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“मेरा राज इस दुनिया का नहीं है”

“मेरा राज इस दुनिया का नहीं है”

“मैं इसीलिए . . . इस दुनिया में आया हूँ कि सच्चाई की गवाही दूँ।”​—यूह. 18:37.

गीत: 5, 28

1, 2. (क) दुनिया में फूट क्यों पड़ती जा रही है? (ख) इस लेख में हम किन सवालों के जवाब जानेंगे?

दक्षिणी यूरोप की एक बहन अपने बीते कल को याद करते हुए कहती है, “बचपन से ही मैंने बहुत अन्याय होते देखा था, इसलिए अपने देश की राजनीति पर से मेरा भरोसा उठ गया। मैं उन विचारों का समर्थन करने लगी, जिन्हें कई लोग कट्टरपंथी विचार कहते थे। यही नहीं, मैं कई साल तक एक आतंकवादी की गर्लफ्रैंड रही।” दक्षिणी अफ्रीका का एक भाई बताता है कि वह हिंसा क्यों करता था। वह कहता है, “मेरा मानना था कि मेरे कबीले के लोग बाकी लोगों से ऊँचे हैं। मैं एक राजनैतिक दल से जुड़ गया। हमें सिखाया गया कि हमें विरोधियों को भाले से मार डालना चाहिए। यहाँ तक कि अपने कबीले के उन लोगों को भी हमें नहीं छोड़ना चाहिए, जो दूसरे राजनैतिक दलों का साथ देते हैं।” मध्य यूरोप में रहनेवाली एक बहन कहती है, “मैं पहले भेदभाव करती थी। मैं ऐसे हर व्यक्‍ति से नफरत करती थी, जो दूसरी जाति या धर्म का था।”

2 इन तीन लोगों का पहले जो रवैया था, वही रवैया आज ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों में पनप रहा है। बहुत-से राजनैतिक दल अपने इलाके को आज़ाद कराने के लिए हिंसा पर उतर आते हैं। राजनीति से जुड़े लड़ाई-झगड़े बढ़ते ही जा रहे हैं। कई देशों में दिन-पर-दिन विदेशियों पर ज़ुल्म बढ़ता जा रहा है। जैसे बाइबल में भविष्यवाणी की गयी थी, इन आखिरी दिनों में लोग ‘किसी भी बात पर राज़ी नहीं होते।’ (2 तीमु. 3:1, 3) ऐसे में मसीही क्या कर सकते हैं कि उनमें एकता रहे? हम यीशु से बहुत कुछ सीख सकते हैं। उसके दिनों में भी लोगों में फूट पड़ी थी, क्योंकि राजनीति के मामले में उनके विचार अलग-अलग थे। इस लेख में हम तीन सवालों के जवाब जानेंगे: यीशु ने किसी भी राजनैतिक दल में शामिल होने से इनकार क्यों कर दिया? उसने कैसे दिखाया कि परमेश्‍वर के लोगों को राजनैतिक मसलों में किसी का पक्ष नहीं लेना चाहिए? उसने कैसे सिखाया कि हमें कभी-भी हिंसा नहीं करनी चाहिए?

क्या यीशु ने आज़ादी चाहनेवालों का साथ दिया?

3, 4. (क) यीशु के दिनों में बहुत-से यहूदी क्या चाहते थे? (ख) लोगों के रवैए का यीशु के चेलों पर क्या असर हुआ?

3 यीशु ने जिन यहूदियों को प्रचार किया, उनमें से बहुत-से लोग रोमी सरकार से आज़ादी चाहते थे। उन्हें भड़काने के लिए ज़ीलोट्‌स नाम के एक राजनैतिक दल ने कोई कसर नहीं छोड़ी। यह दल कट्टरपंथी यहूदियों से बना था। इनमें से कई लोग गलील के यहूदा की बात मानते थे, जो यीशु के ज़माने का ही था। यहूदा एक झूठा मसीहा था और उसने बड़ी तादाद में लोगों को गुमराह किया। यहूदी इतिहासकार जोसीफस के मुताबिक यहूदा ने अपने लोगों को रोम के खिलाफ बगावत करने के लिए भड़काया और उन लोगों को “कायर” कहा, जो रोमी सरकार को कर देते थे। कुछ समय बाद यहूदा को रोमियों ने मार डाला। (प्रेषि. 5:37) ज़ीलोट्‌स के कुछ लोग तो अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए मारकाट करने लगे।

