टीवी की खबरों में आखिर कितनी खबरें?
टीवी की खबरों में आखिर कितनी खबरें?
अमरीका के 52 बड़े शहरों में 102 चैनलों का सर्वे किया गया। इससे पता चला कि टीवी पर जो खबरों के कार्यक्रम आते हैं उनमें सिर्फ 41.3 प्रतिशत समय ही खबरों को दिया जाता है। तो फिर बाकी समय में खबरों के बजाय और क्या दिखाया जाता है?
इस सर्वे के मुताबिक खबरों के कार्यक्रमों का 30.4 प्रतिशत वक्त सिर्फ एडवर्टीज़मेंट दिखाने में निकल जाता है। कुछ चैनलों पर तो खबरों से ज़्यादा एडवर्टीज़मेंट ही दिखाई जाती हैं। इस सर्वे की रिपोर्ट थी: खबरों के समय में बहुत-सी ऊल-जलूल बातें दिखाई जाती हैं। * “समाचार देनेवाले एक-दूसरे से यहाँ-वहाँ की बातें करते हैं, आनेवाली खबरों की झलक दिखाते हैं, और जानी-मानी हस्तियों के बारे में चटपटी और मसालेदार खबरें देते हैं।”
जो खबरें दी जाती हैं, वे किस किस्म की होती हैं? इनमें 26.9 प्रतिशत अपराध की खबरें होती हैं। कहा जाता है, “‘खून या कत्ल की खबरें ही गरमागरम खबरें होती हैं।’ यह बात बिलकुल सच है . . . हालाँकि अमरीका में पिछले कुछ सालों में अपराध की वारदातें कम हुई हैं मगर खबरों के कार्यक्रम में इन्हें बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है।” ऐसा क्यों? सर्वे करनेवालों का कहना है कि “अपराध की घटनाएँ ही लोगों का ध्यान खींचती हैं और वे ऐसी ही खबरों में दिलचस्पी लेते हैं।”
अपराध की खबरों के बाद 12.2 प्रतिशत खबरें दुर्घटनाओं से संबंधित होती हैं। जैसे कि कहीं आग लगना, कार एक्सीडेंट होना, बाढ़ आना और बम-विस्फोट होना। इसके बाद 11.4 प्रतिशत खेल-कूद की खबरें होती हैं, फिर 10.1 प्रतिशत स्वास्थ्य की खबरें, 8.7 प्रतिशत राजनीति की, और 8.5 प्रतिशत अर्थव्यवस्था की। मगर शिक्षा, पर्यावरण, कला और विज्ञान जैसे विषयों के लिए इन खबरों के कार्यक्रम में सिर्फ 1.3 प्रतिशत से 3.6 प्रतिशत समय ही दिया जाता है। दूसरी तरफ खबरों के हर कार्यक्रम के 10 प्रतिशत समय में मौसम की जानकारी दी जाती है। सर्वे करनेवालों का कहना है: “जब हर कोई मौसम के बारे में बात करना पसंद करता है तो इसमें टीवी क्यों पीछे रहे? मौसम अच्छा हो या खराब, ठंडा हो या गरम, बारिश हो या सूखा, इसके बारे में खबरों में ज़रूर बताया जाता है।”
मगर सर्वे के मुताबिक एक अच्छी बात यह है कि आज ज़्यादा-से-ज़्यादा पत्रकारों और दर्शकों को एहसास हो रहा है कि इन खबरों में बदलाव लाना ज़रूरी है। मगर यह करना मुश्किल है क्योंकि “सबको तो सिर्फ पैसा ही पैसा चाहिए। खबरों के कार्यक्रम बनानेवाले अगर इनमें एडवर्टीज़मेंट या दूसरी फालतू बातें नहीं दिखाएँगे तो उन्हें पैसा कैसे मिलेगा। और वह नहीं चाहते कि दर्शक उनके कार्यक्रम देखना बंद कर दें इसलिए वे इसे मसालेदार बनाने के लिए आलतू-फालतू बातें भर देते हैं। इसलिए अच्छे विषयों पर खबरें देने की किसे परवाह है।”
[फुटनोट]
^ नॉट इन द पब्लिक इंट्रेस्ट—लोकल टीवी न्यूज़ इन अमेरिका हर साल किए जानेवाले सर्वे का यह चौथा सर्वे था। इसका मकसद यह पता लगाना है कि किस तरह की खबरें प्रसारित की जाती हैं। रॉकी माउंटन इलाके के मीडिया वॉच के इस सर्वे की रिपोर्ट डॉ. पॉल क्लाइट, डॉ. रॉबर्ट ए. बार्डवल, और जेसन साल्समन ने मिलकर तैयार की थी।