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अध्ययन लेख 37

शिमशोन की तरह यहोवा पर निर्भर रहिए

शिमशोन की तरह यहोवा पर निर्भर रहिए

“हे सारे जहान के मालिक यहोवा, मेरी तरफ ध्यान दे। . . . मुझे ताकत से भर दे।”—न्यायि. 16:28.

गीत 30 यहोवा, मेरा परमेश्‍वर, पिता और दोस्त

एक झलक a

1-2. शिमशोन के बारे में अध्ययन करना क्यों अच्छा है?

 जब आप शिमशोन के बारे में सुनते हैं, तो आपके मन में क्या आता है? शायद एक हट्टा-कट्टा आदमी, जिसमें गज़ब की ताकत थी। शिमशोन सच में बहुत ताकतवर था। लेकिन उसने एक गलती की जिसके उसे बुरे अंजाम भुगतने पड़े। फिर भी यहोवा ने इस बात पर ध्यान दिया कि शिमशोन ने अपनी पूरी ज़िंदगी उसके लिए कितना कुछ किया और उसे उस पर कितना विश्‍वास था। इस वजह से उसने शिमशोन के बारे में बाइबल में लिखवाया, ताकि हम उससे सीख सकें।

2 यहोवा ने अपने चुने हुए लोगों, इसराएलियों की मदद करने के लिए शिमोशन के ज़रिए बहुत बड़े-बड़े काम करवाए। फिर शिमशोन की मौत के सदियों बाद जब यहोवा ने प्रेषित पौलुस से ऐसे लोगों के बारे में लिखवाया जिनमें कमाल का विश्‍वास था, तो उसने शिमशोन का नाम भी दर्ज़ करवाया। (इब्रा. 11:32-34) शिमशोन के उदाहरण से आज हमें भी हौसला मिल सकता है। उसने मुश्‍किल-से-मुश्‍किल हालात में भी यहोवा पर भरोसा रखा। आइए जानें कि हम शिमशोन से कैसे हौसला पा सकते हैं और कौन-सी बातें सीख सकते हैं।

शिमशोन ने यहोवा पर भरोसा किया

3. शिमशोन को कौन-सी ज़िम्मेदारी दी गयी?

3 जब शिमशोन पैदा हुआ तब इसराएल राष्ट्र पर पलिश्‍ती लोग हुकूमत कर रहे थे और वे उन पर ज़ुल्म ढा रहे थे। (न्यायि. 13:1) पलिश्‍ती बहुत बेरहम थे, इसलिए इसराएलियों को बहुत तकलीफें झेलनी पड़ रही थीं। तब यहोवा ने शिमशोन को चुना कि ‘वह इसराएलियों को पलिश्‍तियों के हाथ से छुड़ाए।’ (न्यायि. 13:5) यह बहुत मुश्‍किल काम था! शिमशोन यह बड़ी ज़िम्मेदारी यहोवा पर निर्भर रहकर ही पूरी कर सकता था।

शिमशोन ने यहोवा पर भरोसा रखा और वह फेरबदल करने के लिए तैयार था। परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने के लिए उसे जो मिला, उसने इस्तेमाल किया (पैराग्राफ 4-5)

4. यहोवा ने किस तरह शिमशोन की मदद की? (न्यायियों 15:14-16)

4 ज़रा एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए, जिससे पता चलता है कि शिमशोन ने यहोवा पर भरोसा रखा और यहोवा ने उसका साथ दिया। एक बार पलिश्‍ती सेना का एक दल शिमशोन को पकड़ने लही नाम की जगह पर आया, जो शायद यहूदा में था। यह देखकर यहूदा के आदमी डर गए और उन्होंने सोचा कि वे शिमशोन को दुश्‍मनों के हवाले कर देंगे। शिमशोन के अपने ही लोगों ने उसे दो नयी रस्सियों से कसकर बाँधा और पलिश्‍तियों के पास ले गए। (न्यायि. 15:9-13) लेकिन “यहोवा की पवित्र शक्‍ति शिमशोन पर काम करने लगी” और उसने रस्सियाँ तोड़ दीं और खुद को छुड़ा लिया। फिर उसे एक “गधे के जबड़े की ताज़ी हड्डी मिली।” उसने वह हड्डी उठायी और उससे 1,000 पलिश्‍ती आदमियों को मार गिराया!—न्यायियों 15:14-16 पढ़िए।

