लामू—एक द्वीप जिसे समय भुला नहीं पाया
लामू—एक द्वीप जिसे समय भुला नहीं पाया
केन्या में सजग होइए! संवाददाता द्वारा
पंद्रहवीं सदी। हिंद महासागर में एक छोटा-सा लकड़ी का जहाज़ जा रहा है। हवा में लहराता हुआ उसका पाल जहाज़ को आगे बढ़ा रहा है। एक मल्लाह मस्तूल की चोटी पर चढ़ा हुआ है। उसने एक हाथ से मस्तूल को थाम रखा है और दूसरे से आँखों की ओट बनाकर दूर-दूर तक नज़र दौड़ा रहा है। दरअसल इस जहाज़ के सभी नाविक एक खास द्वीप को खोज रहे थे। वह द्वीप था लामू।
आखिर ये नाविक इस समुद्री यात्रा पर क्यों निकले थे? सोना, हाथी-दाँत, तरह-तरह के मसाले और गुलाम पाने के लिए। अफ्रीका इन सबका धनी था। नई-नई जगहों की खोज करने की चाह रखनेवाले कई साहसी पुरुषों ने यह खज़ाना पाने के लिए अपने देश से दूर, अफ्रीका के पूर्वी तट का सफर किया। खज़ाने तक पहुँचने के लिए नाविकों को बड़े-बड़े खतरों और समुद्री तूफानों का सामना करना पड़ता था। ढेरों नाविक और व्यापारी छोटे-छोटे पानी के जहाज़ों पर चढ़कर सैकड़ों मीलों की समुद्री यात्रा करके यहाँ तक पहुँचते थे।
अफ्रीका के पूर्वी तट के बीचों-बीच छोटे-छोटे द्वीप नज़र आते हैं, इसी द्वीप-समूह को लामू कहा जाता है। यह द्वीप-समूह समुद्र में सफर करनेवाले यात्रियों और उनके छोटे-छोटे जहाज़ों के लिए सबसे सुरक्षित बंदरगाह है क्योंकि यह बंदरगाह प्रवाल पत्थरों से घिरा हुआ है। लामू बंदरगाह पर नाविक आगे के सफर के लिए अपने जहाज़ों में राशन-पानी और ज़रूरी सामान भर लेते हैं।
पंद्रहवीं सदी तक लामू द्वीप बहुत खुशहाल हो चुका था और खाद्य-सामग्री और व्यापार का बहुत बड़ा केंद्र बन गया था। जब 16वीं सदी में पुर्तगाल के नाविक यहाँ आए तो उन्होंने पाया कि यहाँ के व्यापारी ढीला-ढाला चोगा पहनते हैं और सिर पर सिल्क की पगड़ी बाँधते हैं। यहाँ की पतली और टेढ़ी-मेढ़ी गलियों में आम औरतें हाथों में सोने के कंगन और पैरों में सोने के कड़े पहने और खुशबूदार इत्र लगाए आती-जाती नज़र आती थीं। बंदरगाह एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक उन जहाज़ों से भरा रहता था जिनके पाल लपेटकर रख दिए जाते थे। ये जहाज़ माल से लदे होते थे जिसे व्यापारी, विदेशों में जाकर बेचते थे। इसके अलावा दासों के झुण्ड-के-झुण्ड इंतज़ार करते नज़र आते थे, उन्हें ले जाने के लिए एक-साथ बाँधकर जहाज़ों में ठूँस दिया जाता था।
पहली बार यूरोप से आनेवाले नाविक यह देखकर हैरान रह जाते थे कि लामू में साफ-सफाई का बंदोबस्त और इमारतों का डिज़ाइन बहुत बेहतरीन है। समुद्र तट के सामने बने घर, प्रवाल पत्थरों से बनाए जाते थे, जिन्हें पास ही पत्थर की खदानों से काटकर लाया जाता था। इन घरों के लकड़ी के भारी-भरकम दरवाज़े होते थे जिन पर सुंदर नक्काशी की जाती थी। यहाँ घरों को इस तरह एक कतार में बनाया जाता था जिससे समुद्र की ठंडी हवा उनके बीच पतली गलियों से गुज़र सके और लोगों को कड़कती धूप से राहत मिले।
