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अध्ययन लेख 35

यहोवा अपने नम्र सेवकों को अनमोल समझता है

यहोवा अपने नम्र सेवकों को अनमोल समझता है

“यहोवा . . . नम्र लोगों पर गौर करता है।”—भज. 138:6.

गीत 48 यहोवा के साथ हर दिन चलें

लेख की एक झलक *

1. यहोवा नम्र लोगों के बारे में कैसा महसूस करता है? समझाइए।

यहोवा नम्र लोगों से बहुत प्यार करता है। सिर्फ नम्र लोग ही उसके करीब आ सकते हैं और उसके साथ प्यार-भरा रिश्‍ता बना सकते हैं। लेकिन वह “मगरूरों को सिर्फ दूर से जानता है।” (भज. 138:6) हम सब चाहते हैं कि यहोवा हमसे खुश हो और हमसे प्यार करे, इसलिए यह ज़रूरी है कि हम नम्र रहना सीखें।

2. इस लेख में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

2 इस लेख में हम तीन सवालों के जवाब देखेंगे: (1) नम्रता का मतलब क्या है? (2) नम्र रहना ज़रूरी क्यों है? और (3) किन हालात में नम्र रहना मुश्‍किल हो सकता है? इस लेख में हम सीखेंगे कि नम्र रहने से हम यहोवा का दिल खुश करते हैं और इससे हमारा भी भला होता है।—नीति. 27:11; यशा. 48:17.

नम्रता का मतलब क्या है?

3. नम्रता का मतलब क्या है?

3 नम्रता का मतलब है, मन की दीनता जिसमें घमंड या अहंकार की कोई जगह नहीं होती। बाइबल से पता चलता है कि एक नम्र इंसान की सोच कैसी होती है। वह इस बात को अच्छी तरह समझता है कि यहोवा उससे कहीं ज़्यादा महान है। वह यह भी मानता है कि सब लोग किसी-न-किसी तरह से उससे बढ़कर हैं।—फिलि. 2:3, 4.

4-5. ऐसा क्यों है कि कुछ लोग दिखने में नम्र लग सकते हैं, पर असल में नम्र नहीं होते?

4 कुछ लोग दिखने में नम्र लग सकते हैं। शायद वे स्वभाव से शर्मीले हों या चुप-चुप रहते हों। या फिर अपनी परवरिश या संस्कृति की वजह से वे सबके साथ आदर और अदब से पेश आते हों। लेकिन असल में वे नम्र नहीं होते। आज नहीं तो कल यह ज़ाहिर हो जाएगा कि उनके दिल में कितना घमंड भरा है।—लूका 6:45.

5 वहीं कुछ लोगों को खुद पर भरोसा होता है और वे बेझिझक अपनी बात कह देते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि वे घमंडी हैं। (यूह. 1:46, 47) लेकिन ऐसे लोगों को सावधान रहना चाहिए कि कहीं वे अपनी काबिलीयतों पर बहुत ज़्यादा भरोसा न करने लगें। चाहे हम स्वभाव से शर्मीले हों या न हों, हम सबको नम्र रहने में कड़ी मेहनत करनी होगी।

पौलुस खुद को दूसरों से बढ़कर नहीं समझता था (पैराग्राफ 6 देखें) *

6. पहला कुरिंथियों 15:10 के मुताबिक हम पौलुस की मिसाल से क्या सीखते हैं?

