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माता-पिताओ, अपने बच्चों को विश्वास बढ़ाने में मदद दीजिए

माता-पिताओ, अपने बच्चों को विश्वास बढ़ाने में मदद दीजिए

“हे जवानो और कुमारियो, . . . यहोवा के नाम की स्तुति करो।”—भज. 148:12, 13.

गीत: 41, 48

1, 2. (क) माता-पिताओं को किस चुनौती का सामना करना पड़ता है और वे यह कैसे करते हैं? (ख) अब हम कौन-से चार तरीकों पर गौर करेंगे?

फ्राँस के रहनेवाले एक माता-पिता ने कहा, “हम यहोवा पर विश्वास करते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हमारे बच्चे भी उस पर विश्वास करेंगे। विश्वास कोई ऐसी चीज़ नहीं जो विरासत में बच्चों को मिलती है। उन्हें धीरे-धीरे इसे बढ़ाना होता है।” ऑस्ट्रेलिया का रहनेवाला एक भाई कहता है, “अपने बच्चे के दिल में विश्वास बढ़ाना ज़िंदगी की सबसे बड़ी चुनौती है।” उसने यह भी कहा, “आपको शायद लगे कि आपने अपने बच्चे के सवाल का अच्छे-से जवाब दिया है। लेकिन कुछ ही समय बाद वह फिर से वही सवाल दाग देता है! आज जिन जवाबों से आपके बच्चे को तसल्ली मिल जाती है और उसका उत्सुक मन शांत हो जाता है, कल को वही जवाब शायद उसके लिए काफी न हों।” जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, माता-पिताओं को बार-बार एक ही विषय और खुलकर समझाना पड़ता है। उन्हें अपने बच्चों के दिल में यहोवा के लिए प्यार बढ़ाने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाने पड़ते हैं।

2 अगर आप एक माता या पिता हैं, तो क्या आपके मन में कभी-कभी यह खयाल आता है कि क्या मैं अपने बच्चों को ठीक से सिखा पा रहा हूँ ताकि वे बड़े होने पर भी यहोवा से प्यार करते रहें और उसकी सेवा करते रहें? दरअसल हममें से कोई भी यह अपने आप नहीं कर सकता। (यिर्म. 10:23) हमें यहोवा के मार्गदर्शन की ज़रूरत है। आइए ऐसे चार तरीकों पर गौर करें जिनसे आप अपने बच्चों को विश्वास बढ़ाने में मदद दे सकते हैं: (1) उन्हें अच्छी तरह जानिए, (2) आप यहोवा के बारे में जैसा महसूस करते हैं वह उन्हें बताइए, (3) उदाहरण देकर समझाइए और (4) पवित्र शक्ति के लिए प्रार्थना कीजिए और सब्र रखिए।

अपने बच्चों को अच्छी तरह जानिए

3. सिखाने के मामले में माता-पिता यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

3 यीशु अकसर अपने चेलों से पूछता था कि वे क्या मानते हैं। (मत्ती 16:13-15) आप भी उसकी मिसाल पर चल सकते हैं। अपने बच्चों से बात करते वक्‍त या उनके साथ मिलकर काम करते वक्‍त, उनसे पूछिए कि वे क्या सोचते हैं या कैसा महसूस करते हैं। अगर उनके मन में कोई शक या उलझन है तो उस बारे में भी उन्हें बताने दीजिए। ऑस्ट्रेलिया का रहनेवाला 15 साल का एक भाई कहता है, “पापा अकसर मुझसे मेरे विश्वास के बारे में बात करते हैं और मुझे तर्क करने में मदद देते हैं। वे पूछते हैं, ‘बाइबल क्या बताती है? क्या तुम उस पर विश्वास करते हो? क्यों विश्वास करते हो?’ वे नहीं चाहते कि मैं उनकी या मम्मी की बात दोहराऊँ। इसके बजाय वे चाहते हैं कि मैं अपने शब्दों में जवाब दूँ। जैसे-जैसे मैं बड़ा हो रहा हूँ मुझे और भी खुलकर जवाब देना होता है।”

