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ज़िंदगी जीने का मकसद मिला

ज़िंदगी जीने का मकसद मिला

ज़िंदगी जीने का मकसद मिला

यह माना कि मॆरी को ज़बरदस्त डिप्रेशन के साथ-साथ और भी कई तकलीफें थीं मगर ध्यान देने लायक बात यह है कि मॆरी ने खुदकुशी इसलिए नहीं की थी कि उसके परिवारवाले उसकी परवाह नहीं करते थे या उसे अकेला छोड़ दिया था। ना ही उसे शराब और ड्रग्स लेने की बुरी लत थी। मॆरी का मामला इस बात का जीता-जागता सबूत है कि एक इंसान अचानक आत्म-हत्या कर सकता है और ज़रूरी नहीं कि उसके ऐसा कदम उठाने से पहले हमें खतरे के कई आसार नज़र आएँ।

अस्पताल में पड़ी मॆरी को देखकर एक पल यूँ लगा कि वह भी आत्म-हत्या करनेवाले वृद्ध लोगों के आँकड़े की महज़ एक गिनती बनकर रह जाएगी। वे आँकड़े जो इस बात का सबूत देते हैं कि बूढ़े लोग अगर आत्म-हत्या की ठान लें तो करके ही रहते हैं। मॆरी कई दिनों तक इंटॆन्सिव केयर में कोमा में थी। उसकी ज़िंदगी का दिया बुझता नज़र आ रहा था। जॉन तो बावला-सा हो गया था और घड़ी भर के लिए भी मॆरी को अकेला नहीं छोड़ता था। डॉक्टरों ने भी टका-सा जवाब दे दिया था। उन्होंने जॉन से कह दिया था कि अगर मॆरी बच भी गई तो उसके दिमाग को हमेशा के लिए फालिज मार जाएगा।

मॆरी की एक पड़ोसन थी जिसका नाम सैली था। वह उसे हर दिन अस्पताल में मिलने आती थी। दरअसल सैली यहोवा की एक साक्षी है। सैली कहती है कि “मैंने उसके परिवारवालों से कहा कि ‘हौसला रखो, सब कुछ ठीक हो जाएगा।’ मैंने उन्हें बताया ‘मेरी माँ शूगर की मरीज़ थी और कुछ साल पहले वह भी कोमा में चली गई थी। डॉक्टरों ने हमसे कह दिया था कि उसका बचना मुश्‍किल है लेकिन वह बच गई।’ जब मेरी माँ कोमा में थी तो मैं उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उससे बातें किया करती थी। मॆरी के साथ भी मैंने ठीक वैसा ही किया और मुझे कभी-कभी आभास होता था कि उसके शरीर में हलकी-सी हरकत हो रही है।” तीसरे दिन तो पूरा यकीन होने लगा था कि वाकई उसके शरीर में जान आने लगी है। हालाँकि वह बोल नहीं सकती थी मगर लगने लगा था कि उसने लोगों को पहचानना शुरू कर दिया है।

‘क्या मैं इसे होने से रोक सकता था?’

सैली आगे कहती है कि इस हादसे की वज़ह से “जॉन खुद को कसूरवार मानता था और उसे पूरा यकीन था कि यह सब उसी की वज़ह से हुआ।” अकसर यही होता है कि जब हमारा कोई अपना ऐसा कदम उठाता है तो हम खुद को कसूरवार मानने लगते हैं। सैली कहती है “मैंने जॉन को याद दिलाया ‘मॆरी को क्लिनिकल डिप्रेशन था ना? और इसीलिए उसका इलाज भी चल रहा था, है ना? तो साफ है कि उसने दिमागी बीमारी की वज़ह से ही यह कदम उठाया। इसके ज़िम्मेदार तुम नहीं हो जॉन। देखो ना, अब तुम बीमार हो, इसमें तुम्हारा कोई कसूर नहीं।’”

