अध्ययन लेख 39
कोमलता आपकी कमज़ोरी नहीं, ताकत है!
“प्रभु के दास को लड़ने की ज़रूरत नहीं बल्कि ज़रूरी है कि वह सब लोगों के साथ नरमी से पेश आए।”—2 तीमु. 2:24.
गीत 120 यीशु जैसे कोमल बनें
एक झलक a
1. हमारे काम की जगह पर या स्कूल में लोग किस बारे में हमसे सवाल कर सकते हैं?
आप जो मानते हैं, उस बारे में जब आपके स्कूल में या काम की जगह पर कोई सवाल करता है, तो आपको कैसा लगता है? क्या आप घबरा जाते हैं? हममें से ज़्यादातर शायद घबरा जाएँ। लेकिन इस तरह जब कोई सवाल करता है, तो हमें सामनेवाले की सोच पता चल सकती है या यह कि वह क्या मानता है। और इससे शायद हमें उसे गवाही देने का भी मौका मिले। लेकिन कई बार एक व्यक्ति शायद हमसे इसलिए सवाल करे, क्योंकि वह हमसे सहमत नहीं है या हमसे बहस करना चाहता है। अगर ऐसा है, तो हमें हैरान नहीं होना चाहिए। वह इसलिए कि हम जो मानते हैं उस बारे में कई लोगों को पूरी जानकारी नहीं होती या शायद उन्हें गलत जानकारी दी गयी हो। (प्रेषि. 28:22) इसके अलावा हम “आखिरी दिनों” में जी रहे हैं, ऐसे वक्त में जब ज़्यादातर लोग ‘किसी भी बात पर राज़ी नहीं’ होते और कुछ तो “खूँखार” हो गए हैं।—2 तीमु. 3:1, 3.
2. कोमल स्वभाव के होना क्यों अच्छा है?
2 आप शायद सोचें, ‘मैं जो मानता हूँ, उस बारे में अगर कोई मुझसे बहस करने की कोशिश करे, तो मैं कैसे शांत रह सकता हूँ और उसे प्यार से जवाब दे सकता हूँ?’ ऐसे में कोमल होने से आपको मदद मिल सकती है। जो व्यक्ति कोमल स्वभाव का होता है, वह जल्दी बुरा नहीं मानता। जब उससे कोई ऐसा कुछ पूछता है कि उसकी समझ में नहीं आता कैसे जवाब दे या उसे गुस्सा दिलाता है, तो वह खुद पर काबू रखता है। (नीति. 16:32) लेकिन आप शायद सोचें, ‘यह कहना तो आसान है, पर करना मुश्किल है।’ तो आप कैसे कोमल स्वभाव के बन सकते हैं? आप जो मानते हैं, अगर उस बारे में कोई सवाल खड़ा करे, तो आप कैसे कोमलता से उसे जवाब दे सकते हैं? और माता-पिताओ, आप अपने बच्चों को कोमलता से जवाब देना कैसे सिखा सकते हैं ताकि जब कोई उनसे उनके विश्वास के बारे में सवाल करे, तो वे शांति से जवाब दे पाएँ?
आप कैसे कोमल स्वभाव के बन सकते हैं?
3. हम ऐसा क्यों कह सकते हैं कि कोमल स्वभाव का होना कोई कमज़ोरी नहीं है? (2 तीमुथियुस 2:24, 25)
3 कोमल स्वभाव का होना कोई कमज़ोरी नहीं है। वह इसलिए कि किसी मुश्किल हालात में खुद पर काबू रखने के लिए ताकत चाहिए होती है। कोमलता ‘पवित्र शक्ति के फल’ का एक पहलू है। (गला. 5:22, 23) बाइबल में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “कोमलता” किया गया है, वह शब्द कई बार एक ऐसे जंगली घोड़े के बारे में बताने के लिए इस्तेमाल होता था जिसे काबू में रहना सिखाया गया हो। सोचिए, एक जंगली घोड़ा शांत रहना सीख गया है। भले ही अब वह शांत रहता है, पर वह है तो अब भी ताकतवर। तो हम कोमलता को अपनी ताकत कैसे बना सकते हैं? यह हम अपने दम पर नहीं कर सकते। हमें परमेश्वर से पवित्र शक्ति माँगनी होगी, तभी हम अपने अंदर यह बेहतरीन गुण बढ़ा पाएँगे। और कई भाई-बहनों ने ऐसा किया भी है। जब लोगों ने उनसे बहस करने की कोशिश की, तो वे शांत रह पाए और इसका दूसरों पर भी काफी अच्छा असर हुआ। (2 तीमुथियुस 2:24, 25 पढ़िए।) तो आप ऐसा क्या कर सकते हैं जिससे कोमलता आपकी ताकत बन जाए?
