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क्रूर शत्रु से अधिक

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क्रूर शत्रु से अधिक

तेज़ दर्द लोगों की ज़िन्दगी बरबाद कर सकता है। यह उनकी शांति, आनन्द, और सक्रियता को चुरा लेता है, और जीवन को इतना दयनीय बना देता है कि कुछ लोग आत्महत्या द्वारा राहत पाना चाहते हैं। चिकित्सीय मिशनरी अल्बर्ट श्‍वाइटसर ने निष्कर्ष निकाला: “दर्द मानवजाति का स्वयं मृत्यु से भी अधिक क्रूर स्वामी है।”

अक्षरशः करोड़ों लोग बुरी तरह से पीड़ित हैं। एक फ्रांसीसी शल्यचिकित्सक ने कहा, ‘यदि हमें अन्तहीन आकाश में एक अथाह गड्ढे के ऊपर लटकाया जा सकता, जिसमें से घूमती हुई पृथ्वी की ध्वनि उभरकर हमारे कानों तक पहुँचती, तो हम अंतर्निहित दर्द की एक चीत्कार को सुनते जो पीड़ित मानवजाति द्वारा मानो एक साथ की गयी हो।’

वाक़ई, मसीही प्रेरित पौलुस ने १,९०० वर्ष पूर्व जो लिखा था, आज उसका प्रभाव और भी अधिक है: “सारी सृष्टि अब तक मिलकर कहरती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है।”—रोमियों ८:२२.

मुख्य स्वास्थ्य समस्या

आठ में से एक अमरीकी ऑस्टियो-आर्थराइटिस की अत्यधिक पीड़ा का अनुभव करता है, यह सबसे सामान्य क़िस्म का आर्थराइटिस है। अनेक अन्य लोगों को वेदनापूर्ण पीठ का दर्द है। अन्य लोगों को कैंसर और हृदय रोग के दर्दभरे प्रभावों को सहना पड़ता है।

लाखों अन्य लोग यातनादायी सिरदर्द, दाँत के दर्द, कान के दर्द, बवासीर और असंख्य अन्य बीमारियों तथा घावों से पीड़ित हैं। यह आश्‍चर्य की बात नहीं कि हाल के एक वर्ष में, अमरीकियों ने मात्र डॉक्टरी नुस्ख़े बिना लिए गए दर्द निवारकों पर $२१० करोड़ ख़र्च किए, और ना ही यह आश्‍चर्य की बात है कि दर्द को “अमरीका की छुपी हुई महामारी” कहा जाता है।

दर्द के शायद सबसे बड़े विशेषज्ञ जॉन जे. बॉनिका ने कहा: “आर्थिक दृष्टिकोण और मानवीय दुर्दशा के दृष्टिकोण से, जीर्ण दर्द प्रतीयमानतः बाक़ी सभी स्वास्थ्य-संबंधी समस्याओं से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है।”

दर्द से मुक्‍त एक जीवन?

ऐसी कठोर सच्चाई के होते हुए दर्द से मुक्‍त जीवन की संभावना का सुझाव देना शायद अविवेकपूर्ण लगे। इसलिए जो बाइबल कहती है वह शायद अस्वाभाविक प्रतीत हो, अर्थात्‌: “[परमेश्‍वर] उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; . . . न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी।”प्रकाशितवाक्य २१:४.

फिर भी दर्द से मुक्‍त जीवन की संभावना अस्वाभाविक नहीं है। लेकिन एक घड़ी सोचिए। शास्त्रवचन का अर्थ वास्तव में क्या है? आज ऐसे लोग हैं जिन्हें दर्द की कोई संवेदना नहीं। वे उसके बिना पैदा होते हैं। क्या उनसे ईर्ष्या की जानी चाहिए? शरीर-रचना विज्ञानी ऐलन बॉसबोम ने कहा: “बिल्कुल दर्द न होना घोर विपत्ति है।”

यदि आप दर्द महसूस नहीं कर सकते, तो शायद आपको तब तक पता न लगे कि आपको एक छाला पड़ गया है जब तक कि वह बुरी तरह से दूषित घाव नहीं बन जाता। एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार, एक छोटी लड़की, जिसे दर्द महसूस नहीं होता था, के माता-पिता को “कभी-कभी जलते हुए माँस की बदबू आती और वे अपनी लड़की को भावहीनता से स्टोव पर झुका हुआ पाते।” इस प्रकार, दर्द एक क्रूर शत्रु से अधिक है। यह एक आशीष भी हो सकता है।

तो फिर, बाइबल की प्रतिज्ञा के बारे में क्या: “न पीड़ा रहेगी”? क्या यह ऐसी प्रतिज्ञा है जो हम वास्तव में चाहेंगे कि पूरी हो?

आँसुओं बिना एक जीवन?

ध्यान दीजिए कि इस आयत का संदर्भ यह भी कहता है: “[परमेश्‍वर] उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा।” (प्रकाशितवाक्य २१:४) यह उल्लेखनीय है, क्योंकि आँसू अत्यावश्‍यक हैं। दर्द की संवेदना की तरह वे हमारी रक्षा करते हैं।

आँसू हमारी आँखों को नम रखते हैं और आँख और पलक के बीच घर्षण को रोकते हैं। वे बाहरी वस्तुओं को भी हमारी आँखों से बाहर निकाल देते हैं। इसके अतिरिक्‍त, उनमें लाइसोज़ाइम नामक ऐन्टिसेप्टिक होता है, जो आँखों को निस्संक्रमित करता है और संक्रमण होने से बचाता है। इस तरह आँसू बहाने की क्षमता, दर्द की हमारी संवेदना की तरह, हमारे अद्‌भुत रीति से बनाए गए शरीर की एक असाधारण विशेषता है।—भजन १३९:१४.

लेकिन, आँसू दुःख, शोक और संताप से भी निकट रूप से जुड़े हुए हैं। बाइबल के समय के राजा दाऊद ने दुःखित होकर कहा: “मैं अपनी खाट आंसुओं से भिगोता हूं; प्रति रात मेरा बिछौना भीगता है।” (भजन ६:६) अपने दोस्त की मृत्यु पर यीशु के भी “आंसू बहने लगे।” (यूहन्‍ना ११:३५) प्रारंभ में परमेश्‍वर का उद्देश्‍य नहीं था कि लोग ऐसे दुःख के आँसू बहाएँ। पहले मनुष्य आदम का पाप मानव परिवार की अपरिपूर्ण, मरणासन्‍न स्थिति के लिए ज़िम्मेदार है। (रोमियों ५:१२) अतः, हमारी अपरिपूर्ण, मरणासन्‍न स्थिति के कारण बहने वाले आँसू नहीं रहेंगे।

क्योंकि बाइबल एक ख़ास क़िस्म के आँसुओं के न रहने के बारे में कहती है, तो दर्द न रहने की प्रतिज्ञा कैसे पूरी होगी? क्या लोग, कम-से-कम कभी-कभी, ऐसे दर्द से पीड़ित नहीं होंगे जो दुःख और रोने का कारण होगा?