पेट का ऐसा भाग, जो कहलाए “दूसरा दिमाग”!
आपके शरीर में कितने दिमाग हैं? शायद आप कहें “एक।” आप सही कह रहे हैं। लेकिन दिमाग के अलावा हमारे शरीर में और भी तंत्रिका तंत्र (शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक संदेश पहुँचानेवाली नसों और तंत्रिका कोशिकाओं का समूह) हैं। इनमें से एक है, ‘आँतों का तंत्रिका तंत्र।’ अँग्रेज़ी में इसे ‘एन्टेरिक नर्वस सिस्टम’ कहा जाता है। यह इतना जटिल है कि कुछ वैज्ञानिक इसे “दूसरा दिमाग” कहते हैं। यह सिर में नहीं होता, बल्कि इसका ज़्यादातर हिस्सा पेट में होता है।
हम जो खाना खाते हैं, उसे ऊर्जा में बदलने के लिए शरीर के अंगों में बढ़िया तालमेल होना चाहिए, क्योंकि उन्हें साथ मिलकर कई काम करने होते हैं। इस वजह से हमारा दिमाग खाना पचाने का नियंत्रण खुद न करके यह ज़िम्मेदारी ‘आँतों के तंत्रिका तंत्र’ को सौंप देता है।
‘आँतों का तंत्रिका तंत्र’ दिमाग के जितना पेचीदा तो नहीं होता, फिर भी यह बहुत जटिल होता है। अनुमान लगाया गया है कि इंसानों के ‘आँतों के तंत्रिका तंत्र’ में करीब 20 से 60 करोड़ तंत्रिका कोशिकाएँ होती हैं। तंत्रिका कोशिकाओं का यह पेचीदा जाल हमारे पाचन तंत्र में होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जो काम ‘आँतों के तंत्रिका तंत्र’ में होते हैं, वे काम अगर हमारे दिमाग को करने होते, तो इसके लिए बहुत-सी नसों की ज़रूरत पड़ती। अँग्रेज़ी में लिखी दूसरा दिमाग नाम की किताब कहती है कि इस वजह से पाचन तंत्र को अपना काम खुद करने देना ही बेहतर है।
“रासायनिक कारखाना”
खाना पचाने के लिए ज़रूरी है कि सही मात्रा में रसायनों का मिश्रण एकदम सही समय पर तैयार किया जाए और सही जगह पर पहुँचाया जाए। प्रोफेसर गैरी मौ ने ठीक ही कहा है कि पाचन तंत्र “एक रासायनिक कारखाना” है। इस कारखाने में रसायनों का जिस तरह काम होता है, उसे जानकर हमारा दिमाग चकरा जाता है। उदाहरण के लिए, हमारी आँतों की दीवारों में खास किस्म की कोशिकाएँ होती हैं, जो यह भाँप लेती हैं कि हमने जो खाना खाया है, उसमें कौन-से रसायन हैं। यह जानकारी पाकर ‘आँतों का तंत्रिका तंत्र’ सही किस्म के पाचक रस (एन्ज़ाइम) चुनता है, जो खाने को ऐसे तत्वों में बदल देते हैं, जिन्हें शरीर सोख लेता है। इसके अलावा, ‘आँतों का तंत्रिका तंत्र’ यह भी ध्यान रखता है कि खाने के कणों में कौन-से रसायन या अम्ल कितनी मात्रा में हैं। उसी के हिसाब से वह तय करता है कि कौन-सा पाचक रस कितनी मात्रा में उपलब्ध कराना है।
ज़रा हमारी पाचन नली (भोजन नली से लेकर गुदा तक की नली) के बारे में सोचिए। यह उस कारखाने की तरह है, जिसमें सिलसिलेवार तरीके से काम किए जाते हैं। इन कामों का नियंत्रण ‘आँतों का तंत्रिका तंत्र’ करता है। हमारा यह “दूसरा दिमाग” पाचन नली की दीवारों में मांस-पेशियों को सिकुड़ने का आदेश देता है, जिससे खाना आगे बढ़ता रहता है। ‘आँतों का तंत्रिका तंत्र’ ज़रूरत के हिसाब से मांस-पेशियों को आदेश देता है कि उन्हें कितनी ज़ोर से और कितनी जल्दी या देर से सिकुड़ना है, ताकि सारे काम सिलसिलेवार ढंग से होते रहें।
