जीवन कहानी
सच्ची खुशी की तलाश
मैं अपनी नाव पर सवार था और भूमध्य सागर के बीचों-बीच था। अचानक नाव में पानी भरने लगा। फिर एक तेज़ तूफान आया। मैं बहुत डर गया, इसलिए मैं प्रार्थना करने लगा। लेकिन मैं इस नाव पर पहुँचा कैसे? आइए शुरू से बताता हूँ।
मेरा जन्म 1948 में नीदरलैंड्स में हुआ था। अगले साल मेरा परिवार ब्राज़ील के साउ पाउलो शहर चला गया। फिर 1959 में हम अमरीका चले गए और मैसाचुसेट्स राज्य में रहने लगे। मेरे माता-पिता चर्च जाया करते थे और हम सब रात के खाने के बाद अकसर बाइबल पढ़ा करते थे।
हमारे परिवार में आठ सदस्य थे। इसलिए हमारी ज़रूरतें पूरी करने के लिए पिताजी को बहुत मेहनत करनी पड़ी। उन्होंने कभी सेल्समैन की नौकरी की, तो कभी सड़क बनाने की। फिर उन्हें एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई जहाज़ कंपनी में नौकरी मिल गयी। इस नौकरी से हम सब बहुत खुश थे क्योंकि हम अलग-अलग जगह सफर कर सकते थे।
जब मैं स्कूल में था, तो सोचा करता था कि मैं बड़े होकर क्या करूँगा। मेरे कुछ दोस्त यूनिवर्सिटी चले गए, तो कुछ सेना में भर्ती हो गए। लेकिन मैं सेना में नहीं जाना चाहता था, क्योंकि मुझे लड़ाई करना तो दूर झगड़ा करना भी पसंद नहीं था। इसलिए मैंने यूनिवर्सिटी जाने का फैसला किया। लेकिन मैं दूसरों की मदद करना चाहता था, क्योंकि मुझे लगता था कि इसी से मुझे खुशी मिलेगी।
यूनिवर्सिटी में तलाश
यूनिवर्सिटी में मैंने मानव-विज्ञान का विषय चुना, क्योंकि मैं जानना चाहता था कि ज़िंदगी की शुरूआत कैसे हुई। वहाँ हमें विकासवाद सिखाया जाता था। मुझे बहुत-सी बातें बेतुकी लगती थीं। फिर भी हम पर ज़ोर डाला जाता था कि हम आँख मूँदकर उन पर विश्वास करें।
यूनिवर्सिटी में हमें सही-गलत के बीच फर्क करना नहीं सिखाया जाता था। इसके बजाय हमसे कहा जाता था कि हमें हर हाल में कामयाब होना चाहिए। मैं पार्टियों में जाया करता था और ड्रग्स भी लिया करता था। हालाँकि मुझे खुशी मिलती थी, लेकिन सिर्फ कुछ समय के लिए। मैं सोचता था, ‘क्या यही जीना है?’
फिर मैं बॉसटन शहर चला गया और वहाँ की एक यूनिवर्सिटी में पढ़ने लगा। अपनी फीस भरने के लिए मैं छुट्टियों में काम करने लगा। इसी दौरान मेरी मुलाकात यहोवा के एक साक्षी से हुई। वह मेरे साथ काम करता था। उसने मुझे दानियेल अध्याय 4 में दी “सात काल” की भविष्यवाणी का मतलब समझाया और कहा कि आज हम इस दुनिया के आखिरी दौर में जी रहे हैं। (दानि. 4:13-17) मैं समझ गया कि उसकी बातें सही हैं और अगर मैं उन्हें मानने लगूँगा, तो मुझे खुद को बदलना पड़ेगा। पर मैं ऐसा नहीं करना चाहता था। इसलिए मैं उससे दूर-दूर रहने लगा।
मैं दक्षिण अमरीका जाकर लोगों की सेवा करना चाहता था, इसलिए मैंने यूनिवर्सिटी में कुछ और कोर्स किए। मुझे लगता था कि समाज-सेवा करके मुझे ज़िंदगी में खुशी मिलेगी। लेकिन इससे भी मुझे खुशी नहीं मिली। इसलिए मैंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी।
दूसरे देशों में तलाश
मई 1970 में, मैं नीदरलैंड्स के ऐमस्टरडैम शहर गया और उसी हवाई जहाज़ की कंपनी में काम करने लगा, जिसमें पिताजी काम करते थे। इस नौकरी की वजह से मैं अफ्रीका, अमरीका, यूरोप और एशिया के अलग-अलग देशों में जा सका। उन देशों की बहुत बड़ी-बड़ी समस्याएँ थीं, लेकिन किसी के पास उनका हल नहीं था। यह सब देखकर मुझमें जोश आ गया कि मैं कुछ करूँ। इसलिए मैं दोबारा अमरीका गया और बॉस्टन की उसी यूनिवर्सिटी में फिर से पढ़ने लगा।
