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अध्ययन लेख 11

मुश्‍किलों में आपको बाइबल से मिलेगी मदद

मुश्‍किलों में आपको बाइबल से मिलेगी मदद

“जो बातें पहले से लिखी गयी थीं, वे इसलिए लिखी गयीं कि हम उनसे सीखें और शास्त्र से हमें धीरज धरने में मदद मिले और हम दिलासा पाएँ ताकि हमारे पास आशा हो।”​—रोमि. 15:4.

गीत 94 यहोवा के वचन के लिए एहसानमंद

लेख की एक झलक *

1. यहोवा के लोगों को शायद किन मुश्‍किलों का सामना करना पड़े?

क्या आप किसी मुश्‍किल से गुज़र रहे हैं? हो सकता है, मंडली के किसी भाई या बहन ने आपका दिल दुखाया हो। (याकू. 3:2) या आपके साथ स्कूल में पढ़नेवाले या साथ काम करनेवाले आपका मज़ाक उड़ाते हों कि आप एक यहोवा के साक्षी हैं। (1 पत. 4:3, 4) या आपके परिवारवाले आपको सभाओं में जाने से या प्रचार करने से रोक रहे हों। (मत्ती 10:35, 36) जब हम पर कोई बड़ी मुश्‍किल आती है, तो अकसर हम हिम्मत हारने लगते हैं। पर याद रखिए, आप पर चाहे जैसी भी मुश्‍किल आए, यहोवा आपकी मदद करेगा। उसका सामना करने के लिए वह आपको बुद्धि और ताकत देगा।

2. रोमियों 15:4 के मुताबिक बाइबल पढ़ने से क्या फायदा होगा?

2 यहोवा ने बाइबल में ऐसे लोगों के बारे में लिखवाया है, जिन्होंने मुश्‍किलों में धीरज धरा। लेकिन उसने उनके बारे में क्यों लिखवाया? ताकि हम उनसे सीख सकें। और यही बात उसने प्रेषित पौलुस से भी लिखवायी। (रोमियों 15:4 पढ़िए।) इन लोगों के बारे में पढ़ने से हमें दिलासा मिलेगा और हमारा हौसला बढ़ेगा। लेकिन सिर्फ पढ़ना काफी नहीं है। हम जो पढ़ते हैं उसका हमारी सोच और भावनाओं पर असर होना चाहिए। अगर आप किसी मुश्‍किल का सामना कर रहे हैं, तो ये चार बातें आपकी मदद कर सकती हैं: (प्रार्थना कीजिए, (कल्पना कीजिए, (मनन कीजिए, और (सीखी बातों को लागू कीजिए।  इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि आप यह कैसे कर सकते हैं। * फिर हम जानेंगे कि इन चार बातों की मदद से आप राजा दाविद और प्रेषित पौलुस की ज़िंदगी से क्या सीख सकते हैं।

1. प्रार्थना कीजिए

बाइबल पढ़ने से पहले यहोवा से मदद माँगिए कि आप जो पढ़ेंगे उससे आपको फायदा हो (पैराग्राफ 3 देखें)

3. (क) बाइबल पढ़ने से पहले आपको क्या करना चाहिए? (ख) ऐसा करने से क्या फायदा होगा?

3 (प्रार्थना कीजिए।  बाइबल पढ़ने से पहले यहोवा से प्रार्थना कीजिए ताकि आप जो पढ़ेंगे उससे आपको फायदा हो। अगर आप किसी मुश्‍किल का सामना कर रहे हैं, तो यहोवा से मदद माँगिए कि आप बाइबल से ऐसे सिद्धांत ढूँढ़ पाएँ जिससे आप उस मुश्‍किल को पार कर सकें।​—फिलि. 4:6, 7; याकू. 1:5.

2. कल्पना कीजिए

जिस व्यक्‍ति के बारे में आप पढ़ रहे हैं उसके बारे में कल्पना करने की कोशिश कीजिए (पैराग्राफ 4 देखें)

4. अपने मन में बाइबल के किरदारों की जीती-जागती तसवीर बनाने के लिए आपको क्या करना होगा?

4 (कल्पना कीजिए।  यहोवा ने हमें कल्पना करने की अनोखी काबिलीयत दी है। जिस व्यक्‍ति के बारे में आप पढ़ रहे हैं, अगर आप कल्पना करें कि वह क्या कर रहा है, उसके आस-पास क्या हो रहा है, वह कैसा महसूस कर रहा है, तो आपके मन में उस व्यक्‍ति की जीती-जागती तसवीर बन जाएगी।

3. मनन कीजिए

पढ़ी गयी बातों के बारे में ध्यान से सोचिए और समझिए कि उस जानकारी से आपको क्या फायदा होगा (पैराग्राफ 5 देखें)

5. (क) मनन करने का क्या मतलब है? (ख) मनन करने के लिए आप खुद से क्या पूछ सकते हैं?

