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बड़ी सफेद शार्क मछली—खतरे में

बड़ी सफेद शार्क मछली—खतरे में

बड़ी सफेद शार्क मछली—खतरे में

सफेद शार्क का नाम लेते ही डर के मारे लोगों के हाथ-पैर काँपने लगते हैं। दुनिया में पायी जानेवाली मछलियों में से सफेद शार्क सबसे बड़ी माँसाहारी मछली है। मगर अब खुद इस मछली की जान के लाले पड़ गए हैं। इसलिए आस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, नामीबिया, दक्षिण अफ्रीका और अमरीका के समुद्र और भूमध्य सागर में पाई जानेवाली यह मछली संरक्षित प्राणियों की लिस्ट में आ गई है और अब खुद इसे बचाने की कोशिशें की जा रही है। दूसरे देशों में भी ऐसा ही इंतज़ाम करने के बारे में सोचा जा रहा है। मगर दूसरों की जान लेनेवाली इस हत्यारी सफेद शार्क को बचाने की क्या ज़रूरत? यह मामला उतना आसान नहीं है जितना हम समझते हैं और ना ही इस मछली के बारे में लोगों की राय पूरी तरह से सही हैं।

यह मछली * किलर व्हेल और स्पर्म व्हेल की तरह खाने की श्रंखला में सबसे आगे है यानी कि ये सफेद शार्क मछली कुछ भी खा लेती है—दूसरी मछलियाँ, डॉल्फिन्स और यहाँ तक कि दूसरी शार्क मछलियाँ भी। इसीलिए यह शार्क जाति का राजा यानी सूपर-शार्क कहलाती है। मगर जैसे-जैसे इसकी उम्र बढ़ती है यह पानी में तेज़ी से नहीं तैर पाती और तब यह ज़्यादातर सील, पेंग्विन और मरे हुए जीव-जंतुओं को खासकर मरी हुई व्हेल मछलियों को खाने लगती है।

खाने की तलाश में ज़्यादातर शार्क अपनी सभी इंद्रियों का इस्तेमाल करती हैं खासकर अपनी पैनी नज़रों का। जहाँ तक इसकी सूँघने की शक्‍ति की बात है तो यह कहा जा सकता है कि पूरी-की-पूरी शार्क ही एक नाक है यानी इसकी सूँघने की शक्‍ति बहुत-बहुत तेज़ है। इसके अलावा समुद्र में शायद ही कोई ऐसी आवाज़ होगी जो इसके कानों तक ना पहुँच सके।

इसके कान हर आहट को इसलिए सुन सकते हैं क्योंकि इसके शरीर की दोनों तरफ ऐसी कोशिकाएँ होती हैं जो पानी में ज़रा-सी भी हलचल का पता कर लेती हैं। मिसाल के लिए अगर मछुआरों के भाले में फँसी कोई मछली छटपटा रही हो तो यह शार्क तुरंत इसका पता लगा लेती है और उसे शिकार बनाने के लिए बड़ी तेज़ी से उसकी तरफ तैरती चली जाती है। इसलिए मछुओं से कहा जाता हैं कि अगर वे अपना शिकार खोना नहीं चाहते तो उन्हें पकड़ी हुई मछलियों को तुरंत पानी से बाहर निकाल लेना चाहिए।

शार्क मछली की नाक के आस-पास छोटी-छोटी नलियाँ होती हैं जिन्हें ऐम्प्यूले ऑफ लॉरेन्सीनी कहा जाता है। ये शार्क मछली को एक खास शक्‍ति देते हैं। जब कोई जीव पानी में तैरता है तो उसके दिल की धड़कन, उसके गिलों और तैरने से एक हलकी-सी विद्युत तरंग पैदा होती जिसे शार्क अपने ऐम्प्यूले ऑफ लॉरेन्सीनी की मदद से फौरन महसूस कर लेती है। ये इतने शक्‍तिशाली होते हैं कि एक शार्क को पानी में यह भी सही-सही पता लग सकता है कि पृथ्वी की उत्तर और दक्षिण दिशा किस तरफ है।

