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धर्म मानने की आज़ादी रूस के लोगों को बेहद प्यारी

धर्म मानने की आज़ादी रूस के लोगों को बेहद प्यारी

धर्म मानने की आज़ादी रूस के लोगों को बेहद प्यारी

1991 में सोवियत संघ टूटकर टुकड़े-टुकड़े हो गया। तब से वहाँ के लोगों को अपनी पसंद का धर्म मानने की ज़्यादा आज़ादी मिली है। रूस में रहनेवालों को ही नहीं बल्कि उस देश से दूसरे देशों में जा बसे रूसी लोगों को भी यह आज़ादी बेहद प्यारी है।

सोवियत संघ के टूटने से जो देश बने, उन देशों में रहनेवाले लोग आज यह देखकर खुशी से फूले नहीं समाते कि वे अपने परमेश्‍वर की उपासना खुलेआम कर सकते हैं। जबकि कई सालों से ऐसा करना उनके लिए मुमकिन नहीं था।

सन्‌ 1917 में बॉलशेविक आंदोलन के बाद, रूस में बाइबल पढ़ने की आज़ादी बिल्कुल नहीं थी। अगर किसी को बाइबल पढ़ते देखा जाता तो उसे पकड़कर जेल में डाल दिया जाता था, इसलिए ज़्यादातर लोगों ने बाइबल पढ़ना छोड़ दिया। लेकिन यहोवा के साक्षी इन लोगों से अलग थे। दरअसल, अप्रैल 16, 1956, यानी करीब 44 साल पहले के न्यूज़वीक मैगज़ीन के अंक में पूर्वी जर्मनी के एक नौजवान का हवाला दिया गया जिसने कहा कि “सिर्फ यहोवा के साक्षी आज बाइबल पढ़ते हैं।” जी हाँ, वे बाइबल सीखने के लिए सभाओं में जाते थे और दूसरों को भी बाइबल का संदेश सुनाते थे, इस वज़ह से उन्हें कैद किया गया या ऐसे शिविरों में भेजा गया जहाँ उनसे दिन-रात मज़दूरों की तरह काम करवाया जाता था। लेकिन वे जहाँ कहीं गए वे बाइबल से मिली आशा पर अपना ध्यान लगाए रहे, जैसे कि यहाँ दिए बक्स से पता चलता है।

सन्‌ 1991 में जब सोवियत संघ खत्म होने लगा, तब उसी साल वहाँ के साक्षियों ने सात अधिवेशन आयोजित किए जिनके कार्यक्रम में बाइबल से बहुत कुछ सिखाया जाना था। कुल-मिलाकर 74,252 लोग इन अधिवेशनों में हाज़िर हुए। इसके सिर्फ दो साल बाद सन्‌ 1993 में, भूतपूर्व सोवियत संघ * के 15 राज्यों में से 4 राज्यों में आयोजित किए गए आठ अलग-अलग अधिवेशनों में 1,12,326 लोग हाज़िर हुए। इन हाज़िर होनेवालों में हज़ारों भाई सोवियत संघ के जेलों और मज़दूर शिविरों में कई-कई साल कैदी रह चुके थे। ये वफादार मसीही अब बिना किसी रोक-टोक के परमेश्‍वर की उपासना करने की अपनी इस आज़ादी के लिए एहसानमंद थे।

सन्‌ 1993 से भूतपूर्व सोवियत संघ के राज्यों में रहनेवाले लोग, उपासना के लिए खुलेआम इन मसीही सम्मेलनों में इकट्ठे हो सकते है। और तब से हर साल ये इस मौके को हाथ से निकलने नहीं देते हैं। पिछले साल को ही ले लीजिए, जहाँ भूतपूर्व सोवियत संघ के राज्यों में “परमेश्‍वर की भविष्यवाणी के वचन” नाम के 80 अधिवेशन हुए। और इनमें हाज़िर 2,82,333 यहोवा के साक्षी और उनके दोस्त बहुत खुश थे कि वे एक साथ मिलकर यहोवा की उपासना कर सकते हैं। साथ ही कुल-मिलाकर 13,452 लोगों ने बपतिस्मा लिया।

