इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

अध्ययन लेख 38

“मेरे पास आओ, मैं तुम्हें तरो-ताज़ा करूँगा”

“मेरे पास आओ, मैं तुम्हें तरो-ताज़ा करूँगा”

“हे कड़ी मज़दूरी करनेवालो और बोझ से दबे लोगो, तुम सब मेरे पास आओ, मैं तुम्हें तरो-ताज़ा करूँगा।”—मत्ती 11:28.

गीत 17 मैं चाहता हूँ

लेख की एक झलक *

1. जैसे मत्ती 11:28-30 में बताया गया है, यीशु ने भीड़ से क्या वादा किया?

यीशु के पास एक भीड़ इकट्ठा थी और उसकी बातें सुन रही थी। उसी मौके पर उसने अपने सुननेवालों से एक बढ़िया वादा किया। उसने कहा, “मेरे पास आओ, मैं तुम्हें तरो-ताज़ा करूँगा।” (मत्ती 11:28-30 पढ़िए।) यह कोई खोखला वादा नहीं था। इसे समझने के लिए उस घटना पर गौर कीजिए, जब यीशु के पास एक औरत आयी जिसे दर्दनाक बीमारी थी। ध्यान दीजिए कि यीशु ने उसके लिए क्या किया।

2. यीशु ने एक बीमार औरत के लिए क्या किया?

2 वह औरत 12 साल से बीमार थी और बहुत तकलीफ में थी। वह एक-के-बाद-एक कई वैद्यों के पास गयी कि कहीं तो उसे राहत मिले, मगर कोई फायदा नहीं हुआ। मूसा के कानून के मुताबिक वह अपनी हालत की वजह से अशुद्ध थी। (लैव्य. 15:25) फिर उसने सुना कि यीशु बीमारों को ठीक कर सकता है, इसलिए वह उसे ढूँढ़ने निकल पड़ी। जब उसने यीशु को देखा, तो उसके कपड़े के झालर को छूआ और वह उसी घड़ी ठीक हो गयी। लेकिन यीशु ने न सिर्फ उसकी बीमारी दूर की बल्कि कुछ और भी किया। उसने उसे “बेटी” कहकर उसे आदर और सम्मान दिया। इससे उस औरत का हौसला कितना मज़बूत हुआ होगा, उसे कितनी ताज़गी मिली होगी!—लूका 8:43-48.

3. इस लेख में हम किन सवालों पर ध्यान देंगे?

3 क्या आपने ध्यान दिया कि वह औरत यीशु को ढूँढ़ते हुए उसके पास गयी थी? उसी तरह हमें भी यीशु के ‘पास आने’ के लिए मेहनत करनी होगी। यह सच है कि आज यीशु अपने ‘पास आनेवालों’ की बीमारियाँ किसी चमत्कार से दूर नहीं कर देता, फिर भी वह हमें यह बुलावा देता है, “मेरे पास आओ, मैं तुम्हें तरो-ताज़ा करूँगा।” इस लेख में हम पाँच सवालों पर ध्यान देंगे: यीशु के ‘पास आने’ के लिए हमें क्या करना होगा? जब उसने कहा, “मेरा जुआ उठाओ,” तो उसका क्या मतलब था? हम यीशु से क्या सीख सकते हैं? उसने जो काम सौंपा है, उसे करने से हमें ताज़गी क्यों मिलती है? यीशु के जुए के अधीन रहने से हम कैसे ताज़गी पाते रह सकते हैं?

“मेरे पास आओ”

4-5. हम किन तरीकों से यीशु के ‘पास आ’ सकते हैं?

