“परमेश्वर का वचन . . . ज़बरदस्त ताकत रखता है”
“परमेश्वर का वचन जीवित है और ज़बरदस्त ताकत रखता है।”—इब्रा. 4:12.
गीत: 37, 13
1. क्या बात आपको यकीन दिलाती है कि परमेश्वर का वचन ज़बरदस्त ताकत रखता है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
यहोवा का वचन यानी उसका संदेश “जीवित है और ज़बरदस्त ताकत रखता है।” (इब्रा. 4:12) हमें इस बात का पूरा यकीन है क्योंकि हममें से कइयों ने देखा है कि कैसे बाइबल ने हमारी ज़िंदगी की कायापलट की है। साक्षी बनने से पहले कुछ लोग चोरी करते थे, ड्रग्स लेते थे या बदचलन ज़िंदगी जीते थे। दूसरे ऐसे थे जिनके पास नाम, पैसा, शोहरत सबकुछ था, फिर भी उन्हें ज़िंदगी में एक अजीब-सा खालीपन लगता था। (सभो. 2:3-11) जी हाँ, जिन लोगों के पास कोई आशा नहीं थी, उन्हें अब बाइबल की बदौलत जीने की वजह मिली है। प्रहरीदुर्ग पत्रिका में हमने “पवित्र शास्त्र सँवारे ज़िंदगी” श्रृंखला-लेख में ऐसे कई भाई-बहनों के अनुभव पढ़े हैं। लेकिन मसीही बनने के बाद भी ज़रूरी है कि हम बाइबल की मदद लेते रहें और यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत करते रहें।
2. परमेश्वर के वचन ने पहली सदी के लोगों पर क्या असर किया?
2 जब लोग सच्चाई सीखकर अपनी ज़िंदगी में बड़े-बड़े बदलाव करते हैं तो हमें हैरानी नहीं होती। क्यों नहीं? क्योंकि पहली सदी में भी ऐसे अभिषिक्त भाई-बहन थे जिन्होंने अपनी ज़िंदगी की कायापलट की थी। (1 कुरिंथियों 6:9-11 पढ़िए।) गौर कीजिए, जब पौलुस ऐसे लोगों की बात कर रहा था जो परमेश्वर के राज के वारिस नहीं होंगे, तब उसने अभिषिक्त भाई-बहनों से कहा, “तुममें से कुछ लोग पहले ऐसे ही काम करते थे।” परमेश्वर के वचन और उसकी पवित्र शक्ति की मदद से ये मसीही अपने अंदर बड़े-बड़े बदलाव कर पाए। लेकिन बाद में कुछ मसीहियों ने गंभीर पाप किए और यहोवा के साथ उनका रिश्ता खतरे में पड़ गया। बाइबल में ऐसे ही एक अभिषिक्त भाई के बारे में बताया गया है जिसका बहिष्कार किया गया था। मगर बाद में उसने पश्चाताप किया और वह वापस मंडली का सदस्य बन गया। (1 कुरिं. 5:1-5; 2 कुरिं. 2:5-8) सच, परमेश्वर के वचन में ज़बरदस्त ताकत है और यह जानकर हमें हिम्मत मिलती है कि भाई-बहन इसकी मदद से अपनी ज़िंदगी सँवार पाए हैं।
3. इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?
3 परमेश्वर के वचन में बहुत ताकत है। उसने अपना वचन हमें दिया है इसलिए हमें इसका अच्छा इस्तेमाल करना चाहिए। (2 तीमु. 2:15) इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि आगे बताए पहलुओं में हम कैसे बाइबल का अच्छा इस्तेमाल कर सकते हैं: (1) अपनी ज़िंदगी में, (2) प्रचार सेवा में और (3) स्टेज से सिखाते वक्त। हम जानेंगे कि हमारा पिता यहोवा हमारे भले के लिए हमें सिखाता है और उसके लिए हमारा प्यार और कदरदानी और भी बढ़ेगी।—यशा. 48:17.
अपनी ज़िंदगी में
4. (क) अगर हम चाहते हैं कि परमेश्वर का वचन हम पर गहरा असर करे तो हमें क्या करना चाहिए? (ख) आप बाइबल पढ़ने के लिए कब वक्त निकालते हैं?