अमीर लोगों के घर तो और भी आलीशान और लंबे-चौड़े होते थे। उनके गुसलखानों में पुराने ज़माने की नलकारी व्यवस्था थी जिसके ज़रिए साफ पानी आता था। घरों की नालियाँ भी बढ़िया ढंग से बनी होती थीं। यह सफाई व्यवस्था इतनी आधुनिक थी कि उस समय के ज़्यादातर यूरोपीय देशों में भी ऐसा देखने को नहीं मिलता था। पत्थरों से बड़े और ढलानदार नाले बनाये गये थे जो घरों की नालियों से आनेवाले गंदे पानी और कूड़े-करकट को समुद्र के पास बने गहरे गड्ढों तक ले जाते थे। इन गड्ढों को साफ पानी के स्रोतों से बहुत दूर बनाया गया था। घरों में साफ पानी के लिए पत्थर की टंकियाँ होती थीं और उनमें एक छोटी मछली रखी जाती थी ताकि वह पानी में पैदा होनेवाली मच्छरों की इल्लियों को खा ले। इसलिए मच्छरों की आफत भी नहीं थी।
उन्नीसवीं सदी तक लामू द्वीप, व्यापारी जहाज़ों को बड़ी तादाद में हाथी-दाँत, तेल, बीज, जानवरों की खालें, कछुए के कवच, दरियाई घोड़े के दाँत और गुलाम सप्लाई करता था। लेकिन समय के गुज़रते लामू की खुशहाली और शोहरत कम होने लगी। महामारी, दुश्मन कबीले का आक्रमण और गुलाम बेचने पर पाबंदी, इन सबकी वज़ह से लामू आर्थिक रूप से गरीब हो गया।
अतीत में जाना
लामू बंदरगाह पर कदम रखना मानो अतीत में कदम रखना है। हिंद महासागर के दूर-दूर तक फैले नीले पानी पर मंद-मंद हवा बहती है। नीली-हरी लहरें प्यार-से किनारे की सफेद बालू को चूमती हैं। पुराने ज़माने के जहाज़ों की तरह दिखनेवाले कई जहाज़ लामू बंदरगाह की ओर आते हैं। लहराते हुए उनके तिकोने सफेद पाल तितली के पंखों जैसे दिखते हैं। ये जहाज़ मछलियों, फलों, नारियलों, गायों, मुर्गियों और यात्रियों से भरे होते हैं।
बंदरगाह पर गरम हवा चलते वक्त सरसराते हुए खजूर के पेड़ उन लोगों को हलकी सी छाँव देते हैं जो जहाज़ों से सामान उतार रहे हैं। बाज़ार में दौड़-धूप करनेवाले लोगों की भीड़ लगी हुई है जो शोर-शराबे के साथ सामान का लेन-देन कर रहे हैं। यहाँ आनेवाले व्यापारियों को सोना, हाथी-दाँत या गुलाम नहीं बल्कि केले, नारियल, मछलियाँ और टोकरियाँ चाहिए।
मर्द लोग एक बड़े-से आम के पेड़ की छाया में सुतली के धागे से लंबी-लंबी रस्सियाँ बनाते हैं। इसके अलावा वे पाल के कपड़ों की मरम्मत भी करते हैं जो उनके लकड़ी के जहाज़ को आगे बढ़ने में मदद करते हैं। गलियाँ छोटी ज़रूर हैं मगर लोगों से खचाखच भरी हुई हैं। लंबे और ढीले-ढाले सफेद कपड़े पहने हुए व्यापारी सामान से भरी अपनी दुकानों से ग्राहकों को आवाज़ें लगा रहे हैं कि वे उनकी दुकानों में आकर उनका माल देखें। एक गधा अनाज की बोरियों से लदा हुआ लकड़ी के ठेले को बड़ी मुश्किल से खींचता हुआ आते-जाते लोगों के बीच से निकलने की कोशिश करता है। लामू में रहनेवाले, द्वीप के एक छोर से दूसरे छोर तक पैदल रास्ता तय करते हैं क्योंकि यहाँ मोटर गाड़ियाँ नहीं हैं। और सिर्फ जहाज़ के ज़रिए इस द्वीप तक पहुँचा जा सकता है।
दोपहर में, जब सूरज सीधे सिर के ऊपर होता है तो मानो समय वहीं का वहीं रुक जाता है। क्यों? ऐसी कड़कती धूप में बहुत कम लोग आना-जाना करते हैं। इतना ही नहीं गधे भी मूरत की तरह खड़े रहते हैं, अपनी आँखें कसकर बंद कर लेते हैं और धूप कम होने का इंतज़ार करते हैं।
