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अध्ययन लेख 37

“अपना हाथ मत रोक”

“अपना हाथ मत रोक”

“सुबह अपना बीज बो और शाम तक अपना हाथ मत रोक।”—सभो. 11:6.

गीत 68 राज का बीज बोएँ

लेख की एक झलक *

1-2. सभोपदेशक 11:6 के मुताबिक प्रचार काम के लिए हममें कैसा जज़्बा होना चाहिए?

कुछ देशों में जब हम लोगों को खुशखबरी सुनाते हैं, तो वे और जानना चाहते हैं। वे खुशी से फूले नहीं समाते मानो उन्हें कोई खज़ाना मिल गया हो। वहीं दूसरे देशों में लोग परमेश्‍वर या बाइबल के बारे में कुछ नहीं सुनना चाहते। आपके इलाके में लोग कैसे हैं? क्या वे खुशखबरी सुनना चाहते हैं या नहीं? चाहे लोग सुनें या न सुनें, यहोवा चाहता है कि हम प्रचार में लगे रहें जब तक वह नहीं कहता कि यह काम पूरा हो गया है।

2 यहोवा तय कर चुका है कि प्रचार काम कब तक पूरा हो जाएगा। यह काम पूरा होते ही “अंत आ जाएगा।” (मत्ती 24:14, 36) तब तक हमें यहोवा की यह आज्ञा माननी है, “अपना हाथ मत रोक।” * आइए देखें कि हम यह कैसे कर सकते हैं।​—सभोपदेशक 11:6 पढ़िए।

3. इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

3 पिछले लेख में हमने देखा कि खुशखबरी के अच्छे प्रचारक बनने के लिए हमें क्या करना होगा। (मत्ती 4:19) हमने चार बातों पर चर्चा की थी। इस लेख में हम देखेंगे कि प्रचार में लगे रहने के लिए हमें क्या करना होगा। हम तीन बातों पर चर्चा करेंगे: (1) अपना ध्यान भटकने न दें, (2) सब्र रखें और (3) अपना विश्‍वास मज़बूत रखें। यह सब करने से हम प्रचार काम करते रहेंगे फिर चाहे हम पर जो भी मुश्‍किलें आएँ।

अपना ध्यान भटकने न दें

4. हमें उस काम पर क्यों ध्यान लगाए रखना है जो यहोवा ने हमें दिया है?

4 यीशु ने बताया था कि आखिरी दिनों में क्या-क्या होगा और लोग किन बातों में उलझे रहेंगे। वह जानता था कि उसके चेले भी इन बातों में उलझ सकते हैं और प्रचार काम में ढीले पड़ सकते हैं। यही वजह है कि उसने कहा, “जागते रहो।” (मत्ती 24:42) आज वाकई ऐसी कई बातें हैं जिनकी वजह से हमारा ध्यान भटक सकता है, ठीक जैसे नूह के दिनों में लोगों का ध्यान भटक गया था। (मत्ती 24:37-39; 2 पत. 2:5) हमें पूरी कोशिश करनी चाहिए कि हमारा ध्यान उस काम पर लगा रहे जो यहोवा ने हमें दिया है।

5. प्रेषितों 1:6-8 के मुताबिक प्रचार काम किस हद तक किया जाएगा?