लेकिन मेरे मन में अब भी ज़िंदगी से जुड़े कई सवाल थे, जिनके जवाब मुझे नहीं मिल रहे थे। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ। इसलिए मैंने इस बारे में अपने प्रोफेसर से बात की। उन्होंने मुझसे कहा, “तुम क्यों पढ़ रहे हो? अपनी पढ़ाई छोड़ दो।” बस यह सुनने की देर थी और मैंने तुरंत यूनिवर्सिटी छोड़ दी और फिर कभी नहीं लौटा।
मेरी ज़िंदगी में खालीपन था। इसलिए मैं ऐसे लोगों के साथ जुड़ गया, जो समाज के नियमों को नहीं मानते थे, लेकिन प्यार और शांति का बढ़ावा देते थे। फिर मैं कुछ दोस्तों के साथ मैक्सिको के आकापुल्को शहर चला गया। वहाँ मैं हिप्पी लोगों के साथ रहने लगा, जो किसी बात की चिंता नहीं करते थे, बेफिक्र रहते थे। लेकिन उनके साथ रहने के बाद ऐसा लगा कि उनकी तरह ज़िंदगी जीने से भी मुझे खुशी नहीं मिलेगी। वे लोग बेईमान और धोखेबाज़ थे।
समुद्री सफर पर तलाश जारी
इस बीच मैंने सोचा कि क्यों न मैं अपना बचपन का सपना पूरा करूँ। मेरा सपना था कि मैं एक पानी के
जहाज़ का कप्तान बनूँ और पूरी दुनिया घूमूँ। लेकिन यह तभी पूरा होता, जब मेरे पास अपनी एक नाव होती। मेरा एक दोस्त था टॉम, उसका भी यही सपना था। इसलिए हमने सोचा कि हम दोनों मिलकर दुनिया की सैर करेंगे। हम एक ऐसा खूबसूरत द्वीप ढूँढ़ना चाहते थे, जहाँ हम समाज के नियम-कानूनों से दूर होते।मैं और टॉम, स्पेन के बार्सिलोना के पास, एरिंज़ दे मार नाम की जगह गए। वहाँ हमने 31 फुट लंबी नाव खरीदी, जिसका नाम था लाइग्रा। हमने उसकी मरम्मत की, ताकि हम समुंदर पर सफर कर सकें। हमें कहीं भी पहुँचने की जल्दी नहीं थी, इसलिए हमने उसका इंजन निकाल दिया और उस जगह पर पीने के लिए और पानी भर दिया। छोटे-छोटे बंदरगाह तक पहुँचने के लिए हमने 16 फुट लंबे दो चप्पू भी खरीदे। इसके बाद, हम हिंद महासागर में सेशेल्स द्वीप-समूह के लिए निकल पड़े। हमने सोचा था कि हम अफ्रीका के पश्चिमी तट से होते हुए, दक्षिण अफ्रीका के केप ऑफ गुड होप जाएँगे, फिर वहाँ से आगे जाएँगे। हम तारों को देखकर, नक्शों, किताबों और छोटे-छोटे यंत्रों का इस्तेमाल करके सही दिशा ढूँढ़ पाते थे। मुझे हैरानी होती थी कि इनके ज़रिए हम सही-सही पता लगा पाते थे कि हम कहाँ हैं।
कुछ ही दूर जाने के बाद, हमें एहसास हुआ कि हमारी नाव समुंदर के लिए नहीं बनी है। उसमें एक छेद था, जिससे हर घंटे करीब 22 लीटर पानी भर रहा था। और जैसा कि मैंने कहानी की शुरूआत में बताया, तूफान की वजह से मैं बहुत डर गया था। मैंने कई सालों बाद प्रार्थना की और परमेश्वर से वादा किया कि अगर मैं बच गया, तो मैं उसके बारे में जानूँगा। फिर तूफान शांत हो गया और मैंने अपना वादा निभाया।
मैंने भूमध्य सागर के बीचों-बीच बाइबल पढ़ना शुरू कर दिया। ऊपर खुला आसमान था और नीचे पानी ही पानी। ढेर सारी मछलियाँ उछल रही थीं। और रात को जब मैंने बहुत सारे तारे देखे, तो मुझे और भी यकीन हो गया कि एक ईश्वर है, जिसे इंसानों की परवाह है।
समुंदर में कुछ हफ्ते बिताने के बाद, हम स्पेन के आलीकांटे बंदरगाह पहुँचे। हमने सोचा कि हम वहाँ अपनी नाव बेचकर एक दूसरी खरीद लेंगे। लेकिन हमारी पुरानी, बिना इंजनवाली और छेदवाली नाव कौन खरीदता। मैंने सोचा कि जब तक कोई खरीदार नहीं आता, तब तक मैं बाइबल पढ़ लेता हूँ।
