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विश्‍व-दर्शन

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दुनिया के करीब एक तिहाई लोग, टीबी के मरीज़

चालीस देशों के 86 विशेषज्ञ कहते हैं कि सन्‌ 1997 में दुनिया की तकरीबन एक तिहाई आबादी (1.86 अरब) को टीबी थी। विश्‍व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि उसी साल 18.7 लाख लोग टीबी से मरे। और 79.6 लाख टीबी के नए शिकार बने। द जर्नल ऑफ दी अमेरिकन मॆडिकल एसोसिएशन के मुताबिक टीबी के अधिकतर मरीज़ एशिया और अफ्रीका के देशों में हैं। कुछ देशों में एड्‌स के साथ-साथ टीबी होने से बड़ी तादाद में लोगों के मरने की संभावना 50 प्रतिशत से भी ज़्यादा हो गई है। इन देशों में रोकथाम न कर पाने की वज़ह से टीबी के मरीज़ों की संख्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है। रिसर्च करनेवालों का अनुमान है कि इस साल लगभग 84 लाख लोग टीबी से पीड़ित होंगे। और टीबी के बहुत-से मरीज़ों को पता भी नहीं चलेगा कि उन्हें टीबी है। मगर जब वे अच्छी खुराक लेना बंद कर देंगे या उनका शरीर बीमारियों से लड़ना बंद कर देगा तब टीबी के शांत जीवाणु अपना असर करना शुरू कर देंगे।

ऊँघते ड्राइवरों का पियक्कड़ ड्राइवरों से मुकाबला

द न्यू यॉर्क टाइम्स अखबार कहता है, “नींद पूरी न लेने का असर ज़्यादा शराब पीने के असर के बराबर हो सकता है।” स्टॆन्फर्ड यूनिवर्सिटी ने एक अध्ययन किया था जिसमें दो ग्रूप के लोगों की जाँच की गई थी। एक ग्रूप में 113 ऐसे लोगों को रखा गया जिन्हें एपनिया है यानी जो रात को नहीं सो पाते और जिसकी वज़ह से वे दिन में ऊँघते हैं। दूसरे ग्रूप में 80 लोगों को रखा गया जिन्हें ऐसी शराब पिलाई गई जिसमें 40 प्रतिशत अलकोहल था। फिर इन दोनों ग्रूप के “सात टैस्ट लिए गए जिनमें से तीन टैस्ट से पता चला कि जिन लोगों को नींद (ऊँघना) की समस्या है, उनकी हालत शराब पीनेवाले लोगों से कहीं बदतर थी। अमरीका के 16 राज्यों में यह कानून है कि अगर किसी व्यक्‍ति के खून में अलकोहल की .08 प्रतिशत मात्रा हो तो ऐसी हालत में गाड़ी चलाना गैर-कानूनी है।” टाइम्स इन टैस्टों के अध्यक्ष, डॉ. नैलसन बी. पवाल के मुताबिक जाँच से यह साफ-साफ पता चलता है कि ऊँघते वक्‍त गाड़ी चलाना ज़्यादा खतरनाक है।

‘टीवी बिना, नहीं जीना!’

अगर आपको एक सुनसान टापू पर कुछ समय बिताना हो तो अपने साथ आप क्या लेकर जायेंगे? यह सवाल जर्मनी के 2,000 जवानों से पूछा गया। वेस्टफॉलिस्शे रुंडशौ अखबार बताता है कि ज़्यादातर जवानों के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ टेलीविज़न और रेडियो के साथ सीडी और केसैट प्लेयर थे। दूसरे स्थान पर खाने-पीने की चीज़ें आती हैं जबकि दोस्त, परिवार के सदस्य और रिश्‍तेदार तीसरे स्थान पर आते हैं। एक 13 साल का लड़का कहता है, “टीवी बिना तो मैं जी ही नहीं सकता।” सिर्फ एक तिहाई जवानों ने कहा कि वे अपने साथ छुरा, कुदाल और आरी जैसे काम आनेवाले औज़ार ले जायेंगे। सिर्फ 0.3 प्रतिशत जवानों ने कहा कि वे अपने साथ बाइबल ले जायेंगे। इस सर्वे में सबसे कम उम्र की सात साल की लड़की ने कहा, “मैं अपने साथ सिर्फ अपनी मम्मी को ले जाऊँगी। अगर मेरी मम्मी होगी तो कोई परेशानी नहीं होगी।”

धार्मिक सभाओं में बच्चों का जाना

हाल की कनैडियन सोशल ट्रॆंड्‌स नामक पत्रिका पूछती है, “क्या बच्चे धार्मिक सभाओं में जाते हैं?” पत्रिका जवाब देती है कि कनाडा के आँकड़ा विभाग के मुताबिक “कनाडा में 12 साल से कम उम्र के ज़्यादातर बच्चे हफ्ते में एक बार धार्मिक सभा में जाते हैं। जबकि 36 प्रतिशत से ज़्यादा बच्चे महीने में कम-से-कम एक बार धार्मिक सभाओं में ज़रूर हाज़िर होते हैं। इसके अलावा 22 प्रतिशत बच्चे साल में लगभग एक बार धार्मिक सभाओं में हाज़िर होते हैं।” पत्रिका साफ-साफ यह भी कहती है कि “बच्चों का लगातार धार्मिक सभाओं में जाना इस बात पर निर्भर करता है कि वे किस धर्म से जुड़े हुए हैं। . . . बहुत-से रिसर्च करनेवालों का कहना है कि जो बच्चे ऐंग्लिकन और युनाइटॆड चर्च जैसे मुख्य धर्मों को मानते हैं, उनकी हाज़िरी सभाओं में बहुत कम होती है (18%).” रोमन कैथोलिक बच्चे थोड़े बेहतर हैं क्योंकि हफ्ते में उनकी हाज़िरी 22 प्रतिशत है। हालाँकि मुस्लिम बच्चों की धार्मिक सभाओं में हर हफ्ते की हाज़िरी 44 प्रतिशत है, मगर इस सर्वे के एक साल पहले “39% मुस्लिम बच्चे अपनी धार्मिक सभाओं में नहीं जाते थे जो बाकी धर्मों के बच्चों के मुकाबले सबसे ज़्यादा था।”