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अध्ययन लेख 38

अच्छे वक्‍त में समझदारी से काम लीजिए

अच्छे वक्‍त में समझदारी से काम लीजिए

“इन सालों के दौरान देश में चैन था और किसी ने आसा से युद्ध नहीं किया। यहोवा ने उसे शांति दी थी।”—2 इति. 14:6.

गीत 60 ज़िंदगी दाँव पर लगी है

लेख की एक झलक *

1. यहोवा की सेवा करने में हम कब ढीले पड़ सकते हैं?

आपको क्या लगता है, यहोवा की सेवा में हम कब ढीले पड़ सकते हैं? क्या तब, जब हम बहुत सारी समस्याओं से गुज़र रहे होते हैं? या तब जब सबकुछ ठीक चल रहा होता है? जब हम पर समस्याएँ आती हैं, तो हम यहोवा के करीब रहने और उसकी सेवा करने की पूरी कोशिश करते हैं। लेकिन जब सबकुछ अच्छा चल रहा होता है, तो बड़ी आसानी से हमारा ध्यान भटक सकता है। बहुत पहले यहोवा ने इसराएलियों को भी बताया था कि अगर वे सावधान न रहें, तो उनसे ऐसी गलती हो सकती है।​—व्यव. 6:10-12.

राजा आसा ने झूठी उपासना मिटाने के लिए सख्त कदम उठाए (पैराग्राफ 2 देखें) *

2. राजा आसा हमारे लिए क्यों एक अच्छी मिसाल है?

2 राजा आसा हमारे लिए एक अच्छी मिसाल है। उसने यहोवा पर पूरा भरोसा रखा और समझदारी से काम लिया। उसने न सिर्फ मुश्‍किलों के समय में मगर तब भी यहोवा की सेवा की जब देश में शांति थी। छोटी उम्र से ही उसका ‘दिल यहोवा पर पूरी तरह लगा रहा।’ (1 राजा 15:14) इसका एक सबूत यह है कि उसने यहूदा से झूठी उपासना को मिटाने के लिए बहुत कुछ किया। बाइबल बताती है, “उसने पराए देवताओं की वेदियाँ और ऊँची जगह मिटा दीं, पूजा-स्तंभ चूर-चूर कर दिए और पूजा-लाठें काट डालीं।” (2 इति. 14:3, 5) उसने अपनी दादी माका को राजमाता के पद से हटा दिया, क्योंकि उसने एक मूरत खड़ी करवायी और उसकी उपासना फैला दी थी।​—1 राजा 15:11-13.

3. इस लेख में हम किस बारे में चर्चा करेंगे?

3 आसा ने झूठी उपासना को मिटाने के साथ-साथ सच्ची उपासना को बढ़ावा भी दिया। यही वजह है कि यहूदा राज्य के लोग फिर से यहोवा की उपासना करने लगे। यहोवा ने राजा आसा और प्रजा को आशीषें दीं, इसलिए देश में काफी समय तक शांति रही। बाइबल बताती है कि आसा के राज में दस साल तक “चैन” था। (2 इति. 14:1, 4, 6) इस लेख में बताया जाएगा कि इस दौरान आसा ने कैसे समझदारी से काम लिया। फिर हम पहली सदी के मसीहियों के उदाहरण पर ध्यान देंगे जिन्होंने आसा की तरह शांति के समय में बुद्धिमानी से काम लिया। आखिर में हम इस बारे में बात करेंगे कि अगर आपके देश में फिलहाल उपासना करने की आज़ादी है, तो आप उसका सही इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं।

आसा ने शांति के समय में क्या किया?

4. दूसरा इतिहास 14:2, 6, 7 के मुताबिक आसा ने शांति के समय में क्या किया?