जैसे-जैसे मैं बाइबल पढ़ने लगा, मुझे एहसास होने लगा कि इसकी बातें मानकर हम खुश रह सकते हैं। मैं हैरान था कि बाइबल में कितना साफ-साफ कहा है कि हमें नैतिक तौर पर शुद्ध ज़िंदगी जीनी चाहिए। फिर भी कई लोग खुद को ईसाई तो कहते हैं, लेकिन बाइबल की बातें नहीं मानते। मैं भी उनमें से एक था।
मैंने सोच लिया कि मैं खुद को बदलूँगा। इसलिए मैंने ड्रग्स लेना छोड़ दिया। मुझे यकीन था कि ऐसे लोग होंगे, जो बाइबल के नैतिक स्तरों पर चलते हैं और मैं उनसे मिलना चाहता था। मैंने दूसरी बार परमेश्वर से प्रार्थना की और कहा कि उन्हें ढूँढ़ने में वह मेरी मदद करे।
सच्चे धर्म की तलाश
मैंने सोचा कि सच्चा धर्म ढूँढ़ने के लिए मैं एक-एक करके सभी धर्मों को जाँचूँगा। आलीकांटे की गलियों में घूमते वक्त मैंने देखा कि कई सारी धार्मिक इमारतें हैं। लेकिन ज़्यादातर पर मूर्तियाँ बनी थीं। उन्हें देखकर मैं समझ गया कि वे धर्म सच्चे धर्म नहीं हैं।
याकूब 2:1-5 पढ़ रहा था, जिसमें बताया गया है कि हमें अमीरों की तरफदारी नहीं करनी चाहिए। जब मैं अपनी नाव के पास लौट रहा था, तो रास्ते में मुझे एक इमारत दिखी, जो एक सभा-घर जैसी लग रही थी। उसके दरवाज़े के ऊपर लिखा था, “यहोवा के साक्षियों का राज-घर।”
रविवार की एक दोपहर को, मैं एक पहाड़ी पर बैठा था। वहाँ से बंदरगाह दिख रहा था। मैंमैंने सोचा, ‘इन्हें परखता हूँ। देखता हूँ कि ये मेरे साथ किस तरह बरताव करते हैं।’ मैं फटी हुई जींस पहनकर, बिना दाढ़ी बनाए, नंगे पैर ही राज-घर में घुस गया। एक आदमी ने मुझे एक बुज़ुर्ग औरत के पास बिठाया। जब वक्ता आयतें बता रहा था, तो उस औरत ने मुझे मेरी बाइबल में उन आयतों को ढूँढ़ने में मदद दी। सभा के बाद सब लोग मुझसे मिलने के लिए आए। यह देखकर तो मैं हैरान ही रह गया। एक आदमी ने बाइबल पर चर्चा करने के लिए अपने घर भी बुलाया। लेकिन तब तक मैंने पूरी बाइबल पढ़ी नहीं थी। इसलिए मैंने उससे कहा, “आज नहीं! किसी और दिन।” लेकिन मैं सभाओं में जाता रहा।
कुछ हफ्तों बाद, मैं उस आदमी से मिला, जिसने मुझे अपने घर बुलाया था। उसने बाइबल से मेरे सवालों के जवाब दिए। एक हफ्ते बाद उसने मुझे बैग भरकर अच्छे कपड़े दिए। उसने बताया कि ये कपड़े एक भाई के हैं जो अभी जेल में है, क्योंकि उसने बाइबल की ये आज्ञाएँ मानीं कि एक-दूसरे से प्यार करो और युद्ध न करो। (यशा. 2:4; यूह. 13:34, 35) यह सुनकर मुझे यकीन हो गया कि मुझे जिन लोगों की तलाश थी, वे यहोवा के साक्षी हैं। वे बाइबल के नैतिक स्तरों को मानते हैं। अब मैं एक खूबसूरत द्वीप नहीं ढूँढ़ना चाहता था, बल्कि बाइबल के बारे में और जानना चाहता था। इसलिए मैं वापस नीदरलैंड्स चला गया।
नौकरी की तलाश
चार दिन सफर करने के बाद, मैं नीदरलैंड्स के ग्रोनिनगन शहर पहुँचा। अपना गुज़ारा चलाने के लिए मुझे एक नौकरी चाहिए थी। इसलिए मैंने एक बढ़ई की दुकान में नौकरी की अर्ज़ी डाली। उस अर्ज़ी में एक सवाल था कि मेरा धर्म क्या है। मैंने लिखा, “यहोवा का साक्षी।” जब दुकान के मालिक ने वह पढ़ा, तो उसके चेहरे के भाव ही बदल गए। उसने कहा, “ठीक है, देखते हैं।” उसने मुझे कभी नहीं बुलाया।
