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अध्ययन लेख 39

गीत 125 खुश हैं रहमदिल!

दूसरों को देने से मिलती हैं ढेरों खुशियाँ

दूसरों को देने से मिलती हैं ढेरों खुशियाँ

“लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।”प्रेषि. 20:35.

क्या सीखेंगे?

हम जानेंगे कि हम किन अलग-अलग तरीकों से दूसरों की मदद कर सकते हैं और देने से जो खुशी मिलती है उसे बढ़ा सकते हैं।

1-2. यहोवा ने हमें इस तरह क्यों बनाया है कि जब हम दूसरों को कुछ देते हैं, तो हमें खुशी मिलती है?

 यहोवा ने जब हम इंसानों को बनाया, तो उसने हमारे अंदर एक अनोखी काबिलीयत डाली। वह यह कि जब हम दूसरों को कुछ देते हैं, उनके लिए कुछ करते हैं, तो हमें बहुत खुशी मिलती है। पर इसका यह मतलब नहीं कि हमें लेने से कोई खुशी नहीं मिलती। जब कोई हमें तोहफा देता है, तो हमें बहुत अच्छा लगता है, हमें खुशी होती है। लेकिन जब हम दूसरों को कुछ देते हैं, तब हमें और भी ज़्यादा खुशी मिलती है। (प्रेषि. 20:35) यहोवा ने हमें ऐसा क्यों बनाया है?

2 वह इसलिए कि हम अपनी खुशी बढ़ा सकें। हम जितना ज़्यादा दूसरों की मदद करते हैं, हमारी खुशी उतनी ही बढ़ती जाती है। इसलिए हमें अलग-अलग तरीकों से दूसरों की मदद करनी चाहिए, तब हम खुश रहेंगे। सच में, यहोवा ने हमें कितने लाजवाब तरीके से रचा है!—भज. 139:14.

3. यहोवा को “आनंदित परमेश्‍वर” क्यों कहा गया है?

3 देने से खुशी मिलती है, इसलिए यहोवा के बारे में बाइबल में लिखा है कि वह एक “आनंदित परमेश्‍वर” है। (1 तीमु. 1:11) दूसरों को देने के मामले में यहोवा परमेश्‍वर सबसे बेहतरीन मिसाल है, उसके जैसा कोई नहीं है। असल में, देने की शुरूआत उसी ने की है। प्रेषित पौलुस ने परमेश्‍वर के बारे में लिखा, “उसी से हमारी ज़िंदगी है और हम चलते-फिरते हैं और वजूद में हैं।” (प्रेषि. 17:28) बाइबल में यह भी लिखा है, “हर अच्छा तोहफा और हर उत्तम देन ऊपर से” यानी यहोवा से मिलती है।—याकू. 1:17.

4. हम कैसे अपनी खुशी बढ़ा सकते हैं?

4 हम सब वह खुशी पाना चाहते हैं जो देने से मिलती है। अगर हम यहोवा की तरह दिल खोलकर दूसरों की मदद करें, तो हम अपनी खुशी बढ़ा पाएँगे। (इफि. 5:1) इस लेख में हम जानेंगे कि यहोवा कैसे दूसरों की मदद करता है और हम कैसे उसकी तरह बन सकते हैं। हम यह भी जानेंगे कि जब हम दूसरों के लिए कुछ करते हैं, लेकिन वे उसकी कोई कदर नहीं करते, तो ऐसे में हम क्या कर सकते हैं। इन बातों पर चर्चा करने से हमें बढ़ावा मिलेगा कि हम दूसरों की मदद करते रहें और देने से जो खुशी मिलती है, उसे बढ़ाते रहें।

यहोवा की तरह दिल खोलकर दीजिए

5. यहोवा ने हमें ज़रूरत की कौन-सी चीज़ें दी हैं?

