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“धीरज को अपना काम पूरा करने दो”

“धीरज को अपना काम पूरा करने दो”

“धीरज को अपना काम पूरा करने दो, ताकि तुम परिपूर्ण और सब बातों में हर तरह से सिद्ध पाए जाओ और तुम में किसी भी तरह की कमी न हो।”—याकू. 1:4.

गीत: 24, 139

1, 2. (क) गिदोन और उसके 300 आदमियों ने जिस तरह धीरज धरा, उससे हम क्या सीख सकते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) लूका 21:19 के मुताबिक, धीरज धरना क्यों बहुत ज़रूरी है?

इसराएली सैनिकों और उनके दुश्मनों के बीच युद्ध हो रहा है। सैनिक थककर चूर हो गए हैं। न्यायी गिदोन इसराएली सैनिकों की कमान सँभाले हुए है। गिदोन और उसके आदमियों ने पूरी रात मिद्यानियों और उनके हिमायतियों का करीब 32 किलोमीटर तक पीछा किया! इसके बाद क्या हुआ? बाइबल बताती है, “गिदोन और उसके संग तीन सौ पुरुष, जो थके-मान्दे थे तौभी खदेड़ते ही रहे थे, यरदन के किनारे आकर पार हो गए।” लेकिन अभी उनकी जीत नहीं हुई थी। उन्हें अब भी 15,000 सैनिकों से लड़ना था। ये दुश्मन सालों से इसराएलियों को सता रहे थे, इसलिए वे हार माननेवाले नहीं थे। इस वजह से गिदोन और उसके आदमी दुश्मनों का पीछा करते रहे। आखिरकार उन्होंने दुश्मनों को हरा दिया!—न्यायि. 7:22; 8:4, 10, 28.

2 हम भी ऐसा युद्ध कर रहे हैं, जो बहुत मुश्किल और थका देनेवाला है। हमारे दुश्मन शैतान, उसकी दुनिया और हमारी खुद की कमज़ोरियाँ हैं। हममें से कुछ लोग इन दुश्मनों से सालों से लड़ रहे हैं। हमने यहोवा की मदद से कई जंग जीती हैं। लेकिन अभी हमने पूरी तरह जीत हासिल नहीं की। कभी-कभी हम शायद लड़ते-लड़ते थक जाएँ या इस दुनिया के अंत का इंतज़ार करते-करते पस्त हो जाएँ। यीशु ने हमें खबरदार किया था कि आखिरी दिनों में हमें बड़ी-बड़ी आज़माइशों का सामना करना पड़ेगा और हम पर बेरहमी से ज़ुल्म ढाए जाएँगे। लेकिन उसने यह भी कहा था कि अगर हम अंत तक धीरज धरेंगे, तो हम जीत सकते हैं। (लूका 21:19 पढ़िए।) आखिर धीरज धरने का क्या मतलब है? धीरज धरने में क्या बात हमारी मदद करेगी? जिन्होंने धीरज धरा है, उनसे हम क्या सीख सकते हैं? और हम कैसे ‘धीरज को अपना काम पूरा करने’ दे सकते हैं?—याकू. 1:4.

धीरज धरने का क्या मतलब है?

3. धीरज धरने का क्या मतलब है?

3 बाइबल में धीरज धरने का मतलब सिर्फ यह नहीं कि हम मुश्किलों को बस सह लें या किसी तरह बरदाश्त कर लें। इसमें यह भी शामिल है कि हम ज़ुल्मों के बारे में क्या सोचते हैं और कैसा महसूस करते हैं, या यूँ कहें कि ज़ुल्मों के दौरान हम कैसा रवैया दिखाते हैं। धीरज धरनेवाला व्यक्‍ति हिम्मत और सब्र से काम लेता है और वफादार बना रहता है। एक किताब कहती है कि धीरज धरने का मतलब है, “किसी भी मुसीबत को सहना, लेकिन हिम्मत हारते हुए नहीं बल्कि साहस के साथ मुस्कराते हुए, अच्छे कल की आशा रखते हुए। . . . यह गुण आदमी को मुसीबत के दौर में डटे रहने और बिना डरे उसका सामना करने की ताकत देता है। यह ऐसा गुण है जिससे इंसान बड़े-से-बड़ा संकट भी आसानी से पार कर जाता है, क्योंकि वह सिर्फ अभी की तड़प या तकलीफ नहीं देखता बल्कि उसकी नज़रें बाद में मिलनेवाले इनाम पर टिकी रहती हैं।”

4. यह क्यों कहा जा सकता है कि प्यार धीरज धरने का बढ़ावा देता है?