‘आँतों का तंत्रिका तंत्र’ यह भी ध्यान रखता है कि शरीर को कोई नुकसान न पहुँचे। जो खाना हम खाते हैं, उसमें अकसर नुकसान पहुँचानेवाले बैक्टीरिया होते हैं। तभी तो शरीर में बीमारियों से लड़नेवाली 70-80 प्रतिशत कोशिकाएँ पेट में पायी जाती हैं! अगर हम ऐसा खाना खा लें, जिसमें बहुत नुकसान पहुँचानेवाले कीटाणु हों, तो ‘आँतों का तंत्रिका तंत्र’ मांस-पेशियों को काफी ज़ोर से सिकुड़ने का आदेश
देता है। इससे उल्टी या दस्त होकर ज़्यादातर खराब खाना शरीर से निकल जाता है और शरीर को नुकसान नहीं पहुँचता।अच्छा संपर्क
‘आँतों का तंत्रिका तंत्र’ अपना ज़्यादातर काम खुद ही करता है, फिर भी यह लगातार दिमाग के संपर्क में रहता है। जैसे, यह उन हार्मोन की मात्रा का नियंत्रण करता है, जो दिमाग को बताते हैं कि हमें कब और कितना खाना खाना चाहिए। जब पेट भर जाता है, तो ‘आँतों के तंत्रिका तंत्र’ की तंत्रिका कोशिकाएँ दिमाग को इसका संकेत करती हैं। फिर भी अगर हम खाते जाएँ, तो ये कोशिकाएँ कुछ ऐसा करती हैं कि हमारा जी मिचलाने लगता है।
शायद यह लेख पढ़ने से पहले भी आपको लगा होगा कि दिमाग और पाचन नली के बीच कुछ-न-कुछ तो नाता है। उदाहरण के लिए, क्या आपको कभी लगा कि कुछ तला हुआ खाने से आपका मूड या मिज़ाज अच्छा हो गया? वैज्ञानिकों का कहना है कि यह तब होता है, जब ‘आँतों का तंत्रिका तंत्र’ आपके दिमाग को खुश रहने का संकेत देता है, जिससे धीरे-धीरे आपका मिज़ाज अच्छा हो जाता है। शायद इसी वजह से तनाव होने पर कुछ अच्छा खाने का मन करता है। वैज्ञानिक कुछ तकनीक खोज रहे हैं, जिससे ‘आँतों का तंत्रिका तंत्र’ किसी तरह दिमाग को खुश रहने का संकेत दे। इस तरह गहरी निराशा (डिप्रेशन) का इलाज किया जा सकेगा।
एक और बात से पता चलता है कि पाचन तंत्र दिमाग से संपर्क बनाए रखता है। जब हमें चिंता होती है या हम तनाव में होते हैं, तो ‘आँतों का तंत्रिका तंत्र’ पेट में दौड़ रहे खून का रुख बदल देता है। इस वजह से हमें पेट में कुछ अजीब-सा महसूस होता है। कई बार तनाव होने पर हमारा जी मिचलाने लगता है। इसकी वजह यह है कि हमारा दिमाग ‘आँतों के तंत्रिका तंत्र’ को कुछ ऐसा संदेश देता है, जिससे आँतें जल्दी-जल्दी सिकुड़ने लगती हैं।
जैसे हमने देखा ‘आँतों के तंत्रिका तंत्र’ को “दूसरा दिमाग” कहा गया है, लेकिन यह हमारे लिए कुछ सोच नहीं सकता, न ही कोई फैसला ले सकता है। या यूँ कहें तो यह हमारे “दिमाग” की तरह काम नहीं करता। यह कोई गीत नहीं रच सकता, हिसाब-किताब नहीं कर सकता, न ही पढ़ाई-लिखाई कर सकता है। फिर भी ‘आँतों का तंत्रिका तंत्र’ जिस तरह काम करता है, उसे देखकर वैज्ञानिक दंग रह जाते हैं। यह इतना पेचीदा है कि वैज्ञानिक अब भी इसे पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं। अगली बार जब आप खाना खाने बैठें, तो सोचिए कि आपके पाचन तंत्र में क्या-कुछ होनेवाला है—चीज़ों पर नज़र रखी जाएगी, जानकारी इकट्ठा की जाएगी, तालमेल बिठाया जाएगा और कई अंग एक-दूसरे से संपर्क करेंगे! कितना कमाल का है “दूसरा दिमाग”!