कई लोगों को यह जानकर हैरानी हो सकती है कि पिछले साल दुनिया के दूसरे देशों में भी रूसी भाषा में अधिवेशन हुए। भूतपूर्व सोवियत संघ के बाहर आयोजित किए गए ऐसे चार अधिवेशनों में कुल 6,336 लोग हाज़िर हुए! ये अधिवेशन कहाँ हुए? और रूसी-भाषी लोगों को बाइबल से इतना लगाव क्यों है? आइए थोड़ी देर के लिए पहले हम दूसरे सवाल पर गौर करें।

वे अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत को जानते हैं

रूस में पुराने ज़माने से धर्म को बहुत अहमियत दी जाती रही है। इसके बड़े-बड़े और आलीशान चर्च जिन्हें कई सौ साल पहले बनाया गया था, ईसाईजगत की चंद मशहूर इमारतों में गिने जाते हैं। लेकिन इस इलाके के रशियन ऑर्थोडॉक्स चर्च ने, पश्‍चिम यूरोप के रोमन कैथोलिक चर्च की तरह, लोगों को बाइबल के ज्ञान से कोसों दूर रखा है।

द रशियन ट्रैजडी—द बर्डन ऑफ हिस्ट्री किताब कहती है: “रशियन ऑर्थोडॉक्स चर्च ने कभी-भी बाइबल को अहमियत नहीं दी।” रूसी धर्म-विद्वान स्यिरग्ये ईवायेनका कहता है कि “ऑर्थोडॉक्स चर्च के सदस्यों को बाइबल का बिलकुल भी ज्ञान नहीं है। इस वज़ह से वे अंधविश्‍वासों, तंत्र-मंत्र और जादू पर उन लोगों से कहीं ज़्यादा विश्‍वास करते हैं जो इस चर्च के सदस्य नहीं हैं।”

रूस के मशहूर लेखक टॉलस्टॉय ने भी यही कहा: “मुझे पूरा यकीन है कि [रशियन ऑर्थोडॉक्स] चर्च की शिक्षाएँ झूठी, कपट-भरी और नुकसान पहुँचानेवाली हैं और उसके सदस्यों इन शिक्षाओं को सीखकर जो करते हैं उससे साफ ज़ाहिर है कि उन्हें अंधविश्‍वास और जादू-टोने के सिवा और कुछ आता ही नहीं। ये सब बातें मसीही शिक्षाओं के सच्चे अर्थ को पूरी तरह छिपा देती हैं।”

ऐसे हालात की वज़ह से ही, इन जगहों पर सोवियत साम्यवाद को बढ़ावा मिला, जो नास्तिकता का प्रचार करता था और जिसका कहना था, “धर्म लोगों के लिए एक नशा है।” लेकिन, कुछ समय के बाद साम्यवाद ही एक किस्म का धर्म बन गया जिसे ‘रेड रिलिजन’ कहा जाता था। मगर यह धर्म ज़्यादा देर तक टिक नहीं सका। इसलिए जब 1991 में सोवियत संघ टूट गया तो लाखों लोग समझ नहीं पा रहे थे कि वे क्या मानें और मदद के लिए कहाँ जाएँ। यहोवा के साक्षियों ने उनकी मदद की और उनका हौसला बढ़ाया कि वे अपने सवालों का जवाब बाइबल में ढूँढें।

रूस की शिक्षा व्यवस्था बहुत बढ़िया रही है, इसलिए रूस के लोगों का शुमार दुनिया के पढ़े-लिखे लोगों में होता है। इस वज़ह से रूसी लोग ना सिर्फ बाइबल पढ़ने लगे बल्कि बाइबल की शिक्षाओं से बेहद प्यार करने लगे। वहीं दूसरी तरफ, पिछले दस सालों में भूतपूर्व सोवियत संघ से सैकड़ों-हज़ारों लोग जर्मनी, ग्रीस और अमरीका जैसे देशों में जाकर बस गए हैं। इसका नतीजा क्या हुआ?