4 प्यार हमें धीरज धरने का बढ़ावा देता है। (1 कुरिंथियों 13:4, 7 पढ़िए।) यहोवा के लिए प्यार हमें बढ़ावा देता है कि हम ऐसा हर ज़ुल्म धीरज से सह लें, जिसकी वह इजाज़त देता है। (लूका 22:41, 42) भाई-बहनों के लिए प्यार हमें उनकी कमज़ोरियों को धीरज से सहने का बढ़ावा देता है। (1 पत. 4:8) अपने जीवन-साथी के लिए प्यार हमें बढ़ावा देता है कि हम उन ‘दुःख-तकलीफों’ में धीरज धरें, जो खुशहाल शादीशुदा जोड़ों को भी सहनी पड़ती हैं। इससे शादी का बंधन मज़बूत बना रहता है।—1 कुरिं. 7:28.

धीरज धरने में क्या बात आपकी मदद करेगी?

5. यह क्यों कहा जा सकता है कि यहोवा ही धीरज धरने में हमारी मदद कर सकता है?

5 यहोवा से ताकत माँगिए। यहोवा “धीरज और दिलासा देनेवाला परमेश्वर” है। (रोमि. 15:5) सिर्फ वही हमारे हालात और हमारी भावनाएँ पूरी तरह समझता है। वह समझता है कि किसी मुश्किल हालात में किस पर क्या बीतती है। इसलिए वह सबसे अच्छी तरह जानता है कि धीरज धरने के लिए हमें क्या चाहिए। बाइबल कहती है, “वह अपने डरवैयों की इच्छा पूरी करता है, और उनकी दोहाई सुनकर उनका उद्धार करता है।” (भज. 145:19) लेकिन जब हम यहोवा से बिनती करते हैं कि वह हमें धीरज धरने की ताकत दे, तो वह कैसे उसका जवाब देता है?

6. जैसे बाइबल में वादा किया गया है, यहोवा कैसे हमारे लिए मुसीबतों से ‘निकलने का रास्ता निकाल’ सकता है?

6 1 कुरिंथियों 10:13 पढ़िए। जब हम यहोवा से प्रार्थना करते हैं कि वह धीरज धरने में हमारी मदद करे, तो वह मुसीबत से “निकलने का रास्ता निकालेगा।” वह कैसे? कभी-कभी वह शायद मुसीबत ही दूर कर दे। लेकिन ज़्यादातर मामलों में, वह हमें ताकत देता है, ताकि हम ‘पूरी तरह धीरज धर सकें और खुशी के साथ सहनशीलता दिखाएँ।’ (कुलु. 1:11) वह हमारी हदें अच्छी तरह जानता है। वह जानता है कि हम क्या-कुछ सह सकते हैं, इसलिए वह किसी भी हालात को इतने भी बदतर नहीं होने देगा कि हम वफादार न रह सकें।

7. उदाहरण देकर समझाइए कि हमें धीरज धरने के लिए आध्यात्मिक भोजन की ज़रूरत क्यों है।

7 आध्यात्मिक भोजन लेकर अपना विश्वास मज़बूत कीजिए। आध्यात्मिक भोजन लेना क्यों ज़रूरी है? इस उदाहरण पर गौर कीजिए। माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए एक व्यक्‍ति को हर दिन इतना खाना खाना होता है, जितना वह आम तौर पर तीन-चार दिन में खाता है। वरना वह मुश्किलों का सामना नहीं कर पाएगा और न ही अपनी मंज़िल तक पहुँच पाएगा। उसी तरह हमें धीरज धरने और अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए ज़्यादा-से-ज़्यादा आध्यात्मिक भोजन लेना होगा। हमें ठान लेना चाहिए कि हम निजी अध्ययन और सभाओं के लिए ज़रूर समय निकालेंगे। इससे हम अपना विश्वास मज़बूत बनाए रख पाएँगे।—यूह. 6:27.