5 (मनन कीजिए।  मनन करने का मतलब है, आप जो पढ़ रहे हैं उस पर ध्यान से सोचना और यह समझना कि उस जानकारी से आपको कैसे फायदा हो सकता है। मनन करने से आप नयी जानकारी को उन बातों से जोड़ सकते हैं जो आपने पहले सीखी थीं। इस तरह उस विषय के बारे में आपकी समझ और बढ़ेगी। अगर आप बाइबल पढ़ने के बाद मनन नहीं करते, तो यह ऐसा होगा मानो आपने खाना बनाने की सारी सामग्री तैयार तो की है, मगर उन्हें मिलाकर अभी तक पकाया नहीं है। लेकिन जब आप मनन करते हैं, तो आप सभी सामग्री को मिलाकर पकाते हैं और आपको एक स्वादिष्ट खाना मिलता है। मनन करने के लिए आप खुद से कुछ सवाल कर सकते हैं। जैसे, ‘इस घटना के मुख्य किरदार ने अपनी मुश्‍किलों का सामना करने के लिए क्या किया? यहोवा ने कैसे उसकी मदद की? मैं इस किरदार से क्या सीख सकता हूँ?’

4. सीखी बातों को लागू कीजिए

आप सही फैसले कर पाएँगे, आपको मन की शांति मिलेगी और आपका विश्‍वास मज़बूत होगा (पैराग्राफ 6 देखें)

6. आपको सीखी हुई बातों को लागू क्यों करना चाहिए?

6 (सीखी बातों को लागू कीजिए।  यीशु ने कहा था कि अगर कोई सीखी हुई बातों पर नहीं चलता, तो यह ऐसा है मानो उसने अपना घर रेत पर बनाया हो। उसने उस घर को बनाने में जितनी भी मेहनत की है, वह सारी बेकार जाएगी। क्योंकि आँधी और बाढ़ में वह घर बह जाएगा। (मत्ती 7:24-27) ठीक उसी तरह अगर आप प्रार्थना करते हैं, कल्पना करते हैं, मनन करते हैं, लेकिन सीखी बातों को लागू नहीं करते, तो आपकी सारी मेहनत बेकार जाएगी। क्योंकि जब आप पर ज़ुल्म या मुश्‍किलें आएँगी तो आपका विश्‍वास टिक नहीं पाएगा। लेकिन अगर आप सीखी हुई बातों को लागू करें, तो आप सही फैसले कर पाएँगे, आपको मन की शांति मिलेगी और आपका विश्‍वास मज़बूत होगा। (यशा. 48:17, 18) अब आइए दाविद की ज़िंदगी की एक घटना पर ध्यान दें और देखें कि इन चार बातों की मदद से आप उससे क्या सीख सकते हैं।

आप राजा दाविद से क्या सीख सकते हैं?

7. हम बाइबल के किस उदाहरण पर गौर करेंगे?

7 क्या किसी दोस्त या रिश्‍तेदार ने आपका भरोसा तोड़ा है या आपको दुख पहुँचाया है? दाविद के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। उसके बेटे अबशालोम ने उसे धोखा दिया और उसकी राजगद्दी छीनने की कोशिश की।​—2 शमू. 15:5-14, 31; 18:6-14.

8. आप यहोवा से किस बारे में प्रार्थना कर सकते हैं?

8 (प्रार्थना कीजिए।  दाविद की घटना को ध्यान में रखकर यहोवा को साफ-साफ बताइए कि आप अपनी परेशानी के बारे में कैसा महसूस कर रहे हैं। (भज. 6:6-9) फिर उससे मदद माँगिए कि आप बाइबल से ऐसे सिद्धांत ढूँढ़ पाएँ जिससे आप अपनी मुश्‍किल का सामना कर सकें।

9. चंद शब्दों में बताइए कि दाविद और अबशालोम के बीच क्या हुआ?

