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अध्ययन लेख 45

एक-दूसरे से अटल प्यार करते रहिए

एक-दूसरे से अटल प्यार करते रहिए

“एक-दूसरे पर दया करो और अटल प्यार रखो।”—जक. 7:9.

गीत 107 यहोवा के प्यार की मिसाल

लेख की एक झलक *

1-2. हमें एक-दूसरे से अटल प्यार क्यों करना चाहिए?

एक-दूसरे से अटल प्यार करने की हमारे पास कई वजह हैं। कुछ वजह नीतिवचन की किताब में दी गयी हैं। ये हैं, “अटल प्यार और सच्चाई को अपने से दूर मत करना, . . . तब परमेश्‍वर और इंसान तुझसे खुश होंगे और कबूल करेंगे कि तुझमें अंदरूनी समझ है।” “अटल प्यार करनेवाला अपना ही भला करता है।” “जो कोई नेकी और अटल प्यार का पीछा करता है, वह जीवन . . . पाता है।”​—नीति. 3:3, 4; 11:17, फु.; 21:21.

2 इन आयतों से पता चलता है कि अटल प्यार करने से हम यहोवा के लिए अनमोल बन जाते हैं। दूसरी बात, इससे हमें खुद फायदा होता है। जैसे, हम अच्छे दोस्त बना पाते हैं। तीसरी बात, भविष्य में हमें कई आशीषें मिलेंगी और हमेशा की ज़िंदगी भी। इसलिए आइए हम यहोवा की यह बात हमेशा मानें, “एक-दूसरे पर दया करो और अटल प्यार रखो।”​—जक. 7:9.

3. इस लेख में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

3 इस लेख में हम चार सवालों पर चर्चा करेंगे। हमें किन लोगों से अटल प्यार करना चाहिए? रूत की किताब से हम अटल प्यार करने के बारे में क्या सीखते हैं? हम अटल प्यार कैसे कर सकते हैं? और ऐसा करने से हमें क्या फायदा होता है?

हमें किन लोगों से अटल प्यार करना चाहिए?

4. हम यहोवा की तरह अटल प्यार कैसे कर सकते हैं? (मरकुस 10:29, 30)

4 पिछले लेख में हमने सीखा था कि यहोवा सिर्फ उन लोगों से अटल प्यार करता है, जो उससे प्यार करते हैं और उसकी सेवा करते हैं। (दानि. 9:4) वह मुश्‍किल हालात में भी उनका साथ देता है। हम ‘परमेश्‍वर के प्यारे बच्चों की तरह उसकी मिसाल पर चलना चाहते हैं।’ (इफि. 5:1) इसलिए हमें भी अपने भाई-बहनों से अटल प्यार करना चाहिए, यानी उनसे गहरा लगाव रखना चाहिए और मुश्‍किलों में उनका साथ देना चाहिए।​—मरकुस 10:29, 30 पढ़िए।

5-6. उदाहरण देकर बताइए कि “वफादार” इंसान किसे कहा जा सकता है।

5 हम अपने भाई-बहनों से अटल प्यार तभी कर पाएँगे, जब हम इस गुण के बारे में और अच्छी तरह जानेंगे। कई लोगों को लगता है कि अगर कोई व्यक्‍ति वफादार है, तो वह अटल प्यार कर रहा है। पर क्या वाकई ये दोनों गुण एक ही हैं? आइए एक उदाहरण से समझें।

6 अगर कोई व्यक्‍ति सालों से एक ही कंपनी में काम करता है, तो उसे एक वफादार कर्मचारी कहा जा सकता है। लेकिन इतने सालों में वह शायद एक बार भी अपने मालिकों से न मिला हो। कई बार शायद वह उनके फैसलों से सहमत भी न हो। तो फिर, वह वहाँ क्यों काम करता रहता है? इसलिए नहीं कि उसे कंपनी से प्यार है, बल्कि इसलिए कि इससे उसका गुज़ारा चल रहा है। अगर उसे दूसरी जगह अच्छी नौकरी मिल जाए, तो वह शायद यह कंपनी छोड़ दे।

7-8. (क) परमेश्‍वर के लोग एक-दूसरे से अटल प्यार क्यों करते हैं? (ख) रूत की किताब से हम क्या सीखेंगे?

