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झूठ बोलना—क्या इसे कभी-भी जायज़ करार दिया जा सकता है?

झूठ बोलना—क्या इसे कभी-भी जायज़ करार दिया जा सकता है?

बाइबल का दृष्टिकोण

झूठ बोलना—क्या इसे कभी-भी जायज़ करार दिया जा सकता है?

“थोड़ा यहाँ का वहाँ कहकर सौ बातें बताने से बचा जा सकता है।”

इससे ज़ाहिर होता है कि झूठ बोलने के मामले में ज़्यादातर लोगों की क्या राय है। ऐसे लोग अपनी सफाई में कहते हैं कि अगर आपके झूठ बोलने से किसी को नुकसान न पहुँचे, तो फिर इसमें बुराई ही क्या है। पढ़े-लिखे लोग ऐसे सोच-विचार को “सिचुऐशन एथिक्स” का नाम देते हैं और दावा करते हैं कि इस नियम का आधार प्रेम है। जिसके मुताबिक नैतिक नियमों को लकीर-के-फकीरों की तरह मानने के बजाय आपका अपना मन जो कहता है, बस वही कीजिए। या जैसे लेखिका डाइऐन कोम्प कहती है कि “अगर आपका इरादा नेक हो और आपका दिल साफ हो, . . . तो झूठ बोलना कोई गलत बात नहीं है।”

इस तरह सोचना, आजकल दुनिया में आम हो गया है। इसलिए आए दिन ऐसी खबरें सुर्खियों में रहती हैं कि फलाने-फलाने नेता किसी कांड में लिप्त पाया गया मगर वह बचने के लिए झूठ बोल रहा है। और इसका समाज पर इतना बुरा असर हुआ है मानो हर किसी ने सच ना बोलने की कसम खा ली है। कुछ जगहों में तो लोग इसे काम करने की नीति मानते हैं। एक सेल्सगर्ल का कहना है: “मुझे तो पैसे ही झूठ बोलने के मिलते हैं। मैं सेल्स प्रतियोगिता में हिस्सा लेती हूँ और जीत जाती हूँ और हर साल मेरे बारे में कई लेख लिखे जाते हैं, सिर्फ इसलिए कि मैं झूठ बोलती हूँ। . . . एक कामयाब सेल्सगर्ल बनने के लिए ऐसी ट्रेनिंग को सबसे ज़रूरी माना जाता है।” बहुत-से लोगों को लगता है कि थोड़ा बहुत सफेद झूठ बोलने से किसी का नुकसान नहीं होता। मगर क्या यह सच है? क्या वाकई ऐसे कोई हालात हो सकते हैं जिनमें एक मसीही झूठ बोल सकता है?

बाइबल के ऊँचे विचार

बाइबल झूठ बोलने के लिए सख्ती से मना करती है फिर चाहे वह सफेद झूठ हो या काला, थोड़ा हो या ज़्यादा। भजनहार कहता है कि “[परमेश्‍वर] उनको जो झूठ बोलते है नाश करेगा।” (भजन 5:6; प्रकाशितवाक्य 22:15 देखिए।) बाइबल नीतिवचन के 6:16-19 में सात चीज़ों के बारे में कहा गया है जिनसे यहोवा नफरत करता है। जिनमें “झूठ बोलनेवाली जीभ” और “झूठ बोलनेवाला साक्षी” भी शामिल है। ऐसा क्यों? झूठ दूसरों को कितनी बुरी तरह नुकसान पहुँचाता है इस बारे में यहोवा हमसे ज़्यादा जानता है इसलिए उसे ऐसा करनेवालों से नफरत है। शैतान ने झूठ का सहारा लेकर ही इंसान को दुःख, पीड़ा और मौत की दलदल में धकेल दिया है। इसीलिए यीशु ने शैतान को झूठा और हत्यारा कहकर पुकारा।—उत्पत्ति 3:4, 5; यूहन्‍ना 8:44; रोमियों 5:12.

यहोवा झूठ बोलने को किस नज़र से देखता है यह हमें हनन्याह और उसकी पत्नी सफीरा के किस्से से एकदम साफ पता लग जाता है। इन दोनों ने जानबूझकर प्रेरितों से झूठ बोला। वे दिखावा कर रहे थे कि वे कितने बड़े दानवीर हैं लेकिन असल में वे ऐसे नहीं थे। उन्होंने जो किया वह सब सोच-समझकर और जानबूझकर किया था। इसलिए प्रेरित पतरस ने उनके मुँह पर उनका भेद खोल दिया और कहा: ‘तू ने मनुष्यों से नहीं परन्तु परमेश्‍वर से झूठ बोला।’ जी हाँ, परमेश्‍वर ने उन्हें इस झूठ के लिए सज़ाए-मौत दी।—प्रेरितों 5:1-10.