6 प्रेषित पौलुस के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। उसे यहोवा ने अपनी सेवा में बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ सौंपी थीं। उसने एक-के-बाद-एक कई शहरों में नयी मंडलियाँ शुरू कीं। उसने जो किया, उतना शायद ही यीशु के किसी और प्रेषित ने किया हो। फिर भी पौलुस ने यह नहीं सोचा कि वह अपने भाइयों से बेहतर है बल्कि उसने कबूल किया, “मैं प्रेषितों में सबसे छोटा हूँ, यहाँ तक कि प्रेषित कहलाने के भी लायक नहीं हूँ क्योंकि मैंने परमेश्‍वर की मंडली पर ज़ुल्म किया।” (1 कुरिं. 15:9) तो फिर पौलुस का यहोवा के साथ अच्छा रिश्‍ता किस वजह से था? क्या इसलिए कि उसमें कोई खास बात थी या उसने बड़े-बड़े काम किए थे? नहीं, पौलुस ने बताया कि यहोवा के साथ उसका रिश्‍ता यहोवा की महा-कृपा की वजह से ही था। (1 कुरिंथियों 15:10 पढ़िए।) जब पौलुस ने कुरिंथ की मंडली को खत लिखा, तो वह अच्छी तरह जानता था कि कुछ लोग उसकी बुराई कर रहे थे, फिर भी उसने अपने बारे में डींगें नहीं मारी। पौलुस ने नम्रता की क्या ही बेहतरीन मिसाल रखी!—2 कुरिं. 10:10.

शासी निकाय के सदस्य रह चुके भाई कार्ल एफ. क्लाइन बहुत नम्र थे (पैराग्राफ 7 देखें)

7. हमारे समय के एक जाने-माने भाई ने कैसे ज़ाहिर किया कि वे नम्र हैं?

7 हमारे समय में भाई कार्ल एफ. क्लाइन ने भी नम्र रहने में एक बढ़िया मिसाल रखी। वे एक समय पर शासी निकाय के सदस्य थे। अपनी जीवन कहानी में भाई ने खुलकर बताया कि उनमें क्या कमज़ोरियाँ थीं और उन्होंने किन मुश्‍किलों का सामना किया था। जैसे, 1922 में जब वे पहली बार घर-घर के प्रचार में गए, तो उन्हें वह काम इतना मुश्‍किल लगा कि करीब दो साल तक उन्होंने प्रचार नहीं किया। बाद में जब वे बेथेल में सेवा कर रहे थे, तो एक भाई ने किसी बात पर उन्हें कड़ी सलाह दी। इस वजह से भाई क्लाइन काफी समय तक उस भाई से नाराज़ रहे। इसके अलावा, एक बार भाई मानसिक रूप से पूरी तरह पस्त और निराश हो गए, लेकिन बाद में वे ठीक हो गए। इन कमज़ोरियों और मुश्‍किलों के बावजूद भाई को कई अहम ज़िम्मेदारियाँ मिलीं। ज़रा सोचिए, भाई क्लाइन को बहुत-से लोग जानते थे, फिर भी उन्होंने खुलकर अपनी कमियाँ बतायीं। सच में वे बहुत नम्र थे! आज भी यहोवा के लोग भाई क्लाइन को और उनकी जीवन कहानी को याद करते हैं और इससे उन्हें बहुत हौसला मिलता है। *

नम्र रहना ज़रूरी क्यों है?

8. पहला पतरस 5:6 से कैसे पता चलता है कि हमारी नम्रता देखकर यहोवा खुश होता है?

8 नम्र रहने की सबसे बड़ी वजह है कि इससे यहोवा खुश होता है। प्रेषित पतरस ने भी यह बात कही। (1 पतरस 5:6 पढ़िए।) पतरस की इसी बात को समझाने के लिए “मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले”  किताब बताती है, “घमंड, ज़हर की तरह है। इसके अंजाम बहुत भयानक हो सकते हैं। घमंड काबिल-से-काबिल और गुणी इंसान को भी परमेश्‍वर की नज़र में निकम्मा बना देता है। वहीं दूसरी तरफ, नम्रता का गुण होने से ऐसा इंसान भी यहोवा के बहुत काम आ सकता है जिसमें कोई खास हुनर न हो। . . . नम्रता दिखाने के लिए परमेश्‍वर आपको . . . खुशी-खुशी इनाम देगा।” * नम्र रहने से हम यहोवा का दिल खुश करते हैं। भला इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है!—नीति. 23:15.

9. नम्र रहने से लोग कैसे हमारी तरफ खिंचे चले आएँगे?

