क्या प्रेरित पौलुस स्त्रियों के विरुद्ध था?
बाइबल का दृष्टिकोण
क्या प्रेरित पौलुस स्त्रियों के विरुद्ध था?
प्रेरित “पौलुस की शिक्षाओं को मसीही . . . गिरजे में अधिकांश स्त्री-विरोधी पूर्वग्रह के लिए आधार के रूप में प्रयोग किया गया है।” ऐसा ऑकलैंड, न्यू ज़ीलैंड की जज सेसिली रशटन ने एक लेखन में कहा जो साइप्रस में राष्ट्रमंडल नियम अधिवेशन में १९९३ के आरंभ में प्रस्तुत किया गया। उसने आगे कहा: “तीमुथियुस को लिखी उसकी पत्री उसके सोच-विचार को ज़ाहिर करती है: ‘और मैं कहता हूं, कि स्त्री न उपदेश करे, और न पुरुष का अधिकार हथियाए, परन्तु चुपचाप रहे।’”—१ तीमुथियुस २:१२, किंग जेम्स् वर्शन।
जब पौलुस ने स्त्रियों की भूमिका और स्थान के बारे में लिखा, क्या वह मात्र उसकी व्यक्तिगत राय थी जो अभिव्यक्त की जा रही थी, या वह ईश्वरीय रूप से प्रेरित था? पौलुस के पत्रों या पत्रियों को पूर्ण रूप से यदि देखा जाए, तो क्या वे वाक़ई स्त्री-विरोधी पूर्वग्रह को प्रतिबिम्बित करती हैं? ऊपर उद्धृत, तीमुथियुस को लिखे पौलुस के शब्द किस संदर्भ में लागू होते हैं?
पौलुस के प्रत्ययपत्र
मसीही यूनानी शास्त्रों के २७ किताबों में से १४ को लिखने का श्रेय पौलुस को दिया गया है। अनेक भाषाओं में बोलने की उसकी चमत्कारिक योग्यता उस पर पवित्र आत्मा की कार्यवाही को सूचित करती है। इसके अतिरिक्त, उसने अलौकिक दर्शन प्राप्त करने का प्रमाण दिया। (१ कुरिन्थियों १४:१८; २ कुरिन्थियों १२:१-५) उसके आत्म-त्यागी, सम्पूर्ण और प्रेमपूर्ण उदाहरण ने उसके और उसके मसीही साथियों के बीच स्नेही भाईचारे के प्रेम का एक निकटतम संबंध पैदा किया। (प्रेरितों २०:३७, ३८) उसके लेख, जिसमें स्त्रियों के बारे में उसने जो कहा वह भी सम्मिलित है, “हर एक पवित्रशास्त्र” का भाग है, जो “परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश . . . के लिये लाभदायक है।”—२ तीमुथियुस ३:१६.
पौलुस की पत्रियों में स्त्रियाँ
स्त्रियों की मान्यता और उनके लिए पौलुस की क़दर का पर्याप्त सबूत उसके लेखों में है। बार-बार, वह उनका उल्लेख उनकी विविध कलीसियाई और पारिवारिक भूमिकाओं में करता है। उसकी एक पत्री में, उसने एक मसीही चरवाहे के वांछनीय गुणों की समानता उन गुणों के साथ की जो एक बच्चों का पालन-पोषण करनेवाली माता दिखाती है।—१ थिस्सलुनीकियों २:७.
रोमियों १६:१२) यूओदिया और सुन्तुखे के बारे में, उसने फिलिप्पी के भाइयों को प्रोत्साहन दिया कि “उन स्त्रियों की सहायता कर, क्योंकि उन्हों ने मेरे साथ सुसमाचार फैलाने में . . . परिश्रम किया।” (फिलिप्पियों ४:३) तीमुथियुस को लिखे अपनी पत्री में पौलुस ने उस युवक की नानी लोइस और उसकी माता यूनीके के अनुकरणीय विश्वास को स्वीकार किया।—२ तीमुथियुस १:५.
उसकी पत्रियों में नाम से उल्लिखित, प्रेरित की अनेकों मसीही बहनें उसकी स्नेहपूर्ण सराहना का विषय हैं। रोम में कलीसिया के सदस्यों को उसके अभिवादन में, ‘प्रभु में परिश्रम करनेवाली’ कुछ स्त्रियों को विशेषकर संबोधित अभिवादन भी सम्मिलित हैं। (क्रमशः क्या कोई ऐसा संकेत है कि पौलुस की मसीही बहनें उसके बारे में कैसा महसूस करती थीं? एक विवाहित दम्पति जिनके साथ उसकी निकट व्यक्तिगत संगति थी, प्रिसका और अक्विला के बारे में उसने कृतज्ञतापूर्वक कहा कि न सिर्फ़ अक्विला ने लेकिन उसकी पत्नी, प्रिसका ने भी ‘[उसके] प्राणों के लिये अपना सिर दिया।’—रोमियों १६:३, ४.
स्त्री-विरोधी पूर्वग्रह?