7 इससे साफ पता चलता है कि कई बार एक इंसान मजबूर होकर वफादार रहता है। लेकिन जहाँ तक अटल प्यार की बात है, तो यह दिल से आता है। बाइबल में लिखा है कि परमेश्‍वर के लोग एक-दूसरे से अटल प्यार मजबूरी में नहीं, बल्कि दिल से करते थे। दाविद का उदाहरण लीजिए। वह अपने जिगरी दोस्त योनातान से अटल प्यार करता था, जबकि योनातान का पिता उसकी जान के पीछे पड़ा था। उसका यह प्यार किसी मजबूरी की वजह से नहीं, बल्कि उसके दिल ने उसे ऐसा करने के लिए उभारा था। योनातान की मौत के सालों बाद भी दाविद उसके बेटे मपीबोशेत से अटल प्यार करता रहा।​—1 शमू. 20:9, 14, 15; 2 शमू. 4:4; 8:15; 9:1, 6, 7.

8 अब हम बाइबल से रूत की किताब पर चर्चा करेंगे। हम सीखेंगे कि इसमें बताए लोगों ने किस तरह अटल प्यार किया और हम मंडली में दूसरों से इस तरह का प्यार कैसे कर सकते हैं। *

रूत की किताब से हम अटल प्यार करने के बारे में क्या सीखते हैं?

9. नाओमी को क्यों लगा कि यहोवा उससे नाराज़ है?

9 रूत की किताब में हम तीन लोगों के बारे में पढ़ते हैं। नाओमी, उसकी बहू रूत और बोअज़, जो नाओमी के पति का रिश्‍तेदार था और यहोवा से बहुत प्यार करता था। जब इसराएल में अकाल पड़ा, तो नाओमी अपने पति और दो बेटों के साथ मोआब चली गयी। वहाँ उसके पति की मौत हो गयी। फिर उसके दोनों बेटों की शादी हुई, लेकिन कुछ समय बाद उनकी भी मौत हो गयी। (रूत 1:3-5; 2:1) इन हादसों की वजह से नाओमी पूरी तरह टूट गयी। उसे लगा कि यहोवा उससे नाराज़ है। उसने कहा, “यहोवा का हाथ मेरे खिलाफ उठा है। . . . सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के होते मेरी ज़िंदगी दुखों से भर गयी है। . . . यहोवा ही मेरे खिलाफ हो गया [है] और सर्वशक्‍तिमान ने ही मुझ पर मुसीबतें आने” दी हैं।​—रूत 1:13, 20, 21.

10. नाओमी की बात सुनकर यहोवा ने क्या किया?

10 नाओमी की बात सुनकर यहोवा गुस्सा नहीं हुआ, न ही उसने नाओमी को छोड़ दिया, बल्कि उसने हमदर्दी रखी। यहोवा अच्छी तरह समझता है कि तकलीफ या “ज़ुल्म, बुद्धिमान इंसान को बावला कर देता है।” (सभो. 7:7) यहोवा ने नाओमी को कैसे यकीन दिलाया कि उसने उसे नहीं छोड़ा है? (1 शमू. 2:8) उसने रूत को उभारा कि वह नाओमी से अटल प्यार करे। रूत ने उसे निराशा से उबरने में मदद दी और उसे यह यकीन दिलाया कि यहोवा अब भी उससे प्यार करता है। हम रूत से क्या सीखते हैं?

11. कई मसीही ऐसे भाई-बहनों की मदद क्यों करते हैं जो मायूस हैं?

11अटल प्यार हमें उभारता है कि हम ऐसे भाई-बहनों की मदद करें, जो दुखी या मायूस हैं।  जिस तरह रूत ने नाओमी का साथ नहीं छोड़ा, उसी तरह आज कई मसीही ऐसे भाई-बहनों की मदद करना नहीं छोड़ते, जो दुखी या मायूस हैं। वे उनसे बहुत प्यार करते हैं और उनसे जो बन पड़ता है, वह करते हैं। (नीति. 12:25; 24:10) इस तरह वे प्रेषित पौलुस की यह सलाह मानते हैं, “जो मायूस हैं उन्हें अपनी बातों से तसल्ली दो, कमज़ोरों को सहारा दो और सबके साथ सब्र से पेश आओ।”​—1 थिस्स. 5:14.