5 यहोवा दिल खोलकर हमारी मदद करता है। वह ऐसा कई तरीकों से करता है, जैसे वह ज़रूरत की चीज़ें देता है। हो सकता है, हमारे पास सारी सुख-सुविधाएँ ना हों, लेकिन यहोवा इस बात का ध्यान रखता है कि हमारे पास ज़रूरत की चीज़ें हों, जैसे रोटी, कपड़ा और मकान। (भज. 4:8; मत्ती 6:31-33; 1 तीमु. 6:6-8) क्या यहोवा हमारी ज़रूरतें इसलिए पूरी करता है, क्योंकि ऐसा करना उसका फर्ज़ है? बिलकुल नहीं। तो फिर वह हमारी मदद क्यों करता है?

6. मत्ती 6:25, 26 से हम क्या सीखते हैं?

6 यहोवा हमारी ज़रूरतें इसलिए पूरी करता है, क्योंकि वह हमसे प्यार करता है। यीशु ने सृष्टि की चीज़ों का उदाहरण देकर हमें यह बात समझायी। ज़रा उसके शब्दों पर ध्यान दीजिए जो मत्ती 6:25, 26 में लिखे हैं। (पढ़िए।) यीशु ने पक्षियों के बारे में कहा, “वे न तो बीज बोते, न कटाई करते, न ही गोदामों में भरकर रखते हैं, फिर भी स्वर्ग में रहनेवाला तुम्हारा पिता उन्हें खिलाता है।” इसके बाद उसने पूछा, “क्या तुम्हारा मोल उनसे बढ़कर नहीं?” इससे हम क्या सीखते हैं? यहोवा के लिए उसके सेवक पक्षियों से कहीं ज़्यादा अनमोल हैं। अगर यहोवा उनका इतना खयाल रखता है, तो हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि वह हमारा भी खयाल रखेगा। जी हाँ, यहोवा एक पिता की तरह हमसे बहुत प्यार करता है और इसीलिए हमारी ज़रूरतें पूरी करता है।—भज. 145:16; मत्ती 6:32.

7. हम कैसे यहोवा की तरह दिल खोलकर दूसरों की मदद कर सकते हैं? (तसवीर भी देखें।)

7 यहोवा की तरह हम भी दूसरों से प्यार करते हैं, इसलिए हम उनकी मदद करते हैं। क्या आप किसी ऐसे भाई या बहन को जानते हैं जिसे खाने-पीने की चीज़ों या कपड़ों की ज़रूरत है? यहोवा आपके ज़रिए उनकी ज़रूरतें पूरी कर सकता है। जब कोई प्राकृतिक विपत्ति आती है, तब यहोवा के लोग और भी बढ़-चढ़कर दूसरों की मदद करते हैं। जैसे जब कोविड-19 महामारी चल रही थी, तो भाई-बहनों ने ज़रूरतमंद लोगों को खाना, कपड़े और दूसरी चीज़ें दीं। कई भाई-बहनों ने दुनिया-भर में होनेवाले काम के लिए दिल खोलकर दान दिया। इससे अलग-अलग जगहों पर राहत काम किया गया। दान देनेवाले उन भाई-बहनों ने इब्रानियों की किताब में लिखी बात मानी, “भलाई करना और जो तुम्हारे पास है उसे दूसरों में बाँटना मत भूलो क्योंकि परमेश्‍वर ऐसे बलिदानों से बहुत खुश होता है।”—इब्रा. 13:16.

हम सब यहोवा की तरह दिल खोलकर दूसरों की मदद कर सकते हैं (पैराग्राफ 7)


8. यहोवा हमें जो ताकत देता है, उससे हम क्या कर पाते हैं? (फिलिप्पियों 2:13)

8 यहोवा ताकत देता है। यहोवा के पास असीम ताकत है। और वह खुशी-खुशी अपने वफादार सेवकों को भी ताकत देता है। (फिलिप्पियों 2:13 पढ़िए।) क्या आपने कभी लुभाए जाने पर या किसी मुश्‍किल को सहने के लिए यहोवा से हिम्मत माँगी है? हो सकता है, आपने यहोवा से कहा हो, ‘यहोवा मुझे आज का दिन काटने के लिए ताकत दे।’ फिर जब यहोवा ने आपकी प्रार्थना का जवाब दिया, तो आपने शायद प्रेषित पौलुस की तरह महसूस किया होगा। पौलुस ने कहा था, “जो मुझे ताकत देता है, उसी से मुझे सब बातों के लिए शक्‍ति मिलती है।”—फिलि. 4:13.

