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भारत में चीनी जाल आज भी इस्तेमाल हो रहे हैं

भारत में चीनी जाल आज भी इस्तेमाल हो रहे हैं

भारत में चीनी जाल आज भी इस्तेमाल हो रहे हैं

भारत में सजग होइए! संवाददाता द्वारा

भारत के पश्‍चिमी तट पर कोच्चि नाम का शहर है। समुद्र के किनारे बसे इस शहर के तटों पर लंबे-लंबे बाँसों के सहारे लटके हुए अनोखे जाल देखने को मिलते हैं। इस तरह के जाल तो चीन देश में बनते थे। मगर ये जाल भारत तक कैसे पहुँचे?

दरअसल, आठवीं सदी से ही चीनी लोग कोच्चि में बसे हुए थे। यह माना जाता है कि सन्‌ 1400 के करीब, चीन के राजा कुबलायी खान ने चीनी व्यापारियों को भारत भेजा था, और तब पहली बार यही व्यापारी अपने साथ चीनी जाल लेकर आए थे। इन जालों की खासियत यह है कि इनसे समुद्र के किनारे-किनारे बड़ी तादाद में मछलियाँ पकड़ी जा सकती हैं। करीब सौ साल तक, कोच्चि में रहनेवाले चीनी लोग इन जालों का इस्तेमाल करते रहे। बाद में, जब अरबी लोग भारत आए तो उन्होंने कोच्चि से चीनी लोगों को निकाल दिया।

जब चीनी चले गए तो ये जाल भी गायब हो गए। लेकिन 16वीं सदी में जब पुर्तगालियों ने इस इलाके पर कब्ज़ा किया तो उन्होंने अरबियों को यहाँ से खदेड़ दिया। माना जाता है कि उन्होंने ही दक्षिण-पूर्व चीन के मकाउ द्वीप से ये जाल मँगवाकर दोबारा यहाँ लगवा दिए।

इन जालों से मछली पकड़ने का तरीका सदियों पुराना ज़रूर है लेकिन आज भी ये जाल बहुत कारगर हैं। साथ ही इनके डिज़ाइन में भी कोई खास फेर-बदल नहीं किया गया है। आज भी इन जालों से बहुत से लोगों की रोज़ी-रोटी चलती है। दरअसल, सिर्फ एक जाल से जितनी मछलियाँ पकड़ी जाती हैं उससे पूरे गाँव को खिलाया जा सकता है। इसके अलावा, ये जाल देखने में भी बहुत खूबसूरत हैं। जब सूरज उगता है और ढलता है तो उसकी रोशनी में ये जाल बहुत ही सुंदर लगते हैं।

इन जालों को कैसे इस्तेमाल किया जाता है?

जिस तरह कुँए से पानी निकालने के लिए एक घिर्री की मदद से बाल्टी को कुँए में डाला जाता है ठीक वैसे ही एक बड़े बाँस के सहारे, छोटे-छोटे बाँसों से बँधा यह जाल पानी में डाला जाता है। मछलियों से भरे जाल को ऊपर खींचने के लिए उस बड़े बाँस से बड़ी-बड़ी रस्सियाँ बँधी होती हैं जिनमें वज़न लटके होते हैं। अगर इन वज़नों को ऊपर की तरफ खींचा जाए तो जाल नीचे जाने लगता है और अगर वज़नों को नीचे सरकाया जाए तो जाल ऊपर आने लगता है। सूरज निकलने से पहले ही मछुआरे काम पर लग जाते हैं और चार-पाँच घंटे तक मछलियाँ पकड़ते हैं। जाल को समुद्र में डालने के लिए सब मछुआरे मिलकर रस्सियों से बँधे वज़न को ऊपर करते हैं या कभी-कभी मछुआरों का सरदार जाल के पीछे बँधे, बड़े बाँस पर चढ़ जाता है। जाल को आहिस्ता-से पानी में छोड़ने के बाद पाँच से बीस मिनट तक इंतज़ार किया जाता है। मछुआरों का सरदार अपने तजुर्बे से जानता है कि ठीक किस वक्‍त ज़्यादा-से-ज़्यादा मछलियाँ जाल में आ जाती हैं और तभी वह जाल को पानी से बाहर खींचने का इशारा करता है।

अपने सरदार का इशारा पाते ही पाँच या छः मछुआरे रस्सियों से बँधे वज़न को नीचे की तरफ सरकाने लगते हैं। इससे जाल के छोर उठने लगते हैं और मछलियों से भरा जाल एक कटोरे की तरह बाहर आने लगता है। वाह, कितनी ढेर सारी मछलियाँ हाथ लगीं! सारे मछुआरे खुशी से एक दूसरे की पीठ थपथपाते हैं। बाद में इन मछलियों की नीलामी की जाती है और व्यापारी, गृहिणियाँ और पर्यटक इन्हें खरीद लेते हैं।

चीनी, अरबी, पुर्तगाली आए और चले गए। लेकिन ये चीनी जाल आज भी कोच्चि के तटों की शोभा बढ़ा रहे हैं। आज भी इनसे वैसे ही मछलियाँ पकड़ी जा रही हैं जैसे 600 साल पहले पकड़ी जाती थीं।

[पेज 31 पर नक्शा]

(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)

कोच्चि

[चित्र का श्रेय]

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