4 दूसरा इतिहास 14:2, 6, 7 पढ़िए। आसा ने लोगों को बताया कि यहोवा ने ही उन्हें “चारों तरफ शांति दी है।” उसने यह नहीं सोचा कि यह आराम करने का समय है। इसके बजाय, उसने देश-भर में निर्माण काम शुरू करवाए। उसने कई शहर, शहरपनाह, मीनारें और फाटक बनवाए। उसने लोगों से कहा, “यह देश हमारे अधिकार में है।” उसके कहने का यह मतलब था, ‘आज देश में आज़ादी है, दुश्‍मनों का कोई खतरा नहीं है इसलिए हम कहीं भी आ-जा सकते हैं। तो क्यों न हम मौके का फायदा उठाकर सारे निर्माण काम कर लें?’

5. आसा ने क्यों अपनी सेना मज़बूत की?

5 आसा ने निर्माण काम करने के अलावा अपनी सेना को मज़बूत किया। (2 इति. 14:8) क्या इसका यह मतलब था कि उसे यहोवा पर भरोसा नहीं था? ऐसी बात नहीं है। उसे भरोसा था कि यहोवा उन्हें बचाएगा। मगर एक राजा के नाते वह अपना फर्ज़ निभाना चाहता था। वह अपने लोगों को तैयार रखना चाहता था ताकि अगर कभी युद्ध हो, तो वे उसका सामना कर सकें। वह जानता था कि आज भले ही शांति है, लेकिन कल कुछ भी हो सकता है। और बाद में ऐसा ही हुआ।

पहली सदी के मसीहियों ने शांति के समय में क्या किया?

6. शांति के समय में पहली सदी के मसीहियों ने क्या किया?

6 पहली सदी के मसीहियों को कई बार ज़ुल्म सहने पड़े। लेकिन कभी-कभी उन्होंने शांति का भी आनंद उठाया। ऐसे वक्‍त में उन्होंने क्या किया? वे प्रचार करते रहे। प्रेषितों की किताब बताती है कि वे ‘यहोवा का डर मानते रहे’ और उसकी सेवा करते रहे। इसलिए मंडली में “बढ़ोतरी होती गयी।” इससे पता चलता है कि जब शांति के दौर में उन्होंने मेहनत की, तो यहोवा ने उन्हें आशीष दी।​—प्रेषि. 9:26-31.

7-8. पौलुस और दूसरे मसीहियों ने मौके का फायदा कैसे उठाया? समझाइए।

7 पहली सदी के मसीहियों को जब भी मौका मिला, उन्होंने दूर-दूर तक खुशखबरी फैलायी। प्रेषित पौलुस की ही बात लीजिए। जब वह इफिसुस में था, तो उसने देखा कि वहाँ प्रचार करने का बढ़िया मौका है। वह कुछ समय के लिए इफिसुस में ही रहा और उसने चेले बनने में कई लोगों की मदद की।​—1 कुरिं. 16:8, 9.

8 ईसवी सन्‌ 49 में भी पौलुस और दूसरे मसीहियों को प्रचार करने का एक बढ़िया मौका मिला। उस साल खतने का मसला सुलझाया गया और फिर शासी निकाय का फैसला सभी मंडलियों को बताया गया। (प्रेषि. 15:23-29) इसके बाद पौलुस और दूसरे मसीहियों ने “यहोवा के वचन की खुशखबरी” सुनाने में बहुत मेहनत की। (प्रेषि. 15:30-35) नतीजा क्या हुआ? बाइबल बताती है, “मंडलियों का विश्‍वास मज़बूत होता गया और उनकी तादाद दिनों-दिन बढ़ती गयी।”​—प्रेषि. 16:4, 5.

अच्छे वक्‍त में हमें क्या करना है?

9. (क) आज कई देशों के बारे में क्या कहा जा सकता है? (ख) इससे क्या सवाल उठता है?

9 आज कई देशो में यहोवा के लोगों को प्रचार करने की आज़ादी है। क्या आपके देश में भी ऐसा है? अगर हाँ, तो क्या आप आज़ादी का पूरा फायदा उठा रहे हैं? आज हम आखिरी दिनों के सबसे रोमांचक समय में जी रहे हैं। पूरी दुनिया में प्रचार काम इतने ज़ोर-शोर से हो रहा है जितना पहले कभी नहीं हुआ था। (मर. 13:10) प्रचार काम ज़्यादा करने के हमारे पास कई मौके हैं।

कई भाई-बहन दूसरे देश जाकर प्रचार करते हैं या दूसरी भाषा सीखते हैं। वे बहुत-सी आशीषें पाते हैं (पैराग्राफ 10-12 देखें) *

10. दूसरा तीमुथियुस 4:2 में हमें क्या सलाह दी गयी है?