5 आज हम ऐसे समय में जी रहे हैं जब प्रचार करना बहुत ज़रूरी हो गया है। हम लापरवाह हो ही नहीं सकते। जब यीशु धरती पर था, तो उसने कहा कि उसके चेले भी उसकी मौत के बाद प्रचार करते रहेंगे और उससे भी ज़्यादा यह काम करेंगे। (यूह. 14:12) यीशु की मौत के बाद कुछ चेले दोबारा मछुवाई करने में लग गए। लेकिन ध्यान दीजिए कि जब यीशु ज़िंदा हुआ, तो इसके बाद क्या हुआ। एक बार उसने देखा कि उसके चेले मछलियाँ पकड़ने में नाकाम हो गए हैं। फिर उसने चमत्कार करके उन्हें बहुत-सी मछलियाँ दिलायीं। उसी मौके पर उसने समझाया कि उसने प्रचार करने का जो काम सौंपा है, उस पर उन्हें ध्यान देना चाहिए न कि किसी और काम पर। (यूह. 21:15-17) स्वर्ग लौटने से पहले यीशु ने अपने चेलों को बताया कि वे इसराएल देश के अलावा दुनिया के दूसरे इलाकों में भी प्रचार करेंगे। (प्रेषितों 1:6-8 पढ़िए।) फिर सालों बाद यीशु ने प्रेषित यूहन्‍ना को एक दर्शन में दिखाया कि “प्रभु के दिन” * में क्या होगा। उसने देखा कि एक स्वर्गदूत के पास “सदा तक कायम रहनेवाली खुशखबरी” है और वह “हर राष्ट्र, गोत्र, भाषा और जाति के लोगों” को वह संदेश सुना रहा है। (प्रका. 1:10; 14:6) इन सारी बातों से पता चलता है कि आज यहोवा हमसे क्या चाहता है। यही कि हम प्रचार करने में तब तक लगे रहें जब तक यहोवा नहीं कहता कि यह काम पूरा हो गया है।

6. किस बारे में सोचने से हम प्रचार काम में लगे रहेंगे?

6 यहोवा आज हमारे लिए कितना कुछ कर रहा है। अगर हम इस बारे में सोचें, तो हम प्रचार काम को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देते रहेंगे। आज हमारे पास पहले से कहीं ज़्यादा किताबें-पत्रिकाएँ हैं और ये ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं। हमारे पास ऑडियो-वीडियो प्रोग्राम और ब्रॉडकास्टिंग कार्यक्रम भी हैं। ज़रा सोचिए, हमारी वेबसाइट पर 1,000 से ज़्यादा भाषाओं में जानकारी उपलब्ध है। (मत्ती 24:45-47) आज दुनिया के लोगों में फूट पड़ी है, क्योंकि उनके राजनैतिक और धार्मिक विचार आपस में मेल नहीं खाते और उनमें अमीर-गरीब का भेद है। लेकिन यहोवा के लोग कितने अलग हैं! आज उनकी गिनती 80 लाख से ज़्यादा है और वे पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। फिर भी उनमें सच्ची एकता और भाइयों जैसा प्यार है। उनकी एकता का एक सबूत शुक्रवार, 19 अप्रैल, 2019 को देखा गया। उस दिन पूरी दुनिया में रहनेवाले साक्षियों ने सुबह की उपासना का एक वीडियो देखा। फिर उसी शाम 2,09,19,041 लोग मसीह की मौत का स्मारक मनाने के लिए एक-साथ इकट्ठा हुए। आज के समय में यह बहुत बड़ा चमत्कार है। इस चमत्कार को अपनी आँखों से देखना और इसका हिस्सा होना एक बहुत बड़ी आशीष है। इस बात पर मनन करने से हममें जोश भर आता है कि हम प्रचार काम में लगे रहें और कभी पीछे न हटें।

यीशु सच्चाई की गवाही देता रहा, उसने अपना ध्यान भटकने नहीं दिया (पैराग्राफ 7 देखें)

7. हम यीशु के उदाहरण से क्या सीखते हैं?

7 प्रचार काम पर पूरा ध्यान लगाए रखने में एक और बात हमारी मदद कर सकती है। हमें यीशु की तरह बनने की कोशिश करनी है। वह सच्चाई की गवाही देता रहा और उसने किसी भी वजह से अपना ध्यान भटकने नहीं दिया। (यूह. 18:37) जब शैतान ने उसे “दुनिया के सारे राज्य और उनकी शानो-शौकत” दिखायी और उसे लुभाया, तो उसने इनकार कर दिया। जब लोगों ने भी उसे राजा बनाने की कोशिश की, तो वह उनकी बातों में नहीं आया। (मत्ती 4:8, 9; यूह. 6:15) उसने न तो धन-दौलत के लालच में आकर, न ही विरोधियों के डर से प्रचार काम बंद कर दिया। (लूका 9:58; यूह. 8:59) यीशु के इस बढ़िया उदाहरण को याद रखने से हम प्रचार काम में लगे रहेंगे, फिर चाहे हमारे सामने कोई भी परीक्षा क्यों न आए। प्रेषित पौलुस ने भी यही सलाह दी कि हम यीशु की तरह बनने की कोशिश करें। तब हम ‘थककर हार नहीं मानेंगे।’​—इब्रा. 12:3.