4 यीशु के ‘पास आने’ का एक तरीका है, उसकी बातों और उसके कामों के बारे में जितना हो सके सीखना। (लूका 1:1-4) बाइबल से यीशु के बारे में सीखने के लिए हमें खुद मेहनत करनी होगी, कोई और हमारे लिए यह नहीं कर सकता। इसके अलावा, बपतिस्मा लेकर और मसीह का चेला बनकर भी हम उसके ‘पास आ सकते हैं।’

5 यीशु के ‘पास आने’ का एक और तरीका है, ज़रूरत पड़ने पर मंडली के प्राचीनों से मदद माँगना। यीशु ने अपनी भेड़ों की देखभाल के लिए “आदमियों के रूप में तोहफे” यानी प्राचीन दिए हैं। (इफि. 4:7, 8, 11; यूह. 21:16; 1 पत. 5:1-3) लेकिन हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि प्राचीन हमारा मन पढ़ लेंगे और उन्हें पता चल जाएगा कि हमें कब किस चीज़ की ज़रूरत है। हमें खुद जाकर उनसे मदद माँगनी होगी। जूलियन नाम के एक भाई पर ध्यान दीजिए। वह बताता है, “मैं बीमार हो गया था, इसलिए मुझे बेथेल छोड़कर जाना पड़ा। मेरे एक दोस्त ने सलाह दी कि मैं प्राचीनों से रखवाली भेंट करने के लिए कहूँ ताकि वे मेरा हौसला बढ़ा सकें। पहले तो मुझे लगा कि इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, पर जब मैंने मदद माँगी और वे मुझसे मिलने आए, तो मेरी बहुत हिम्मत बढ़ी। यह भेंट मेरे लिए सबसे अच्छा तोहफा साबित हुई!” जिस तरह दो प्राचीनों ने जूलियन की मदद की, उसी तरह वफादार प्राचीन ‘मसीह की सोच’ जानने और उसके जैसा रवैया अपनाने में हमारी भी मदद कर सकते हैं। (1 कुरिं. 2:16; 1 पत. 2:21) सच में, उनकी यह मदद किसी कीमती तोहफे से कम नहीं!

“मेरा जुआ उठाओ”

6. जब यीशु ने कहा कि “मेरा जुआ उठाओ,” तो शायद उसका क्या मतलब था?

6 जब यीशु ने कहा, “मेरा जुआ उठाओ” तो शायद उसका मतलब था, “मेरा अधिकार मानो।” या फिर हो सकता है वह यह कह रहा हो, “मेरे साथ मेरे जुए में जुत जाओ और हम साथ मिलकर यहोवा के लिए काम करेंगे।” यीशु के कहने का चाहे जो भी मतलब हो, एक बात तय है: उसका जुआ उठाने में काम करना शामिल है।

7. मत्ती 28:18-20 के मुताबिक हमें क्या काम सौंपा गया है और हम किस बात का यकीन रख सकते हैं?

7 अपना जीवन यहोवा को समर्पित करके और बपतिस्मा लेकर हम यीशु के न्यौते को कबूल करते हैं। यीशु हर किसी को यह न्यौता देता है और उन सबको कबूल करता है, जो सच्चे मन से परमेश्‍वर की सेवा करना चाहते हैं। (यूह. 6:37, 38) मसीह के सभी चेलों को वह काम करने का सम्मान मिला है, जो यहोवा ने यीशु को सौंपा है। हम यकीन रख सकते हैं कि उस काम को पूरा करने में यीशु हमारी मदद करेगा और हमारा साथ देगा।—मत्ती 28:18-20 पढ़िए।

“मुझसे सीखो”

यीशु की तरह दूसरों को ताज़गी पहुँचाइए (पैराग्राफ 8-11 देखें) *

8-9. (क) नम्र लोग यीशु के पास क्यों खिंचे चले आते थे? (ख) हमें खुद से कौन-से सवाल करने चाहिए?