9. यहोवा की तरह, हम कैसे दूसरों की मदद करने के लिए अपनी ताकत लगा सकते हैं? (तसवीर भी देखें।)

9 हमारे पास उतनी ताकत नहीं है जितनी यहोवा के पास है। लेकिन हम यहोवा की तरह दरियादिल ज़रूर बन सकते हैं। कैसे? हम दूसरों में अपनी ताकत तो नहीं डाल सकते, लेकिन उनकी मदद करने के लिए हम अपनी ताकत ज़रूर लगा सकते हैं। उदाहरण के लिए, हम बुज़ुर्ग या बीमार भाई-बहनों के लिए खरीदारी कर सकते हैं या उनके घर के काम-काज कर सकते हैं। अगर हो सके तो हम राज-घर की साफ-सफाई और रख-रखाव में हाथ बँटा सकते हैं। जब हम इन कामों में अपनी ताकत लगाते हैं, तो हम अपने भाई-बहनों की मदद कर रहे होते हैं।

दूसरों की मदद करने के लिए हम अपनी ताकत लगा सकते हैं (पैराग्राफ 9)


10. आप कैसे अपनी बातों से दूसरों की हिम्मत बँधा सकते हैं?

10 यह भी याद रखिए कि हमारे शब्दों में बहुत ताकत होती है। इसलिए सोचिए, क्या आप किसी ऐसे भाई या बहन को जानते हैं जिसे हौसले की ज़रूरत है? या किसी ऐसे भाई या बहन को जिसे दिलासे की ज़रूरत है? अगर हाँ, तो क्यों ना आगे बढ़कर उनकी हिम्मत बँधाएँ! आप उनसे मिलने जा सकते हैं, फोन कर सकते हैं या उन्हें कार्ड, ईमेल या मैसेज भेज सकते हैं। यह चिंता मत कीजिए कि आप उनसे क्या कहेंगे। आपको कोई बड़ी बात कहने की ज़रूरत नहीं है, बस दिल से उनसे बात कीजिए। हौसला बढ़ाने के लिए इतना ही काफी होता है। और क्या पता आपकी बातों से वह भाई या बहन एक और दिन वफादार रह पाए और अपने हालात के बारे में सही नज़र रख पाए।—नीति. 12:25; इफि. 4:29.

11. यहोवा और किस मायने में दरियादिल है?

11 यहोवा बुद्धि देता है। याकूब ने लिखा, “अगर तुममें से किसी को बुद्धि की कमी हो तो वह परमेश्‍वर से माँगता रहे और वह उसे दी जाएगी, क्योंकि परमेश्‍वर सबको उदारता से और बिना गलतियाँ ढूँढ़े देता है।” (याकू. 1:5, फु.) इस आयत से पता चलता है कि यहोवा बुद्धि को अपने तक नहीं रखता, बल्कि दिल खोलकर दूसरों को देता है। और यह बात भी गौर करने लायक है कि वह “बिना डाँटे-फटकारे” या “बिना गलतियाँ ढूँढ़े” ऐसा करता है। वह कभी हमें यह एहसास नहीं दिलाता कि हम किसी मायने में छोटे हैं या ज़्यादा नहीं जानते। इसके बजाय, वह हमसे गुज़ारिश करता है कि हम उससे बुद्धि माँगें, क्योंकि वह बुद्धि देना चाहता है।—नीति. 2:1-6.

12. हम दूसरों के साथ अपना ज्ञान और अपनी समझ कैसे बाँट सकते हैं?

