अध्ययन लेख 41
पतरस की दो चिट्ठियाँ देती हैं अनमोल सीख
“मैं तुम्हें ये बातें याद दिलाता रहूँगा।”—2 पत. 1:12.
गीत 127 यहोवा चाहे जैसा, बनूँ मैं वैसा
एक झलक a
1. प्रेषित पतरस की मौत से कुछ समय पहले यहोवा ने उसे क्या काम दिया?
प्रेषित पतरस ने कई सालों तक वफादारी से यहोवा की सेवा की। वह यीशु के साथ जगह-जगह प्रचार करने गया। उसी ने ही गैर-यहूदियों को प्रचार करना शुरू किया और बाद में उसने शासी निकाय के सदस्य के तौर पर भी सेवा की। फिर अपनी ज़िंदगी के आखिरी पड़ाव में जब उसे लगने लगा कि अब वह ज़्यादा समय नहीं जी पाएगा, तब यहोवा ने उसे एक और काम दिया। ईसवी सन् 62 से 64 के बीच परमेश्वर ने उससे दो चिट्ठियाँ लिखवायीं जो आज 1 पतरस और 2 पतरस के नाम से जानी जाती हैं। इनमें उसने यह उम्मीद जतायी कि इन चिट्ठियों से उसकी मौत के बाद भी मसीहियों को मदद मिलती रहेगी।—2 पत. 1:12-15.
2. पतरस ने जो चिट्ठियाँ लिखीं, वे उस समय के मसीहियों के लिए क्यों बड़े काम की थीं?
2 पतरस ने ये चिट्ठियाँ तब लिखीं, जब मसीही ‘तरह-तरह की परीक्षाओं की वजह से दुख झेल’ रहे थे। (1 पत. 1:6) दुष्ट लोग मसीही मंडली में झूठी शिक्षाएँ फैलाने की कोशिश कर रहे थे और गलत चालचलन का बढ़ावा दे रहे थे। (2 पत. 2:1, 2, 14) और जो मसीही यरूशलेम में रह रहे थे, वे जल्द ही “सब बातों का अंत” देखनेवाले थे, यानी रोमी सेना यरूशलेम और वहाँ के मंदिर का नाश करनेवाली थी। (1 पत. 4:7) ऐसे में पतरस की इन चिट्ठियों से मसीही ज़रूर समझ गए होंगे कि वे जिन मुश्किलों से गुज़र रहे हैं, उनका वे कैसे सामना कर सकते हैं और आनेवाली मुश्किलों के लिए कैसे खुद को तैयार कर सकते हैं। b
3. हमें पतरस की चिट्ठियों में लिखी बातों पर क्यों ध्यान देना चाहिए?
3 वैसे तो पतरस ने ये चिट्ठियाँ पहली सदी के मसीहियों को लिखी थीं, लेकिन यहोवा ने इन्हें अपने वचन में भी शामिल किया। इसलिए इनमें लिखी बातों से आज हम भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। (रोमि. 15:4) आज हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ गलत चालचलन को बढ़ावा दिया जाता है। इसलिए हमारे लिए भी यहोवा की सेवा करते रहना कई बार मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा, बहुत जल्द हम एक ऐसे संकट का सामना करनेवाले हैं जो उस संकट से कहीं बड़ा होगा, जिसमें यरूशलेम और उसके मंदिर का नाश हुआ था। पतरस की दोनों चिट्ठियों से हम कई ज़रूरी बातें सीखते हैं: (1) इनकी मदद से हम हमेशा इस बात को ध्यान में रख पाएँगे कि यहोवा का दिन बहुत जल्द आनेवाला है, (2) जब हमें इंसानों से डर लगेगा, तो हम उस पर काबू कर पाएँगे और (3) हम एक-दूसरे से दिल की गहराइयों से प्यार कर पाएँगे। इस तरह की बातों से प्राचीनों को भी यहोवा के झुंड की अच्छी तरह देखभाल करने में मदद मिलेगी।
यहोवा के दिन का बेसब्री से इंतज़ार कीजिए
4. जैसे 2 पतरस 3:3, 4 से पता चलता है, शायद किस वजह से हमारा विश्वास डगमगाने लगे?