8, 9. (क) अय्यूब 2:4, 5 के मुताबिक, जब हम मुसीबत का सामना करते हैं, तो उसमें क्या शामिल होता है? (ख) किसी मुसीबत से गुज़रते वक्‍त आप अपने मन की आँखों से क्या देख सकते हैं?

8 याद रखिए कि आपको परमेश्वर के वफादार बने रहना है। आज़माइशों से गुज़रते वक्‍त हमें दर्द तो होता ही है, लेकिन इसमें एक और मसला शामिल होता है। उस वक्‍त परमेश्वर के लिए हमारी वफादारी की भी परख होती है। कोई मुसीबत आने पर हम जो रवैया दिखाते हैं, उससे पता चलता है कि हम यहोवा को पूरे विश्व का सच्चा शासक मानते हैं या नहीं। वह कैसे? यहोवा की हुकूमत के विरोधी शैतान ने यह कहकर उसे बदनाम किया है कि इंसान बस अपने मतलब के लिए परमेश्वर की सेवा करता है। शैतान ने कहा, “प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है।” फिर उसने अय्यूब के बारे में कहा, “इसलिये केवल अपना हाथ बढ़ाकर उसकी हड्डियाँ और मांस छू, तब वह तेरे मुँह पर तेरी निन्दा करेगा।” (अय्यू. 2:4, 5) क्या यह इलज़ाम लगाने के बाद से शैतान बदल गया? हरगिज़ नहीं! सदियों बाद जब शैतान को स्वर्ग से धरती पर फेंक दिया गया, तब भी वह लगातार परमेश्वर के वफादार सेवकों पर दोष लगा रहा था। (प्रका. 12:10) आज भी शैतान यह इलज़ाम लगाता है कि इंसान अपने स्वार्थ के लिए परमेश्वर की उपासना करता है। वह यह देखने के लिए बेताब रहता है कि हम परमेश्वर की हुकूमत का साथ देना छोड़ दें और उसकी सेवा करना बंद कर दें।

9 किसी मुसीबत से गुज़रते वक्‍त अपने मन की आँखों से यह देखने की कोशिश कीजिए। एक तरफ शैतान और उसके दुष्ट दूत हैं। वे देखना चाहते हैं कि आप क्या करेंगे। साथ ही, वे दावा कर रहे हैं कि आप हार मान लेंगे। दूसरी तरफ यहोवा, हमारा राजा यीशु मसीह, दोबारा ज़िंदा हुए अभिषिक्‍त मसीही और हज़ारों स्वर्गदूत हैं। वे भी देख रहे हैं कि आप कितनी मुश्किल से गुज़र रहे हैं। लेकिन उनके चेहरे पर मुसकान है। वे इस बात से खुश हैं कि आप मुश्किल हालात में धीरज धर पा रहे हैं और यहोवा के वफादार बने हुए हैं। तभी आपको यहोवा की आवाज़ सुनायी देती है, “हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूँगा।”—नीति. 27:11.

10. धीरज धरने के मामले में आप यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