सब्र रखें

8. (क) हमें कब-कब सब्र रखना होता है? (ख) आज सब्र रखना क्यों खास तौर से ज़रूरी है?

8 हमें ज़िंदगी में कई बार सब्र रखना पड़ता है। अगर हम कोई मुश्‍किल झेल रहे हैं, तो हमें सब्र रखना होता है कि एक दिन यह ज़रूर खत्म होगी। अगर हम कुछ अच्छा होने की उम्मीद लगाए हुए हैं, तो ऐसे में भी हमें सब्र रखना होता है। भविष्यवक्‍ता हबक्कूक वह दिन देखने के लिए तरस रहा था जब यहूदा देश से हिंसा और बुराई मिट जाती। (हब. 1:2) यीशु के चेले उम्मीद लगाए हुए थे कि परमेश्‍वर का राज “कुछ ही पल में ज़ाहिर” हो जाएगा और रोमी सरकार के अत्याचार से उन्हें राहत दिलाएगा। (लूका 19:11) हम भी वह दिन देखने के लिए तरस रहे हैं जब परमेश्‍वर का राज बुराई को मिटा देगा और नयी दुनिया लाएगा। (2 पत. 3:13) लेकिन हमें सब्र रखना है और यहोवा के वक्‍त का इंतज़ार करना है। जब तक वह वक्‍त नहीं आता यहोवा हमें सब्र रखना सिखा रहा है। आइए देखें कैसे।

9. किन घटनाओं से पता चलता है कि यहोवा सब्र रखता है?

9 यहोवा खुद सब्र रखता है और चाहता है कि हम उससे सीखें। उसने नूह को जहाज़ बनाने और ‘नेकी का प्रचार’ करने के लिए काफी समय दिया। (2 पत. 2:5; 1 पत. 3:20) जब अब्राहम सदोम और अमोरा के नाश के बारे में सवाल-पर-सवाल करता रहा, तो यहोवा उसकी सुनता रहा। (उत्प. 18:20-33) और जब इसराएलियों ने सदियों तक यहोवा के खिलाफ काम किया, तो वह उनकी सहता रहा। (नहे. 9:30, 31) आज भी यहोवा सब्र रखता है ताकि नेकदिल लोगों को “पश्‍चाताप करने का मौका मिले।” (2 पत. 3:9; यूह. 6:44; 1 तीमु. 2:3, 4) यहोवा से हम सीखते हैं कि हमें भी प्रचार और सिखाने के काम में सब्र रखना है। उसके वचन में दी एक मिसाल से हम सब्र के बारे में कुछ सीखते हैं।

किसान बहुत मेहनत करता है, फिर भी सब्र रखता है। हमें भी सब्र रखना है (पैराग्राफ 10-11 देखें)

10. याकूब 5:7, 8 के मुताबिक एक किसान क्यों तारीफ के लायक है?

10 याकूब 5:7, 8 पढ़िए। इन आयतों में एक किसान की मिसाल दी गयी है जिससे हम सब्र रखना सीख सकते हैं। यह सच है कि कुछ फसलें जल्दी पकती हैं, लेकिन ज़्यादातर फसलों को पकने में समय लगता है। इसराएल देश में खेती करने का मौसम छ: महीने लंबा होता था। जब 15 अक्टूबर के आस-पास शुरू की बारिश होती, तब किसान बीज बोता था। मगर फसल के पकने के लिए उसे 15 अप्रैल के आस-पास होनेवाली बारिश का इंतज़ार करना होता था। इतने लंबे इंतज़ार के बाद ही उसे फल मिलता था। (मर. 4:28) आइए हम भी किसान की तरह सब्र रखें। लेकिन ऐसा करना शायद आसान न हो।

11. प्रचार काम करते समय हमें क्यों सब्र रखना चाहिए?