जर्मनी में उपासना करने की आज़ादी

अठारहवीं और 19वीं सदी में रूस आकर बसनेवाले जर्मनवासियों में 15 साल की सोफी भी थी, जो आगे जाकर काफी विख्यात हुई। वह 1762 में अपनी पति की जगह लेकर रूस की महारानी बनी। बाद में सोफी का नाम बदलकर कैथरीन द ग्रेट रखा गया। अपने लंबे शासन के दौरान उसने कई जर्मन किसानों को रूस में आकर बसने का न्यौता दिया। बाद में जब दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान जर्मनी ने सोवियत संघ पर हमला किया, तो जर्मनी से आए ज़्यादातर लोगों को साइबीरिया और कज़ाकिस्तान, किर्गिज़स्तान और उज़बेकिस्तान जैसे सोवियत राज्यों में भेज दिया गया। हाल के सालों में रूसी भाषा बोलनेवाले बहुत-से जर्मन और भूतपूर्व सोवियत संघ के दूसरे लोग पैसा कमाने के लिए जर्मनी में जा बसे हैं।

दिसंबर, 1992 में जर्मनी के बर्लिन शहर में रूसी भाषा बोलनेवाली पहली कलीसिया शुरू हुई। और पिछले साल तक, जर्मनी में रूसी भाषा की कलीसियाओं के तीन सर्किटों में 52 कलीसियाएँ और 43 छोटे-छोटे ग्रूप बन चुके थे। पिछले साल जर्मनी के कलोन शहर में, जुलाई 30 से अगस्त 1 तक रूसी भाषा में “परमेश्‍वर की भविष्यवाणी के वचन” ज़िला अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन की सबसे ज़्यादा हाज़िरी थी 4,920 और इसमें 164 लोगों ने बपतिस्मा लिया। उसी साल में अप्रैल 1 को, जर्मनी की रूसी-भाषी कलीसियाओं में यीशु की मृत्यु का स्मारक मनाने के लिए 6,175 लोग हाज़िर हुए।

अमरीका में रूसी लोग

अमरीका में भी बड़ी तादाद में भूतपूर्व सोवियत संघ के रूसी-भाषी लोग आकर बस रहे हैं। इसके बारे में द न्यू यॉर्क टाइम्स ने यह रिपोर्ट दी: “सन्‌ 1991 से 1996 के बीच, दूसरे देशों से आकर ब्रुकलिन शहर में बसनेवाले लोगों में सबसे ज़्यादा तादाद रूस के लोगों की थी। उसी दौरान, अमरीकी सरकार ने भूतपूर्व सोवियत संघ से आनेवाले 3,39,000 लोगों को अपने देश में बस जाने की इजाज़त दी।”

बाद में, जनवरी 1999 की टाइम्स मैगज़ीन ने कहा कि पिछले दस सालों में भूतपूर्व सोवियत संघ से 4,00,000 यहूदी न्यू यॉर्क शहर और उसके आसपास के इलाकों में आकर बस गए हैं। इसके अलावा, पिछले कुछ सालों में हज़ारों की तादाद में रूसी लोग अमरीका के अलग-अलग इलाकों में आकर बस गए हैं। मिसाल के तौर पर, उत्तरी कैलिफोर्निया में लगभग 35,000 नए रूसी-भाषी लोग आकर बस गए हैं और इसलिए यह ऐसा तीसरा शहर है जहाँ भूतपूर्व सोवियत संघ से आनेवाले सबसे ज़्यादा लोग पाए जाते हैं, पहला शहर है न्यू यॉर्क और दूसरा लॉस एंजिलिस। रूसी भाषा बोलनेवाले इन लोगों ने भी बाइबल का अध्ययन करने का मौका नहीं गँवाया है और इनमें से सैकड़ों लोग सच्चे परमेश्‍वर यहोवा के सेवक बन गए हैं।

न्यू यॉर्क के ब्रुकलिन शहर में अप्रैल 1, 1994 को अमरीका में हाल के सालों में बनायी गयी पहली रूसी-भाषी कलीसिया की शुरूआत हुई। बाद में, ऐसी और भी कलीसियाओं की शुरूआत पॆन्सिलवेनिया, कैलिफोर्निया और वॉशिंगटन जैसे शहरों में हुई। इसके बाद देश के दूसरे कई भागों में भी छोटे-छोटे समूह बनाए गए।