4 इनके अलावा दूसरे आम यहूदी भी मसीहा के आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। वे सोचते थे कि जब मसीहा आएगा, तो वह उन्हें रोम से आज़ाद कराएगा और इसराएल को फिर से महान राष्ट्र बनाएगा। (लूका 2:38; 3:15) उनका मानना था कि मसीहा अपना राज धरती पर इसराएल में कायम करेगा। तब दुनिया की अलग-अलग जगहों में रहनेवाले सभी यहूदी इसराएल लौट आएँगे। एक बार यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले ने भी यीशु से पूछा, “वह जो आनेवाला था, क्या तू ही है या हम किसी और की आस लगाएँ?” (मत्ती 11:2, 3) शायद यूहन्‍ना जानना चाहता था कि यीशु ही यहूदियों को आज़ाद कराएगा या कोई और। फिर यीशु के ज़िंदा किए जाने के बाद इम्माऊस के रास्ते पर उसके दो चेले उससे मिले। उन्होंने उसे बताया कि वे उम्मीद लगाए थे कि यीशु वही है, जो इसराएल को छुटकारा दिलाएगा। (लूका 24:21 पढ़िए।) इसके कुछ ही समय बाद प्रेषितों ने यीशु से पूछा, “प्रभु, क्या तू इसी वक्‍त इसराएल को उसका राज दोबारा दे देगा?”​—प्रेषि. 1:6.

5. (क) गलील के लोग यीशु को अपना राजा क्यों बनाना चाहते थे? (ख) यीशु ने उनकी सोच कैसे सुधारी?

5 गलील के यहूदियों को भी उम्मीद थी कि मसीहा उनकी समस्याएँ हल कर देगा, इसलिए वे यीशु को अपना राजा बनाना चाहते थे। उन्होंने सोचा होगा कि वही सबसे बढ़िया अगुवा है, आखिर वह बोलने में माहिर है, बीमारों को ठीक कर सकता है और भूखों का पेट भर सकता है। जब यीशु ने करीब 5,000 आदमियों को खाना खिलाया, तो लोग हैरान रह गए थे। यीशु समझ गया था कि उसके बारे में लोगों का इरादा क्या है। बाइबल कहती है, “यीशु जान गया कि वे उसे पकड़कर राजा बनाने आ रहे हैं, इसलिए वह अकेले पहाड़ पर चला गया।” (यूह. 6:10-15) अगले दिन जब लोग शायद थोड़ा शांत हो गए, तब यीशु ने उन्हें समझाया कि वह उनकी खाने-पीने की ज़रूरतें पूरी करने नहीं, बल्कि उन्हें परमेश्‍वर के राज के बारे में सिखाने आया है। उसने उनसे कहा, “उस खाने के लिए काम मत करो जो नष्ट हो जाता है, बल्कि उस खाने के लिए काम करो जो नष्ट नहीं होता और हमेशा की ज़िंदगी देता है।”​—यूह. 6:25-27.

6. यीशु ने यह कैसे ज़ाहिर किया कि वह धरती पर राजा नहीं बनना चाहता है? (लेख की शुरूआत में दी पहली तसवीर देखिए।)

