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अध्ययन लेख 11

गीत 129 हम धीरज धरेंगे

निराश होने पर भी यहोवा की सेवा करते रहिए!

निराश होने पर भी यहोवा की सेवा करते रहिए!

“तूने मेरे नाम की खातिर बहुत कुछ सहा है और तू दुख उठाते-उठाते थका नहीं।”​—प्रका. 2:3.

क्या सीखेंगे?

कभी-कभी हम अपनी या दूसरों की गलतियों की वजह से निराश हो जाते हैं, लेकिन तब भी हम यहोवा की सेवा में लगे रह सकते हैं।

1. यहोवा के संगठन में होने की वजह से हमें कौन-सी आशीषें मिली हैं?

 आज इन आखिरी दिनों में हालात बद-से-बदतर होते जा रहे हैं। लेकिन हम कितने खुश हैं कि हम यहोवा के संगठन का भाग हैं। यहोवा ने हमें मंडली के भाई-बहन दिए हैं, ऐसा परिवार दिया है जिसमें सब एक-दूसरे से सच्चा प्यार करते हैं और एकता में रहते हैं। (भज. 133:1) उसने हमें यह भी सिखाया है कि पति-पत्नी और बच्चे कैसे खुश रह सकते हैं। (इफि. 5:33–6:1) यही नहीं, अपनी चिंताओं का सामना करने के लिए और खुश रहने के लिए उसने हमें समझ और बुद्धि भी दी है।

2. यहोवा की सेवा करते रहने के लिए हम सबको क्या करना होगा और क्यों?

2 माना कि यहोवा के संगठन में हमें बहुत-सी आशीषें मिलती हैं, फिर भी वफादारी से यहोवा की सेवा करने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी होगी। वह क्यों? क्योंकि कई बार दूसरे ऐसी बातें कह देते हैं या कुछ ऐसे काम कर देते हैं जिस वजह से हमें दुख पहुँच सकता है। या शायद हम किसी कमज़ोरी की वजह से बार-बार एक ही गलती करें और निराश हो जाएँ। इस लेख में हम जानेंगे कि (1) जब कोई भाई या बहन हमारा दिल दुखाता है, (2) जब हमारा जीवन-साथी हमारा दिल दुखाता है या (3) जब हम अपनी किसी गलती की वजह से निराश हो जाते हैं, तब भी हम कैसे यहोवा की सेवा में लगे रह सकते हैं और उसके वफादार रह सकते हैं। हम परमेश्‍वर के तीन वफादार सेवकों पर भी गौर करेंगे और जानेंगे कि ऐसे हालात में उन्होंने क्या किया।

जब कोई भाई या बहन आपका दिल दुखाए

3. यहोवा के लोगों को किन मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है?

3 मुश्‍किल।  मंडली के सभी भाई-बहनों की आदतें अलग-अलग होती हैं। हो सकता है कि किसी की आदत हमें पसंद ना आए। या फिर कोई भाई या बहन हमारा दिल दुखाए या हमारे साथ बुरा बरताव करे। यह भी हो सकता है कि एक प्राचीन कोई गलती कर बैठे और यह देखकर हम परेशान हो जाएँ। ऐसे में कुछ लोगों को शायद लगे कि परमेश्‍वर के संगठन में तो यह सब नहीं होना चाहिए और फिर वे लोग भाई-बहनों के साथ “कंधे-से-कंधा मिलाकर” सेवा करने के बजाय उनसे दूर-दूर रहने लगें या सभाओं में आना ही छोड़ दें। (सप. 3:9) क्या ऐसा करना समझदारी होगी? पुराने ज़माने में परमेश्‍वर के एक सेवक के सामने कुछ ऐसी ही मुश्‍किलें आयी थीं। आइए देखें कि हम उससे क्या सीख सकते हैं।

4. पौलुस ने किन मुश्‍किलों का सामना किया?

4 उदाहरण।  प्रेषित पौलुस का भी भाई-बहनों ने दिल दुखाया था। जैसे, जब वह मसीही बन गया था, तब मंडली के भाई-बहनों को यकीन नहीं हो रहा था कि वह सच में यीशु का चेला बन चुका है। (प्रेषि. 9:26) इसके कुछ समय बाद कुछ भाई-बहनों ने पीठ पीछे उसकी बुराई की और उसे बदनाम करने की कोशिश की। (2 कुरिं. 10:10) फिर पौलुस ने एक प्राचीन को ऐसी गलती करते देखा जिससे बहुत लोगों को ठोकर लग सकती थी। (गला. 2:11, 12) यही नहीं, पौलुस के एक दोस्त, मरकुस ने कुछ ऐसा किया जिससे पौलुस बड़ा निराश हो गया। (प्रेषि. 15:37, 38) पौलुस चाहता तो उन भाई-बहनों से दूरियाँ बना सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वह जानता था कि वे अपरिपूर्ण हैं। उसने भाई-बहनों के बारे में सही सोच बनाए रखी और यहोवा की सेवा में लगा रहा। वह यह कैसे कर पाया?