अमरीका में पहली बार

पिछले साल अगस्त 20 से 22 तक, न्यू यॉर्क शहर में पहली बार रूसी भाषा में ज़िला अधिवेशन आयोजित किया गया। अमरीका और कनाडा से आए 670 लोगों को इस इंतज़ाम से बहुत खुशी मिली। क्योंकि सभी भाषण रूसी भाषा में दिए गए, साथ ही याकूब और एसाव का बाइबल ड्रामा भी, कैलिफोर्निया के लॉस एंजिलिस की रूसी-भाषी कलीसिया ने पेश किया। सचमुच, इस अधिवेशन का यह ड्रामा वाकई यादगार ड्रामा था।

अधिवेशन की दूसरी खास बात थी, 14 लोगों का बपतिस्मा जिनकी तस्वीर यहाँ दी गयी है। इनमें से कइयों ने न्यू यॉर्क शहर में बपतिस्मा पाने के लिए, ऑरिगन के पोर्टलॆंड शहर और कैलिफोर्निया इलाके के लॉस एंजिलिस और सैन फ्रांसिस्को शहरों से 4,000 किलोमीटर का सफर तय किया था। पहले, ये 14 लोग भूतपूर्व सोवियत संघ के राज्यों में रहते थे, जैसे कि अर्मेनिया, अज़रबाइज़ान, बेलारूस, मॉल्डोवा, रशिया और यूक्रेन में रह चुके थे। इनके अनुभवों से यह ज़ाहिर होता है कि परमेश्‍वर के ज्ञान को और बिना किसी रुकावट के उसकी उपासना करने की अपनी आज़ादी को वे कितना अनमोल समझते हैं।

स्व्येतलाना (पहली पंक्‍ति में, बाँयीं तरफ से तीसरी) मॉस्को में पली-बढ़ी थी। जब वह 17 की थी तो उसने एक मशहूर गायक से शादी की जो उम्र में उससे कही बड़ा था। वह 1989 में अपने पति और छोटे बच्चे के साथ अमरीका आई। उसका पति काम के सिलसिले में ज़्यादातर बाहर रहता था। शादी के पाँच साल बाद उन दोनों का तलाक हो गया।

स्व्येतलाना की मुलाकात एक साक्षी से हुई जो उसके साथ ही काम करती थी। उसकी सहेलियों ने उसे साक्षियों से ज़रा बचकर रहने को कहा, जो उनके मुताबिक “ऐसा पंथ है जो [उसकी] ज़िंदगी को पूरी तरह काबू कर लेंगे और [उसके] सारे पैसे भी हथिया लेंगे।” इसके बावजूद स्व्येतलाना बाइबल के बारे में जानना चाहती थी। जब उसे बाइबल से परमेश्‍वर का नाम दिखाया गया, तो उसने कहा: “मुझे जानकर यह बहुत अच्छा लगा कि सिर्फ यहोवा के साक्षी ही ऐसे लोग हैं जो सबको परमेश्‍वर के नाम के बारे में बता रहे हैं।”

साइबीरिया में रहनेवाला नौजवान आनद्रे (पीछे की पंक्‍ति में, बाँयीं तरफ से तीसरा) खिलाड़ी की ट्रेनिंग पाने के लिए शहर आया जो आज सॆंट पीटर्सबर्ग के नाम से जाना जाता है। इसके कुछ ही समय बाद, सोवियत संघ टूट गया और 1993 में जब आनद्रे 22 साल का था वह अमरीका आकर बस गया। वह बताता है: “मैं परमेश्‍वर के बारे में सोचने लगा और इसीलिए मैं रशियन ऑर्थोडॉक्स चर्च जाने लगा। एक बार, रूसी ईस्टर समारोह के दौरान मैं पूरी रात चर्च में रहा ताकि मैं परमेश्‍वर के और भी करीब आ सकूँ।”

इस दौरान आनद्रे की मुलाकात स्व्येतलाना से हुई। उसने बाइबल से जो सीखा था वह आन्द्रे को बताया। वह स्व्येतलाना के साथ यहोवा के साक्षियों की एक सभा में जाने के लिए तैयार हो गया और उसके बाद बाइबल स्टडी करने के लिए राज़ी हो गया। जनवरी 1999 में उन दोनों की शादी हो गई और अपने बपतिस्मा के बाद तो उनकी खुशी और भी बढ़ी।

