अध्ययन लेख 40
पतरस की तरह बनिए, हार मत मानिए!
“मेरे पास से चला जा प्रभु, क्योंकि मैं एक पापी इंसान हूँ।”—लूका 5:8.
गीत 38 वह तुम्हें मज़बूत करेगा
एक झलक a
1. जब जाल में बहुत सारी मछलियाँ आ फँसीं, तो पतरस को कैसा लगा?
पतरस ने पूरी रात मेहनत की, लेकिन एक भी मछली पकड़ में नहीं आयी। फिर भी यीशु ने उससे कहा, “नाव को खेकर गहरे पानी में ले चल, वहाँ अपने जाल डालना।” (लूका 5:4) पतरस को लग रहा था कि एक भी मछली पकड़ में नहीं आएगी, फिर भी उसने यीशु की बात मानी। तब जाल में इतनी सारी मछलियाँ आ फँसीं कि जाल फटने लगे। यह चमत्कार देखकर पतरस और उसके सभी साथी “हक्के-बक्के रह गए।” तब पतरस ने यीशु से कहा, “मेरे पास से चला जा प्रभु, क्योंकि मैं एक पापी इंसान हूँ।” (लूका 5:6-9) पतरस को शायद लग रहा था कि वह यीशु के पास खड़े रहने के भी लायक नहीं है।
2. पतरस के उदाहरण पर गौर करना क्यों अच्छा है?
2 पतरस ने एकदम सही कहा कि वह “पापी इंसान” है। बाइबल से पता चलता है कि कई बार उसने कुछ ऐसा कहा या किया जिसका बाद में उसे अफसोस हुआ। क्या आप भी कभी-कभी पतरस की तरह महसूस करते हैं? क्या आपके स्वभाव में कोई कमी है जिसे सुधारने के लिए आप बहुत संघर्ष कर रहे हैं? या आपमें ऐसी कोई कमज़ोरी है, जिस पर काबू पाने के लिए आप काफी समय से कोशिश कर रहे हैं? अगर हाँ, तो पतरस के उदाहरण से आपको काफी हौसला मिल सकता है और आप उससे बहुत कुछ सीख सकते हैं। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? ज़रा सोचिए, यहोवा चाहता तो पतरस ने जो गलतियाँ कीं, उन्हें बाइबल में लिखवाता ही नहीं। लेकिन उसने उनके बारे में लिखवाया, ताकि हम उनसे सीख सकें। (2 तीमु. 3:16, 17) पतरस से जो गलतियाँ हुईं और फिर उसने जो महसूस किया, उस बारे में अध्ययन करने से हम क्या सीख सकते हैं? इससे हम जान पाएँगे कि यहोवा हमसे यह उम्मीद नहीं करता कि हमसे कभी कोई गलती ना हो। वह चाहता है कि हम कभी हार ना मानें और अपनी कमज़ोरियों के बावजूद उसके वफादार रहने की कोशिश करते रहें।
3. हमें क्यों हार नहीं माननी चाहिए?
3 यह क्यों ज़रूरी है कि हम हार ना मानें? कहते हैं, लगातार अभ्यास करने से हम किसी भी काम में माहिर हो सकते हैं। एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए। एक व्यक्ति ने अच्छी तरह गिटार बजाना सीखने के लिए शायद सालों मेहनत की हो। और इस दौरान उससे हज़ारों बार गलतियाँ भी हुई होंगी। फिर भी वह अभ्यास करता रहा, इसलिए वह गिटार बजाने में माहिर हो पाया। लेकिन माहिर होने के बाद भी शायद कभी-कभी उससे गलतियाँ हो जाएँ, लेकिन वह हार नहीं मानता। वह अपना हुनर बढ़ाने की कोशिश करता रहता है। उसी तरह जब हमें लगे कि हमने किसी कमज़ोरी पर काबू पा लिया है, उसके बाद भी शायद हमसे वही गलती हो जाए। मगर हमें अपनी कमज़ोरी पर काबू पाने की कोशिश करते रहनी चाहिए। हम सब से कई बार गलतियाँ हो जाती हैं, जिन पर बाद में हमें पछतावा होता है। लेकिन अगर हम हार ना मानें, तो यहोवा हमारी मेहनत पर आशीष देगा। (1 पत. 5:10) आइए गौर करें कि पतरस ने किस तरह हार नहीं मानी। हम यह भी जानेंगे कि उसकी कमज़ोरियों के बावजूद यीशु ने किस तरह उस पर करुणा की। इससे हमें हौसला मिलेगा कि हम यहोवा की सेवा करते रहें।
पतरस से गलतियाँ भी हुईं, पर उसे आशीषें भी मिलीं
4. जैसे लूका 5:5-10 में बताया गया है, पतरस ने खुद के बारे में क्या कहा, लेकिन यीशु ने कैसे उसका हौसला बढ़ाया?
