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आत्म-हत्या—समाज में फैला गुप्त रोग

आत्म-हत्या—समाज में फैला गुप्त रोग

आत्म-हत्या—समाज में फैला गुप्त रोग

जॉन और मॆरी * अमरीका के एक कस्बे में छोटे-से घर में रहते हैं। उनकी उम्र 50 से ऊपर हो चुकी है। जॉन एंफिसीमा का रोगी है। इस बीमारी में रोगी का हृदय न तो गंदा खून साफ कर पाता और न ही खून को पूरे शरीर में ठीक से पहुँचा पाता है। इस बीमारी की वज़ह से जॉन धीरे-धीरे मौत की डगर पर बढ़ता जा रहा है। यह देखकर मॆरी का कलेजा मुँह को आने लगता है कि कैसे जॉन धीरे-धीरे खत्म हो रहा है, और एक-एक साँस लेने के लिए उसे कितनी तकलीफ होती है। मगर जॉन की मौत के बारे में, मॆरी सपने में भी नहीं सोच सकती। मॆरी खुद भी एक रोगी है, और तो और वह कई सालों से डिप्रेशन की भी शिकार है। ढेर सारी दवाइयाँ खाने की वज़ह से उसके दिमाग पर बहुत बुरा असर पड़ा है, इसलिए वह ठीक से सोच भी नहीं पाती। आजकल मॆरी अकसर कहती है, जॉन को मरता हुआ देखने से पहले मुझे मौत आ जाए, और पिछले कुछ दिनों से तो वह खुदकुशी करने की बातें भी करने लगी है। इसलिए जॉन को खुद से ज़्यादा मॆरी की चिंता खाए जा रही है।

जॉन और मॆरी का घर दुनिया भर की दवाइयों से भरा पड़ा था जैसे हार्ट पिल्स्‌ (हृदय रोग की गोलियाँ), ऐंटी-डिप्रेसन्ट्‌स और ट्रैंक्विलाइज़र और ना जाने क्या-क्या। एक दिन मॆरी सुबह-सुबह उठी और रसोईघर में जाकर अंधाधुंध गोलियाँ खाने लगी। वह रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। तभी अचानक जॉन वहाँ आ गया और उसके हाथों से गोलियाँ छीन लीं। उसने फौरन बचाव-दल को फोन किया मगर अफसोस जब तब वे पहुँचे तब तक मॆरी कोमा में जा चुकी थी। जॉन यही दुआ कर रहा था कि बस किसी तरह मॆरी बच जाए।

आँकड़ों से क्या पता चलता है

जब एक जवान के सामने मौज-मस्ती और अपने अरमानों को अंजाम देने के लिए पूरी ज़िंदगी पड़ी हो, उस वक्‍त वह खुद को ही मिटा दे, इससे ज़्यादा दुःख की बात और क्या हो सकती है? आज हमें यही देखना पड़ रहा है। नौजवान बड़ी तादाद में आत्म-हत्या कर रहे हैं। इसलिए इस समस्या को लेकर ढेरों लेख छापे जाते हैं। मगर दूसरी तरफ जब बुज़ुर्ग लोग आत्म-हत्या करते हैं तो कई देशों में अकसर उसे कोई अहमियत नहीं दी जाती। पिछले पेज पर दिए गए बक्स में अलग-अलग देशों में आत्म-हत्या की दर बताई गई है। कुछ देशों में यह दर बहुत ज़्यादा है और कुछ में कम। लेकिन सच्चाई यह है कि बुज़ुर्गों द्वारा आत्म-हत्या करने की दर, हर देश में बढ़ रही है। इन आँकड़ों को देखने पर एक बात साफ नज़र आती है कि बुज़ुर्गों द्वारा आत्म-हत्या समाज में फैला ऐसा गुप्त-रोग है जो पूरी दुनिया को अपने चंगुल में जकड़े हुए है।

यू.एस. सॆंटर्स फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल की 1996 की रिपोर्ट के मुताबिक 1980 से अमरीका में 65 से ज़्यादा उम्र के लोगों की, आत्म-हत्या करने की संख्या में 36 प्रतिशत की बढ़ौतरी हुई। और सिर्फ 1996 में ही 9 प्रतिशत की बढ़ौतरी हुई थी। पिछले चालीस सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ था। अमरीका में बूढ़े लोगों की सबसे ज़्यादा मौत गिरने और एक्सीडेंट की वज़ह से होती है लेकिन इन आँकड़ों को देखकर पता लगता है कि बुज़ुर्ग लोग बड़े पैमाने पर आत्म-हत्या कर रहे हैं। इन आँकड़ों पर नज़र डालने से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मगर कमाल की बात यह है कि ये आँकड़े एकदम सही नहीं हैं असल में यह गिनती बहुत कम है। इसका कारण बताते हुए अ हैंडबुक फॉर द स्टडी ऑफ स्यूसाइड किताब कहती है कि “डेथ सर्टिफिकेट से इस सच्चाई का पता नहीं चलता कि मरनेवाले वृद्ध-जन की मौत स्वाभाविक थी या आत्म-हत्या।” यही किताब आगे कहती है कि ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सही आँकड़े तो इन आँकड़ों से दुगुने से भी ज़्यादा हैं।