4 हमारे आस-पास ज़्यादातर ऐसे लोग रहते हैं जो बाइबल की भविष्यवाणियों पर यकीन नहीं करते। ऐसे लोग शायद हमारा मज़ाक उड़ाएँ, क्योंकि हम सालों से यह कहते आए हैं कि अंत बहुत करीब है। कुछ लोग तो शायद यह तक कहें कि अंत कभी नहीं आएगा। (2 पतरस 3:3, 4 पढ़िए।) अगर घर-घर का प्रचार करते वक्त कोई ऐसी बात कहता है या हमारे साथ काम करनेवाला या हमारा कोई परिवारवाला ऐसा कहता है, तो शायद हमारा विश्वास डगमगाने लगे। प्रेषित पतरस ने समझाया कि ऐसे में क्या बात हमारी मदद कर सकती है।
5. इस दुनिया के अंत का इंतज़ार करते वक्त हम सही सोच कैसे बनाए रख सकते हैं? (2 पतरस 3:8, 9)
5 कुछ लोगों को शायद लगे कि यहोवा इस दुष्ट दुनिया का अंत करने में देर कर रहा है। लेकिन पतरस की बातों से हमें सही सोच बनाए रखने में मदद मिल सकती है। इनसे हमें याद आता है कि जब समय की बात आती है, तो यहोवा की सोच और इंसानों की सोच में ज़मीन-आसमान का फर्क है। (2 पतरस 3:8, 9 पढ़िए।) यहोवा के लिए 1,000 साल एक दिन के बराबर हैं। और यहोवा सब्र रखता है, वह नहीं चाहता कि किसी का भी नाश हो। लेकिन जब उसका दिन आएगा, तो सभी दुष्ट लोगों का नाश हो जाएगा। सोचिए, यह कितनी बड़ी बात है कि अंत आने से पहले आज हमारे पास जो समय है, वह हम हर राष्ट्र के लोगों को गवाही देने में लगा सकते हैं।
6. हम किस तरह यहोवा के दिन को “हमेशा ध्यान में” रख सकते हैं? (2 पतरस 3:11, 12)
6 पतरस ने हमसे गुज़ारिश की कि हम यहोवा के दिन को ‘हमेशा ध्यान में रखें।’ (2 पतरस 3:11, 12 पढ़िए।) यह हम कैसे कर सकते हैं? हो सके तो हम हर दिन उन आशीषों के बारे में सोच सकते हैं जो हमें नयी दुनिया में मिलनेवाली हैं। सोचिए, आप एकदम साफ और ताज़ा हवा में साँस ले रहे हैं, पौष्टिक खाना खा रहे हैं, आप अपने उन अज़ीज़ों का स्वागत कर रहे हैं जिन्हें दोबारा ज़िंदा किया गया है और जो लोग सदियों पहले जीए थे, उन्हें सिखा रहे हैं कि बाइबल की भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी हुईं। यह मनन करने से आप परमेश्वर के दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर पाएँगे और यकीन रख पाएँगे कि अंत बहुत करीब है। इस तरह भविष्य के बारे में ‘पहले से जानकारी रखने’ से हम झूठे शिक्षकों की बातों में आकर ‘गुमराह नहीं होंगे।’—2 पत. 3:17.
इंसानों के डर पर काबू पाइए
7. अगर हम इंसानों से डर जाएँ, तो क्या हो सकता है?
