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पिता जो अपनी ज़िम्मेदारी से भागते हैं—क्या वे सचमुच भाग सकते हैं?

पिता जो अपनी ज़िम्मेदारी से भागते हैं—क्या वे सचमुच भाग सकते हैं?

युवा लोग पूछते हैं . . .

पिता जो अपनी ज़िम्मेदारी से भागते हैं—क्या वे सचमुच भाग सकते हैं?

“जब उसने कहा, ‘मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बननेवाली हूँ,’ तो मेरे होश उड़ गए। बच्चे को कौन सँभालेगा? घर-गृहस्थी की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए मैं बिलकुल तैयार नहीं हूँ। मेरा मन कर रहा था कि मैं कहीं भाग जाऊँ।”—जिम। *

ऐलन गुटमाकर संस्था की एक रिपोर्ट कहती है, “हर साल तकरीबन दस लाख किशोरियाँ . . . गर्भवती होती हैं।” जन्म लेनेवाले बच्चों में से “78 प्रतिशत नाजायज़ संबंधों से पैदा होते हैं।”

बीते दिनों में अगर किसी आदमी की नाजायज़ संबंधों से कोई औलाद पैदा होती तो वह शर्म की वज़ह से अपनी औलाद की ज़िम्मेदारी उठाता था। मगर आज हालात बदल गए हैं, टीनएज फादर्स किताब कहती है, “आज तो नौजवान शादी से पहले बच्चे का बाप बनने में कोई शर्म महसूस नहीं करते ना ही उन्हें बदनामी की ही कोई परवाह होती है।” कुछ इलाकों में नौजवानों के बीच शादी से पहले बच्चे का बाप बनना इज़्ज़त का सवाल समझा जाता है! माना कि कुछ नौजवान अपने नाजायज़ संबंधों से जन्मे बच्चे की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए आगे आए हैं। मगर ज़्यादातर नौजवानों को जब पता चलता है कि वे बाप बननेवाले हैं तो वे बच्चे की ज़िम्मेदारी नहीं लेना चाहते या फिर अपना पिंड छुड़ाकर भाग ही जाते हैं। *

लेकिन क्या एक जवान अपने अनैतिक कामों के अंजामों से पूरी तरह बच सकता है? बाइबल के मुताबिक तो बिलकुल नहीं, क्योंकि बाइबल चेतावनी देती है: “धोखा न खाओ, परमेश्‍वर ठट्ठों में नहीं उड़ाया जाता, क्योंकि मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा।” (गलतियों 6:7) हमारे इस लेख में यही बताया गया है कि जो लड़का-लड़की नाजायज़ संबंध रखते हैं उन्हें ज़िंदगी-भर के लिए अपने पापों का फल भुगतना पड़ता है। इसलिए अगर एक नौजवान ऐसे अंजाम से बचना चाहता है तो उसे बाइबल में दिए गए नियमों का पालन करना चाहिए जो साफ-साफ कहते हैं कि व्यभिचार से बचे रहो।

ज़िम्मेदारी से भागना—इतना आसान नहीं

बच्चों की परवरिश करना एक आसान काम हरगिज़ नहीं है। इसमें ना सिर्फ ढेर सारा समय और पैसा लगता है बल्कि एक इंसान को अपनी आज़ादी की बलि भी देनी पड़ती है। कुँवारे नौजवान बाप किताब कहती है, “कुछ जवान मर्द ‘किसी दूसरे की देखभाल करने’ के ख्याल से ही नफरत करते हैं खासकर तब जब उन्हें मालूम चले कि खुद के बजाय उन्हें दूसरे के लिए पैसे कमाने पड़ेंगे।” ऐसे स्वार्थी नौजवानों को अपने किए की भारी कीमत चुकानी पड़ती है। एक तो, बहुत-से देशों की सरकारें और अदालतें ऐसे आदमियों को पसंद नहीं करतीं जो अपने बच्चों की ज़िम्मेदारी से पीछा छुड़ाना चाहते हैं। एक बार अदालत में यह साबित हो जाए कि बच्चे का पिता कौन है तो कानून उसे बच्चे की परवरिश का सारा खर्चा उठाने के लिए मजबूर कर सकता है। इस ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए कई जवानों को मजबूरन स्कूल छोड़ना पड़ता है और कम-पगारवाली नौकरी करनी पड़ती है। स्कूल-एज प्रैगनैन्सी एण्ड पेरन्टहुड किताब ने कहा, “जो नौजवान कम उम्र में एक बच्चे का बाप बनता है, वह ज़्यादा पढ़ाई नहीं कर पाता क्योंकि बच्चे की परवरिश के लिए उसे पढ़ाई छोड़कर काम करना पड़ता है।” अगर वह बच्चे का खर्चा ना दे पाया तो उसे कानून की माँग पूरी करने के लिए उधार लेना पड़ेगा, जिससे वह भारी कर्ज़ में डूब सकता है।

