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जुर्म की खाई से निकलकर जगमगाते भविष्य की ओर

जुर्म की खाई से निकलकर जगमगाते भविष्य की ओर

जुर्म की खाई से निकलकर जगमगाते भविष्य की ओर

कॉस्टा कुलापीस की ज़ुबानी

जेल की गंदी चार-दीवारी में पड़े-पड़े मैंने ठान लिया कि मुझे कोई-न-कोई तरकीब ज़रूर निकालनी होगी, जिससे बेशुमार दौलत मेरे हाथ लग जाए। फिर मैं जुर्म के दलदल से बाहर निकलकर, सुख-चैन की एक नई ज़िंदगी शुरू करूँगा।

मैं कैद में अकेला उदास बैठा बेचैनी महसूस कर रहा था। तभी मुझे पिछले साल हुए हादसों की यादें आने लगीं, जिनमें एक के बाद एक मेरे 11 साथियों की मौत हो गई थी। एक को कत्ल की सज़ा में फाँसी हो गई थी। दूसरे पर कत्ल का मुकद्‌मा चल ही रहा था कि उसने आत्म-हत्या कर ली। तीन साथियों ने इतना ज़्यादा ड्रग्स ले लिया कि वे भी मौत की नींद सो गए। दो साथियों की दूसरे गिरोह के साथ मार-पीट हो गई और उन्होंने इन दोनों को मौत के घाट उतार दिया। बाकी चार एक मोटर दुर्घटना में मारे गए। इनके अलावा मेरे कई और भी साथी थे, जिन्हें संगीन जुर्म की वज़ह से अलग-अलग जेलों में डाल दिया गया था।

ये सब बातें याद आने से मैं बहुत परेशान हो गया और उस अंधेरी कोठरी में बैठा हुआ परमेश्‍वर से गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करने लगा। मैंने कहा, हे परमेश्‍वर, मुझे नहीं पता आप कौन हैं, मगर आप चाहे जो भी हों मुझे इस जुर्म की खाई से बाहर निकाल लीजिए। इस प्रार्थना का जवाब मुझे कुछ दिनों बाद मिला। दरअसल मुझ पर यह इलज़ाम लगाया गया था कि मैंने दो आदमियों को घायल करने के लिए हमला किया था। जब मैंने अदालत में यह कबूल किया कि मैंने उन दोनों को पीटा ज़रूर है मगर ऐसा करने का मेरा कोई इरादा नहीं था, तब अदालत ने मेरी सज़ा कम कर दी। आइए मैं पहले आपको यह बताऊँ कि मैं इस दलदल में फँसा कैसे।

मैं 1944 में दक्षिण अफ्रीका के प्रिटोरिया शहर में पैदा हुआ और वहीं पला-बड़ा। मेरे पिताजी की वज़ह से परिवार की हालत बहुत खराब थी। उन्हीं की वज़ह से मेरा बचपन दुख-दर्द से भरा हुआ था। पिताजी बड़े गुस्सेवाले थे और पीने के बाद तो उनका गुस्सा और ज़्यादा भड़क उठता था। उन्हें जुआ खेलने की गंदी आदत पड़ चुकी थी। हर पल उनका मिज़ाज़ बदलता रहता था, जिसकी वज़ह से हम सब पर गालियों की बौछार होती रहती थी। वे हम सबकी पीटाई करते थे। लेकिन उनके ज़ुल्मों की शिकार खासकर हमारी माँ होती थी। इसलिए रोज़-रोज़ के इस झमेले से पीछा छुड़ाने के लिए मैंने दिन-भर इधर-उधर घूमना शुरू कर दिया।

जुर्म की राह पर कदम रखना

ऐसी माहौल की वज़ह से छोटी उम्र में ही मैंने दुनिया-दारी सीख ली थी। मिसाल के तौर पर, जब मैं आठ साल का था तब मैंने दो सबक सीखे थे। पहला सबक मैंने तब सीखा था जब मैं अपने पड़ोसी के घर से खिलौने चुरा लाया था। पकड़े जाने पर पिताजी ने मेरी जमकर पिटाई की। और ऐसी धमकी दी कि उनकी आवाज़ अब भी मेरे कानों में गूँज रही है, “खबरदार! अगर तू ने दोबारा कभी चोरी की तो ज़िंदा गाड़ दूँगा।” उस दिन से मैंने एक बात अपने मन में ठान ली कि मैं चोरी करूंगा, मगर चोरी करके कभी पकड़ा नहीं जाऊंगा। मैंने सोच लिया था कि अगली बार ‘मैं चोरी का माल कहीं छिपा दूँगा ताकि किसी को कानों-कान खबर तक न हो।’