5. पौलुस भाई-बहनों को क्यों माफ कर पाया? (कुलुस्सियों 3:13, 14) (तसवीर भी देखें।)

5 पौलुस अपने भाई-बहनों से बहुत प्यार करता था। इस वजह से उसने उनकी कमियों पर नहीं, बल्कि उनकी अच्छाइयों पर ध्यान दिया। प्यार होने की वजह से उसने उन्हें माफ भी किया, ठीक जैसे उसने मसीहियों को सलाह दी थी। (कुलुस्सियों 3:13, 14 पढ़िए।) ध्यान दीजिए कि वह मरकुस के साथ कैसे पेश आया। पहले मिशनरी दौरे में मरकुस भी पौलुस के साथ था, लेकिन फिर वह बीच में ही उसे छोड़कर चला गया। इस बात से पौलुस बहुत नाराज़ हो गया। लेकिन बाद में जब उसने कुलुस्से की मंडली को खत लिखा, तो उसने मरकुस की बहुत तारीफ की। उसने कहा कि वह मेरा सहकर्मी है जिससे मुझे “बहुत दिलासा मिला है।” (कुलु. 4:10, 11) और आगे चलकर जब पौलुस रोम में कैद था, तो उसने मदद के लिए खासकर मरकुस को अपने पास बुलाया। (2 तीमु. 4:11) इन बातों से पता चलता है कि पौलुस ने उन भाई-बहनों को माफ कर दिया था, जिन्होंने उसका दिल दुखाया था। हम पौलुस से क्या सीख सकते हैं?

पौलुस की बरनबास और मरकुस से अनबन हो गयी; लेकिन वह उनसे नाराज़ नहीं रहा, उसने आगे चलकर दोबारा मरकुस के साथ खुशी-खुशी सेवा की (पैराग्राफ 5)


6-7. हमारे भाई-बहनों में कमियाँ हैं, फिर भी हम कैसे उनसे प्यार करते रह सकते हैं? (1 यूहन्‍ना 4:7)

6 सीख।  यहोवा चाहता है कि हम अपने भाई-बहनों से प्यार करें, तब भी जब ऐसा करना हमारे लिए मुश्‍किल हो। (1 यूहन्‍ना 4:7 पढ़िए।) तो अगर कोई भाई या बहन हमारे साथ बुरा व्यवहार करे, तो हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि उसने जान-बूझकर ऐसा किया। हमें याद रखना चाहिए कि वह भी यहोवा की आज्ञाएँ मानने की पूरी कोशिश कर रहा है और शायद उसने अनजाने में हमारा दिल दुखा दिया है। (नीति. 12:18) यहोवा भी अपने वफादार सेवकों की कमियों को जानता है, फिर भी वह उनसे प्यार करता है। जब हमसे कोई गलती हो जाती है, तो वह हमसे नाराज़ नहीं रहता और हमसे नाता नहीं तोड़ लेता। (भज. 103:9) आइए हम भी अपने प्यारे पिता यहोवा के जैसे बनें और दूसरों को माफ करें।​—इफि. 4:32–5:1.

