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‘तेरे हाथ ढीले न पड़ें’

‘तेरे हाथ ढीले न पड़ें’

“तेरे हाथ ढीले न पड़ने पाएं।”—सप. 3:16.

गीत: 54, 32

1, 2. (क) आज कई लोग किन हालात का सामना करते हैं? (ख) इसका उन पर क्या असर होता है? (ग) यशायाह 41:10, 13 में हमें क्या यकीन दिलाया गया है?

एक पायनियर बहन, जिसका पति एक प्राचीन है, कहती है, “हम लगातार प्रचार और सभाओं में जाते हैं और बाइबल का अच्छा अध्ययन करते हैं। फिर भी, कई सालों से बीच-बीच में मुझ पर डर और चिंता हावी हो जाती है। इससे मेरी रातों की नींद उड़ जाती है और मेरी सेहत बिगड़ जाती है। इसका दूसरों के साथ मेरे व्यवहार पर भी असर पड़ता है। कभी-कभी तो मैं पूरी तरह हार मान लेती हूँ।”

2 इस बहन पर जो बीत रही है क्या आप उसे समझ सकते हैं? शैतान की इस दुनिया में जीना आसान नहीं है। ऐसे कई हालात उठते हैं जिनकी वजह से हम डर और चिंताओं से घिर जाते हैं। हो सकता है आपके किसी अपने की मौत हो गयी हो या आप किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हों। या फिर आर्थिक मंदी के इस दौर में परिवार के लिए रोज़ी-रोटी कमाना आपके लिए मुश्किल हो। यह भी हो सकता है कि आप अपने विश्वास की वजह से विरोध का सामना कर रहे हों। ऐसे में आप आसानी से हिम्मत हार सकते हैं। जिस तरह लंगर डालकर जहाज़ को ठहराया जाता है और वह आगे नहीं बढ़ पाता, उसी तरह डर और चिंताओं से शायद आपको लगे कि आपकी ज़िंदगी थम-सी गयी है। (नीति. 12:25) इस तरह चिंता करते रहने से आप पूरी तरह पस्त हो सकते हैं और आपकी खुशी भी छिन सकती है। लेकिन यकीन रखिए, परमेश्वर आपकी तरफ मदद का हाथ बढ़ाने के लिए हमेशा तैयार रहता है।—यशायाह 41:10, 13 पढ़िए।

3, 4. (क) बाइबल में “हाथ” का इस्तेमाल क्या समझाने के लिए किया गया है? (ख) किन हालात में हमारे हाथ ढीले पड़ सकते हैं?

3 बाइबल में अकसर शरीर के अंगों को अलग-अलग गुणों या कामों के बारे में समझाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसकी एक मिसाल है, “हाथ” जिसका ज़िक्र बाइबल में सैकड़ों बार आता है। जब बाइबल बताती है कि किसी का हाथ मज़बूत किया गया है तो इसका मतलब है कि उसे हिम्मत दी गयी है और वह कदम उठाने के लिए तैयार है। उदाहरण के लिए, ‘हाथ मज़बूत करना’ शब्दों का अनुवाद 1 शमूएल 23:16 में ‘ढाढ़स दिलाना’ और एज्रा 1:6 में ‘सहायता करना’ किया गया है। इसका यह भी मतलब हो सकता है कि एक व्यक्ति सही नज़रिया रखता है और उसे एक अच्छे कल की उम्मीद है।

4 बाइबल ऐसे लोगों के बारे में भी बताती है जिनके हाथ ढीले पड़ गए थे, यानी उनकी हिम्मत टूट गयी थी या वे उम्मीद खो बैठे थे। (2 इति. 15:7; इब्रा. 12:12) जब आप तनाव से गुज़रते हैं या थककर चूर हो जाते हैं या यहोवा के साथ आपका रिश्ता कमज़ोर पड़ जाता है, तो शायद आप हार मान बैठें। ऐसे में आपको कहाँ से हिम्मत मिल सकती है ताकि आप धीरज रख सकें और अपनी खुशी वापस पा सकें?

‘यहोवा का हाथ ऐसा छोटा नहीं कि उद्धार न कर सके’

5. (क) समस्या उठने पर आप कैसा महसूस कर सकते हैं? (ख) ऐसे में आपको क्या याद रखना चाहिए? (ग) हम इस लेख में क्या देखेंगे?

