अध्ययन लेख 38
क्या भाई-बहन आप पर भरोसा कर सकते हैं?
“भरोसेमंद इंसान राज़ को राज़ ही रखता है।”—नीति. 11:13.
गीत 101 एकता में रहकर काम करें
एक झलक a
1. एक भरोसेमंद इंसान कैसा होता है?
एक भरोसेमंद इंसान अपने वादे निभाने की पूरी कोशिश करता है और सच बोलता है। (भज. 15:4) जब हम किसी ऐसे व्यक्ति को कोई काम देते हैं, तो हम यह नहीं सोचते कि वह काम पूरा होगा या नहीं। हमें यकीन होता है कि वह काम हो ही जाएगा। हम भी एक ऐसा इंसान बनना चाहते हैं जिस पर भाई-बहन भरोसा कर पाएँ। पर हम एक ऐसा इंसान कैसे बन सकते हैं?
2. अगर हम चाहते हैं कि लोग हम पर भरोसा करें, तो हमें क्या करना होगा?
2 सिर्फ हमारे कहने से लोग हम पर भरोसा नहीं करेंगे, बल्कि हमें ऐसे काम करने होंगे जिससे वे हम पर भरोसा कर पाएँ। किसी का भरोसा जीतना पैसा कमाने की तरह है। पैसा कमाने में और किसी का भरोसा जीतने में वक्त लगता है, मेहनत लगती है। और जिस तरह पैसा जल्दी से खर्च हो जाता है, उसी तरह भरोसा टूटने में भी देर नहीं लगती। हम परमेश्वर यहोवा पर भी इसलिए भरोसा करते हैं, क्योंकि उसने साबित किया है कि वह भरोसेमंद है। बाइबल में लिखा है, “उसका हर काम दिखाता है कि वह भरोसेमंद है।” (भज. 33:4) और वह चाहता है कि हम भी उसकी तरह भरोसेमंद बनें। (इफि. 5:1) तो आइए यहोवा के कुछ वफादार सेवकों से सीखें, जो उसकी तरह भरोसेमंद थे। हम ऐसी पाँच बातों पर भी चर्चा करेंगे जिन्हें ध्यान में रखने से हम एक भरोसेमंद इंसान बन सकते हैं।
बीते ज़माने के लोगों की तरह भरोसेमंद बनिए
3-4. (क) हम क्यों कह सकते हैं कि दानियेल एक भरोसेमंद इंसान था? (ख) अगर हम भरोसेमंद बनना चाहते हैं, तो हमें किस बारे में सोचना चाहिए?
3 भविष्यवक्ता दानियेल एक ऐसा इंसान था जिस पर लोग भरोसा कर सकते थे। जब वह जवान था, तो उसे बैबिलोन में बंदी बनाकर ले जाया गया। लेकिन कुछ ही समय में उसने वहाँ एक अच्छा नाम कमा लिया और लोग उस पर भरोसा करने लगे। जब उसने यहोवा की मदद से राजा नबूकदनेस्सर के सपनों का मतलब बताया, तो लोग उस पर और भी भरोसा करने लगे। एक बार दानियेल को राजा को यह बताना था कि यहोवा उससे खुश नहीं है। राजा नबूकदनेस्सर बहुत जल्दी आग-बबूला हो जाता था, इसलिए उसे यह बात बताना दानियेल के लिए बहुत मुश्किल रहा होगा। फिर भी दानियेल ने हिम्मत करके राजा को यह बात बतायी। (दानि. 2:12; 4:20-22, 25) इसके कई साल बाद एक रात ऐसा हुआ कि बैबिलोन के राजमहल की दीवार पर कुछ शब्द दिखायी देने लगे। कोई नहीं समझ पा रहा था कि उनका मतलब क्या है। तब दानियेल ने उनका सही-सही मतलब बताकर एक बार फिर दिखाया कि वह भरोसे के लायक है। (दानि. 5:5, 25-29) आगे चलकर राजा दारा और दूसरे बड़े-बड़े अधिकारियों ने भी गौर किया कि दानियेल “बहुत ही काबिल” है। वे देख सकते थे कि दानियेल ‘एक भरोसेमंद इंसान है, अपने काम में लापरवाह नहीं है और बेईमानी नहीं करता।’ (दानि. 6:3, 4) ये अधिकारी और राजा, यहोवा की उपासना नहीं करते थे। फिर भी उन्होंने इस बात को माना कि दानियेल भरोसे के लायक है।
4 अगर हम भी दानियेल की तरह भरोसेमंद बनना चाहते हैं, तो हमें सोचना चाहिए, ‘जो लोग यहोवा के साक्षी नहीं हैं, उनके बीच मेरा कैसा नाम है? क्या उन्हें लगता है कि मैं एक भरोसेमंद और ज़िम्मेदार इंसान हूँ?’ इन बातों पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि अगर हम भरोसेमंद होंगे, तो इससे यहोवा की महिमा होगी।
5. हनन्याह क्यों भरोसेमंद था?