4. इसहाक से हम कोमलता से पेश आने के बारे में क्या सीख सकते हैं?
4 बाइबल में ऐसे कई किस्से हैं जिनसे पता चलता है कि कोमलता से पेश आने के कितने फायदे हैं। ज़रा इसहाक के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। जब वह गरार में रहने लगा जो पलिश्तियों के इलाके में आता था, तो वहाँ के लोग उससे जलने लगे और उसके पिता ने जो कुएँ खुदवाए थे, वे उन्होंने बंद कर दिए। अपने अधिकार के लिए उनसे लड़ने के बजाय इसहाक अपने पूरे परिवार को लेकर दूसरी जगह चला गया और दूसरे कुएँ खुदवाए। (उत्प. 26:12-18) लेकिन पलिश्तियों ने दावा किया कि वे कुएँ भी उनके हैं, क्योंकि वे उनकी ज़मीन पर हैं। फिर भी इसहाक ने उनसे झगड़ा नहीं किया, बल्कि शांत रहा। (उत्प. 26:19-25) पलिश्तियों ने मानो इसहाक से लड़ने की कसम खा ली थी, फिर भी उसने खुद पर काबू रखा। वह यह कैसे कर पाया? उसने ज़रूर अपने माता-पिता से सीखा होगा। उसने गौर किया होगा कि उसका पिता अब्राहम कैसे शांति से पेश आता था और उसकी माँ सारा “शांत और कोमल स्वभाव” की थी।—1 पत. 3:4-6; उत्प. 21:22-34.
5. माता-पिता किस बात का यकीन रख सकते हैं? उदाहरण देकर समझाइए।
5 माता-पिताओ, यकीन रखिए आप भी अपने बच्चों को सिखा सकते हैं कि कोमलता से पेश आने के कितने फायदे हैं। ज़रा 17 साल के मैक्सन्स के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। उसके स्कूल में कुछ लोग उस पर गुस्सा करते थे और प्रचार करते वक्त भी उसे ऐसे लोग मिलते थे। उसके माता-पिता ने सब्र रखा और प्यार से उसे सिखाया कि वह कैसे कोमलता से पेश आ सकता है। वे कहते हैं, “मैक्सन्स जान गया है कि ईंट का जवाब पत्थर से देना तो आसान है, पर असली ताकत खुद को शांत रखने में है।” कितनी खुशी की बात है कि मैक्सन्स समझ गया कि कोमलता कोई कमज़ोरी नहीं, बल्कि ताकत है!
6. कोमलता से पेश आने के लिए प्रार्थना करने से कैसे हमें मदद मिल सकती है?
