सकती है। (गला. 5:22, 23) अगर हममें ये गुण होंगे तो हम दुनिया की नफरत सह पाएँगे। इसके कुछ अच्छे नतीजे भी निकले हैं। बहुत-से विरोध करनेवालों का मन बदल गया है क्योंकि उनके मसीही पति, पत्नी, बच्चों और पड़ोसियों में ये गुण थे। कई लोग तो सच्चाई में भी आ गए हैं। जब हमें अपने दुश्मनों से प्यार करना मुश्किल लगता है, तब हमें पवित्र शक्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। (लूका 11:13) और इस बात का पूरा यकीन रखना चाहिए कि यहोवा हमसे जो भी करने के लिए कहता है, उससे हमेशा हमारा भला होता है।—नीति. 3:5-7.
14-15. रोमियों 12:17-21 की सलाह मानने से यासमीन क्या कर पायी?
14 यासमीन के उदाहरण पर गौर कीजिए। जब वह यहोवा की साक्षी बनी, तो उसके पति को लगा कि किसी ने उसे बहका दिया है। वह अलग-अलग तरीके आज़माने लगा ताकि यासमीन यहोवा की सेवा करना छोड़ दे। उसने उसकी बेइज़्ज़ती की, उसे डराने-धमकाने के लिए अपने रिश्तेदारों और धर्म गुरु और तांत्रिक को भी बुलाया। उन्होंने उस पर इलज़ाम लगाया कि उसकी वजह से परिवार टूट रहा है। उसके पति ने सभा में जाकर प्राचीनों को बुरा-भला भी कहा। यासमीन अपने पति के बुरे बरताव की वजह से अकसर रोती थी।
15 मंडली के भाई-बहनों ने यासमीन की हिम्मत बँधायी, उसे दिलासा दिया और प्राचीनों ने उसे रोमियों 12:17-21 की सलाह मानने को कहा। (पढ़िए।) यासमीन कहती है, “यह सलाह मानना आसान नहीं था, लेकिन मैंने यहोवा से मदद माँगी और अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। जब मेरे पति जानबूझकर रसोई गंदा करते थे, तो मैं उसे साफ करती थी। जब वे मेरी बेइज़्ज़ती करते थे, तो मैं शांत रहती थी और प्यार से बात करती थी। जब वे बीमार होते थे, तो मैं उनका खयाल रखती थी।”
16-17. यासमीन के उदाहरण से आपने क्या सीखा?
16 यासमीन अपने पति से प्यार करती रही और इसका अच्छा नतीजा हुआ। वह कहती है, “अब मेरे पति मुझ पर भरोसा करते हैं क्योंकि मैं हमेशा सच बोलती हूँ। जब भी धर्म की बात होती है, तो वे आराम से मेरी सुनते हैं और खुद बढ़ावा देते हैं कि मैं सभाओं में जाऊँ। अब हमारे बीच शांति और प्यार है। मुझे उम्मीद है कि एक-न-एक-दिन मेरे पति सच्चाई में आएँगे और हम मिलकर यहोवा की उपासना करेंगे।”
17 यासमीन के उदाहरण से पता चलता है कि प्यार ‘सबकुछ बरदाश्त कर लेता है,सब बातों की आशा रखता है, सबकुछ धीरज से सह लेता है।’ (1 कुरिं. 13:4, 7) जब लोग हमसे नफरत करते हैं तो हमें तकलीफ होती है। लेकिन प्यार में नफरत से कहीं ज़्यादा ताकत है, इससे लोगों का दिल जीता जा सकता है। जब हम लोगों से प्यार करते हैं, तो यहोवा भी खुश होता है। लेकिन अगर विरोध करनेवाले हम पर ज़ुल्म करते रहें, तब भी हम खुश रह सकते हैं। आइए देखें कैसे।
नफरत सहकर भी खुश
18. जब लोग हमसे नफरत करते हैं, तो हमें खुशी क्यों होती है?
