परमेश्वर के नियमों और सिद्धांतों से ज़मीर का प्रशिक्षण कीजिए
“तू जो हिदायतें याद दिलाता है उनके बारे में मैं गहराई से सोचता हूँ।”—भज. 119:99.
गीत: 29, 11
1. इंसान जानवरों से किस वजह से बेहतर हैं?
यहोवा ने इंसानों को ज़मीर दिया है, जो बहुत खास है। ज़मीर की वजह से इंसान जानवरों से बेहतर हैं। आदम और हव्वा के पास भी ज़मीर था। यह हम कैसे जानते हैं? परमेश्वर की आज्ञा तोड़ने के बाद वे उससे छिपने लगे, क्योंकि उनका ज़मीर उन्हें कचोट रहा था।
2. हमारा ज़मीर जीपीएस या कम्पास की तरह कैसे है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
2 ज़मीर हमारे अंदर एक ऐसी काबिलीयत है, जिससे हम सही-गलत में फर्क कर सकते हैं और सही राह पर चल सकते हैं। जिस व्यक्ति का ज़मीर सही तरह से प्रशिक्षित नहीं होता, वह ऐसे समुद्री जहाज़ की तरह है, जिसका जीपीएस या कम्पास काम नहीं कर रहा। उस जहाज़ को तेज़ हवाएँ और समुंदर की धाराएँ गलत दिशा में ले जा सकती हैं। लेकिन जिस जहाज़ का जीपीएस या कम्पास सही तरह से काम करता है, उसका कप्तान ऐसे हालात में भी जहाज़ को सही दिशा में ले जा सकता है। उसी तरह अगर हम अपने ज़मीर को सही तरह से प्रशिक्षित करें, तो हम जीवन में सही राह पर चल पाएँगे।
3. अगर हम अपने ज़मीर को सही तरह से प्रशिक्षित नहीं करेंगे, तो क्या हो सकता है?
1 तीमु. 4:1, 2) यहाँ तक कि यह हमें इस हद तक गुमराह कर सकता है कि हम “बुरे को अच्छा” मानने लगेंगे। (यशा. 5:20) यीशु ने अपने चेलों से कहा था, “ऐसा समय आ रहा है जब हर कोई जो तुम्हें मार डालेगा, यह सोचेगा कि उसने परमेश्वर की पवित्र सेवा की है।” (यूह. 16:2) ऐसा ही उन लोगों ने सोचा, जिन्होंने स्तिफनुस को मार डाला था। (प्रेषि. 6:8, 12; 7:54-60) खुद को धर्मी कहनेवाले बहुत-से लोग कत्ल जैसे बड़े-बड़े अपराध करते हैं और दावा करते हैं कि यह सब वे परमेश्वर के लिए कर रहे हैं। पर असल में वे परमेश्वर के नियमों के खिलाफ काम करते हैं। (निर्ग. 20:13) उनका ज़मीर उन्हें कितना बड़ा धोखा देता है!
3 अगर हमारा ज़मीर सही तरह से प्रशिक्षित नहीं होगा, तो यह हमें गलत बातों के लिए सावधान नहीं करेगा। (4. हम ऐसा क्या कर सकते हैं, जिससे हमारा ज़मीर सही तरह से मार्गदर्शन करे?