6 शायद कई बार लोग हमें भड़काने की कोशिश करें, जैसे वे शायद परमेश्वर का नाम बदनाम करें या बाइबल के बारे में उलटा-सीधा कहें। ऐसे में हमें क्या करना चाहिए? हमें परमेश्वर से पवित्र शक्ति और बुद्धि के लिए प्रार्थना करनी चाहिए ताकि हम नरमी से जवाब दे सकें। लेकिन अगर बाद में हमें एहसास होता है कि हम और अच्छे से पेश आ सकते थे, तो हमें क्या करना चाहिए? हमें फिर से उस बारे में प्रार्थना करनी चाहिए और सोचना चाहिए कि अगली बार हम कैसे और अच्छे से पेश आ सकते हैं। तब यहोवा हमें अपनी पवित्र शक्ति देगा और हम खुद पर काबू रख पाएँगे और कोमलता से पेश आ पाएँगे।
7. बाइबल की कुछ आयतें याद करना क्यों फायदेमंद हो सकता है? (नीतिवचन 15:1, 18)
7 बाइबल की कुछ आयतें याद करना भी फायदेमंद हो सकता है। फिर अगर कभी हमारे सामने ऐसे हालात आएँ जब शांत रहना हमारे लिए मुश्किल हो, तो परमेश्वर की पवित्र शक्ति हमें वे आयतें याद दिला सकती है। (यूह. 14:26) जैसे नीतिवचन की किताब में ऐसे सिद्धांत दिए हैं जिन्हें मानने से हम नरमी से जवाब दे पाएँगे। (नीतिवचन 15:1, 18 पढ़िए।) इस किताब में यह भी बताया गया है कि मुश्किल हालात में शांत रहना क्यों अच्छा है।—नीति. 10:19; 17:27; 21:23; 25:15.
कोमलता से पेश आने के लिए अंदरूनी समझ है ज़रूरी
8. हमें अंदरूनी समझ से काम क्यों लेना चाहिए?
8 कोमलता से पेश आने के लिए अंदरूनी समझ होना भी ज़रूरी है। (नीति. 19:11) हम जो मानते हैं, उस पर अगर कोई सवाल खड़ा करे, तो अंदरूनी समझ होने से हम उस पर भड़क नहीं उठेंगे, बल्कि शांत रहेंगे। कई बार लोग जो सवाल करते हैं, वे तालाब के गहरे पानी की तरह होते हैं। ऊपर से देखने पर अकसर पता नहीं चल पाता कि पानी कितना गहरा है। उसी तरह, जब कोई हमसे सवाल करता है, तो अकसर पता नहीं चलता कि उसके मन में क्या चल रहा है, उसने क्यों वह सवाल किया है। हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम सामनेवाले के इरादे नहीं जानते, इसलिए अच्छा होगा कि हम तुरंत उसे कोई जवाब ना दें।—नीति. 16:23.
9. जब एप्रैम के आदमी गिदोन से झगड़ने लगे, तो उसने कैसे अंदरूनी समझ से काम लिया और कोमलता से पेश आया?
9 गौर कीजिए कि एक बार गिदोन ने एप्रैम के आदमियों को कैसे जवाब दिया। वे गुस्से में आकर उससे झगड़ने लगे और उससे कहने लगे कि जब वह दुश्मनों से लड़ने गया था, तो उसने उन्हें क्यों नहीं बुलाया। आखिर वे क्यों उस पर इतना गुस्सा कर रहे थे? क्या उन्हें लग रहा था कि गिदोन ने उनका अपमान किया है? वजह चाहे जो भी रही हो, गिदोन ने समझ से काम लिया। उसने उनकी भावनाओं का लिहाज़ किया और उन्हें कोमलता से जवाब दिया। इसका नतीजा क्या हुआ? बाइबल में लिखा है, “उनका गुस्सा ठंडा हो गया।”—न्यायि. 8:1-3.
10. क्या समझने से हम एक व्यक्ति को सही तरह से जवाब दे पाएँगे? (1 पतरस 3:15)
10 हो सकता है, आपके स्कूल में या काम की जगह पर कोई आपसे कहे कि आप बाइबल के स्तरों के हिसाब से क्यों जीते हैं। ऐसे व्यक्ति को हम यह समझाने की पूरी कोशिश करेंगे कि हम क्यों बाइबल के स्तर मानते हैं। लेकिन हम यह भी ध्यान रखेंगे कि हर किसी की अपनी सोच होती है और हमें सबका आदर करना है। (1 पतरस 3:15 पढ़िए।) जब कोई हमसे सवाल करता है, तो हमें हमेशा यह नहीं सोचना चाहिए कि वह हमारा मज़ाक उड़ाने या हमें नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है। इसके बजाय हमें सोचना चाहिए कि उसके मन में क्या चल रहा है, उसके लिए कौन-सी बातें मायने रखती हैं। उसके सवाल करने की वजह चाहे जो भी हो, हमें नरमी से जवाब देने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। हो सकता है, हमारी बात सुनकर वह भी यह सोचने लगे कि वह जो मानता है, क्यों मानता है। अगर वह हमारे साथ रूखाई से पेश आए या हमारा मज़ाक उड़ाने की कोशिश करे, तब भी हमें उसके साथ कोमलता से पेश आने की कोशिश करनी चाहिए।—रोमि. 12:17.