5. शिमशोन ने कैसे दिखाया कि उसे यहोवा पर भरोसा है?

5 शिमशोन ने एक गधे के जबड़े की हड्डी क्यों इस्तेमाल की? यह कोई ऐसा हथियार नहीं था जिससे दुश्‍मनों पर हमला किया जाता। इसमें कोई शक नहीं कि शिमशोन जानता था कि उसकी कामयाबी किसी हथियार पर नहीं, बल्कि यहोवा पर निर्भर करती है। यहोवा के इस वफादार सेवक को उसकी मरज़ी पूरी करने के लिए जो भी मिला, उसने इस्तेमाल किया। शिमशोन को यहोवा पर पूरा भरोसा था, इसलिए यहोवा ने उसे एक बड़ी जीत दिलायी।

6. शिमशोन के किस्से से हम कौन-सी एक बात सीख सकते हैं?

6 यहोवा हमें जो काम देता है, उन्हें पूरा करने के लिए वह हमें भी ताकत दे सकता है, ऐसे काम पूरे करने के लिए भी जो शायद हमें बहुत मुश्‍किल लगें। कई बार तो परमेश्‍वर शायद इस तरह हमारी मदद करे जिसके बारे में हमने सोचा भी ना हो। अगर आप मदद के लिए यहोवा पर निर्भर रहें तो यकीन रखिए, जिस परमेश्‍वर ने शिमशोन को ताकत दी, वह आपको भी ताकत देगा ताकि आप उसकी मरज़ी पूरी कर सकें।—नीति. 16:3.

7. एक उदाहरण देकर समझाइए कि यहोवा का मार्गदर्शन लेना क्यों बहुत ज़रूरी है?

7 निर्माण काम में सहयोग देनेवाले बहुत-से भाई-बहनों ने भी यहोवा पर भरोसा रखा है। पहले ऐसा हुआ करता था कि हमारे भाई ही राज-घरों और दूसरी इमारतों का नक्शा तैयार करते थे और उन्हें शुरू से बनाते थे। फिर यहोवा के संगठन में जैसे-जैसे बढ़ोतरी होने लगी, निर्माण काम में अगुवाई लेनेवाले भाइयों को लगा कि उन्हें इसमें कुछ फेरबदल करने की ज़रूरत है। उन्होंने प्रार्थना करके यहोवा से मार्गदर्शन लिया और कुछ नए तरीके आज़माए। जैसे वे बनी-बनायी इमारतें खरीदने लगे और उनकी मरम्मत करने लगे। भाई रॉबर्ट ने पिछले कुछ सालों के दौरान पूरी दुनिया में हमारी कई इमारतों के निर्माण में सहयोग दिया है। वे कहते हैं, “शुरू-शुरू में कुछ भाई-बहनों को काम करने का यह नया तरीका पसंद नहीं आया। हम काफी सालों से जिस तरीके से काम कर रहे थे, उससे यह बिलकुल अलग था। लेकिन हमारे भाई फेरबदल करने के लिए तैयार थे। और अब हम साफ देख पा रहे हैं कि यहोवा हमारे काम पर आशीष दे रहा है।” यहोवा अपनी मरज़ी पूरी करने के लिए अपने लोगों का जिस तरह मार्गदर्शन कर रहा है, यह बस उसका एक उदाहरण है। इसलिए समय-समय पर हममें से हरेक को खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मैं प्रार्थना करके यहोवा से मार्गदर्शन लेता हूँ और उसकी सेवा करने के लिए फेरबदल करने के लिए तैयार रहता हूँ?’