5 ईसा पूर्व 455 में जब यरूशलेम की शहरपनाह दोबारा बनकर तैयार हो गयी, तो राज्यपाल नहेमायाह ऐसे लोगों को ढूँढ़ने लगा जो शहर की अच्छी तरह देखरेख कर सकें। इस काम के लिए उसने जिन लोगों को चुना, उनमें किले का प्रधान हनन्याह भी था। बाइबल में उसके बारे में लिखा है, “वह दूसरों से ज़्यादा सच्चे परमेश्वर का डर मानता था और बहुत भरोसेमंद था।” (नहे. 7:2) वह यहोवा से प्यार करता था और ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता था जो यहोवा को पसंद ना हो। इसलिए उसे जो भी काम दिया जाता था, वह उसे पूरी लगन से करता था। अगर हम भी यहोवा से प्यार करेंगे और उसका डर मानेंगे, तो हमें जो भी ज़िम्मेदारी दी जाएगी, हम उसे अच्छी तरह निभाएँगे और फिर भाई-बहन हम पर भरोसा कर पाएँगे।
6. हम क्यों कह सकते हैं कि तुखिकुस पौलुस का एक भरोसेमंद दोस्त था?
6 हम तुखिकुस से भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। वह पौलुस का एक भरोसेमंद दोस्त था। जब पौलुस एक घर में कैद था, तो तुखिकुस ने उसका बहुत साथ दिया, इसलिए पौलुस ने उसके बारे में कहा कि वह एक “विश्वासयोग्य सेवक” है। (इफि. 6:21, 22) तुखिकुस को इफिसुस और कुलुस्से के भाई-बहनों तक चिट्ठियाँ पहुँचानी थीं। पर पौलुस ने उसे एक और ज़िम्मेदारी दी। उसने कहा कि वह वहाँ के भाइयों का हौसला बढ़ाए और उन्हें दिलासा दे। उसे पूरा भरोसा था कि तुखिकुस यह ज़िम्मेदारी अच्छी तरह पूरी करेगा। तुखिकुस की तरह आज भी ऐसे कई भरोसेमंद भाई हैं जो यहोवा के साथ हमारा रिश्ता मज़बूत करने के लिए बहुत मेहनत करते हैं।—कुलु. 4:7-9.
7. आप अपनी मंडली के प्राचीनों और सहायक सेवकों से भरोसेमंद होने के बारे में क्या सीख सकते हैं?