7 यह भी याद रखिए कि जैसे-जैसे अंत करीब आ रहा है, हमें अपने भाई-बहनों के और भी करीब रहना है। आनेवाले समय में हम पर और भी ज़ुल्म होंगे। हो सकता है, हमारे विश्‍वास की वजह से हमें जेल में डाल दिया जाए। उस वक्‍त हमारे भाई-बहन ही हमारे काम आएँगे। (नीति. 17:17) ज़रा ध्यान दीजिए कि भाई जूसेप a के साथ क्या हुआ। वे एक प्राचीन हैं और स्पेन में रहते हैं। उन्होंने और कुछ भाइयों ने सेना में भरती होने से इनकार कर दिया था, जिस वजह से उन सबको जेल में डाल दिया गया। भाई बताते हैं, “जेल में बहुत कम जगह थी और हम अकेले में कुछ नहीं कर पाते थे। कई बार हम एक-दूसरे से चिढ़ जाते थे और कुछ उलटा-सीधा बोल देते थे। पर फिर बाद में हम एक-दूसरे से माफी भी माँगते थे। इस वजह से हमारे बीच प्यार और एकता थी और हम दूसरे कैदियों से अपने भाइयों की हिफाज़त भी कर पाते थे। एक बार मेरा हाथ टूट गया और मैं कुछ नहीं कर पा रहा था। तब एक भाई ने मेरी बहुत मदद की। उसने मेरे कपड़े धोए और मेरे लिए बहुत कुछ किया। मैं उसका एहसान कभी नहीं भूल सकता!” सच में, अभी वक्‍त है कि हम एक-दूसरे से सुलह करें और एक-दूसरे को माफ करें।

जब आपका जीवन-साथी आपका दिल दुखाए

8. शादीशुदा लोगों को किस मुश्‍किल का सामना करना पड़ता है?

8 मुश्‍किल।  शादीशुदा ज़िंदगी में मुश्‍किलें आ सकती हैं। बाइबल में भी लिखा है कि जो शादीशुदा हैं, “उन्हें शारीरिक दुख-तकलीफें झेलनी पड़ेंगी।” (1 कुरिं. 7:28) पति-पत्नी दोनों ही अपरिपूर्ण होते हैं, दोनों की पसंद-नापसंद और स्वभाव एक-दूसरे से अलग होता है। यह भी हो सकता है कि उनकी परवरिश अलग-अलग माहौल में हुई हो। यही नहीं, शादी के कुछ समय बाद उन्हें अपने साथी की कुछ ऐसी आदतें या बातें पता चलें जिन पर उन्होंने पहले ध्यान ना दिया हो। इन वजहों से उनके बीच मुश्‍किलें खड़ी हो सकती हैं। जब ऐसा होता है, तो पति-पत्नी को यह देखना चाहिए कि उनकी अपनी क्या गलती थी और फिर समस्या को सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए। पर ऐसा करने के बजाय कुछ पति-पत्नी एक-दूसरे पर दोष लगाने लग सकते हैं। वे यह भी सोचने लग सकते हैं कि अलग हो जाना या तलाक लेना ही सही रहेगा। पर क्या ऐसा करने से समस्या हल हो जाएगी? b आइए पुराने ज़माने की एक वफादार औरत पर ध्यान दें। उससे हम सीखेंगे कि शादीशुदा ज़िंदगी में चाहे कितनी ही मुश्‍किलें क्यों ना आएँ, हम यहोवा के वफादार रह सकते हैं।

9. अबीगैल को किस मुश्‍किल का सामना करना पड़ा?

9 उदाहरण।  अबीगैल की शादी नाबाल नाम के एक आदमी से हुई थी। बाइबल में बताया गया है कि वह बहुत कठोर स्वभाव का था और सबके साथ बुरा बरताव करता था। (1 शमू. 25:3) ऐसे आदमी के साथ जीना अबीगैल के लिए बहुत ही मुश्‍किल रहा होगा। पर क्या उसने यह सोचा, ‘मैं किसी तरह उससे अपना पीछा छुड़ा लूँ’? देखा जाए, तो उसे एक बार ऐसा करने का मौका भी मिला था। हुआ यह कि एक बार नाबाल ने दाविद और उसके आदमियों की बेइज़्ज़ती की। इस पर दाविद को बहुत गुस्सा आया और वह उसे मारने के लिए निकल पड़ा। (1 शमू. 25:9-13) ऐसे में अबीगैल चाहती तो वहाँ से भाग जाती और नाबाल को दाविद के हाथ मरने देती, पर उसने ऐसा नहीं किया। वह दाविद से मिलने गयी और उससे बिनती की कि वह नाबाल की जान बख्श दे। और दाविद ने उसकी बात मान ली। (1 शमू. 25:23-27) पर अबीगैल ने ऐसा क्यों किया?

10. अबीगैल ने किस वजह से अपनी शादी के बंधन को बनाए रखने के लिए मेहनत की होगी?

