विशालकाय समुद्री कछुओं की वार्षिक भेंट
विशालकाय समुद्री कछुओं की वार्षिक भेंट
मलेशिया में सजग होइए! संवाददाता द्वारा
अब क़रीब-क़रीब मध्य-रात्रि है। ऊपर पूरा चान्द सौम्य और शाँत सागर पर एक सुनहरी आभा फैलाए हुए है। रानताउ अबांग के तट पर लोगों के समूह हैं, कुछ खड़े हुए, दूसरे उकडूँ होकर बैठे हैं या ठंडी, मुलायम रेत पर बैठे हैं। इस घड़ी वे यहाँ क्या कर रहे हैं? वे धीरज से चार पावों से सज्जित एक विशाल कवच की भेंट का इंतज़ार कर रहे हैं—विशाल चमड़े जैसा कछुआ, या समुद्री कछुआ।
इन रहस्यमयी जलस्थलचर भेंटकर्ताओं ने इस अन्यथा उपेक्षित समुद्र-तट को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्रदान की है। रानताउ अबांग प्रायद्वीप मलेशिया के पूर्वी तट पर स्थित है। यह दूंगगुन के ठीक उत्तर में है और सिंगापुर से कुछ ४०० किलोमीटर की दूरी पर है। यह संसार की ऐसी कुछ जगहों में से एक है जहाँ समुद्री कछुए एक गौरवपूर्ण कार्य के लिए वार्षिक भेंट करते हैं।
यहाँ अंडे देने का मौसम लगभग मई से सितम्बर तक चलता है। जून, जुलाई और अगस्त के व्यस्त महीनों के दौरान, अंडे देने की प्रक्रिया देखना काफ़ी आसान है। सामान्य रूप से कछुए अंधेरा होने के बाद पानी से बाहर आना शुरू करते हैं। क्या मलेशिया, सिंगापुर और पश्चिम से आए हुए लोगों ने व्यर्थ ही इंतज़ार किया है?
सागर से वे बाहर आते हैं!
अचानक, झिलमिलाते पानी की पृष्ठभूमि में, किनारे से थोड़ी दूर किसी वस्तु को पानी में तैरते वक्त डुबकियाँ लगाते देखा गया। भीड़ उत्तेजित हो जाती है! जैसे-जैसे वह किनारे के क़रीब आती है, एक गुम्बद-आकार की वस्तु पानी से उभरने लगती है। वह किनारे आ रहा कछुआ है! वहाँ मौजूद कुछ गाइड, सभी को जितना हो सके उतना चुपचाप देखने के लिए सावधान करते हैं, इससे पहले कि शोर से डरकर वह चला जाए।
पहले सिर निकलता है, फिर गला, उसके बाद कवच के आगे का भाग और आगे के पाँव, और आख़िरकार पूरा कछुआ किनारे पर नज़र आता है। एक हल्की सी लहर उसकी पूँछ और पीछे के पावों को गीला कर जाती है। वाक़ई कितना विशालकाय है, नाक से लेकर पूँछ के सिरे तक लगभग दो मीटर या उससे भी अधिक! वहाँ तट पर वह निश्चल पड़ा है।
अचानक, कछुआ अपने आप को आगे के पाँवों से उठाता है और अपने शरीर को आगे की ओर फेंकता है, और ज़मीन पर धम्म से टकराता है। वह एक पल के लिए स्थिर रहता है, मानो अगले उत्थान और छलाँग के लिए साँस ले रहा हो और शक्ति एकत्रित कर रहा हो। ज़मीन पर वह इसी तरह चलता है। उसके दोनों तरफ भीड़ को दूरी पर रखा जाता है। गाइड इसके बारे में बहुत ही दृढ़ हैं। आगे की ओर हर छलाँग के साथ, भीड़ भी आगे आती है—लेकिन बहुत ही चुपचाप।
जैसे-जैसे समुद्री कछुआ मचकते हुए किनारे पर आता है, वह सहजबोध से अपनी मंज़िल जानता है। उसके सहजबोध का ज्ञान उसे एक स्थान ढूँढने में समर्थ करता है जहाँ उसके अंडों से सफलतापूर्वक बच्चे निकलने का हर लाभ प्राप्त है। वहाँ वह एक गड्ढा खोदना शुरू करता है। पीछे के पाँव, रेत को खोदते हुए कुदाल का काम देते हैं।
मानो लंबे अरसे के बाद एक गाइड, जो एक लाइसेंस-प्राप्त अंडा संग्राहक भी है, आगे आता है और अपना हाथ गड्ढे में डालता है। वह गड्ढा इतना गहरा था कि उसकी कोहनी अंदर चली गयी। जैसे वह अपनी बाँह को गड्ढे से निकालता है, हरेक व्यक्ति आश्चर्य और उत्तेजन से साँस भरता है। वह एक अंडा बाहर लाता है!