4 बाइबल में यह साफ-साफ नहीं बताया गया है कि पतरस ने किस वजह से खुद को “पापी इंसान” कहा या उस वक्त उसके मन में किन गलतियों का खयाल आया था। (लूका 5:5-10 पढ़िए।) हो सकता है, उसने कुछ बड़ी-बड़ी गलतियाँ की हों। वह खुद को नाकाबिल समझ रहा था, इसलिए वह डर रहा था। यीशु समझ गया कि वह डर रहा है, लेकिन वह यह भी जानता था कि पतरस वफादार रह सकता है। इसलिए उसने पतरस से प्यार से कहा, “मत डर।” यीशु को पतरस पर जो भरोसा था, उसका उस पर बहुत गहरा असर हुआ। बाद में पतरस और उसके भाई अन्द्रियास ने मछली पकड़ने का अपना कारोबार छोड़ दिया और पूरे समय यीशु के साथ रहकर सेवा करने लगे। इस फैसले की वजह से यहोवा ने उन्हें ढेरों आशीषें दीं।—मर. 1:16-18.
5. पतरस ने अपनी भावनाओं को खुद पर हावी नहीं होने दिया और वह मसीह का चेला बना, इसलिए उसे कौन-सी आशीषें मिलीं?
5 मसीह का चेला बनने की वजह से पतरस को बहुत-सी अनोखी आशीषें मिलीं। जब यीशु ने बीमार लोगों को ठीक किया, लोगों में से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाला, यहाँ तक कि जिनकी मौत हो गयी थी, उन्हें ज़िंदा किया, तो ये सारे चमत्कार पतरस ने अपनी आँखों से देखे। b (मत्ती 8:14-17; मर. 5:37, 41, 42) पतरस ने एक दर्शन भी देखा। उसमें दिखाया गया था कि जब यीशु भविष्य में राजा बनेगा, तो उसकी कैसी महिमा होगी। यह दर्शन वह कभी नहीं भूल पाया होगा। (मर. 9:1-8; 2 पत. 1:16-18) सोचिए, यीशु का चेला बनने की वजह से पतरस को वे चीज़ें देखने का मौका मिला, जिनके बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं होगा। यह सोचकर पतरस को कितनी खुशी हुई होगी कि उसने अपनी भावनाओं को खुद पर हावी नहीं होने दिया, नहीं तो उसे ये आशीषें नहीं मिल पातीं।
6. क्या पतरस ने तुरंत अपनी कमज़ोरियों पर काबू पा लिया? समझाइए।
6 इतना सब देखने-सुनने के बाद भी पतरस से कई गलतियाँ हुईं। ज़रा उनमें से कुछ पर ध्यान दीजिए। जब यीशु यह समझा रहा था कि बाइबल की भविष्यवाणी के मुताबिक उसे कितनी तकलीफें सहनी पड़ेंगी और उसे मार डाला जाएगा, तो पतरस उसे झिड़कने लगा। (मर. 8:31-33) और बाकी प्रेषितों के साथ-साथ पतरस ने भी कई बार यह बहस की कि उनमें बड़ा कौन है। (मर. 9:33, 34) यीशु की मौत से एक रात पहले पतरस ने एक आदमी पर हमला कर दिया और उसका कान काट दिया। (यूह. 18:10) और उसी रात पतरस ने डर के मारे अपने दोस्त यीशु को जानने से तीन बार इनकार कर दिया। (मर. 14:66-72) इसकी वजह से बाद में पतरस फूट-फूटकर रोया।—मत्ती 26:75.