4 हम ऐसा क्या कर सकते हैं, जिससे हमारा ज़मीर सही तरह से मार्गदर्शन करे? बाइबल में दिए नियम और सिद्धांत “सिखाने, समझाने, टेढ़ी बातों को सीध में लाने और नेक स्तरों के मुताबिक सोच ढालने के लिए फायदेमंद” हैं। (2 तीमु. 3:16) इस वजह से हमें नियमित तौर पर बाइबल का अध्ययन करना चाहिए, उसमें दी बातों पर गहराई से सोचना चाहिए और उन्हें ज़िंदगी में लागू करना चाहिए। जितना ज़्यादा हम ऐसा करेंगे, उतना ही हम यहोवा की तरह सोचना सीखेंगे। तब हम यकीन कर पाएँगे कि हमारा ज़मीर सही मार्गदर्शन कर रहा है। आइए देखें कि हम यहोवा के नियमों और सिद्धांतों से अपने ज़मीर का प्रशिक्षण कैसे कर सकते हैं।
परमेश्वर के नियमों से प्रशिक्षण पाइए
5, 6. परमेश्वर के नियमों से फायदा पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
5 अगर हम परमेश्वर के नियमों से फायदा पाना चाहते हैं, तो उन नियमों के बारे में सिर्फ पढ़ना या उन्हें जानना काफी नहीं होगा। हमें उनसे लगाव होना चाहिए और उन्हें मानना चाहिए। बाइबल में लिखा है, “बुराई से नफरत करो और भलाई से प्यार करो।” (आमो. 5:15) पर यह हम कैसे कर सकते हैं? हर मामले को हमें यहोवा की नज़र से देखना होगा। मान लीजिए कि आपको ठीक से नींद नहीं आती। डॉक्टर आपको सलाह देता है कि आप पौष्टिक खाना खाएँ, अच्छी तरह व्यायाम करें और अपने जीने के तरीके में कुछ बदलाव करें। आप उसकी सलाह मानते हैं और आपको नींद आने लगती है। तो क्या इसके बाद से आप डॉक्टर की हर सलाह नहीं मानेंगे?
6 उसी तरह हमारे सृष्टिकर्ता ने हमें नियम दिए हैं, ताकि हम पाप के बुरे अंजामों से बच सकें और अपनी ज़िंदगी सँवार सकें। बाइबल में साफ बताया गया है कि हमें किन कामों को नहीं करना चाहिए, जैसे झूठ बोलना, धोखाधड़ी, चोरी, अनैतिक काम, हिंसा और जादू-टोना। (नीतिवचन 6:16-19 पढ़िए; प्रका. 21:8) जो फायदे हमें यहोवा की आज्ञाएँ मानने से होते हैं, उनकी वजह से यहोवा और उसके नियमों के लिए हमारा लगाव बढ़ने लगता है।
7. बाइबल में दी घटनाओं पर मनन करने से हम क्या सीख सकते हैं?
7 सही-गलत के बारे में जानने के लिए हमें परमेश्वर के नियम तोड़कर उसके बुरे अंजाम भुगतने की ज़रूरत नहीं है। पुराने ज़माने में लोगों ने जो गलतियाँ कीं, उनसे हम सबक सीख सकते हैं। उनके बारे में बाइबल में बताया गया है। नीतिवचन 1:5 में लिखा है, “बुद्धिमान सुनकर और ज़्यादा सीखेगा, समझ रखनेवाला, सही मार्गदर्शन पाएगा।” यह मार्गदर्शन हमें परमेश्वर की तरफ से मिलता है, जो सबसे बढ़िया है। ज़रा सोचिए, जब दाविद ने परमेश्वर की आज्ञा तोड़कर बतशेबा के साथ नाजायज़ यौन-संबंध रखे, तो उसे कितने दुख झेलने पड़े। (2 शमू. 12:7-14) जब हम यह घटना पढ़ते हैं और इस पर मनन करते हैं, तो हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘दाविद इस मुसीबत में पड़ने से कैसे बच सकता था? अगर मैं ऐसे हालात में पड़ जाऊँ, तो मैं क्या करूँगा? क्या मैं दाविद की तरह अपने कदम बहकने दूँगा या यूसुफ की तरह वहाँ से भाग जाऊँगा?’ (उत्प. 39:11-15) अगर हम सोचें कि पाप के कितने बुरे अंजाम होते हैं, तो हम और भी ज़्यादा “बुराई से नफरत” करेंगे।
8, 9. (क) हमारा ज़मीर हमें क्या करने में मदद करता है? (ख) यहोवा के सिद्धांतों की मदद से हम अपने ज़मीर का प्रशिक्षण किस तरह कर पाते हैं?