10 आप अपनी आज़ादी का फायदा उठाकर क्या कर सकते हैं? (2 तीमुथियुस 4:2 पढ़िए।) हो सके तो क्या आप या आपके परिवार का कोई सदस्य प्रचार काम ज़्यादा कर सकता है? क्या आप पायनियर सेवा कर सकते हैं? याद रखिए, यह समय धन-दौलत या ऐशो-आराम की चीज़ें बटोरने का नहीं है। महा-संकट में ये सारी चीज़ें मिट जाएँगी।​—नीति. 11:4; मत्ती 6:31-33; 1 यूह. 2:15-17.

11. ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को खुशखबरी सुनाने के लिए कई प्रचारकों ने क्या किया है?

11 कई प्रचारकों ने एक अलग भाषा सीखी है ताकि वे उस भाषा के लोगों को प्रचार कर सकें और उन्हें सिखा सकें। इन भाई-बहनों की मदद करने के लिए हमारा संगठन पहले से ज़्यादा भाषाओं में प्रकाशन तैयार कर रहा है। सन्‌ 2010 में हमारे प्रकाशन करीब 500 भाषाओं में उपलब्ध थे। लेकिन आज ये 1,000 से ज़्यादा भाषाओं में उपलब्ध हैं।

12. जब लोग अपनी भाषा में सच्चाई की बातें सुनते हैं, तो उन्हें कैसा लगता है? एक अनुभव बताइए।

12 जब लोग अपनी भाषा में सच्चाई की बातें सुनते हैं, तो उन्हें कैसा लगता है? अमरीका में रहनेवाली एक बहन के उदाहरण पर गौर कीजिए। उसकी मातृ-भाषा किन्यारवान्डा है। यह भाषा ज़्यादातर रवांडा, कांगो (किन्शासा) और युगांडा में बोली जाती है। जब अमरीका के एक शहर मेम्फिस में किन्यारवान्डा भाषा में एक अधिवेशन हुआ, तो यह बहन उसमें गयी। वह कहती है, “मुझे अमरीका आए 17 साल हो चुके हैं। मगर पहली बार अधिवेशन में मुझे सारी बातें समझ में आयीं।” हम साफ देख सकते हैं कि जब इस बहन ने अपनी भाषा में कार्यक्रम सुना, तो उसके दिल पर गहरा असर हुआ। अगर आपके इलाके में दूसरी भाषा बोलनेवाले लोग हैं, तो क्या आप उन्हें प्रचार करने के लिए उनकी भाषा सीख सकते हैं? अगर वे अपनी भाषा अच्छी तरह समझते हैं, तो क्या उनकी भाषा में ही बात करना अच्छा नहीं रहेगा? दूसरी भाषा सीखने में भले ही मेहनत लगती है मगर जब आपको इसका फल मिलेगा, तो आपको ज़रूर खुशी होगी।

13. रूस के भाई-बहनों को जब आज़ादी मिली, तो उन्होंने क्या किया?

13 कुछ देशों में हमारे भाई-बहन खुलेआम प्रचार नहीं कर सकते। सरकार ने वहाँ बहुत-सी पाबंदियाँ लगा दी हैं। रूस में कुछ ऐसा ही हुआ है। सन्‌ 1991 से पहले सालों तक भाई-बहनों पर ज़ुल्म किए गए। फिर मार्च 1991 में सरकार ने उन्हें उपासना करने की आज़ादी दी। तब तक रूस में करीब 16,000 प्रचारक थे। फिर उनकी गिनती लगातार बढ़ती गयी और 20 साल बाद वहाँ 1,60,000 से ज़्यादा प्रचारक हो गए। रूस के भाई-बहनों को जब आज़ादी मिली, तो उन्होंने समझदारी से काम लिया और प्रचार में बहुत मेहनत की। मगर उनकी आज़ादी ज़्यादा दिन तक नहीं रही और फिर से उन पर पाबंदी लगा दी गयी। फिर भी उनका जोश ठंडा नहीं पड़ा। यहोवा की सेवा करने के लिए वे जो भी कर सकते हैं, वे कर रहे हैं।