फिर मैं एक दूसरी बढ़ई की दुकान पर गया। वहाँ के मालिक ने मुझसे पूछा कि मैंने कहाँ तक पढ़ाई की है और मुझे काम का कितना तजुरबा है। मैंने उसे बताया कि मैंने एक लकड़ी की नाव की मरम्मत की है। हैरानी की बात है कि उसने मुझे नौकरी पर रख लिया। उसने कहा, भज. 37:4) मैंने उस भाई की दुकान में एक साल तक काम किया और बाइबल का अध्ययन भी किया। फिर जनवरी 1974 में, मैंने बपतिस्मा ले लिया।
“आज दोपहर से काम शुरू कर देना। लेकिन एक शर्त है कि तुम कोई गड़बड़ नहीं करोगे। मैं एक यहोवा का साक्षी हूँ और बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक जीता हूँ।” मैंने हैरानी से उसे देखा और कहा, “मैं भी यहोवा का साक्षी हूँ।” वह मेरे लंबे बाल और दाढ़ी देखकर समझ गया कि मैं साक्षी नहीं हूँ। इसलिए उसने कहा, “ठीक है फिर, मैं तुम्हें बाइबल के बारे में सिखाऊँगा।” मैंने उसकी बात झट-से मान ली। अब मैं समझ गया कि पिछले दुकान मालिक ने मुझे नौकरी पर क्यों नहीं रखा। दरअसल, यहोवा मेरी प्रार्थनाओं का जवाब दे रहा था। (आखिरकार, तलाश खत्म हुई!
एक महीने बाद, मैंने पायनियर सेवा शुरू कर दी। इस काम में मुझे बेहद खुशी मिलती थी। अगले महीने, मैं एक नए स्पेनी भाषा बोलनेवाले समूह की मदद करने के लिए ऐमस्टरडैम चला गया। स्पेनी और पुर्तगाली भाषाओं में बाइबल अध्ययन चलाने में मज़ा आ जाता था! फिर मई 1975 में, मुझे खास पायनियर बनाया गया।
एक दिन, ईनेके नाम की एक खास पायनियर बहन हमारी मंडली में आयी। वह अपनी बाइबल विद्यार्थी को, जो बोलीविया से थी, स्पेनी भाषा बोलनेवाले भाई-बहनों से मिलवाना चाहती थी। ईनेके और मैं, एक-दूसरे को जानने के लिए खत लिखने लगे और हमें पता चला कि हम दोनों के लक्ष्य एक-जैसे हैं। सन् 1976 में हमारी शादी हो गयी और 1982 तक हम दोनों ने खास पायनियर सेवा की। उसके बाद हमें गिलियड स्कूल की 73वीं क्लास के लिए बुलाया गया। क्लास के बाद, हमें अफ्रीका के केन्या देश भेजा गया। हम सच में बहुत खुश थे और हैरान भी। हमने केन्या के मोम्बासा शहर में पाँच साल तक सेवा की। फिर 1987 में हमें तंज़ानिया देश भेजा गया। वहाँ पहले प्रचार काम पर रोक लगी थी, लेकिन अब हट गयी। हमने वहाँ 26 सालों तक सेवा की। इसके बाद हम दोबारा केन्या आ गए।
लोगों को बाइबल के बारे में सिखाकर हमें सच में खुशी मिली। जब हम मोम्बासा में प्रचार कर रहे थे तो मैं एक आदमी से मिला। मैंने उसे दो पत्रिकाएँ दीं। उसने कहा, “इन्हें पढ़ने के बाद मैं क्या करूँ?” अगले ही हफ्ते हमने आप पृथ्वी पर परादीस में सर्वदा जीवित रह सकते हैं किताब से अध्ययन शुरू कर दिया। कुछ ही वक्त पहले, यह किताब उसकी भाषा स्वाहिली में प्रकाशित हुई थी। वह आदमी मोम्बासा में मेरा पहला बाइबल विद्यार्थी था। एक साल बाद उसने बपतिस्मा ले लिया और पायनियर सेवा करने लगा। उसने और उसकी पत्नी ने करीब 100 लोगों को सच्चाई में आने में मदद दी है।
जब मुझे पता चला कि मुझे ज़िंदगी में किस चीज़ से खुशी मिल सकती है, तो ऐसा लगा कि मैं उस व्यापारी की तरह हूँ, जिसे बेशकीमती मोती मिला था और उसे खोना नहीं चाहता था। (मत्ती 13:45, 46) मैं पूरी ज़िंदगी दूसरों की मदद करना चाहता था, ताकि वे भी खुश रहें। मैंने और मेरी पत्नी ने देखा है कि यहोवा अपने लोगों को एक बढ़िया ज़िंदगी जीने में मदद करता है और उन्हें बेशुमार खुशियाँ देता है।