7 आज हमारी मंडली में ऐसे प्राचीन और सहायक सेवक हैं जिन पर हम पूरा भरोसा कर सकते हैं। दानियेल, हनन्याह और तुखिकुस की तरह वे अपनी ज़िम्मेदारियाँ अच्छी तरह निभाते हैं। जैसे वे भाई-बहनों को पहले से ही बता देते हैं कि उन्हें हफ्ते के बीच होनेवाली सभा में कौन-सा भाग पेश करना है। इसलिए जब हम सभाओं में आते हैं, तो हमारे मन में कभी यह सवाल नहीं आता कि आज फलाना भाग होगा कि नहीं। भाइयों को भी भरोसा होता है कि हमें जो भाग पेश करने के लिए कहा गया है, हम उसकी अच्छी तैयारी करेंगे और उसे अच्छे-से पेश करेंगे। और जब हम ऐसा करते हैं, तो भाइयों को बहुत खुशी होती है। इसके अलावा जब हम अपने बाइबल विद्यार्थियों को जन भाषण सुनने के लिए बुलाते हैं, तो हमें पूरा यकीन होता है कि कोई-न-कोई भाई उसे ज़रूर पेश करेगा। हम कभी ऐसा नहीं सोचते कि कहीं प्राचीन इसका इंतज़ाम करना भूल ना गए हों। और हमें पूरा यकीन होता है कि प्रचार करने के लिए हमें जो भी प्रकाशन चाहिए, वे हमें मिल जाएँगे। हम यहोवा के बहुत शुक्रगुज़ार हैं कि ये भाई हमारी ज़रूरतों का अच्छे-से खयाल रखते हैं। इन भाइयों की तरह हम कैसे भरोसे के लायक बन सकते हैं?
राज़ की बात को राज़ ही रखिए
8. हम भाई-बहनों की परवाह करते हैं, लेकिन हमें किस बात का ध्यान रखना चाहिए? (नीतिवचन 11:13)
8 हम भाई-बहनों से बहुत प्यार करते हैं, इसलिए अकसर उनका हाल-चाल पूछते हैं। लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम उनके निजी मामलों में दखल ना दें। पहली सदी की मसीही मंडली में कुछ ऐसे लोग थे जिन्हें ‘गप्पे लड़ाने की आदत पड़ गयी थी और वे दूसरों के मामलों में दखल देते रहते थे। वे ऐसी बातों के बारे में बोलते थे जो उन्हें नहीं बोलनी चाहिए थीं।’ (1 तीमु. 5:13) हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम उन लोगों की तरह ना बनें। और अगर कोई खुद आकर हमें अपनी कोई बात बताता है और कहता है कि वह हम दूसरों को ना बताएँ, तो हमें उसे अपने तक ही रखना चाहिए। जैसे अगर कोई बहन आपको अपनी बीमारी या किसी परेशानी के बारे में बताती है और आपसे कहती है कि वह बात आप अपने तक ही रखें, तो आपको दूसरों को वह बात नहीं बतानी चाहिए। b (नीतिवचन 11:13 पढ़िए।) अब आइए देखें कि हमें कब-कब ध्यान रखना चाहिए कि हम कोई बात इधर की उधर ना करें।
9. परिवार में हर कोई कैसे दिखा सकता है कि वह भरोसेमंद है?
9 घरवालों की बातें। परिवार में हर किसी को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनके घर की कुछ बातें घर में ही रहें। हो सकता है, एक पति को अपनी पत्नी की किसी आदत पर हँसी आती हो, लेकिन अगर वह चार लोगों के सामने उसकी वह बात बता दे, तो वह शर्मिंदा हो सकती है। अगर एक पति अपनी पत्नी से प्यार करता है, तो वह कभी कुछ ऐसा नहीं करेगा जिससे उसे बुरा लगे। (इफि. 5:33) नौजवान भी चाहते हैं कि हर कोई उनकी इज़्ज़त करे, इसलिए माता-पिताओं को ध्यान रखना चाहिए कि वे दूसरों के सामने उनकी गलतियाँ बताते ना फिरें। (कुलु. 3:21) अगर किसी के छोटे बच्चे हैं, तो उन्हें बच्चों को सिखाना चाहिए कि वे घर की ऐसी कोई बात दूसरों को ना बताएँ जिससे घरवालों को शर्मिंदा होना पड़े। (व्यव. 5:16) अगर परिवार में हर कोई इस बात का ध्यान रखेगा, तो उनके बीच अच्छे रिश्ते होंगे।
10. एक “सच्चा दोस्त” कैसा होता है? (नीतिवचन 17:17)
10 दोस्तों की बातें। हम अपने दोस्तों से बहुत सारी बातें करते हैं। पर हो सकता है कभी आप किसी बात को लेकर बहुत परेशान हों। सोचिए आप हिम्मत जुटाकर अपने किसी अच्छे दोस्त को उस बारे में बताते हैं, लेकिन फिर आपको पता चलता है कि उसने वह बात दूसरों को बता दी। तब आपको कैसा लगेगा? जब कोई हमारा भरोसा तोड़ देता है, तो बहुत दुख होता है। लेकिन जब हमारे दोस्त हमारी बातें अपने तक ही रखते हैं, तो हमें बहुत अच्छा लगता है। बाइबल में लिखा है कि ऐसे भरोसेमंद दोस्त ‘सच्चे दोस्त’ होते हैं।—नीतिवचन 17:17 पढ़िए।
11. (क) प्राचीन और उनकी पत्नियाँ क्यों भरोसे के लायक हैं? (ख) इस पैराग्राफ से जुड़ी तसवीर में दिखाए गए प्राचीन से हम क्या सीख सकते हैं?
