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अध्ययन लेख 24

आप अपना लक्ष्य हासिल कर सकते हैं!

आप अपना लक्ष्य हासिल कर सकते हैं!

“आओ हम बढ़िया काम करने में हार न मानें क्योंकि अगर हम हिम्मत न हारें, तो वक्‍त आने पर ज़रूर फल पाएँगे।”​—गला. 6:9.

गीत 84 बढ़ते हैं आगे

एक झलक a

1. हममें से कई लोगों के सामने कौन-सी मुश्‍किल आयी है?

 हम सब यहोवा को खुश करना चाहते हैं और उसकी अच्छी तरह सेवा करना चाहते हैं। इसलिए हम शायद कुछ लक्ष्य रखें। जैसे, रोज़ बाइबल पढ़ना, अच्छी तरह निजी अध्ययन करना, प्रचार करने का हुनर बढ़ाना या अपने अंदर कोई गुण बढ़ाना। हो सकता है आपने भी कोई ऐसा लक्ष्य रखा हो, पर अब उसे हासिल करना आपको मुश्‍किल लग रहा हो। अगर ऐसा है, तो आप अकेले नहीं हैं। ज़रा इन उदाहरणों पर ध्यान दीजिए। फिलिप चाहता था कि वह अच्छी तरह और ज़्यादा बार प्रार्थना करे, लेकिन वह प्रार्थना करने के लिए समय ही नहीं निकाल पाता था। एरिका ने लक्ष्य रखा था कि वह प्रचार की सभा में समय पर पहुँचेगी। फिर भी उसे लगभग हर बार देर हो जाती थी। तोमाश पूरी बाइबल पढ़ना चाहता था। पर वह कहता है, “मुझे बाइबल पढ़ने में मज़ा ही नहीं आता था। मैंने तीन बार कोशिश की, पर हर बार लैव्यव्यवस्था से आगे बढ़ ही नहीं पाता था।”

2. अगर हम अब तक अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर पाए हैं, तो हमें निराश क्यों नहीं होना चाहिए?

2 अगर आपने कोई लक्ष्य रखा है, पर अब तक उसे हासिल नहीं कर पाए हैं, तो यह मत सोचिए कि आपसे कुछ नहीं हो सकता। एक छोटा-सा लक्ष्य हासिल करने में भी कई बार काफी वक्‍त और मेहनत लगती है। फिर भी अगर आप अपना लक्ष्य हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं, तो यह दिखाता है कि आप यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को बहुत अनमोल समझते हैं और आप उसकी अच्छे-से सेवा करना चाहते हैं। यहोवा आपकी मेहनत की बहुत कदर करता है। और वह कभी आपसे कुछ ऐसा करने की उम्मीद नहीं करता, जो आप नहीं कर सकते। (भज. 103:14; मीका 6:8) इसलिए अपने हालात को ध्यान में रखकर ऐसे लक्ष्य रखिए जिन्हें आप हासिल कर सकें। आइए कुछ सुझावों पर ध्यान दें जिन्हें मानने से आप अपने लक्ष्य हासिल कर पाएँगे।

लक्ष्य हासिल करने की इच्छा पैदा कीजिए

अपनी इच्छा बढ़ाने के लिए प्रार्थना कीजिए (पैराग्राफ 3-4)

3. लक्ष्य हासिल करने की इच्छा होना क्यों ज़रूरी है?

3 कोई लक्ष्य हासिल करने के लिए उसे पाने की इच्छा होना बहुत ज़रूरी है। जब इच्छा होगी, तभी हम वह लक्ष्य पाने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे। यह इच्छा नदी के बहाव की तरह है। जैसे नदी के बहाव से एक नाव अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ पाती है, उसी तरह इच्छा होने से हम अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ पाते हैं। और अगर बहाव तेज़ हो, तो नाविक शायद और जल्दी अपनी मंज़िल तक पहुँच जाए। कुछ उसी तरह हममें अपना लक्ष्य हासिल करने की जितनी इच्छा होगी, उतनी ही जल्दी हम उस तक पहुँच पाएँगे। एल साल्वाडोर में रहनेवाले भाई डेविड का कहना है, ‘जब आपमें कुछ करने की बहुत इच्छा होती है, तो आप उसके लिए जी-तोड़ मेहनत करते हैं। आप किसी भी चीज़ को उसके आड़े नहीं आने देते।’ तो आप ऐसा क्या कर सकते हैं, ताकि आपकी इच्छा और भी बढ़े?

