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हमारे पाठकों से

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तूफान-मिच “जानलेवा तूफान से बचाव!” (जुलाई 8, 1999) इस लेख के लिए मैं आपका दिल से शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ। वैसे तो मुझे ई-मेल से ऐसी दुर्घटनाओं के बारे में बहुत-सी जानकारी मिलती रहती है जिसके शिकार हमारे भाई-बहन हुए हैं। मगर इस जानकारी में कितनी बातें सच हैं इसका तो मुझे पता नहीं लग पाता। मगर आपका लेख पढ़कर मुझे बहुत ही हौसला और तसल्ली मिली। साथ ही मुझे यह एहसास हुआ कि हम वाकई कठिन समय में जी रहे हैं।

सी. पी., अमरीका

मुझे यह पढ़कर दुःख हुआ कि इस दुर्घटना की वज़ह से कितने लोगों का सब कुछ उजड़ गया। मगर इसके साथ मुझे यह जानकर बेहद खुशी हुई कि हमारे भाइयों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए दूसरे ज़रूरतमंद भाई-बहनों की मदद की। उस लेख में एक भाई की तस्वीर थी जो अपने उजड़े हुए घर के सामने खड़ा है, फिर भी उसके चेहरे पर शिकन तक नहीं है। उसे देखकर मैं सोच में डूब गया कि देखो इसका सब कुछ बर्बाद हो चुका है, और एक मैं हूँ जो सब कुछ होने के बावजूद भी कुछ-न-कुछ शिकायत करता रहता हूँ।

आर. सी. एन., ब्राज़ील

सेहत के लिए हानिकारक जीवन-शैली पिछले कुछ महीनों से मेरी सेहत ठीक नहीं है। लेकिन आपके लेख से यह जानकर मेरी जान-में-जान आयी कि हम अपनी जीवन-शैली में परिवर्तन लाकर अपनी सेहत को तंदुरुस्त बना सकते हैं। लेख “क्या आपकी जीवन-शैली आपकी जान ले रही है?” (अगस्त 8, 1999) की श्रृंखलाएँ पढ़कर मुझे एहसास हुआ कि मुझे वे चीज़ें नहीं खानी चाहिए जो मेरी सेहत के लिए अच्छी नहीं हैं। साथ ही मुझे ज़्यादा फल और सब्ज़ियाँ खानी चाहिए।

ई. पी. एम., ब्राज़ील

देर आए दुरुस्त आए मैं पिछले तीन साल से पूर्ण-समय की सेवक हूँ। जब मुझे प्रचार काम में उतनी सफलता नहीं मिलती जितनी कि मैं आशा करती हूँ तो मुझे बहुत निराशा होती है और मेरा मन इस काम को करते रहने के लिए नहीं करता। मगर “बीज जो सालों बाद फल लाये” (अगस्त 8, 1999) लेख से मुझे हौसला मिला। अब मैं इस काम को और भी अच्छी तरह से करते रहने की कोशिश करती हूँ और नतीजा यहोवा पर छोड़ देती हूँ।

टी. एन., जापान

मज़ाक उड़ाया जाना मुझे जुलाई 8, 1999 का लेख “युवा लोग पूछते है . .  जब कोई मेरा मज़ाक उड़ाता है तब मैं क्या करूँ?” बहुत अच्छा लगा। मेरे स्कूल के साथियों ने शुरू से ही मेरे विश्‍वास के बारे में काफी पूछ-ताछ की है। कभी-कभी वे जिस तरह सवाल करते थे वह दिल को चुभ जाते थे और कई बार तो मेरे लिए अपने गुस्से को काबू में रखना बहुत ही मुश्‍किल हो जाता था। मगर इस लेख को पढ़कर मुझे एहसास हुआ है कि ये सब तो मेरे विश्‍वास की परीक्षा है। और दूसरी तरफ देखा जाए तो स्कूल में दूसरे कई ऐसे भी थे जिनको मैंने प्रचार किया और उन्होंने मेरी बातें बड़ी अच्छी तरह सुनीं।