11-12. (क) जब कोई हमसे सवाल करता है, तो सबसे पहले हमें क्या करना चाहिए? (तसवीर भी देखें।) (ख) एक उदाहरण देकर समझाइए कि ऐसा करने से कैसे अच्छी बातचीत हो सकती है।
11 मान लीजिए, आपके साथ काम करनेवाला आपसे पूछता है कि आप जन्मदिन क्यों नहीं मनाते। उसे जवाब देने से पहले सोचिए: वह यह सवाल क्यों कर रहा है, क्या उसे यह लगता है कि हम मज़े नहीं कर सकते? या उसके मन में यह चल रहा है कि हमारी वजह से कंपनी का अच्छा माहौल खराब हो सकता है? फिर हम इस बात के लिए उसकी तारीफ कर सकते हैं कि वह दूसरों के बारे में इतना सोचता है और उसे यकीन दिला सकते हैं कि हम भी चाहते हैं कि कंपनी में अच्छा माहौल रहे। इस तरह जवाब देने से हो सकता है सामनेवाला हमारी बात सुनने के लिए तैयार हो जाए। और फिर शायद हम उसे बाइबल से यह बता पाएँ कि हम क्यों जन्मदिन नहीं मनाते।
12 हम यह तरीका तब भी अपना सकते हैं, जब लोग ऐसे ही किसी और मामले पर हमसे सवाल करें। जैसे हो सकता है, स्कूल में कोई हमसे कहे कि यहोवा के साक्षियों को समलैंगिकता के बारे में अपनी सोच बदलनी चाहिए। ऐसे में हमें सोचना चाहिए कि उसे ऐसा क्यों लगता है। क्या यहोवा के साक्षी समलैंगिकता के बारे में जो मानते हैं, उस बारे में उसे गलतफहमी है? या कहीं ऐसा तो नहीं कि उसका कोई दोस्त या रिश्तेदार समलैंगिक है? या क्या उसे लगता है कि यहोवा के साक्षी समलैंगिक लोगों से नफरत करते हैं? जब हम इस बारे में सोचेंगे, तो शायद हम उसे यकीन दिला पाएँ कि हम सब लोगों से प्यार करते हैं और हम मानते हैं कि हर किसी को यह तय करने का हक है कि वह किस तरह ज़िंदगी जीएगा। b (1 पत. 2:17) फिर शायद हम उसे यह भी बता पाएँ कि बाइबल के स्तरों के हिसाब से जीने से क्या फायदे होते हैं।
13. आप एक ऐसे व्यक्ति की मदद कैसे कर सकते हैं जिसकी बातों से लगता है कि वह ईश्वर को नहीं मानता?
13 अगर कोई बाइबल की बातों से बिलकुल सहमत नहीं है, तो हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हमें पता है, वह क्या मानता है। (तीतु. 3:2) जैसे हो सकता है, स्कूल का कोई बच्चा कहे, ‘आजकल कौन मानता है ईश्वर को?’ ऐसे में क्या आपको यह सोचना चाहिए कि वह विकासवाद को मानता है और उस बारे में सबकुछ जानता है? असल में शायद उसने इस बारे में ज़्यादा सोचा ही ना हो। इसलिए विकासवाद की शिक्षा सही है या गलत, इस पर बहस करने के बजाय, क्यों ना आप उससे कुछ ऐसे सवाल करें जिस बारे में वह बाद में सोचे? आप चाहे तो उसे jw.org पर सृष्टि के बारे में दिए वीडियो या लेख दिखा सकते हैं। हो सकता है, बाद में वह उस बारे में आपसे बात करने को तैयार हो जाए। इस तरह जब हम दूसरों के विचारों की कदर करते हैं और सोच-समझकर बात करते हैं, तो शायद उन्हें बाइबल के बारे में और जानने का मन करे।
14. नील ने हमारी वेबसाइट का कैसे अच्छा इस्तेमाल किया?
