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यहोवा की तरह लोगों का लिहाज़ कीजिए

यहोवा की तरह लोगों का लिहाज़ कीजिए

“सुखी है वह इंसान जो दीन-दुखियों का लिहाज़ करता है।”​—भज. 41:1.

गीत: 35, 50

1. यहोवा के उपासक एक-दूसरे के लिए अपना प्यार कैसे ज़ाहिर करते हैं?

पूरी दुनिया में यहोवा के उपासक एक परिवार की तरह हैं। वे एक-दूसरे को भाई-बहन मानते हैं और उनमें बहुत प्यार है। (1 यूह. 4:16, 21) इसी प्यार की वजह से वे कभी-कभी बड़े-बड़े त्याग करते हैं। मगर ज़्यादातर वे छोटे-छोटे कामों से एक-दूसरे के लिए प्यार ज़ाहिर करते हैं। जैसे, वे अपने भाइयों से अच्छी बातें कहते हैं या उनके साथ अच्छा व्यवहार करते हैं। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता यहोवा की मिसाल पर चल रहे होते हैं।​—इफि. 5:1.

2. यहोवा की तरह यीशु ने लोगों से प्यार कैसे किया?

2 यीशु अपने पिता की मिसाल पर बहुत बढ़िया तरीके से चला। वह हमेशा दूसरों पर कृपा करता था। उसने कहा, “हे कड़ी मज़दूरी करनेवालो और बोझ से दबे लोगो, तुम सब मेरे पास आओ, मैं तुम्हें तरो-ताज़ा करूँगा।” (मत्ती 11:28, 29) अगर हम यीशु की तरह “दीन-दुखियों का लिहाज़” करें, तो इससे यहोवा खुश होगा और हम भी खुश रहेंगे। (भज. 41:1) इस लेख में हम सीखेंगे कि हम अपने परिवार के लोगों का, मंडली के भाई-बहनों का और प्रचार करते वक्‍त लोगों का लिहाज़ कैसे कर सकते हैं।

परिवार के लोगों का लिहाज़ कीजिए

3. एक पति अपनी पत्नी का लिहाज़ कैसे कर सकता है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

3 अपने परिवार के लोगों का लिहाज़ करने में घर के मुखिया को एक अच्छी मिसाल होनी चाहिए। (इफि. 5:25; 6:4) जैसे बाइबल हरेक पति से कहती है कि उसे अपनी पत्नी का लिहाज़ करना चाहिए और उसे समझने की कोशिश करनी चाहिए। (1 पत. 3:7; फु.) जो पति अपनी पत्नी को समझता है, वह जानता है कि भले ही कई मायनों में वह अपनी पत्नी से अलग है, मगर वह उससे बेहतर नहीं है। (उत्प. 2:18) वह उसकी भावनाओं की कदर करता है, उसका आदर करता है और उसके साथ गरिमा से पेश आता है। कनाडा में रहनेवाली एक बहन अपने पति के बारे में कहती है, “वे कभी मेरी भावनाओं को हलके में नहीं लेते, न ही यह कहते हैं, ‘तुम्हें ऐसा नहीं सोचना चाहिए।’ वे ध्यान से मेरी बात भी सुनते हैं। जब किसी मामले में मेरी सोच गलत होती है, तो वे प्यार से मेरी सोच सुधारते हैं।”

4. दूसरी औरतों के साथ व्यवहार करने के मामले में एक पति अपनी पत्नी की भावनाओं का लिहाज़ कैसे कर सकता है?

4 जो पति अपनी पत्नी की भावनाओं का लिहाज़ करता है, वह कभी दूसरी औरतों से इश्‍कबाज़ी नहीं करता और न ही उन पर ज़्यादा ध्यान देता है। (अय्यू. 31:1) इसके अलावा वह सोशल मीडिया के ज़रिए भी किसी से इश्‍कबाज़ी नहीं करता और गलत किस्म की वेबसाइट पर नहीं जाता। वह अपनी पत्नी का वफादार रहता है, क्योंकि वह उससे और यहोवा से प्यार करता है और बुरे कामों से नफरत करता है।​—भजन 19:14; 97:10 पढ़िए।

5. एक पत्नी अपने पति का लिहाज़ कैसे कर सकती है?