6 अपनी मौत से कुछ ही समय पहले यीशु समझ गया कि उसके कुछ चेलों को लग रहा है कि वह यरूशलेम में ही राज करना शुरू करेगा। उनकी यह गलतफहमी दूर करने के लिए यीशु ने दस मीना चाँदी की मिसाल दी। उस मिसाल में बताया गया था कि “एक आदमी था जो शाही खानदान से था।” यह आदमी यीशु को दर्शाता था, जिसे लंबे समय के लिए दूर जाना पड़ता। (लूका 19:11-13, 15) यीशु ने रोमी अधिकारी पुन्तियुस पीलातुस को भी साफ-साफ बताया कि वह दुनिया के राजनैतिक मामलों में किसी का पक्ष नहीं लेता। पीलातुस ने यीशु से पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?” (यूह. 18:33) शायद उसे डर था कि यीशु लोगों को रोमी सरकार के खिलाफ भड़काएगा। यीशु ने उसे जवाब दिया, “मेरा राज इस दुनिया का नहीं है।” (यूह. 18:36) यीशु ने राजनीति में भाग लेने से इनकार कर दिया, क्योंकि उसका राज स्वर्ग में होता। उसने बताया कि धरती पर उसका काम है, “सच्चाई की गवाही” देना।​—यूहन्‍ना 18:37 पढ़िए।

क्या आप अपना पूरा ध्यान दुनिया की समस्याओं पर लगाते हैं या परमेश्‍वर के राज पर? (पैराग्राफ 7 देखिए)

7. अपने दिल में भी किसी राजनैतिक दल का समर्थन न करना मुश्‍किल क्यों हो सकता है?

7 यीशु अपना काम अच्छी तरह समझता था। उसी तरह अगर हम अपना काम अच्छी तरह समझें, तो हम किसी भी राजनैतिक दल का पक्ष नहीं लेंगे। हम अपने दिल में भी उसका समर्थन नहीं करेंगे। ऐसा करना हमेशा आसान नहीं होता। एक सफरी निगरान ने कहा कि उसके इलाके के लोग दिनों-दिन कट्टर होते जा रहे हैं। उन्हें अपने राष्ट्र पर बहुत घमंड है और उनका मानना है कि अगर उनके ही लोग उन पर शासन करें, तो उनकी ज़िंदगी और भी बेहतर होगी। सफरी निगरान ने यह भी कहा, “मगर शुक्र है कि हमारे मसीही भाइयों की एकता पर कोई आँच नहीं आयी है। इसकी वजह यह है कि वे राज की खुशखबरी सुनाने पर अपना ध्यान लगाते हैं। वे यहोवा पर भरोसा करते हैं कि वही अन्याय मिटाएगा और दूसरी समस्याएँ हल करेगा।”

यीशु राजनैतिक मामलों में निष्पक्ष कैसे रहा?

8. यीशु के दिनों में बहुत-से यहूदियों पर कौन-कौन-से अन्याय हो रहे थे?

8 अकसर ऐसा होता है कि अपने आस-पास अन्याय होते देख कई लोग खुद राजनीति में भाग लेने लगते हैं। यीशु के दिनों में कर देना एक बड़ा मसला था। इस वजह से बहुत-से लोग अलग-अलग राजनैतिक दलों का पक्ष लेते थे। गलील का यहूदा रोमी सरकार के खिलाफ हो गया था, क्योंकि सरकार ने लोगों को नाम-लिखाई के लिए कहा ताकि उनसे कर लिया जा सके। रोमी सरकार लोगों से कई चीज़ों पर कर लेती थी, जैसे संपत्ति, ज़मीन और घर पर। यही नहीं कर-वसूलनेवाले भी बहुत भ्रष्ट थे। वे कोई ओहदा या अधिकार पाने के लिए कभी-कभी सरकारी अधिकारियों को पैसा देते थे। फिर वे उस ओहदे या अधिकार का नाजायज़ फायदा उठाकर लोगों को लूटते थे। यरीहो में कर-वसूलनेवालों का प्रधान जक्कई इसी तरह अमीर बना था।​—लूका 19:2, 8.