मायूस भाई-बहनों की बात ध्यान से सुनकर हम उनकी मदद कर सकते हैं (पैराग्राफ 12 देखें)

12. मायूस भाई-बहनों की मदद करने का सबसे बढ़िया तरीका क्या है?

12 जो भाई-बहन मायूस हैं उनकी मदद करने का एक बढ़िया तरीका है, उनकी बात ध्यान से सुनना और उन्हें यकीन दिलाना कि आप उनसे प्यार करते हैं। ये सभी भाई-बहन यहोवा के लिए अनमोल हैं। इसलिए जब आप उनका खयाल रखते हैं, तो यहोवा आपका एहसान मानता है। (भज. 41:1) नीतिवचन 19:17 में लिखा है, “जो गरीब पर दया करता है, वह यहोवा को उधार देता है और परमेश्‍वर इस उपकार का उसे इनाम देगा।”

ओरपा वापस मोआब चली जाती है, जबकि रूत अपनी सास, नाओमी का साथ नहीं छोड़ती। वह नाओमी से कहती है, “जहाँ तू जाएगी, वहाँ मैं भी जाऊँगी” (पैराग्राफ 13 देखें)

13. (क) रूत का फैसला ओरपा के फैसले से कैसे अलग था? (ख) रूत ने यह फैसला क्यों लिया? (बाहर दी तसवीर देखें।)

13 अटल प्यार की वजह से हम और भी कुछ करते हैं। वह क्या है, यह जानने के लिए आइए गौर करें कि नाओमी के पति और बेटों की मौत के बाद उसके साथ क्या हुआ। जब नाओमी को पता चला कि “यहोवा ने एक बार फिर अपने लोगों पर ध्यान दिया है और उन्हें खाने के लिए रोटी दी है,” तो उसने अपने देश लौटने का फैसला किया। (रूत 1:6) दोनों बहुएँ भी उसके साथ चल पड़ीं। रास्ते में तीन बार उसने अपनी बहुओं से कहा कि वे वापस अपने देश चली जाएँ। फिर “ओरपा ने अपनी सास को चूमा और वह चली गयी। मगर रूत ने नाओमी का साथ नहीं छोड़ा।” (रूत 1:7-14) ओरपा ने वही किया जो नाओमी ने उससे कहा, लेकिन रूत ने उससे बढ़कर किया। वह चाहती तो अपने घर वापस जा सकती थी। मगर वह नाओमी से अटल प्यार करती थी, इसलिए उसने उसका साथ देने का फैसला किया। (रूत 1:16, 17) उसने यह फैसला मजबूरी में नहीं किया, बल्कि वह दिल से नाओमी की मदद करना चाहती थी। इस तरह रूत ने नाओमी से अटल प्यार किया। इससे हम क्या सीखते हैं?

14. (क) आज कई मसीही क्या करते हैं? (ख) इब्रानियों 13:16 के मुताबिक, परमेश्‍वर किस तरह के बलिदानों से खुश होता है?

14अटल प्यार हमें उभारता है कि हम भाई-बहनों की और भी बढ़कर मदद करें।  बीते कल की तरह, आज भी कई मसीही ऐसे भाई-बहनों से अटल प्यार करते हैं, जिन्हें वे जानते तक नहीं। उदाहरण के लिए, जब उन्हें पता चलता है कि कहीं विपत्ति आयी है, तो वे फौरन वहाँ के भाई-बहनों की मदद करने के लिए आगे आते हैं। या फिर जब उन्हें पता चलता है कि मंडली में कोई पैसों की तंगी झेल रहा है, तो वे फौरन उसकी मदद करते हैं। प्राचीन मकिदुनिया के मसीहियों की तरह, उनकी जितनी हैसियत होती है वे “उससे भी ज़्यादा” देते हैं। (2 कुरिं. 8:3) वे ज़रूरतमंद भाई-बहनों की मदद करने के लिए त्याग करते हैं, यानी अपना समय और अपनी चीज़ें देते हैं। यह सब देखकर यहोवा को कितनी खुशी होती होगी!​—इब्रानियों 13:16 पढ़िए।

हम अटल प्यार कैसे कर सकते हैं?

15-16. रूत किस तरह कोशिश करती रही?