शिमशोन ने यहोवा के इंतज़ामों से फायदा पाया

8. एक मौके पर जब शिमशोन को बहुत प्यास लगी थी, तब उसने क्या किया?

8 आपने शायद शिमशोन के लाजवाब कामों के और भी किस्से पढ़े होंगे। जैसे एक बार वह अकेले ही एक शेर से लड़ा और उसे मार डाला। और एक और मौके पर उसने पलिश्‍तियों के शहर अश्‍कलोन में 30 आदमियों को मार गिराया। (न्यायि. 14:5, 6, 19) शिमशोन जानता था कि वह यह सब अपने दम पर नहीं, बल्कि यहोवा की मदद से ही कर पाया है। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? ज़रा ध्यान दीजिए कि 1,000 पलिश्‍तियों को मारने के बाद जब उसे बहुत तेज़ प्यास लगी थी, तब उसने क्या किया। उसने खुद इधर-उधर पानी की तलाश करने के बजाय यहोवा को मदद के लिए पुकारा।—न्यायि. 15:18.

9. जब शिमशोन ने मदद के लिए यहोवा को पुकारा, तो उसने क्या किया? (न्यायियों 15:19)

9 यहोवा ने शिमशोन की पुकार सुनी और चमत्कार करके पानी का एक सोता बना दिया। जब शिमशोन ने उसमें से पानी पीया, तो उसकी “जान में जान आयी और वह फिर ताज़ादम हो गया।” (न्यायियों 15:19 पढ़िए।) ऐसा मालूम होता है कि सालों बाद जब भविष्यवक्‍ता शमूएल ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से न्यायियों की किताब लिखी, तब भी वह सोता उस जगह था। जिन इसराएलियों ने पानी का वह सोता देखा होगा, उन्हें यह बात याद आयी होगी कि यहोवा के वफादार सेवक जब ज़रूरत की घड़ी में उस पर निर्भर रहते हैं, उसे मदद के लिए पुकारते हैं, तो वह उनकी सुनता है।

यहोवा ने जिस पानी का इंतज़ाम किया, उसे पीकर शिमशोन की जान में जान आ गयी। यहोवा ने आज जो इंतज़ाम किए हैं, हमें उनसे पूरा फायदा लेना चाहिए, ताकि हम उसके वफादार रह सकें (पैराग्राफ 10)

10. मदद के लिए यहोवा की ओर ताकने का क्या मतलब है? (तसवीर भी देखें।)

10 आज हमें भी मदद के लिए यहोवा की ओर ताकना चाहिए, फिर चाहे हममें कई हुनर या काबिलियतें हों या हमने यहोवा के संगठन में बहुत कुछ किया हो। हमें यह मानना चाहिए कि जब हम यहोवा पर निर्भर रहेंगे, तभी हम उसका दिया काम अच्छी तरह कर पाएँगे। यहोवा ने शिमशोन के लिए जिस पानी का इंतज़ाम किया था, उसे पीने से उसमें जान आ गयी थी। उसी तरह आज यहोवा ने हमारे लिए जो इंतज़ाम किए हैं, उनका पूरा फायदा लेने से हममें भी हिम्मत और ताकत आ जाएगी और हम उसकी सेवा करते रह पाएँगे।—मत्ती 11:28.