4. माता-पिता को क्यों बच्चों के साथ सब्र रखना चाहिए और उनके सवालों के जवाब देने चाहिए? एक उदाहरण दीजिए।

4 अगर आपके बच्चे बाइबल की कुछ शिक्षाओं पर फौरन विश्वास नहीं करते तो सब्र रखिए। उन्हें अपने सवालों के जवाब ढूँढ़ने में मदद दीजिए। एक पिता कहता है, “अपने बच्चे के सवालों को गंभीरता से लीजिए। उन्हें बेतुका समझकर दरकिनार मत कीजिए और न ही ऐसे विषय को टालिए जिन पर बात करने से आप झिझक महसूस करते हैं।” दरअसल बच्चों का सवाल करना अच्छी बात है। यह दिखाता है कि फलाँ विषय उनके लिए अहमियत रखता है और वे उसे समझना चाहते हैं। यीशु जब 12 साल का था तो उसने भी सवाल पूछे थे। (लूका 2:46 पढ़िए।) डेनमार्क का रहनेवाला 15 साल का एक लड़का कहता है, “एक बार मैंने अपने माता-पिता से कहा कि पता नहीं यही सच्चा धर्म है या नहीं। यह सुनकर वे शायद अंदर-ही-अंदर चिंता करने लगे होंगे, फिर भी उन्होंने शांति से मेरी बात सुनी। उन्होंने बाइबल से मेरे सारे सवालों के जवाब दिए।”

5. अगर माता-पिता को लगता है कि बच्चों को यहोवा पर विश्वास है, फिर भी उन्हें क्या करना चाहिए?

5 अपने बच्चों को अच्छी तरह जानिए। यह मत मान लीजिए कि उन्हें यहोवा पर विश्वास है क्योंकि वे प्रचार और सभाओं में जाते हैं। पता लगाइए कि वे यहोवा के बारे में कैसा महसूस करते हैं और बाइबल के बारे में क्या सोचते हैं। यह जानने की पूरी कोशिश कीजिए कि यहोवा के वफादार बने रहने में उन्हें किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। हर दिन बच्चों के साथ मिलकर कुछ काम करते वक्‍त यहोवा के बारे में उनसे बात कीजिए। जब आप अपने बच्चों के साथ होते हैं या अकेले होते हैं तो उनके लिए प्रार्थना कीजिए।

आप यहोवा के बारे में जैसा महसूस करते हैं वह उन्हें बताइए

6. जब माता-पिता यहोवा और बाइबल के बारे में सीखते रहते हैं तो इससे उन्हें अपने बच्चों को सिखाने में कैसे मदद मिलती है?

6 यीशु को यहोवा और उसके वचन से प्यार था, इसलिए लोग उसकी बातें सुनना पसंद करते थे। उसे लोगों से भी प्यार था और लोग यह प्यार महसूस कर पाए, इसलिए वे उसकी बात ध्यान से सुनते थे। (लूका 24:32; यूह. 7:46) उसी तरह, जब आपके बच्चे देख पाएँगे कि आप यहोवा से प्यार करते हैं तो वे भी उससे प्यार करने लगेंगे। (व्यवस्थाविवरण 6:5-8; लूका 6:45 पढ़िए।) इसलिए बाइबल का अध्ययन करते रहिए और लगातार हमारी किताबें-पत्रिकाएँ पढ़िए। यहोवा ने जो कुछ बनाया है उसके बारे में और जानिए। (मत्ती 6:26, 28) आप यहोवा के बारे में जितना ज़्यादा जानेंगे उतना ज़्यादा आप अपने बच्चों को उसके बारे में सिखा पाएँगे।—लूका 6:40.

7, 8. (क) आप जब भी यहोवा के बारे में कुछ सीखते हैं तब आप क्या कर सकते हैं? (ख) कुछ माता-पिताओं ने यह कैसे किया है?