15 रूत और नाओमी की कहानी से हम बहुत-सी बातें सीख सकते हैं। आइए कुछ पर गौर करें।

16कोशिश करते रहिए।  जब रूत ने नाओमी से कहा कि वह यहूदा जाएगी, तो नाओमी ने पहले उसे साथ आने से मना कर दिया। लेकिन रूत ने हार नहीं मानी, वह अपनी बात पर बनी रही। “रूत का पक्का इरादा देखकर नाओमी ने फिर उससे कुछ न कहा।”​—रूत 1:15-18.

17. कौन-सी बात कोशिश करते रहने में हमारी मदद करेगी?

17सीख:  जो लोग मायूस होते हैं, उन्हें लगातार मदद की ज़रूरत होती है। इसलिए हमें बार-बार कोशिश करनी चाहिए और सब्र रखना चाहिए। शायद वे शुरू में हमारी मदद लेने से मना कर दें। लेकिन हम उनका साथ नहीं छोड़ेंगे और उनकी मदद करने की कोशिश करते रहेंगे, क्योंकि हम उनसे अटल प्यार करते हैं। (गला. 6:2) आज नहीं तो कल वे हमारी मदद लेने के लिए तैयार हो जाएँगे।

18. रूत को किस बात का बुरा लगा होगा?

18बुरा मत मानिए।  जब नाओमी और रूत बेतलेहेम पहुँचीं, तो नाओमी अपने पुराने पड़ोसियों से मिली। उसने उनसे कहा, “मैं यहाँ से भरी-पूरी गयी थी, लेकिन यहोवा ने मुझे खाली हाथ लौटाया है।” (रूत 1:21) ज़रा सोचिए, यह बात सुनकर रूत को कैसा लगा होगा। उसने नाओमी के लिए क्या कुछ नहीं किया। उसके साथ मिलकर रोयी, उसे दिलासा दिया और कई दिनों तक उसके साथ पैदल चलकर आयी, फिर भी नाओमी ने कहा, “यहोवा ने मुझे खाली हाथ लौटाया है।” रूत ने उसे जो भी मदद दी, उसका उसने कोई ज़िक्र नहीं किया। यह सुनकर उसे बहुत बुरा लगा होगा, फिर भी उसने नाओमी का साथ नहीं छोड़ा।

19. मायूस भाई-बहनों की मदद करते वक्‍त हमें कौन-सी बात याद रखनी चाहिए?

19सीख:  हम शायद ऐसे भाई-बहनों की मदद करने की कोशिश करें, जो मायूस हैं। लेकिन हो सकता है कि वे हमसे कोई ऐसी बात कह दें, जिससे हमारे दिल को ठेस पहुँचे। ऐसे में हमें बुरा नहीं मानना चाहिए, न ही उनका साथ छोड़ देना चाहिए। इसके बजाय हमें यहोवा से मदद माँगनी चाहिए ताकि हम उन्हें दिलासा दे सकें।​—नीति. 17:17.

मंडली के प्राचीन बोअज़ की तरह कैसे बन सकते हैं? (पैराग्राफ 20-21 देखें)

20. रूत का हौसला कैसे बढ़ा?

20ज़रूरत के वक्‍त हौसला दीजिए।  रूत, नाओमी से अटल प्यार करती थी और उसकी मदद कर रही थी। मगर अब खुद रूत को मदद की ज़रूरत थी। इसलिए यहोवा ने बोअज़ को उभारा कि वह रूत को हौसला दे। बोअज़ ने उससे कहा, “यहोवा तुझे आशीष दे और इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा से तुझे पूरा इनाम मिले, जिसके पंखों तले तूने पनाह ली है।” यह सुनकर रूत को बहुत अच्छा लगा। उसने बोअज़ से कहा, “तूने इस दासी को दिलासा दिया और अपनी बातों से इसकी हिम्मत बढ़ायी।” (रूत 2:12, 13) इस तरह रूत को बोअज़ से हौसला मिला कि वह नाओमी की मदद करती रहे।

21. यशायाह 32:1, 2 के मुताबिक, प्राचीनों को क्या करना चाहिए?

