इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

युगल गायकों का अनोखा अंदाज़

युगल गायकों का अनोखा अंदाज़

युगल गायकों का अनोखा अंदाज़

केन्या के सजग होइए! संवाददाता द्वारा

दो गायक एक-दूसरे की तरफ देखकर अपनी कला दिखाने के लिए तैयार हो गए। पहले गायक ने धीरे से सर झुकाया और धीमी आवाज़ में गाना शुरू किया। गाना इतना साफ, मधुर और सुरीला है कि सुबह की ताज़ी हवा में दूर-दूर तक उसकी आवाज़ गूँज रही है। उसी तरह दूसरा गायक भी बड़े अंदाज़ से सर झुकाता है और सही समय पर उतनी ही मीठी आवाज़ में गाना शुरू करता है। वह पहले गायक से भी ऊँचे सुर में गाता है। जब दोनों मस्त होकर गाने लगते हैं और उनकी आवाज़ ऊपर उठने लगती है तो ऐसा लगता है कि दो नहीं बल्कि एक ही कलाकार गा रहा है। उनकी धुन इतनी मधुर थी कि सुनने के लिए मैंने कुछ पल के लिए अपनी साँसें रोक ली! और आवाज़ में ऐसी मिठास और ऐसा निराला अंदाज़ था कि तारीफ के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं।

इस शानदार गाने का प्रदर्शन, किसी सिम्फनी हॉल में नहीं हुआ था बल्कि यह केन्या में, मेरे घर के पास एक पेड़ की डाली पर दो पंछियों द्वारा पेश किया गया था। जब उनका गाना खत्म हुआ तो दोनों सीधे खड़े होकर पंख फैलाए झट-से उड़ गए।

“कबूतर कबूतर के साथ, बाज बाज के साथ।” यह कहावत कितना सच है, क्योंकि अकसर देखा गया है कि एक ही तरह के पंछी न सिर्फ एक दूसरे के साथ रहना पसंद करते हैं बल्कि एक साथ मिलकर गाना भी पसंद करते हैं। इतना ही नहीं जब एक गाना शुरू करता है, तो दूसरा भी सही वक्‍त पर उसके साथ सुर मिलाकर गाने लगता है। दोनों पंछियों का स्वर एक-दूसरे में इतना मिल जाता है कि जब तक आँखों से न देखो तो पता लगाना मुश्‍किल है कि गानेवाला एक नहीं दो हैं! यहाँ तक कि इस मामले में वैज्ञानिक भी धोखा खा चुके हैं। हाल ही में उन्हें मालूम चला कि दो पंछियों का एक ही सुर में गीत गाना दरअसल उनकी कुदरती देन है।

घंटी-पक्षी

मिसाल के तौर पर, गर्म प्रदेशों में पाए जानेवाले पंछी बूबू को ही लीजिए। युगल-गीत गाने में ये पंछी बहुत ही माहिर होते हैं। ये अफ्रीका महाद्वीप में पाए जाते हैं। उनके गीत बाँसुरी की धुन जैसे मीठे और अपने आप में बेमिसाल होते हैं। अकसर उनके गीत किसी घंटी की आवाज़ की गुंजन जैसे लगते हैं इसीलिए उन्हें आम तौर पर घंटी-पक्षी कहा जाता है। और बूबू के रंग-रूप का तो क्या कहने! उसका रंग सर के ताज से लेकर गर्दन के पीछे और उसके पंखों तक बिलकुल काला और चमकीला होता है। उसकी छाती बर्फ-सी सफेद होती है तो उसके काले पंखों पर सफेद धारियाँ होती हैं जो उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा देते हैं। बूबू हमेशा जोड़े में पाये जाते हैं यानी नर और मादा एक-साथ रहते हैं और उनका रंग-रूप भी एक जैसा ही होता है।

घने जंगलों से गुज़रते समय, इससे पहले कि बूबू पंछी आँखों से नज़र आए, उसकी हाज़िरी की खबर मिल जाती है। अकसर नर पंछी लगातार तीन बार घंटी की धुन जैसी आवाज़ निकालता है। इसके जवाब में तुरंत मादा पंछी टरटराती हुई क्वी-क्वी सी आवाज़ देती है। कभी-कभी एक पंछी लगातार एक-के-बाद-एक धुन निकालता जाता है और दूसरा पंछी बड़ी कुशलता से गीत के बीच में उसके साथ सुर-में-सुर मिलाता है। उसकी मधुर आवाज़ पहले पंछी के गीत में कोई रुकावट पैदा नहीं करती है बल्कि गीत की बहती धारा में मिल जाती है।