5 सपन्याह 3:16, 17 पढ़िए। जब कोई समस्या उठती है तो हमें अपने हाथ ढीले नहीं पड़ने देने चाहिए। यानी हमें डरना नहीं चाहिए, न ही हिम्मत हारनी चाहिए। हमारा प्यारा पिता यहोवा हमसे कहता है कि हम अपनी सारी चिंताओं का बोझ उसी पर डाल दें। (1 पत. 5:7) यहोवा हमारी उसी तरह परवाह करता है जिस तरह वह इसराएलियों की करता था। उसने उनसे कहा था, “यहोवा का हाथ ऐसा छोटा नहीं हो गया कि उद्धार न कर सके।” जी हाँ, यहोवा अपने वफादार सेवकों को बचाने के लिए हमेशा तैयार रहता है। (यशा. 59:1) इस लेख में हम बाइबल से तीन बढ़िया मिसालों पर गौर करेंगे जो दिखाती हैं कि यहोवा के लोगों पर चाहे कितनी भी बड़ी मुश्किल क्यों न आए, वह अपने लोगों की हिम्मत बँधाना चाहता है और ऐसा करने की उसके पास ताकत भी है। आइए देखें कि इन मिसालों से आपको कैसे हिम्मत मिल सकती है।

6, 7. इसराएलियों ने जिस तरह अमालेकियों को हराया उससे हम क्या सीख सकते हैं?

6 जब इसराएली मिस्र की गुलामी से आज़ाद हुए तो उसके फौरन बाद अमालेकी लोग उन पर हमला करने आए। मूसा ने दिलेर यहोशू से कहा कि वह इसराएली सेना लेकर अमालेकियों से युद्ध करने जाए। फिर मूसा हारून और हूर को लेकर पास की एक पहाड़ी पर गया जहाँ से युद्ध का मैदान दिखायी देता था। क्या वे तीनों डर के मारे युद्ध से भाग रहे थे? जी नहीं!

7 इसके बजाय, मूसा ने एक ऐसा काम किया जिससे इसराएलियों को जीत मिली। उसने सच्चे परमेश्वर की लाठी को स्वर्ग की तरफ उठाए रखा। जब तक वह हाथ ऊपर उठाए रखता, तब तक यहोवा इसराएलियों को अमालेकियों से युद्ध करने की ताकत देता। मगर जब उसके हाथ थक जाते और नीचे आने लगते तो अमालेकी जीतने लगते। यह देखकर हारून और हूर ने फौरन मूसा की मदद की। उन्होंने “एक पत्थर लेकर मूसा के नीचे रख दिया, और वह उस पर बैठ गया, और हारून और हूर एक एक अलंग में उसके हाथों को सम्भाले रहे; और उसके हाथ सूर्यास्त तक स्थिर रहे।” इस तरह इसराएली युद्ध जीत गए और इसके पीछे परमेश्वर का शक्तिशाली हाथ था।—निर्ग. 17:8-13.

8. (क) जब कूशी लोग यहूदा पर हमला करने आए तो आसा ने क्या किया? (ख) हम आसा की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

8 राजा आसा के दिनों में भी यहोवा ने अपना शक्तिशाली हाथ बढ़ाकर अपने लोगों की मदद की। बाइबल में कई सेनाओं के बारे में बताया गया है। मगर सबसे बड़ी सेना जेरह नाम के एक कूशी राजा की थी। उसकी सेना में 10 लाख वीर सैनिक थे। आसा की सेना के मुकाबले वे गिनती में दुगने थे। क्या यह देखकर आसा डर गया और चिंता करने लगा? क्या उसके हाथ ढीले पड़ गए? नहीं! आसा जिसका “मन जीवन भर यहोवा की ओर पूरी रीति से लगा” था, उसने मदद के लिए तुरंत यहोवा से प्रार्थना की। (1 राजा 15:14) इंसान के नज़रिए से देखें तो कूशियों से जीतना नामुमकिन था। “मगर परमेश्वर के लिए सबकुछ मुमकिन है।” (मत्ती 19:26) यहोवा ने अपनी ताकत से “कूशियों को आसा . . . के साम्हने मारा और कूशी भाग गए।”—2 इति. 14:8-13.