9 नम्र रहने की एक और वजह है कि इससे खुद हमें बहुत फायदा होता है। एक फायदा यह है कि लोग हमारी तरफ खिंचे चले आएँगे। वह कैसे? ज़रा सोचिए, आप किस तरह के लोगों के साथ मेल-जोल रखना पसंद करते हैं? (मत्ती 7:12) आम तौर पर हम ऐसे लोगों के आस-पास रहना पसंद नहीं करते, जो हर मामले में अपनी बात मनवाना चाहते हैं और दूसरों की नहीं सुनते। वहीं दूसरी तरफ, जब हम मसीही भाई-बहनों के साथ होते हैं, तो हमें कितना अच्छा लगता है क्योंकि वे ‘एक-दूसरे का दर्द महसूस करते हैं, भाइयों जैसा लगाव रखते हैं, कोमल करुणा दिखाते हैं और नम्र स्वभाव रखते हैं।’ (1 पत. 3:8) अगर हमें नम्र लोगों का साथ अच्छा लगता है, तो बेशक दूसरे लोगों को भी हमारा साथ तभी अच्छा लगेगा जब हम नम्र होंगे।

10. नम्र रहने से मुश्‍किलों का सामना करना कैसे आसान हो जाता है?

10 नम्र रहने का एक और फायदा यह है कि हमारे लिए मुश्‍किलों का सामना करना थोड़ा-बहुत आसान हो जाता है। कभी-कभी हमारे साथ या किसी और के साथ कुछ ऐसा होता है जिससे हमें लगे, ‘यह तो सरासर नाइंसाफी है!’ इस बारे में बुद्धिमान राजा सुलैमान ने कहा था, “मैंने देखा है कि नौकर घोड़े पर सवार होते हैं जबकि हाकिम नौकर-चाकरों की तरह पैदल चलते हैं।” (सभो. 10:7) उसकी बात कितनी सच है! अकसर देखा जाता है कि जिन लोगों में बहुत हुनर होता है, उन्हें अपने काम का श्रेय नहीं मिलता जबकि जिनमें कोई खास हुनर नहीं होता, उन्हें खूब आदर-सम्मान मिलता है। लेकिन जैसा सुलैमान ने कहा, इस तरह की बातों के बारे में सोचकर हमें बहुत ज़्यादा परेशान नहीं होना चाहिए। (सभो. 6:9) अगर हम नम्र हैं, तो हम इस बात को मानेंगे कि ज़िंदगी में कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें हम बदल नहीं सकते। इस तरह हम मुश्‍किलों का धीरज से सामना कर पाएँगे।

किन हालात में नम्र रहना मुश्‍किल हो सकता है?

किन हालात में नम्र रहना मुश्‍किल हो सकता है? (पैराग्राफ 11-12 देखें) *

11. सलाह मिलने पर हमें कैसा रवैया रखना चाहिए?

11 हर दिन हमें यह दिखाने के कई मौके मिलते हैं कि हम नम्र हैं। कुछ हालात पर ध्यान दीजिए: जब हमें कोई सलाह दी जाती है।  याद रखिए कि अगर कोई हमें सलाह दे रहा है, तो हमसे ज़रूर कोई गलती हुई होगी। ऐसे मौके पर शायद हमें लगे कि यह सलाह हम पर लागू नहीं होती। हो सकता है, हम सलाह देनेवाले में या फिर सलाह देने के उसके तरीके में खामियाँ ढूँढ़ने लगें। लेकिन अगर हम नम्र हैं, तो हम सही रवैया रखने की कोशिश करेंगे।

12. नीतिवचन 27:5, 6 के मुताबिक हमें सलाह देनेवाले का एहसानमंद क्यों होना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।

12 नम्र इंसान हमेशा अच्छी सलाह की कदर करता है। इस बात को समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए। आप सभा में आए हैं और कुछ भाई-बहनों से बात कर रहे हैं। फिर उनमें से एक आपको अलग ले जाता है और बताता है कि आपके दाँत में कुछ खाना फँसा है। यह सुनकर आप शर्मिंदा हो जाते हैं, लेकिन आप उस भाई या बहन के एहसानमंद होंगे कि उसने आपको आकर बताया। शायद आप यह भी सोचें, ‘काश! किसी ने मुझे पहले बता दिया होता।’ उसी तरह जब कोई मसीही हिम्मत जुटाकर हमें सलाह देता है, तो हमें नम्रता से सलाह कबूल करनी चाहिए और उस भाई या बहन का एहसानमंद होना चाहिए। हमें उसे अपना दुश्‍मन नहीं बल्कि अपना दोस्त समझना चाहिए।—नीतिवचन 27:5, 6 पढ़िए; गला. 4:16.

