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हमारे पाठकों से

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बीमार माता-पिता “युवा लोग पूछते हैं . . . मम्मी इतनी बीमार क्यों हैं?” (अगस्त 8, 1999) इस लेख ने मेरे दिल को छू लिया। मुझे मालूम नहीं था कि मेरी तरह ऐसे कई नौजवान हैं जिन्हें अपने बीमार अज़ीज़ों की देखभाल करनी पड़ती है। मेरी दादी हमारे साथ ही रहती हैं और वो चार महीनों से बिस्तर पर हैं। उनकी देखभाल करते-करते मैं थक चुकी थी और मुझे यह काम एक बोझ लगने लगा था। मगर इस लेख को पढ़कर मुझे काफी हौसला मिला। अब मुझे पूरा भरोसा है कि मैं अकेली नहीं हूँ बल्कि यहोवा मेरे साथ है और वह पूरी तरह से मेरी मदद करेगा।

जे. पी., फिलीपींस

इस लेख को पढ़कर मुझे बेहद तसल्ली मिली और अपनी मम्मी की देखभाल करने का हौसला भी मिला क्योंकि मेरी मम्मी डिप्रेशन की रोगी है। मैंने लेख में दिए गए सुझावों को अपनाया। इसलिए मैं ज़्यादा सूझ-बूझ के साथ हालात को सही नज़रिए से देख पाया हूँ। मुझे अपनी मम्मी की तकलीफ को भी अच्छी तरह समझने में मदद मिली है।

जी. एल., इटली

मैं कैंसर की मरीज़ हूँ और मेरा बेटा मेरे साथ रहता है। मेरी बीमारी से वह बहुत दु:खी है और मुझे समझ नहीं आता कि उसका दु:ख कैसे हलका करूँ। यह लेख मुझे सही वक्‍त पर मिला। इस लेख ने मेरे बेटे की भावनाओं का वर्णन कितनी अच्छी तरह से किया है। मुझे नहीं लगता कि यह लेख सिर्फ नौजवानों के लिए है, बल्कि ये ज़िंदगी के बारे में हम सभी को बहुत कुछ सिखाता है।

आर. ज़ेड., जर्मनी

इस लेख को पढ़कर मुझे यह एहसास हुआ कि आध्यात्मिक रूप से चुस्त-दुरुस्त रहने से आपको इतनी ताकत मिलती है कि आप एक बीमार आदमी की और अच्छी तरह देखभाल कर पाते हैं।

पी. ई., आस्ट्रिया

सीढ़ियों के इस्तेमाल में सुरक्षा का ध्यान रखना सितंबर 8, 1999 के लेख “सीढ़ियों का इस्तेमाल—क्या आप सुरक्षा के लिए इन बातों पर ध्यान देते हैं?” के लिए आपका बहुत धन्यवाद। हाल ही में, सीढ़ियों से गिर जाने की वज़ह से मेरे घुटनों को चोट लगी। और इस वज़ह से मुझे अपने घुटनों का ऑपरेशन करवाना पड़ा। लेख में दिए गए 10 सुझावों के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। और हाँ, अगली बार इन सुझावों को ध्यान में रखकर ही मैं सीढ़ियों का इस्तेमाल करूँगा।

डी. एन., मेक्सिको

सताहट के बावजूद जीवित रहना “मौत के मुँह में रहकर परमेश्‍वर की सेवा करना” (सितंबर 8, 1999) मैंने यह लेख अभी-अभी पढ़ना खत्म किया है। वाकई सब्र का फल मीठा होता है। क्योंकि अंगोला के भाइयों ने 17 से भी ज़्यादा सालों तक धीरज के साथ ज़ुल्म और तकलीफों का सामना किया है। और इसका नतीजा यह हुआ कि जहाँ इस देश में बढ़ोतरी की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी वहीं आज इतने सारे लोग सच्चाई सीखकर यहोवा के संगठन में शामिल हो रहे हैं।

आर. वाय., जापान