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अध्ययन लेख 38

नौजवानो, आप कैसी ज़िंदगी चाहते हैं?

नौजवानो, आप कैसी ज़िंदगी चाहते हैं?

“पैनी समझ तेरी हिफाज़त करेगी।”—नीति. 2:11.

गीत 135 यहोवा की प्यार-भरी गुज़ारिश: “मेरे बेटे, बुद्धिमान बन”

एक झलक a

1. यहोआश, उज्जियाह और योशियाह के लिए क्या करना मुश्‍किल रहा होगा?

 सोचिए, आप बस 10-12 साल के ही हैं और आपको परमेश्‍वर के लोगों का राजा बना दिया जाता है। अब जब आपके पास इतना अधिकार है, तो आप क्या करेंगे? बाइबल में ऐसे कई नौजवानों के बारे में बताया गया है जिन्हें बहुत कम उम्र में ही यहूदा का राजा बना दिया गया था। जैसे यहोआश बस 7 साल का ही था, उज्जियाह 16 साल का और योशियाह 8 साल का। सोचिए इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी सँभालना उनके लिए कितना मुश्‍किल रहा होगा! पर यहोवा और दूसरे लोगों की मदद से वे यह ज़िम्मेदारी सँभाल पाए और अपनी ज़िंदगी में बहुत-से अच्छे काम कर पाए।

2. हमें यहोआश, उज्जियाह और योशियाह के उदाहरण पर क्यों ध्यान देना चाहिए?

2 हम राजा या रानी तो नहीं हैं, पर बाइबल में बताए इन तीन लड़कों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। उन्होंने कुछ अच्छे फैसले किए, तो कुछ गलत। उनके उदाहरण से हम सीखेंगे कि हमें क्यों अच्छे दोस्त बनाने चाहिए, नम्र रहना चाहिए और यहोवा के करीब आते रहना चाहिए।

अच्छे दोस्त बनाइए

अगर हम अच्छे दोस्त बनाएँ और उनकी सुनें, तो हम यहोआश की तरह बन पाएँगे (पैराग्राफ 3, 7) c

3. राजा यहोआश महायाजक यहोयादा की मदद से कैसे अच्छे फैसले कर पाया?

3 यहोआश की तरह अच्छे फैसले कीजिए। जब यहोआश छोटा ही था, तभी उसके पिता की मौत हो गयी। महायाजक यहोयादा ने उसे अपने बेटे की तरह पाला और उसे यहोवा के बारे में सिखाया। यहोआश ने भी बुद्धिमानी दिखायी और यहोयादा की बढ़िया सलाह मानी। उसने यहोवा की सेवा करने का फैसला किया और दूसरों की भी ऐसा करने में मदद की। यहोआश ने यहोवा के मंदिर की मरम्मत करवाने का भी इंतज़ाम किया।—2 इति. 24:1, 2, 4, 13, 14.

4. जब हम यहोवा की आज्ञाओं को खज़ाना समझते हैं और उन्हें मानते हैं, तो हमें क्या फायदा होता है? (नीतिवचन 2:1, 10-12)

4 अगर आपके मम्मी-पापा या कोई और आपको यहोवा से प्यार करना और उसके स्तरों के हिसाब से जीना सिखा रहा है, तो यह बहुत बड़ी बात है। (नीतिवचन 2:1, 10-12 पढ़िए।) माता-पिता अपने बच्चों को कई तरीकों से सिखा सकते हैं। ध्यान दीजिए कि कात्या के पापा ने कैसे उसे अच्छे फैसले करना सिखाया। जब वे हर दिन उसे स्कूल छोड़ने जाते थे, तो उसके साथ उस दिन के वचन पर चर्चा करते थे। कात्या बताती है, “पापा के साथ मेरी जो बातचीत होती थी, उससे मुझे बहुत मदद मिलती थी। दिन-भर में चाहे जो भी मुश्‍किल आए, मैं उसका सामना कर पाती थी।” पर क्या आपको यह लगता है कि मम्मी-पापा ने बाइबल के हिसाब से आपके लिए जो नियम बनाए हैं, उस वजह से आप जो कुछ करना चाहते हैं, वह नहीं कर पाते? अगर ऐसा है, तो भी आप उनकी बात कैसे मान सकते हैं? ऐनस्टासीया बताती है कि उसके मम्मी-पापा उसे समझाते थे कि उन्होंने कोई नियम क्यों बनाया है। वह कहती है, “इस तरह मैं समझ पायी कि मम्मी-पापा ने वे नियम इसलिए नहीं बनाए कि वे बेवजह मुझ पर रोक-टोक लगाना चाहते हैं, बल्कि इसलिए बनाए हैं क्योंकि वे मुझसे प्यार करते हैं और मेरी हिफाज़त करना चाहते हैं।”