14 यहोवा के साक्षियों के बारे में लोगों को जो गलतफहमियाँ हैं, उन्हें दूर करने के लिए नील नाम के एक नौजवान ने हमारी वेबसाइट का अच्छा इस्तेमाल किया। वह कहता है, “मेरी क्लास का एक लड़का अकसर मुझसे कहता था कि मैं सबूतों पर नहीं, बल्कि कथा-कहानियों (बाइबल) पर विश्वास करता हूँ, इसलिए मैं विज्ञान को नहीं मानता।” नील जब भी उसे यह समझाने की कोशिश करता था कि वह क्या मानता है, तो वह सुनता ही नहीं था। फिर नील ने उसे jw.org पर “विज्ञान और पवित्र शास्त्र” वाले भाग के बारे में बताया। बाद में नील समझ गया कि उस लड़के ने ज़रूर हमारी वेबसाइट पर दी जानकारी पढ़ी होगी। फिर वह जीवन की शुरूआत के बारे में उससे बात कर पाया। आपको भी शायद ऐसे अच्छे अनुभव हों।
मिलकर तैयारी करें
15. माता-पिता अपने बच्चों को किस तरह नरमी से जवाब देना सिखा सकते हैं?
15 माता-पिता अपने बच्चों को सिखा सकते हैं कि जब उनके सामने ऐसे मुश्किल हालात आते हैं, तो वे कैसे कोमलता से जवाब दे सकते हैं। (याकू. 3:13) कुछ माता-पिता अपने बच्चों को पारिवारिक उपासना के दौरान ऐसा करना सिखाते हैं। पहले वे यह सोचते हैं कि उनके बच्चों से स्कूल में लोग किस बारे में सवाल कर सकते हैं। फिर वे उन विषयों पर चर्चा करते हैं। वे इस बारे में भी बात करते हैं कि उस वक्त बच्चे क्या कह सकते हैं और किस तरह नरमी और प्यार से जवाब दे सकते हैं। फिर वे अपने बच्चों के साथ ऐसा करने की प्रैक्टिस भी करते हैं।—“ प्रैक्टिस करना अच्छा है” नाम का बक्स देखें।
16-17. नौजवानों के साथ प्रैक्टिस करने से उन्हें कैसे मदद मिल सकती है?
16 बच्चों के साथ प्रैक्टिस करने से क्या फायदे हो सकते हैं? एक तो यह कि बच्चों को खुद यह यकीन हो जाएगा कि वे जो मानते हैं, वह क्यों मानते हैं। दूसरा, वे इस बारे में दूसरों को भी पूरे यकीन से बता पाएँगे। jw.org पर “नौजवानों के सवाल” शृंखला और नौजवानों के लिए अभ्यास दिए गए हैं। ये नौजवानों का विश्वास बढ़ाने के लिए तैयार किए गए हैं और इनकी मदद से वे अपने शब्दों में जवाब देना भी सीख सकते हैं। अगर पूरा परिवार मिलकर इनका अध्ययन करे, तो सभी यह सीख पाएँगे कि वे जो मानते हैं, उस बारे में कैसे प्यार से और कोमलता से जवाब दे सकते हैं।
17 मैथ्यू नाम का एक नौजवान बताता है कि इस तरह प्रैक्टिस करने से उसे कैसे मदद मिली है। उसके मम्मी-पापा उसके साथ अकसर पारिवारिक उपासना में ऐसे विषयों पर खोजबीन करते हैं, जिनके बारे में स्कूल में लोग उससे सवाल कर सकते हैं। वह कहता है, “हम सोचते थे कि लोग स्कूल में कौन-से सवाल कर सकते हैं। फिर हम प्रैक्टिस करते थे कि हमने जो खोजबीन की है, उसे ध्यान में रखकर मैं कैसे जवाब दे सकता हूँ। जब मैं यह समझ जाता हूँ कि मैं क्यों किसी बात पर विश्वास करता हूँ, तो मुझे डर नहीं लगता और मैं दूसरों को कोमलता से जवाब दे पाता हूँ।”
18. कुलुस्सियों 4:6 से किस बात की अहमियत पता चलती है?