जैसे-जैसे सूर्य ढलने लगता है वैसे-वैसे तापमान गिरना शुरू हो जाता है और द्वीप के सभी लोगों की जान में जान आ जाती है। दुकानदार अपने तराशे हुए दरवाज़ों को बड़े उत्साह के साथ खोलते हैं और दोबारा अपने काम में लग जाते हैं। वे देर रात तक अपना धंधा करते रहते हैं। औरतें अपने बच्चों को नहलाती और नारियल के तेल से तब तक उनकी मालिश करती हैं जब तक की उनकी त्वचा चमक न उठे। उसके बाद वे नारियल के पेड़ के पत्तों से बुनी चटाइयों पर बैठकर खाना पकाने की तैयारी करती हैं। इस द्वीप के लोग आज भी लकड़ी की आग पर खाना बनाते हैं, मगर फिर भी ज़ायकेदार पकवान तैयार करते हैं। ये पकवान मछली से बने होते हैं और स्वाद बढ़ाने के लिए वे इसमें खुशबूदार मसाले डालते हैं और चावल को नारियल पानी में पकाते हैं। यहाँ के लोग बहुत मिलनसार हैं और मेहमानों की अच्छी खातिरदारी करते हैं। ये लोग आराम से काम करना पसंद करते हैं, इन्हें हड़बड़ी में कोई भी काम करना पसंद नहीं।
हालाँकि लामू अपनी पहले की शोहरत खो बैठा है, लेकिन 20वीं सदी से पहले की अफ्रीका की संस्कृति अभी तक यहाँ फल-फूल रही है। गरम तपती धूप में ज़िंदगी उसी तरह चल रही है जिस तरह सदियों से चलती आ रही है। यहाँ इंसान अतीत और वर्तमान दोनों को एक साथ अपनी आँखों से देख सकता है। वाकई, लामू बीते हुए दिनों की एक अनोखी और हसीन तस्वीर है। जी हाँ, लामू वह द्वीप है जिसे समय भुला नहीं पाया है।
[पेज 16, 17 पर बक्स/तसवीरें]
हम भी गए थे लामू
कुछ ही दिन हुए, हम लोग लामू गए थे। लेकिन हमारा इरादा वहाँ जाकर खरीदारी करने का नहीं था बल्कि हम तो अपने मसीही भाई-बहनों से, यहोवा के साक्षियों से मिलने गए थे। हमारा छोटा-सा हवाई जहाज़ केन्या के पथरीले सागर-तट के ऊपर से उड़ रहा था। नीचे, समुद्र की लहरें हौले-हौले किनारे से टकरा रही थीं। नीले समुद्र और घने हरे जंगलों के बीच चाँदी की तरह चमकती रेत की पट्टी नज़र आ रही थी। तभी अचानक हमारी नज़र लामू द्वीप-समूह पर पड़ी जो नीले पानी में चमकते मोतियों की तरह दिखाई दे रहा था। जैसे एक बड़ी चील आसमान में चक्कर मारकर नीचे ज़मीन की तरफ गोता लगाती है वैसे ही हमारे जहाज़ ने एक चक्कर मारा और फिर नीचे ज़मीन की तरफ गोता लगा दिया। वहाँ एक हवाई-पट्टी थी जिस पर हमारा जहाज़ उतर गया। फिर हम जहाज़ से बाहर आ गए और लामू जाने के लिए समुद्र के किनारे खड़े एक लकड़ी के जहाज़ में चढ़ गए।
समुद्र का सफर बहुत सुहाना था। खुली धूप, समुद्र से आता मदमाता हवा का झोंका ताज़गी दे रहा था। जब लामू द्वीप का बंदरगाह पास आने लगा तो हमें बहुत भीड़-भाड़ नज़र आ रही थी। लोग अपनी पीठ पर बोझा लिए जहाज़ों से उतरते-चढ़ते दिखाई दे रहे थे और हमने देखा कि कैसे महिलाएँ अपना सारा सामान सिर पर उठाकर बड़े मज़े से चल रही हैं। हमने भी अपना-अपना सामान उठाया और जहाज़ से उतरकर एक खजूर के पेड़ की छाँव में जाकर खड़े हो गए। तभी हमारे साक्षी भाई-बहनों ने हमें देख लिया और दौड़कर हमारा स्वागत किया और हमें अपने घर ले गए।
अगले दिन सूरज निकलने से पहले ही हम तैयार हो गए। हमें मीटिंग के लिए जाना था। यहाँ की सभाएँ दूसरे द्वीप में होती हैं। इसलिए हम भी बाकी भाई-बहनों के साथ समुद्र के किनारे जा पहुँचे। सफर कई घंटों का था लेकिन हमने भी पूरी तैयारी कर ली थी। पीने का पानी, बड़े-बड़े टोप और आरामदेह जूते सब कुछ ले लिया था। हमारा जहाज़ दूसरे द्वीप की तरफ बढ़ता जा रहा था और ठीक हमारे पीछे सूरज उगता नज़र आ रहा था।