5. आप जो फैसले लेंगे, उन्हें देखकर आपके मम्मी-पापा और यहोवा को कैसा लगेगा? (नीतिवचन 22:6; 23:15, 24, 25)

5 आपके मम्मी-पापा आपको बाइबल से जो सिखाते हैं या जो सलाह देते हैं, अगर आप उसे मानें, तो उन्हें बहुत खुशी होगी। सबसे बढ़कर यहोवा को खुशी होगी और उसके साथ आपकी दोस्ती और पक्की हो जाएगी। (नीतिवचन 22:6; 23:15, 24, 25 पढ़िए।) तो कितना अच्छा होगा कि आप अच्छे फैसले लेने की कोशिश करें, ठीक जैसे यहोआश ने बचपन में लिए थे!

6. यहोयादा की मौत के बाद यहोआश किन लोगों की सुनने लगा और इसके क्या अंजाम हुए? (2 इतिहास 24:17, 18)

6 यहोआश ने जो गलत फैसले किए, उनसे सबक सीखिए। यहोयादा की मौत के बाद यहोआश बुरे लोगों से दोस्ती करने लगा। (2 इतिहास 24:17, 18 पढ़िए।) वह यहूदा के हाकिमों की सुनने लगा, जो यहोवा से प्यार नहीं करते थे। वे बहुत बुरे-बुरे काम करते थे। तो क्या आपको नहीं लगता कि यहोआश को ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए था? (नीति. 1:10) पर उसने उन्हीं की सुनी। फिर जब यहोआश की बुआ के बेटे जकरयाह ने उसे सुधारने की कोशिश की, तो उसने उसी को मरवा डाला। (2 इति. 24:20, 21; मत्ती 23:35) कितना बुरा हुआ! कितनी बेवकूफी की उसने! यहोआश ने शुरू में तो अच्छे काम किए, पर दुख की बात है, आगे चलकर वह झूठी उपासना करने लगा और एक कातिल बन गया। आखिर में उसके अपने ही सेवकों ने उसे मार डाला। (2 इति. 24:22-25) काश! यहोआश हमेशा यहोवा की सुनता और उन लोगों से दोस्ती करता, जो यहोवा से प्यार करते थे। तब उसकी ज़िंदगी कितनी अच्छी होती! आप यहोआश से क्या सबक सीख सकते हैं?

7. आपको किन लोगों से दोस्ती करनी चाहिए? (तसवीर भी देखें।)

7 यहोआश ने जो गलत फैसला लिया उससे एक सबक हम यह सीखते हैं कि हमें उन लोगों से दोस्ती करनी चाहिए जो यहोवा से प्यार करते हैं और उसे खुश करना चाहते हैं। ऐसे दोस्त हमें सही काम करने का बढ़ावा देंगे। और ज़रूरी नहीं कि हम सिर्फ अपनी उम्र के लोगों से दोस्ती करें। हम अपने से छोटों या बड़ों से भी दोस्ती कर सकते हैं। याद है, यहोआश का दोस्त यहोयादा उससे काफी बड़ा था? तो जब दोस्तों की बात आती है, तो सोचिए, ‘क्या मेरे दोस्त यहोवा पर विश्‍वास बढ़ाने में मेरी मदद करते हैं? क्या वे मुझे यहोवा की बात मानने का बढ़ावा देते हैं? क्या वे यहोवा के बारे में और बाइबल की सच्चाइयों के बारे में बात करते हैं? क्या वे खुद यहोवा के स्तर मानते हैं? जब मैं कुछ गलत करता हूँ, तो क्या वे मुझे सुधारते हैं या बस मक्खन लगाते रहते हैं?’ (नीति. 27:5, 6, 17) सच तो यह है, अगर आपके दोस्त यहोवा से प्यार नहीं करते, तो आपको उनसे दोस्ती रखने की कोई ज़रूरत नहीं है। लेकिन अगर आपके दोस्त यहोवा से प्यार करते हैं, तो उनका हाथ कभी मत छोड़िए। वे हमेशा आपकी मदद करेंगे।—नीति. 13:20.