10 इनाम पर नज़र टिकाए रहिए। मान लीजिए आप एक लंबे सफर पर निकले हैं। रास्ते में आप एक लंबी सुरंग से गुज़रते हैं। आप जहाँ भी देखते हैं, वहाँ अँधेरा-ही-अँधेरा है। लेकिन आपको पता है कि अगर आप चलते रहें, तो सुरंग के आखिर में फिर से आपको उजियाला दिखायी देगा। ज़िंदगी ऐसा ही एक सफर है। आपको शायद बड़े-बड़े संकटों से गुज़रना पड़े और आपको लगे कि यह मुझसे बरदाश्त नहीं हो पाएगा। यहाँ तक कि यीशु को भी ऐसा लगा था। जब उसे काठ पर लटकाया गया था तो उसे बहुत ज़लील किया गया, उसे तड़पाया गया। यह उसकी ज़िंदगी की सबसे मुश्किल घड़ी रही होगी! किस बात से उसे धीरज धरने में मदद मिली? बाइबल कहती है कि उसने “उस खुशी” पर अपनी नज़र टिकाए रखी, “जो उसके सामने थी।” (इब्रा. 12:2, 3) यीशु को धीरज धरने के लिए जो इनाम मिलनेवाला था, उस पर वह ध्यान लगाए रहा। इससे भी बढ़कर उसने इस बात पर ध्यान दिया कि उसके ऐसा करने से परमेश्वर का नाम पवित्र होगा और उसकी हुकूमत बुलंद होगी। वह जानता था कि उसकी मुसीबत बस कुछ समय के लिए है, जबकि स्वर्ग में मिलनेवाला उसका इनाम हमेशा कायम रहेगा। आज आप जिन मुश्किलों से गुज़रते हैं, वे शायद आपको बरदाश्त से बाहर लगें और बहुत दर्दनाक हों। पर याद रखिए, वे बस कुछ समय की हैं।

“जिन्होंने धीरज धरा है”

11. “जिन्होंने धीरज धरा है” उनके अनुभवों पर हमें क्यों गौर करना चाहिए?

11 धीरज धरनेवाले हम अकेले नहीं हैं। सभी मसीहियों को शैतान की तरफ से एक-के-बाद-एक कई मुश्किलों का सामना करना होता है। इसलिए प्रेषित पौलुस ने उन्हें बढ़ावा दिया, “तुम विश्वास में मज़बूत रहकर उसका मुकाबला करो, क्योंकि तुम जानते हो कि सारी दुनिया में तुम्हारे भाइयों की पूरी बिरादरी ऐसी ही दु:ख-तकलीफें झेल रही है।” (1 पत. 5:9) “जिन्होंने धीरज धरा है” उनके अनुभवों से हम सीखते हैं कि हम कैसे वफादार रह सकते हैं और हमें यकीन होता है कि हम कामयाब हो सकते हैं। साथ ही, ये हमें याद दिलाते हैं कि हमें वफादारी के लिए इनाम ज़रूर मिलेगा। (याकू. 5:11) आइए हम कुछ उदाहरणों पर गौर करें। [1]

12. जिन करूबों को अदन बगीचे में ज़िम्मेदारी मिली थी, उनसे हम क्या सीख सकते हैं?

12 करूब। करूब ऊँचे दर्जे के स्वर्गदूत हैं। आदम और हव्वा के पाप करने के बाद, यहोवा ने कुछ करूबों को धरती पर एक नयी ज़िम्मेदारी दी। यह ज़िम्मेदारी, स्वर्ग में उन्हें मिली ज़िम्मेदारी से बहुत अलग थी। उनके उदाहरण से हम सीख सकते हैं कि जब हमें कोई मुश्किल ज़िम्मेदारी मिलती है तो हम कैसे धीरज धर सकते हैं। बाइबल कहती है कि यहोवा ने “जीवन के वृक्ष के मार्ग का पहरा देने के लिये अदन की वाटिका के पूर्व की ओर करूबों को, और चारों ओर घूमनेवाली ज्वालामय तलवार को भी नियुक्‍त कर दिया।” [2] (उत्प. 3:24) बाइबल यह नहीं बताती कि इस ज़िम्मेदारी पर करूबों ने कोई शिकायत की हो या यह सोचा हो कि वे इतने ऊँचे दर्जे के होकर यह काम कैसे कर सकते हैं। वे उससे कभी ऊबे नहीं या उसे छोड़ नहीं दिया। इसके बजाय, वे तब तक वह ज़िम्मेदारी निभाते रहे जब तक कि उनका काम खत्म नहीं हो गया, यानी शायद 1,600 साल बाद आए जलप्रलय तक!