5 जब पति अपने मुखिया यीशु मसीह की मिसाल पर चलता है और अपनी पत्नी से प्यार करता है, तो पत्नी भी उसका “गहरा आदर” कर पाती है। (इफि. 5:22-25, 33) उदाहरण के लिए, जब उसका पति मंडली के कामों में व्यस्त होता है या किसी समस्या का निपटारा कर रहा होता है, तब वह उसकी भावनाएँ समझने की कोशिश करती है और उसका लिहाज़ करती है। ब्रिटेन का एक भाई कहता है, “मेरी पत्नी कई बार मुझे देखकर ही समझ जाती है कि किसी बात से मैं परेशान हूँ। अगर वह बात गुप्त रखनेवाली नहीं है, तो वह नीतिवचन 20:5 में दिए सिद्धांत पर चलती है यानी वह मेरे दिल की बात ‘खींच निकालने’ की कोशिश करती है, फिर चाहे उसे सही वक्‍त का इंतज़ार क्यों न करना पड़े।”

6. (क) हम सब मिलकर बच्चों को दूसरों का लिहाज़ करना कैसे सिखा सकते हैं? (ख) इससे बच्चों को क्या फायदा होगा?

6 जब माता-पिता एक-दूसरे का आदर और लिहाज़ करते हैं, तो वे बच्चों के लिए एक बढ़िया मिसाल रखते हैं। लेकिन यह काफी नहीं है। उन्हें अपने बच्चों को सिखाना भी चाहिए कि वे दूसरों के बारे में सोचें और उनके लिए अच्छे काम करें। जैसे, वे बच्चों को सिखा सकते हैं कि वे राज-घर में यहाँ-वहाँ न दौड़ें। जब वे किसी दावत में जाते हैं, तो वे अपने बच्चों से कह सकते हैं कि पहले बड़ों को खाना लेने दें। बच्चों को सिखाने में मंडली के भाई-बहन भी माता-पिता की मदद कर सकते हैं। जैसे, अगर हमारी कोई चीज़ गिर जाए और एक बच्चा उसे उठाकर दे दे, तो हम उसे शाबाशी दे सकते हैं। इससे बच्चे को अच्छा लगेगा और वह सीख पाएगा कि “लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।”​—प्रेषि. 20:35.

मंडली के भाई-बहनों का लिहाज़ कीजिए

7. (क) यीशु ने एक बधिर आदमी का लिहाज़ कैसे किया? (ख) यीशु की मिसाल से हम क्या सीख सकते हैं?

7 एक दिन यीशु दिकापुलिस के इलाके में था। वहाँ के “लोग उसके पास एक बहरे आदमी को लाए जो ठीक से बोल भी नहीं पाता था।” (मर. 7:31-35) यीशु ने उसे ठीक किया, मगर सबके सामने नहीं। ऐसा क्यों? बधिर होने की वजह से शायद वह लोगों से झिझक रहा हो। यीशु उसकी भावनाएँ समझ गया, इसलिए वह उसे “भीड़ से दूर अलग ले गया।” माना कि हम चमत्कार नहीं कर सकते, मगर हम भाई-बहनों की ज़रूरतें और भावनाएँ समझने की कोशिश तो कर ही सकते हैं। प्रेषित पौलुस ने लिखा, “आओ हम एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी लें [या “एक-दूसरे का खयाल रखें,” फु.] ताकि एक-दूसरे को प्यार और भले काम करने का बढ़ावा दे सकें।” (इब्रा. 10:24) यीशु ने यह समझा कि उस बधिर आदमी को कैसा लग रहा है, इसलिए उसने उसका लिहाज़ किया। यीशु हम सबके लिए कितनी अच्छी मिसाल है!