18 हम चाहे लोगों को कितने भी यकीन से या कितने भी अच्छे से समझाएँ, यह ज़रूरी नहीं कि हर कोई हमारी बात सुने। लेकिन अगर हम सोच-समझकर और कोमलता से जवाब दें, तो शायद अच्छे नतीजे निकलें। (कुलुस्सियों 4:6 पढ़िए।) हम जो मानते हैं, उस बारे में लोगों से बात करना गेंद खेलने जैसा है। हम चाहें तो सामनेवाले की तरफ धीरे से गेंद फेंक सकते हैं या फिर ज़ोर से। लेकिन अगर हम धीरे से गेंद फेंकें, तो शायद सामनेवाला उसे पकड़ ले और खेल चलता रहे। उसी तरह अगर हम सोच-समझकर और कोमलता से बात करें, तो शायद लोग हमारी बात सुनने के लिए राज़ी हो जाएँ और उनसे हमारी बातचीत जारी रहे। यह तो है कि कुछ लोग सिर्फ बहस करना चाहते हैं या हमारा मज़ाक उड़ाना चाहते हैं। ऐसे लोगों से आगे बात करते रहना ज़रूरी नहीं है। (नीति. 26:4) लेकिन सभी लोग ऐसे नहीं होते। ज़्यादातर लोग शायद हमारी बात सुनने के लिए तैयार हो जाएँ।
19. क्या बात याद रखने से हम हमेशा कोमलता से पेश आएँगे?
19 तो जैसा हमने देखा, कोमल स्वभाव के होने से बहुत-से फायदे होते हैं। यहोवा से प्रार्थना कीजिए कि वह आपको कोमलता से पेश आने की ताकत दे, ताकि जब लोग आपसे सवाल करें या आपका मज़ाक उड़ाएँ, तो आप नरमी से जवाब दे पाएँ। याद रखिए, जिनकी राय आपसे नहीं मिलती, उन्हें अगर आप कोमलता से जवाब दें, तो बात बिगड़ेगी नहीं। इसके अलावा दूसरों का आदर करने से और उन्हें नरमी से जवाब देने से शायद कुछ लोग हमारे बारे में और बाइबल की शिक्षाओं के बारे में अपनी सोच बदलें। तो आप जो मानते हैं, उस बारे में “पैरवी करने के लिए हमेशा तैयार” रहिए, मगर ऐसा “कोमल स्वभाव और गहरे आदर के साथ” कीजिए। (1 पत. 3:15) याद रखिए, कोमलता आपकी कमज़ोरी नहीं, आपकी ताकत है!
गीत 88 मुझे अपनी राहें सिखा
a हम जो मानते हैं उस बारे में जब कोई सवाल खड़ा करता है या हमें बुरा-भला कहता है, तो हम कैसे उसे कोमलता से जवाब दे सकते हैं? इस बारे में इस लेख में कुछ बढ़िया सुझाव दिए जाएँगे।
b ज़्यादा जानकारी के लिए 2016 की सजग होइए! के अंक 3 में दिया लेख, “पवित्र शास्त्र में समलैंगिकता के बारे में क्या बताया गया है?” पढ़ें।
c jw.org पर “नौजवानों के सवाल” शृंखला में और “यहोवा के साक्षियों के बारे में अकसर पूछे जानेवाले सवाल” भाग में आपको और भी बढ़िया सुझाव मिलेंगे।