4. हम किस बात के लिए प्रार्थना कर सकते हैं? (फिलिप्पियों 2:13) (तसवीर भी देखें।)

4 प्रार्थना कीजिए कि आपमें अपना लक्ष्य हासिल करने की इच्छा बढ़े। जब आप प्रार्थना करेंगे, तो यहोवा आपको अपनी पवित्र शक्‍ति देगा। फिर आपका और भी मन करेगा कि आप अपना लक्ष्य हासिल करें। (फिलिप्पियों 2:13 पढ़िए।) कभी-कभी हम कोई लक्ष्य इसलिए रखते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि हमें ऐसा करना चाहिए और यह अच्छी बात है। पर हो सकता है, वह लक्ष्य हासिल करने की हममें इच्छा ही ना हो। युगांडा में रहनेवाली बहन नौरीन के साथ भी कुछ ऐसा ही था। उन्होंने एक बाइबल अध्ययन कराने का लक्ष्य रखा था। पर उनमें ऐसा करने की बहुत ज़्यादा इच्छा नहीं थी, क्योंकि उन्हें लगता था कि वे अच्छे-से नहीं सिखा पाएँगी। उन्हें किस बात से मदद मिली? वे कहती हैं, “मैं हर दिन यहोवा से प्रार्थना करती थी कि मेरे अंदर बाइबल अध्ययन कराने की इच्छा बढ़े। साथ ही, मैं अपनी सिखाने की काबिलीयत बढ़ाने के लिए खूब मेहनत करने लगी। फिर कुछ महीनों बाद मैंने देखा कि बाइबल अध्ययन कराने का मेरा और भी मन करने लगा। उस साल मैं दो बाइबल अध्ययन शुरू कर पायी।”

5. किस बारे में सोचने से अपना लक्ष्य हासिल करने की हमारी इच्छा बढ़ सकती है?

5 सोचिए कि यहोवा ने अब तक आपके लिए क्या-क्या किया है। (भज. 143:5) प्रेषित पौलुस ने जब इस बात पर मनन किया कि यहोवा ने कैसे उस पर महा-कृपा की है, तो उसने जी-जान से यहोवा की सेवा की। (1 कुरिं. 15:9, 10; 1 तीमु. 1:12-14) उसी तरह, अगर आप भी इस बारे में सोचते रहें कि यहोवा ने आपके लिए क्या-क्या किया है, तो अपना लक्ष्य हासिल करने की आपकी इच्छा और बढ़ जाएगी। (भज. 116:12) गौर कीजिए कि होंडुरास में रहनेवाली एक बहन को किस बात से मदद मिली। वे पायनियर सेवा करना चाहती थीं। वे कहती हैं, “मैंने इस बारे में सोचा कि यहोवा मुझसे कितना प्यार करता है। उसने मुझे अपने परिवार का हिस्सा बनाया। वह मेरी परवाह करता है, मेरी हिफाज़त करता है। इस तरह मनन करने से मैं यहोवा से और भी प्यार करने लगी और पायनियर सेवा करने का मेरा और भी मन करने लगा।”

6. अपना लक्ष्य हासिल करने की इच्छा बढ़ाने के लिए हम और क्या कर सकते हैं?

6 सोचिए कि लक्ष्य हासिल करने से आपको क्या-क्या फायदे हो सकते हैं। ज़रा एक बार फिर एरिका के उदाहरण पर ध्यान दीजिए, जिसका लक्ष्य था कि वह प्रचार की सभा में समय पर पहुँचे। वह कहती है, “मैंने सोचा कि देर से पहुँचने से मैं कितना कुछ नहीं कर पाती। अगर मैं जल्दी पहुँचूँ, तो मैं भाई-बहनों से मिल पाऊँगी, उनके साथ वक्‍त बिता पाऊँगी और वहाँ जो बढ़िया सुझाव दिए जाते हैं, उन्हें भी सुन पाऊँगी। फिर मैं अच्छी तरह प्रचार कर पाऊँगी और मुझे मज़ा भी आएगा।” एरिका ने सोचा कि समय पर पहुँचने से उसे कितने फायदे हो सकते हैं, इसलिए वह अपना लक्ष्य हासिल कर पायी। क्या आप भी कुछ फायदों के बारे में सोच सकते हैं? अगर आपका लक्ष्य और अच्छे-से प्रार्थना करने या बाइबल पढ़ने के बारे में है, तो सोचिए इससे यहोवा के साथ आपका रिश्‍ता कितना मज़बूत होगा। (भज. 145:18, 19) या अगर आप कोई गुण बढ़ाना चाहते हैं, तो सोचिए इससे भाई-बहनों के साथ आपका रिश्‍ता कितना अच्छा हो जाएगा। (कुलु. 3:14) क्यों ना एक जगह वे सारी बातें लिख लें कि आप क्यों कोई लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं? फिर समय-समय पर उन बातों पर ध्यान दीजिए। तोमाश, जिसका पहले ज़िक्र किया गया था, कहता है, “कोई लक्ष्य हासिल करने के मेरे पास जितने ज़्यादा कारण होते हैं, मैं उसे हासिल करने के लिए उतनी ही ज़्यादा मेहनत करता हूँ।”

