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एक पक्का वादा

एक पक्का वादा

एक पक्का वादा

करीब दो हज़ार साल पहले, दुनिया के सबसे महान व्यक्‍ति यीशु को बेकसूर होते हुए भी मौत की सज़ा सुनाई गई थी। जब वह सूली पर लटका हुआ था तो उसके साथ एक अपराधी भी सूली पर लटका हुआ था। उस अपराधी ने यीशु को ताना मारा: “क्या तू मसीह नहीं? तो फिर अपने आप को और हमें बचा।”

इस पर एक दूसरे अपराधी ने जिसे उन दोनों के साथ-साथ सज़ा मिली थी, पहले अपराधी को डाँटते हुए कहा: “क्या तू परमेश्‍वर से भी नहीं डरता? तू भी तो वही दण्ड पा रहा है। और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे हैं, क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं; पर इस ने कोई अनुचित काम नहीं किया।” तब उस ने यीशु से गुज़ारिश की: “जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना।”

यीशु जवाब में कहता है कि “आज तुझ से मैं वादा करता हूँ कि तू मेरे साथ फिरदौस में होगा।”—लूका 23:39-43 NW.

यीशु के सामने एक शानदार आशा थी और इसका उस पर क्या असर पड़ा इसके बारे में पौलुस लिखता है: “जिस ने उस आनन्द के लिये जो उसके आगे धरा था, लज्जा की कुछ चिन्ता न करके, क्रूस का दुख सहा।”—इब्रानियों 12:2.

यीशु के आगे जो “आनन्द” था उसमें कई चीज़ें शामिल थी। स्वर्ग में फिर से अपने पिता के साथ रहने और आगे चलकर यहोवा के राज्य का राजा बनने का सुअवसर। इसके अलावा उसके शिष्य जो अपनी वफादारी को साबित करते हैं, उनका स्वर्ग में स्वागत करने में यीशु को बेहद खुशी मिलती। और यही शिष्य राजाओं के तौर पर यीशु के साथ मिलकर पृथ्वी पर शासन करेंगे। (यूहन्‍ना 14:2, 3; फिलिप्पियों 2:7-11; प्रकाशितवाक्य 20:5, 6) तो फिर यीशु का क्या मतलब था जब उसने उस अपराधी से कहा कि वह उसके साथ फिरदौस में होगा?

उस अपराधी के लिए क्या उम्मीद?

यीशु उनके बारे में यह कहता है जो स्वर्ग में उसके साथ राज करते: “तुम वह हो, जो मेरी परीक्षाओं में लगातार मेरे साथ रहे। और जैसे मेरे पिता ने मेरे लिये एक राज्य ठहराया है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे लिये ठहराता हूं।” (लूका 22:28-30) इस आयत के मद्देनज़र वह अपराधी स्वर्ग में राज्य करनेवालों में होने के योग्य नहीं था। फिर भी यीशु ने उससे यह वादा किया कि वह उसके साथ फिरदौस में होगा। तब सवाल यह उठता है कि आखिर यह कैसे होगा?

यहोवा ने जब पहले स्त्री और पुरुष, आदम और हव्वा को बनाया तो उसने उन्हें एक बेहद खूबसूरत बगीचे या फिरदौस में रखा जिसका नाम था अदन का बाग। (उत्पत्ति 2:8,15) यहोवा का मकसद था कि पूरी दुनिया एक खूबसूरत बाग बन जाए। मगर आदम और हव्वा ने परमेश्‍वर का हुक्म तोड़ा और उन्हें अपने खूबसूरत घर से निकाल दिया गया। (उत्पत्ति 3:23, 24) पर जैसा यीशु ने बताया यह पृथ्वी फिर से एक सुंदर बाग बन जाएगी।

जब प्रेरित पतरस ने यीशु से पूछा कि उसके नक्शेकदम पर चलने से उसको और दूसरे प्रेरितों को क्या मिलेगा तो यीशु ने जवाब दिया: ‘नई उत्पत्ति से जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा के सिंहासन पर बैठेगा, तो तुम भी जो मेरे पीछे हो लिए हो, बारह सिंहासनों पर बैठोगे।’ (मत्ती 19:27,28) इस घटना के बारे में लूका की किताब जो बताती है वह गौर करने लायक है। इस किताब में “नई उत्पत्ति” लिखने के बजाय लूका ने “आने वाले युग” जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है।—लूका 18:28-30. NHT