समुद्री कछुए के अंडे का रंग फीका सफ़ेद है। इसका आकार टेबल-टेनिस की गेंद से लेकर टेनिस की गेंद के आकार जैसा होता है। एक समूह में आख़िर के कुछ अंडे अकसर मात्र एक शीशे की गोटी के आकार के होते हैं। मुर्गी के अंडों से भिन्न, इसका खोल असल में एक मज़बूत चमड़ी है जिसे दबाया जाए तो आसानी से गड्ढा पड़ सकता है। विचित्र रूप से, पकाने के बाद भी अंडे की सफ़ेदी (ऐल्बूमेन) तरल ही रहती है। कहा जाता है कि उसका स्वाद कुछ-कुछ कड़वा और हल्का सा मछली के समान होता है। एक कछुआ एक समय पर औसतन ८५ अंडे देता है। लेकिन १९६७ में १४० अंडे देने का रिकॉर्ड रिपोर्ट किया गया था।
अब भीड़ को घूमने के लिए ज़्यादा आज़ादी है। कुछ लोग हिचकिचाते हुए कछुए को छूते और उसका परीक्षण करते हैं। दूसरे उस पर चढ़ते हैं या अपने पारिवारिक अल्बम के लिए फ़ोटो निकालने की ख़ातिर उस पर टेक लगाकर विशेष मुद्रा में बैठते हैं। कछुए की एक नज़दीकी झलक से पता लगता है कि उसकी आँखों से एक गाढ़ा पारदर्शक श्लेष्मा टपक रहा है जो रेत के कणों से भरा हुआ है। कहा जाता है कि पानी से हवा का परिवर्तन इसका कारण है। समय-समय पर, हुंकार की आवाज़ के साथ कछुआ साँस लेने के लिए अपना मुँह खोलता है।
अंडों को छिपाना
काफ़ी समय बाद, रेत को वापस गड्ढे में भरने के लिए वह प्राणी अपने पिछले पाँवों को हिलाने लगता है। जैसे ही गड्ढा भर जाता है, समुद्री कछुआ अपने पिछले पाँवों को एक विंडस्क्रीन-वाइपर की गति देता है। सारी दिशाओं में रेत उड़ती है! भीड़ अपने चेहरे और शरीर की रक्षा करने के लिए जल्दी से पीछे हट जाती है। हिलते हुए पाँव कुछ समय तक लहराते रहते हैं। क्या ही दम और शक्ति का प्रयोग किया जा रहा है! जब पाँव आख़िरकार रुकते हैं, भीड़ को उस गड्ढे का नामोनिशान नज़र नहीं आता जो समुद्री कछुए ने खोदा था। सचमुच सहजबोध की बुद्धि! लेकिन इस कछुए के सृष्टिकर्ता की बुद्धि असीम रूप से कितनी महान है!