वैज्ञानिक अभी तक पूरी तरह से समझ नहीं पाये हैं कि आखिर ये बूबू किस तरह सुर-में-सुर मिलाकर गा लेते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि कुछ पंछियों के साथ यह कहावत सच है: “करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।” नर और मादा पंछी हर रोज़ साथ-साथ गाते रहते हैं और इसी अभ्यास की वज़ह से वे सुर-में-सुर मिलाकर गाने की कला हासिल कर लेते हैं।

दिलचस्पी की बात तो यह है कि बूबू के “गाने की शैली” अलग-अलग जगह के मुताबिक अलग-अलग होती है। इसकी एक वज़ह यह हो सकती है कि बूबू अपने आस-पास के आवाज़ या दूसरे पंछियों के गाने की आवाज़ की नकल करते रहते हैं। इसीलिए हम देखते हैं कि दक्षिण अफ्रीका के जंगलों में पाये गये बूबू के गीतों और पूर्वी अफ्रीका के ग्रेट रिफ्ट वैली के बूबू के गीतों में थोड़ा-बहुत फर्क होता है।

ज़िंदगी-भर का साथ

द ट्राइल्स ऑफ लाइफ के किताब में डेविड एट्टनबरो ने कहा, “यह बात दिल को छू जाती है कि युगल-गीत गानेवाले पंछी मौसम-बे-मौसम यहाँ तक कि मरते दम तक एक-दूसरे का साथ निभाते हैं, मानो यह उनके लिए कोई कानून हो।” उनके इस अटूट रिश्‍ते का राज़? एट्टनबरो जवाब देता है, “वे डाली में एक-दूसरे के बगल बैठकर गाने का अभ्यास करते हैं। इससे न सिर्फ उनके गाने की कला बढ़ती है बल्कि उनका आपसी रिश्‍ता भी मज़बूत होता है। और अगर कभी भी दोनों में से एक मौजूद न हो तो दूसरा पंछी अकेला ही पूरे गीत को गा लेता है और इस तरह दूसरे की कमी को पूरा कर देता है।”

घने जंगल में वे एक-दूसरे से दूर चाहे जहाँ भी हों, वे अपने गीतों के ज़रिए एक-दूसरे का पता लगा लेते हैं। जब नर पंछी यह जानना चाहता है कि मादा कहाँ है, तो वह एक-के-बाद-एक धुन गाना शुरू करता है और मादा चाहे कितनी भी दूर क्यों न हो, वह उससे सुर मिलाना शुरू कर देती है। उनके सुर का ताल-मेल इतने अच्छी तरह बैठता है कि लगता है, मानो दोनों ने पहले से ही प्लैन किया हो।

काम के वक्‍त गाना सुनना

क्या आप काम करते समय संगीत सुनना पसंद करते हैं? देखा गया है कि बहुत सारे पंछी काम करते समय संगीत सुनना पसंद करते हैं। माइकल ब्राइट की किताब द प्राइवेट लाइफ ऑफ बर्डस्‌ में यह जानकारी दी गई है कि पंछियों पर एक-दूसरे के गीतों का काफी असर पड़ता है। वह कहता है कि किसी पंछी को गाते सुनकर “नर और मादा पंछी के दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है।” और तो और, कई मादा पंछी किसी नर पंछी को गाते सुनकर “अपना घोंसला जल्दी बना लेती हैं” और “अण्डे भी ज़्यादा देती हैं।”

इसमें कोई शक नहीं है कि वैज्ञानिक युगल गायकों के बारे में और भी अनोखी बातें पता करते रहेंगे जिस तरह उन्होंने गर्म प्रदेश के बूबू की बारे में की। उनके मधुर गीतों का चाहे जो भी मकसद हो, मगर हमें एक बात हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि वे एक और बड़ा मकसद पूरा करते हैं। वे अपने गीतों से दूसरों को खुशी पहुँचाते हैं और जो इंसान इनके गीतों की कदर करता है वह ऐसे लाजवाब संगीत को सुनकर परमेश्‍वर की महिमा करता है जो ‘आकाश के पक्षियों’ का सिरजनहार है।—भजन 8:8.