9. (क) यरूशलेम की शहरपनाह की हालत देखकर क्या नहेमायाह की हिम्मत टूट गयी? समझाइए। (ख) परमेश्वर ने कैसे नहेमायाह की प्रार्थना का जवाब दिया?

9 अब आइए नहेमायाह की मिसाल पर गौर करें। जब वह यरूशलेम आया तो उसने वहाँ क्या देखा? उसने देखा कि शहरपनाह टूटी पड़ी है और कोई भी आकर यरूशलेम पर हमला कर सकता है। जब यरूशलेम की शहरपनाह को दोबारा बनाने का काम शुरू हुआ, तो दुश्मन यहूदियों को धमकाने लगे ताकि वे यह काम रोक दें। इन धमकियों से यहूदियों के हाथ ढीले पड़ गए। मगर नहेमायाह के बारे में क्या? क्या उसकी भी हिम्मत टूट गयी और उसके हाथ ढीले पड़ गए? नहीं! वह मूसा, आसा और यहोवा के दूसरे वफादार सेवकों की तरह हमेशा यहोवा पर भरोसा रखता था। और इस बार भी उसने मदद के लिए यहोवा को पुकारा और यहोवा ने उसकी सुनी। परमेश्वर ने “बड़ी सामर्थ और बलवन्त हाथ” से यहूदियों की हिम्मत बँधायी। (नहेमायाह 1:10; 2:17-20; 6:9 पढ़िए।) क्या आप मानते हैं कि यहोवा आज भी अपनी “बड़ी सामर्थ और बलवन्त हाथ” से अपने सेवकों की हिम्मत बँधाता है?

यहोवा आपके हाथ मज़बूत करेगा

10, 11. (क) शैतान क्या करता है ताकि हमारे हाथ ढीले पड़ जाएँ? (ख) यहोवा कैसे हमें हिम्मत और ताकत देता है? (ग) यहोवा की शिक्षा से कैसे आपको फायदा हुआ है?

10 हम जानते हैं कि शैतान अपने हाथ कभी ढीले नहीं पड़ने देगा। वह हम पर लगातार हमला करेगा ताकि हम मसीही काम छोड़ दें। वह सरकारों, धर्म गुरुओं और परमेश्वर से बगावत करनेवालों के ज़रिए हमारे बारे में झूठ फैलाता है और हमें डराता-धमकाता है। वह चाहता है कि हम राज की खुशखबरी सुनाने का काम बंद कर दें। लेकिन हमें डरने की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि यहोवा हमारी मदद करने की ताकत रखता है और ऐसा करने की उसकी इच्छा भी है। वह अपनी पवित्र शक्ति देकर हमें मज़बूत करता है। (1 इति. 29:12) इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम परमेश्वर से उसकी पवित्र शक्ति माँगें ताकि हम शैतान और उसकी दुष्ट दुनिया से लड़ सकें। (भज. 18:39; 1 कुरिं. 10:13) परमेश्वर का वचन, बाइबल भी हमारी मदद कर सकती है। ज़रा यह भी सोचिए, हर महीने हम अपनी किताबों-पत्रिकाओं से कितना कुछ सीखते हैं। हालाँकि जकर्याह 8:9, 13 (पढ़िए) में लिखी बात तब कही गयी थी जब यरूशलेम के मंदिर को दोबारा बनाया जा रहा था, फिर भी इससे आज हमें बहुत हिम्मत मिल सकती है।

11 यहोवा एक और तरीके से हमारी हिम्मत बँधाता है। वह हमें मसीही सभाओं, सम्मेलनों, अधिवेशनों और मसीही स्कूलों के ज़रिए शिक्षा देता है। इस शिक्षा से हम यहोवा की सेवा सही इरादे से कर पाते हैं, अच्छे लक्ष्य रख पाते हैं और अपनी मसीही ज़िम्मेदारियाँ निभा पाते हैं। (भज. 119:32) क्या आप यहोवा की शिक्षा से हिम्मत पाने के लिए बेताब हैं?