जिन लोगों के अज़ीज़ आत्म-हत्या कर लेते हैं उन्हें मन-ही-मन यही बात खाए जाती है कि काश मैं इस हादसे को रोकने के लिए कुछ कर पाता। अगर आप खतरे के आसार को पहचानने में चौकन्‍ने रहें तो आप आत्म-हत्या करने की कोशिश को नाकाम कर सकते हैं। फिर भी अगर आप अपने अज़ीज़ को ऐसा करने से नहीं रोक पाए हैं तो ध्यान में रखिए कि अपनी जान लेने के लिए सिर्फ वह खुद ज़िम्मेदार है, आप नहीं। (गलतियों 6:5) इस बात को ध्यान में रखना तब ज़्यादा ज़रूरी होता है जब परिवार का एक सदस्य अपने ही घर के किसी दूसरे सदस्य को सबक सिखाने या उससे बदला लेने के लिए उसके माथे अपनी मौत का इलज़ाम मढ़ना चाहता है। डॉक्टर हॆंडिन जिसके बारे में पिछले लेख में बताया गया था कहता है: “इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए कि आत्म-हत्या करने के लिए खतरनाक कदम उठानेवालों में ज़्यादातर लोग दूसरों की हमदर्दी हासिल करने या किसी को सबक सिखाने के लिए ऐसा करते हैं। यह अलग बात है कि भले वे खुद यह देखने के लिए मौजूद ना हों कि उनकी कोशिश कामयाब रही या नहीं।”

डॉक्टर हॆंडिन आगे कहता है: “वृद्ध लोग जो अपनी जान लेने की कोशिश करते हैं वे अकसर अपने जवान बच्चों, भाई-बहनों या फिर पति-पत्नी से अपना कहना मनवाना चाहते हैं और चाहते हैं कि वे ज़रूरत से ज़्यादा उनका ख्याल रखें और उनकी हर बात मानें। कुछ माँगों को पूरा करना बिलकुल नामुमकिन होता है मगर फिर भी ये बुज़ुर्ग चाहते हैं कि उनकी माँगों को पूरा किया जाए क्योंकि इन्हें ना सुनना बिलकुल पसंद नहीं होता। इसलिए वे एक दो बार धमकी के तौर पर आत्मा-हत्या करने की कोशिश करते हैं लेकिन बाद में जब उन्हें लगने लगता है कि उनकी माँग पूरी नहीं हो रही तो वे सचमुच में अपनी जान ले लेते हैं।”

कई लोग डिप्रेशन, मानसिक रोग या फिर निराशा की वज़ह से आत्म-हत्या कर बैठते हैं। ऐसे में उनके परिवार के सदस्य एक तरीके से बिलकुल टूट जाते हैं या उन्हें ऐसा बोझ महसूस होता है जिसे उठाना मुश्‍किल हो। फिर भी, यह कभी मत भूलिए कि यहोवा परमेश्‍वर ने मरे हुए लोगों को जी उठाने का वादा किया है और उन्हें शायद अपने प्रिय जन को दोबारा देखने का मौका मिले।—अँग्रेज़ी के सजग होइए! के सितंबर 8, 1990 के पेज 22-3 पर यह लेख देखिए जिसका शीर्षक है “बाइबल का दृष्टिकोण: आत्म-हत्या—पुनरुत्थान की आशा?”

हालाँकि आत्म-हत्या को उचित ठहराया नहीं जा सकता मगर फिर भी यह जानकर हमें हौसला मिलता है कि हमारे मरे हुए प्रिय जन का भविष्य परमेश्‍वर के हाथों में है। ऐसा हम क्यों कह सकते है? क्योंकि सिर्फ परमेश्‍वर ही उन लोगों को समझ सकता है जिनकी कमज़ोरियों और खामियों ने उन्हें अपनी जान लेने पर मजबूर कर दिया था। यहोवा के बारे में बाइबल हमें यह बताती है: “जैसे आकाश पृथ्वी के ऊपर ऊंचा है, वैसे ही उसकी करुणा उसके डरवैयों के ऊपर प्रबल है। उदयाचल अस्ताचल से जितनी दूर है, उस ने हमारे अपराधों को हम से उतनी ही दूर कर दिया है। जैसे पिता अपने बालकों पर दया करता है, वैसे ही यहोवा अपने डरवैयों पर दया करता है। क्योंकि वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही हैं।”—भजन 103:11-14.