जब दूसरों को यहोवा की सेवा में ज़िम्मेदारियाँ मिलती हैं, तब नम्र रहना क्यों ज़रूरी है? (पैराग्राफ 13-14 देखें) *

13. जब दूसरों को ज़िम्मेदारियाँ मिलती हैं, तो हम नम्र कैसे रह सकते हैं?

13 जब दूसरों को यहोवा की सेवा में ज़िम्मेदारियाँ मिलती हैं।  जेसन नाम का एक प्राचीन बताता है, “जब किसी भाई को ज़िम्मेदारियाँ मिलती थीं, तो मैं सोचता था कि यह मौका मुझे क्यों नहीं मिला।” क्या आपको भी ऐसा लगता है? अगर आप यहोवा की सेवा में ज़्यादा-से-ज़्यादा करना चाहते हैं और इस ‘कोशिश में आगे बढ़ रहे हैं,’ तो यह अच्छी बात है। (1 तीमु. 3:1) मगर हमें अपनी सोच को काबू में रखना चाहिए क्योंकि अगर हम ध्यान न दें तो हममें घमंड आ सकता है। जैसे, एक भाई शायद यह सोचने लगे कि मंडली में फलाँ ज़िम्मेदारी वही सँभाल सकता है, कोई और नहीं। या फिर एक बहन मन-ही-मन सोचने लगे, ‘यह काम तो मेरे पति ज़्यादा अच्छी तरह कर सकते हैं।’ लेकिन अगर हम सच में नम्र हैं, तो हम इस तरह की सोच नहीं रखेंगे।

14. (क) जब इसराएल में दूसरों को ज़िम्मेदारियाँ मिलीं, तो मूसा ने कैसा रवैया रखा? (ख) हम उसकी मिसाल से क्या सीख सकते हैं?

14 ज़रा मूसा के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। यहोवा ने उसे पूरे इसराएल राष्ट्र का अगुवा ठहराया था और वह इस ज़िम्मेदारी को बहुत अनमोल समझता था। मगर फिर यहोवा ने मूसा की कुछ ज़िम्मेदारियाँ दूसरों को सँभालने दीं। इस पर मूसा ने कैसा रवैया रखा? उसे उन लोगों से जलन नहीं हुई। (गिन. 11:24-29) वह नम्र था और अपना काम बाँटने के लिए तैयार था। (निर्ग. 18:13-24) इस वजह से इसराएलियों को मूसा के अलावा और भी काबिल न्यायी मिले जो उनके मामलों में फैसले सुना सकते थे और तुरंत उनकी मदद कर सकते थे। सच में, मूसा को अपने ओहदे और ज़िम्मेदारियों से ज़्यादा लोगों की फिक्र थी। हमारे लिए क्या ही बेहतरीन मिसाल! इससे हम क्या सीखते हैं? अगर हम चाहते हैं कि हम यहोवा के काम आएँ, तो याद रखिए कि हममें सबसे पहले नम्रता का गुण होना चाहिए, इसके बाद ही हमारी काबिलीयतें कोई मायने रखती हैं। बाइबल बताती है, “यहोवा ऊँचे पर निवास करता है, फिर भी वह नम्र लोगों पर गौर करता है।”—भज. 138:6.

15. कई भाई-बहनों को किन बदलते हालात का सामना करना पड़ा है?