अच्छा वक्‍त हमेशा नहीं रहेगा

यहोवा ने आसा की प्रार्थना सुनी और उसे एक बड़ी सेना पर जीत दिलायी (पैराग्राफ 14-15 देखें)

14-15. यहोवा ने आसा और उसके लोगों के लिए क्या किया?

14 आसा के राज में जो अच्छा वक्‍त चल रहा था, वह हमेशा नहीं रहा। एक वक्‍त ऐसा आया जब देश पर मुसीबत टूट पड़ी। इथियोपिया से एक बहुत बड़ी सेना यहूदा देश पर हमला करने आयी। उनके पास दस लाख से ज़्यादा सैनिक थे। इथियोपिया के सेनापति जेरह ने सोचा कि जब उसके पास इतनी बड़ी सेना है, तो वह आसानी से यहूदा पर कब्ज़ा कर लेगा। वहीं दूसरी तरफ, भले ही आसा ने अपनी सेना मज़बूत की थी, मगर उसने अपनी सेना के बजाय यहोवा पर भरोसा रखा। उसने प्रार्थना की, “हे हमारे परमेश्‍वर यहोवा, हमारी मदद कर क्योंकि हमने तुझ पर भरोसा किया है और तेरे नाम से हम इस विशाल सेना का मुकाबला करने आए हैं।”​—2 इति. 14:11.

15 इथियोपिया के सैनिकों की गिनती आसा के सैनिकों से दुगनी थी। लेकिन आसा जानता था कि यहोवा सबसे ज़्यादा ताकतवर है और अपने लोगों को बचा सकता है। और वाकई ऐसा हुआ। यहोवा ने अपने लोगों की रक्षा की और इथियोपिया की सेना बुरी तरह हार गयी।​—2 इति. 14:8-13.

16. हम कैसे जानते हैं कि अच्छा वक्‍त हमेशा तक नहीं रहेगा?

16 हम नहीं जानते कि आनेवाले दिनों में हममें से हरेक के साथ क्या होगा। लेकिन हम यह पक्के तौर पर जानते हैं कि आज जहाँ कहीं यहोवा के लोगों के लिए अच्छा वक्‍त चल रहा है, वह हमेशा नहीं रहेगा। यीशु ने बताया था कि आखिरी दिनों में ‘सब राष्ट्रों के लोग उसके चेलों से नफरत करेंगे।’ (मत्ती 24:9) प्रेषित पौलुस ने भी कहा, “जितने भी मसीह यीशु में परमेश्‍वर की भक्‍ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं उन सब पर इसी तरह ज़ुल्म ढाए जाएँगे।” (2 तीमु. 3:12) आज शैतान “बड़े क्रोध” में है। अगर हम यह मान बैठें कि हम उसके क्रोध से किसी तरह बच जाएँगे, तो यह बहुत बड़ी भूल होगी।​—प्रका. 12:12.

17. हमारा विश्‍वास किस तरह परखा जा सकता है?

17 बहुत जल्द ‘ऐसा महा-संकट आएगा जैसा दुनिया की शुरूआत से अब तक नहीं हुआ।’ (मत्ती 24:21) उस वक्‍त हम सब पर बड़ी-बड़ी मुश्‍किलें आएँगी और हमारा विश्‍वास परखा जाएगा। शायद हमारा काम बंद कर दिया जाएगा और शायद परिवार के लोग भी हमारे खिलाफ हो जाएँगे। (मत्ती 10:35, 36) ऐसे में आप क्या करेंगे? क्या आप आसा की तरह यहोवा पर भरोसा रखेंगे कि वह आपकी मदद और हिफाज़त करेगा?