खतरा टल गया

उस मॆरी का क्या हुआ जिसका हमने शुरू में ज़िक्र किया था? मॆरी दो दिन तक ज़िंदगी और मौत के बीच झूलती रही, लेकिन आखिर में वह मौत से जीत गई। धीरे-धीरे उसकी दिमागी हालत सुधरने लगी और जॉन उसे घर ले आया। घर की सारी दवाइयाँ ताले में रखी हुई थीं। अब नियमित रूप से कई समाज सेवक उससे मिलने आते थे, ये लोग मानसिक स्वास्थ्य से पीड़ित लोगों के लिए काम करते हैं। मॆरी अब कहती है कि उसे पिछली कोई भी बात ठीक से याद नहीं। ना उसे उस मनहूस घड़ी की ही कोई याद है जिसमें आवेश में बहकर वह अपनी जान तक लेने पर उतारू हो गई थी।

जॉन और मॆरी की पड़ोसिन सैली अब उनके साथ हर हफ्ते बाइबल का अध्ययन करती है। इस अध्ययन से उन्हें पता चला है कि बहुत जल्द परमेश्‍वर उन मुसीबतों का अन्त करेगा जिनका अंत करना लोगों के लिए दूर की बात है, खासकर बुज़ुर्गों के लिए। सैली कहती है: “यह सच है कि सिर्फ बाइबल अध्ययन शुरू कर देना ही हर मर्ज़ की दवा नहीं है। आपको शास्त्र से खुद अपने आपको यह यकीन दिलाना होगा कि परमेश्‍वर के वादे सच्चे हैं और फिर जो आप सीख रहे हैं, उस पर अमल करना होगा। मुझे लगता है कि जॉन और मॆरी को अपने भविष्य के लिए सचमुच एक बढ़िया आशा मिली है।”

अगर आपको अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा है और आप एक सच्ची आशा पाना चाहते है तो क्यों न आप यहोवा के साक्षियों से मिलें? जॉन और मॆरी की तरह आप भी उन्हें यह साबित करने के लिए एक मौका दीजिए कि कोई भी ऐसी समस्या नहीं जिसे यहोवा परमेश्‍वर खत्म ना कर सके। वह ऐसी हर समस्या को जड़ से मिटा देगा जो आज इंसानों को दुःख पहुँचा रही है। इसलिए अभी हालात चाहे कितने भी बुरे क्यों न हो जाएँ, हौसला रखिए! बहुत जल्द हर समस्या का समाधान हो जाएगा। आइए आप भी हमारे साथ गौर कीजिए कि भविष्य के लिए वह कौन-सी आशा है जिसने बहुतों की जान बचाकर उनमें फिर से जीने की ख्वाहिश पैदा कर दी है।

[पेज 6 पर बक्स]

खतरे के आसार और चेतावनी के चिन्ह

द जर्नल ऑफ दी अमॆरिकन मॆडिकल असोसीएशन मैगज़ीन बताती है कि “बुज़ुर्ग और नौजवान लोग जो आत्म-हत्या करने की सोच रहे हैं उनमें खतरे के आसार एक जैसे होते।” खतरे के कुछ आसार हैं “शराब की लत लगना, डिप्रेशन, आत्म-हत्या करने के भयानक तरीके अपनाना और समाज से अपने आप को अलग कर लेना। इसके अलावा, बुज़ुर्ग लोग, . . . जवान लोगों से ज़्यादा बीमार, परेशान और चिंतित रहते हैं।” स्टीवन फ्लैंडर्स्‌ अपनी किताब स्यूसाइड में कुछ ऐसी ही बातों की सूची देता है जिन्हें आत्म-हत्या की तरफ ले जानेवाले खतरे के आसार माना जा सकता है। इसमें बताए गए खतरे के हर आसार पर गौर करना ज़रूरी है।