दूसरा सबक जो मैंने सीखा उसका जुर्म से कोई ताल्लुक नहीं था। मेरे स्कूल में बाइबल का भी एक विषय पढ़ाया जाता था जिसमें हमें यह सिखाया कि परमेश्‍वर का एक नाम है। और जब टीचर ने कहा, “परमेश्‍वर का नाम यहोवा है और अगर उसके पुत्र यीशु मसीह के नाम से तुम उससे प्रार्थना करोगे तो वह तुम्हारी हर प्रार्थना सुनेगा।” तो हम हैरान रह गए। कहने को तो उम्र में मैं बहुत छोटा था मगर यह बात मेरे दिलो-दिमाग में अच्छी तरह बैठ गयी थी। मगर फिर भी यह मुझे जुर्म के रास्ते पर चलने से रोक नहीं पायी। जब मैं हाई स्कूल में पहुँचा तो दुकानों पर चोरी, और घरों में डाके डालने में मैं बहुत माहिर हो गया था। स्कूल में मेरा कोई भी अच्छा दोस्त नहीं था और अधिकतर को जुर्म की वज़ह से रिफार्म स्कूल भेजा जा चुका था।

जैसे-जैसे साल बीतते गए जुर्म करना मेरे लिए आम बात हो गई थी। मेरी उम्र बीस साल भी नहीं हुई थी और मैं बेहिसाब चोरियाँ और डकेतियाँ डाल चुका था। मैं गाड़ियाँ चुराता और लोगों पर ज़ुल्म ढाता। अपना ज़्यादातर समय बिलियर्ड और शराब के अड्डो में बिताता, साथ ही दलालों, वेश्‍याओं और अपराधियों के लिए छोटा-मोटा काम भी करता। इस वज़ह से मैं टॆकनिकल हाई स्कूल में अपना पहला साल भी पूरा नहीं कर पाया।

ऐसे अपराधियों से मेरा रोज़ मिलना-जुलना होता जिनका ज़मीर मर चुका था। अगर कोई उनके साथ धोखा करता तो वे बेझिझक उसके हाथ-पैर तोड़ देते। उनके साथ रहते वक्‍त मैंने यह सीखा कि अपना मुँह बंद रखने में ही मेरी भलाई है। कभी भी अपने माल के बारे में ढिंढ़ोरा नहीं पीटना चाहिए और न ही अपने पैसों का दिखावा करना चाहिए। ऐसा करने से खबर चारों ओर फैल जाती है और दो खतरे पैदा हो जाते हैं। पहला, आप पुलिस की नज़रों में बड़ी आसानी से आ जाते और वह तरह-तरह के सवाल पूछने लगती है। दूसरा, इधर-उधर के अपराधी माल का हिस्सा माँगने दरवाज़े पर आकर खड़े हो जाते हैं।

इतना सावधान रहने के बावजूद पुलिस कभी-कभी शक करती कि मेरा कहीं न कहीं किसी गैर-कानूनी काम में हाथ ज़रूर है। मगर मैं हमेशा यह ध्यान रखता कि ऐसा कोई सामान मेरे पास न हो जिससे किसी को शक हो कि मैं जुर्म में शामिल हूँ या जिससे मुझे फँसाया जा सके। एक दिन सुबह तीन बजे पुलिस ने मेरे घर पर छापा मारा क्योंकि हमारे इलाके की एक दुकान से बिजली के सामान की चोरी हो गई थी। उन्होंने दो बार घर की तलाशी ली लेकिन कुछ भी नहीं मिला। फिर मुझे उँगलियों के निशान के लिए पुलिस-थाने ले जाया गया और बाद में छोड़ दिया गया।

ड्रग्स के दलदल में फँसना

मैंने 12 साल की उम्र में ड्रग्स लेना शुरू कर दिया था जिसका मेरे दिमाग पर असर होने लगा था। कई बार तो मैं बहुत ज़्यादा ड्रग्स लेता था। मेरी सेहत खराब होने लगी थी। एक बार मुझे एक डॉक्टर से मिलवाया गया जिसका संबंध अंडरवर्ल्ड के गुंडो से था। उससे मिलने के बाद मैंने ड्रग्स का धंधा शुरू कर दिया। जल्द ही मुझे अहसास हुआ कि दूसरों से ड्रग्स बिकवाने से मेरे लिए खतरा कम हो जाएगा क्योंकि मैं परदे के पीछे रहूँगा जबकि खतरे का सामना किसी और को करना पड़ेगा।