7 जब आप यहोवा के बारे में कुछ सीखते हैं तो उस बारे में अपने बच्चों को बताइए। ऐसा सिर्फ सभाओं की तैयारी करते वक्‍त या पारिवारिक उपासना करते वक्‍त मत कीजिए। जब भी मौका मिलता है उन्हें बताइए। अमरीका के रहनेवाले एक माता-पिता की मिसाल लीजिए। जब भी वे कोई खूबसूरत नज़ारा या कुदरत की कोई चीज़ देखते हैं या फिर लज़ीज़ खाना खा रहे होते हैं, तो वे बच्चों से यहोवा के बारे में बात करते हैं। वे कहते हैं, “हम अपने बच्चों को याद दिलाते हैं कि यहोवा ने कैसे प्यार से और सोच-समझकर हमें हर चीज़ दी है।” दक्षिण अफ्रीका के रहनेवाले एक माता-पिता जब अपनी दो बेटियों के साथ मिलकर बगीचे में काम करते हैं तो वे उनसे सृष्टि के बारे में बात करते। उदाहरण के लिए, वे बताते हैं कि एक बीज से पौधे का निकलना किसी अजूबे से कम नहीं। वे कहते हैं, “हम अपने बच्चों को यह सिखाने की कोशिश करते हैं कि सृष्टि की चीज़ों की बनावट बहुत ही जटिल और अनोखी है। हम उन्हें यह भी सिखाते हैं कि वे जीवन को अनमोल समझें।”

8 ऑस्ट्रेलिया का रहनेवाला एक पिता अपने 10 साल के बेटे को एक म्यूज़ियम ले गया। उसने इस मौके का फायदा उठाकर अपने बेटे का विश्वास मज़बूत किया और उसे ऐसी चीज़ें दिखायीं जिनसे साबित होता है कि यहोवा ही सृष्टिकर्ता है। उसने कहा, “हमने वहाँ दो समुद्री-जीव देखे, अम्मोनी और ट्राइलोबाइट जो लुप्त हो चुके थे। हम उन्हें देखकर हैरान रह गए क्योंकि वे बहुत सुंदर थे और उनकी पूरी बनावट उतनी ही जटिल थी जितनी आज पाए जानेवाले जीवों की है। तो अगर विकासवाद माननेवाले यह कहते हैं कि एक सरल जीव जटिल जीव में बदल गया, तो पुराने ज़माने के ये जीव इतने जटिल क्यों थे? यह बात मेरे दिल को छू गयी और मैंने इस बारे में अपने बेटे को बताया।”

उदाहरण देकर समझाइए

9. (क) उदाहरण देकर समझाना क्यों अच्छा है? (ख) एक माँ ने कौन-सा उदाहरण दिया?

9 यीशु अकसर मिसालें देकर समझाता था। वह ज़रूरी सबक सिखाने के लिए कहानी बताता था या उदाहरण देता था। (मत्ती 13:34, 35) जब आप कोई उदाहरण देते हैं तो बच्चे कल्पना कर पाते हैं। आप उन्हें जो बात सिखाना चाहते हैं उस बारे में वे सोच पाते हैं, उसे अच्छी तरह समझ पाते हैं और याद रख पाते हैं। यही नहीं, इस तरह उन्हें सीखने में मज़ा भी आता है। जापान की रहनेवाली एक माँ की मिसाल लीजिए। वह अपने दो बेटों को यह सिखाना चाहती थी कि यहोवा ने धरती का जो वायुमंडल बनाया है, उससे कैसे पता चलता है कि वह हमारी परवाह करता है। उसका एक बेटा 8 साल का था और दूसरा 10 साल का। इसलिए उसने ऐसा उदाहरण दिया जो वे आसानी से समझ सकें। उसने अपने बेटों को दूध, शक्कर और कॉफी दी और उनसे कहा कि वे उसके लिए कॉफी बनाएँ। वह बताती है, “वे बड़े ध्यान से कॉफी बनाने लगे। जब मैंने उनसे पूछा कि तुम इतने ध्यान से कॉफी क्यों बना रहे हो, तो उन्होंने कहा कि हम ठीक वैसी ही कॉफी बनाना चाहते थे जैसी आपको पसंद है। फिर मैंने उन्हें समझाया कि परमेश्वर ने भी बड़े ध्यान से अलग-अलग गैसों को मिलाकर वायुमंडल बनाया, ठीक वैसा जैसा हमें चाहिए।” उसके बेटों को यह सबक सीखने में बड़ा मज़ा आया और वे इसे कभी नहीं भूले।

आप आसानी से समझ आनेवाले उदाहरण देकर बच्चों को सिखा सकते हैं कि एक सृष्टिकर्ता है (पैराग्राफ 10 देखिए)

10, 11. (क) एक सृष्टिकर्ता है, यह समझाने के लिए आप कौन-सा उदाहरण दे सकते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) आपने किन उदाहरणों का इस्तेमाल किया है?