7. भाई हूलीयो और उनकी पत्नी को अपना लक्ष्य हासिल करने में कैसे मदद मिली?

7 उन लोगों के साथ वक्‍त बिताइए जो लक्ष्य हासिल करने में आपकी मदद करें। (नीति. 13:20) भाई हूलीयो और उनकी पत्नी ऐसी जगह जाकर सेवा करना चाहते थे जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत हो। अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए उन्हें किस बात से मदद मिली? भाई बताते हैं, “हमने ऐसे दोस्त बनाए जिन्होंने हमें और मेहनत करने का बढ़ावा दिया। हम उनके साथ अपने लक्ष्यों के बारे में खुलकर बात करते थे। उनमें से कई दोस्तों ने हमारे जैसे लक्ष्य हासिल किए थे, इसलिए वे हमें बढ़िया सुझाव भी दे पाए। समय-समय पर वे हमसे पूछते थे कि सबकुछ कैसा चल रहा है और जब ज़रूरत होती थी, तो हमारा हौसला भी बढ़ाते थे।”

जब लक्ष्य की तरफ बढ़ने की इच्छा कम होने लगे

लक्ष्य हासिल करने के लिए मेहनत करते रहिए (पैराग्राफ 8)

8. अगर हम अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए सिर्फ तभी मेहनत करें, जब हमारा मन कर रहा हो, तो क्या हो सकता है? (तसवीर भी देखें।)

8 देखा जाए तो हम सबकी ज़िंदगी में कई ऐसे पल आते हैं, जब अपने लक्ष्य की तरफ कदम बढ़ाने की हमारी इच्छा ही नहीं होती। तो क्या हम कुछ भी नहीं कर सकते? नहीं, ऐसी बात नहीं है। ज़रा नाव के उदाहरण पर फिर से ध्यान दीजिए। नदी के बहाव में ज़बरदस्त ताकत होती है, जिससे एक नाव अपनी मंज़िल तक पहुँच पाती है। लेकिन कई बार बहाव तेज़ नहीं होता और कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि पानी एकदम रुक गया है। तो क्या ऐसे में नाविक आगे नहीं बढ़ सकता? ज़रूर बढ़ सकता है। कुछ नावों में मोटर लगी होती है, तो कुछ में चप्पू होते हैं। उनकी मदद से नाविक अपनी मंज़िल की तरफ आगे बढ़ता रह सकता है। अपना लक्ष्य हासिल करने की हमारी इच्छा भी नदी के बहाव की तरह कम या ज़्यादा हो सकती है। कभी शायद हमारा बहुत कुछ करने का मन करे, लेकिन कभी शायद कुछ भी करने की इच्छा ना हो। तो अगर हम यह सोचें कि जब हमारा मन करेगा तभी हम मेहनत करेंगे, तो शायद हम कभी अपना लक्ष्य हासिल ना कर पाएँ। इसलिए नाविक की तरह आगे बढ़ते रहने के लिए हम अलग-अलग तरीके अपना सकते हैं, फिर चाहे हमारा मन ना कर रहा हो। ऐसा करने के लिए शायद हमें खुद के साथ थोड़ी सख्ती बरतनी पड़े, पर जब हम अपना लक्ष्य हासिल कर लेंगे, तो हमें बहुत खुशी होगी। तो हम अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए क्या-क्या कर सकते हैं? यह जानने से पहले आइए एक ज़रूरी सवाल पर गौर करें।

9. जब अपना लक्ष्य हासिल करने की हममें इच्छा ही ना हो, क्या तब भी हमें इसके लिए मेहनत करनी चाहिए? समझाइए।