अफसोस की बात है मेरे साथ धंधा करनेवालों में से कुछ लोग ज़्यादा ड्रग्स लेने की वज़ह से मर गये और कुछ संगीन जुर्म कर बैठे। मेरे एक “साथी” ने एक मशहूर डॉक्टर की हत्या कर दी थी। पूरे देश में इस खबर ने खलबली मचा दी। लेकिन उस साथी ने खून का इलज़ाम मेरे सर मढ़ने की कोशिश की जबकि मैं इस घटना से बिलकुल बेखबर था। मुझे तो इसके बारे में तब पता चला जब पुलिस मेरे घर पर आई। मेरे पास पुलिस का आना-जाना कोई नयी बात नहीं थी, पुलिसवाले अकसर तरह-तरह के अपराधों को लेकर, मेरे बेकसूर होने पर भी सवाल करने चले आते थे।

एक दिन मैंने बड़ी बेवकूफी का काम किया। एक हफ्ते तक ड्रग्स लेने के बाद ऊपर से खूब शराब पी ली। और नशे में चूर होकर किसी गलतफहमी की वज़ह से दो आदमियों के साथ झगड़ा कर बैठा। गुस्से में आकर मैंने उन दोनों को बुरी तरह ज़ख्मी कर दिया। अगली सुबह वे मेरे घर पुलिस को लेकर आए और गिरफ्तार करवा दिया। इस तरह मुझे पहली बार जेल का मुँह देखना पड़ा।

पहले मालामाल हो, फिर ईमानदार बनो

जेल से रिहा होने के बाद, मुझे एक नौकरी की खबर मिली। दवाई बनानेवाली एक कंपनी को हिसाब-किताब के लिए एक आदमी की ज़रूरत थी। मैंने नौकरी के लिए अर्ज़ी देने के साथ-साथ उस कंपनी के मालिक को यकीन दिलाया कि मुझसे बेहतर यह काम और कोई नहीं कर सकता। मेरे एक दोस्त की सिफारिश पर जो उस कंपनी में नौकरी करता था, मुझे वह नौकरी मिल गई। मैंने मन-ही-मन सोच लिया था कि मालामाल होने का यही सबसे बढ़िया मौका है, इसलिए मैं जी-तोड़ मेहनत करके हर काम को जल्द-से-जल्द सीखने की कोशिश करता और हर रोज़ देर रात तक जागकर, सभी दवाइयों के बारे जानकारी हासिल करता। मुझे पूरा यकीन हो गया था कि नई ज़िंदगी की शुरुआत के लिए इससे बढ़िया मौका नहीं मिलेगा। मैं दवाइयाँ लेकर उड़ जाता और कहीं और जाकर बस जाता और फिर एक नयी साफ-सुथरी ज़िंदगी की शुरुआत करता।

मैंने एक तरकीब सोची कि मैं सही वक्‍त का इन्तज़ार करूँगा और अपने से ऊँचे पद पर काम करनेवालों का विश्‍वास जीतूँगा। वक्‍त आने पर गोदाम से ढेर सारी ऐसी दवाइयाँ चुरा लूँगा जिनकी काले बाज़ार में बहुत कीमत है। इस तरह मैं रातों-रात अमीर हो जाऊँगा। फिर मैंने ऐसा इंतज़ाम भी किया कि अगर मुझ पर चोरी का इलज़ाम लगाया गया तो मैं उसे बड़ी आसानी से बेबुनियाद साबित कर सकूँ। और तब मुझे एक नई ज़िंदगी शुरू करने से कोई नहीं रोक सकेगा।

आखिर वो दिन आ ही गया, चोरी का सुनहरा मौका मेरे सामने था। उस रात मैंने बड़ी सावधानी से गोदाम में कदम रखा। मेरी आँखों के सामने दवाइयों से शैल्फ भरे पड़े थे जिनके लिए मुझे लाखों डॉलर मिल सकते थे। उन दवाइयों में मुझे जुर्म और हिंसा की दुनिया से आज़ादी नज़र आ रही थी। लेकिन उस वक्‍त ज़िंदगी में पहली बार, मेरा ज़मीर मुझे गलत काम करने से रोक रहा था। क्या मेरे अंदर ज़मीर भी है? आखिर मेरा ज़मीर मुझे सताने क्यों लगा? चलिए खुलकर बताता हूँ कि यह सब कैसे हुआ।