11 अपरिपूर्ण होने की वजह से हम इंसानों को किसी भी चीज़ का इंतज़ार करना मुश्‍किल लगता है। अगर हमने किसी काम में मेहनत की है, तो हम उसके नतीजे तुरंत चाहते हैं। लेकिन बागबानी या खेती-बाड़ी में बहुत सब्र से काम लेना होता है। हमें मिट्टी खोदनी होती है, पौधे लगाने होते हैं, समय-समय पर घास-फूस निकालने होते हैं और पानी देते रहना पड़ता है। काफी लंबे समय तक यह सब करना होता है। चेले बनाने के काम में भी लगातार मेहनत करनी होती है। जैसे बगीचे से घास-फूस निकालने में वक्‍त लगता है, वैसे ही बाइबल विद्यार्थियों के मन से भेदभाव को जड़ से निकालने में वक्‍त लगता है। हमें उन्हें सिखाना पड़ता है कि वे सबके साथ प्यार से व्यवहार करें। जब प्रचार में हमारी कोई नहीं सुनता, तब भी हमें सब्र रखना चाहिए। फिर हम निराश नहीं होंगे। जब लोग सुनना चाहते हैं और बाइबल के बारे में सीखना चाहते हैं, तब भी हमें सब्र रखना होगा कि वे वक्‍त आने पर तरक्की करेंगे। हम एक बाइबल विद्यार्थी पर दबाव नहीं डाल सकते कि वह जल्द-से-जल्द तरक्की करे। कभी-कभी यीशु के चेले भी उसकी बातों के मायने नहीं समझ पाते थे, उन्हें वक्‍त लगता था। (यूह. 14:9) हमें याद रखना है कि हम सिर्फ सच्चाई का बीज बोते हैं और पानी देते हैं, मगर यहोवा उसे बढ़ाता है।​—1 कुरिं. 3:6.

12. रिश्‍तेदारों को गवाही देते वक्‍त हमें सब्र क्यों रखना चाहिए?

12 अपने रिश्‍तेदारों को गवाही देते समय सब्र रखना हमें मुश्‍किल लग सकता है। लेकिन सभोपदेशक 3:7 में दी सलाह मानने से हम अपना सब्र नहीं खोएँगे। वहाँ लिखा है, “चुप रहने का . . . और बोलने का समय” होता है। हमें अच्छा चालचलन बनाए रखना चाहिए ताकि हमें देखकर हमारे रिश्‍तेदार सच्चाई के बारे में जानना चाहें। इस तरह हम चुप रहकर भी एक तरह से गवाही दे रहे होंगे। लेकिन जब-जब मौका मिलता है, हमें उन्हें सच्चाई के बारे में बताना भी चाहिए। (1 पत. 3:1, 2) यह सच है कि हमें जोश के साथ प्रचार करना और सिखाना चाहिए, लेकिन हमें सब्र भी रखना चाहिए, अपने रिश्‍तेदारों को गवाही देते समय भी।

13-14. ऐसे कुछ लोगों के उदाहरण बताइए जिन्होंने सब्र रखा।

13 हम यहोवा के कई वफादार सेवकों से सब्र रखना सीख सकते हैं। बाइबल के ज़माने में और हमारे ज़माने में भी ऐसे लोग रहे हैं। हबक्कूक उनमें से एक था। वह चाहता था कि यहूदा देश से बुराई जल्द-से-जल्द खत्म हो जाए। फिर भी उसने सब्र रखा और पूरे भरोसे के साथ कहा, “मैं अपने पहरे की चौकी पर खड़ा रहूँगा।” (हब. 2:1) प्रेषित पौलुस ने भी सब्र से काम लिया। उसे सेवा करने की जो ज़िम्मेदारी दी गयी थी, उसे वह पूरा करना चाहता था। मगर उसने जल्दबाज़ी नहीं की। वह लोगों को खुशखबरी के बारे में “अच्छी गवाही” देता रहा।​—प्रेषि. 20:24.