8 नम्र और दीन लोग यीशु के पास खिंचे चले आते थे। (मत्ती 19:13, 14; लूका 7:37, 38) वह क्यों? क्योंकि यीशु फरीसियों से बहुत अलग था। फरीसी घमंडी थे, उनमें लोगों के लिए ज़रा भी प्यार और दया नहीं थी। (मत्ती 12:9-14) मगर यीशु नम्र था और लोगों से बहुत प्यार करता था। फरीसियों को समाज में अपने ऊँचे ओहदे का बहुत घमंड था और उन्हें लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचना अच्छा लगता था। यीशु ने अपने चेलों को इस तरह का रवैया रखने से मना किया। इसके बजाय, उसने उन्हें नम्र होना और दूसरों की सेवा करना सिखाया। (मत्ती 23:2, 6-11) फरीसी लोगों को डरा-धमकाकर उन पर रौब जमाते थे। (यूह. 9:13, 22) लेकिन यीशु अपनी बातों और कामों से लोगों को ताज़गी पहुँचाता था।

9 क्या आप यीशु की मिसाल पर चलते हैं? खुद से पूछिए, ‘क्या लोगों को लगता है कि मैं नम्र और कोमल स्वभाव का हूँ? क्या मैं खुशी-खुशी दूसरों के लिए मामूली और छोटे काम करता हूँ? क्या मैं दूसरे के साथ प्यार से पेश आता हूँ?’

10. यीशु ने अपने साथ काम करनेवालों के लिए कैसा माहौल बनाया?

10 यीशु ने अपने साथ काम करनेवालों के लिए शांत और अच्छा माहौल बनाया था। वे उससे सीखने के लिए खिंचे चले आते थे और वह उन्हें खुशी-खुशी सिखाता था। (लूका 10:1, 19-21) वह अपने चेलों को बढ़ावा देता था कि वे उससे सवाल करें और वह खुद भी उनकी राय जानने के लिए उनसे सवाल करता था। (मत्ती 16:13-16) जिस तरह पौधा-घर का वातावरण ऐसा होता है कि पौधे उसमें अच्छी तरह बढ़ते हैं, उसी तरह यीशु ने जो माहौल बनाया था, उसमें उसके चेले सच्चाई में बढ़ते गए। उन्होंने यीशु की सिखायी बातों पर ध्यान दिया और भले काम किए।

सबके साथ दोस्ती कीजिए

जोशीले बनिए

नम्र रहिए और मेहनती बनिए  *

11. हमें खुद से क्या पूछना चाहिए?

11 क्या आपको दूसरों पर कुछ अधिकार दिए गए हैं? अगर हाँ, तो खुद से पूछिए, ‘मेरे काम की जगह पर या घर पर कैसा माहौल है? क्या मैं शांति का बढ़ावा देता हूँ? क्या मैं ऐसा माहौल बनाता हूँ कि लोग मुझसे खुलकर सवाल करें? क्या मैं उनकी राय जानने की कोशिश करता हूँ?’ हमें फरीसियों की तरह नहीं होना चाहिए। वे उन लोगों पर भड़क उठते थे, जो उनकी शिक्षाओं पर सवाल उठाते थे और अगर कोई उनसे सहमत नहीं होता था, तो उसके साथ बुरा सलूक करते थे।—मर. 3:1-6; यूह. 9:29-34.

“तुम ताज़गी पाओगे”

12-14. यीशु ने हमें जो काम सौंपा है, उससे हमें ताज़गी क्यों मिलती है?

12 यीशु ने हमें जो काम सौंपा है, उसे करने से हमें ताज़गी मिलती है। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? इसकी कई वजह हैं, लेकिन आइए कुछ पर ध्यान दें।

13 हमारे निगरान सबसे अच्छे हैं।  सबसे महान निगरान यहोवा उन कठोर मालिकों की तरह नहीं है, जिन्हें अपने सेवकों की कोई कदर नहीं होती। हम यहोवा के लिए जो भी करते हैं, उसे वह कभी नहीं भूलता। (इब्रा. 6:10) यही नहीं, वह हमें अपनी ज़िम्मेदारी उठाने की ताकत भी देता है। (2 कुरिं. 4:7; गला. 6:5, फु.) हमारा राजा यीशु भी दूसरों से अच्छा व्यवहार करने में एक बेहतरीन मिसाल है। (यूह. 13:15) इसके अलावा, प्राचीन भी “महान चरवाहे” यीशु की मिसाल पर चलने की कोशिश करते हैं। (इब्रा. 13:20; 1 पत. 5:2) वे प्यार से हमारी देखभाल करते हैं, हमें सिखाते हैं, हमारा हौसला बढ़ाते हैं और हमारी हिफाज़त करते हैं।