9 (कल्पना कीजिए।  सोचिए कि दाविद को उस वक्‍त कैसा लग रहा होगा। अबशालोम सालों से लोगों का दिल जीतने की कोशिश करता है। (2 शमू. 15:7) फिर मौका देखकर वह पूरे इसराएल देश में अपने जासूस भेजता है ताकि लोग उसे अपना राजा मानें। अबशालोम दाविद के दोस्त और भरोसेमंद सलाहकार अहीतोपेल को भी अपनी तरफ कर लेता है। फिर वह खुद को राजा घोषित करता है और दाविद को मार डालने की साज़िश रचता है। दाविद उस वक्‍त बहुत बीमार था। (भज. 41:1-9) दाविद को इस साज़िश का पता चल जाता है और वह यरूशलेम से भाग जाता है। फिर अबशालोम की सेना और दाविद के लोगों के बीच लड़ाई होती है। अबशालोम की सेना हार जाती है और उसकी मौत हो जाती है।

10. राजा दाविद चाहता तो क्या कर सकता था?

10 कल्पना कीजिए कि दाविद को कैसा लग रहा होगा। वह अपने बेटे अबशालोम से बहुत प्यार करता था और अपने दोस्त अहीतोपेल पर बहुत भरोसा करता था। लेकिन उन दोनों ने उसे धोखा दिया। वे उसे जान से भी मारना चाहते थे। दाविद का दूसरे दोस्तों पर से भरोसा उठ सकता था। वह उन पर शक कर सकता था कि वे भी अबशालोम से मिल गए हैं। वह चाहता तो सिर्फ अपने बारे में सोच सकता था, अपनी जान बचाने के लिए अकेला भाग सकता था। या वह निराश हो सकता था और हाथ-पर-हाथ धरे बैठ सकता था। लेकिन यह सब करने के बजाय दाविद ने हिम्मत से अपनी मुश्‍किलों का सामना किया। वह ऐसा क्यों कर पाया? आइए देखें।

11. दाविद ने अपनी मुश्‍किल का सामना कैसे किया?

11 (मनन कीजिए।  इस बारे में सोचिए, ‘दाविद ने अपनी मुश्‍किलों का सामना करने के लिए क्या किया?’ दाविद घबराया नहीं और उसने जल्दबाज़ी में कोई फैसला नहीं लिया। न ही उसने डर के मारे हार मान ली। इसके बजाय, उसने यहोवा से मदद माँगी। उसने अपने दोस्तों से भी मदद ली। और उसने जो सोचा था, उसके मुताबिक तुरंत कदम उठाया। हालाँकि दाविद बहुत दुखी था, लेकिन वह कड़वाहट से नहीं भरा। वह यहोवा और अपने दोस्तों पर भरोसा करता रहा।

12. यहोवा ने दाविद की किस तरह मदद की?

12 यहोवा ने दाविद की कैसे मदद की? अगर आप थोड़ा खोजबीन करेंगे, तो आपको पता चलेगा कि यहोवा ने इस मुश्‍किल को सहने में दाविद को हिम्मत दी। (भज. 3:1-8; उपरिलेख) उसने दाविद के फैसलों पर भी आशीष दी। और जब दाविद के आदमी उसकी रक्षा करने के लिए अबशालोम की सेना से लड़ रहे थे, तो यहोवा ने उनका साथ दिया।

13. अगर कोई आपको बहुत दुख पहुँचाता है, तो आप दाविद की तरह क्या कर सकते हैं? (मत्ती 18:15-17)

13 (सीखी बातों को लागू कीजिए।  खुद से पूछिए, ‘अगर कोई मुझे दुख पहुँचाता है, तो मैं दाविद की तरह क्या कर सकता हूँ?’ तुरंत कदम उठाइए। ज़रूरत पड़े तो यीशु ने मत्ती 18 में जो सलाह दी थी, उसे मानिए। (मत्ती 18:15-17 पढ़िए।) लेकिन जल्दबाज़ी में कोई कदम मत उठाइए, खासकर जब आप गुस्से में हों। ठंडे दिमाग से काम लीजिए और यहोवा से मदद माँगिए। अपने भाइयों पर भरोसा करते रहिए और उनकी मदद लीजिए। (नीति. 17:17) सबसे बढ़कर, बाइबल से यहोवा जो सलाह देता है उसे मानिए।​—नीति. 3:5, 6.

आप पौलुस से क्या सीख सकते हैं?

14. किन हालात में आपको 2 तीमुथियुस 1:12-16; 4:6-11, 17-22 से हौसला मिल सकता है?

14 क्या आपके परिवारवाले आपका विरोध कर रहे हैं या आप ऐसे देश में रहते हैं, जहाँ हमारे काम पर पाबंदी लगी है या वह पूरी तरह से बंद है? अगर ऐसा है, तो पौलुस ने 2 तीमुथियुस 1:12-16 और 4:6-11, 17-22 में जो बातें लिखी हैं, उन्हें पढ़कर आपका हौसला बढ़ेगा। * पौलुस ने ये बातें तब लिखीं, जब वह जेल में था।

15. आप यहोवा से किस बारे में प्रार्थना कर सकते हैं?