पावयिल (पीछे की पंक्‍ति में, बाँयीं तरफ से चौथा) का जन्म कज़ाकिस्तान के शहर कारागान्डी के पास हुआ। मगर बाद में वह रूस के एक बड़े शहर, नालिचिक में जा बसा। यह शहर चेचन्या और डागिस्तान जैसी जगहों के पास ही है, जहाँ घमासान लड़ाइयाँ हो चुकी हैं। वहाँ साक्षियों से पावयिल की मुलाकात सबसे पहले अगस्त 1996 में हुई, लेकिन अगले ही महीने वह सैन फ्रांसिस्को चला गया। पावयिल को ड्रग्स की बुरी लत थी और उसकी एक बेटी भी थी, जिसे वह उसकी माँ के साथ रूस में ही छोड़ आया था।

अमरीका पहुँचते ही पावयिल ने यहोवा के साक्षियों को ढूँढ़ निकाला और उनके साथ बाइबल का अध्ययन करने लगा। उसने अपनी ज़िंदगी सुधारनी शुरू की और जिस औरत से उसकी एक बेटी हुई थी उसे पावयिल ने अपने नये विश्‍वास के बारे में लिखा। अब वह भी रूस में यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल स्टडी कर रही है। पावयिल उसके अमरीका आने का इंतज़ाम कर रहा है ताकि उन दोनों की शादी हो और वे अपनी बेटी के साथ मिलकर कैलिफोर्निया में यहोवा की सेवा करें।

मॉस्को में जन्मा और पला-बढ़ा जॉर्ज (पीछे की पंक्‍ति में, बाँयीं तरफ से दूसरा) 1996 में अमरीका आया। इसके अगले साल ही उसने फ्लोरा से शादी कर ली जो पहले अज़रबाइज़ान में रहती थी। जॉर्ज रशियन ऑर्थोडॉक्स चर्च जाया करता था मगर जब उसने एक प्रहरीदुर्ग पत्रिका पढ़ी तो त्रियेक की शिक्षा के बारे में उसके मन में कई सवाल उठे। उसने वॉच टावर सोसाइटी को एक चिट्ठी लिखी, जिसके जवाब में संस्था ने उसे क्या आपको त्रियेक में विश्‍वास करना चाहिए? नामक ब्रोशर भेजा। सन्‌ 1998 में वह और फ्लोरा ने बाइबल सीखनी शुरू की और अब वह भी बपतिस्मा लेना चाहती है।

इस अधिवेशन की एक और खास बात थी कि मॉस्को के भाई-बहनों ने न्यू यॉर्क में अधिवेशन के लिए इकट्ठे हुए लोगों को अपना प्यार भेजा। मॉस्को में भी इसी हफ्ते एक अधिवेशन हो रहा था जहाँ 15,108 लोग हाज़िर हुए थे। मॉस्को में 600 लोगों ने बपतिस्मा लिया, यह खबर सुनकर न्यू यॉर्क में इकट्ठे हुए भाई-बहनों को कितनी खुशी मिली! उन्हें इतनी खुशी इसलिए हुई क्योंकि अधिवेशन से पहले अमरीका के अखबारों और टेलिविज़न न्यूज़ ने इस अधिवेशन के बारे में अच्छे विचार ज़ाहिर नहीं किए थे, मगर फिर भी अधिवेशन कामयाब रहा।

मॉस्को में क्या हो रहा था

मॉस्को शहर के लगभग बीचोंबीच ही एक ऑलिम्पिक स्टेडियम है और इस स्टेडियम के बगल में ही एक बड़ा रशियन ऑर्थोडॉक्स चर्च है। जुलाई 21, 1999 को यहोवा के साक्षियों ने स्टेडियम को इस्तेमाल करने के लिए एक कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तखत किए। मगर अधिवेशन के एक हफ्ते पहले से ऐसा लग रहा था कि कुछ-न-कुछ रुकावटें ज़रूर आएँगी। अगस्त 18 तक स्टेडियम को इस्तेमाल करने की इजाज़त नहीं मिली, जबकि साक्षी स्टेडियम का किराया भी दे चुके थे। स्टेडियम के अधिकारियों को यह साफ-साफ बताया गया था कि रूस में कानूनन यहोवा के साक्षियों को एक धार्मिक संगठन माना गया है, जैसे कि पेज 28 पर दिए बक्स में दिखाया गया है।