8, 9. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमें बुज़ुर्ग और शारीरिक तौर पर लाचार भाई-बहनों की परवाह है? (कुछ उदाहरण दीजिए।)

8 बुज़ुर्ग और शारीरिक तौर पर लाचार भाई-बहनों का लिहाज़ कीजिए। मसीही मंडली की पहचान इस बात से नहीं होती कि हम अच्छी तरह काम करते हैं, बल्कि इस बात से होती है कि हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं। (यूह. 13:34, 35) यही प्यार हमें उभारता है कि हम बुज़ुर्ग और बीमार भाई-बहनों की मदद करें, ताकि वे सभाओं में जा सकें और प्रचार कर सकें। भले ही उनकी मदद करना हमारे लिए मुश्‍किल हो या फिर वे ज़्यादा कुछ करने की हालत में न हों, फिर भी हम उनकी मदद करते हैं। (मत्ती 13:23) माइकल नाम के भाई पर गौर कीजिए, जो व्हीलचेयर के सहारे चलते-फिरते हैं। उनके परिवारवाले और मंडली के भाई उनकी काफी मदद करते हैं। इसके लिए वे बहुत एहसानमंद हैं। वे कहते हैं, “उनकी मदद से ही मैं ज़्यादातर सभाओं में जा पाता हूँ और नियमित तौर पर प्रचार कर पाता हूँ। खास तौर से मुझे सरेआम गवाही देना अच्छा लगता है।”

9 कई बेथेल-घरों में बहुत-से ऐसे वफादार भाई-बहन हैं, जो काफी बुज़ुर्ग हैं, बीमार हैं या शारीरिक तौर पर लाचार हैं। परवाह करनेवाले प्राचीन उनके लिए चिट्ठी के ज़रिए या टेलिफोन के ज़रिए गवाही देने का इंतज़ाम करते हैं। बिल नाम के एक भाई 86 साल के हैं। वे कहते हैं, “हम चिट्ठी के ज़रिए गवाही देने के इंतज़ाम की बहुत कदर करते हैं।” बहन नैन्सी करीब 90 साल की हैं। उनका कहना है कि वे गवाही देने के इस इंतज़ाम को मामूली नहीं समझतीं। वे कहती हैं, “यह मेरी प्रचार सेवा है। यह ज़रूरी है कि लोग सच्चाई जानें।” बहन ऐथल, जिनका जन्म 1921 में हुआ था, कहती हैं, “दर्द मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन गया है। कभी-कभी तो मेरे लिए कपड़े पहनकर तैयार होना भी बहुत मुश्‍किल होता है।” इतनी तकलीफ के बावजूद वे खुशी से टेलीफोन के ज़रिए गवाही देती हैं और उन्हें कुछ अच्छी वापसी भेंट भी मिली हैं। बहन बारबरा, जो 85 साल की हैं, कहती हैं, “सेहत खराब रहने की वजह से मैं नियमित तौर पर प्रचार नहीं कर पाती। लेकिन टेलीफोन गवाही के इंतज़ाम की वजह से मैं लोगों से बात कर पाती हूँ। यहोवा आपका बहुत शुक्रिया!” एक साल के अंदर ही हमारे प्यारे बुज़ुर्ग भाई-बहनों के एक समूह ने प्रचार सेवा में करीब 1,228 घंटे बिताए, 6,265 खत लिखे, 2,000 से ज़्यादा लोगों को फोन किया और 6,315 प्रकाशन दिए! उनकी इस मेहनत से यहोवा बहुत खुश हुआ होगा!​—नीति. 27:11.

10. हमारे भाई-बहनों को सभाओं से ज़्यादा-से-ज़्यादा फायदा हो, इसके लिए हम क्या कर सकते हैं?

10 सभाओं में भाई-बहनों का लिहाज़ कीजिए। ऐसा करने से उन्हें सभाओं से ज़्यादा-से-ज़्यादा फायदा होगा। हम भाई-बहनों का लिहाज़ कैसे कर सकते हैं? एक तरीका है कि हम समय पर पहुँचें, ताकि सभाओं के दौरान किसी का ध्यान न भटके। कभी-कभी अचानक कुछ ऐसा हो सकता है कि हमें देर हो जाए। लेकिन अगर हम अकसर देर से पहुँचते हैं, तो हमें सोचना चाहिए कि इससे हमारे भाई-बहनों पर क्या असर पड़ रहा है और यह भी कि हमें कौन-से बदलाव करने हैं। यह भी याद रखिए कि हमें सभाओं में बुलानेवाले यहोवा और उसका बेटा है। (मत्ती 18:20) उनका आदर करने के लिए ज़रूरी है कि हम समय पर पहुँचें!

11. जिन भाइयों का सभा में भाग होता है, उन्हें 1 कुरिंथियों 14:40 में दी हिदायत क्यों माननी चाहिए?