9, 10. (क) यीशु के दुश्‍मनों ने उसे एक राजनैतिक मसले में शामिल करने के लिए क्या किया? (ख) यीशु के जवाब से हम क्या सीख सकते हैं? (लेख की शुरूआत में दी दूसरी तसवीर देखिए।)

9 यीशु के दुश्‍मन कर देने के मसले में उसे भी शामिल करना चाहते थे। उन्होंने उससे उस “कर” के बारे में पूछा, जिसके लिए हर यहूदी को एक दीनार देना होता था। (मत्ती 22:16-18 पढ़िए।) यहूदियों को यह कर देना बिलकुल पसंद नहीं था, क्योंकि यह उन्हें याद दिलाता था कि वे रोमी सरकार के गुलाम हैं। जिन लोगों ने कर के बारे में सवाल किया, वे ‘हेरोदेस के गुट के लोग’ थे यानी हेरोदेस के राजनैतिक विचारों का समर्थन करनेवाले। उन्होंने सोचा कि अगर यीशु कहेगा कि उन्हें कर नहीं देना चाहिए, तो वे उस पर रोमी साम्राज्य का दुश्‍मन होने का इलज़ाम लगा देंगे। लेकिन अगर यीशु कर देने के लिए कहेगा, तो लोग उसके पीछे चलना छोड़ देंगे। ऐसे में यीशु ने क्या किया?

10 यीशु इस मसले में बहुत सावधान रहा कि किसी का पक्ष न ले। उसने कहा, “जो सम्राट का है वह सम्राट को चुकाओ, मगर जो परमेश्‍वर का है वह परमेश्‍वर को।” (मत्ती 22:21) यीशु जानता था कि बहुत-से कर-वसूलनेवाले भ्रष्ट हैं, मगर उसने इस समस्या की बात नहीं की। इसके बजाय उसने परमेश्‍वर के राज के बारे में बताया, जो इंसानों की सारी समस्याओं का हल करेगा। इस मामले में हम यीशु से क्या सीख सकते हैं? जब कोई मसला खड़ा होता है, तो हमें किसी भी राजनैतिक दल का पक्ष नहीं लेना चाहिए, फिर चाहे हमें क्यों न लगे कि एक दल सही है और दूसरा गलत। मसीही होने के नाते हम अपना पूरा ध्यान परमेश्‍वर के राज पर और उसकी नज़र में जो सही है, उस पर लगाते हैं। इस वजह से हम किसी भी अन्याय के बारे में कोई राय नहीं बनाते और न ही उसके खिलाफ आवाज़ उठाते हैं।​—मत्ती 6:33.

11. सच्चा न्याय पाने में हम लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं?

11 साक्षी बनने से पहले कई लोगों के विचार राजनैतिक मामलों में बहुत कट्टर थे। मगर साक्षी बनने के बाद वे ऐसे विचार अपने अंदर से निकाल पाए हैं। ग्रेट ब्रिटेन की एक बहन की मिसाल लीजिए। सच्चाई में आने से पहले वह विश्‍वविद्यालय में सामाजिक विषय पढ़ती थी, जिस वजह से उसके राजनैतिक विचार बहुत कट्टर हो गए थे। बहन बताती है, “मैं काले लोगों के हक के लिए लड़ना चाहती थी, क्योंकि हमारे साथ बहुत नाइंसाफी हुई थी। हालाँकि मैं कई बार बहस जीत जाती थी, मगर बाद में निराशा के सिवा और कुछ नहीं मिलता था। मैं उस वक्‍त समझ नहीं पायी कि जिन कारणों से जाति के नाम पर अन्याय होता है, वे कारण लोगों के दिलों से मिटाने होंगे। लेकिन जब मैं बाइबल का अध्ययन करने लगी, तब मुझे एहसास हुआ कि सबसे पहले मुझे अपने ही दिल में बदलाव करना होगा। यह बदलाव करने में एक गोरी बहन ने ही मेरी मदद की। वह मेरे साथ बड़े सब्र से पेश आयी। अब मैं एक साइन लैंग्वेज मंडली में पायनियर हूँ और हर किस्म के लोगों को गवाही देना सीख रही हूँ।”

“अपनी तलवार म्यान में रख ले”

12. यीशु ने अपने चेलों को किस तरह के “खमीर” से चौकन्‍ने रहने के लिए कहा?