10 अपने बच्चों को यह समझाने के लिए कि एक सृष्टिकर्ता है, आप कौन-सा उदाहरण दे सकते हैं? आप अपने बच्चे के साथ मिलकर एक सब्ज़ी बना सकते हैं। आप उसे समझा सकते हैं कि रेसिपी के हिसाब से सब्ज़ी बनाना क्यों ज़रूरी है। इसके बाद अपने बच्चे को एक सेब या कोई और फल दीजिए जिसमें बीज हो। उससे पूछिए, “क्या आप जानते हैं, इस सेब को बनाने की भी एक रेसिपी है?” फिर सेब को काटिए और बच्चे को उसका बीज दीजिए। उसे समझाइए कि सेब बनाने की रेसिपी इस बीज में है। इसमें वे सारी बातें लिखी हैं जो एक सेब बनाने के लिए चाहिए। लेकिन ये बातें सब्ज़ी बनाने की रेसिपी से भी बहुत मुश्किल हैं। आप पूछ सकते हैं, “इस सब्ज़ी की रेसिपी ज़रूर किसी ने लिखी है, तो फिर सेब की रेसिपी किसने लिखी?” अगर आपके बच्चे बड़े हैं तो आप उन्हें समझा सकते हैं कि सेब के डी.एन.ए. में सेब के पेड़ और उस पर लगनेवाले सारे फलों को बनाने की हिदायतें दी होती हैं। आप चाहें तो उन्हें ब्रोशर जीवन की शुरूआत—पाँच सवाल जवाब जानना ज़रूरी के पेज 10-20 पर दी तसवीरें और मिसालें भी दिखा सकते हैं।

11 कई माता-पिता अपने बच्चों के साथ सजग होइए! की यह श्रृंखला “क्या इसे रचा गया था?” पढ़ते हैं। अगर बच्चे बहुत छोटे हैं तो माता-पिता इन लेखों में दी जानकारी को आसान शब्दों में समझा सकते हैं। डेनमार्क के रहनेवाले एक माता-पिता को लीजिए। उन्होंने हवाई जहाज़ की तुलना चिड़ियों से की। उन्होंने कहा, “हवाई जहाज़ चिड़ियों की तरह दिखते हैं। मगर क्या हवाई जहाज़ अंडे दे सकते हैं जिनसे छोटे-छोटे हवाई जहाज़ निकलें? जब चिड़ियाँ ज़मीन पर उतरती हैं तो क्या उन्हें किसी हवाई अड्डे की ज़रूरत होती है? क्या हवाई जहाज़ का शोर, चिड़ियों के गाने जैसा होता है? अब बताओ कौन ज़्यादा बुद्धिमान है, हवाई जहाज़ को बनानेवाला या चिड़ियों को बनानेवाला?” जब आप इस तरह के सवाल पूछकर बच्चों के साथ तर्क करेंगे तो आप उनकी सोचने-परखने की शक्ति बढ़ा रहे होंगे। और इससे यहोवा पर उनका विश्वास भी मज़बूत होगा।—नीति. 2:10-12.

12. आप कौन-से उदाहरण देकर बच्चों को यह समझा सकते हैं कि बाइबल जो भी कहती है वह एकदम सही है?