8 आम तौर पर हम वे काम नहीं करते, जिनके बारे में साफ बताया गया है कि यहोवा उनसे नफरत करता है। लेकिन कई बार ऐसे भी हालात होते हैं, जिनके बारे में बाइबल में कोई नियम नहीं दिया होता है। ऐसे में हम कैसे जान सकते हैं कि परमेश्वर हमसे क्या चाहता है? अगर हमने अपने ज़मीर को बाइबल से प्रशिक्षित किया है, तो हम ऐसे हालात में सही फैसला कर पाएँगे।
9 यहोवा हमसे प्यार करता है, इसलिए उसने हमें सिद्धांत दिए हैं। इन सिद्धांतों की मदद से हम अपने ज़मीर का प्रशिक्षण कर सकते हैं। यहोवा कहता है, ‘मैं ही तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ, जो तुम्हारे भले के लिए तुम्हें सिखाता हूँ और जिस राह पर तुम्हें चलना चाहिए उसी पर ले चलता हूँ।’ (यशा. 48:17, 18) बाइबल के सिद्धांतों के बारे में गहराई से सोचने से और उन पर यकीन करने से हम अपने ज़मीर को सुधार पाते हैं और सही तरह से काम करना सिखा पाते हैं। फिर हम सही फैसला कर पाते हैं।
परमेश्वर के सिद्धांतों से प्रशिक्षण पाइए
10. सिद्धांत क्या है और यीशु ने सिद्धांतों के आधार पर किस तरह सिखाया?
10 एक सिद्धांत ऐसी बुनियादी सच्चाई या शिक्षा है, जिसके आधार पर हम ठीक से सोच पाते हैं और सही फैसला कर पाते हैं। यहोवा के सिद्धांत जानने से हम समझ पाते हैं कि किसी मामले के बारे में उसकी सोच क्या है और उसने हमें कोई नियम क्यों दिया है। सिद्धांतों के आधार पर यीशु ने अपने चेलों को सिखाया कि एक इंसान को अपने रवैए या कामों के अंजाम भुगतने पड़ते हैं। जैसे, उसने सिखाया कि गुस्सा करते रहने से एक इंसान मारपीट करने लग सकता है और मन में गंदे खयाल रखने से व्यभिचार कर सकता है। (मत्ती 5:21, 22, 27, 28) कहने का मतलब है कि जब हम यहोवा के सिद्धांतों के आधार पर सोचते हैं, तो हम अपने ज़मीर का प्रशिक्षण कर रहे होते हैं। तब हम ऐसे फैसले करते हैं, जिनसे यहोवा की महिमा होती है।—1 कुरिं. 10:31.
11. बाइबल के आधार पर ज़मीर का प्रशिक्षण करने के बावजूद मसीहियों की राय किस तरह अलग-अलग हो सकती है?
11 जब मसीही बाइबल के आधार पर अपने ज़मीर का प्रशिक्षण करते हैं, तब भी कुछ मामलों में उनकी राय अलग-अलग हो सकती है। जैसे, शराब पीने के मामले में। बाइबल में यह नहीं लिखा है कि शराब पीना गलत है, लेकिन यह ज़रूर लिखा है कि हमें हद-से-ज़्यादा शराब नहीं पीनी चाहिए या पीकर धुत्त नहीं होना चाहिए। (नीति. 20:1; 1 तीमु. 3:8) क्या इसका मतलब यह है कि अगर एक मसीही ने तय किया है कि वह ज़्यादा नहीं पीएगा, तो उसे इस मामले में और कुछ नहीं सोचना चाहिए? नहीं, ऐसा नहीं है। भले ही उसका ज़मीर उसे पीने से मना न करे, फिर भी उसे दूसरों के ज़मीर का ध्यान रखना चाहिए।
12. रोमियों 14:21 से हम कैसे समझ पाते हैं कि हमें दूसरों के ज़मीर का ध्यान रखना चाहिए?