15 जब हमारे हालात बदलते हैं।  पिछले कुछ सालों में कई भाई-बहनों को, जो लंबे समय से यहोवा की सेवा कर रहे हैं, बदलावों का सामना करना पड़ा है। उदाहरण के लिए, 2014 में संगठन ने निर्देश दिया कि ज़िला निगरान की भूमिका नहीं रहेगी और अब तक जो भाई यह ज़िम्मेदारी निभा रहे थे, उन्हें और उनकी पत्नियों को यहोवा की सेवा में दूसरे काम दिए जाएँगे। उसी साल यह भी निर्देश मिला कि एक भाई 70 साल की उम्र तक ही सर्किट निगरान के तौर पर सेवा कर पाएगा। जहाँ तक प्राचीनों के निकाय के संयोजक की बात है, तो एक भाई 80 की उम्र पार करने के बाद यह ज़िम्मेदारी किसी और को सौंप देगा। इसके अलावा, कई भाई-बहनों को बेथेल से पायनियर बनाकर भेजा गया। दूसरे भाई-बहनों को खराब सेहत, परिवार की ज़िम्मेदारियों या फिर किसी और वजह से खास पूरे समय की सेवा छोड़नी पड़ी है।

16. भाई-बहनों ने बदलते हालात में नम्रता का सबूत कैसे दिया है?

16 इन बदलावों का सामना करना और नए हालात में ढलना कई भाई-बहनों के लिए आसान नहीं रहा है। उन्हें यहोवा की सेवा में फलाँ काम करते हुए कई साल हो गए थे और उन्हें उस काम से लगाव भी हो गया था। इस वजह से जब उन्हें अपनी सेवा छोड़नी पड़ी, तो उन्हें बहुत दुख हुआ। लेकिन फिर धीरे-धीरे उन्होंने नए हालात में खुद को ढालना सीख लिया। वे ऐसा इसलिए कर पाए कि उन्हें यहोवा से प्यार था। वे जानते थे कि वे परमेश्‍वर को समर्पित हैं, किसी काम या ओहदे को नहीं। (कुलु. 3:23) आज भी वे यहोवा की सेवा में कोई भी काम करने के लिए तैयार हैं। वे “अपनी सारी चिंताओं का बोझ [यहोवा] पर डाल” देते हैं, क्योंकि उन्हें यकीन है कि उसे उनकी परवाह है।—1 पत. 5:6, 7.

17. हम क्यों शुक्रगुज़ार हैं कि परमेश्‍वर का वचन हमें नम्र रहने का बढ़ावा देता है?

17 हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि परमेश्‍वर का वचन हमें नम्र रहने का बढ़ावा देता है। नम्र रहने से न सिर्फ हमें फायदा होता है बल्कि दूसरे भी हमारे साथ मेल-जोल रखना पसंद करते हैं। हमारे लिए मुश्‍किलों का सामना करना थोड़ा-बहुत आसान हो जाता है। लेकिन सबसे बढ़कर हम यहोवा के करीब आते हैं। वह “सबसे महान” है, फिर भी वह अपने नम्र सेवकों से प्यार करता है और उन्हें अनमोल समझता है। क्या इस बात से हमें खुशी नहीं मिलती?—यशा. 57:15.

गीत 45 मेरे मन के विचार

^ पैरा. 5 नम्रता एक ऐसा गुण है जो हममें से हरेक में होना चाहिए। लेकिन नम्रता का मतलब क्या है? नम्र रहना ज़रूरी क्यों है? बदलते हालात में नम्र रहना क्यों मुश्‍किल हो सकता है? इस लेख में इन ज़रूरी सवालों के जवाब दिए जाएँगे।

^ पैरा. 7 1 अक्टूबर, 1984 की (अँग्रेज़ी) प्रहरीदुर्ग  के पेज 21-28 और 1 मई, 2001 की प्रहरीदुर्ग  में दिया लेख, “यहोवा ने मेरे साथ बहुत भलाई की है!” देखें।

^ पैरा. 53 तसवीर के बारे में: प्रेषित पौलुस एक भाई के घर पर खुशी-खुशी सबके साथ संगति कर रहा है, बच्चों के साथ भी। इस तरह वह ज़ाहिर कर रहा है कि वह नम्र है।

^ पैरा. 57 तसवीर के बारे में: एक बुज़ुर्ग भाई एक जवान भाई से बाइबल पर आधारित सलाह कबूल करता है।

^ पैरा. 59 तसवीर के बारे में: बुज़ुर्ग भाई को यह देखकर जलन नहीं होती कि जवान भाई मंडली में कोई ज़िम्मेदारी सँभाल रहा है।