11 भाई-बहनों की बातें। भाई-बहन प्राचीनों पर बहुत भरोसा करते हैं। वे दूसरे भाई-बहनों के लिए ‘आँधी से छिपने की जगह और तेज़ बारिश में मिलनेवाली पनाह’ जैसे होते हैं। (यशा. 32:2) हमें पूरा यकीन होता है कि हम उनसे जो कहेंगे, वे उसे दूसरों को नहीं बताएँगे। इसलिए हमें उनके पीछे नहीं पड़ना चाहिए कि वे हमें ऐसी बातें बताएँ जिन्हें जानने का हमें कोई हक नहीं है। प्राचीनों की पत्नियाँ भी तारीफ के काबिल हैं, क्योंकि वे उनसे कोई राज़ की बात उगलवाने की कोशिश नहीं करतीं। और जब एक प्राचीन अपनी पत्नी को कोई राज़ की बात नहीं बताता, तो इसमें उसकी पत्नी की ही भलाई होती है। इस बारे में एक प्राचीन की पत्नी ने कहा, “मैं बहुत खुश हूँ कि मेरे पति जब भी किसी का हौसला बढ़ाने या किसी की रखवाली भेंट करने के लिए जाते हैं, तो वे मुझे उन भाई-बहनों की कोई भी बात नहीं बताते, उनके नाम तक नहीं बताते। वैसे भी मैं उन मसलों के बारे में कुछ नहीं कर सकती, इसलिए जब मेरे पति उस बारे में मुझे कुछ नहीं बताते तो मुझे कोई टेंशन भी नहीं होती। मैं मंडली के सभी भाई-बहनों से आराम से बात कर पाती हूँ। और मुझे भरोसा है कि अगर मैं अपने पति को अपनी किसी परेशानी के बारे में बताऊँ, तो वे उसे भी अपने तक ही रखेंगे।” हम सब चाहते हैं कि लोग हम पर भरोसा कर पाएँ। तो आइए ऐसी पाँच बातों पर ध्यान दें, जिन्हें मानने से हम भरोसेमंद बन पाएँगे।
कैसे बनें भरोसेमंद?
12. समझाइए कि भरोसेमंद बनने के लिए प्यार करना क्यों ज़रूरी है।
12 यहोवा से और दूसरों से प्यार कीजिए। एक भरोसेमंद इंसान बनने के लिए दूसरों से प्यार करना बहुत ज़रूरी है। यीशु ने कहा था कि यहोवा से प्यार करना और अपने पड़ोसी से प्यार करना, दो सबसे बड़ी आज्ञाएँ हैं। (मत्ती 22:37-39) हम परमेश्वर यहोवा से प्यार करते हैं, इसलिए उसकी तरह भरोसेमंद बनना चाहते हैं। और हम अपने भाई-बहनों से भी प्यार करते हैं, इसलिए उनकी राज़ की बातें राज़ ही रखते हैं। हम कभी उनकी कोई बात दूसरों को नहीं बताते, क्योंकि हम नहीं चाहते कि उन्हें कोई नुकसान हो, उन्हें शर्मिंदा होना पड़े या फिर बुरा लगे।—यूह. 15:12.