11. यहोवा पर निर्भर रहने के लिए क्या ज़रूरी है? एक उदाहरण देकर समझाइए।

11 रूस में हमारे कई भाई-बहनों पर बहुत ज़ुल्म किए जा रहे हैं। इसके बावजूद वे वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। ज़रा ऐसे ही एक भाई के उदाहरण पर ध्यान दीजिए जिनका नाम अलेक्से है। वे ऐसे मुश्‍किल हालात में किस वजह से धीरज रख पा रहे हैं? वे और उनकी पत्नी लगातार बाइबल का अध्ययन करते हैं और उपासना से जुड़े दूसरे काम करते हैं। भाई बताते हैं, “मैं नियमित तौर पर निजी अध्ययन करने और हर दिन बाइबल पढ़ने की कोशिश करता हूँ। हर सुबह मैं और मेरी पत्नी दिन के वचन पर चर्चा करते हैं और फिर साथ में यहोवा से प्रार्थना करते हैं।” इससे हम क्या सीखते हैं? हमें खुद पर भरोसा करने के बजाय यहोवा पर निर्भर रहना चाहिए। इसके लिए ज़रूरी है कि हम लगातार निजी अध्ययन करके और उपासना से जुड़े दूसरे काम करके अपना विश्‍वास बढ़ाएँ। तब यहोवा हमारी मेहनत पर आशीष देगा। और जैसे उसने शिमशोन को ताकत दी थी, वह हमें भी हिम्मत और ताकत दे सकता है।

शिमशोन ने हार नहीं मानी

12. शिमशोन ने कौन-सा गलत कदम उठाया और यह उसके दूसरे फैसलों से कैसे अलग था?

12 शिमशोन हमारी तरह अपरिपूर्ण था, इसलिए कुछ मौकों पर उससे भी गलतियाँ हुईं। जैसे एक बार उसने एक ऐसा कदम उठाया जिसके उसे बहुत बुरे अंजाम भुगतने पड़े। कुछ समय तक न्यायी के तौर पर सेवा करने के बाद शिमशोन “सोरेक घाटी में रहनेवाली दलीला से प्यार” कर बैठा। (न्यायि. 16:4) इससे पहले एक बार शिमशोन एक पलिश्‍ती लड़की से शादी करना चाहता था। पर उस फैसले के पीछे यहोवा का हाथ था, “क्योंकि वह पलिश्‍तियों के खिलाफ कदम उठाने का रास्ता तैयार कर रहा था।” फिर एक बार शिमशोन पलिश्‍त के गाज़ा शहर में एक वेश्‍या के घर में रहा। उस वक्‍त यहोवा ने शिमशोन को इतनी ताकत दी कि वह शहर के फाटक उखाड़ ले गया और इस तरह शहर को कमज़ोर कर दिया। (न्यायि. 14:1-4; 16:1-3) लेकिन शायद दलीला का मामला अलग था, क्योंकि वह शायद एक इसराएली थी और शिमशोन अपनी मरज़ी से यह काम कर रहा था।

13. दलीला ने किस तरह शिमशोन को मुसीबत में डाल दिया?

13 दलीला ने शिमशोन को धोखा देने के लिए पलिश्‍तियों से एक बड़ी रकम ली। क्या शिमशोन दलीला के प्यार में इतना अंधा हो गया था कि वह उसके इरादे समझ नहीं पाया? चाहे जो भी बात रही हो, एक चीज़ तो है, दलीला शिमशोन के पीछे पड़ गयी और उससे ज़िद करती रही कि वह उसे अपनी ताकत का राज़ बताए। आखिरकार शिमशोन ने उसे सबकुछ बता दिया। दुख की बात है, शिमशोन अपनी गलती की वजह से कुछ वक्‍त के लिए यहोवा की मंज़ूरी खो बैठा और अपनी ताकत भी।—न्यायि. 16:16-20.

14. दलीला पर भरोसा करने की वजह से शिमशोन को कौन-से अंजाम भुगतने पड़े?