18 यीशु ने कहा, ‘सुखी हो तुम जब भी लोग तुमसे नफरत करें।’ (लूका 6:22) हम नहीं चाहते कि लोग हमसे नफरत करें। तो फिर यीशु ने ऐसा क्यों कहा कि जब लोग हमसे नफरत करते हैं, तो हमें खुश होना चाहिए? पहली वजह है, जब हम ज़ुल्म और नफरत के बावजूद यहोवा की सेवा करते रहते हैं, तो वह हमसे खुश होता है। (1 पत. 4:13, 14) दूसरी वजह, हमारा विश्वास परखा जाता है और वह और मज़बूत होता है। (1 पत. 1:7) और तीसरी वजह, हमें एक बेशकीमती इनाम मिलेगा। वह है हमेशा की ज़िंदगी।—रोमि. 2:6, 7.
19. कोड़े खाने के बाद भी प्रेषित इतने खुश क्यों थे?
19 यीशु के ज़िंदा होने के कुछ समय बाद प्रेषितों ने वही खुशी महसूस की जिसके बारे में उसने कहा था। जब उन्हें कोड़े लगाए गए और उनसे कहा गया कि वे प्रचार करना छोड़ दें, तो वे खुश हुए कि ‘उन्हें यीशु के नाम से बेइज़्ज़त होने के लायक समझा गया।’ (प्रेषि. 5:40-42) उन्हें यीशु से इतना प्यार था कि वे अपने दुश्मनों की नफरत से डरे नहीं। वे बिना रुके प्रचार करते रहे। आज भी ऐसे बहुत-से भाई-बहन हैं जो मुश्किलों के बावजूद यहोवा की सेवा करते रहते हैं। वे जानते हैं कि यहोवा उनके काम नहीं भूलेगा, न ही उस प्यार को भूलेगा जो उन्हें उसके नाम के लिए है।—इब्रा. 6:10.
20. अगले लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?
20 जब तक शैतान की यह दुनिया है, तब तक लोग हमसे नफरत करते रहेंगे। (यूह. 15:19) लेकिन हमें डरने की ज़रूरत नहीं है। अगले लेख में हम चर्चा करेंगे कि यहोवा अपने वफादार सेवकों को ‘मज़बूत करता है और उन्हें बचाता है।’ (2 थिस्स. 3:3) तो आइए हम यहोवा से, अपने भाई-बहनों से और दुश्मनों से प्यार करते रहें। इस तरह मंडली में एकता रहेगी, हमारा विश्वास मज़बूत होगा और हम यहोवा की महिमा करेंगे। और यह साबित हो जाएगा कि प्यार में नफरत से ज़्यादा ताकत है।
गीत 106 प्यार का गुण बढ़ाएँ
^ पैरा. 5 इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि अगर हमें यहोवा से प्यार होगा, मसीही भाई-बहनों से प्यार होगा, यहाँ तक कि अपने दुश्मनों से प्यार होगा, तो हम इस दुनिया की नफरत सह पाएँगे और यहोवा की सेवा करते रहेंगे। हम यह भी जानेंगे कि यीशु ने ऐसा क्यों कहा कि जब हमसे नफरत किया जाता है, तो हमें खुश होना चाहिए।
^ पैरा. 1 नाम बदल दिए गए हैं।
^ पैरा. 58 तसवीर के बारे में: जब सैनिकों ने डैनिलो को डराया-धमकाया, तो भाई-बहनों ने उसे और उसकी पत्नी को दूसरे शहर भेज दिया। वहाँ के भाई-बहनों ने उनका स्वागत किया और उनकी मदद की।
^ पैरा. 60 तसवीर के बारे में: यासमीन का पति उसका विरोध करता था, लेकिन प्राचीनों ने बहन को अच्छी सलाह दी। उसने वह सलाह मानी और एक अच्छी पत्नी बनने की कोशिश की। जब उसका पति बीमार होता था, तो वह उसका खयाल रखती थी।