लंबे अरसे से चली आ रही डिप्रेशन की शिकायत:

“खोजबीन करनेवाले लोग यह रिपोर्ट देते हैं कि आत्म-हत्या करनेवालों में 50 प्रतिशत से ज़्यादा लोग एक लंबे अरसे से डिप्रेशन के शिकार होते हैं।”

निराशा ही निराशा:

कुछ अध्ययनों से पता चला है कि लोग इसलिए खुदकुशी नहीं करते कि वे मायूस हैं मगर इसलिए करते हैं कि क्योंकि उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय नज़र आता है।

पियक्कड़पन और ड्रग्स लेना:

“यह अनुमान लगाया गया है कि आम लोगों में 1 प्रतिशत से भी कम लोग खुदकुशी करते हैं। जबकि [शराबियों] में से 7 प्रतिशत से लेकर 21 प्रतिशत लोग आत्म-हत्या कर लेते हैं।”

परिवार के हालात:

“अध्ययनों से पता चला हैं कि जिस परिवार में एक सदस्य ने पहले आत्म-हत्या की हो, उस परिवार में दोबारा वही हादसा होने का खतरा रहता है।”

बीमारी:

“बुज़ुर्ग लोग सोचते हैं कि बुढ़ापे में धीरे-धीरे कमज़ोर होना, दूसरों के मोहताज हो जाना, या अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आने से पहले ही खुद को खत्म कर दें तो अच्छा हो।”

खोने का गम:

“जब लोग अपने जीवन साथी, दोस्त, नौकरी या अपना स्वास्थ्य खो बैठते हैं तो हमें इसके बारे में पता चल जाता है। लेकिन तब क्या जब लोग ऐसी चीज़ें खो बैठते हैं जो हमारी आँखों को नज़र नहीं आतीं जैसे कि आत्म-सम्मान, प्रतिष्ठा और सुरक्षा की भावना?”

इन खतरों के आसार के अलावा, फ्लैंडर्स्‌ की किताब में ऐसे चेतावनी चिन्हों के बारे में भी ज़िक्र किया गया है जिन्हें हमें भूलकर भी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।

पहले भी की गई आत्म-हत्या की कोशिश:

“यह इस बात का सबसे बड़ा चेतावनी चिन्ह है कि आत्मा-हत्या की दोबारा कोशिश की जाएगी।”

आत्म-हत्या करने की बातें करना:

“कुछ लोग ऐसा कहते है कि ‘अब उनको मेरे बारे में और चिंता करनी नहीं पड़ेगी’ या ‘मेरे न रहने में उनकी ही भलाई है।’ ये बस कुछ मिसाल हैं साथ ही इस बात के चेतावनी चिन्ह भी हैं कि एक व्यक्‍ति आत्म-हत्या करने की सोच रहा है।”

आखरी इंतज़ाम करना:

“आखरी इंतज़ाम करने में कुछ ऐसे आसार देखे जाते हैं जैसे वसीयत-नामा बनवाना, अपनी अनमोल चीज़ों को दे देना और अपने पालतू जानवरों को किसी और के हवाले कर देना।”

स्वभाव और आचरण में बदलाव:

जब किसी के स्वभाव और आचरण “के साथ-साथ उसकी बातों से पता चलता है कि वह अपने आप को निकम्मा या धरती पर भोज समझता है” तो यह “डिप्रेशन का ऐसा चिन्ह है जो उसे अपने आप को खत्म करने पर मजबूर कर सकता है।”

[पेज 7 पर तसवीर]

जो लोग आत्म-हत्या करते हैं अकसर उनके साथियों को इस कड़वी सच्चाई का सामना करने के लिए मदद और हौसले की ज़रूरत पड़ती है