4 अगर हम चाहते हैं कि परमेश्वर का वचन हम पर गहरा असर करे तो हमें इसे नियमित तौर पर पढ़ना चाहिए, हो सके तो हर दिन पढ़ना चाहिए। (यहो. 1:8) हममें से ज़्यादातर लोग बहुत व्यस्त रहते हैं और हमारे पास कई ज़िम्मेदारियाँ होती हैं। मगर कोई भी बात हमें बाइबल पढ़ने से नहीं रोकनी चाहिए। (इफिसियों 5:15, 16 पढ़िए।) कई भाई-बहन बाइबल पढ़ने के लिए वक्त निकालते हैं। कुछ इसे सुबह के वक्त पढ़ते हैं, तो कुछ शायद दिन के वक्त या रात में। वे भजन के लेखक की तरह महसूस करते हैं, जिसने लिखा, “मैं तेरे कानून से कितना प्यार करता हूँ! सारा दिन उस पर गहराई से सोचता हूँ।”—भज. 119:97.
5, 6. (क) हमें मनन क्यों करना चाहिए? (ख) मनन से ज़्यादा-से-ज़्यादा फायदा पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए? (ग) बाइबल पढ़ने और उस पर मनन करने से आपको क्या फायदा हुआ है?
5 लेकिन सिर्फ बाइबल पढ़ना काफी नहीं। हमें मनन भी करना चाहिए यानी हम जो पढ़ते हैं, उस पर गहराई से सोचना चाहिए। (भज. 1:1-3) तभी हम बाइबल की बुद्धि-भरी बातों को अपने जीवन में लागू कर पाएँगे और इससे हमें फायदा होगा। चाहे हमारे पास बाइबल की छपी हुई कॉपी हो या इलेक्ट्रॉनिक कॉपी, हम चाहते हैं कि जब हम इसे पढ़ें तो इसकी बातें हमारे दिल में उतरकर हमें सही कदम उठाने के लिए उभारें।
6 मनन से हमें ज़्यादा-से-ज़्यादा फायदा हो, इसके 2 कुरिं. 10:4, 5.
लिए हमें क्या करना चाहिए? बाइबल का एक हिस्सा पढ़ने के बाद हमें थोड़ा रुककर खुद से पूछना चाहिए, ‘इन आयतों से मैंने यहोवा के बारे में क्या सीखा? मैं सीखी बातों को किस तरह अपनी ज़िंदगी में लागू कर रहा हूँ? मुझे और कहाँ सुधार करना है?’ जब हम परमेश्वर के वचन पर इस तरह मनन करते हैं और इस बारे में प्रार्थना करते हैं, तो हमारा मन हमें उभारेगा कि हम इसकी बातों को लागू करें। तब हम अनुभव कर पाएँगे कि बाइबल सचमुच हमारी ज़िंदगी पर ज़बरदस्त असर करती है।—प्रचार सेवा में
7. प्रचार में हम किस तरह परमेश्वर के वचन का अच्छा इस्तेमाल कर सकते हैं?
7 यह ज़रूरी है कि हम प्रचार में और सिखाते वक्त परमेश्वर के वचन का ज़्यादा-से-ज़्यादा इस्तेमाल करें। एक भाई ने कहा, “मान लीजिए, खुद यहोवा आपके साथ घर-घर के प्रचार में जा रहा है। ऐसे में, क्या आप ही बात करते रहेंगे या उसे भी बात करने देंगे?” भाई के कहने का मतलब था कि जब हम किसी व्यक्ति को बाइबल की कोई आयत दिखाते हैं, तो यह ऐसा है मानो हम यहोवा को बात करने दे रहे हैं। एक व्यक्ति पर हमारी बातों से ज़्यादा परमेश्वर के वचन का असर होता है, खासकर तब जब हम सोच-समझकर कोई आयत दिखाते हैं। (1 थिस्स. 2:13) जब आप प्रचार में होते हैं तो क्या आप बाइबल से आयत पढ़ने के मौके ढूँढ़ते हैं?
8. प्रचार में सिर्फ कोई आयत पढ़कर सुनाना काफी क्यों नहीं है?