14 अब हमारे ज़माने के एक शादीशुदा जोड़े का उदाहरण लीजिए। वे जब गिलियड स्कूल से ग्रैजुएट हुए, तो उन्हें एक ऐसे देश में भेजा गया जहाँ बहुत कम साक्षी थे और वहाँ ईसाई भी बहुत कम थे। ज़्यादातर लोग बाइबल के बारे में नहीं सीखना चाहते थे। लेकिन उस जोड़े की गिलियड क्लास के दूसरे विद्यार्थियों को जिन देशों में भेजा गया था, वहाँ उन्हें बहुत-से बाइबल अध्ययन मिल रहे थे और उन्होंने सच्चाई सीखने में कई लोगों की मदद की। वे अकसर इस जोड़े को खबर देते थे कि उन्हें कितने अच्छे नतीजे मिल रहे हैं। हालाँकि इस जोड़े को कुछ खास नतीजे नहीं मिल रहे थे, मगर उन्होंने हार नहीं मानी। वे अपना काम करते रहे। आठ साल तक प्रचार करने के बाद आखिरकार उनकी एक बाइबल विद्यार्थी ने बपतिस्मा लिया, जो उनके लिए बहुत खुशी की बात थी। बाइबल के ज़माने और हमारे ज़माने के इन सेवकों में हमने एक अच्छी बात गौर की। उन्होंने कभी अपना हाथ नहीं रोका यानी वे ढीले नहीं पड़े और यहोवा की आशीष से उन्हें सब्र का फल मिला। आइए हम “उन लोगों की मिसाल पर [चलें] जो विश्‍वास और सब्र रखने की वजह से वादों के वारिस बनते हैं।”​—इब्रा. 6:10-12.

अपना विश्‍वास मज़बूत बनाए रखें

15. एक वजह बताइए कि हम क्यों ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को प्रचार करना चाहते हैं।

15 हमें विश्‍वास है कि हम लोगों को जो बताते हैं वह ज़रूर पूरा होगा, इसलिए हम ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को प्रचार करना चाहते हैं। हमें भरोसा है कि बाइबल में लिखे सारे वादे पूरे होंगे। (भज. 119:42; यशा. 40:8) हमने खुद बाइबल की भविष्यवाणियों को पूरा होते देखा है। हमने यह भी देखा है कि जब लोग बाइबल की सलाह मानते हैं, तो वे अपने अंदर बदलाव करते हैं और अच्छी ज़िंदगी जीते हैं। इससे हमारा यकीन बढ़ जाता है कि हर किसी को खुशखबरी सुनाना ज़रूरी है।

16. भजन 46:1-3 के मुताबिक हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा और यीशु पर विश्‍वास होने की वजह से हम प्रचार करते हैं?

16 इसके अलावा, हमें यहोवा पर विश्‍वास है जिसने हमें यह खुशखबरी दी है। हमें यीशु पर भी विश्‍वास है जिसे यहोवा ने अपने राज का राजा बनाया है। (यूह. 14:1) चाहे हम पर जो भी मुश्‍किल आए, यहोवा हमारी पनाह और ताकत बना रहेगा। (भजन 46:1-3 पढ़िए।) हमें इस बात का भरोसा है कि यीशु हमारे साथ है। यहोवा ने उसे बहुत अधिकार दिया है और आज वह स्वर्ग से प्रचार काम के लिए निर्देश दे रहा है।​—मत्ती 28:18-20.