7 हम जानते हैं कि यहोवा का दिन बहुत करीब है, इसलिए हमारा मन करता है कि हमसे जितना हो सके, हम दूसरों को खुशखबरी सुनाएँ। लेकिन कई बार शायद हम दूसरों से बात करने से झिझकें, क्योंकि हमें शायद यह डर लगे कि पता नहीं लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे या हमारे साथ क्या करेंगे। पतरस के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। जिस रात यीशु के मुकदमे की सुनवाई हो रही थी, पतरस यह बताने से डर रहा था कि वह यीशु का एक चेला है। यहाँ तक कि उसने कई बार यीशु को जानने से भी इनकार कर दिया। (मत्ती 26:69-75) लेकिन बाद में वह अपने डर पर काबू कर पाया और उसने पूरे यकीन से कहा, “उन बातों से मत डरो जिनसे लोग डरते हैं, न ही परेशान हो जाओ।” (1 पत. 3:14) पतरस की बातों से हमें हौसला मिलता है कि हम भी अपने डर पर काबू पा सकते हैं।
8. हम अपने डर पर कैसे काबू पा सकते हैं? (1 पतरस 3:15)
8 अगर आप इंसानों से डर जाते हैं, तो आप इस डर पर कैसे काबू पा सकते हैं? पतरस ने कहा, “मसीह को प्रभु जानकर अपने दिलों में पवित्र मानो।” (1 पतरस 3:15 पढ़िए।) ऐसा करने के लिए हम सोच सकते हैं कि हमारा प्रभु और राजा मसीह यीशु आज किस ओहदे पर है और उसके पास कितनी ताकत है। अगर आपको कभी दूसरों को खुशखबरी सुनाने से डर लगे, तो हमारे राजा के बारे में सोचिए। मन की आँखों से देखिए कि वह स्वर्ग में राज कर रहा है और उसके चारों तरफ अनगिनत स्वर्गदूत हैं। यह भी याद कीजिए कि उसे “स्वर्ग में और धरती पर सारा अधिकार” दिया गया है और वह ‘दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त तक हमेशा आपके साथ रहेगा।’ (मत्ती 28:18-20) पतरस ने यह भी कहा कि हम जो मानते हैं, उस बारे में गवाही देने के लिए ‘हमेशा तैयार रहें।’ क्या आप अपने काम की जगह पर, स्कूल में या कहीं और मौका ढूँढ़कर गवाही देना चाहते हैं? तो पहले से सोचकर रखिए कि आप कब ऐसा कर सकते हैं और यह भी सोचिए कि आप लोगों से क्या कहेंगे। हिम्मत के लिए प्रार्थना कीजिए और भरोसा रखिए कि अपने डर पर काबू पाने में यहोवा आपकी मदद करेगा।—प्रेषि. 4:29.
“दिल की गहराइयों से प्यार करो”
9. एक मौके पर पतरस किस तरह भाई-बहनों से प्यार करने से चूक गया? (तसवीर भी देखें।)
9 पतरस ने सीखा कि उसे भाई-बहनों से प्यार करते रहना है। एक बार यीशु ने अपने चेलों से कहा था, “मैं तुम्हें एक नयी आज्ञा देता हूँ कि तुम एक-दूसरे से प्यार करो। ठीक जैसे मैंने तुमसे प्यार किया है, वैसे ही तुम भी एक-दूसरे से प्यार करो।” (यूह. 13:34) उस वक्त पतरस भी वहाँ मौजूद था। फिर भी एक मौके पर वह यहूदी मसीहियों से डर गया और उसने गैर-यहूदी मसीही भाई-बहनों के साथ खाना-पीना बंद कर दिया। वह जो कर रहा था, उसे प्रेषित पौलुस ने “ढोंग” कहा। (गला. 2:11-14) जब पौलुस ने उसे सुधारा, तो उसने पौलुस की सलाह कबूल की और अपने अंदर बदलाव किया। बाद में पतरस ने अपनी दोनों चिट्ठियों में इस बात पर ज़ोर दिया कि भाई-बहनों के लिए हमारे दिल में ही प्यार नहीं होना चाहिए, बल्कि हमें अपने कामों से भी इसे जताना है।
10. हम कब “निष्कपट मन से एक-दूसरे के लिए भाइयों जैसा लगाव” रख पाएँगे? समझाइए। (1 पतरस 1:22)
10 पतरस ने कहा कि हमें “निष्कपट मन से एक-दूसरे के लिए भाइयों जैसा लगाव” रखना चाहिए। (1 पतरस 1:22 पढ़िए।) इस तरह का लगाव तभी होगा जब हम ‘सच्चाई के वचन को मानेंगे।’ इस सच्चाई में एक शिक्षा यह भी है कि “परमेश्वर भेदभाव नहीं करता।” (प्रेषि. 10:34, 35) अगर हम मंडली में कुछ भाई-बहनों से प्यार करें और कुछ से नहीं, तो हम प्यार करने के बारे में यीशु की आज्ञा नहीं मान रहे होंगे। हाँ, यह बात सच है कि कुछ भाई-बहनों से हमें दूसरों से ज़्यादा लगाव हो जाता है, जैसे यीशु को भी था। (यूह. 13:23; 20:2) लेकिन पतरस ने हमें याद दिलाया कि हमें सभी मसीहियों से “भाइयों जैसा लगाव” रखना है, मानो वे हमारे अपने परिवारवाले हों।—1 पत. 2:17.