अधिवेशन की तैयारी में लगे साक्षियों की चिंता बढ़ती जा रही थी, क्योंकि शुक्रवार की सुबह को लगभग 15,000 लोग इस अधिवेशन में हाज़िर होने की तैयारी में लगे हुए थे। कुछ भाई-बहनों को तो अपने-अपने नगरों से मॉस्को तक आने के लिए कई-कई मील की दूरी तय करनी थी। आखिरकार, स्टेडियम मैनेजमेंट ने आपस में कई घंटों तक बहस करने के बाद, अगस्त 19, गुरुवार की शाम को आठ बजे खुशी-खुशी साक्षियों को बताया कि वे स्टेडियम इस्तेमाल कर सकते हैं। शहर के अधिकारियों को भी इस अधिवेशन से कोई आपत्ति नहीं थी।

स्वयंसेवकों ने अधिवेशन की तैयारी करने के लिए सारी रात काम किया। अगली सुबह हज़ारों की तादाद में लोग स्टेडियम में आने लगे। साथ ही प्रेस के लोग भी हाज़िर थे। उनको बताया गया था कि इस अधिवेशन का विरोध करने के लिए साक्षियों के सामने कैसी-कैसी रुकावटें डाली गयीं। इसलिए उनमें से एक पत्रकार ने कहा: “बहुत-बहुत मुबारक! हमें यह सुनकर बेहद खुशी हुई कि आपका अधिवेशन यहीं हो रहा है।”

अच्छे चालचलन की मिसाल

स्टेडियम मैनेजमेंट को लगा कि सुरक्षा का प्रबंध करना अक्लमंदी की बात होगी। इसलिए जैसे हवाई अड्डों पर यात्रियों की तलाशी लेने के लिए मेटल डिटेक्टर का इस्तेमाल किया जाता है, वैसे ही यंत्र लेकर सुरक्षा-कर्मी स्टेडियम के हर दरवाज़े पर खड़े किए गए। और-तो-और स्टेडियम के अंदर हर जगह पुलिस तैनात थी। अधिवेशन भंग करने की धमकियों के बावजूद, सारा कार्यक्रम बड़े शांत और अच्छे ढंग से हुआ।

शनिवार की दोपहर को किसी ने फोन करके कहा कि स्टेडियम में एक बम लगाया गया है। यह खबर तब आयी जब उस दिन का आखरी भाषण दिया जाना बाकी था और उससे पहले का भाषण खत्म ही होनेवाला था। स्टेडियम मैनेजमेंट की दरख्वास्त पर छोटी-सी घोषणा की गई कि स्टेडियम को तुरंत खाली किया जाए। जब सब शांत तरीके से और बिना हो-हल्ला मचाए स्टेडियम से बाहर निकल गए तो स्टेडियम के अधिकारी और पुलिस दंग रह गयी। उन्होंने ऐसा दृश्‍य पहले कभी नहीं देखा था! उन्होंने भाइयों से पूछा कि ऐसा करने की तैयारी क्या पहले से की गयी थी।

स्टेडियम में कोई बम नहीं मिला और अगले दिन के प्रोग्राम में उस भाषण को भी शामिल किया गया जो शनिवार के दिन पेश नहीं किया गया था। इस अधिवेशन से स्टेडियम मैनेजमेंट काफी खुश थी।