12. मज़बूत बने रहने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

12 आज यहोवा कोई चमत्कार करके हमारी समस्याएँ दूर नहीं करता, मगर इनका सामना करने में वह हमारी मदद ज़रूर करता है। उसने अमालेकियों और कूशियों को हराने में इसराएलियों की मदद की। उसने नहेमायाह और दूसरे यहूदियों को ताकत दी ताकि वे यरूशलेम की शहरपनाह बनाने का काम पूरा कर सकें। उसी तरह परमेश्वर हमें भी ताकत देगा कि हम अपनी चिंताओं, विरोध और लोगों की बेरुखाई के बावजूद प्रचार काम करते रहें। (1 पत. 5:10) लेकिन हमें भी अपनी तरफ से कुछ करने की ज़रूरत है। हमें हर दिन परमेश्वर का वचन पढ़ना चाहिए। हमें हर हफ्ते सभाओं की तैयारी करनी चाहिए और उनमें हाज़िर होना चाहिए। हमें लगातार निजी बाइबल अध्ययन और पारिवारिक उपासना करनी चाहिए। हमें यहोवा से हमेशा प्रार्थना करनी चाहिए। यहोवा ने ये सारे इंतज़ाम हमें हिम्मत देने के लिए किए हैं। इसलिए आइए हम ठान लें कि हम किसी भी बात को इन कामों के आड़े आने नहीं देंगे। अगर आपको लगता है कि इनमें से किसी भी काम में आपके हाथ ढीले पड़ गए हैं तो परमेश्वर से मदद माँगिए। उसकी पवित्र शक्ति आपके ‘अंदर काम करेगी ताकि आपके अंदर इच्छा पैदा हो और आप उस पर अमल भी करें।’ (फिलि. 2:13) आप दूसरों के भी हाथ मज़बूत कर सकते हैं। कैसे?

ढीले हाथों को मज़बूत कीजिए

13, 14. (क) एक भाई जिसकी पत्नी की मौत हो चुकी थी, उसे कैसे हौसला मिला? (ख) हम दूसरों की हिम्मत कैसे बढ़ा सकते हैं?

13 यहोवा ने हमारा हौसला बढ़ाने के लिए एक और इंतज़ाम किया है। वह है दुनिया के अलग-अलग देशों में रहनेवाले मसीही भाई-बहन, जो हमारी परवाह करते हैं। प्रेषित पौलुस ने कहा, “ढीले हाथों और कमज़ोर घुटनों को मज़बूत करो। और अपने कदमों के लिए सीधा रास्ता बनाते रहो।” (इब्रा. 12:12, 13) पहली सदी के बहुत-से मसीहियों को मंडली के भाई-बहनों से इस तरह की मदद मिली। आज भी कई मसीहियों को ऐसी मदद मिलती है। एक भाई को ही लीजिए जिसने अपनी पत्नी को मौत में खो दिया और दूसरी कई मुश्किलों का सामना किया। यह भाई कहता है, “मैंने जान लिया है कि हम पर कैसी परीक्षाएँ आएँगी, कब आएँगी और कितनी बार आएँगी, यह तय करना हमारे हाथ में नहीं है। प्रार्थना और निजी अध्ययन ने मेरी डूबती नैया को पार लगाया है। मंडली के भाई-बहनों की मदद से भी मुझे बहुत दिलासा मिला। सबसे बढ़कर, मुझे यह एहसास हुआ है कि मुसीबतों के आने से पहले यहोवा के साथ एक मज़बूत रिश्ता बनाना कितना ज़रूरी है।”

मंडली में सभी एक-दूसरे का हौसला बढ़ा सकते हैं (पैराग्राफ 14 देखिए)

14 जब इसराएली अमालेकियों से लड़ रहे थे तब हारून और हूर ने मूसा के हाथों को सहारा देकर उन्हें मज़बूत किया था। आज हम भी दूसरों को सहारा देने और उनकी मदद करने के अलग-अलग तरीके ढूँढ़ सकते हैं। हमारे भाई-बहन कई तकलीफों से गुज़रते हैं। जैसे ढलती उम्र, खराब सेहत, परिवार से विरोध, अकेलापन और किसी अपने को मौत में खोना। हम नौजवानों की भी हिम्मत बँधा सकते हैं जिन पर गलत काम करने और इस दुनिया में नाम कमाने का दबाव आता है। (1 थिस्स. 3:1-3; 5:11, 14) जब आप अपने भाई-बहनों के साथ राज-घर में या प्रचार में होते हैं या फिर उनके साथ खाना खा रहे होते हैं या उनसे फोन पर बात कर रहे होते हैं, तो उनमें सच्ची दिलचस्पी लीजिए और उनका हौसला बढ़ाइए।

15. आपकी बढ़िया बातचीत का दूसरों पर क्या असर हो सकता है?