10 अबीगैल यहोवा से प्यार करती थी और शादी को एक पवित्र बंधन मानती थी। उसे शायद पता था कि जब परमेश्‍वर ने आदम और हव्वा की शादी करवायी थी, तो वह चाहता था कि वे हमेशा एक-दूसरे का साथ निभाएँ। (उत्प. 2:24) अबीगैल परमेश्‍वर को खुश करना चाहती थी, इसलिए उसने अपने पति और पूरे घराने की जान बचाने के लिए जो हो सकता था, वह किया। वह फौरन दाविद के पास गयी और उसे रोका। उसने दाविद से माफी भी माँगी, जबकि उसने खुद कोई गलती नहीं की थी। सच में, अबीगैल बहुत हिम्मतवाली थी और उसने अपने फायदे की नहीं सोची। इसलिए यहोवा उससे बहुत प्यार करता था। आज पति-पत्नी अबीगैल से क्या सीख सकते हैं?

11. (क) यहोवा शादीशुदा लोगों से क्या चाहता है? (इफिसियों 5:33) (ख) बहन कारमेन ने शादी का रिश्‍ता निभाने के लिए क्या किया और हम उनसे क्या सीख सकते हैं? (तसवीर भी देखें।)

11 सीख।  यहोवा चाहता है कि पति-पत्नी शादी को एक पवित्र बंधन मानें और तब भी एक-दूसरे के साथ रहें जब ऐसा करना मुश्‍किल हो। समस्याएँ उठने पर जब पति-पत्नी उन्हें सुलझाने के लिए मेहनत करते हैं, एक-दूसरे से प्यार करते हैं और एक-दूसरे का आदर करते हैं, तो सोचिए यह देखकर यहोवा को कितनी खुशी होती होगी। (इफिसियों 5:33 पढ़िए) ज़रा बहन कारमेन के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। शादी के 6 साल बाद वे यहोवा के साक्षियों के साथ अध्ययन करने लगीं और फिर उनका बपतिस्मा हो गया। वे बताती हैं, “मेरे पति को यह बात अच्छी नहीं लगी। वे इस बात से चिढ़ने लगे कि मैं यहोवा की सेवा में ज़्यादा वक्‍त बिता रही हूँ। वे मेरी बेइज़्ज़ती करते थे और मुझे छोड़ने की धमकी देते रहते थे।” फिर भी बहन कारमेन ने हार नहीं मानी। वे 50 साल तक अपनी शादी का रिश्‍ता निभाती रहीं और अपने पति से प्यार करती रहीं और उनका आदर करती रहीं। वे बताती हैं, “जैसे-जैसे साल बीते, मैंने और भी समझ से काम लेना सीखा। मैं कोशिश करती थी कि हमेशा अपने पति से प्यार से बात करूँ। मैंने यह भी याद रखा कि यहोवा की नज़र में शादी एक पवित्र बंधन है और उसे बनाए रखने की मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। मैं यहोवा से प्यार करती हूँ, इसलिए मैंने अपने पति को छोड़ने की कभी सोची भी नहीं।” c अगर आपकी शादीशुदा ज़िंदगी में समस्याएँ आती हैं, तो यकीन रखिए कि इस रिश्‍ते को निभाने में यहोवा आपकी भी मदद करेगा।

अपने घराने को बचाने के लिए अबीगैल से जो हो सकता था, उसने किया। इससे आप क्या सीख सकते हैं? (पैराग्राफ 11)


जब आप अपनी गलती की वजह से निराश हो जाएँ

12. जब हमसे कोई बड़ा पाप हो जाता है, तो हमें कैसा लग सकता है?

12 मुश्‍किल।  अगर हम कोई गंभीर पाप कर देते हैं तो हो सकता है, हम बहुत निराश हो जाएँ। बाइबल में बताया है कि पाप करने की वजह से एक व्यक्‍ति अंदर से ‘टूट’ सकता है और ‘कुचला हुआ’ महसूस कर सकता है। (भज. 51:17) भाई रोबर्ट के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। उन्होंने सहायक सेवक बनने के लिए कई सालों तक मेहनत की। लेकिन फिर वे एक बड़ा पाप कर बैठे और उन्हें लगने लगा कि उन्होंने यहोवा को धोखा दिया है। वे बताते हैं, “पाप करने के बाद मेरा ज़मीर मुझे बहुत परेशान करने लगा। मुझे मन-ही-मन बहुत बुरा लग रहा था। मैं सुबक-सुबककर रोता था और यहोवा से प्रार्थना करता था। लेकिन मुझे लगता था कि परमेश्‍वर मेरी प्रार्थना कभी नहीं सुनेगा, आखिर मैंने उसका दिल जो दुखाया है।” अगर हमसे भी कोई पाप हो जाता है तो हमें भी लग सकता है कि हम किसी लायक नहीं, बिलकुल बेकार हैं। शायद हमारा दिल हमसे कहे कि यहोवा ने हमें छोड़ दिया है और अब उसकी सेवा करने का कोई फायदा नहीं। (भज. 38:4) अगर आपको भी कभी ऐसा लगा है, तो परमेश्‍वर के एक सेवक के उदाहरण पर ध्यान देने से आपको मदद मिल सकती है। उस सेवक ने भी एक बहुत बड़ी गलती की थी, फिर भी वह यहोवा की सेवा करता रहा।