13. अगर हम नम्र होंगे, तो लोग हम पर भरोसा क्यों कर पाएँगे?
13 नम्र बनिए। अगर हम भरोसेमंद होना चाहते हैं, तो हमें नम्र भी बनना होगा। एक नम्र इंसान को दूसरों को कोई खबर बताने की जल्दी नहीं रहती। वह यह नहीं सोचता कि मैं जाकर सबसे पहले दूसरों को यह बात बता देता हूँ ताकि सब मेरी वाह-वाही करें। (फिलि. 2:3) वह कभी यह नहीं जताता कि उसे कोई ऐसी बात पता है जो वह दूसरों को नहीं बता सकता। और जिन बातों के बारे में बाइबल में या हमारे प्रकाशनों में खुलकर नहीं बताया गया है, वह उनके बारे में अटकलें लगाकर दूसरों को बताता नहीं फिरता।
14. अगर हम सोच-समझकर बोलेंगे, तो लोग हम पर क्यों भरोसा कर पाएँगे?
14 सोच-समझकर काम लीजिए। जो व्यक्ति सोच-समझकर बोलता है, लोग उस पर भरोसा करते हैं। उसे पता होता है कि कब ‘चुप रहना है’ और कब ‘बोलना है।’ (सभो. 3:7) शायद आपने यह कहावत सुनी हो, “बोलने से मौन भला।” नीतिवचन 11:12 में भी लिखा है, “जिसमें पैनी समझ होती है वह चुप रहता है।” इससे पता चलता है कि कभी-कभी चुप रहना ही अच्छा होता है। एक प्राचीन के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। कई बार दूसरी मंडली के प्राचीन कुछ मामले निपटाने के लिए उससे सलाह लेते हैं, क्योंकि उसे बहुत तजुरबा है। उसकी अपनी मंडली का एक प्राचीन उसके बारे में कहता है, “वह इस बात का बहुत ध्यान रखता है कि हमें कभी-भी दूसरी मंडली की बातें ना बताए।” वह प्राचीन सोच-समझकर बोलता है और बातें यहाँ की वहाँ नहीं करता। इसलिए उसकी मंडली के प्राचीनों को पूरा भरोसा है कि वह उनकी मंडली की बातें भी दूसरों को नहीं बताएगा और वे उसका बहुत आदर करते हैं।
15. एक उदाहरण देकर समझाइए कि अगर हम सच बोलें, तो दूसरे हम पर क्यों भरोसा कर पाएँगे।
15 सच बोलिए। हम एक ऐसे व्यक्ति पर भी भरोसा करते हैं जो हमेशा सच बोलता है। (इफि. 4:25; इब्रा. 13:18) इसे समझने के लिए एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए। मान लीजिए सभा में आपका कोई भाग है और आप जानना चाहते हैं कि आप उसे और अच्छी तरह कैसे पेश कर सकते हैं। इसलिए आप किसी से कहते हैं कि वह ध्यान से सुने और आपको बताए कि आप क्या सुधार कर सकते हैं। पर आप किस व्यक्ति से पूछेंगे? उससे जो सिर्फ आपकी तारीफ करता है? या उससे जो आपको सच-सच बताता है कि क्या अच्छा था और क्या कमी रह गयी? बाइबल में भी लिखा है, ‘खुलकर दी गयी डाँट, छिपे हुए प्यार से कहीं अच्छी है। सच्चा दोस्त डाँट लगाने से पीछे नहीं हटता।’ (नीति. 27:5, 6) जब आपको कोई सच-सच बताता है कि आपको क्या सुधार करना है, तो शायद आपको अच्छा ना लगे। लेकिन आगे चलकर आपको उसी की बात से फायदा होगा।
16. खुद पर काबू रखने के बारे में हम नीतिवचन 10:19 से क्या सीखते हैं?