12 पौलुस ने समझाया कि हमें दूसरों के ज़मीर का ध्यान रखना चाहिए। उसने लिखा, “अच्छा तो यह है कि तू न माँस खाए, न दाख-मदिरा पीए, न ही ऐसा कुछ करे जिससे तेरे भाई को ठोकर लगे।” (रोमि. 14:21) हालाँकि बाइबल हमें शराब पीने से मना नहीं करती, फिर भी अगर हमें लगता है कि एक मसीही अपने ज़मीर की वजह से शराब पीना पसंद नहीं करता, तो उसके सामने हम नहीं पीएँगे। शायद सच्चाई सीखने से पहले एक भाई शराबी हो और अब उसने ठान लिया हो कि वह शराब नहीं पीएगा, तो हमें भी ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जिससे उसे फिर से शराब की लत लग जाए। (1 कुरिं. 6:9, 10) मान लीजिए कि उस भाई को हमने अपने घर बुलाया है, तो क्या उसके मना करने पर भी हम उसे शराब पिलाने की कोशिश करेंगे? बिलकुल नहीं।
13. तीमुथियुस ने लोगों के ज़मीर का किस तरह ध्यान रखा, ताकि वे खुशखबरी सुन सकें?
13 पौलुस की तरह तीमुथियुस भी किसी को ठोकर नहीं खिलाना चाहता था। जब वह 19-20 साल का था, तो वह अपना खतना करवाने को राज़ी हो गया, जबकि इसे करवाने में बहुत दर्द होता था। इसकी वजह यह थी कि वह यहूदियों को प्रचार करने जा रहा था। उसे पता था कि उनके लिए खतना बहुत मायने रखता है। (प्रेषि. 16:3; 1 कुरिं. 9:19-23) क्या आप भी दूसरों की मदद करने के लिए त्याग करने को तैयार हैं?
‘पूरा ज़ोर लगाकर प्रौढ़ता की तरफ बढ़ते जाएँ’
14, 15. (क) हम प्रौढ़ मसीही कैसे बन सकते हैं? (ख) प्रौढ़ मसीही लोगों के साथ किस तरह व्यवहार करते हैं?
14 हम सबको चाहिए कि हम “मसीह के बारे में बुनियादी शिक्षाओं से आगे” बढ़ें और “पूरा ज़ोर लगाकर प्रौढ़ता के लक्ष्य की तरफ बढ़ते जाएँ।” (इब्रा. 6:1) सिर्फ इस बात से हम प्रौढ़ मसीही नहीं बन जाते कि हम कितने साल से सच्चाई में हैं। प्रौढ़ बनने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। हमें अपना ज्ञान और अपनी समझ बढ़ाते रहना होगा। इसके लिए ज़रूरी है कि हम रोज़ बाइबल पढ़ें। (भज. 1:1-3) रोज़ाना बाइबल पढ़ने से हम यहोवा के नियम और सिद्धांत ज़्यादा अच्छी तरह समझ पाएँगे।
15 जो नियम मसीहियों के लिए सबसे ज़्यादा मायने रखता है, वह है प्यार का नियम। यीशु ने अपने चेलों से कहा था, “अगर तुम्हारे बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।” (यूह. 13:35) प्यार को “शाही नियम” कहा गया है और यह भी कहा गया है कि “प्यार करना सही मायनों में कानून को मानना है।” (याकू. 2:8; रोमि. 13:10) जब हम देखते हैं कि प्यार को इतनी अहमियत दी गयी है, तो हमें हैरान नहीं होना चाहिए, क्योंकि बाइबल में लिखा है, “परमेश्वर प्यार है।” (1 यूह. 4:8) परमेश्वर की नज़र में प्यार सिर्फ भावना तक सीमित नहीं है, वह उसे अपने कामों से दिखाता है। यूहन्ना ने लिखा, “हमारे मामले में परमेश्वर का प्यार इस बात से ज़ाहिर हुआ कि परमेश्वर ने अपना इकलौता बेटा दुनिया में भेजा ताकि हम उसके ज़रिए जीवन पाएँ।” (1 यूह. 4:9) जब हम यहोवा, यीशु, अपने मसीही भाई-बहनों और बाकी लोगों के लिए अपने कामों से प्यार ज़ाहिर करते हैं, तो हम दिखा रहे होते हैं कि हम प्रौढ़ मसीही हैं।—मत्ती 22:37-39.