7. यीशु के ज़िंदा होने के बाद पतरस को क्या मौका मिला?
7 पतरस बहुत दुखी था, लेकिन यीशु ने उसे उसके हाल पर नहीं छोड़ दिया। ज़िंदा होने के बाद वह पतरस से मिला और उसे यह साबित करने का मौका दिया कि वह उससे प्यार करता है। यीशु ने पतरस से कहा कि वह नम्र होकर एक चरवाहे की तरह उसकी भेड़ों की देखभाल करे। (यूह. 21:15-17) पतरस ने यह ज़िम्मेदारी कबूल की। वह पिन्तेकुस्त के दिन यरूशलेम में था और जिन लोगों का पहली बार पवित्र शक्ति से अभिषेक किया गया, उनमें पतरस भी था।
8. प्रेषित पतरस ने अंताकिया में कौन-सी बड़ी गलती की?
8 पवित्र शक्ति से अभिषिक्त होने के बाद भी पतरस से गलतियाँ हुईं। ईसवी सन् 36 में पतरस से कहा गया कि वह कुरनेलियुस के घर जाए, जो एक खतनारहित गैर-यहूदी था। फिर पवित्र शक्ति से कुरनेलियुस का अभिषेक किया गया। यह इस बात का साफ सबूत था कि परमेश्वर किसी से “भेदभाव नहीं करता” और अब गैर-यहूदी भी मसीही मंडली का हिस्सा बन सकते हैं। (प्रेषि. 10:34, 44, 45) इसके बाद से पतरस गैर-यहूदियों के साथ उठने-बैठने लगा और उनके साथ खाने-पीने लगा। वह शायद ज़िंदगी में पहली बार ऐसा कुछ कर रहा होगा। (गला. 2:12) लेकिन कुछ यहूदी मसीहियों को लगता था कि यहूदियों को गैर-यहूदियों के साथ खाना नहीं खाना चाहिए। जब ऐसी ही सोच रखनेवाले कुछ मसीही अंताकिया आए, तो पतरस ने गैर-यहूदी भाइयों के साथ खाना-पीना बंद कर दिया। उसे शायद डर था कि कहीं यहूदी मसीहियों को बुरा ना लग जाए। जब प्रेषित पौलुस ने यह भेदभाव देखा, तो उसने सबके सामने पतरस को फटकारा। (गला. 2:13, 14) इस गलती के बाद भी पतरस परमेश्वर की सेवा करता रहा। उसे किस बात से मदद मिली?
पतरस ने क्यों हार नहीं मानी?
9. यूहन्ना 6:68, 69 से कैसे पता चलता है कि पतरस एक वफादार मसीही था?