यह कहना सही नहीं कि हर जवान पिता अपने बच्चे की ज़िम्मेदारी से दूर भागता है। बहुत-से पिता शुरूआत में अपनी ज़िम्मेदारी को गंभीरता से लेते हैं। एक सर्वे के मुताबिक 75 प्रतिशत किशोर पिता अपने बच्चे के जन्म के बाद उसे देखने अस्पताल जाते हैं। फिर भी थोड़े समय बाद ज़्यादातर जवान अपने बच्चों को सँभालने की ज़िम्मेदारी से घबरा जाते हैं।

जब बहुत से नौजवानों को यह एहसास होता है कि एक अच्छी नौकरी पाने के लिए न तो उनके पास हुनर है और ना ही अनुभव तो उन्हें बहुत गैरत महसूस होती है। इसी वज़ह से, एक दिन वे अपनी इस ज़िम्मेदारी से पीछा छुड़ाकर भाग जाते हैं। लेकिन पछतावे की कसक ज़िंदगी भर उनका पीछा करती रहती है। एक जवान पिता कबूल करता है, “कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि पता नहीं मेरे बेटे का क्या हुआ होगा। . . . [उसे] छोड़कर मैंने ठीक नहीं किया, लेकिन अफसोस मैं हमेशा के लिए उसे खो बैठा हूँ। शायद, एक दिन वह मुझे ढूँढ़ लेगा।”

बच्चों का नुकसान

इन सब बातों के अलावा, अपनी ज़िम्मेदारी छोड़कर भागनेवाले नौजवान खुद अपनी नज़रों में गिर जाते हैं कि वे कायरों की तरह अपनी ज़िम्मेदारी छोड़कर भाग आए हैं। आखिरकार, बाइबल कहती है कि एक बच्चे की परवरिश करना माता और पिता दोनों की ही ज़िम्मेदारी है। (निर्गमन 20:12; नीतिवचन 1:8, 9) जब एक नौजवान अपनी ही औलाद को छोड़कर भाग जाता है तब वह अपने हाथों उसे मुसीबतों की आग में झोंक देता है। अमरीका के स्वास्थ्य और मानव सेवा विभाग की एक रिपोर्ट कहती है: “अकसर देखा गया है कि जिन बच्चों को सिर्फ माँ पालती है उन्हें बचपन से ही बहुत-सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वे पढ़ाई में कमज़ोर होते हैं, दूसरे लोगों के साथ ठीक तरह से पेश नहीं आते, उनमें बीमार रहने या कोई मानसिक विकार होने का ज़्यादा खतरा रहता है। जब वे बड़े होते हैं तो उन्हें और भी ज़्यादा खतरे रहते हैं जैसे कि उन्हें स्कूल से निकाल दिया जाता है, वे खुद कच्ची उम्र में माँ-बाप बन जाते हैं, किसी अपराध के लिए उन्हें जेल हो जाती है और उन्हें ना तो कोई नौकरी मिलती है ना ही पढ़ाई करना उनके बस में होता है।”

एटलांटिक मंथली मैगज़ीन अंत में कहती है: “बहुत-से सबूतों के मुताबिक तलाक से टूटे परिवारों के बच्चे और नाजायज़ संबंधों से जन्मे बच्चों की तुलना में, अपने माँ-बाप के साथ रहनेवाले बच्चे, ज़िंदगी में ज़्यादा कामयाब होते हैं। जो बच्चे सिर्फ माँ या सिर्फ बाप के सहारे बड़े होते हैं वे अकसर गरीबी में जीवन काटते हैं और ज़िंदगी-भर गरीब ही रहते हैं।”