14 हमें सबसे अच्छे किस्म के दोस्त  मिले हैं। हमें जो काम सौंपा गया है और जिस तरह के दोस्त मिले हैं, वे दुनिया में और किसी को नहीं मिले हैं। ज़रा सोचिए, हमें ऐसे लोगों के साथ काम करने का सम्मान मिला है जिनका चालचलन सबसे अच्छा है, फिर भी वे दूसरों को तुच्छ नहीं समझते। उनमें कई काबिलीयतें हैं, मगर वे उनका ढिंढोरा नहीं पीटते। वे हमें अपना सहकर्मी ही नहीं, दोस्त भी मानते हैं। वे हमसे इतना प्यार करते हैं कि हमारे लिए अपनी जान तक दे सकते हैं!

15. हमें अपने काम के बारे में कैसा महसूस करना चाहिए?

15 हमें सबसे बढ़िया काम  दिया गया है। हम लोगों को यहोवा के बारे में सच्चाई सिखाते हैं और शैतान के फैलाए झूठ का परदाफाश करते हैं। (यूह. 8:44) शैतान के झूठ से लोग लाचार और बेबस महसूस करते हैं। एक झूठ यह है कि यहोवा इंसानों से प्यार नहीं करता और उनके पाप कभी माफ नहीं करेगा। इससे हम कितने कुचले हुए महसूस करते हैं। लेकिन यह कितना बड़ा झूठ है! जब हम यीशु ‘के पास आते हैं,’ तो हमारे पाप माफ किए जाते हैं। सच तो यह है कि यहोवा हमसे बहुत प्यार करता है। (रोमि. 8:32, 38, 39) जब हम देखते हैं कि किस तरह लोग यहोवा पर निर्भर रहना सीख रहे हैं और अपनी ज़िंदगी सँवार रहे हैं, तो हमें वाकई बहुत खुशी होती है।

यीशु के जुए के अधीन रहकर ताज़गी पाते रहिए

16. यीशु ने हमें जो काम सौंपा है, वह बाकी ज़िम्मेदारियों से कैसे अलग है?

16 यीशु ने हमें जो काम सौंपा है, वह बाकी ज़िम्मेदारियों जैसा नहीं है, जो हमें रोज़ निभानी पड़ती हैं। उदाहरण के लिए, पूरे दिन नौकरी करने के बाद हम पस्त हो जाते हैं और हमें खुशी और संतुष्टि नहीं मिलती। मगर जब हम यहोवा और मसीह की सेवा में मेहनत करते हैं, तो हमें सच्ची खुशी और संतुष्टि मिलती है। हो सकता है, काम के बाद हम इतने थक जाएँ कि हमें सभाओं में जाने के लिए खुद से सख्ती बरतनी पड़े। मगर अकसर ऐसा होता है कि सभा के बाद हम तरो-ताज़ा महसूस करते हैं। उसी तरह जब हम थके होने के बावजूद प्रचार और निजी अध्ययन करते हैं, तो हमें ताज़गी मिलती है और हममें जोश भर आता है।

17. हमें कौन-सी बात समझनी चाहिए और किस बात का ध्यान रखना चाहिए?