9 पतरस एक वफादार मसीही था। उसने किसी भी हाल में यीशु के पीछे चलना नहीं छोड़ा। एक बार यीशु ने कुछ ऐसा कहा जो उसके चेलों को समझ में नहीं आया। (यूहन्ना 6:68, 69 पढ़िए।) तब बहुत-से लोगों ने यीशु के पीछे चलना छोड़ दिया। उन्होंने ना तो उस बात का मतलब जानने की कोशिश की और ना ही इंतज़ार किया कि यीशु उन्हें उस बात का मतलब समझाए। लेकिन पतरस यीशु का वफादार रहा, उसने यीशु का साथ नहीं छोड़ा। वह जानता था कि यीशु के पास ही “हमेशा की ज़िंदगी की बातें” हैं।
10. यह कैसे पता चलता है कि यीशु को पतरस पर पूरा यकीन था? (तसवीर भी देखें।)
10 यीशु ने भी पतरस का साथ नहीं छोड़ा। ध्यान दीजिए कि धरती पर यीशु की ज़िंदगी की आखिरी रात क्या हुआ। यीशु जानता था कि पतरस और बाकी प्रेषित उसे छोड़कर चले जाएँगे। फिर भी यीशु ने जो कहा उससे ज़ाहिर हुआ कि उसे पतरस पर पूरा यकीन है, उसे भरोसा है कि वह पश्चाताप करके लौट आएगा और उसका वफादार रहेगा। (लूका 22:31, 32) यीशु ने यह भी समझा कि उनका ‘दिल तो तैयार है, मगर शरीर कमज़ोर है।’ (मर. 14:38) इसी वजह से यीशु ने पतरस को उस वक्त भी ठुकराया नहीं, जब उसने उसे जानने से इनकार कर दिया था। यीशु ज़िंदा होने के बाद पतरस के सामने प्रकट हुआ, शायद उस वक्त जब वह अकेला था। (मर. 16:7; लूका 24:34; 1 कुरिं. 15:5) पतरस बहुत दुखी था, लेकिन अपने प्रभु को देखकर उसे कितना हौसला मिला होगा!
11. यीशु ने पतरस को कैसे यकीन दिलाया कि यहोवा उसकी ज़रूरतें पूरी करेगा?
11 यीशु ने पतरस को भरोसा दिलाया कि यहोवा उसकी ज़रूरतें पूरी करेगा। ज़िंदा होने के बाद यीशु ने फिर से एक चमत्कार किया, जिस वजह से पतरस और दूसरे प्रेषित बहुत सारी मछलियाँ पकड़ पाए। (यूह. 21:4-6) इस चमत्कार से एक बार फिर पतरस को यकीन हो गया होगा कि यहोवा उसकी ज़रूरतें पूरी करेगा। शायद उसे यीशु की यह बात भी याद आयी होगी कि जो हमेशा ‘परमेश्वर के राज को पहली जगह देते’ हैं, यहोवा उनकी ज़रूरतें पूरी करता है। (मत्ती 6:33) इसी वजह से पतरस ने मछली पकड़ने के अपने कारोबार को नहीं, बल्कि प्रचार काम को ज़िंदगी में पहली जगह दी। फिर ईसवी सन् 33 में पिन्तेकुस्त के दिन उसने हिम्मत से यीशु के बारे में लोगों को बताया जिस वजह से हज़ारों लोगों ने खुशखबरी कबूल की। (प्रेषि. 2:14, 37-41) इसके बाद उसने सामरियों और गैर-यहूदियों को भी मसीह का चेला बनने में मदद की। (प्रेषि. 8:14-17; 10:44-48) यहोवा ने कितने बढ़िया तरीके से उसे सेवा करने का मौका दिया! पतरस के ज़रिए वह सब किस्म के लोगों को मसीही मंडली में लाया।
हमारे लिए सीख
12. अगर हम किसी कमज़ोरी पर काबू पाने की कोशिश कर रहे हैं, तो पतरस की तरह हम किस बात का यकीन रख सकते हैं?