8 प्रचार में सिर्फ बाइबल से कोई आयत पढ़कर सुनाना काफी नहीं। ज़्यादातर लोग बाइबल की बातों को नहीं समझते। पहली सदी में यह बात सच थी और आज भी सच है। (रोमि. 10:2) हमें यह नहीं मान लेना चाहिए कि हमने जो आयत पढ़ी है, उसे सुनकर घर-मालिक अपने आप उसका मतलब समझ जाएगा। तो फिर हम क्या कर सकते हैं? आयत पढ़ने के बाद हम उसके खास शब्दों या विचारों को दोहरा सकते हैं और फिर उनका मतलब समझा सकते हैं। इस तरह परमेश्वर का वचन लोगों के दिलो-दिमाग पर गहरा असर करेगा।—लूका 24:32 पढ़िए।
9. आयत पढ़ने से पहले हम क्या कह सकते हैं जिससे लोग बाइबल में लिखी बात पर ध्यान दें? एक उदाहरण दीजिए।
9 आयत पढ़ने से पहले हम जो कहते हैं, उस पर भी ध्यान देना ज़रूरी है। इससे बाइबल के बारे में लोगों के रवैए पर असर पड़ता है। मिसाल के लिए, हम कह सकते हैं, “ध्यान दीजिए कि हमारा सृष्टिकर्ता इस बारे में क्या कहता है।” या किसी गैर-ईसाई से बात करते वक्त हम कह सकते हैं, “आइए देखें कि पवित्र शास्त्र में क्या लिखा है।” या अगर एक व्यक्ति को धर्म में कोई दिलचस्पी नहीं, तो हम उससे पूछ सकते हैं, “क्या आपने पुराने ज़माने की यह जानी-मानी बात कभी सुनी है?” जी हाँ, जब हम हर व्यक्ति के धर्म और विश्वास को ध्यान में रखेंगे, तो हम इस तरह बात कर पाएँगे जिससे वह हमारी बात ध्यान से सुने।—1 कुरिं. 9:22, 23.
10. (क) एक भाई को प्रचार में क्या अनुभव हुआ? (ख) क्या आपने खुद प्रचार में देखा है कि कैसे परमेश्वर का वचन लोगों पर ज़बरदस्त असर करता है?
10 कई भाई-बहनों ने देखा है कि प्रचार में परमेश्वर का वचन इस्तेमाल करने से ज़बरदस्त असर होता है। उदाहरण के लिए, एक भाई एक ऐसे बुज़ुर्ग आदमी के पास वापसी भेंट करने गया, जिसने कई सालों तक हमारी पत्रिकाएँ पढ़ी थीं। लेकिन इस बार भाई ने उसे प्रहरीदुर्ग की नयी पत्रिका देने के अलावा एक आयत भी पढ़कर सुनायी। उसने 2 कुरिंथियों 1:3, 4 पढ़ा जहाँ परमेश्वर के बारे में लिखा है, “वह कोमल दया का पिता है और हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्वर है। वह हमारी सब परीक्षाओं में हमें दिलासा देता है।” ये शब्द उस बुज़ुर्ग आदमी के दिल को इस कदर छू गए कि उसने भाई को वे आयतें दोबारा पढ़ने के लिए कहा। फिर उसने भाई से कहा, “आपको पता है, मुझे और मेरी पत्नी को इसी दिलासे की ज़रूरत थी।” इस आयत की वजह से उस आदमी में बाइबल के बारे में और जानने की इच्छा जागी। सच, प्रचार में परमेश्वर का वचन लोगों पर ज़बरदस्त असर करता है!—प्रेषि. 19:20.
स्टेज से सिखाते वक्त
11. स्टेज से सिखाते वक्त भाइयों को किस बात का ध्यान रखना चाहिए?
11 हमें अपनी सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में हाज़िर होना बहुत अच्छा लगता है। हम वहाँ खासकर यहोवा की उपासना करने जाते हैं। यही नहीं, हम वहाँ जो सीखते हैं उससे हमें फायदा भी होता है। इसलिए जिन भाइयों को सिखाने की ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है, यह उनके लिए न सिर्फ एक बड़ा सम्मान है बल्कि एक गंभीर ज़िम्मेदारी भी है। (याकू. 3:1) स्टेज से सिखाते वक्त भाइयों को ध्यान रखना चाहिए कि वे जो भी सिखाते हैं वह परमेश्वर के वचन पर आधारित हो। अगर आपके पास सिखाने का सम्मान है, तो आप कैसे बाइबल का इस्तेमाल करके अपने सुननेवालों के दिल तक पहुँच सकते हैं?