12 आप अपने बच्चे को यह समझाने के लिए भी उदाहरण दे सकते हैं कि बाइबल जो भी बताती है वह एकदम सही है। जैसे, आप अय्यूब 26:7 पढ़ सकते हैं। (पढ़िए।) इसे पढ़ने के बाद बस यह मत कहिए कि यह बात यहोवा की तरफ से है बल्कि अपने बच्चे को कल्पना करने में मदद दीजिए। आप कह सकते हैं कि अय्यूब के समय में लोग शायद यह नहीं मानते थे कि पृथ्वी अंतरिक्ष में बिना सहारे के घूम रही है। वे जानते थे कि गेंद या पत्थर जैसी कोई भी चीज़ हवा में नहीं लटक सकती। वह किसी-न-किसी चीज़ पर रखी होती है। और किसी ने यह साबित भी नहीं किया था कि पृथ्वी अंतरिक्ष में बिना किसी सहारे के घूम रही है, क्योंकि उस ज़माने में दूरबीन या अंतरिक्ष-यान नहीं हुआ करते थे। सबक यह है कि हालाँकि बाइबल बहुत समय पहले लिखी गयी, फिर भी इसमें बिलकुल सही बातें लिखी हैं क्योंकि बाइबल यहोवा की तरफ से है।—नहे. 9:6.

उन्हें सिखाइए कि बाइबल की सलाह मानना क्यों फायदेमंद है

13, 14. माता-पिता अपने बच्चों को बाइबल की बात मानना कैसे सिखा सकते हैं?

13 बच्चों को यह सिखाना भी ज़रूरी है कि बाइबल की बात मानकर ही वे अपनी ज़िंदगी में खुश रह सकते हैं। (भजन 1:1-3 पढ़िए।) उदाहरण के लिए, आप अपने बच्चों से कह सकते हैं, ‘मान लो आप एक टापू पर रहने जा रहे हैं और आप अपने साथ कुछ लोगों को भी ले जाना चाहते हैं। आप किन्हें अपने साथ ले जाएँगे? क्या आप ऐसे लोगों को नहीं ले जाएँगे, जिनमें अच्छे गुण हो और जो सबके साथ मिल-जुलकर रहते हैं?’ इसके बाद आप गलातियों 5:19-23 पढ़ सकते हैं और बच्चों को समझा सकते हैं कि यहोवा नयी दुनिया में किस तरह के लोगों को रखेगा।

14 इस तरह आप अपने बच्चों को दो ज़रूरी सबक सिखा पाएँगे। पहला, यहोवा हमें सिखा रहा है कि आज हम कैसे एक खुशहाल ज़िंदगी जी सकते हैं और सबके साथ शांति बनाए रख सकते हैं। दूसरा, वह हमें नयी दुनिया में जीने के लिए अभी से तैयार कर रहा है। (यशा. 54:13; यूह. 17:3) आप अपने बच्चों को यह भी बता सकते हैं कि बाइबल से कैसे हमारे भाई-बहनों को मदद मिली है। आप हमारी किताबें-पत्रिकाओं से भाई-बहनों की जीवन-कहानी ढूँढ़कर उन्हें बता सकते हैं। जैसे प्रहरीदुर्ग के लेख “पवित्र शास्त्र सँवारे ज़िंदगी” में कई जीवन-कहानियाँ दी होती हैं। या फिर आप मंडली के किसी भाई या बहन से कह सकते हैं कि वह आपको और आपके बच्चों को बताए कि बाइबल की मदद से कैसे उसने अपनी ज़िंदगी में बड़े-बड़े बदलाव किए और यहोवा को खुश किया।—इब्रा. 4:12.

15. क्या बात आपको अपने बच्चों को मज़ेदार तरीके से सिखाने में मदद दे सकती है?

15 बच्चों को दिलचस्प और मज़ेदार तरीके से सिखाने के लिए अपनी कल्पना शक्ति का इस्तेमाल कीजिए। नए-नए तरीके सोचिए ताकि यहोवा के बारे में सीखने और उसके करीब आने में उन्हें मज़ा आए। चाहे बच्चे बड़े भी हो जाएँ, ऐसा करते रहिए। एक पिता कहता है, “पुराने विषयों को नए तरीके से सिखाना बंद मत कीजिए।”

यहोवा से पवित्र शक्ति माँगिए और सब्र रखिए

16. (क) बच्चों को सिखाते वक्‍त सब्र रखना क्यों ज़रूरी है? (ख) कुछ माता-पिता कैसे अपने बच्चों के साथ सब्र से पेश आए?