13. अय्यूब कैसे मुश्किलों का सामना कर पाया?

13 वफादार इंसान अय्यूब। कभी-कभी शायद आपका दोस्त या परिवार का कोई सदस्य आपसे कोई ऐसी बात कह दे, जिससे आपको ठेस पहुँचे। या हो सकता है आपको कोई गंभीर बीमारी हो या आपको किसी अपने को खोने का गम हो। चाहे आपके साथ कुछ भी हुआ हो, आपको अय्यूब के उदाहरण से दिलासा मिल सकता है। (अय्यू. 1:18, 19; 2:7,9; 19:1-3) अय्यूब नहीं जानता था कि उस पर अचानक से इतनी मुश्किलें कैसे आ गयीं, फिर भी उसने हार नहीं मानी। धीरज धरने में किस बात ने उसकी मदद की? पहली बात, वह “परमेश्वर का भय मानता” था। (अय्यू. 1:1) वह हमेशा यहोवा को खुश करना चाहता था, चाहे अच्छे हालात हों या बुरे। इसके अलावा, यहोवा ने अय्यूब को सृष्टि के कुछ अद्‌भुत कामों के बारे में बताया, जिससे वह समझ पाया कि यहोवा कितना ताकतवर है। इससे अय्यूब को और भी यकीन हो गया कि यहोवा उसकी मुश्किलों को सही वक्‍त पर खत्म कर देगा। (अय्यू. 42:1, 2) और ऐसा ही हुआ। “यहोवा ने उसका सारा दु:ख दूर किया, और जितना अय्यूब के पास पहले था, उसका दुगना यहोवा ने उसे दे दिया।” अय्यूब ने “बहुत अच्छा और लम्बा जीवन” बिताया। (हिंदी ईज़ी-टू-रीड वर्शन)—अय्यू. 42:10, 17.

14. 2 कुरिंथियों 1:6 के मुताबिक, पौलुस के धीरज धरने से दूसरों को कैसे मदद मिली?

14 प्रेषित पौलुस। क्या आपका कड़ा विरोध किया जा रहा है, या आप पर ज़ुल्म ढाया जा रहा है? क्या आप मंडली के प्राचीन हैं या सर्किट निगरान हैं और आपको लगता है कि आप इतनी सारी ज़िम्मेदारियाँ नहीं निभा पाएँगे? अगर हाँ, तो पौलुस की मिसाल से आपको मदद मिल सकती है। पौलुस पर बड़ी बेरहमी से ज़ुल्म ढाए गए और उसे हर पल मंडली के भाई-बहनों की चिंता सताती थी। (2 कुरिं. 11:23-29) लेकिन पौलुस ने कभी हिम्मत नहीं हारी। उसकी मिसाल से दूसरों को हौसला मिला। (2 कुरिंथियों 1:6 पढ़िए।) उसी तरह जब आप धीरज धरेंगे तो दूसरों को ऐसा करने का हौसला मिल सकता है।

क्या आप अपने अंदर धीरज को “अपना काम पूरा करने” देंगे?

15, 16. (क) धीरज को क्या “काम” पूरा करने देना चाहिए? (ख) उदाहरण देकर समझाइए कि कैसे हम ‘धीरज को अपना काम पूरा करने दे’ सकते हैं।

15 प्रेषित याकूब ने परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा, “धीरज को अपना काम पूरा करने दो, ताकि तुम परिपूर्ण और सब बातों में हर तरह से सिद्ध पाए जाओ और तुम में किसी भी तरह की कमी न हो।” (याकू. 1:4) धीरज हमारे अंदर कैसे अपना “काम” पूरा कर सकता है? जब हम मुश्किलों से गुज़रते हैं, तो हमें शायद एहसास हो कि हमें और भी सब्र रखने, कदरदान होने और प्यार से पेश आने की ज़रूरत है। मुश्किलों के दौरान धीरज धरने से हम और भी ज़्यादा ये गुण ज़ाहिर करना सीखेंगे। इस तरह हमारी मसीही शख्सियत में निखार आएगा।