11. दूसरों को ‘पूरे जतन के साथ दिल से प्यार करने’ का क्या मतलब है?
11 पतरस ने हमसे गुज़ारिश की कि हम ‘पूरे जतन के साथ एक-दूसरे को दिल से प्यार करें।’ जब पतरस ने कहा कि “पूरे जतन के साथ” प्यार करो, तो उसका मतलब था कि जब किसी से हमारा प्यार करने का मन ना करे, तब भी हमें उससे प्यार करना चाहिए। उदाहरण के लिए, हो सकता है कोई भाई हमारा दिल दुखाए। ऐसे में शायद हमारा मन करे कि उससे प्यार करने के बजाय, हम भी उसके साथ वैसा ही व्यवहार करें। लेकिन पतरस ने यीशु से सीखा था कि जब हम बदला लेते हैं, तो परमेश्वर हमसे खुश नहीं होता। (यूह. 18:10, 11) पतरस ने लिखा, “अगर कोई तुम्हें चोट पहुँचाए तो बदले में उसे चोट मत पहुँचाओ और अगर कोई तुम्हारी बेइज़्ज़ती करे तो बदले में उसकी बेइज़्ज़ती मत करो। इसके बजाय, उसका भला करो।” (1 पत. 3:9) जब आप दूसरों से पूरे जतन से प्यार करेंगे, तो आप उनके साथ भी अच्छा व्यवहार करेंगे, जिन्होंने शायद आपका दिल दुखाया हो।
12. (क) जब हम भाई-बहनों से “दिल की गहराइयों से” प्यार करेंगे, तो हम और क्या करने के लिए तैयार रहेंगे? (ख) जैसे एकता का बंधन टूटने न दें वीडियो में दिखाया गया है, आप क्या करना चाहते हैं?
12 पतरस ने अपनी पहली चिट्ठी में इसी से मिलती-जुलती बात कही। उसने लिखा, “एक-दूसरे को दिल की गहराइयों से प्यार करो।” इस तरह का प्यार सिर्फ कुछ पापों को नहीं, बल्कि “ढेर सारे पापों को ढक देता है।” (1 पत. 4:8) शायद पतरस को माफ करने के बारे में वह बात याद आयी होगी, जो कई साल पहले यीशु ने उसे सिखायी थी। उस वक्त पतरस ने कहा था कि वह अपने भाई को “सात बार” तक माफ कर सकता है। उसे शायद लग रहा था कि उसका दिल बहुत बड़ा है। लेकिन यीशु ने उससे और हम सब से कहा कि हमें “77 बार” माफ करने को तैयार रहना चाहिए, यानी माफ करने के बारे में हमें कोई हद नहीं ठहरानी चाहिए। (मत्ती 18:21, 22) अगर आपको यह सलाह मानना मुश्किल लगता है, तो निराश मत होइए। यहोवा के सभी अपरिपूर्ण सेवकों को कभी-न-कभी दूसरों को माफ करना मुश्किल लगा है। ज़रूरी बात तो यह है कि अगर किसी ने आपका दिल दुखाया है, तो उसे माफ करने के लिए आपसे जो हो सके, वह कीजिए और उससे सुलह कीजिए। c
प्राचीनो, परमेश्वर के झुंड की देखभाल कीजिए
13. प्राचीनों के लिए भाई-बहनों की देखभाल करना क्यों मुश्किल हो सकता है?