इससे पहले कि समुद्री कछुआ वापस सागर में चला जाए, एक लाइसेंस-प्राप्त अंडा संग्राहक उसके आगे के एक पाँव पर बिल्ला लगाता है। यह इसलिए किया जाता है ताकि ज़मीन पर इसकी अगली भेंटों और खुले सागर में इसकी गतिविधियों पर निगाह रखी जा सके। हर मौसम में यह छः से लेकर नौ बार तक अंडे देता है। और हर बार अंडे देने के बीच ९ से १४ दिनों का अन्तराल होता है।
अचानक समुद्री कछुआ उछलता है और अपने आप को आगे की ओर फेंकता है। वह मुड़ता है और सागर की ओर चल पड़ता है, आगमन के समय से तुलनात्मक रूप से ज़्यादा तेज़ी से मचकता जाता है। जब वह पानी को स्पर्श करता है, तो सिर अंदर जाता है, उसके बाद कवच। आख़िरकार वह दृष्टि से ओझल हो जाता है। जब सिर आख़िरकार ऊपर उठता है, कछुआ काफ़ी दूर जा चुका होता है। तेज़ी से वह पानी को चीरकर खुले सागर में पहुँचता है और उसके नाक के शीर्ष पर चाँदनी चमकती है। पानी में यह कितना फुर्तीला और तेज़ है! ज़मीन पर उसके भद्देपन और धीमी गति से बहुत ही भिन्न।
संरक्षण प्रयास
दूसरे क़िस्म के जानवरों की बढ़ती हुई संख्या की तरह, समुद्री कछुए प्रदूषित वातावरण और मानवीय लोभ की तबाही द्वारा ख़तरे में हैं। दशक १९७० के मध्य में, पड़ोसी राज्य पहाँग में, सैंकड़ों कछुओं को जो पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुए थे, बहकर किनारे पर लगे हुए पाया गया—मृत! और कुछ विचित्र चीज़ खाने के लोगों के स्वाद को तृप्त करने के लिए, कछुओं के अंडों को बेहिचक इकट्ठा किया जाता है।
इन कछुओं के लिए ख्प्ताशी की बात है कि उनकी घटती संख्या के लिए मलेशिया में अत्यधिक चिंता के कारण १९५१ में कछुआ अधिनियमन पारित किया गया। अंडों का निजी संग्रहण ग़ैरक़ानूनी ठहराया गया। लेकिन धन के लोभी व्यक्ति इस नियम की अवज्ञा करते हैं, उनके लिए मुनाफ़े का प्रलोभन काफ़ी बड़ा है। फिर भी, संरक्षण प्रयास व्यर्थ नहीं रहे हैं।
रानताउ अबाँग के समुद्र-तट पर, रेत में लगे छोटे पोस्टरों की कतारें देखना ख्प्ताशी की बात है। हर पोस्टर उस स्थान को चिह्नित करता है जहाँ समुद्री कछुए के अंडों की एक छोटी खेप छुपी हुई है। पोस्टर अंडों की संख्या, गाड़ने की तारीख़, और अंडों के आरंभिक संग्रह की पहचान कराता हुआ एक कोड नंबर दिखाता है। गाड़ने के लगभग ४५ दिन बाद, तार की जाली हर पोस्टर के चारों ओर लगायी जाती है ताकि कछुए के बच्चों को भागने से रोक सकें। अंडे सेने की अवधि ५२ से ६१ दिनों तक होती है। जैसे ही बच्चे निकलते हैं, सामान्य तौर पर शाम को सूर्यास्त के बाद, हर गड्ढे से निकलनेवालों की संख्या को रिकॉर्ड किया जाता है। उन्हें फिर पात्रों में रखा जाता है और बाद में समुद्र के छोर पर छोड़ दिया जाता है।
संरक्षण कार्यक्रम ने सफलतापूर्वक अनेक हज़ारों बच्चों को बड़ा किया है और उन्हें अपने जलीय घर में लौटाया है। लेकिन उनकी उत्तरजीविता की निम्न दर, साथ ही रानताउ अबाँग में आनेवाले समुद्री कछुओं की घटती संख्या, चिंता का एक कारण बनी हुई है।
[पेज 27 पर तसवीरें]
सिर से लेकर पूँछ तक लगभग दो मीटर लंबा,समुद्री कछुआ दर्जनों अंडे देता है। लगभग आठ सप्ताह बाद,बच्चे निकलते हैं
[चित्रों का श्रेय]
Leathery turtle, Lydekker
C. Allen Morgan/Peter Arnold
David Harvey/SUPERSTOCK
[पेज 25 पर चित्र का श्रेय]
C. Allen Morgan/Peter Arnold