16 खुद पर काबू रखिए। भरोसेमंद बनने कि लिए खुद पर काबू रखना भी ज़रूरी है। अगर हम खुद पर काबू रखें, तो हम ऐसी कोई बात दूसरों को नहीं बताएँगे जो हमें अपने तक ही रखनी चाहिए, तब भी नहीं जब हमें उस बारे में बताने का बहुत मन कर रहा हो। (नीतिवचन 10:19 पढ़िए।) हमें खासकर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए। अगर हम ध्यान ना दें, तो शायद हम अनजाने में कोई ऐसी बात बहुत-से लोगों में फैला दें जो हमें दूसरों को नहीं बतानी थी। और एक बार इंटरनेट पर हमने कोई जानकारी डाल दी, तो वह जानकारी कितने लोगों में फैलेगी, वे उसका कैसे इस्तेमाल करेंगे और उससे क्या-क्या मुश्किलें खड़ी होंगी, इस पर हमारा कोई बस नहीं चलता। हमें तब भी खुद पर काबू रखना चाहिए और चुप रहना चाहिए जब हमारे काम का विरोध करनेवाले चालाकी से हमसे भाई-बहनों के बारे में जानकारी निकलवाने की कोशिश करते हैं। जैसे शायद हम किसी ऐसे देश में रहते हों जहाँ हमारे काम पर पाबंदी या रोक लगी हो और हो सकता है कुछ पुलिसवाले हमसे पूछताछ करें। जब ऐसा कुछ होता है, तो हमें मानो ‘अपने मुँह पर मुसका बाँधे रहना’ है और उन्हें ऐसी कोई जानकारी नहीं देनी है जिससे भाई-बहनों को खतरा हो। (भज. 39:1) हम सब चाहते हैं कि हमारे घरवाले, हमारे दोस्त, भाई-बहन और दूसरे लोग हम पर भरोसा करें। पर वे हम पर तभी भरोसा करेंगे जब हम खुद पर काबू रखेंगे।
17. अगर हम चाहते हैं कि मंडली में सब एक-दूसरे पर भरोसा करें, तो हमें क्या करना होगा?
17 हम कितने खुश हैं कि हम यहोवा के संगठन का हिस्सा हैं। हम एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं और एक-दूसरे पर भरोसा कर सकते हैं। पर अगर हम चाहते हैं कि संगठन में ऐसा ही माहौल बना रहे, तो हममें से हरेक की ज़िम्मेदारी है कि हम भरोसे के लायक बने रहें। अगर हम दूसरों से प्यार करें, नम्र रहें, सोच-समझकर काम करें, सच बोलें और खुद पर काबू रखें, तो दूसरे हम पर भरोसा कर पाएँगे। लेकिन भरोसा टूट भी सकता है। तो आइए हम ऐसे काम करते रहें जिससे लोग हमेशा हम पर भरोसा कर सकें। इस तरह हम अपने परमेश्वर यहोवा की तरह भरोसेमंद बन पाएँगे।
गीत 123 परमेश्वर के संगठन का कानून दिल से मानें
a अगर हम चाहते हैं कि दूसरे हम पर भरोसा करें, तो हमें भरोसेमंद बनना होगा। इस लेख में हम जानेंगे कि भरोसेमंद होना क्यों इतना ज़रूरी है और ऐसा इंसान बनने के लिए हमें क्या करना होगा।
b अगर हमें पता चले कि मंडली में किसी ने कोई गंभीर पाप किया है, तो हमें उससे कहना चाहिए कि वह उस बारे में प्राचीनों से बात करे। अगर वह ऐसा नहीं करता, तो हमें जाकर प्राचीनों को उस बारे में बताना चाहिए, क्योंकि हम यहोवा के वफादार रहना चाहते हैं और मंडली को शुद्ध बनाए रखना चाहते हैं।
c तसवीर के बारे में: एक प्राचीन एक और भाई के साथ एक बहन की रखवाली भेंट करने जाता है, पर वह उस बहन की बातें अपने तक ही रखता है, अपने घरवालों को नहीं बताता।