जब यीशु अपने संगी राजाओं के साथ राजगद्दी पर बैठेगा तो वह एक नयी दुनिया बसाएगा जिसमें धार्मिकता वास करेगी। (2 तीमुथियुस 2:11, 12; प्रकाशितवाक्य 5:10; 14:1, 3) जी हाँ, पूरी दुनिया को खूबसूरत बाग बनाना यहोवा का मकसद है। और यीशु के स्वर्गीय राज के ज़रिए यह मकसद हर हाल में पूरा होकर रहेगा!

इस राज के दौरान यीशु, उस अपराधी से किया गया अपना वादा पूरा करेगा। वह नयी दुनिया में उसे फिर से जी उठाएगा। तब उसे एक मौका दिया जाएगा जिससे कि वह परमेश्‍वर की माँगों को पूरा कर सके और फिर हमेशा-हमेशा के लिए इस राज्य की एक प्रजा बनकर रहे। क्या यह हमारे लिए खुशी की बात नहीं कि बाइबल के मुताबिक हमें भी पृथ्वी पर फिरदौस में हमेशा के लिए जीने का मौका मिलेगा?

जीवन का मकसद मिल सकता है

ज़रा सोचिए कि अगर हमारे सामने ऐसी शानदार आशा है तो हमारी ज़िंदगी का क्या ही बेहतरीन मकसद हो सकता है। मन में ऐसी आशा होने से हमारा दिमाग बुरे सोच-विचार या ज़िंदगी से मायूस हो जाने जैसी बातों से दूर रहता है। प्रेरित पौलुस के मुताबिक हमारे आध्यात्मिक हथियारों में आशा भी एक अहम हथियार है। उसने कहा कि हमें “उद्धार की आशा का टोप” पहिनना है।—1 थिस्सलुनीकियों 5:8; भजन 37:29; प्रकाशितवाक्य 21:3, 4.

यह आशा हमें आज की दुनिया में मुसीबतों का सामना करने और आगे बढ़ते रहने की हिम्मत देती है। नयी दुनिया में कोई भी अकेला नहीं रहेगा क्योंकि “परमेश्‍वर . . . जो मरे हुओं को जिलाता है” हमारे मरे हुए प्रिय अज़ीज़ों को फिर से जिंदा करेगा। (2 कुरिन्थियों 1:9) और तब हमारी आँखों में गम के आँसुओं के बजाय खुशियों के आँसू होंगे। और तब शारीरिक कमज़ोरी, दर्द और बेजान होने से जो निराशा होती है, नहीं रहेगी क्योंकि “लंगड़ा हरिण की सी चौकड़िया भरेगा।” उस वक्‍त हर व्यक्‍ति की “देह बालक की देह से अधिक स्वस्थ और कोमल हो जाएगी” और उसकी ‘जवानी के दिन फिर से लौट आएंगे।’—यशायाह 35:6; अय्यूब 33:25.

उस समय, ये सब बातें हमारे मन में नहीं आएँगी कि एक वक्‍त हम एक बुरी बीमारी से लड़ते-लड़ते हताश हो गए थे। इसलिए कि तब “कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूं।” (यशायाह 33:24) तब डिप्रेशन की वज़ह से किसी भी तरह का दुःख और अकेलापन ‘सदा के आनन्द’ में बदल जाएगा। (यशायाह 35:10) तब मानवजाति के सबसे पुराने दुशमन मौत का अंत हो जाएगा और उसके साथ-साथ निराश कर देनेवाली जानलेवा बीमारियाँ भी खत्म हो जाएँगी।—1 कुरिन्थियों 15:26.

[पेज 8, 9 पर तसवीरें]

परमेश्‍वर की नयी दुनिया की शानदार आशा को अपनी आँखों से ओझल मत होने दीजिए