12 यीशु के दिनों में धर्म गुरु अकसर अलग-अलग राजनैतिक दलों का साथ देते थे। उदाहरण के लिए, मसीह के समय पैलिस्टाइन में रोज़मर्रा की ज़िंदगी (अँग्रेज़ी) किताब कहती है कि यहूदी अलग-अलग धार्मिक गुटों में बँटे हुए थे, जो राजनैतिक दलों जैसे थे। इस वजह से यीशु ने अपने चेलों को चेतावनी दी, “अपनी आँखें खुली रखो और फरीसियों के खमीर और हेरोदेस के खमीर से चौकन्‍ने रहो।” (मर. 8:15) जब यीशु ने हेरोदेस का ज़िक्र किया, तो शायद उसका मतलब था, हेरोदेस के गुट के लोग। यीशु ने जिस दूसरे समूह का ज़िक्र किया, वह फरीसियों का था। फरीसी चाहते थे कि यहूदियों को रोमी साम्राज्य से आज़ादी मिल जाए। मत्ती के ब्यौरे के मुताबिक यीशु ने इस बातचीत में सदूकियों का भी ज़िक्र किया। सदूकी चाहते थे कि रोम का ही शासन रहे, क्योंकि तभी उनका अधिकार का पद बना रहेगा। यीशु ने चेलों को इन तीनों समूहों के “खमीर” यानी उनकी शिक्षाओं से चौकन्‍ने रहने के लिए कहा। (मत्ती 16:6, 12) दिलचस्पी की बात है कि यीशु ने यह चेतावनी उस घटना के कुछ ही समय बाद दी, जब लोगों ने उसे राजा बनाने की कोशिश की थी।

13, 14. (क) जब धर्म गुरु राजनैतिक मसलों में पक्ष लेते हैं, तो किस तरह नाइंसाफी और हिंसा होती है? (ख) जब हमारे साथ नाइंसाफी होती है, तब भी हिंसा करना क्यों गलत है? (लेख की शुरूआत में दी तीसरी तसवीर देखिए।)

13 जब राजनैतिक मसलों में धर्म गुरु पक्ष लेते हैं, तो अकसर नाइंसाफी और हिंसा होती है। इसका एक उदाहरण लीजिए। यीशु ने अपने चेलों को सिखाया कि वे राजनैतिक मामलों में किसी का पक्ष न लें। यह एक वजह थी कि क्यों प्रधान याजक और फरीसी यीशु को मार डालना चाहते थे। उन्हें डर था कि लोग यीशु की बात मानेंगे और उनके पीछे चलना छोड़ देंगे। अगर ऐसा हुआ, तो धर्म और राजनीति में उनका अधिकार छिन जाएगा। उन्होंने कहा, “अगर हम इसे यूँ ही छोड़ दें, तो सब लोग इस पर विश्‍वास करने लगेंगे और रोमी आकर हमसे हमारी जगह और राष्ट्र दोनों छीन लेंगे।” (यूह. 11:48) इस वजह से महायाजक कैफा ने यीशु को मार डालने की साज़िश की।​—यूह. 11:49-53; 18:14.

14 कैफा ने रात होने का इंतज़ार किया। फिर उसने यीशु को गिरफ्तार करने के लिए सैनिकों को भेजा। यीशु कैफा की साज़िश के बारे में जानता था। इस वजह से जब वह आखिरी बार अपने प्रेषितों के साथ खाना खा रहा था, तो उसने उन्हें कुछ तलवारें लेने के लिए कहा। चेलों के पास दो तलवारें थीं और ये उन्हें एक अहम सीख देने के लिए काफी थीं। (लूका 22:36-38) जब बहुत रात हो चुकी थी, तब एक भीड़ यीशु को गिरफ्तार करने आयी। यह नाइंसाफी देखकर पतरस को इतना गुस्सा आया कि उसने तलवार निकाली और एक आदमी पर हमला कर दिया। (यूह. 18:10) मगर यीशु ने पतरस से कहा, “अपनी तलवार म्यान में रख ले, इसलिए कि जो तलवार उठाते हैं वे तलवार से ही नाश किए जाएँगे।” (मत्ती 26:52, 53) यीशु ने चेलों को कितनी बढ़िया सीख दी! उन्हें इस दुनिया का भाग नहीं होना चाहिए। यही बात यीशु ने उस रात कुछ समय पहले प्रार्थना में कही थी। (यूहन्‍ना 17:16 पढ़िए।) नाइंसाफी के खिलाफ लड़ने का अधिकार सिर्फ परमेश्‍वर को है।