9 यहोवा चाहता है कि हम खुशी-खुशी और अपनी इच्छा से उसकी सेवा करें। (भज. 100:2; 2 कुरिं. 9:7) तो जब अपना लक्ष्य हासिल करने की हममें इच्छा ही ना हो, क्या तब भी हमें इसके लिए मेहनत करते रहनी चाहिए? ज़रा प्रेषित पौलुस के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। उसने कहा, “मैं अपने शरीर के साथ सख्ती बरतता हूँ और उसे एक दास बनाकर काबू में रखता हूँ।” (1 कुरिं. 9:25-27) पौलुस खुद के साथ सख्ती बरतता था और सही काम करता था, तब भी जब ऐसा करने का उसका मन नहीं करता था। क्या यहोवा पौलुस की सेवा से खुश था? बिलकुल। यहोवा ने उसकी मेहनत के लिए उसे इनाम भी दिया।—2 तीमु. 4:7, 8.

10. जब अपना लक्ष्य पाने के लिए मेहनत करने का हमारा मन ना हो, तब भी ऐसा करने से कौन-से फायदे हो सकते हैं?

10 उसी तरह अगर हम भी अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए मेहनत करते रहें, फिर चाहे हमारा मन ना कर रहा हो, तो यहोवा हमसे भी खुश होगा। वह इसलिए कि यहोवा को पता है कि कभी-कभी शायद किसी काम से  हमें लगाव ना हो, फिर भी हम वह कर रहे हैं, क्योंकि हमें उससे  लगाव है। जैसे यहोवा ने पौलुस को आशीष दी, वैसे ही वह हमारी मेहनत पर भी आशीष देगा। (भज. 126:5) और जब हम देखेंगे कि यहोवा हमारी मेहनत पर आशीष दे रहा है, तब शायद अपना लक्ष्य हासिल करने का हमारा मन करने लगे। पोलैंड में रहनेवाली बहन लुसिना कहती हैं, “कई बार प्रचार में जाने का मेरा मन नहीं करता, खासकर जब मैं थकी होती हूँ। फिर भी जब मैं प्रचार के लिए जाती हूँ, तो मुझे इतनी खुशी होती है कि मैं बता नहीं सकती।” तो आइए देखें कि जब अपना लक्ष्य हासिल करने की हमारी इच्छा कम होने लगे, तब हम क्या कर सकते हैं।

11. यहोवा खुद पर काबू रखने में कैसे हमारी मदद कर सकता है?

11 संयम बढ़ाने के लिए प्रार्थना कीजिए। संयम का मतलब है, अपनी भावनाओं और कामों पर काबू रखना। जब संयम या खुद पर काबू रखने की बात आती है, तो अकसर इसका मतलब होता है कि हम कोई बुरा काम करने से खुद को रोकना चाहते हैं। लेकिन संयम रखना तब भी ज़रूरी होता है, जब हमें सही काम करना हो, खासकर अगर वह काम मुश्‍किल हो या उसे करने का हमारा मन ना कर रहा हो। याद रखिए कि हम परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति की मदद से ही संयम बढ़ा सकते हैं, इसलिए यहोवा से पवित्र शक्‍ति के लिए प्रार्थना कीजिए। (लूका 11:13; गला. 5:22, 23) डेविड, जिसका पहले ज़िक्र किया गया था, निजी अध्ययन करने की अच्छी आदत डालना चाहता था। वह बताता है कि प्रार्थना करने से उसे कैसे मदद मिली। वह कहता है, “मैं बार-बार यहोवा से बिनती करता था कि खुद पर काबू करने में वह मेरी मदद करे। उसकी मदद से मैं निजी अध्ययन करने का एक अच्छा शेड्‌यूल बना पाया और उस पर बना भी रह पाया।”

12. सभोपदेशक 11:4 में दिए सिद्धांत पर ध्यान देने से हम कैसे अपना लक्ष्य हासिल कर पाएँगे?