18. इब्रानियों 10:38, 39 के मुताबिक आनेवाली मुश्‍किलों का सामना करने के लिए हमें क्या करना होगा?

18 यहोवा हमें अभी से तैयार कर रहा है ताकि हम आनेवाली मुश्‍किलों का डटकर सामना कर सकें। हमारा विश्‍वास मज़बूत करने के लिए वह “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए हमें “सही वक्‍त” पर बढ़िया मार्गदर्शन दे रहा है। (मत्ती 24:45) लेकिन यहोवा पर विश्‍वास मज़बूत करने के लिए हमें खुद भी मेहनत करनी है।​—इब्रानियों 10:38, 39 पढ़िए।

19-20. (क) 1 इतिहास 28:9 को ध्यान में रखते हुए हमें खुद से कौन-से सवाल करने चाहिए? (ख) खुद को जाँचना क्यों ज़रूरी है?

19 राजा आसा की तरह हमें “यहोवा की खोज” करनी चाहिए। (2 इति. 14:4; 15:1, 2) जब हमने यहोवा को जाना और बपतिस्मा लिया, तब हमने उसकी खोज करनी शुरू की थी। हमें यहोवा के करीब रहने के लिए लगातार मेहनत करनी चाहिए। तो हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘क्या मैं लगातार सभाओं में जाता हूँ?’ सभाओं में जाने से हमारा जोश बढ़ता है कि हम यहोवा की सेवा करते रहें। भाई-बहनों की संगति करने से हमें हौसला मिलता है। (मत्ती 11:28) हम खुद से यह भी पूछ सकते हैं, ‘क्या मैंने हर दिन बाइबल का अध्ययन करने की आदत बनायी है?’ अगर आपका परिवार है, तो क्या आप अपने परिवार के साथ हर हफ्ते पारिवारिक उपासना करते हैं? अगर आप अकेले रहते हैं, तो क्या आप हर हफ्ते निजी अध्ययन करते हैं, ठीक जैसे सभी परिवार हर हफ्ते पारिवारिक उपासना करते हैं? क्या आप जी-जान से प्रचार करते हैं और चेला बनाने का काम करते हैं?

20 हमें खुद से ये सवाल क्यों करने चाहिए? बाइबल बताती है कि यहोवा हमारे दिलों और विचारों को जाँचता है, इसलिए हमें भी खुद की जाँच करनी चाहिए। (1 इतिहास 28:9 पढ़िए।) अगर हमें लगता है कि हमारे लक्ष्य सही नहीं हैं या किसी मामले में हमारी सोच गलत है, तो हमें खुद को बदलना होगा। हमें यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह बदलाव करने में हमारी मदद करे। अभी वह वक्‍त है कि हम आनेवाली मुश्‍किलों का सामना करने के लिए तैयार रहें। तो आइए हम किसी भी वजह से अपना ध्यान भटकने न दें और आज जब अच्छा वक्‍त चल रहा है, तो समझदारी से काम लें।

गीत 62 नया गीत!

^ पैरा. 5 क्या आपके देश में यहोवा की उपासना करने की आज़ादी है? अगर हाँ, तो आप आज़ादी का कैसे इस्तेमाल कर रहे हैं? इस लेख में बताया जाएगा कि हम यहूदा के राजा आसा और पहली सदी के मसीहियों से क्या सीख सकते हैं। हम देखेंगे कि उन्होंने शांति के समय में कैसे समझदारी से काम लिया।

^ पैरा. 56 तसवीर के बारे में: राजा आसा ने अपनी दादी को राजमाता के पद से हटा दिया, क्योंकि उसने झूठी उपासना फैला दी थी। कई लोगों ने आसा का साथ दिया और मूरतों को नष्ट कर दिया।

^ पैरा. 58 तसवीर के बारे में: एक पति-पत्नी ज़रूरत की चीज़ें लेकर ऐसी जगह जा रहे हैं जहाँ प्रचारक बहुत कम हैं।