सफेद शार्क की पहचान

हालाँकि इस मछली को सफेद शार्क कहा जाता है मगर इस मछली का सिर्फ निचला हिस्सा ही सफेद या दूधिया रंग का होता है। इसकी पीठ का रंग गहरा स्लेटी होती है। शार्क की दोनों तरफ जहाँ ये दोनों रंग मिलते हैं वहाँ टेढ़ी-तिरछी लकीर जैसी बन जाती है। लेकिन वैज्ञानिक यह मानते हैं कि हर मछली में यह लकीर अलग-अलग डिज़ाइन की होती है और इसकी वज़ह से किसी एक खास मछली को पहचानना आसान हो जाता है। शरीर पर ऐसा रंग शिकार को धोखा देने के काम आता है।

इस शार्क की कुल लंबाई कितनी होती है? ग्रेट वाइट शार्क किताब कहती है कि “एक सफेद शार्क की लंबाई 5.8 मीटर से लेकर 6.4 मीटर तक हो सकती है।” इतनी बड़ी मछली का वज़न 2,000 किलोग्राम से भी ज़्यादा हो सकता है मगर फिर भी यह बड़ी आसानी से पानी में तैर सकती है। वह इसलिए क्योंकि इसका शरीर टॉरपीडो जैसा होता है और उसमें पीछे की तरफ मुड़े हुए फिन होते हैं जिसकी मदद से यह मछली पानी में एक मिसाइल की तरह तैरती नज़र आती है। सफेद शार्क की पूँछ भी इसे दूसरी जाति की शार्क मछलियों से ज़्यादा शक्‍ति देती है।

सफेद शार्क को उसकी भयानक शक्ल देनेवाले उसका बड़ा कोन के आकार का सिर, डरावनी काली आँखें और रेज़र जैसी धारवाले नुकीले दाँत हैं। और जब उसके “कटार” जैसे तेज़ दो-धारी दाँत गिर जाते हैं तो उसके पीछे मौजूद दाँतों की बत्तीसी में से एक दाँत आगे आकर गिरे हुए दाँत की जगह ले लेता है।

गर्म खून

मेको, पॉरबीगल और सफेद शार्क लैमनीडे जाति में से हैं। और इनका परिसंचरण-तंत्र दूसरी शार्कों से बिल्कुल अलग है क्योंकि उनके खून का तापमान 3 से 5 डिग्री सॆलसियस होता है जो पानी के तापमान से ज़्यादा है। इस वज़ह से न सिर्फ उनकी पाचन शक्‍ति बढ़ती है बल्कि उन्हें ज़्यादा ताकत और सहन-शक्‍ति भी मिलती है। टूना मछली खानेवाली मेको शार्क 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से तैर सकती है।

जब शार्क तैरती है तो उसके शरीर के निचले फिन उसे आगे धकेलते हैं और पानी में ऊपर उठाए रखते हैं। अगर शार्क बहुत धीरे तैरे तो वह पानी में नीचे जाने लगती है। है ना ताज्जुब की बात क्योंकि शार्क के कलेजे में उसके शरीर के वज़न का एक चौथाई तेल होता है जो उसे गुब्बारे की तरह पानी में ऊपर उठाए रख सकता है लेकिन ऐसा नहीं होता। इसके अलावा एक और वज़ह कि क्यों ज़्यादातर जातियों की शार्क मछलियों को तैरते रहने की ज़रूरत होती है। वह इसलिए क्योंकि पानी में तैरते रहने से यह अपने मुँह में पानी खींचती रहती हैं जिससे इन्हें ऑक्सीजन मिलती रहती है। इसीलिए शार्क के मुँह को देखने से लगता है कि वह कुटिल मुस्कान के साथ हँस रही है।

क्या यह शार्क आदमखोर है?