21सीख:  जो लोग दूसरों को अटल प्यार करते हैं, कई बार खुद उन्हें हौसले की ज़रूरत होती है। बोअज़ ने गौर किया कि रूत कैसे अपनी सास की मदद कर रही है और फिर उसने उसकी तारीफ की। उसी तरह आज प्राचीनों को गौर करना चाहिए कि मंडली के भाई-बहन किस तरह दूसरों की मदद कर रहे हैं। फिर समय-समय पर उन्हें उनकी तारीफ करनी चाहिए। इस तरह उन भाई-बहनों को हिम्मत मिलेगी कि वे दूसरों की मदद करते रहें।​—यशायाह 32:1, 2 पढ़िए।

अटल प्यार करने से हमें क्या फायदा होता है?

22-23. (क) कैसे पता चलता है कि नाओमी की सोच बदल गयी? (ख) उसकी सोच क्यों बदली? (भजन 136:23, 26)

22 कुछ समय बाद, बोअज़ ने रूत और नाओमी को बहुत सारा अनाज दिया। (रूत 2:14-18) उसकी दरियादिली देखकर नाओमी ने कहा, “यहोवा उसे आशीष दे। सचमुच, परमेश्‍वर जीवितों और मरे हुओं के लिए अपने अटल प्यार का सबूत देना कभी नहीं छोड़ता।” (रूत 2:20क) क्या आपने ध्यान दिया कि नाओमी की सोच कितनी बदल गयी? पहले उसने दुख के मारे कहा, ‘यहोवा मेरे खिलाफ हो गया है।’ मगर अब उसने खुशी से कहा, ‘यहोवा अपने अटल प्यार का सबूत देना कभी नहीं छोड़ता।’ नाओमी की सोच क्यों बदल गयी?

23 नाओमी को एहसास होने लगा कि यहोवा ही है जो उसकी मदद कर रहा है। जब वह यहूदा लौट रही थी, तो यहोवा ने रूत को उभारा कि वह उसके साथ जाए। (रूत 1:16) यहोवा ने ही उनके “छुड़ानेवालों” में से एक को यानी बोअज़ को उभारा कि वह उन्हें ढेर सारा अनाज दे। * (रूत 2:19, 20ख) इस तरह वह समझ गयी कि यहोवा ने उसे कभी नहीं छोड़ा, बल्कि हर वक्‍त उसके साथ था। (भजन 136:23, 26 पढ़िए।) नाओमी ने रूत और बोअज़ का भी एहसान माना होगा कि उन्होंने उसकी मदद करना नहीं छोड़ा। और रूत और बोअज़ को यह देखकर कितनी खुशी हुई होगी कि नाओमी फिर से खुशी-खुशी यहोवा की सेवा कर रही है।

24. हम भाई-बहनों से अटल प्यार क्यों करते हैं?

24 रूत की किताब से हमने अटल प्यार करने के बारे में क्या सीखा? अगर हम मायूस भाई-बहनों से अटल प्यार करते हैं, तो हम उनकी मदद करने में हार नहीं मानेंगे, बल्कि और भी मेहनत करेंगे। प्राचीनों को समय-समय पर ऐसे भाई-बहनों का हौसला बढ़ाना चाहिए, जो दूसरों की मदद करते हैं। जब मायूस भाई-बहन फिर से खुशी-खुशी यहोवा की सेवा करने लगते हैं, तो यह देखकर हमें बहुत खुशी होती है। (प्रेषि. 20:35) लेकिन भाई-बहनों से अटल प्यार करने की सबसे बड़ी वजह क्या है? हम यहोवा की तरह बनना चाहते हैं और उसे खुश करना चाहते हैं, जो ‘अटल प्यार से भरपूर है।’​—निर्ग. 34:6; भज. 33:22.

गीत 130 माफ करना सीखें

^ पैरा. 5 यहोवा चाहता है कि हम मंडली के भाई-बहनों से अटल प्यार करें। यह हम कैसे कर सकते हैं? हम पुराने ज़माने के परमेश्‍वर के सेवकों से सीख सकते हैं। इस लेख में हम खासकर रूत, नाओमी और बोअज़ की कहानी से सीखेंगे।

^ पैरा. 8 इस लेख को और अच्छी तरह समझने के लिए आप चाहें तो रूत अध्याय 1 और 2 पढ़ सकते हैं।

^ पैरा. 23 बोअज़ के बारे में ज़्यादा जानने के लिए उनके विश्‍वास की मिसाल पर चलिए  किताब का अध्याय 5, “एक नेक औरत” पढ़ें।