12 यहोवा हमारी मदद कर सकता है ताकि हम उसकी सेवा करते रहें। लेकिन कभी-कभी ऐसा करते रहना मुश्किल हो सकता है, खासकर तब जब हम किसी कमज़ोरी पर काबू पाने के लिए काफी समय से कोशिश कर रहे हों। कभी-कभी शायद हमें लगे कि हम जिन कमज़ोरियों से लड़ रहे हैं, वे पतरस की कमज़ोरियों से भी ज़्यादा मुश्किल हैं। लेकिन यहोवा हमें ताकत दे सकता है ताकि हम हिम्मत ना हारें। (भज. 94:17-19) एक भाई के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। सच्चाई सीखने से पहले वह काफी सालों से समलैंगिक ज़िंदगी जी रहा था। लेकिन फिर उसने अपने अंदर बदलाव किए और बाइबल के हिसाब से जीने लगा। इसके बाद भी कभी-कभी उसके अंदर गलत इच्छाएँ उठती थीं। मगर उसने हार नहीं मानी। उसे किस बात से मदद मिली? वह बताता है, ‘यहोवा हमें ताकत देता है। मैंने सीखा है कि यहोवा की पवित्र शक्ति की मदद से हम सच्चाई की राह पर चलते रह सकते हैं। यहोवा ने मुझे उसकी सेवा करने का मौका दिया है और मेरी कमज़ोरियों के बावजूद वह मुझे लगातार ताकत देता रहता है।’
13. प्रेषितों 4:13, 29, 31 के मुताबिक पतरस कैसे हिम्मत से काम ले पाया और हम उसकी तरह कैसे बन सकते हैं? (तसवीर भी देखें।)
13 जैसे हमने देखा, पतरस कई बार इंसानों से डर गया और बड़ी-बड़ी गलतियाँ कर बैठा। लेकिन जब उसने निडर होने के लिए यहोवा से प्रार्थना की, तो वह हिम्मत से काम ले पाया। (प्रेषितों 4:13, 29, 31 पढ़िए।) हम भी अपने डर पर काबू पा सकते हैं। ज़रा भाई हॉर्स्ट के उदाहरण पर ध्यान दीजिए जो जर्मनी में रहते थे। यह उस वक्त की बात है जब वे स्कूल में थे और नाज़ी हुकूमत चल रही थी। वे कई बार अपने स्कूल के टीचरों और बच्चों से डर गए और उन्होंने “हेल हिटलर” कह दिया जिसका मतलब है, “हिटलर हमें बचाएगा।” जब भाई हॉर्स्ट के माता-पिता को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने उन्हें डाँटा नहीं, बल्कि उनके साथ प्रार्थना की कि यहोवा उन्हें हिम्मत दे। अपने माता-पिता की मदद से और यहोवा पर भरोसा रखने की वजह से आगे चलकर भाई हॉर्स्ट हिम्मत से काम ले पाए और यहोवा के वफादार रह पाए। बाद में उन्होंने कहा, “यहोवा ने मुझे कभी नहीं छोड़ा।” c
14. प्राचीन उन भाई-बहनों का हौसला कैसे बढ़ा सकते हैं जो हिम्मत हारने लगे हैं?
14 यहोवा और यीशु हमें कभी नहीं ठुकराएँगे। जब पतरस ने यीशु को जानने से इनकार कर दिया था, तो वह बड़ी कशमकश में पड़ गया था कि क्या वह हिम्मत हार जाएगा या मसीह का चेला बना रहेगा। यीशु ने यहोवा से मिन्नत की थी कि पतरस अपना विश्वास खो ना दे। यीशु ने अपनी उस प्रार्थना के बारे में पतरस को बताया और उससे कहा कि उसे पूरा यकीन है कि आगे चलकर पतरस उसके भाइयों को मज़बूत करेगा। (लूका 22:31, 32) सोचिए, जब पतरस ने यीशु की इन बातों के बारे में सोचा होगा, तो उसे कितना हौसला मिला होगा। कई बार शायद हम भी बड़ी उलझन में पड़ जाएँ। ऐसे में यहोवा प्राचीनों के ज़रिए हमें शायद यकीन दिलाए कि हम उसके वफादार रह सकते हैं। (इफि. 4:8, 11) भाई पॉल, जो काफी समय से एक प्राचीन हैं, इसी तरह लोगों का हौसला बढ़ाते हैं। जो लोग हिम्मत हारने लगते हैं, उनसे वे कहते हैं कि सोचिए शुरू-शुरू में यहोवा ने आपको किस तरह सच्चाई की तरफ खींचा था। फिर वे उन्हें यकीन दिलाते हैं कि यहोवा का प्यार अटल है और वह उन्हें कभी नहीं ठुकराएगा। वे यह भी कहते हैं, “मैंने ऐसे कई लोगों को देखा है जो हिम्मत हारने लगे थे, लेकिन यहोवा की मदद से वे उसकी सेवा करते रह पाए।”
15. प्रेषित पतरस और भाई हॉर्स्ट के उदाहरण से कैसे पता चलता है कि मत्ती 6:33 में लिखी बात एकदम सच है?