ग्रीस और दूसरे जगहों में भी

ग्रीस में भी रूसी-भाषा के अधिवेशन रखने का इंतज़ाम किया गया था। अगस्त के आखरी हफ्ते और सितंबर के पहले हफ्ते में, पहले एथेन्स में अधिवेशन हुआ और फिर थॆस्सलोनीका में। कुल-मिलाकर 746 लोग हाज़िर हुए और 34 लोगों ने बपतिस्मा लिया। ग्रीस में 8 रूसी-भाषी कलीसियाएँ हैं और 17 छोटे-छोटे समूह हैं जिनमें भूतपूर्व सोवियत संघ के दक्षिणी राज्यों से आए बहुत से लोग हैं। इन कलीसियाओं की सभाएँ रूसी भाषा और इन भाइयों द्वारा बोली जानेवाली दूसरी भाषाओं में होती हैं।

विक्टर जिसने एथेन्स में बपतिस्मा लिया पहले तो एक नास्तिक था। मगर, अगस्त 1998 में एथेन्स में यहोवा के साक्षियों के अंतराष्ट्रीय अधिवेशन में वह हाज़िर हुआ। उसी अधिवेशन में उसकी पत्नी ने बपतिस्मा लिया था। वह कहता है कि भाई-बहनों का प्यार देखकर उसे इतना अच्छा लगा कि वह बाइबल सीखने के लिए तैयार हो गया।

ईगर नाम के एक आदमी ने आप पृथ्वी पर सर्वदा जीवित रह सकते हैं किताब पढ़ी। इस किताब का उस पर ऐसा असर हुआ कि उसने वे सारी मूर्तियाँ फेंक दी जिनकी वह पूजा करता था। हालाँकि वह यहोवा का साक्षी नहीं था फिर भी वह अपना परिचय यहोवा के साक्षी के रूप में देता। उसने एथेन्स के ब्रांच ऑफिस को लिखा और नवंबर 1998 में साक्षी उससे मिलने उसके घर आए। उसी वक्‍त से उसने सभाओं में जाना शुरू कर दिया और तब से लेकर आज तक वह हर सभा में हाज़िर रहता है। अब बपतिस्मा लेने के बाद, ईगर की यही इच्छा है कि वह पूरे समय प्रचार का काम करे।

ऐसे और भी कई देश हैं जहाँ रूसी-भाषी लोग जाकर बस गए हैं, हालाँकि उनका ज़िक्र हमने इस लेख में नहीं किया है। इन देशों में ये लोग भी खुश हैं कि उन्हें बाइबल पढ़ने और खुलेआम परमेश्‍वर की उपासना करने के लिए इकट्ठे होने की आज़ादी है। यह अनमोल आज़ादी उन्हें बेहद प्यारी है!

[फुटनोट]

^ भूतपूर्व सोवियत संघ के 15 राज्यों के नाम यहाँ दिए गए हैं, जो कि अब स्वतंत्र देश हैं: अज़रबाइज़ान, अर्मेनिया, उज़बेकिस्तान, एस्टोनिया, कज़ाकिस्तान, किर्गिज़स्तान, जॉर्जिया, ताज़िकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, बेलारूस, मॉल्डोवा, यूक्रेन, रशिया, लिथुएनिया और लैटविया।

[पेज 22 पर बक्स]

बाइबल से रूसी लोगों का लगाव

रूस के एक जाने माने, धर्म-विद्वान स्यिरग्ये ईवायेनका का कहना है कि यहोवा के साक्षी ही ऐसे लोग हैं जो सही मायनों में बाइबल के अध्ययन करते हैं। अपनी किताब O lyudyakh, nikogda nye rasstayushchikhsya s bibliey (ऐसे लोग जो हमेशा अपनी बाइबल साथ रखते हैं) में, उसने सोवियत संघ में रहनेवाले यहोवा के साक्षियों के इतिहास के बारे में लिखा: “जब यहोवा के साक्षियों को अपने विश्‍वास की वज़ह से जेल में डाला जाता था तब भी वे किसी-न-किसी तरीके से बाइबल का इस्तेमाल करने के तरीके ढूँढ़ ही लेते थे।” इसकी एक मिसाल देने के लिए उसने यह अनुभव बताया।