8. अगर हम सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं, तो हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

8 सोशल मीडिया एक ऐसा ज़रिया है, जिससे हम अपने परिवारवालों और दोस्तों से जुड़े रह सकते हैं। लेकिन बहुत-से लोग सिर्फ दूसरों की नज़रों में छाने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। इसलिए जब वे कुछ खरीदते हैं या कुछ करते हैं, तो उसके फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर ज़रूर डालते हैं। अगर आप सोशल मीडिया इस्तेमाल करते हैं, तो सोचिए, ‘मैं सोशल मीडिया पर जो भी डालता हूँ, वह क्यों डालता हूँ? क्या इसलिए कि इससे दूसरों का हौसला बढ़े या इसलिए कि मैं लोगों की नज़रों में छा जाऊँ और वे मेरी तारीफ करें? और दूसरे लोग सोशल मीडिया पर जो डालते हैं, क्या मैं भी उनकी देखा-देखी करने लगा हूँ? क्या मैं भी उनकी तरह सोचने लगा हूँ, बात करने लगा हूँ और उन्हीं की तरह काम करने लगा हूँ?’ एक बार भाई नेथन नॉर ने, जो शासी निकाय के सदस्य थे, एक बढ़िया सलाह दी: “कभी इंसानों को खुश करने की कोशिश मत करो। अगर ऐसा करोगे, तो आप किसी को भी खुश नहीं कर सकोगे। यहोवा को खुश करो, तो आप उन सबको खुश कर सकोगे, जो यहोवा से प्रेम करते हैं।”

नम्र बने रहिए

9. यहोवा की मदद से उज्जियाह क्या कर पाया? (2 इतिहास 26:1-5)

9 उज्जियाह की तरह अच्छे फैसले कीजिए। जब उज्जियाह एक नौजवान था, तो वह नम्र था और उसने “सच्चे परमेश्‍वर का डर मानना” सीखा। उज्जियाह 68 साल जीया और लगभग पूरी ज़िंदगी उस पर यहोवा की आशीष बनी रही। (2 इतिहास 26:1-5 पढ़िए।) उसने कई दुश्‍मन राष्ट्रों को हराया और यरूशलेम की हिफाज़त करने के लिए भी कुछ कदम उठाए। (2 इति. 26:6-15) उज्जियाह यहोवा की मदद से जो कुछ कर पाया, उससे उसे ज़रूर खुशी मिली होगी।—सभो. 3:12, 13.

10. उज्जियाह के साथ क्या हुआ?

10 उज्जियाह ने जो गलत फैसले किए, उनसे सबक सीखिए। राजा होने की वजह से उज्जियाह हमेशा दूसरों को बताता था कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं। शायद इसी वजह से उसे लगा कि वह जो चाहे कर सकता है। एक दिन वह यहोवा के मंदिर में घुस गया और उसने कुछ ऐसा करने की जुर्रत की जिसकी राजाओं को इजाज़त नहीं थी। (2 इति. 26:16-18) उसने वेदी पर धूप जलाने की कोशिश की। और जब महायाजक अजरयाह ने उसे रोकना चाहा, तो वह उस पर भड़क उठा। तब यहोवा ने उसे सज़ा दी और उसे कोढ़ हो गया। (2 इति. 26:19-21) अफसोस, उज्जियाह ने वफादारी से यहोवा की सेवा करने का जो अच्छा नाम कमाया था, वह एक ही पल में मिट्टी में मिल गया। काश! उज्जियाह हमेशा नम्र रहता, तो उसकी ज़िंदगी कितनी अच्छी होती।

हम जो कुछ करते हैं, उस बारे में शेखी मारने के बजाय हमें यहोवा का एहसान मानना चाहिए (पैराग्राफ 11) d

11. किन बातों से पता चल सकता है कि हम नम्र हैं या नहीं? (तसवीर भी देखें।)