17 हमें यह बात समझनी चाहिए कि हम दुनिया-भर की चीज़ें नहीं कर सकते, हम सबमें सीमित ताकत होती है। इसलिए हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम किन कामों में अपनी ताकत लगाते हैं। उदाहरण के लिए, ऐशो-आराम की चीज़ें बटोरने में हमारी मेहनत और ताकत ज़ाया हो सकती है। एक बार एक अमीर नौजवान ने यीशु से पूछा था, “हमेशा की ज़िंदगी का वारिस बनने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?” वह बचपन से मूसा का कानून मानता आया था और ज़रूर एक अच्छा आदमी रहा होगा, क्योंकि मरकुस ने अपनी किताब में लिखा कि यीशु ने “प्यार से उसे देखा।” ध्यान दीजिए कि यीशु ने उस आदमी को क्या बुलावा दिया। उसने कहा, ‘जा और जो कुछ तेरे पास है उसे बेच दे और आकर मेरा चेला बन जा।’ यह सुनकर वह आदमी बड़ी उलझन में पड़ गया। वह यीशु का चेला बनना तो चाहता था, मगर अपनी ‘बहुत-सी धन-संपत्ति’ छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। (मर. 10:17-22) नतीजा, उसने यीशु का जुआ उठाने से इनकार कर दिया और वह “धन-दौलत” की गुलामी करता रहा। (मत्ती 6:24) अगर आप उसकी जगह होते, तो क्या करते?

18. हमें समय-समय पर क्या करना चाहिए और क्यों?

18 समय-समय पर हमें खुद की जाँच करनी चाहिए और यह सोचना चाहिए कि हम किन बातों को ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं। ऐसा करना ज़रूरी क्यों है? इससे हम जान पाएँगे कि हम अपनी ताकत सही कामों में लगा रहे हैं या नहीं। ध्यान दीजिए कि मार्क नाम का एक नौजवान क्या कहता है: “मैं कई सालों से पायनियर सेवा कर रहा था, लेकिन मैं हर वक्‍त पैसों के बारे में और आराम की ज़िंदगी जीने के बारे में सोच रहा था। मुझे लगा कि मैं सादा जीवन जी रहा हूँ, फिर भी पता नहीं क्यों ज़िंदगी मुश्‍किल-भरी लग रही थी। तब मुझे एहसास हुआ कि मैं अपने बारे में और अपने आराम के बारे में सोच रहा था। इसके बाद बचा-खुचा समय और ताकत यहोवा की सेवा में दे रहा था।” मार्क ने अपनी सोच और अपना तौर-तरीका बदला, ताकि वह यहोवा की सेवा में ज़्यादा-से-ज़्यादा कर सके। मार्क बताता है, “आज भी कभी-कभी मुझे पैसे की चिंता सताती है, लेकिन यहोवा और यीशु की मदद से मैं ज़रूरी बातों को पहली जगह दे पाया हूँ।”

19. सही सोच रखना क्यों ज़रूरी है?

19 यीशु के जुए के अधीन रहने से हम लगातार ताज़गी पा सकते हैं, लेकिन इसके लिए हमें तीन कदम उठाने होंगे। पहला है, सही सोच रखना।  हम यहोवा का काम कर रहे हैं और हमें उसका काम उसी के तरीके से करना चाहिए। हम दास हैं और यहोवा हमारा मालिक है। (लूका 17:10) ज़रा एक ताकतवर बैल के बारे में सोचिए। अगर वह उस रास्ते पर न चले जिस पर उसका मालिक उसे ले जाना चाहता है और जुए के अधीन न रहे, तो उसे चोट लग सकती है और वह थक सकता है। उसी तरह जब हम अपने मालिक यहोवा का काम अपने तरीके से करते हैं, तो हम खुद के लिए मुश्‍किलें पैदा करते हैं। वहीं दूसरी तरफ, यहोवा के अधीन रहने से हम वह काम भी कर पाएँगे जो हम अपने बलबूते कभी नहीं कर सकते और बड़ी-से-बड़ी रुकावट भी पार कर पाएँगे। याद रखिए, यहोवा को उसकी मरज़ी पूरी करने से कोई नहीं रोक सकता!—रोमि. 8:31; 1 यूह. 4:4.

20. यीशु का जुआ उठाने के पीछे हमारा क्या इरादा होना चाहिए?