15 जब आसा ने कूशियों की बड़ी सेना पर ज़बरदस्त जीत हासिल की तो उसके बाद भविष्यवक्ता अजर्याह ने उसका और उसके लोगों का हौसला बढ़ाया। उसने कहा, “तुम लोग हियाव बान्धो और तुम्हारे हाथ ढीले न पड़ें, क्योंकि तुम्हारे काम का बदला मिलेगा।” (2 इति. 15:7) इससे आसा को इतना हौसला मिला कि उसने सच्ची उपासना को दोबारा शुरू करने के लिए कई कदम उठाए। आपकी बढ़िया बातचीत से भी दूसरों का हौसला बढ़ सकता है और उन्हें यहोवा की सेवा करते रहने की ताकत मिल सकती है। (नीति. 15:23) और यह मत भूलिए कि सभाओं में आपके अच्छे जवाबों से दूसरों को कितनी हिम्मत मिलती है।

16. (क) प्राचीन किस तरह नहेमायाह की मिसाल पर चल सकते हैं? (ख) बताइए कि भाई-बहनों ने कैसे आपकी मदद की है।

16 यहोवा ने नहेमायाह और दूसरे यहूदियों के हाथों को मज़बूत किया। इस वजह से उन्होंने सिर्फ 52 दिनों में ही यरूशलेम की पूरी शहरपनाह खड़ी कर दी! (नहे. 2:18; 6:15, 16) नहेमायाह ने बस खड़े-खड़े दूसरों को काम करते नहीं देखा। उसने भी शहरपनाह बनाने के काम में हाथ बँटाया। (नहे. 5:16) आज कई प्राचीन नहेमायाह की तरह हैं। वे निर्माण काम में हिस्सा लेते हैं या राज-घर की साफ-सफाई और उसके रख-रखाव में हाथ बँटाते हैं। ये प्यारे प्राचीन उन भाई-बहनों की भी हिम्मत बढ़ाते हैं जो चिंताओं से घिरे होते हैं। कैसे? वे उनके घर जाकर उनसे मिलते हैं और उनके साथ प्रचार में भी जाते हैं।—यशायाह 35:3, 4 पढ़िए।

‘तेरे हाथ ढीले न पड़ें’

17, 18. जब हम किसी समस्या का सामना करते हैं और चिंता करने लगते हैं, तो हम क्या यकीन रख सकते हैं?

17 जब हम भाई-बहनों के साथ मिलकर काम करते हैं तो हमारी एकता बढ़ती है और हम एक-दूसरे से गहरी दोस्ती कर पाते हैं। इसके अलावा, इस बात पर हमारा यकीन बढ़ता है कि परमेश्वर के राज के ज़रिए हमें आशीषें ज़रूर मिलेंगी। जब हम दूसरों के हाथ मज़बूत करते हैं तो हम उन्हें मुश्किल हालात का सामना करने में और एक अच्छे कल की उम्मीद बनाए रखने में मदद देते हैं। यही नहीं, दूसरों की मदद करने से खुद हमारे हाथ मज़बूत होते हैं और हमारा पूरा ध्यान भविष्य में मिलनेवाली आशीषों पर लगा रहता है।

18 जब हम याद करते हैं कि बीते कल में यहोवा ने कैसे अपने वफादार सेवकों की मदद और हिफाज़त की, तो उस पर हमारा विश्वास और भरोसा बढ़ जाता है। इसलिए जब आप किसी समस्या का सामना करते हैं और चिंता करने लगते हैं तो ‘अपने हाथ ढीले मत पड़ने दीजिए’! यहोवा से मदद माँगिए और यकीन रखिए कि वह अपने शक्तिशाली हाथ बढ़ाकर आपको ताकत देगा और भविष्य में अपने राज के ज़रिए आपको ढेरों आशीषें देगा।—भज. 73:23, 24.