12 यह मत सोचिए कि जब सबकुछ अच्छा होगा, तब कुछ करेंगे। इस दुनिया में शायद ऐसा वक्‍त कभी ना आए जब सबकुछ एकदम अच्छा हो। अगर हम अच्छे हालात का इंतज़ार करते रहें, तो शायद हम अपना लक्ष्य कभी हासिल नहीं कर पाएँगे। (सभोपदेशक 11:4 पढ़िए।) भाई डैनियल का कहना है, “ऐसा कभी नहीं होगा कि हालात एकदम अच्छे हों। इसलिए हमें इंतज़ार नहीं करना चाहिए, बस काम शुरू कर देना चाहिए।” युगांडा में रहनेवाले भाई पॉल एक और कारण बताते हैं कि हमें क्यों टाल-मटोल नहीं करनी चाहिए: “जब हम मुश्‍किल हालात में भी कोई काम शुरू करते हैं, तो हम यहोवा को आशीष देने का मौका दे रहे होते हैं।”—मला. 3:10.

13. शुरूआत में छोटे-छोटे लक्ष्य रखना क्यों अच्छा होता है?

13 पहले छोटे-छोटे लक्ष्य रखिए। हो सकता है, हमने जो लक्ष्य रखा हो उसे पूरा करना हमें बहुत मुश्‍किल लग रहा हो और इस वजह से उसके लिए मेहनत करने का हमारा मन ना करे। अगर आपके साथ भी ऐसा है, तो आपने जो लक्ष्य रखा है, उसे पाने के लिए कुछ छोटे-छोटे लक्ष्य रखिए। जैसे, अगर आपने कोई गुण बढ़ाने का लक्ष्य रखा है, तो आप चाहें तो पहले छोटे-छोटे तरीकों से वह गुण ज़ाहिर कर सकते हैं। या अगर आपने पूरी बाइबल पढ़ने का लक्ष्य रखा है, तो क्यों ना हर दिन थोड़ी देर के लिए ही बाइबल पढ़ने से शुरूआत करें? तोमाश ने, जिसका शुरूआत में ज़िक्र किया गया था, एक साल में बाइबल पढ़ने का लक्ष्य रखा था। पर वह उसे हासिल नहीं कर पा रहा था। वह कहता है, “मुझे एहसास हुआ कि मैं एक बार में कुछ ज़्यादा ही हिस्सा पढ़ने की कोशिश कर रहा था। इसलिए मैंने फिर से शुरू किया, पर इस बार मैंने हर दिन कुछ ही आयतें पढ़ने और उन पर मनन करने की सोची। फिर मुझे बाइबल पढ़ने में मज़ा आने लगा।” जब तोमाश को इसमें मज़ा आने लगा, तो वह ज़्यादा देर तक बाइबल पढ़ने लगा। आखिरकार उसने पूरी बाइबल पढ़ ली! b

जब रुकावटें आएँ, तो हार ना मानें

14. हमारे सामने कौन-सी रुकावटें आ सकती हैं?

14 अपना लक्ष्य हासिल करने की हममें कितनी भी इच्छा हो या हम अपने साथ कितनी भी सख्ती बरतें, कोई-न-कोई रुकावट आ ही जाती है। जैसे हो सकता है, अचानक कोई “मुसीबत की घड़ी” आ जाए, जिस वजह से हमारे पास अपना लक्ष्य हासिल करने का वक्‍त ही ना बचे। (सभो. 9:11) या हो सकता है कि हमें किसी मुश्‍किल का सामना करना पड़े, जिसकी वजह से हम निराश हो जाएँ और हममें बिलकुल ताकत ना रहे। (नीति. 24:10) इसके अलावा हम अपरिपूर्ण हैं, इसलिए शायद हमसे कोई गलती हो जाए, जिससे हम अपने लक्ष्य के करीब आने के बजाय और दूर चले जाएँ। (रोमि. 7:23) या शायद हम बहुत थक जाते हों। (मत्ती 26:43) अगर हमारे सामने ऐसी कोई रुकावट आती है, तो हम क्या कर सकते हैं?

15. अगर हमारे सामने कोई रुकावट आ जाए, तो क्या इसका यह मतलब है कि हम नाकाम हो गए हैं? समझाइए। (भजन 145:14)