15 (प्रार्थना कीजिए।  इन आयतों को पढ़ने से पहले यहोवा को साफ-साफ बताइए कि आप किस समस्या का सामना कर रहे हैं और आपको कैसा लग रहा है। फिर यहोवा से मदद माँगिए कि आप बाइबल से ऐसे सिद्धांत ढूँढ़ पाएँ जिससे आप अपनी समस्या सुलझा सकें।

16. चंद शब्दों में बताइए कि पौलुस के साथ क्या हुआ।

16 (कल्पना कीजिए।  पौलुस के हालात के बारे में सोचिए। वह रोम के एक जेल में कैद है, उसे ज़ंजीरों से बाँधा गया है। वह पहले भी कैद में रह चुका है। लेकिन इस बार उसे पता है कि उसे मार डाला जाएगा। उसके कुछ साथियों ने उसे छोड़ दिया है और वह शारीरिक रूप से पस्त भी हो चुका है।​—2 तीमु. 1:15.

17. पौलुस चाहता तो क्या कर सकता था?

17 पौलुस चाहता तो सोच सकता था, ‘अगर मैं मसीही नहीं बना होता, तो मेरे साथ यह सब नहीं होता। मुझे जेल में नहीं डाला जाता।’ एशिया के जिन भाइयों ने उसका साथ छोड़ दिया था, उनके लिए उसके दिल में कड़वाहट भर सकती थी और दूसरे दोस्तों पर से उसका भरोसा उठ सकता था। लेकिन पौलुस ने ऐसा कुछ नहीं किया। वह अपने दोस्तों पर भरोसा करता रहा और उसे यकीन था कि यहोवा उसे इनाम ज़रूर देगा। उसे इतना भरोसा क्यों था?

18. पौलुस ने मुश्‍किल हालात का सामना कैसे किया?

18 (मनन कीजिए।  इस बारे में सोचिए, “पौलुस ने अपनी मुश्‍किलों का सामना करने के लिए क्या किया?” पौलुस की मौत करीब थी, लेकिन उसे अपनी चिंता नहीं थी। वह हर हाल में यहोवा के नाम की महिमा करना चाहता था। वह अपने भाई-बहनों का भी हौसला बढ़ाना चाहता था। वह यहोवा से प्रार्थना करता रहा और उस पर निर्भर रहा। (2 तीमु. 1:3) वह उन लोगों के बारे में सोचकर दुखी नहीं हुआ जिन्होंने उसका साथ छोड़ दिया था, बल्कि जिन लोगों ने मुश्‍किल घड़ी में उसका साथ दिया उसने उनका एहसान माना। वह शास्त्र का अध्ययन भी करता रहा। (2 तीमु. 3:16, 17; 4:13) सबसे बढ़कर, उसे यकीन था कि यहोवा और यीशु ने उसका साथ नहीं छोड़ा है। वे उससे प्यार करते हैं और उसे उसकी वफादारी का इनाम देंगे।

19. यहोवा ने पौलुस की किस तरह मदद की?

19 यहोवा ने पौलुस को बताया था कि मसीही बनने से उसे कुछ मुश्‍किलों का सामना करना पड़ेगा। (प्रेषि. 21:11-13) लेकिन यहोवा ने उसे अकेला नहीं छोड़ा, उसने उसकी मदद की। कैसे? उसने पौलुस की प्रार्थनाएँ सुनीं और उसे ताकत दी। (2 तीमु. 4:17) यहोवा ने पौलुस को यकीन दिलाया कि जिस इनाम के लिए उसने मेहनत की थी वह उसे ज़रूर मिलेगा। उसने उसके दोस्तों को भी उभारा कि वे उसकी मदद करें।

20. (क) रोमियों 8:38, 39 के मुताबिक पौलुस को किस बात का यकीन था? (ख) आप उसकी तरह क्या कर सकते हैं?

20 (सीखी बातों को लागू कीजिए।  खुद से पूछिए, ‘मैं पौलुस की तरह क्या कर सकता हूँ?’ पौलुस की तरह आपको भी अपने विश्‍वास के लिए सताया जाएगा। (मर. 10:29, 30) लेकिन यहोवा के वफादार रहने के लिए उससे प्रार्थना कीजिए। उस पर निर्भर रहिए और बाइबल का अध्ययन करते रहिए। लेकिन एक बात याद रखिए: यहोवा की महिमा करना सबसे ज़रूरी है। इस बात का यकीन रखिए कि यहोवा आपको कभी अकेला नहीं छोड़ेगा और कोई भी चीज़ आपको उसके प्यार से अलग नहीं कर सकेगी।​—रोमियों 8:38, 39 पढ़िए; इब्रा. 13:5, 6.