20 दूसरा कदम है, सही इरादे से यीशु का जुआ उठाना।  हम अपने कामों से अपने पिता यहोवा की महिमा करना चाहते हैं। यीशु के ज़माने में कुछ लोग अपना मतलब पूरा करने के इरादे से यीशु का जुआ उठा रहे थे, इसलिए वे खुश नहीं थे और कुछ समय बाद उन्होंने उसका जुआ उठाना छोड़ दिया। (यूह. 6:25-27, 51, 60, 66; फिलि. 3:18, 19) लेकिन जो लोग बिना किसी स्वार्थ के परमेश्‍वर से और अपने पड़ोसी से प्यार करते थे, उन्होंने खुशी-खुशी पूरी ज़िंदगी यीशु का जुआ उठाया। उन्हें यह भी आशा थी कि आगे चलकर वे स्वर्ग में मसीह के साथ मिलकर काम करेंगे। उनकी तरह, अगर हम भी सही इरादे से यीशु का जुआ उठाएँ, तो हम खुश रहेंगे।

21. मत्ती 6:31-33 के मुताबिक हम यहोवा से क्या उम्मीद रख सकते हैं?

21 तीसरा कदम है, यह उम्मीद रखना कि यहोवा हमारा साथ नहीं छोड़ेगा।  हमने त्याग की ज़िंदगी जीने और कड़ी मेहनत करने का फैसला किया है। यीशु ने पहले ही बताया था कि उसका जुआ उठानेवालों पर ज़ुल्म ढाए जाएँगे। लेकिन हम उम्मीद रख सकते हैं कि यहोवा हमें हर मुश्‍किल सहने की ताकत देगा। हम जितना धीरज धरेंगे, उतने ही मज़बूत होते जाएँगे। (याकू. 1:2-4) हम यह भी उम्मीद रख सकते हैं कि यहोवा मुश्‍किल घड़ी में हमें ज़रूरी मदद देगा, यीशु एक चरवाहे की तरह हमारी देखभाल करेगा और हमारे भाई-बहन हमारी हिम्मत बँधाएँगे। (मत्ती 6:31-33 पढ़िए; यूह. 10:14; 1 थिस्स. 5:11) जब यहोवा, यीशु और भाई-बहन हमारे साथ हैं, तो हम किसी भी मुश्‍किल का सामना कर पाएँगे!

22. हम किस बात के लिए खुश हो सकते हैं?

22 यीशु ने जिस औरत की बीमारी दूर की थी, उसे उसी दिन ताज़गी मिली। लेकिन यीशु से हमेशा ताज़गी पाने के लिए उसे उसकी शिष्या बनना था। आपको क्या लगता है, उस औरत ने क्या किया होगा? अगर उसने यीशु का जुआ उठाया होगा, तो सोचिए आज वह यीशु के साथ स्वर्ग में होगी! इस आशीष के सामने वे सभी त्याग कुछ भी नहीं जो उसने मसीह के पीछे हो लेने के लिए किए होंगे। हमारे बारे में क्या? चाहे हमारी आशा धरती पर हमेशा जीने की हो या स्वर्ग में, हम कितने खुश हैं कि हमने यीशु का यह बुलावा स्वीकार किया है: “मेरे पास आओ!”

गीत 13 मसीह, हमारा आदर्श

^ पैरा. 5 यीशु हमें बुलावा देता है कि हम उसके पास आएँ। इस बुलावे को स्वीकार करने के लिए हमें क्या करना होगा? इस लेख में इस बारे में बताया जाएगा। हम यह भी देखेंगे कि यीशु के साथ काम करने से हमें कैसे ताज़गी मिल सकती है।

^ पैरा. 60 तसवीर के बारे में: यीशु ने कई तरीकों से लोगों को ताज़गी पहुँचायी।

^ पैरा. 66 तसवीर के बारे में: यीशु की तरह एक भाई अलग-अलग तरीकों से दूसरों को ताज़गी पहुँचा रहा है।