12. एक वक्ता कैसे इस बात का ध्यान रख सकता है कि बाइबल ही उसके भाषण की बुनियाद हो?
12 हर भाषण की बुनियाद बाइबल होनी चाहिए। (यूह. 7:16) इसलिए ध्यान रखिए कि आप जिस तरीके से भाषण देते हैं, जो अनुभव और उदाहरण बताते हैं, उनसे सुननेवालों का ध्यान बाइबल से न भटक जाए। यह भी याद रखिए कि बाइबल से पढ़ना एक बात है और बाइबल से सिखाना अलग बात है। अगर आप अपने भाषण में ढेर सारी आयतें पढ़ें, तो सुननेवाले उन्हें याद नहीं रख पाएँगे। तो फिर सोच-समझकर चुनिए कि आप कौन-सी आयतें इस्तेमाल करना चाहेंगे। फिर उन्हें पढ़िए, उनका मतलब बताइए, उदाहरण देकर उन्हें समझाइए और बताइए कि उन्हें कैसे लागू करें। (नहे. 8:8) जब आप किसी आउटलाइन से भाषण देते हैं, तो उसका और उसमें दी आयतों का अध्ययन कीजिए। यह देखने की कोशिश कीजिए कि आउटलाइन में दिए मुद्दों का आयतों से क्या ताल्लुक है। फिर चुनिंदा आयतों का इस्तेमाल करके मुद्दों को समझाइए। (परमेश्वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए किताब के अध्याय 21 से 23 में इस बारे में अच्छे सुझाव दिए गए हैं।) सबसे बढ़कर, यहोवा से मदद माँगिए कि आप उसके वचन में दिए अनमोल विचारों को अच्छी तरह सिखा पाएँ।—एज्रा 7:10; नीतिवचन 3:13, 14 पढ़िए।
13. (क) सभा में बतायी आयतों का एक बहन पर क्या असर हुआ? (ख) क्या आपको किसी आयत से फायदा हुआ है जो सभाओं में समझायी गयी थी?
13 सभाओं में बतायी जानेवाली आयतों का कितना गहरा असर होता है, इसकी एक मिसाल लीजिए। ऑस्ट्रेलिया में रहनेवाली एक बहन जब छोटी थी तो उसने बहुत दुख झेले थे। आगे चलकर वह सच्चाई में आयी, लेकिन तब भी उसके लिए यह मानना मुश्किल था कि यहोवा उससे प्यार करता है। फिर एक दिन सभा में एक आयत का हवाला दिया गया जिससे वह सोचने पर मजबूर हो गयी। वह उस आयत पर खोजबीन करने लगी और इस दौरान उसने बाइबल की दूसरी आयतें पढ़ी। इससे बहन को यकीन हो गया कि यहोवा सचमुच उससे प्यार करता है। * आपके बारे में क्या? क्या कोई सभा, सम्मेलन या अधिवेशन में किसी आयत ने आपके दिल पर गहरा असर किया है?—नहे. 8:12.
14. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम यहोवा के वचन को अनमोल समझते हैं और उससे प्यार करते हैं?
14 क्या हम यहोवा के एहसानमंद नहीं कि उसने हमें उसका वचन बाइबल दिया है? उसने वादा किया था कि उसका वचन हमेशा कायम रहेगा और उसने अपना वादा निभाया है। (1 पत. 1:24, 25) इसलिए आइए हम नियमित तौर पर बाइबल पढ़ें, इसमें दी बातों को अपनी ज़िंदगी में लागू करें और दूसरों की मदद करने के लिए इसका इस्तेमाल करें। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हम इस तोहफे को अनमोल समझते हैं और सबसे बढ़कर इसके लिखनेवाले यहोवा से प्यार करते हैं और उसका दिल से एहसान मानते हैं।
^ पैरा. 13 “ मेरी सोच बदलने लगी” बक्स देखिए।