11 जब उज्जियाह बहुत ताकतवर हो गया, तो वह यह भूल गया कि उसके पास जो कुछ है, वह सब यहोवा का ही दिया हुआ है। हम उज्जियाह से क्या सबक सीख सकते हैं? हमें याद रखना चाहिए कि आज हमारे पास जो कुछ है या जो भी ज़िम्मेदारियाँ हैं, वे यहोवा ने ही हमें दी हैं। इसलिए हम जो कुछ करते हैं, उस बारे में शेखी मारने के बजाय हमें यहोवा का एहसान मानना चाहिए। b (1 कुरिं. 4:7) हमें नम्र रहना चाहिए और याद रखना चाहिए कि हम अपरिपूर्ण हैं और हमें सुधार करने की ज़रूरत पड़ सकती है। एक भाई जिनकी उम्र 60 के आस-पास है, कहते हैं, “मैंने सीखा है कि अगर हमसे कोई कुछ कह देता है, तो हमें उसकी बात दिल पर नहीं लेनी चाहिए। जब मुझसे छोटी-मोटी गलतियाँ हो जाती हैं और कोई मुझे सुधारता है, तो मैं बुरा नहीं मानता, बल्कि सुधार करके आगे बढ़ने की कोशिश करता हूँ।” कुल मिलाकर कहें तो जब हम नम्र रहते हैं और यहोवा का डर मानते हैं, तो हम सच में खुश रह पाते हैं।—नीति. 22:4.

यहोवा के करीब आते रहिए

12. जब योशियाह नौजवान था, तब वह कैसे यहोवा की खोज करने लगा? (2 इतिहास 34:1-3)

12 योशियाह की तरह अच्छे फैसले कीजिए। जब योशियाह नौजवान था, तभी से वह यहोवा की खोज करने लगा, वह यहोवा को और अच्छे से जानना चाहता था और उसकी मरज़ी पूरी करना चाहता था। लेकिन उसके लिए यह सब करना आसान नहीं था। उसके चारों तरफ ऐसे लोग थे जो झूठी उपासना करते थे और उन्हें रोकने के लिए उसे हिम्मत से काम लेना था। और उसने ठीक ऐसा ही किया। योशियाह 20 साल का भी नहीं हुआ था कि उसने पूरे देश से झूठी उपासना को मिटाना शुरू कर दिया।2 इतिहास 34:1-3 पढ़िए।

13. जब आप अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित करते हैं, तो आप हर दिन क्या करने की कोशिश करेंगे?

13 क्या आप अभी बहुत छोटे हैं? अगर हाँ, तो भी आप योशियाह जैसे बन सकते हैं। कैसे? आप यहोवा के और भी करीब आने की कोशिश कर सकते हैं। आप उसे और अच्छे से जान सकते हैं और यह समझने की कोशिश कर सकते हैं कि उसमें कौन-कौन-से गुण हैं। फिर आपका मन करेगा कि आप अपनी ज़िंदगी उसे समर्पित करें। जो अपनी ज़िंदगी परमेश्‍वर को समर्पित करते हैं, वे हर दिन क्या करने की कोशिश करते हैं? लूक का 14 साल की उम्र में बपतिस्मा हुआ था। जब उसने अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित की, तो उसने सोच लिया, ‘अब से मैं हमेशा यहोवा को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दूँगा और उसे खुश करने की कोशिश करूँगा।’ (मर. 12:30) अगर आपकी भी ऐसा करने की इच्छा है, तो यकीन मानिए, ऐसा करके आपको बहुत-सी आशीषें मिलेंगी।

14. उदाहरण देकर बताइए कि कुछ नौजवान किस तरह राजा योशियाह की तरह बनने की कोशिश करते हैं।