11 भाई-बहनों का लिहाज़ करने का दूसरा तरीका है कि हम बाइबल की यह हिदायत मानें, “सब बातें कायदे से और अच्छे इंतज़ाम के मुताबिक हों।” (1 कुरिं. 14:40) जिन भाइयों का सभा में भाग होता है, वे समय पर अपना भाग खत्म करके यह हिदायत मानते हैं। इस तरह वे न सिर्फ अगले वक्‍ता का लिहाज़ कर रहे होते हैं, बल्कि पूरी मंडली का भी। सोचिए कि अगर सभा देर से खत्म हो, तो बाकी लोगों पर क्या असर पड़ेगा। कुछ भाइयों का घर बहुत दूर होता है और उन्हें घर पहुँचने में वक्‍त लगता है। कुछ लोगों को बस या ट्रेन पकड़नी होती है। कई भाई-बहनों के जीवन-साथी सच्चाई में नहीं होते और वे चाहते हैं कि उनका साथी फलाँ समय पर घर आ जाए।

12. हमें प्राचीनों का खास तौर से लिहाज़ क्यों करना चाहिए? (“ अगुवाई करनेवाले भाइयों का लिहाज़ कीजिए” नाम का बक्स देखिए।)

12 हमें प्राचीनों का खास तौर से लिहाज़ करना चाहिए, क्योंकि वे मंडली के कामों में और प्रचार सेवा में बहुत मेहनत करते हैं। (1 थिस्सलुनीकियों 5:12, 13 पढ़िए।) बेशक इसके लिए आप उनके बहुत एहसानमंद होंगे। यह एहसानमंदी आप उनकी आज्ञा मानकर और उन्हें सहयोग देकर ज़ाहिर कर सकते हैं। याद रखिए कि “वे यह जानते हुए [आपकी] निगरानी करते हैं कि उन्हें इसका हिसाब देना होगा।”​—इब्रा. 13:7, 17.

प्रचार करते वक्‍त लोगों का लिहाज़ कीजिए

13. जिस तरह यीशु ने लोगों से व्यवहार किया, उससे हम क्या सीख सकते हैं?

13 यीशु के बारे में यशायाह ने भविष्यवाणी की थी, “वह कुचले हुए नरकट को नहीं कुचलेगा, टिमटिमाती बाती को नहीं बुझाएगा।” (यशा. 42:3) लोगों के लिए प्यार होने की वजह से यीशु ने उनसे हमदर्दी रखी। जो लोग “कुचले हुए नरकट” और “टिमटिमाती बाती” की तरह हताश और कमज़ोर थे, उन सबका दुख यीशु समझता था। इस वजह से वह उनसे प्यार और सब्र से पेश आया। यहाँ तक कि बच्चे भी यीशु के पास आना चाहते थे। (मर. 10:14) बेशक हम लोगों को उस तरह नहीं समझ सकते या सिखा सकते, जिस तरह यीशु करता था। लेकिन हम अपने प्रचार के इलाके में लोगों का लिहाज़ कर सकते हैं। वह कैसे? यह ध्यान रखकर कि हम किस तरह उनसे बात करते हैं, कब मिलते हैं और कितनी देर बात करते हैं।

14. जिस तरह हम लोगों से बात करते हैं, हमें उस बारे में ध्यान क्यों देना चाहिए?

14 हमें लोगों से किस तरह बात करनी चाहिए? इस दुनिया के भ्रष्ट और कठोर व्यापारियों ने, राजनेताओं ने और धर्म गुरुओं ने लाखों लोगों की मानो ‘खाल खींच ली है और यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया है।’ (मत्ती 9:36) इसका नतीजा यह हुआ है कि आज बहुत-से लोग किसी पर भरोसा नहीं करते और न ही उन्हें कोई आशा है। इस वजह से उनसे बात करते वक्‍त हमारा लहज़ा और शब्द ऐसे होने चाहिए, जिससे उन्हें यह समझ में आए कि हमें उनकी परवाह है। बहुत-से लोग हमारा संदेश सुनते हैं, सिर्फ इस वजह से नहीं कि हम बाइबल से संदेश दे रहे हैं, बल्कि इसलिए भी कि हमें उनकी परवाह है और हम उनका आदर करते हैं।

15. हम अपने प्रचार के इलाके के लोगों का लिहाज़ किन तरीकों से कर सकते हैं?