14 शिमशोन ने यहोवा पर भरोसा करने के बजाय दलीला पर भरोसा किया और इसकी वजह से उसे बहुत दर्दनाक अंजाम भुगतने पड़े। पलिश्‍तियों ने शिमशोन को पकड़ लिया और उसकी आँखें निकाल लीं। अब वह अंधा हो गया था और उन्होंने उसे गाज़ा के एक कैदखाने में डाल दिया। वे उससे अनाज पिसवाने का काम करवाने लगे। यह वही शहर था जिसके फाटक उखाड़कर शिमशोन ने वहाँ के लोगों को नीचा दिखाया था। अब उसी जगह पर पलिश्‍तियों ने एक जश्‍न रखा और शिमशोन को नीचा दिखाया। उन्होंने अपने देवता दागोन के लिए बहुत-से बलिदान चढ़ाए, जैसे उसने ही शिमशोन को उनके हाथों में कर दिया हो। फिर वे शिमशोन को कैदखाने से निकालकर जश्‍न में ले आए ताकि वह उन्हें “तमाशा दिखाए” और इस तरह उन्होंने उसका मज़ाक बनाया।—न्यायि. 16:21-25.

यहोवा ने पलिश्‍तियों को सज़ा देने के लिए शिमशोन को ताकत से भर दिया (पैराग्राफ 15)

15. शिमशोन ने एक बार फिर कैसे दिखाया कि उसे यहोवा पर भरोसा है? (न्यायियों 16:28-30) (बाहर दी तसवीर देखें।)

15 शिमशोन ने एक बड़ी गलती की थी, पर उसने हार नहीं मानी। उसे याद था कि यहोवा ने उसे पलिश्‍तियों से लड़ने का काम सौंपा है और वह उसे पूरा करने का मौका ढूँढ़ता रहा। (न्यायियों 16:28-30 पढ़िए।) इसलिए जश्‍न के वक्‍त शिमशोन ने गिड़गिड़ाकर यहोवा से बिनती की कि वह उसे ताकत से भर दे कि वह ‘पलिश्‍तियों से बदला ले सके।’ सच्चे परमेश्‍वर ने शिमशोन की पुकार सुनी और फिर से उसमें गज़ब की ताकत भर दी। इसका नतीजा यह हुआ कि शिमशोन ने अपने जीते-जी जितने पलिश्‍तियों को मारा था, उससे कहीं ज़्यादा पलिश्‍तियों को उसने इस मौके पर मारा।

16. शिमशोन ने गलती करने के बाद जो किया, उससे हम क्या सीख सकते हैं?

16 हालाँकि शिमशोन को अपनी गलती के दर्दनाक अंजाम भुगतने पड़े, फिर भी वह यहोवा की मरज़ी पूरी करने की कोशिश करता रहा। उसी तरह अगर हमसे कोई गलती हो जाए और हमें सुधारा जाए या हमसे कोई ज़िम्मेदारी ले ली जाए, तो हमें हार नहीं माननी चाहिए। याद रखिए, यहोवा हमें माफ करने को तैयार रहता है, वह हमें छोड़ नहीं देता। तो हमें भी उसकी सेवा करना नहीं छोड़ना चाहिए। (भज. 103:8-10) हमसे गलती होने के बाद भी यहोवा हमें उसकी मरज़ी पूरी करने की हिम्मत दे सकता है जैसे उसने शिमशोन को दी थी।

गलती करने के बाद शिमशोन को बहुत बुरा लगा होगा, पर उसने हार नहीं मानी और हमें भी हार नहीं माननी चाहिए (पैराग्राफ 17-18)

17-18. माइकल के अनुभव में आपको कौन-सी बात अच्छी लगी? (तसवीर भी देखें।)