17. एक अनुभव बताइए जिससे पता चलता है कि हमें क्यों प्रचार करते रहना चाहिए।

17 विश्‍वास होने की वजह से हमें यकीन है कि यहोवा हमारी मेहनत पर ज़रूर आशीष देगा। कई बार तो वह ऐसी आशीषें देता है कि हम हैरान रह जाते हैं। (सभो. 11:6) हम सरेआम गवाही देने का जो काम करते हैं, उसकी मिसाल लीजिए। हम जो टेबल और कार्ट लगाते हैं, हर दिन हज़ारों लोग उन्हें देखते हैं। क्या इससे हमें कुछ नतीजे मिलते हैं? जी हाँ। नवंबर 2014 की हमारी राज-सेवा  में एक लड़की का अनुभव बताया गया था जो यूनिवर्सिटी में पढ़ती थी। वह यहोवा के साक्षियों पर निबंध लिखना चाहती थी। वह उनसे मिलने के लिए राज-घर ढूँढ़ रही थी, मगर उसे मिल नहीं रहा था। फिर उसने देखा कि उसकी यूनिवर्सिटी के कैम्पस में ही साक्षियों ने टेबल लगाया हुआ है। वहाँ उसे हमारी किताबें-पत्रिकाएँ मिलीं और निबंध लिखने के लिए जानकारी भी मिल गयी। बाद में वह बपतिस्मा लेकर एक साक्षी बन गयी और आज वह एक पायनियर है। इस तरह के अनुभव से पता चलता है कि आज भी कई लोग हमारा संदेश सुनने के लिए तैयार हैं। इससे हमारे अंदर जोश भर आता है कि हम प्रचार काम करते रहें।

अपना हाथ कभी न रोकें

18. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि प्रचार काम यहोवा के निश्‍चित समय पर पूरा हो जाएगा?

18 हम पक्का यकीन रख सकते हैं कि प्रचार काम सही समय पर पूरा हो जाएगा, इसमें देर नहीं होगी। यहोवा हर काम समय पर करता है। याद कीजिए कि नूह के दिनों में क्या हुआ था। जलप्रलय से करीब 120 साल पहले यहोवा ने तय कर दिया था कि यह कब आएगा। फिर सालों बाद यहोवा ने नूह से कहा कि वह जहाज़ बनाए। नूह ने करीब 40-50 साल तक जहाज़ बनाने में बहुत मेहनत की। वह लोगों को चेतावनी भी देता रहा। जब तक यहोवा ने उसे जानवरों को जहाज़ में ले जाने के लिए नहीं कहा, तब तक वह लोगों को बताता रहा, इसके बावजूद कि किसी ने नहीं सुना। फिर निश्‍चित समय पर “यहोवा ने जहाज़ का दरवाज़ा बंद कर दिया।”​—उत्प. 6:3; 7:1, 2, 16.

19. अगर हम अपना हाथ न रोके, तो हमें क्या आशीष मिलेगी?

19 जल्द ही यहोवा हम पर ज़ाहिर करेगा कि राज का प्रचार काम पूरा हो चुका है। एक बार फिर वह “दरवाज़ा बंद” करनेवाला है, यानी शैतान की दुनिया का नाश करनेवाला है। इसके बाद वह नयी दुनिया लाएगा जहाँ सिर्फ उसकी आज्ञा माननेवाले लोग रहेंगे। उस समय के आने तक हम नूह, हबक्कूक और दूसरे सेवकों की तरह कभी अपना हाथ न रोकें। तो आइए हम प्रचार काम से अपना ध्यान भटकने न दें, सब्र रखें और यहोवा और उसके वादों पर अपना विश्‍वास मज़बूत करते रहें।

गीत 75 “मैं यहाँ हूँ! मुझे भेज!”

^ पैरा. 5 पिछले लेख में बताया गया था कि जिन बाइबल विद्यार्थियों ने अच्छी तरक्की की है, वे खुशखबरी के प्रचारक बनने के बारे में सोचें। इस लेख में सभी प्रचारकों को बढ़ावा दिया जाएगा कि वे प्रचार काम में लगे रहें, फिर चाहे वे नए हों या सालों से प्रचार कर रहे हों। हम ऐसी तीन बातों पर चर्चा करेंगे जिनका ध्यान रखने से हम तब तक प्रचार में लगे रहेंगे जब तक यहोवा नहीं कहता कि यह काम पूरा हो गया है।

^ पैरा. 2 इसका क्या मतलब है? इस लेख में “अपना हाथ मत रोक”  का मतलब है, तब तक खुशखबरी सुनाते रहना जब तक यहोवा नहीं कहता कि यह काम पूरा हो गया है।

^ पैरा. 5 ‘प्रभु का दिन’ 1914 में शुरू हुआ जब यीशु राजा बना। यह दिन उसके हज़ार साल के राज के आखिर में खत्म होगा।