12 क्या हम यहोवा की तरह बन सकते हैं और दूसरों के साथ अपना ज्ञान और अपनी समझ बाँट सकते हैं? बिलकुल। (भज. 32:8) हमारे पास ऐसा करने के कई मौके होते हैं। उदाहरण के लिए, हम नए लोगों को सिखा सकते हैं कि वे अच्छी तरह प्रचार कैसे कर सकते हैं। प्राचीन भाइयों के साथ सब्र रख सकते हैं। वे बपतिस्मा पाए भाइयों और सहायक सेवकों को सिखा सकते हैं कि मंडली में ज़िम्मेदारियाँ कैसे निभाएँ। और जिन भाई-बहनों को संगठन की इमारतें बनाने का और उनका रख-रखाव करने का अनुभव है, वे कम तजुरबा रखनेवाले भाई-बहनों को यह काम सिखा सकते हैं।

13. दूसरों को सिखाने के मामले में हम कैसे यहोवा की तरह बन सकते हैं?

13 दूसरों को सिखाते समय या उन्हें ट्रेनिंग देते समय यहोवा की तरह बनने की कोशिश कीजिए। यहोवा अपनी बुद्धि अपने तक नहीं रखता, बल्कि दिल खोलकर दूसरों के साथ बाँटता है। उसी तरह हमें भी अपना ज्ञान और अपना अनुभव दूसरों के साथ बाँटना चाहिए। हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए, ‘अगर मैंने इसे सबकुछ सिखा दिया, तो कहीं यह मेरी जगह ना ले ले।’ ना ही यह सोचना चाहिए, ‘मुझे तो किसी ने नहीं सिखाया था, इसे भी अपने आप सीखने दो।’ इसके बजाय, हम जो कुछ जानते हैं, हमें खुशी-खुशी दूसरों को बताना चाहिए और उन्हें सिखाने में जी-जान लगा देना चाहिए। (1 थिस्स. 2:8) हमें उन्हें ऐसे सिखाना चाहिए कि वे भी ‘बदले में दूसरों को सिखाने के लिए योग्य बन सकें।’ (2 तीमु. 2:1, 2) इस तरह जब हम दूसरों के साथ अपना ज्ञान बाँटेंगे, तो इससे सभी को फायदा होगा और हम सबकी खुशी बढ़ेगी।

जब कोई आपका धन्यवाद ना करे

14. जब हम दूसरों के लिए कुछ करते हैं, तो बदले में ज़्यादातर लोग क्या करते हैं?

14 जब हम दिल खोलकर लोगों की मदद करते हैं, खासकर अपने भाई-बहनों की, तो अकसर वे हमारा धन्यवाद करते हैं। जैसे, शायद वे हमें थैंक्यू कार्ड दें या दूसरे तरीकों से अपना एहसान ज़ाहिर करें। (कुलु. 3:15) इस तरह जब दूसरे हमारी कदर करते हैं, तो हमारी खुशी और बढ़ जाती है।

15. अगर कोई हमारा धन्यवाद ना करे, तो हमें क्या बात याद रखनी चाहिए?

15 लेकिन यह भी सच है कि कुछ लोग शायद हमारा धन्यवाद ना करें, हमारा एहसान ना मानें। जैसे हो सकता है, हम एक भाई या बहन की मदद करने के लिए काफी समय दें, मेहनत करें या अपने साधन लगाएँ, लेकिन वह इसकी ज़रा भी कदर ना करे। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? हम कैसे अपनी खुशी बनाए रख सकते हैं और निराश होने से बच सकते हैं? इस लेख की मुख्य आयत, प्रेषितों 20:35 को याद रखिए जिससे पता चलता है कि हमारी खुशी इस बात पर निर्भर नहीं करती कि दूसरे हमारा धन्यवाद करते हैं या नहीं। चाहे कोई हमारा एहसान माने या ना माने, हम अपनी खुशी बनाए रख सकते हैं। कैसे? आइए इसके कुछ तरीकों पर ध्यान देते हैं।

16. जब हम दूसरों के लिए कुछ करते हैं, तो हमें क्या बात याद रखनी चाहिए?