जब हम आज़माइशों का सामना करते हैं, तो हमारी मसीही शख्सियत और भी निखर जाती है (पैराग्राफ 15, 16 देखिए)

16 धीरज धरने से हम अच्छे मसीही बनते हैं, इसलिए हम अपनी मुश्किलों से छुटकारा पाने के लिए यहोवा का कानून नहीं तोड़ेंगे। जैसे, न चाहते हुए भी अगर आपके मन में बार-बार अनैतिक खयाल आते हैं, तो हार मानकर कोई गलत काम मत कर बैठिए! इसके बजाय, यहोवा से प्रार्थना कीजिए कि वह गलत खयाल ठुकराने में आपकी मदद करे। हो सकता है आपके परिवार का कोई सदस्य आपका विरोध करता हो। तब भी हिम्मत मत हारिए! अटल बने रहिए और यहोवा की सेवा करते रहिए। नतीजा, यहोवा पर आपका विश्वास और मज़बूत होगा। याद रखिए, परमेश्वर की मंज़ूरी पाने के लिए हमें धीरज धरना होगा।—रोमि. 5:3-5; याकू. 1:12.

17, 18. (क) उदाहरण देकर समझाइए कि अंत तक धीरज धरना कितना ज़रूरी है। (ख) जैसे-जैसे हम अंत के करीब आ रहे हैं, हम क्या यकीन रख सकते हैं?

17 हमें अंत तक धीरज धरना होगा, न कि कुछ समय के लिए। सोचिए एक जहाज़ डूब रहा है। उस पर सवार लोगों को तैरकर किनारे तक जाना होगा। लेकिन अगर एक व्यक्‍ति तैरना शुरू करते ही हार मान लेगा, तो वह डूब जाएगा। वैसे ही, जो व्यक्‍ति किनारे पर पहुँचने से थोड़ा पहले ही हार मान लेगा, वह भी डूब जाएगा। ज़िंदा बचने के लिए एक व्यक्‍ति को किनारे तक तैरकर जाना होगा। उसी तरह अगर हम नयी दुनिया में जीना चाहते हैं, तो हमें लगातार धीरज धरना होगा। तो आइए हम प्रेषित पौलुस के जैसा रवैया दिखाएँ, जिसने कहा, “हम हिम्मत नहीं हारते।”—2 कुरिं. 4:1, 16.

18 पौलुस की तरह हमें पूरा यकीन है कि अंत तक धीरज धरने में यहोवा हमारी मदद करेगा। पौलुस ने लिखा, “हम उसके ज़रिए शानदार जीत हासिल करते हुए निकलते हैं जिसने हमसे प्यार किया। इसलिए कि मुझे यकीन है कि न तो मौत, न ज़िंदगी, न स्वर्गदूत, न सरकारें, न आज की चीज़ें, न आनेवाली चीज़ें, न कोई ताकत न ऊँचाई, न गहराई, न ही कोई और सृष्टि हमें परमेश्वर के उस प्यार से अलग कर सकेगी जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है।” (रोमि. 8:37-39) यह सच है कि कभी-कभी हम शायद थक जाएँ। लेकिन आइए हम गिदोन और उसके आदमियों की मिसाल पर चलें। वे थक तो गए थे, पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। वे दुश्मनों को “खदेड़ते ही रहे”!—न्यायि. 8:4.

^ [1] (पैराग्राफ 11) आज के समय में परमेश्वर के जिन सेवकों ने धीरज धरा है उन पर गौर करने से भी हमारा हौसला बढ़ेगा। उदाहरण के लिए, 1992, 1999 और 2008 की इयरबुक में इथिओपिया, मलावी और रूस के भाइयों के बारे में विश्वास मज़बूत करनेवाली जानकारी दी गयी है। आप 15 जून, 2015 की प्रहरीदुर्ग के पेज 30-31 पर दी जानकारी भी देख सकते हैं।

^ [2] (पैराग्राफ 12) बाइबल यह नहीं बताती कि यह ज़िम्मेदारी कितने करूबों को मिली थी।