एल. के., अमरीका

स्कूल में मेरी खिल्ली इसलिए उड़ायी जाती थी क्योंकि मैं त्योहारों में दूसरे युवाओं के साथ शरीक नहीं होता था और ना ही देशभक्‍ति की रस्मों में भाग लेता था। कइयों ने तो मुझे बहुत बुरा-भला कहा क्योंकि मैं झूठ में उनका साथ नहीं देता और बाइबल के मुताबिक चलने की वज़ह से कोई बुरा काम नहीं करता। माना कि इन सब बातों को सहना आसान नहीं था मगर परमेश्‍वर के बारे में सही-सही ज्ञान पाने की वज़ह से मैं उन लोगों को अपने विश्‍वास के विषय में उत्तर दे सका हूँ। इसलिए अब मैं बिना किसी झिझक के लोगों को अपने विश्‍वासों के बारे में बता सकता हूँ।

एच. सी., ज़ाम्बिया

हालाँकि मैं 50 साल की हूँ मगर मुझे भी इस लेख से बहुत कुछ सीखने को मिला। जब हम प्रचार काम करते हैं तो कभी-कभी ऐसे लोग मिल जाते हैं जो हमारे काम का विरोध करते हैं। उस वक्‍त शायद हमें भी गुस्सा आ जाए और हमारा मन करे कि हम उन्हें मुँहतोड़ जवाब दें। इसलिए मुझे इस लेख की यह बात सोलह आने सच लगी कि “चाहे आपने ऐसे तानों का चालाकी या बुद्धिमानी से मुँहतोड़ जवाब ही क्यों न दिया हो, लेकिन यह आग में तेल डालने का ही काम करेगा, और अब से शायद वे और ज़्यादा ताना मारने लगेंगे।” मेरी हमेशा से यही कोशिश रही है कि मैं बिना उत्तेजित हुए उनको जवाब दूँ और इस लेख को पढ़कर मुझे और भी विश्‍वास हो गया कि मुझे आगे भी ऐसा ही करते रहना चाहिए।

ए. एफ., अमरीका

लंबी उम्र “कैसे लंबी उम्र और तंदरुस्त जीवन पाएँ” (सितंबर 8, 1999) इस लेख को पढ़कर मुझे इतना अच्छा लगा कि आपको इसके बारे में लिखने के लिए अपने आपको रोक नहीं पाया। अब मैं पूरी तरह से समझ गया हूँ कि इंसान की अपेक्षित-जीवन अवधि और औसतन जीवन अवधि में क्या फर्क है। और इसमें दिए गए बढ़ती उम्रवालों के लिए स्वस्थ रहने के सुझावों से मैं अपने 88 साल के दादा की मदद कर सकता हूँ जो बुढ़ापे की वज़ह से अपनी हालत पर रोते रहते हैं।

टी. एन., अमरीका

सुननेवाला कुत्ता मैं आपको लेख “मेरा कुत्ता मेरे सुनने का काम करता है!” (अगस्त 8, 1999) के लिए धन्यवाद देना चाहती हूँ। इस लेख को पढ़कर मुझे अच्छी तरह समझ में आया कि जिन्हें सुनने की परेशानी होती है उन्हें किन तकलीफों का सामना करना पड़ता है और मेरी पूरी हमदर्दी उनके साथ है। मुझे कुत्तों से भी बेहद प्यार है और यह जानकर मुझे खुशी हुई कि किस तरह ये जानवर ऐसे बहुत-से लोगों की मदद कर रहे हैं।

एल. बी., इटली

मेरी मदद के लिए भी मेरे पास कैनाइन कुतिया है। दरअसल मेरी रीढ़ की हड्डी खराब है और मुझे फाइब्रोमाइऎलजिया की बीमारी भी है इसलिए मुझे वीलचेयर के सहारे जीना पड़ता है। मेरी कुतिया ने मेरे लिए इतना कुछ किया है कि उसका एहसान तो मैं ज़िंदगी-भर नहीं भूल सकती। वह मेरी हर तरह से मदद करती है तब भी जब मैं बाज़ार जाती हूँ या फिर घर की साफ-सफाई करती हूँ। और यहाँ तक कि जब मैं प्रचार काम में निकलती हूँ तो वह मेरा बैग उठाती है।

के. डब्ल्यू., अमरीका