“किसी बूढ़े को न डांट; पर उसे पिता जानकर समझा दे, और जवानों को भाई जानकर; बूढ़ी स्त्रियों को माता जानकर। और जवान स्त्रियों को पूरी पवित्रता से बहिन जानकर, समझा दे।” (१ तीमुथियुस ५:१, २) क्या तीमुथियुस को लिखे पौलुस के ये शब्द स्त्रीजाति के प्रति एक हितकर आदर प्रतिबिम्बित नहीं करते? पौलुस ने मसीही कलीसिया में पुरुष और स्त्री को समान आदर दिया। उसने लिखा, “अब न कोई यहूदी रहा और न यूनानी; न कोई दास, न स्वतंत्र; न कोई नर, न नारी; क्योंकि तुम सब मसीह यीशु में एक हो।”—गलतियों ३:२८.
जहाँ तक विवाह में परमेश्वर-नियत भूमिकाओं का सवाल है, पौलुस ने लिखा: “हे पत्नियो, अपने अपने पति के ऐसे आधीन रहो, जैसे प्रभु के। क्योंकि पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है; और आप ही देह का उद्धारकर्त्ता है।” (इफिसियों ५:२२, २३; साथ ही १ कुरिन्थियों ११:३ से तुलना कीजिए।) जी हाँ, पति और पत्नी की अपनी-अपनी भूमिकाएँ भिन्न हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि एक साथी निम्न है। ये भूमिकाएँ सम्पूरक हैं, और प्रत्येक भूमिका की पूर्ति एक ऐसी चुनौती खड़ी करती है जिसका यदि सामना किया जाए तो इससे परिवार का हित बढ़ता है। साथ ही, पति द्वारा चलाए गए मुखियापन को उत्पीड़क या प्रेमरहित नहीं होना था। पौलुस ने आगे कहा: ‘पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखें,’ उनके लिए अधिक बलिदान करने के लिए तत्पर रहने के द्वारा। (इफिसियों ५:२८, २९) बच्चों को माता और पिता दोनों की आज्ञा माननी थी।—इफिसियों ६:१, २.
वैवाहिक संबंधों के बारे में भी पौलुस के शब्दों को ध्यान दिया जाना चाहिए। बिना किसी पक्षपात के पौलुस ने लिखा: “पति अपनी पत्नी का हक्क पूरा करे; और वैसे ही पत्नी भी अपने पति का। पत्नी को अपनी देह पर अधिकार नहीं पर उसके पति का अधिकार है; वैसे ही पति को भी अपनी देह पर अधिकार नहीं, परन्तु पत्नी को।”—१ कुरिन्थियों ७:३, ४.
“स्त्री . . . चुपचाप रहे”
पहला तीमुथियुस २:१२ में पौलुस के शब्दों के संबंध में, जो पहले अनुच्छेद में उद्धृत हैं, स्त्री के ‘चुपचाप रहने’ का उसका समर्थन क्या किसी स्त्री-विरोधी पूर्वग्रह से उत्पन्न हुआ था? नहीं! पहले बताए गए ईश्वरीय रूप से नियत स्त्री-पुरुष संबंधों की क़दर करते हुए, ‘चुपचाप रहने’ की यह माँग कलीसिया में सिखाने और आध्यात्मिक अधिकार चलाने के संबंध में थी। *
इसका अर्थ यह नहीं है कि स्त्रियाँ ईश्वरीय सत्य की शिक्षिकाएँ नहीं हो सकतीं। पौलुस ने प्रोत्साहन दिया कि बूढ़ी स्त्रियाँ जवान स्त्रियों को “अच्छी बातें सिखानेवाली हों।” यूनीके और लोइस के उदाहरण का अनुकरण करते हुए, जिन्होंने तीमुथियुस को सिखाया, मसीही माताओं को अपने बच्चों को ईश्वरीय मार्गों में प्रशिक्षित करना है। (तीतुस २:३-५; २ तीमुथियुस १:५) आज, यहोवा के गवाहों की कलीसियाओं में, लाखों मसीही स्त्रियाँ सार्वजनिक रूप से सुसमाचार प्रचार करने और पुरुषों और स्त्रियों को चेले बनाने के युओदिया और सुन्तुखे के उदाहरणों का अनुकरण करने में आध्यात्मिक तृप्ति पाती हैं।—भजन ६८:११; मत्ती २८:२०; फिलिप्पियों ४:२, ३.
अब आप की राय क्या है? पूर्ण रूप से देखने पर, क्या पौलुस के लेखन स्त्री-विरोधी पूर्वग्रह के इस इल्ज़ाम को न्याय-संगत ठहराते हैं?
[फुटनोट]
^ पहला तीमुथियुस २:११ (न्यू इन्टरनैशनल वर्शन) में “पूरी आधीनता” इस अभिव्यक्ति के संबंध में, बाइबल विद्वान डब्ल्यू. ई. वाइन कहता है: “यह आदेश मन और विवेक के आत्मसमर्पण, या व्यक्तिगत निर्णय लेने के कर्त्तव्य का त्याग करने के लिए नहीं दिया गया है; वाक्यांश ‘पूर्ण अधीनता के साथ’ अधिकार हथियाने के विरुद्ध एक चेतावनी है, जो कि उदाहरण के लिए, अगले वचन में दी गयी है।”