16 परमेश्वर की पवित्र शक्ति से आपके बच्चों का विश्वास मज़बूत हो सकता है। (गला. 5:22, 23) मगर इसमें वक्‍त लगता है। इसलिए अपने बच्चों के साथ सब्र से पेश आइए और उन्हें सिखाते रहिए। जापान का रहनेवाला एक पिता, जिसके एक बेटा और एक बेटी है, कहता है, “मैंने और मेरी पत्नी ने अपने बच्चों पर बहुत ध्यान दिया। जब वे बहुत छोटे थे तभी से मैं हर दिन 15 मिनट के लिए उनके साथ अध्ययन करता था, सिर्फ उन दिनों को छोड़कर जब हमारी सभाएँ होती थीं। पंद्रह मिनट बैठकर अध्ययन करना, न उनके लिए मुश्किल था और न ही हमारे लिए।” एक सर्किट निगरान लिखता है, “जब मैं एक किशोर था तब मेरे मन में इतने सवाल और उलझनें थीं कि मैं बता नहीं सकता। मगर धीरे-धीरे सभाओं में, पारिवारिक अध्ययन और निजी अध्ययन में मुझे मेरे सवालों के जवाब मिलते गए और मेरी सारी उलझनें दूर हो गयीं। इसलिए माता-पिताओं के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि वे अपने बच्चों को सिखाते रहें।”

अपने बच्चों को अच्छी तरह सिखाने के लिए ज़रूरी है कि आप परमेश्वर के वचन से प्यार करें (पैराग्राफ 17 देखिए)

17. (क) माता-पिताओं को क्यों अपना विश्वास मज़बूत करते रहना चाहिए? (ख) बरमूडा के रहनेवाले एक माता-पिता कैसे अपनी बेटियों को यहोवा पर विश्वास करने में मदद देते हैं?

17 माता-पिता जो करते हैं बच्चे भी अकसर वही करना सीखते हैं। इसलिए माता-पिताओ, अपना विश्वास मज़बूत करते रहिए। अपने बच्चों को दिखाइए कि यहोवा आपके लिए कितना असल है। जब वे देखेंगे कि आपको यहोवा पर मज़बूत विश्वास है तो वे भी अपना विश्वास मज़बूत करना सीखेंगे। बरमूडा में एक माता-पिता जब भी किसी बात को लेकर परेशान होते हैं, तो वे अपनी बेटियों के साथ मिलकर प्रार्थना करते हैं और यहोवा से मार्गदर्शन माँगते हैं। इसके अलावा, वे अपनी बेटियों से कहते हैं कि वे खुद भी इस बारे में प्रार्थना करें। वे बताते हैं, “हम अपनी बड़ी बेटी से यह भी कहते हैं, ‘यहोवा पर पूरा भरोसा रखो, राज की सेवा में लगे रहो और ज़्यादा चिंता मत करो।’ इसके बाद जो भी नतीजा निकलता है उसे देखकर वह समझ पाती है कि यहोवा हमारी मदद कर रहा है। इस तरह परमेश्वर और बाइबल पर उसका विश्वास बहुत मज़बूत हुआ है।”

18. माता-पिताओं को क्या याद रखना चाहिए?

18 माता-पिताओ, याद रखिए कि आप अपने बच्चों के साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती करके उनका विश्वास नहीं बढ़ा सकते। आप सिर्फ विश्वास का पौधा लगा सकते हैं और उसे पानी दे सकते हैं, मगर यहोवा है जो उसे बढ़ाता है। (1 कुरिं. 3:6) इसलिए अपने प्यारे बच्चों को यहोवा के बारे में सिखाने में मेहनत कीजिए और उनमें विश्वास पैदा करने के लिए यहोवा से पवित्र शक्ति माँगिए। यकीन रखिए कि यहोवा आपकी कड़ी मेहनत पर ज़रूर आशीष देगा।—इफि. 6:4.