15, 16. (क) परमेश्‍वर के वचन की मदद से मसीही दुनियावी झगड़ों से कैसे दूर रह पाते हैं? (ख) आज जब यहोवा दुनिया को देखता है, तो उसे क्या फर्क नज़र आता है?

15 दक्षिणी यूरोप में रहनेवाली बहन ने, जिसका ज़िक्र लेख की शुरूआत में किया गया था, यही सबक सीखा। वह बहन कहती है, “मैंने देखा है कि हिंसा करने से न्याय नहीं मिलता। इसके बजाय हिंसा करनेवाले ज़्यादातर लोगों की मौत हो जाती है। इसके अलावा, कुछ लोगों के मन में कड़वाहट भर जाती है। जब मैंने बाइबल से सीखा कि इस धरती पर सच्चा न्याय सिर्फ परमेश्‍वर कर सकता है, तो मैं बहुत खुश हुई। मैं इसी संदेश के बारे में पिछले 25 सालों से प्रचार कर रही हूँ।” दक्षिणी अफ्रीका में रहनेवाले भाई ने अपना भाला फेंककर “पवित्र शक्‍ति की तलवार” उठा ली है यानी परमेश्‍वर का वचन हाथ में ले लिया है। (इफि. 6:17) वह हर तरह के लोगों को शांति का संदेश सुना रहा है, फिर चाहे वे किसी भी कबीले या जाति के क्यों न हों। मध्य यूरोप में रहनेवाली बहन ने साक्षी बनने के बाद एक मसीही भाई से शादी की। यह भाई उसी जाति का है, जिस जाति से बहन पहले नफरत करती थी। ये तीनों अपनी ज़िंदगी में बड़े-बड़े बदलाव कर पाए, क्योंकि वे मसीह की तरह बनना चाहते थे।

16 इस तरह के बदलाव करना हमारे लिए बहुत ज़रूरी है। बाइबल बताती है कि पूरी मानवजाति एक अशांत समुंदर की तरह है, उसमें हमेशा तूफान मचा रहता है। (यशा. 17:12; 57:20, 21; प्रका. 13:1) राजनैतिक मसले लोगों में फूट डालते हैं और उन्हें हिंसा करने के लिए भड़काते हैं। लेकिन जहाँ तक हम साक्षियों की बात है, हमारे बीच शांति और एकता है। जब यहोवा देखता होगा कि जहाँ एक तरफ दुनिया में फूट पड़ी है वहीं हमारे बीच एकता है, तो वह कितना खुश होता होगा!​—सपन्याह 3:17 पढ़िए।

17. (क) एकता का बढ़ावा देने के तीन तरीके कौन-से हैं? (ख) अगले लेख में हम क्या सीखेंगे?

17 इस लेख में हमने सीखा कि हम मसीही तीन तरीकों से एकता का बढ़ावा दे सकते हैं। (1) हमें भरोसा है कि परमेश्‍वर का राज ही हर तरह की नाइंसाफी दूर करेगा। (2) हम राजनैतिक मसलों में किसी का पक्ष नहीं लेते। (3) हम किसी भी हाल में लड़ाई-झगड़े नहीं करते। लेकिन एक और वजह है, जिससे हमारे बीच की एकता टूट सकती है। वह है, लोगों से भेदभाव करना। अगले लेख में हम सीखेंगे कि हम पहली सदी के मसीहियों की तरह कैसे इस पर काबू पा सकते हैं।