15 रुकावटें आने का यह मतलब नहीं कि हम नाकाम हो गए हैं। बाइबल में बताया गया है कि हम बार-बार गिर सकते हैं यानी हमारे सामने मुश्‍किलें आ सकती हैं। लेकिन इसमें यह भी बताया गया है कि हम उठ सकते हैं, खासकर जब यहोवा हमारे साथ हो। (भजन 145:14 पढ़िए।) फिलिप, जिसका पहले ज़िक्र किया गया था, कहता है, “मैं अपनी कामयाबी इस बात से नहीं आँकता कि मैं कितनी बार गिरा, बल्कि इस बात से कि मैं कितनी बार उठकर अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ा।” डेविड जिसके बारे में हमने पहले देखा, कहता है, “मेरे सामने जब कोई रुकावट आती है, तो मैं यह नहीं सोचता कि अब मैं अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर पाऊँगा, बल्कि सोचता हूँ कि मुझे यहोवा को यह दिखाने का मौका मिला है कि मैं उससे कितना प्यार करता हूँ।” सच में, जब कोई रुकावट आने पर भी हम अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ते रहते हैं, तो इससे पता चलता है कि हम यहोवा को खुश करना चाहते हैं। सोचिए, जब यहोवा हमें मेहनत करते हुए देखता होगा, तो उसे कितनी खुशी होती होगी!

16. जब कोई रुकावट आती है, तो उससे शायद हमें क्या पता चले?

16 जब कोई रुकावट आए, तो उससे सबक लीजिए। सोचिए कि वह रुकावट क्यों आयी और फिर खुद से पूछिए, ‘मैं क्या कर सकता हूँ ताकि ऐसा फिर से ना हो?’ (नीति. 27:12) लेकिन कभी-कभी जब कोई रुकावट आती है, तो उससे शायद यह पता चले कि हमने जो लक्ष्य रखा है, वह हमारे हालात के हिसाब से सही नहीं है। अगर आपको भी ऐसा लगता है, तो अपने लक्ष्य के बारे में दोबारा सोचिए और देखिए कि क्या आप  उसे हासिल कर सकते हैं या नहीं। c याद रखिए, आपने जो लक्ष्य रखा था, अगर वह आपके बस के बाहर हो, तो यहोवा यह नहीं सोचेगा कि आप नाकाम हो गए हैं।—2 कुरिं. 8:12.

17. हमने अब तक जो-जो हासिल किया है, उसे क्यों याद रखना चाहिए?

17 आपने अब तक जो-जो किया है, उसे याद रखिए। बाइबल में लिखा है कि ‘परमेश्‍वर अन्यायी नहीं कि तुम्हारे काम भूल जाए।’ (इब्रा. 6:10) आपको भी अपने काम नहीं भूलने चाहिए। सोचिए कि आपने अब तक क्या-क्या हासिल किया है। जैसे आप यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बना पाए हैं, आप उसके बारे में दूसरों को बताते हैं या आपने बपतिस्मा लिया है। जिस तरह अब तक आपने तरक्की की है और अपने लक्ष्य हासिल किए हैं, उसी तरह आगे भी आप तरक्की करते रह सकते हैं और अपना लक्ष्य हासिल कर सकते हैं।—फिलि. 3:16.

सफर का मज़ा लीजिए (पैराग्राफ 18)

18. जब हम अपना लक्ष्य पाने के लिए मेहनत करते हैं, तो हमें क्या याद रखना चाहिए? (तसवीर भी देखें।)

18 जैसे एक नाविक अपनी मंज़िल तक पहुँचकर खुशी पाता है, वैसे ही आप भी यहोवा की मदद से अपना लक्ष्य हासिल कर सकते हैं  और खुशी पा सकते हैं। पर याद रखिए, कई नाविक सफर  का भी मज़ा लेते हैं। उसी तरह, जब आप अपना लक्ष्य पाने के लिए मेहनत करते हैं, तो ध्यान दीजिए कि यहोवा कैसे आपकी मदद कर रहा है और आपको आशीषें दे रहा है और इस बात से खुशी पाइए। (2 कुरिं. 4:7) अगर आप हिम्मत ना हारें, तो आप और भी आशीषें पाएँगे!—गला. 6:9.

गीत 126 जागते रहो, शक्‍तिशाली बनते जाओ

a हमें लगातार बढ़ावा दिया जाता है कि हम यहोवा की सेवा और अच्छी तरह करने के लिए कुछ लक्ष्य रखें। हो सकता है, हमने कोई लक्ष्य रखा हो, पर उसे पूरा करना हमें मुश्‍किल लग रहा हो। ऐसे में इस लेख में दिए सुझाव मानने से हम अपने लक्ष्य हासिल कर पाएँगे।

b परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए  किताब के पेज 10-11, पैरा. 5 पढ़ें।

c इस बारे में और जानने के लिए 15 जुलाई, 2008 की प्रहरीदुर्ग  में दिया लेख “अपने हालात के मुताबिक लक्ष्य रखिए और खुशी पाइए” पढ़ें।