15 यहोवा ने पतरस और दूसरे प्रेषितों की ज़रूरतें पूरी कीं। उनकी तरह अगर हम परमेश्वर की सेवा को ज़िंदगी में पहली जगह दें, तो वह हमारी भी ज़रूरतें पूरी करेगा। (मत्ती 6:33) दूसरे विश्व युद्ध के बाद भाई हॉर्स्ट पायनियर सेवा करना चाहते थे। पर एक दिक्कत थी, वे बहुत गरीब थे। वे सोचने लगे कि पूरे समय की सेवा करने के साथ-साथ क्या वे अपना गुज़ारा चला पाएँगे। तो उन्होंने क्या किया? उन्होंने सोचा कि वे यहोवा को परखकर देखेंगे। सर्किट निगरान के दौरे के वक्त उन्होंने पूरा हफ्ता प्रचार काम में बिताने की सोची। हफ्ते के आखिर में सर्किट निगरान ने उन्हें एक लिफाफा दिया जिसमें कुछ पैसे थे। लेकिन उस लिफाफे पर किसी का नाम नहीं था। उसे देखकर वे हैरान रह गए। उसमें इतने पैसे थे कि कई महीनों तक उनका गुज़ारा चल सकता था और वे आसानी से पायनियर सेवा कर सकते थे। वह तोहफा देखकर भाई हॉर्स्ट को यकीन हो गया कि यहोवा उन्हें सँभालेगा। इसके बाद से उन्होंने हमेशा परमेश्वर के राज को ज़िंदगी में पहली जगह दी।—मला. 3:10.
16. हमें पतरस के उदाहरण पर और उसकी चिट्ठियों पर क्यों ध्यान देना चाहिए?
16 पतरस यह सोचकर कितना खुश हुआ होगा कि जब उसने यीशु से गुज़ारिश की थी कि वह उसके पास से चला जाए, तो यीशु ने उसकी नहीं सुनी। मसीह लगातार पतरस को सिखाता रहा जिस वजह से वह एक वफादार प्रेषित बन पाया। और हम सब मसीहियों के लिए उसने एक बेहतरीन मिसाल रखी। यीशु ने पतरस को जिस तरह सिखाया, उससे आज हम सब बहुत कुछ सीख सकते हैं। उनमें से कुछ बातें हमें उन दो चिट्ठियों में मिल सकती हैं, जो पतरस ने पहली सदी में मंडलियों को लिखी थीं। उन चिट्ठियों में पतरस ने कुछ और बातें भी बतायीं जिनसे हमें फायदा हो सकता है। अगले लेख में हम उन चिट्ठियों से कुछ बातों पर चर्चा करेंगे और देखेंगे कि हम वे बातें कैसे मान सकते हैं।
गीत 126 जागते रहो, शक्तिशाली बनते जाओ
a यह लेख उन लोगों का हौसला बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है, जो अपनी कमज़ोरियों से लड़ रहे हैं। इससे उन्हें यकीन हो जाएगा कि वे अपनी कमज़ोरियों पर काबू पा सकते हैं और हमेशा यहोवा की सेवा करते रह सकते हैं।
b इस लेख में ज़िक्र की गयी कई आयतें मरकुस की किताब से ली गयी हैं। उन आयतों में बतायी बातें उसने ज़रूर पतरस से सुनी होंगी जिसने अपनी आँखों से यह सब होते हुए देखा था।
c jw.org पर हॉर्स्ट हेन्शल: यहोवा मेरा दृढ़ गढ़ है वीडियो देखें।
d तसवीर के बारे में: जैसे तसवीर में दर्शाया गया है, हॉर्स्ट हेन्शल के माता-पिता ने उनके साथ प्रार्थना की और यहोवा के वफादार रहने में उनकी मदद की।