लेकिन ज़रूरी नहीं कि यह बात हर बच्चे पर लागू हो क्योंकि यह सर्वे सिर्फ आँकड़ों पर आधारित है। ऐसे भी कई बच्चे हैं जिनका बचपन बहुत मुसीबतों में गुज़रा लेकिन बड़े होकर उन्होंने समाज में अपनी एक अच्छी जगह बनाई। फिर भी जो नौजवान अपने बच्चे को छोड़कर भाग जाते हैं वे ज़िंदगी-भर चैन से नहीं रहते। एक कुआँरा पिता कहता है, “मैं कैसा बाप हूँ, मैंने अपने ही हाथों से अपनी औलाद को मुसीबत के कुँए में ढकेल दिया।”—टीनएज फादर्स।

ज़िम्मेदारी निभाने की चुनौती

हर कुआँरा पिता अपनी ज़िम्मेदारी से नहीं भागता। कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास होता है और जो सच्चे दिल से अपने बच्चे की परवरिश करना चाहते हैं। लेकिन चाहना एक बात है और असल में ऐसा कर पाना दूसरी बात। सबसे बड़ी परेशानी तो यह होती है कि एक कुआँरे पिता का अपने बच्चे पर ज़्यादा कानूनी हक नहीं होता। वह बच्चे के साथ कितना वक्‍त गुज़ार सकता है इसका फैसला या तो खुद लड़की करती है या लड़की के माँ-बाप। जिस, जिम का शुरुआत में ज़िक्र किया गया था वह कहता है, “बच्चे पर किस का हक है, इस बात को लेकर लड़ाई शुरू हो जाती है।” कई बार तो एक जवान पिता की मरज़ी के खिलाफ उसके बच्चे को किसी दूसरे को गोद दे दिया जाता है या उसके अजन्मे बच्चे का गर्भपात करवा दिया जाता है। * एक जवान पिता का रोना है, “मुझे यह कभी-भी गवारा नहीं था कि मेरे बच्चे को मेरी आँखों के सामने किसी अजनबी के हाथों में सौंप दिया जाए लेकिन देखते रहने के सिवा मेरे पास और कोई चारा भी नहीं था।”

कुछ नौजवान अपने बच्चे की माँ से शादी करने का प्रस्ताव रखते हैं। * माना कि शादी से लड़की बदनामी से कुछ हद तक बच जायेगी और बच्चे को माँ-बाप दोनों का प्यार मिल जाएगा। साथ ही, यह भी हो सकता है कि इस गलती के बावजूद लड़का-लड़की सचमुच एक-दूसरे से प्यार करते हों। फिर भी, इसका यह मतलब नहीं कि लड़का दिमागी और मानसिक तौर पर एक पति और पिता की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हो। ना ही शादी का प्रस्ताव रखने का यह मतलब है कि वह अपनी बीवी और औलाद की ज़रूरतों को पूरा करने के काबिल है। अध्ययन के मुताबिक इस तरह की शादियाँ ज़्यादा देर तक नहीं टिकती। सो जल्दबाज़ी में फैसला करना हमेशा अकलमंदी की बात नहीं होती है।

बहुत-से जवान पिता अपनी संतान का खर्चा उठाने के लिए आगे आते हैं। लेकिन जैसा पहले बताया गया है कि इसके लिए एक जवान पिता को मज़बूत इरादा करने की ज़रूरत पड़ सकती है क्योंकि उसे सिर्फ एक दो साल के लिए ही नहीं बल्कि शायद 18 या उससे भी ज़्यादा साल तक खर्च उठाना पड़ सकता है! पर अगर इस तरह पैसों की मदद दी जाए तो बेशक इससे माँ और संतान, दोनों गरीबी के दलदल में जाने से बच सकते हैं।

लेकिन औलाद की असल परवरिश में साथ देने के बारे में क्या? ये एक बहुत ही मुश्‍किल चुनौती साबित हो सकती है। कभी-कभी लड़का और लड़की के माँ-बाप को इस बात का डर रहता है कि एक-साथ बच्चे को पालने के वक्‍त कहीं वे दोबारा नाजायज़ संबंध ना करें। इसलिए शायद वे दोनों को अलग रखने की कोशिश करें, यहाँ तक कि शायद वे उन्हें एक-दूसरे से मिलने से भी मना कर दें। या शायद लड़की खुद यह फैसला करे कि जो लड़का उसका पति नहीं है उसका साया तक उसके बच्चे पर ना पड़े। अगर पिता को संतान से मिलने की इजाज़त मिल भी जाती है तो परिवारवालों को यह ध्यान रखने की ज़रूरत है कि मुलाकात के समय लड़का-लड़की के साथ निगरानी के लिए कोई बड़ा व्यक्‍ति रहे ताकि वे अपनी गलती को दोहरा न बैठें।