13. पतरस ने क्या गलतियाँ कीं और फिर वह कौन-सा बड़ा पाप कर बैठा?

13 उदाहरण।  यीशु की मौत से पहलेवाली रात प्रेषित पतरस ने एक-के-बाद-एक कई गलतियाँ कीं। और आखिर में वह एक बहुत बड़ा पाप कर बैठा। सबसे पहली गलती जो उसने की, वह यह थी कि उसने खुद पर कुछ ज़्यादा ही भरोसा किया। इसलिए उसने अकड़कर कहा कि चाहे बाकी प्रेषित यीशु को छोड़ दें, पर मैं नहीं छोड़ूँगा। (मर. 14:27-29) इसके बाद, गतसमनी के बाग में जब यीशु ने उससे कहा कि वह जागता रहे, तो वह बार-बार सो गया। (मर. 14:32, 37-41) फिर उसने एक और गलती की। जब भीड़ यीशु को पकड़ने आयी, तो वह यीशु को छोड़कर भाग गया। (मर. 14:50) और उसकी सबसे बड़ी गलती यह थी कि उसने तीन बार यीशु को जानने से इनकार कर दिया। उसने झूठी कसम भी खायी कि वह यीशु को जानता तक नहीं। (मर. 14:66-71) लेकिन जब पतरस को एहसास हुआ कि उससे कितनी बड़ी गलती हुई है, तो उसने क्या किया? वह फूट-फूटकर रोने लगा और अंदर से पूरी तरह टूट गया। (मर. 14:72) और ज़रा सोचिए, कुछ घंटों बाद जब उसके दोस्त यीशु को मार डाला गया, तो उसका दिल उसे कितना कचोट रहा होगा! वह खुद को कितना गया-गुज़रा समझ रहा होगा!

14. गलती करने के बाद भी पतरस क्यों यहोवा की सेवा करता रहा? (बाहर दी तसवीर देखें।)

14 इसके बाद भी पतरस ने यहोवा की सेवा करना नहीं छोड़ा, उसने हार नहीं मानी। क्यों नहीं? इसकी कई वजह थीं। जैसे, गलती करने के बाद वह दूसरे प्रेषितों से कटा-कटा नहीं रहा। वह उनसे मिलने गया और उन्हें अपने दिल का हाल सुनाया। तब ज़रूर प्रेषितों ने उसे दिलासा दिया होगा। (लूका 24:33) यही नहीं, ज़िंदा होने के बाद, यीशु पतरस से मिलने आया और ज़रूर उसने उसकी हिम्मत बँधायी होगी। (लूका 24:34; 1 कुरिं. 15:5) और बाद में भी जब यीशु अपने दोस्तों के साथ था, तो उसने पतरस को उसकी गलतियों की वजह से डाँटा नहीं, बल्कि उससे कहा कि उसे बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ दी जाएँगी। (यूह. 21:15-17) इन सब बातों की वजह से पतरस को पूरा यकीन था कि उसका मालिक यीशु अब भी उससे प्यार करता है और दूसरे प्रेषित भी पतरस का साथ देते रहे। इसलिए पाप करने के बाद भी पतरस ने हार नहीं मानी। वह यहोवा की सेवा में लगा रहा। आज हम पतरस से क्या सीख सकते हैं?