16 याद रखिए, दूसरों की मदद करके आप यहोवा की तरह बन रहे होते हैं। यहोवा लोगों को अच्छी चीज़ें देता है, फिर चाहे वे उसका एहसान मानें या ना मानें। (मत्ती 5:43-48) यहोवा वादा करता है कि अगर हम उसकी तरह देते रहें और “बदले में कुछ भी पाने की उम्मीद” ना रखें, तो हमें “बड़ा इनाम मिलेगा।” (लूका 6:35) “कुछ भी” पाने की उम्मीद ना रखने का यह मतलब भी है कि हम तारीफ या धन्यवाद पाने की उम्मीद ना रखें। इसलिए चाहे कोई हमारा धन्यवाद करे या ना करे, हम याद रखेंगे कि यहोवा हमेशा हमारे भले कामों के लिए हमें इनाम देगा, क्योंकि वह “खुशी-खुशी देनेवाले से प्यार करता है।”—नीति. 19:17; 2 कुरिं. 9:7.

17. यहोवा की तरह बनने के लिए हम और क्या कर सकते हैं? (लूका 14:12-14)

17 देने के मामले में हम एक और तरीके से यहोवा की तरह बन सकते हैं। इसके लिए हम यीशु की सलाह मान सकते हैं जो लूका 14:12-14 में लिखी है। (पढ़िए।) इन आयतों में यीशु यह नहीं कह रहा था कि उन लोगों को मेहमान-नवाज़ी दिखाना या उनकी मदद करना गलत है, जो बदले में हमारे लिए कुछ कर सकते हैं। लेकिन अगर कहीं-न-कहीं हमें यह लगता है कि हम दूसरों से कुछ पाने की उम्मीद में उनकी मदद कर रहे हैं, तो हमें अपनी सोच बदलने की ज़रूरत है। हमें उन लोगों को भी मेहमान-नवाज़ी दिखानी चाहिए और उनके लिए भी कुछ करना चाहिए जिनके पास बदले में देने के लिए कुछ नहीं है। इस तरह हम यहोवा के जैसे बन रहे होंगे और तब भी खुश रहेंगे, जब कोई हमारा धन्यवाद ना करे।

18. हमें अपने भाई-बहनों के बारे में क्या नहीं सोचना चाहिए और क्यों?

18 शक मत कीजिए। (1 कुरिं. 13:7) जब आप दूसरों की मदद करते हैं और वे आपका धन्यवाद नहीं करते, तो उन पर शक मत कीजिए। इसके बजाय यह सोचिए: ‘क्या उन्हें सच में मेरी कोई कदर नहीं है या वे बस शुक्रिया कहना भूल गए हैं?’ हो सकता है कि लोग उस तरह कदर ना दिखाएँ जैसा हमने सोचा था। कभी-कभी कुछ लोग अपने दिल में बहुत एहसान मानते हैं, लेकिन उसे शब्दों में बयाँ नहीं कर पाते। और कुछ लोग यह सोचकर शर्मिंदा महसूस करते हैं कि अब उन्हें मदद की ज़रूरत पड़ रही है, जबकि पहले वे दूसरों की मदद करते थे। बात चाहे जो भी हो, अगर हम अपने भाई-बहनों से प्यार करते हैं, तो हम उनके बारे में गलत नहीं सोचेंगे, बल्कि खुशी-खुशी उनकी मदद करते रहेंगे।—इफि. 4:2.

19-20. जब हम दूसरों की मदद करते हैं, तो हमें क्यों सब्र रखना चाहिए? (तसवीर भी देखें।)

19 सब्र रखिए। हमें दिल खोलकर दूसरों की मदद करनी चाहिए। इस बारे में राजा सुलैमान ने लिखा, “अपनी रोटी नदी में डाल दे और बहुत दिनों बाद वह तुझे दोबारा मिलेगी।” (सभो. 11:1) इससे पता चलता है कि जब हम दूसरों की मदद करते हैं, तो हो सकता है कि वे “बहुत दिनों बाद” जाकर हमारा धन्यवाद करें। इस बात को समझने के लिए आइए एक अनुभव पर ध्यान देते हैं।