14 नौजवानो, आज आपको कौन-सी मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है? ज़रा जोहन के उदाहरण पर ध्यान दीजिए, जिसने 12 साल की उम्र में बपतिस्मा लिया। वह बताता है कि उसकी क्लास के बच्चे उसे ई-सिगरेट पिलाने की कोशिश करते हैं। वह उन्हें कैसे मना कर पाता है? वह खुद को याद दिलाता है कि ई-सिगरेट पीने (वेपिंग) से उसकी सेहत खराब हो सकती है और यहोवा के साथ उसकी दोस्ती टूट सकती है। अब ज़रा रेचल के उदाहरण पर ध्यान दीजिए जिसने 14 साल की उम्र में बपतिस्मा लिया था। उसके सामने स्कूल में जो मुश्‍किलें आती हैं, उनका वह कैसे सामना कर पाती है? वह बताती है, “मैं ऐसी बातों के बारे में सोचने की कोशिश करती हूँ जिनसे यहोवा और बाइबल पर मेरा ध्यान लगा रहे। जैसे, जब मैं इतिहास की कोई बात पढ़ती हूँ, तो मैं बाइबल का कोई किस्सा या भविष्यवाणी याद करने की कोशिश करती हूँ। या फिर जब मुझसे कोई बात कर रहा होता है, तो मैं सोचती हूँ कि मैं उसे कौन-सी आयत दिखा सकती हूँ।” आज आप नौजवानों के सामने जो मुश्‍किलें आती हैं, वे शायद राजा योशियाह की मुश्‍किलों जैसी ना हों, पर आप उसकी तरह बुद्धिमानी से काम ले सकते हैं और यहोवा के वफादार रह सकते हैं। अगर आज आप इन मुश्‍किलों का सामना करना सीख जाएँ, तो आप आगे चलकर और भी मुश्‍किलों का सामना कर पाएँगे।

15. योशियाह क्यों वफादारी से यहोवा की सेवा कर पाया? (2 इतिहास 34:14, 18-21)

15 जब योशियाह बड़ा हुआ, तब उसने मंदिर की मरम्मत करवाना शुरू कर दिया। उस दौरान “यहोवा के कानून की वह किताब मिली जो मूसा के ज़रिए दी गयी थी।” जब उसे वह किताब पढ़कर सुनायी गयी, तो उसकी बातें उसके दिल को छू गयीं और उसने फौरन कदम उठाया। (2 इतिहास 34:14, 18-21 पढ़िए।) क्या आप हर दिन बाइबल पढ़ना चाहते हैं? अगर आप ऐसा कर रहे हैं, तो आपको कैसा लग रहा है? क्या आप वे आयतें कहीं लिखकर रखते हैं जिनसे आपको मदद मिल सकती है? लूक को जो बातें अच्छी लगती हैं, उन्हें वह एक डायरी में लिख लेता है। क्या आप भी कुछ ऐसा ही करना चाहेंगे, ताकि आपको आयतें याद रहें और यह भी कि उनसे आपने क्या सीखा? जितनी अच्छी तरह आप बाइबल में लिखी बातें समझेंगे और उनसे आपको लगाव होगा, उतना ही आप यहोवा की सेवा करना चाहेंगे। और योशियाह की तरह आपका भी मन करेगा कि आप परमेश्‍वर के वचन में लिखी बातें मानें।

16. योशियाह ने क्यों एक बड़ी गलती की? और उससे हम क्या सबक सीखते हैं?

16 योशियाह ने जो गलत फैसला किया, उससे सबक सीखिए। जब योशियाह 39 साल का था, तब उसने एक बहुत बड़ी गलती की। उसने यहोवा से सलाह लेने के बजाय खुद पर भरोसा किया। (2 इति. 35:20-25) इस वजह से उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इससे हम एक सबक सीख सकते हैं। हम चाहे कितने भी बड़े हो जाएँ या कितने भी समय से बाइबल का अध्ययन कर रहे हों, हमें हमेशा यहोवा की सोच जानने की कोशिश करते रहनी चाहिए। हमें लगातार यहोवा से प्रार्थना करते रहनी चाहिए कि वह हमें सही राह दिखाए, हमें उसके वचन बाइबल का अध्ययन करते रहना चाहिए और उन मसीहियों से सलाह लेते रहनी चाहिए जिन्हें तजुरबा है। जब हम ऐसा करेंगे, तो मुमकिन है कि हमसे कोई बड़ी गलती नहीं होगी और हम खुश रहेंगे।—याकू. 1:25.

नौजवानो, आप ज़िंदगी में खुश रह सकते हैं

17. यहूदा के तीन राजाओं से हम कौन-सी ज़रूरी बातें सीख सकते हैं?