यूहन्‍ना 21:15-17 से पता चलता है कि यीशु ने पतरस को उसकी गलतियों के लिए माफ कर दिया था। इससे पतरस को यहोवा की सेवा करते रहने का हौसला मिला (पैराग्राफ 14)


15. यहोवा हमें किस बात का यकीन दिलाना चाहता है? (भजन 86:5; रोमियों 8:38, 39) (तसवीर भी देखें।)

15 सीख।  यहोवा हमें यकीन दिलाना चाहता है कि वह हमसे प्यार करता है और हमें माफ करने के लिए तैयार है। (भजन 86:5; रोमियों 8:38, 39 पढ़िए।) जब हम पाप करते हैं, तो हम खुद को कोसने लगते हैं। ऐसा हर किसी के साथ होता है और होना भी चाहिए। लेकिन हमें खुद को इतना नहीं कोसना चाहिए कि हम यह सोचने लगें कि यहोवा हमसे प्यार नहीं करता और हमें कभी माफ नहीं करेगा। इसके बजाय, हमें तुरंत भाइयों से मदद लेनी चाहिए। भाई रोबर्ट जिनके बारे में हमने पहले देखा था, उन्होंने भी ऐसा ही किया। वे बताते हैं, “मुझे खुद पर कुछ ज़्यादा ही भरोसा था और मैंने किसी से मदद नहीं ली, इसलिए मैं पाप कर बैठा।” लेकिन फिर उन्होंने प्राचीनों से बात की। भाई बताते हैं, “प्राचीनों से बात करके मैं महसूस कर पाया कि यहोवा अब भी मुझसे प्यार करता है। भाइयों ने मेरी बहुत मदद की। उन्होंने मुझे यकीन दिलाया कि यहोवा ने मुझे छोड़ा नहीं है।” अगर हमसे कोई बड़ा पाप हो जाए, तो हम क्या करेंगे? हम पश्‍चाताप करेंगे, प्राचीनों से मदद लेंगे और पूरी कोशिश करेंगे कि हम वह गलती ना दोहराएँ । ऐसा करने से हमें यकीन हो जाएगा कि यहोवा हमसे बहुत प्यार करता है और हमें माफ करने के लिए तैयार है। (1 यूह. 1:8, 9) और इस यकीन की वजह से हम ठोकर खाने पर या गिरने पर हार नहीं मानेंगे, बल्कि खुद को सँभालेंगे और आगे बढ़ते रहेंगे।

जब आप देखते हैं कि प्राचीन आपकी मदद करने के लिए कितनी मेहनत कर रहे हैं, तो आपको किस बात का यकीन हो जाता है? (पैराग्राफ 15)


16. अपने क्यों ठान लिया है कि आप यहोवा की सेवा करते रहेंगे?

16 इन आखिरी दिनों के मुश्‍किल वक्‍त में हम यहोवा की सेवा करने के लिए जो मेहनत करते हैं, वह देखकर उसे बहुत खुशी होती है। हो सकता है, हम निराश हो जाएँ, लेकिन यहोवा हमारी मदद करेगा कि हम उसकी सेवा में लगे रहें। अगर कोई भाई या बहन हमारा दिल दुखाता है, तब भी हम उससे प्यार करेंगे और उसे माफ करेंगे। अगर हमारी शादीशुदा ज़िंदगी में कुछ मुश्‍किलें आएँ, तो हम उनका सामना करेंगे, उन्हें सुलझाने की पूरी कोशिश करेंगे। ऐसा करके हम दिखाएँगे कि हम शादी के इंतज़ाम की कदर करते हैं और यहोवा से प्यार करते हैं। और अगर हम कोई बड़ा पाप कर बैठें, तो हम यहोवा से मदद माँगेंगे। हम यकीन रखेंगे कि वह हमसे प्यार करता है और उसने हमें माफ कर दिया है और उसकी सेवा में लगे रहेंगे। तो आइए “हम बढ़िया काम करने में हार न मानें।” (गला. 6:9) अगर हम ऐसा करेंगे, तो यहोवा हमें ढेरों आशीषें देगा!

हम कैसे यहोवा की सेवा करते रह सकते हैं, . . .

  • जब कोई भाई या बहन हमारा दिल दुखाए?

  • जब हमारा जीवन-साथी हमारा दिल दुखाए?

  • जब हमसे कोई गलती हो जाए?

गीत 139 जब होंगे नयी दुनिया में!

a इस लेख में कुछ लोगों के नाम उनके असली नाम नहीं हैं।

b बाइबल पति-पत्नी को अलग होने का बढ़ावा नहीं देती और साफ बताती है कि अगर वे अलग हो भी जाएँ, तो पति या पत्नी में से कोई भी दोबारा शादी नहीं कर सकता। लेकिन ऐसे कुछ हालात हैं जिनमें कुछ मसीहियों ने अपने जीवन-साथी से अलग होना ठीक समझा है। इस बारे में खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!  किताब में ज़्यादा जानकारी 4, “पति-पत्नी का अलग होना” पढ़ें।