शार्क की 368 जातियों के बारे में हम जितना जानते हैं उनमें से सिर्फ 20 जाति खूँखार हैं। हर साल इंसानों पर शार्क के हमलों की जो 100 वारदातें होती हैं उनके लिए इन 20 जातियों में से सिर्फ चार जातियाँ ही ज़िम्मेदार हैं। इन सौ हमलों में से 30 हमले जानलेवा थे। ये चार जाति हैं बुल्ल शार्क जिन्होंने दूसरी सभी शार्कों से बढ़कर इंसानों का शिकार किया, फिर टाइगर शार्क, समुद्री वाइट-टिप शार्क और सफेद शार्क।

मगर हैरानी की बात तो यह है कि जिन लोगों पर हमला किया गया उनमें से 55 प्रतिशत और कुछ जगहों में तो 80 प्रतिशत के लोग इस हमले से बच निकले। तो सवाल यह उठता है कि इतनी खूँखार मछली के हमले करने पर भी ये लोग बच कैसे जाते हैं?

दाँत मारना और फिर उगल देना

सफेद शार्क इसी बात के लिए मशहूर है कि पहले वह अपने शिकार को बहुत ज़बरदस्त तरीके से काटती है और फिर उसे फौरन उगल देती है। उसे उगलने के बाद वह इसी इंतज़ार में रहती है कि उसका शिकार मरे और तब वह उसे निगल लेती है। और जब उसका शिकार कोई इंसान होता है तो ऐसा वक्‍त उनके लिए अपनी जान बचाने का एक अच्छा मौका होता है। कभी-कभी उनके साथ आए साथी उनकी मदद करते हैं जो दिलेरी दिखाते हुए उनकी जान बचाने की कोशिश करते हैं। और इसी वज़ह से पानी में तैरनेवालों को हमेशा कहा जाता है कि वह कभी-भी पानी में अकेले तैरने न जाएँ।

सफेद शार्क की एक और आदत है जिसकी वज़ह से घायल शिकार को बचाना आसान होता है वरना उसे बचाने जाना मौत के मुँह में जाने के बराबर होगा। दूसरी शार्कों की तरह सफेद शार्क खून को सूँघने से और ज़्यादा उत्तेजित और खूँखार नहीं बन जाती। फिर यह शार्क क्यों शिकार को काटकर उसे उगल देती है?

एक वैज्ञानिक का यह मानना है कि वह ऐसा इसलिए करती है क्योंकि उसकी आँखें दूसरे मछलियों से बिलकुल अलग है। उसकी आँखों में किसी तरह का झिल्ली नहीं होती जिससे उसकी आँखों को चोट से बचा सके। इसलिए जब यह शार्क एक सील पर हमला करते हैं तो इससे पहले कि यह मछली उसकी आँखों पर वार कर सके ये शार्क बस उसे दाँत मारकर छोड़ देती है।

यह भी याद रखिए कि ये सफेद शार्क बच्चों की तरह हरकत करती हैं—यह सब कुछ मुँह में सीधा डाल लेती है। मगर सिडनी, आस्ट्रेलिया के समुद्री जीव-विज्ञानी जॉन वेस्ट का कहना है: “एक बड़ी सफेद शार्क का पहला हमला इतना ज़बरदस्त हो सकता है कि इससे जान का बचना नामुमकिन हो सकता है।”

यह सच है कि सफेद शार्क खूँखार होती हैं मगर इसका यह मतलब नहीं है कि वह बहुत ही निर्दयी जंतु है जो सिर्फ इंसानों पर हमला करता है। एक ऐबालोन गोताखोर जिसने समुद्र में 6,000 घंटे बिताए थे उसने उस समय के दौरान सिर्फ दो सफेद शार्कों को देखा था। और उन दोनों ने उस पर हमला तक नहीं किया। असल में कई बार ऐसा हुआ है कि इंसानों को देखने पर सफेद शार्क भाग जाती है।