17 ज़रा माइकल नाम के एक जवान भाई के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। वह यहोवा की सेवा से जुड़े कामों में बहुत व्यस्त रहता था। वह एक सहायक सेवक था और पायनियर सेवा कर रहा था। पर दुख की बात है कि उससे एक गलती हो गयी जिसकी वजह से मंडली में उसके पास ज़िम्मेदारियाँ नहीं रहीं। वह कहता है, “अब तक गाड़ी बहुत अच्छे-से चल रही थी, मैं जोश से यहोवा की सेवा कर रहा था। लेकिन फिर अचानक सबकुछ खत्म हो गया, मानो मेरी गाड़ी किसी दीवार से जा टकरायी। मैंने कभी यह तो नहीं सोचा कि यहोवा मुझे छोड़ देगा, लेकिन कई बार मेरे मन में ऐसे खयाल ज़रूर आते थे कि पता नहीं यहोवा के साथ मेरा रिश्‍ता पहले जैसा हो पाएगा या नहीं या क्या मैं मंडली में पहले की तरह यहोवा की सेवा कर पाऊँगा।”

18 खुशी की बात है कि माइकल ने हार नहीं मानी। वह बताता है, “मैंने यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता सुधारने के लिए मेहनत की। मैं बार-बार यहोवा से प्रार्थना करता था, उसे अपने दिल की हर बात बताता था, अध्ययन करता था और मनन करता था।” कुछ समय बाद माइकल का मंडली में फिर से एक अच्छा नाम हो गया। अब वह एक प्राचीन और पायनियर के तौर पर सेवा कर रहा है। वह कहता है, “भाई-बहनों ने जिस तरह मेरा साथ दिया और मेरा हौसला बढ़ाया, खासकर प्राचीनों ने, उससे मुझे एहसास हुआ कि यहोवा अब भी मुझसे प्यार करता है और मैं एक बार फिर साफ ज़मीर से मंडली में सेवा कर सकता हूँ। इस अनुभव से मैंने सीखा कि जो लोग सच्चा पश्‍चाताप करते हैं, उन्हें यहोवा माफ कर देता है।” इससे हम क्या सीखते हैं? गलती हो जाने पर भी अगर हम सुधार करने की पूरी कोशिश करें और यहोवा पर निर्भर रहें, तो हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमें अपनी मरज़ी पूरी करने का मौका देगा और हमें आशीषें देगा।—भज. 86:5; नीति. 28:13.

19. शिमशोन के उदाहरण पर ध्यान देने से आपको कैसे हिम्मत मिली है?

19 इस लेख में हमने शिमशोन की ज़िंदगी की कुछ खास घटनाओं पर चर्चा की। वह परिपूर्ण नहीं था, दलीला के सिलसिले में उससे भी गलती हुई। पर उसने हार नहीं मानी और वह यहोवा की मरज़ी पूरी करने की कोशिश करता रहा। यहोवा ने भी उसे छोड़ नहीं दिया। उसने शिमशोन से एक बार फिर बड़े लाजवाब तरीके से अपनी मरज़ी पूरी करवायी। यहोवा की नज़र में वह एक वफादार सेवक ही था। इसलिए जब उसने शास्त्र में उन लोगों के नाम लिखवाए जिन्हें उस पर अटूट विश्‍वास था, तो उनके साथ उसने शिमशोन का नाम भी दर्ज़ करवाया। (इब्रानियों 11) यह जानकर हमारा कितना हौसला बढ़ता है कि हमारा परमेश्‍वर एक पिता की तरह हमसे प्यार करता है और हमें ताकत से भर देता है, खासकर जब हम कमज़ोर होते हैं। तो आइए शिमशोन की तरह हम भी यहोवा से गिड़गिड़ाकर बिनती करें, ‘मेरी तरफ ध्यान दे। मुझे ताकत से भर दे।’—न्यायि. 16:28.

गीत 3 हमारी ताकत, आशा और भरोसा

a शिमशोन बाइबल का एक जाना-माना किरदार है। उसके बारे में कई नाटक लिखे गए हैं, गीत रचे गए हैं और फिल्में भी बनायी गयी हैं। लेकिन वह सिर्फ कहानियों का कोई किरदार नहीं है, वह सच में जीया था। उसे परमेश्‍वर पर जो अटूट विश्‍वास था, उससे आज हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।