13 पतरस वह बात कभी नहीं भूला होगा जो यीशु ने ज़िंदा होने के बाद उससे कही थी। उसने कहा था, “चरवाहे की तरह मेरी छोटी भेड़ों की देखभाल कर।” (यूह. 21:16) अगर आप एक प्राचीन हैं, तो आप जानते हैं कि यह सलाह आपको भी माननी है। लेकिन हो सकता है, एक प्राचीन को यह अहम ज़िम्मेदारी निभाने के लिए वक्त निकालना मुश्किल लगे। प्राचीनों के लिए ज़रूरी है कि वे सबसे पहले अपने परिवार की देखभाल करें, उनकी खाने-पीने की ज़रूरतें पूरी करें, उनके साथ वक्त बिताएँ, उनके लिए प्यार जताएँ और यहोवा के साथ रिश्ता मज़बूत करने में उनकी मदद करें। इसके अलावा, उन्हें प्रचार काम में अगुवाई लेनी होती है। और उन्हें सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में जो भाग मिलते हैं, उनकी तैयारी करनी होती है और उन्हें पेश करना होता है। कुछ प्राचीन ‘अस्पताल संपर्क समिति’ के सदस्य भी हैं और कुछ ‘स्थानीय योजना और निर्माण विभाग’ में भी सहयोग देते हैं। सच में, प्राचीनों के पास बहुत काम होते हैं!
14. परमेश्वर के झुंड की देखभाल करने में क्या बात प्राचीनों की मदद कर सकती है? (1 पतरस 5:1-4)
14 पतरस भी एक प्राचीन था और उसने दूसरे प्राचीनों से गुज़ारिश की, “चरवाहों की तरह परमेश्वर के झुंड की देखभाल करो।” (1 पतरस 5:1-4 पढ़िए।) अगर आप एक प्राचीन हैं, तो हम जानते हैं कि आप अपने भाई-बहनों से प्यार करते हैं और चरवाहे की तरह उनकी देखभाल करना चाहते हैं। लेकिन कई बार शायद आपको लगे कि आपके पास इतने सारे काम हैं या आप इतने थक गए हैं कि आप यह ज़िम्मेदारी नहीं निभा पाएँगे। ऐसे में आप क्या कर सकते हैं? आपके मन में जो भी चिंता-परेशानियाँ हैं, वे यहोवा को बताइए। पतरस ने लिखा, “अगर कोई सेवा करता है तो उस शक्ति पर निर्भर होकर करे जो परमेश्वर देता है।” (1 पत. 4:11) हो सकता है, आपके भाई-बहन ऐसी समस्याओं से जूझ रहे हों जो इस दुनिया में पूरी तरह सुलझायी नहीं जा सकतीं। लेकिन याद रखिए, आप जितना भाई-बहनों के लिए कर सकते हैं, उससे कहीं ज़्यादा ‘प्रधान चरवाहा’ यीशु मसीह उनके लिए कर सकता है। वह आज भी उनकी मदद कर सकता है और नयी दुनिया में भी करेगा। यह भी याद रखिए कि परमेश्वर प्राचीनों से बस यह चाहता है कि वे भाई-बहनों से प्यार करें, चरवाहों की तरह उनकी देखभाल करें और “झुंड के लिए एक मिसाल” बनें।
15. एक प्राचीन किस तरह परमेश्वर के झुंड की देखभाल करता है? (तसवीर भी देखें।)
15 भाई विलियम काफी समय से प्राचीन के तौर पर सेवा कर रहे हैं। वे समझते हैं कि भाई-बहनों की रखवाली भेंट करना कितना ज़रूरी है। जब कोविड-19 महामारी शुरू हुई, तो उन्होंने और उनकी मंडली के दूसरे प्राचीनों ने इस बात का ध्यान रखा कि वे हर हफ्ते अपने समूह के हर प्रचारक से संपर्क करें। वे बताते हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, “बहुत-से भाई-बहन अपने घर पर अकेले थे और वे बहुत जल्द निराश हो सकते थे।” जब कोई मसीही किसी परेशानी से गुज़र रहा होता है, तो भाई विलियम बहुत ध्यान से उसकी सुनते हैं ताकि वे समझ सकें कि उसकी क्या चिंता-परेशानियाँ हैं और वे कैसे उसकी मदद कर सकते हैं। फिर वे हमारी वेबसाइट से कोई प्रकाशन या वीडियो ढूँढ़ते हैं जिससे वे उसका हौसला बढ़ा सकें। वे कहते हैं, “रखवाली भेंट करना आज पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है। हम लोगों को यहोवा के बारे में सिखाने के लिए बहुत मेहनत करते हैं, तो हमें परमेश्वर के झुंड की देखभाल करने के लिए भी उतनी ही मेहनत करनी है ताकि यहोवा की हर भेड़ सच्चाई में बनी रहे।”
यहोवा को आपका प्रशिक्षण पूरा करने दीजिए
16. पतरस की चिट्ठियों से हमने जो बातें सीखीं, उन्हें हम कैसे मान सकते हैं?