इस सच्चाई को नज़रअंदाज़ करने का क्या अंजाम हुआ? अमरीका भी दूसरे कई देशों की तरह समाज में फैले इस गुप्त रोग का शिकार है। आजकल वहाँ बड़ी तादाद में बुज़ुर्ग लोग आत्म-हत्या कर रहे हैं। इस विषय का विशेषज्ञ, डॉक्टर हर्बर्ट हॆंडिन कहता है: “यह जानते हुए भी कि अमरीका में अधिकतर ढलती उम्र के लोग ही आत्म-हत्या कर रहे हैं, इस समस्या पर कोई खास ध्यान नहीं दिया जा रहा है।” ऐसा क्यों है? वह कहता है, ऐसा शायद इसलिए हो रहा है “क्योंकि वृद्धों में आत्म-हत्या की दर हमेशा से ही ज़्यादा रही है। इसलिए इस ओर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया। मगर नौजवानों में आत्म-हत्या की दर अचानक बढ़ जाने की वज़ह से लोगों में खलबली पैदा हुई है।”

मौत का इरादा जो पूरा होकर रहता है

ये आँकड़े बहुत ज़बरदस्त तो हो सकते हैं, मगर हैं ये महज़ कागज़ पर लिखे नम्बर ही। इनसे हमें मरनेवालों की गिनती तो पता चल सकती है, मगर उनके दिल का दर्द और ज़खमों का पता नहीं चलता। ये उस अकेलेपन को बयान नहीं कर पाते जो जीवन-साथी को खोने पर होता है। ये उस बेबसी का हिसाब नहीं दे सकते जो लंबे अरसे से चली आ रही है। ये उस बुज़ुर्ग की मायूसी और घुटन का इज़हार नहीं कर पाते, जो दूसरों के मोहताज बनने पर होती है। ये उस हताशा को ज़ाहिर नहीं कर पाते हैं जो जानलेवा बीमारी से होती है। नौजवान तो अकसर चंद दिनों की मुसीबतों से घबराकर और जज़बातों में बहकर मौत की नींद सो जाने की कोशिश करते हैं। लेकिन कड़वा सच तो यह है कि जिन मुसीबतों का सामना वृद्ध लोग करते हैं, वे अकसर ऐसी होती हैं जिनसे कभी पीछा नहीं छुट सकता। ऐसी हालत में जब कोई बुज़ुर्ग आत्मा-हत्या का इरादा कर लेता है तो यकीन मानिए, वह उसे पूरा करके ही रहता है।

किताब स्यूसाइड इन अमॆरिका में डॉक्टर हॆंडिन कहता है “आजकल बुज़ुर्ग लोग न सिर्फ नौजवानों से कहीं ज़्यादा आत्म-हत्या कर रहे हैं बल्कि आत्म-हत्या करने में सफल होने में भी नौजवानों को पीछे छोड़ रहे हैं। आम-तौर पर कुल 10 लोग आत्म-हत्या करने की कोशिश करते हैं तो 1 की मौत होती है; अनुमान लगाया गया है कि अगर 100 युवा (15-24 उम्रवाले) आत्म-हत्या करने की कोशिश करते हैं तो सिर्फ 1 सफल होता है। मगर दूसरी तरफ 55 साल से ऊपर की उम्र का अगर एक भी व्यक्‍ति आत्म-हत्या करने की ठान लेता है तो वह करके ही रहता है।”

ये आँकड़े वाकई हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं! कितने दुःख की बात है कि हम भी एक दिन बूढ़े होकर, अपनी ताकत खो बैठेंगे और हमें भी बुढ़ापे में होनेवाली बीमारियों और दुःख-तकलीफों को झेलना पड़ेगा। तो हम समझ सकते हैं कि क्यों इतने सारे वृद्ध लोग आत्म-हत्या कर लेते हैं। मगर फिर भी एक बात कभी मत भूलिए कि ज़िंदगी बहुत अनमोल है। जी हाँ, हालात चाहे कितने ही बुरे क्यों न हो ज़िंदा रहने का वाकई एक मकसद है। अब आइए ध्यान दें कि उस मॆरी का क्या हुआ जिसका ज़िक्र हमने लेख की शुरूआत में किया था।

[फुटनोट]

^ नाम बदल दिए गए हैं।

[पेज 3 पर चार्ट]

प्रति 1,00,000 लोगों की उम्र और लिंग के मुताबिक आत्म-हत्या की दर

15से 24 वर्ष 75 से ज़्यादा वर्ष

पुरुष/स्त्री देश पुरुष/स्त्री

8.0/2.5 अर्जेंटाइना 55.4/8.3

4.0/0.8 ग्रीस 17.4/1.6

19.2/3.8 हंगरी 168.9/60.0

10.1/4.4 ज़ापान 51.8/37.0

7.6/2.0 मेक्सिको 18.8/1.0

53.7/9.8 रूस 93.9/34.8

23.4/3.7 अमरीका 50.7/5.6