15 हम प्रचार के इलाके में कई तरीकों से लोगों का लिहाज़ कर सकते हैं। एक है, सवाल करते वक्‍त। हमें लोगों से इस तरह सवाल करना चाहिए, जिससे उनके लिए हमारा प्यार और आदर झलके। एक पायनियर भाई ऐसे इलाके में सेवा करता था, जहाँ ज़्यादातर लोगों का स्वभाव शर्मीला था। इस वजह से भाई ऐसे सवाल नहीं करता था, जिसका वे जवाब न दे पाएँ और शर्मिंदा महसूस करें। जैसे, वह यह नहीं पूछता था, “क्या आप परमेश्‍वर का नाम जानते हैं?” या “क्या आपको पता है कि परमेश्‍वर का राज क्या है?” इसके बजाय वह लोगों से कुछ इस तरह कहता, “मैंने बाइबल से सीखा है कि परमेश्‍वर का एक नाम है। क्या मैं आपको बता सकता हूँ कि वह नाम क्या है?” ज़रूरी नहीं कि हर इलाके में इसी तरह गवाही दी जाए, क्योंकि हर जगह के लोगों का स्वभाव और संस्कृति अलग होती है। लेकिन एक बात हम सबको ध्यान में रखनी चाहिए। वह यह कि हमें हमेशा अपने इलाके के लोगों का लिहाज़ और आदर करना चाहिए। इसके लिए ज़रूरी है कि हम उन्हें अच्छी तरह जानें।

16, 17. (क) हमें लोगों का लिहाज़ करते हुए उनसे कब मिलना चाहिए? (ख) हमें लोगों से कितनी देर बात करनी चाहिए, जिससे पता चले कि हम उनका लिहाज़ करते हैं?

16 हमें लोगों से कब मिलना चाहिए? जब हम लोगों के घर प्रचार के लिए जाते हैं, तो ऐसा नहीं होता कि वे हमारे आने का इंतज़ार कर रहे हों। हम अचानक से उनके घर पहुँच जाते हैं और शायद वे इतने फुरसत में भी न हों। इस वजह से हमें ऐसे वक्‍त पर जाना चाहिए, जब वे हमसे बात कर सकें। (मत्ती 7:12) उदाहरण के लिए, क्या आपके इलाके में लोग शनिवार-रविवार के दिन देर तक सोते हैं? ऐसे में पहले आप सड़क पर या सरेआम गवाही दे सकते हैं या फिर उन लोगों से वापसी भेंट कर सकते हैं, जिनके बारे में आप जानते हैं कि वे सुबह-सुबह मिल जाएँगे।

17 हमें कितनी देर तक बात करनी चाहिए? लोग व्यस्त रहते हैं, इसलिए हमारी मुलाकात थोड़ी देर की ही होनी चाहिए, खासकर शुरूआती मुलाकातें। लंबी चर्चा करने के बजाय थोड़े समय में अपनी बातचीत खत्म करना अच्छा होगा। (1 कुरिं. 9:20-23) ऐसा करने से लोग देख पाते हैं कि हम उनके हालात समझते हैं। इससे वे हमसे अगली बार मिलने के लिए भी तैयार होंगे। प्रचार के दौरान पवित्र शक्‍ति के गुण दर्शाने से हम वाकई “परमेश्‍वर के सहकर्मी” बनते हैं। यहाँ तक कि हमारे ज़रिए यहोवा किसी को सच्चाई भी सिखा सकता है!​—1 कुरिं. 3:6, 7, 9.

18. लोगों का लिहाज़ करने से हमें कौन-सी आशीषें मिलेंगी?

18 आइए हम अपने परिवारवालों, भाई-बहनों और प्रचार करते वक्‍त लोगों का लिहाज़ करने की पूरी कोशिश करें। इससे हमें आज और भविष्य में भी बहुत-सी आशीषें मिलेंगी। जैसे भजन 41:1, 2 में लिखा है, “सुखी है वह इंसान जो दीन-दुखियों का लिहाज़ करता है, यहोवा उसे संकट के दिन छुड़ाएगा। यहोवा उसकी हिफाज़त करेगा और उसकी जान सलामत रखेगा। उसे धरती पर सुखी इंसान माना जाएगा।”