16 हमने इस लेख में पतरस की चिट्ठियों से कुछ बातों पर चर्चा की। इसका अध्ययन करते वक्त शायद आपने गौर किया हो कि किसी मामले में आपको अपने अंदर सुधार करना है। जैसे, क्या आपने सोचा है कि आप उन आशीषों के बारे में और ज़्यादा मनन करेंगे जो हमें नयी दुनिया में मिलेंगी? क्या आपने लक्ष्य रखा है कि आप काम की जगह पर, स्कूल में या कहीं और मौका ढूँढ़कर गवाही देंगे? क्या आप कुछ और तरीकों से भाई-बहनों से दिल की गहराइयों से प्यार करना चाहते हैं? प्राचीनो, क्या आपने ठान लिया है कि आप खुशी-खुशी और तत्परता से यहोवा के झुंड की देखभाल करेंगे? इस तरह खुद की जाँच करने से शायद आपको एहसास हो कि आपको अपने अंदर कुछ सुधार करने हैं। लेकिन निराश मत होइए। ‘प्रभु यीशु कृपालु है’ और वह सुधार करने में आपकी मदद करेगा। (1 पत. 2:3) पतरस ने हमें यकीन दिलाया, ‘परमेश्वर तुम्हारा प्रशिक्षण खत्म करेगा। वह तुम्हें मज़बूत करेगा, शक्तिशाली बनाएगा और मज़बूती से खड़ा करेगा।’—1 पत. 5:10.
17. अगर हम वफादारी से यहोवा की सेवा करते रहें और उससे प्रशिक्षण लेते रहें, तो हमें क्या आशीष मिलेगी?
17 एक बार पतरस को लग रहा था कि वह परमेश्वर के बेटे के सामने खड़े होने के लायक भी नहीं है। (लूका 5:8) लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। यहोवा और यीशु की मदद से वह वफादारी से सेवा करता रहा। इस वजह से यहोवा ने पतरस को ‘हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के उस राज में दाखिल होने दिया जो हमेशा तक कायम रहेगा।’ (2 पत. 1:11) यहोवा ने उसे कितना बड़ा इनाम दिया! अगर आप हिम्मत ना हारें और पतरस की तरह वफादारी से यहोवा की सेवा करते रहें और उससे प्रशिक्षण लेते रहें, तो वह आपको भी हमेशा की ज़िंदगी देगा। आपको ‘अपने विश्वास की वजह से इनाम में उद्धार मिलेगा।’—1 पत. 1:9.
गीत 109 गहरा प्यार करें
a इस लेख में हम जानेंगे कि पतरस की चिट्ठियों से हम जो बातें सीखते हैं, उनसे हमें मुश्किलों का सामना करने में कैसे मदद मिल सकती है। इसमें यह भी बताया जाएगा कि प्राचीन चरवाहों के तौर पर अपनी ज़िम्मेदारी कैसे अच्छी तरह पूरी कर सकते हैं।
b ऐसा लगता है, पैलिस्टाइन में रहनेवाले मसीहियों को पतरस की दोनों चिट्ठियाँ उस हमले से पहले ही मिल गयी थीं, जो रोमी सेना ने ईसवी सन् 66 में यरूशलेम पर पहली बार किया था।
c jw.org पर दिया वीडियो एकता का बंधन टूटने न दें देखें।