यहाँ के भाई-बहन तो बस कमाल के थे, वे बैठकर जहाज़ की सवारी का मज़ा नहीं ले रहे थे बल्कि फौरन दूसरे यात्रियों को प्रचार
करने में जुट गए। हमने कई लोगों के साथ बाइबल पर चर्चा की और बहुत-सी पत्रिकाएँ भी बाँटी। जहाज़ से उतरने के बाद हमने जो सड़क ली वह एक कच्चा रास्ता थी और गर्मी बहुत पड़ रही थी। जब हम सुनसान-बयाबान जंगलों, झाड़ियों के बीच से गुज़र रहे थे तो हमारे भाइयों ने कहा, ‘ज़रा ध्यान से, यहाँ जंगली जानवर रहते हैं, कई बार तो जंगली हाथी से भी आमना-सामना हो जाता है।’ हमारे भाई हँसते, बात करते चल रहे थे और मंज़िल करीब आती जा रही थी।चलते-चलते हम एक गाँव में पहुँचे जहाँ एक कलीसिया थी और वहाँ हमें दूसरे कई भाई-बहन मिले। ये सभी दूर-दूर इलाकों से चलकर आए थे। लोग इतनी दूर-दूर रहते हैं इसलिए एक दिन में एकसाथ चार सभाएँ की जाती हैं।
जिस कमरे में सभा हो रही थी वह पत्थरों से बना एक छोटा-सा स्कूल था, उसमें खिड़की-दरवाज़ों की सिर्फ चौखट बनी हुई थी। तो हम करीब 15 लोग पतली-पतली बेंचों पर बैठ गए और उसके बाद उस शानदार जानकारी से भरी मसीही सभा का भरपूर आनंद लिया। सब लोग कार्यक्रम सुनने में इतने डूब गए थे कि किसी को टीन की छत से आनेवाली गर्मी की ज़रा भी चिंता नहीं थी। सब एक-दूसरे का साथ पाकर बहुत खुश थे। चार घंटे के बाद जब सभा खत्म हुई तो हम सभी ने एक दूसरे को अलविदा कहा और अपने-अपने घरों की तरफ रवाना हो गए। जब हम वापस अपने द्वीप पहुँचे तब तक शाम हो चुकी थी और सूरज डूब रहा था।
उस शाम को हमें एक परिवार ने खाने पर बुलाया। शाम के ठंडे मौसम में उनके साथ सादा खाना खाने का कुछ अलग ही मज़ा था। अगले दिन हम उनके साथ प्रचार करने गए। वहाँ की पतली-पतली और टेढ़ी-मेढ़ी गलियों में हम उन लोगों से मिले जो सच्चाई के भूखे और प्यासे थे। सच! लामू के इन चंद भाइयों के जोश और साहस को देखकर हमें बहुत हौसला मिला।
आखिरकार लामू के इन भाइयों से अलविदा कहने की घड़ी आ पहुँची थी। भाई हमें विदा करने बंदरगाह तक आए और भारी दिल से हमें विदा किया। वे हमें धन्यवाद दे रहे थे कि हमने आकर उनकी कितनी हिम्मत बँधाई है। मगर उन्हें इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि दरअसल उनसे हमें कितनी हिम्मत मिली थी! हम फिर हवाई-अड्डे पर पहुँचकर अपने जहाज़ में चढ़ गए। हमारा जहाज़ जब ऊपर उड़ता जा रहा था तब हमने नज़रें घुमाकर छोटे-से खूबसूरत लामू द्वीप को आखिरी बार देखा। हमारे मन में अभी-भी वहाँ बिताए दिनों की बातें घूम रही थीं। यहाँ रहनेवाले हमारे भाइयों का मज़बूत विश्वास, सभाओं में आने के लिए उनका मीलों सफर तय करना और सबसे बड़ी बात सच्चाई के लिए उनका गज़ब का जोश और गहरा प्यार। यह वैसा था जैसा प्राचीन समय में भजनहार ने भजन 97:1 में भविष्यवाणी की थी: “यहोवा राजा हुआ है, पृथ्वी मगन हो; और द्वीप जो बहुतेरे हैं, वह भी आनन्द करें!” (तिरछे टाइप हमारे।) बेशक, लामू के इस दूर-दराज़ द्वीप में भी लोगों को मगन होने का मौका दिया जा रहा, वे भी उस नयी दुनिया की आशा से आनंदित हो रहे हैं।—भेंट।
[पेज 15 पर नक्शे/तसवीर]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
अफ्रीका
केन्या
लामू
[पेज 15 पर चित्र का श्रेय]
© Alice Garrard
[पेज 16 पर चित्र का श्रेय]
© Alice Garrard