इस घटना के कई साल बाद प्रेरित पौलुस ने मसीहियों से कहा: “एक दूसरे से झूठ मत बोलो।” (कुलुस्सियों 3:9) यह सलाह खासकर मसीही कलीसिया के लिए बेहद ज़रूरी है। यीशु ने कहा कि प्रेम से ही उसके सच्चे चेलों की पहचान होगी। (यूहन्‍ना 13:34, 35) और ऐसा प्रेम जिसमें कोई कपट या दिखावा न हो, कलीसिया में तभी बढ़ेगा जब हर कोई एक दूसरे से सच बोलेगा और एक दूसरे पर विश्‍वास रखेगा। ऐसे इंसान से कोई प्रेम कैसे कर सकता है जिसके बारे में दूसरों को हमेशा शक रहता है कि पता नहीं यह झूठ बोल रहा है या सच?

हालाँकि हर तरह का झूठ गलत है मगर कुछ ऐसे झूठ भी हैं जो बहुत खतरनाक साबित होते हैं। मिसाल के लिए, डर या शर्म की वज़ह से कोई झूठ बोल देता है। मगर जिन लोगों के मन में दुष्टता भरी होती है वे जानबूझकर दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए झूठ बोलते हैं। ऐसे लोग जो अपने बुरे इरादों से बाज़ नहीं आते और ताड़ना मिलने पर भी पछतावा नहीं दिखाते उन्हें कलीसिया से बहिष्कृत कर दिया जाता है। ऐसे लोग वाकई मसीही कलीसिया के लिए एक बड़ा खतरा हैं। जब कोई झूठ बोलता है तो उसे तुरन्त दोषी ठहराने से अच्छा होगा कि पहले हम जान लें कि उसने झूठ क्यों बोला क्योंकि ज़रूरी नहीं कि हर झूठ के पीछे बुरे इरादे ही छिपे हो। इसलिए यह जानना बेहद ज़रूरी है कि किस वज़ह से और किन हालात में एक इंसान ने झूठ बोला।—याकूब 2:13.

‘सांपों की मानिन्द होशियार’

यह सच है कि हम झूठ नहीं बोलते है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अगर कोई हमसे जानकारी हासिल करना चाहे तो हमें उसे सब कुछ बता देना चाहिए। मत्ती 7:6 में यीशु हमें यह चेतावनी दी थी: “पवित्र वस्तु कुत्तों को न दो, और अपने मोती सूअरों के आगे मत डालो; ऐसा न हो कि वे . . . पलटकर तुम को फाड़ डालें।” मिसाल के लिए जिन लोगों के इरादे बुरे हों, उनको हम वे बातें नहीं बताएँगे जिनसे वे अपने इरादों में कामयाब हो सकें। मसीही होने के नाते हम जानते हैं कि हम एक दुष्ट संसार में जी रहे हैं। इसीलिए यीशु ने भी अपने चेलों को यह सलाह दी थी ‘कबूतरों की मानिन्द भोले’ बनो, साथ ही ‘सांपों की मानिन्द होशियार’ भी। (मत्ती 10:16 हिंदुस्तानी बाइबल; यूहन्‍ना 15:19) यीशु ने भी कुछ ऐसी बातें अपने विरोधियों को नहीं बताईं जिनसे उसके चेले मुसीबत में पड़ सकते थे। मगर ऐसे हालात में भी यीशु ने झूठ का सहारा हरगिज़ नहीं लिया। इसके बजाय ऐसे मौके पर वह या तो खामोश रहा या फिर उसने बात को घुमा दिया।—मत्ती 15:1-6; 21:23-27; यूहन्‍ना 7:3-10.

बाइबल इब्राहीम, इसहाक, राहाब और दाऊद जैसे वफादार लोगों के बारे में भी बताती है जिन्होंने अपने दुश्‍मनों का सामना करने के लिए बुद्धि और होशियारी से काम लिया। (उत्पत्ति 20:11-13; 26:9; यहोशू 2:1-6; 1 शमूएल 21:10-14) बाइबल कहती है कि ये सब यहोवा के वफादार सेवक थे जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन किया। और इस वज़ह से हम भी उनकी अच्छी मिसाल पर चल सकते हैं।—रोमियों 15:4; इब्रानियों 11:8-10, 20, 31, 32-39.

कभी-कभी हम ऐसे हालातों का सामना कर सकते हैं जब हमें लगे कि थोड़ा झूठ बोलकर जान बचायी जा सकती है। मगर जब एक मसीही कठिन हालात में यीशु के नक्शे-कदम पर चलता है तो वाकई उसकी तारीफ की जाएगी। साथ ही बाइबल के मुताबिक ढाला गया उसका ज़मीर उसकी मदद करेगा।—इब्रानियों 5:14.

बाइबल हमें हर समय सच्चा और ईमानदार रहने के लिए कहती है। झूठ बोलना सरासर गलत बात है और हमें हमेशा बाइबल की यह सलाह माननी चाहिए: “हर एक अपने पड़ोसी से सच बोले।” (इफिसियों 4:25) ऐसा करने से हमारा ज़मीर हमें नहीं कोसेगा, मसीही कलीसिया में शान्ति और प्रेम होगा और इससे “सत्यवादी ईश्‍वर” की महिमा होगी।—भजन 31:5; इब्रानियों 13:18.

[पेज 20 पर तसवीर]

झूठ बोलने की वज़ह से हनन्याह और सफीरा को अपनी जान से हाथ धोने पड़े