अपनी औलाद के करीब आने के लिए कुछ कुआँरे पिताओं ने बच्चों को सँभालने के लिए ज़रूरी बातें सीखी हैं जैसे कि बच्चों को नहलाना, खाना खिलाना या उन्हें पढ़कर सुनाना। एक नौजवान जो बाइबल के स्तरों की कदर करना सीख जाता है, वह अपनी संतान को परमेश्‍वर के वचन से कुछ सिद्धांत सिखा सकता है। (इफिसियों 6:4) यह सच है कि एक संतान के लिए पिता के ना होने से लाख गुना यह बेहतर होगा कि उसे पिता का थोड़ा-सा प्यार भी मिल जाए। लेकिन इससे भी लाख दर्जे अच्छी यह बात होगी कि पिता हमेशा बच्चे के साथ रहे। और अगर कहीं बच्चे की माँ की शादी किसी और से हो जाती है तो उसका पति बच्चे को सँभालने की ज़िम्मेदारी ले लेता है। तब एक जवान पिता के पास यह सब देखते रहने के सिवाय और कोई चारा नहीं रहता।

तो यह बिलकुल साफ है कि शादी से पहले बच्चे पैदा करना, माता-पिता और संतान की ज़िंदगी में मुसीबत-ही-मुसीबत ले आता है। इसके अलावा, सबसे बड़ा खतरा है यहोवा को नाराज़ करना क्योंकि वह नाजायज़ संबंधों के सख्त खिलाफ है। (1 थिस्सलुनीकियों 4:3) हालाँकि शादी से पहले माँ/बाप बनने जैसी बुरी परिस्थिति का सामना किया जा सकता है लेकिन शुरू से ही ऐसे नाजायज़ संबंधों से दूर रहने में सबसे बड़ी अकलमंदी है। एक जवान पिता कबूल करता है, “एक बार आप शादी से पहले पिता क्या बनते हैं आपकी सारी ज़िंदगी ही बर्बाद होकर रह जाती है।” जी हाँ, एक जवान पिता को ज़िंदगी-भर के लिए अपनी गलती के अंजाम के साथ जीना पड़ सकता है। (गलतियों 6:8) तो बाइबल की सलाह कितनी सच है, “व्यभिचार से बचे रहो।”—1 कुरिन्थियों 6:18.

[फुटनोट]

^ कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

^ मई 8, 2000 के सजग होइए! अंक में लेख “युवा लोग पूछते हैं . . . शादी से पहले बाप बनना—क्या यह मर्द होने का सबूत है?” देखिए। शादी से पहले माँ बनने के नतीजों के बारे में जुलाई 22, 1985 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) में दिया गया लेख “युवा लोग पूछते हैं . . . शादी से पहले माँ बनना—क्या यह कभी मेरे साथ भी हो सकता है?” देखिए।

^ मार्च 8, 1995 के सजग होइए! (अँग्रेज़ी) का लेख “युवा लोग पूछते हैं . . . गर्भपात—क्या यही एकमात्र रास्ता है?” देखिए।

^ मूसा द्वारा दी गई नियम-व्यवस्था के मुताबिक जो आदमी एक कुआँरी लड़की को फुसलाकर उसे भ्रष्ट करता है, उसे उसी लड़की के साथ शादी करनी थी। (व्यवस्थाविवरण 22:28, 29) लेकिन हर मामले में ऐसा अपने-आप नहीं हो जाता था क्योंकि इस नियम के मुताबिक लड़की का पिता इस शादी से इनकार भी कर सकता था। (निर्गमन 22:16, 17) हालाँकि, आज मसीहियों पर व्यवस्था लागू नहीं होती, लेकिन इससे हमें यह समझने में मदद ज़रूर मिलती है कि शादी से पहले नाजायज़ संबंध रखना कितना बड़ा पाप है।—नवंबर 15, 1989 के प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) में “पाठकों से प्रश्‍न” देखिए।

[पेज 15 पर तसवीर]

शुरू से ही नाजायज़ संबंधों से दूर रहने में अकलमंदी है