20 कई साल पहले एक सर्किट निगरान की पत्नी ने एक बहन को चिट्ठी लिखी जिसका हाल ही में बपतिस्मा हुआ था। उन्होंने उसे लिखा कि वह यहोवा की वफादार बनी रहे। इसके करीब आठ साल बाद, उस बहन ने सर्किट निगरान की पत्नी को एक खत लिखा। उसने कहा, “आपको अंदाज़ा भी नहीं है कि पिछले आठ सालों में आपने मेरी कितनी मदद की है। आपने मुझे जो चिट्ठी लिखी थी, उसे पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा था। आपने उसमें जो आयत लिखी थी, वह मेरे दिल को छू गयी और मैं उसे कभी नहीं भूल पायी।” a फिर बहन ने खत में बताया कि उसने किन-किन मुश्‍किलों का सामना किया। इसके बाद उसने लिखा, “कई बार ऐसा लगता था कि सबकुछ छोड़कर चली जाऊँ, यहोवा की सेवा करना भी छोड़ दूँ। लेकिन आपने जो आयत लिखी थी, उसे मैंने हमेशा याद रखा। उससे मुझे हिम्मत मिली और मैंने हार नहीं मानी।” बहन ने यह भी लिखा, “पिछले आठ सालों में मुझे किसी बात से इतनी हिम्मत नहीं मिली जितनी कि आपकी चिट्ठी से और उस आयत से।” ज़रा सोचिए जब सर्किट निगरान की पत्नी को “बहुत दिनों बाद” अपनी चिट्ठी का जवाब मिला, तो उन्हें कैसा लगा होगा। सच में, उन्हें बहुत खुशी हुई होगी! हो सकता है, हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही हो। हम शायद किसी के लिए कुछ करें, लेकिन बहुत समय बाद जाकर वह उसके लिए हमारा धन्यवाद करे।

हम शायद किसी के लिए कुछ करें, लेकिन बहुत समय बाद जाकर वह उसके लिए हमारा धन्यवाद करे (पैराग्राफ 20) b


21. आप क्यों यहोवा की तरह बनना चाहते हैं और दिल खोलकर दूसरों को देना चाहते हैं?

21 जैसा हमने शुरू में देखा था, यहोवा ने हमें एक अनोखी काबिलीयत के साथ बनाया है। जब दूसरे हमें कुछ देते हैं, तो उससे हमें खुशी मिलती है। लेकिन जब हम दूसरों को देते हैं, तो उससे हमें ज़्यादा खुशी मिलती है। अपने भाई-बहनों की मदद करके हमें बहुत अच्छा लगता है। और जब वे हमारा धन्यवाद करते हैं, हमारा एहसान मानते हैं, तब भी हमें खुशी होती है। लेकिन अगर कोई हमारा धन्यवाद ना भी करे, तब भी हम इस बात से खुश हो सकते हैं कि हमने वही किया है जो यहोवा की नज़र में सही है। साथ ही, हम याद रखते हैं कि हमने चाहे दूसरों को जो भी दिया हो, “यहोवा के पास [हमें] उससे भी ज़्यादा देने की ताकत है।” (2 इति. 25:9) यहोवा हमें कहीं बढ़कर दे सकता है! और इससे बड़ी खुशी की बात क्या हो सकती है कि यहोवा हमें इनाम दे। तो आइए हम अपने पिता यहोवा की तरह बनें और दिल खोलकर दूसरों को देते रहें।

गीत 17 “मैं चाहता हूँ”

a सर्किट निगरान की पत्नी ने अपनी चिट्ठी में जो आयत लिखी थी, वह थी, 2 यूहन्‍ना 8. वहाँ लिखा है, “तुम खुद पर नज़र रखो ताकि वे चीज़ें खो न दो जो हमने बहुत मेहनत करके पैदा की हैं। इसके बजाय, तुम पूरा इनाम पाओ।”

b तसवीर के बारे में: सर्किट निगरान की पत्नी एक बहन का हौसला बढ़ाने के लिए उसे चिट्ठी लिख रही हैं। फिर कई सालों बाद जाकर सर्किट निगरान की पत्नी को एक खत मिला है, जिसमें वह बहन उनका धन्यवाद कर रही है। तसवीरों में उन बहनों को नहीं दिखाया गया है जिनका अनुभव पैराग्राफ में दिया है।