केप वरदी द्वीप पर समुद्र में खोज कर रहा ज़्हाकीव कस्तु और उसका साथी अचानक एक बड़ी सफेद शार्क के बिलकुल पास आ गया। कस्तु कहता है: “उस शार्क ने जो किया वह बिलकुल अजीब था। डर के मारे उसका ढेर सारा मल-मूत्र निकल गया और वह शार्क वहाँ से नौ-दो ग्यारह हो गई। जब मैं इन शार्कों के साथ अपनी मुलाकातों के ढेरों अनुभवों के बारे में सोचता हूँ तो मुझे ताज्जुब होता है कि लोग जो इस मछली के बारे में सोचते है हकीकत में यह उससे कितनी अलग है।”

सफेद शार्क खुद एक शिकार बनी

सन्‌ 1970 के उपन्यास जॉज़ पर जो फिल्म बनी वह बहुत चली और शार्क के बारे में लोगों का जो विचार था वह काफी हद तक इससे प्रभावित हुआ था। रातों-रात इस मछली को लोग बुरा समझने लगे। ग्रेट वाइट शार्क किताब कहती है: “इनाम पाने के लिए शिकारियों की टोली की टोली इस मछली के शिकार के लिए निकल पड़ी। उनमें होड़ लग गई कि कौन सबसे पहले इस खूँखार दरिंदे का, इस आदमखोर शैतान का शिकार करेगा और उसका सिर अपने घर के दीवार पर लगाएगा।” आस्ट्रेलिया में सफेद शार्क के सिर्फ एक दाँत की कीमत 1,000 डॉलर हो गई और पूरे जबड़े के लिए 20,000 डॉलर से भी ज़्यादा।

लेकिन ज़्यादातर सफेद शार्कों की मौत व्यापारियों के बड़े-बड़े जालों में फँसकर होती है। इसके अलावा शार्क और खासकर उनके फिन से बनी कई चीज़ें आज मार्केट में बहुत मशहूर हो रही हैं। इस धंधे को चलाए रखने के लिए लाखों शार्क मछलियों का शिकार किया जा रहा है। हाल ही के सालों में जब उनकी गिनती बहुत कम हो गई है तो दुनिया-भर में खासकर सफेद शार्कों के लिए चिंता बढ़ गई है।

सही जानकारी का पता चलना

कहा जाता है कि शार्क मछली बीमार, मरे हुए समुद्री जंतुओं को खाती है। इसलिए अगर समुद्र को साफ-सुथरा रखना है तो उसमें बड़ी तादाद में शार्क मछलियों का होना बहुत ज़रूरी है।

प्रकृति में पाए जानेवाली जीव-जंतुओं की जाति जो खत्म होने के कगार पर हैं उन्हें बचाने के लिए एक संस्था बनायी गयी है। इस संस्था ने एक ग्रूप बनाया है जो धीरे-धीरे लुप्त होती शार्क मछली की समस्याओं के बारे में ज़्यादा जानकारी हासिल करेगा। मगर यह काम उतना आसान नहीं है क्योंकि शार्क मछलियों की जनन क्षमता बहुत कम होती है और अगर उनका अध्ययन करने के लिए उन्हें कैद करके रखा जाए तो वे मर जाती हैं। तो उनके बारे में जानने के लिए समुद्र में ही जाना पड़ेगा।

शार्क मछली के बारे में जैसे-जैसे इंसानों की समझ बढ़ रही है वैसे-वैसे इस बेमिसाल जंतु के प्रति उनके विचार भी बदल रहे हैं। मगर इसका मतलब यह नहीं कि यह शार्क मछली बदल गई है। हालाँकि यह कोई राक्षस नहीं है पर है तो यह एक भयानक जंतु जिसके साथ हमें इज़्ज़त से पेश आना चाहिए। हाँ, बहुत बहुत इज़्ज़त से!

[फुटनोट]

^ सफेद शार्क मछली को कई नामों से पुकारा जाता है। मिसाल के लिए, आस्ट्रेलिया में इसे वाइट पॉइन्टर कहा जाता है और दक्षिण अफ्रीका में इसे ब्लू पॉइन्टर कहा जाता है।

[पेज 11 पर तसवीर]

शार्क मछली का मुँह बहुत बड़ा और डरावना होता है

[पेज 10 पर चित्रों का श्रेय]

Photos by Rodney Fox Reflections

South African White Shark Research Institute