16. प्रौढ़ बनने से हम कैसे समझ पाते हैं कि हमारे लिए सिद्धांत ज़रूरी हैं?
16 अकसर एक नियम किसी एक मामले में लागू होता है, जबकि एक सिद्धांत कई हालात में लागू हो सकता है। जैसे-जैसे हम प्रौढ़ बनते हैं, हम समझने लगते हैं कि हमारे लिए सिद्धांत बहुत ज़रूरी हैं। जैसे, एक छोटे बच्चे को यह समझ नहीं होती कि बुरे लोगों से दोस्ती करना कितना खतरनाक है, इसलिए उसके माता-पिता उसकी हिफाज़त के लिए कुछ नियम बनाते हैं। (1 कुरिं. 15:33) मगर जब वह बच्चा बड़ा होता है, तो वह बाइबल के सिद्धांतों पर तर्क करना सीखता है। फिर इन सिद्धांतों के आधार पर वह खुद अच्छे दोस्त बना पाता है। (1 कुरिंथियों 13:11; 14:20 पढ़िए।) जितना हम बाइबल के सिद्धांतों के आधार पर तर्क करते हैं, उतना ही हमारा ज़मीर सही तरह से काम करता है। हम और अच्छी तरह समझ पाते हैं कि अलग-अलग हालात में परमेश्वर हमसे क्या उम्मीद करता है।
17. यह क्यों कहा जा सकता है कि सही फैसले करने के लिए हमारे पास सबकुछ है?
17 हम सही फैसले लेकर यहोवा का दिल खुश कर सकें, इसके लिए उसने हमें हर तरह की मदद दी है। बाइबल में ऐसे नियम और सिद्धांत हैं, जिन्हें लागू करके हम ‘हर अच्छे काम के लिए पूरी तरह काबिल बन सकते हैं और हर तरह से तैयार हो सकते हैं।’ (2 तीमु. 3:16, 17) बाइबल के सिद्धांत समझने से हम यहोवा की सोच जान पाते हैं। लेकिन इसके लिए काफी खोजबीन करनी पड़ती है। (इफि. 5:17) यह हम वॉचटावर पब्लिकेशन्स इंडेक्स, यहोवा के साक्षियों के लिए खोजबीन गाइड, वॉचटावर लाइब्रेरी, वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी और JW लाइब्रेरी ऐप के ज़रिए कर सकते हैं। जब हम इनके ज़रिए निजी अध्ययन और पारिवारिक उपासना करते हैं, तो हमें बहुत फायदा होता है।
ज़मीर को बाइबल से प्रशिक्षण देकर आशीषें पाएँ
18. जब हम यहोवा के नियमों और सिद्धांतों के मुताबिक चलते हैं, तो हमें क्या फायदा होता है?
18 जब हम यहोवा के नियमों और सिद्धांतों के मुताबिक चलते हैं, तो हमारी ज़िंदगी सँवर जाती है! हम कुछ वैसा ही महसूस करते हैं, जैसा एक भजन के लिखनेवाले ने 119:97-100 में लिखा, “मैं तेरे कानून से कितना प्यार करता हूँ! सारा दिन उस पर गहराई से सोचता हूँ। तेरी आज्ञा मुझे मेरे दुश्मनों से ज़्यादा बुद्धिमान बनाती है, क्योंकि यह हमेशा मेरे साथ रहती है। जितने लोग मुझे सिखाते हैं, उन सबसे ज़्यादा अंदरूनी समझ मुझमें है, क्योंकि तू जो हिदायतें याद दिलाता है उनके बारे में मैं गहराई से सोचता हूँ। मैं बुज़ुर्गों से ज़्यादा समझ से काम लेता हूँ, क्योंकि मैं तेरे आदेशों का पालन करता हूँ।” परमेश्वर के नियमों और सिद्धांतों के बारे में गहराई से सोचने से हमारी बुद्धि और समझ बढ़ जाती है। जब हम इन नियमों और सिद्धांतों के मुताबिक अपने ज़मीर का प्रशिक्षण करते हैं, तो हम “मसीह की पूरी कद-काठी हासिल” कर पाते हैं।—इफि. 4:13.