बाइबल के दूसरे किरदारों से सीखिए

21. आयोको और हेक्टर अपनी मुश्‍किलों का सामना कैसे कर पाए?

21 अगर हम बाइबल में बताए किरदारों के बारे में पढ़ेंगे, तो हमें हिम्मत मिलेगी और हम किसी भी मुश्‍किल को पार कर पाएँगे। जापान में रहनेवाली एक पायनियर बहन आयोको * पर ध्यान दीजिए। उसे सरेआम गवाही देने से डर लगता था। मगर बाइबल में योना के बारे में पढ़कर वह अपना डर दूर कर पायी। इंडोनेशिया में हेक्टर नाम के एक नौजवान पर गौर कीजिए। उसके माता-पिता सच्चाई में नहीं हैं। लेकिन बाइबल में रूत के बारे में पढ़कर वह यहोवा के बारे में सीखने लगा और उसकी सेवा करने लगा।

22. (क) बाइबल के किरदारों के बारे में आपको और जानकारी कहाँ मिल सकती है? (ख) इनसे पूरा फायदा पाने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

22 बाइबल के इन किरदारों के बारे में आपको कहाँ से जानकारी मिल सकती हैं? वीडियो, नाटक के अंदाज़ में पढ़ी गयी आयतों और “उनके विश्‍वास की मिसाल पर चलिए” शृंखला में। * इन्हें देखने, सुनने और पढ़ने से पहले यहोवा से प्रार्थना कीजिए और उसे साफ-साफ बताइए कि आपको किस विषय में मदद चाहिए। कल्पना कीजिए कि वह किरदार किन हालात में है, वह क्या सोच रहा है, कैसा महसूस कर रहा है। मनन कीजिए कि उसने अपने हालात का सामना कैसे किया और यहोवा ने किस तरह उसकी मदद की। फिर आपने जो कुछ सीखा, उसके मुताबिक चलिए। यहोवा ने अब तक आपके लिए जो किया है, उसके लिए उसका धन्यवाद कीजिए और बदले में दूसरों का हौसला बढ़ाइए, उनकी मदद कीजिए।

23. यशायाह 41:10, 13 में यहोवा हमसे क्या वादा करता है?

23 शैतान की दुनिया में जीना आसान नहीं है। कभी-कभी हमें समझ नहीं आता कि हम क्या करें। (2 तीमु. 3:1) लेकिन हमें डरने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि यहोवा अच्छी तरह जानता है कि हम पर क्या बीत रही है। वह हमसे वादा करता है कि मुश्‍किल घड़ी में वह अपने दाएँ हाथ से हमें सँभालेगा। (यशायाह 41:10, 13 पढ़िए।) हम भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा हमारी मदद करेगा और बाइबल के ज़रिए हमें हिम्मत देगा, ताकि हम किसी भी मुश्‍किल को पार सकें।

गीत 96 याह की पवित्र किताब​​—एक खज़ाना

^ पैरा. 5 बाइबल में कई लोगों के बारे में लिखा गया है। उनके बारे में पढ़ने से पता चलता है कि यहोवा अपने सेवकों से प्यार करता है और मुश्‍किलों में उनकी मदद करता है। इस लेख में हम निजी अध्ययन करने का एक तरीका देखेंगे ताकि आप बाइबल से जो पढ़ें, उससे आपको फायदा हो।

^ पैरा. 2 इस लेख में निजी अध्ययन करने का बस एक तरीका बताया गया है। इसके और भी तरीके हैं, जो आपको यहोवा के साक्षियों के लिए खोजबीन गाइड  में “बाइबल” विषय के नीचे दिए उपशीर्षक “बाइबल को पढ़ना और उसे समझना” में मिलेंगे।

^ पैरा. 14 इन आयतों को प्रहरीदुर्ग  अध्ययन के दौरान मत पढ़िए।

^ पैरा. 21 कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

^ पैरा. 22 jw.org पर “उनके विश्‍वास की मिसाल पर चलिए​—बाइबल में दर्ज़ लोगों की कहानी” पढ़ें। (शास्त्र से जानिए परमेश्‍वर पर विश्‍वास पर जाएँ।)