17 नौजवान ज़िंदगी में बहुत कुछ कर सकते हैं। यहोआश, उज्जियाह और योशियाह के उदाहरण से पता चलता है कि नौजवान अच्छे फैसले कर सकते हैं और ऐसी ज़िंदगी जी सकते हैं जिससे यहोवा खुश हो। तो इन नौजवानों की तरह अपनी ज़िंदगी में अच्छे फैसले कीजिए। हाँ, यह बात तो है कि इन तीनों से कुछ गलतियाँ भी हुईं जिनके उन्हें बुरा अंजाम भुगतने पड़े। पर आपको ध्यान रखना है कि आप उनके जैसी गलतियाँ ना करें। अगर आप इन बातों का ध्यान रखेंगे, तो आप ज़िंदगी में खुश रह पाएँगे।

दाविद छोटा ही था जब उसने यहोवा से दोस्ती की। इससे यहोवा भी उससे खुश हुआ और वह भी खुश रह पाया (पैराग्राफ 18)

18. बाइबल में बताए किन लोगों के उदाहरणों से पता चलता है कि हम ज़िंदगी में खुश रह सकते हैं? (तसवीर भी देखें।)

18 बाइबल में ऐसे और भी कई नौजवानों के बारे में बताया गया है जिन्होंने यहोवा से दोस्ती की और जिनसे वह खुश था और इस वजह से वे ज़िंदगी में खुश रह पाए। दाविद भी उनमें से एक था। वह छोटा ही था जब उसने यहोवा से दोस्ती की और आगे चलकर वह उसके लोगों का एक अच्छा राजा बना। उससे कई गलतियाँ तो हुईं, फिर भी यहोवा ने उसे अपना एक वफादार सेवक कहा। (1 राजा 3:6; 9:4, 5; 14:8) तो क्यों ना आप दाविद की ज़िंदगी के बारे में और जिस तरह उसने यहोवा की सेवा की, उस बारे में अध्ययन करें? तब आपका भी मन करेगा कि आप वफादारी से यहोवा की सेवा करते रहें। या फिर आप मरकुस या तीमुथियुस के बारे में अध्ययन कर सकते हैं। उन्होंने भी कम उम्र में यहोवा की सेवा करनी शुरू की थी और वे वफादारी से उसकी सेवा करते रहे। इससे यहोवा को भी खुशी हुई और उन्हें भी।

19. आपकी ज़िंदगी कैसी हो सकती है?

19 आप आज जो करते हैं और जैसे फैसले लेते हैं, उस पर निर्भर करेगा कि आगे चलकर आपकी ज़िंदगी कैसी होगी। तो खुद पर नहीं, यहोवा पर भरोसा कीजिए। (नीति. 20:24) तब वह आपको सही फैसले लेने में मदद करेगा। फिर आप खुश रहेंगे और एक अच्छी ज़िंदगी जी पाएँगे। याद रखिए, आप यहोवा के लिए जो करते हैं, वह उसकी बहुत कदर करता है! तो क्या ज़िंदगी-भर यहोवा की सेवा करने से अच्छा कुछ और हो सकता है?

गीत 144 रखो तुम इनाम पे नज़र!

a नौजवानो, यहोवा जानता है कि कई बार आपके सामने ऐसे हालात आ सकते हैं, जब शायद आपको सही काम करना मुश्‍किल लगे। ऐसे में आप अच्छे फैसले कैसे कर सकते हैं ताकि यहोवा आपसे खुश हो और उसके साथ आपकी दोस्ती बनी रहे? इस लेख में हम ऐसे तीन लड़कों के उदाहरणों पर गौर करेंगे, जो आगे चलकर यहूदा के राजा बने। ध्यान दीजिए कि उनके फैसलों से आप क्या सीख सकते हैं।

b jw.org पर दिए लेख, “क्या सोशल मीडिया पर ढेर सारे फॉलोअर और लाइक होना ही सबकुछ है?” का बक्स “शिकायत भी और शेखी भी?” पढ़ें।

c तसवीर के बारे में: एक बहन एक जवान बहन को अच्छी सलाह दे रही है।

d तसवीर के बारे में: एक बहन जिसका सम्मेलन में एक इंटरव्यू है, यहोवा से मदद माँग रही है और उसकी एहसानमंद है।