कुछ ही हफ्तों पहले मैनेजर और मेरे बीच ज़िंदगी के मकसद को लेकर काफी चर्चा हुई थी। उसकी किसी बात का जवाब देते हुए मैंने कहा था कि मुसीबत के वक्‍त जब दुनिया का हर दरवाज़ा बंद हो जाता है तो प्रार्थना करनी चाहिए। मगर उसने पूछा, “प्रार्थना किससे करनी चाहिए?” मैंने जवाब दिया, “परमेश्‍वर से।” फिर उसने कहा, “दुनिया में बहुत सारे परमेश्‍वर हैं, तो आप किससे प्रार्थना करेंगे?” मैंने जवाब दिया, “सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर से।” उसने फिर कहा, “अच्छा, उसका नाम क्या है?” मैंने कहा, “क्या मतलब?” उसने जवाब दिया, “मेरे कहने का मतलब है, जैसे आपका एक नाम है, मेरा एक नाम है और दुनिया में हर किसी का एक नाम है, तो क्या सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर का कोई नाम नहीं होना चाहिए? क्या आप बता सकते हो कि उसका क्या नाम है?” मुझे उसकी बात सही तो लगी मगर मैं उसके सवालों से तंग आ चुका था। इसलिए मैंने गुस्से में आकर कहा, “अच्छा चलो, मुझे नहीं मालूम लेकिन आपको तो ज़रूर पता होगा, तो आप ही बता दो उसका क्या नाम है।” उसने फौरन जवाब दिया, “सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर का नाम है, यहोवा!”

अचानक उस वक्‍त मुझे बरसों पहले सीखा वह सबक याद आ गया। और उस क्लास की तस्वीरें दिल में उभरने लगी जब मैं सिर्फ आठ साल का था। मैनेजर के साथ हुई बातचीत इतनी अच्छी थी कि मैं ब्यान नहीं कर सकता। हमनें बहुत-सी बातों पर बातचीत की जो इतनी दिलचस्प थीं कि बातों-बातों में कई घंटे बीत गए। अगले दिन उसने मुझे एक किताब दी जिसका नाम था, सत्य जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है। * उसी रात मैंने वह पूरी किताब पढ़ डाली और मुझे विश्‍वास हो गया कि सच्चा धर्म मुझे मिल गया है। उसे पढ़कर मुझे ज़िंदगी का एक मकसद मिल गया था। अगले दो हफ्तों तक मैं और मैनेजर इस बेहतरीन नीली किताब में दिए गये विषयों पर बातें करते रहे।

यही वज़ह थी कि जब मैं गोदाम में अकेला था और मेरा ज़मीर मुझसे कह रहा था कि दवाइयों की चोरी करना और उन्हें बेचना बिलकुल गलत है। मैं चुपचाप वहाँ से सीधा घर चला गया था। उसी पल मैंने फैसला कर लिया था कि अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा।

एक नई शख्सियत

उसके बाद, मैंने अपने परिवार को बताया कि मैंने एक नयी साफ-सुथरी ज़िंदगी जीने का फैसला कर लिया है। बाइबल से जो सच्चाई मैंने सीखी थी वह मैंने उनको बताई, लेकिन मेरे पिताजी को वे बातें अच्छी नहीं लगीं और उन्होंने मुझे घर से निकालने की कोशिश की मगर मेरे छोटे भाई जॉन ने उन्हें रोक लिया। उसने पिताजी से कहा, “कॉस्टा ने ज़िंदगी में पहली बार कोई नेक काम किया है और आप हैं कि उसे घर से बाहर निकालना चाहते हैं? मैं तो इसके बारे में और भी सीखूँगा।” फिर जब जॉन ने मुझसे बाइबल स्टडी करने के लिए कहा तो मेरी खुशी की सीमा नहीं थी। उस समय से जो भी मेरे पास ड्रग्स लेने आता, मैं उसे ड्रग्स के बजाय सत्य किताब देता। जल्द ही, मैंने इस किताब से 11 लोगों के साथ बाइबल स्टडी शुरू कर दी।

बाद में मुझे पता चला कि कंपनी का मैनेजर साक्षी नहीं था बल्कि उसकी पत्नी करीबन 18 साल से यहोवा का साक्षी थी। मैनेजर इसलिए साक्षी नहीं बना क्योंकि “सच्चाई सीखने के लिए उसके पास बिलकुल समय नहीं था। इसी वज़ह से उसने मेरी स्टडी के लिए तजुर्बेकार साक्षी का इंतज़ाम किया था। स्टडी से मैंने जाना कि मुझे ज़िंदगी में बहुत सारी तबदीलियाँ करनी पड़ेगी। जल्द ही मैंने देखा कि परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई ने मुझे दुनिया के बेकार तौर-तरीकों की बेड़ियों से आज़ाद कर दिया है।—यूहन्‍ना 8:32.