“कैदियों को अपने साथ बाइबल रखने की इजाज़त नहीं थी और तलाशी के वक्‍त अगर किसी के पास बाइबल होती तो उसे ज़ब्त कर लिया जाता था। उत्तर के ऐसे ही एक मज़दूर शिविर में एक यहोवा का साक्षी बिजली का काम जानता था। वह अपनी बाइबल को एक ट्रान्सफार्मर में छिपाकर रखता था जिसमें हज़ारों वोल्ट की बिजली चलती रहती थी। वह बाइबल की हर किताब को ट्रान्सफार्मर की तारों से बाँधकर रखता था। सिर्फ वही जानता था कि बिजली का झटका खाए बिना वह कैसे किसी किताब, मसलन मत्ती की किताब, को उन तारों से निकाल सकता है। वहाँ के सिपाही तो सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि बाइबल ऐसी जगह छिपायी गई हो, उन्होंने कैंप का चप्पा-चप्पा छान मारा मगर यह अनोखी बाइबल उनके हाथ नहीं लगी।”

[पेज 28 पर बक्स]

रूस में यहोवा के साक्षियों के संगठन की रजिस्ट्री दोबारा की गयी

रूस में सौ सालों से ज़्यादा समय से, यहोवा के साक्षी परमेश्‍वर के राज्य के बारे में ऐलान कर रहे हैं। लेकिन, सरकारी पाबंदियों की वज़ह से उन्हें कानूनी तौर पर मान्यता नहीं दी गयी थी। हाल ही में जाकर मार्च 27, 1991 को उनके संगठन की रजिस्ट्री हुई जिसका नाम था, ‘सोवियत संघ में यहोवा के साक्षियों की धार्मिक संस्थाओं का प्रशासन केंद्र’ (Administrative Center of the Religious Organizations of Jehovah’s Witnesses in the U.S.S.R.)।

सितंबर 26, 1997 को एक कानून लागू किया गया जिसका विषय था, “ज़मीर और धार्मिक संगठन की आज़ादी के मामले में।” इस नये कानून के बारे में पूरी दुनिया के पत्रकारों ने लिखा। क्यों? क्योंकि बहुतों को लग रहा था कि इस कानून से रूस के छोटे-छोटे धर्मों पर पाबंदियाँ लगाने की कोशिश की जा रही है।

यहोवा के साक्षियों ने 1991 में बड़ी मुश्‍किलों का सामना करने के बाद अपने संगठन की रजिस्ट्री करवायी थी। लेकिन अब ज़मीर की आज़ादी के इस नए कानून की माँग थी कि न सिर्फ यहोवा के साक्षी बल्कि बाकी सभी धार्मिक संस्थाएँ भी दोबारा रजिस्ट्री करवाएँ। इससे कई सवाल उठ खड़े हुए। क्या इस कानून के ज़रिए रूस की सरकार, यहोवा के साक्षियों पर फिर से पाबंदी लगाने की कोशिश कर रही थी? या रशियन फॆडरेशन के संविधान में हर व्यक्‍ति को अपना-अपना धर्म मानने की जो आज़ादी है क्या वह बरकरार रहेगी?

इन सवालों का जवाब आखिरकार मिल ही गया। यहोवा के साक्षियों के धार्मिक संगठन को दोबारा कानूनी तौर पर मान्यता दे दी गई! उनकी खुशी का ठिकाना न रहा जब उन्हें रूस के न्याय मंत्रालय से एक रजिस्ट्री सर्टिफिकेट मिला जिसके मुताबिक अप्रैल 29, 1999 से “रूस में यहोवा के साक्षियों का प्रशासन केंद्र” (“Administrative Center for Jehovah’s Witnesses in Russia”) एक मान्यता-प्राप्त संगठन है।

[पेज 23 पर तसवीर]

अमरीका में रूसी भाषा में किया गया पहला ज़िला अधिवेशन

[पेज 24 पर तसवीर]

न्यू यॉर्क में हो रहा बाइबल ड्रामा, जिसे लॉस एंजिलिस की रूसी-भाषी कलीसिया ने प्रस्तुत किया

[पेज 25 पर तसवीर]

न्यू यॉर्क में बपतिस्मा लेनेवाले ये 14 लोग भूतपूर्व सोवियत संघ के छ: राज्यों से हैं

[पेज 26, 27 पर तसवीर]

मॉस्को के ऑलिम्पिक स्टेडियम में 15,000 से ज़्यादा लोग इकट्ठे हुए