चंद हफ्तों में जिस तेज़ी से मेरी ज़िंदगी बदली थी, उसके बारे में सोचकर मुझे खुद पर अचरज होता था। जब बड़ी-बड़ी तबदीली करने की बारी आई तो मुझे बहुत मुश्‍किल हुई। मुझे लगा कि सच्चाई की राह पर चलते रहने के लिए मुझे लगातार अपनी बुरी इच्छाओं से लड़ते रहना होगा। और दूसरी तरफ, अगर मैं जुर्म के रास्ते पर चला तो मेरा अंजाम या तो ज़िंदगी-भर जेल की सलाखों के पीछे या फिर मौत होगा। इस बारे में मैंने काफी गहराई से सोचा और मन लगाकर यहोवा से प्रार्थना की। आखिरकार मैंने यही फैसला किया कि मैं सच्चाई की राह पर चलता रहूँगा। छ: महीने बाद, अप्रैल 4, 1971 को मैंने अपना जीवन परमेश्‍वर को समर्पण करके बपतिस्मा ले लिया।

सही मार्ग पर चलने की आशीष

जब से मैंने बुराई का रास्ता छोड़ा है, तब से मुझे कई आशीषें मिली हैं। जब भी मैं उनको याद करता हूँ तो मेरा दिल खुशी से भर जाता है। मुश्‍किलों का सामना करते हुए शुरू-शुरू में मैंने जिन 11 लोगों को बाइबल स्टडी कराई थी उनमें से 5 आज भी सच्चाई के रास्ते पर चल रहे हैं। मेरी माँ ने भी बाइबल स्टडी की और बपतिस्मा लिया। वह 1991 तक जिंदा रही, और अपनी आखिरी सांस तक वफादारी से यहोवा की सेवा करती रही। मेरे दो छोटे भाइयों ने भी अपना जीवन यहोवा को समर्पित किया और आज वे कलीसिया के प्राचीन हैं। मैंने अपनी मौसी को भी सच्चाई सिखाई और वह पिछले 15 सालों से पूर्ण-समय की सेवकाई करती आ रही है।

दवाई बनानेवाली जिस कंपनी में मैं काम करता था, उसके मैनेजर ने जब देखा कि मैं बदल गया हूँ तो उसने भी बाइबल की सच्चाई के बारे में गंभीरता से सोचा। मेरे बपतिस्मे के एक साल बाद उसने भी अपना जीवन परमेश्‍वर को समर्पित करके बपतिस्मा ले लिया। उसने प्रिटोरिया की एक कलीसिया में कई सालों तक प्राचीन के रूप में सेवा की।

मेरी शादी एक मसीही लड़की से हुई जिसका नाम लियोनी है। 1978 में हम ऑस्ट्रेलिया में आकर बस गए। यहाँ हमारे दो बेटे पैदा हुए जिनके नाम इलाइजा और पॉल है। मेरे परिवार ने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया है। मुझे यह बताने में खुशी हो रही है कि आज मैं ऑस्ट्रेलिया की राजधानी, कैनबैरा की कलीसिया में एक प्राचीन हूँ। मैं हर दिन परमेश्‍वर का धन्यवाद करता हूँ कि उसने मुझे जुर्म की खाई से बाहर निकाल लिया है। क्योंकि अगर मैं वही गिरा रहता तो हमेशा मुसीबतें झेलता रहता और मौत की नींद सो जाता। सबसे ज़्यादा खुशी की बात तो यह है कि परमेश्‍वर ने मुझे और मेरे अज़ीज़ों को जीने की एक बढ़िया राह दिखाई है जिससे उन्हें और मुझे ज़िंदगी में एक मकसद मिला है।

[फुटनोट]

^ वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित।

[पेज 18 पर तसवीर]

जब मैं 12 साल का था

[पेज 18 पर तसवीर]

अपनी पत्नी और दो बेटों के साथ