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झूठा प्रचार विनाशकारी हो सकता है

झूठा प्रचार विनाशकारी हो सकता है

झूठा प्रचार विनाशकारी हो सकता है

“झूठ सरपट दौड़कर आधी दुनिया घूम लेता है, तब तक सच अपने जूते के फीते ही कस रहा होता है।”—मार्क ट्‌वेन की ज़ुबानी।

“नीच यहूदी, तेरी यह मजाल!” क्लास टीचर ने आग-बबूला होकर एक लड़के के गाल पर ज़ोर का तमाचा मारा। इतना ही नहीं, इसके बाद उस टीचर ने पूरी क्लास के बच्चों को इस लड़के के मुँह पर थूकने को कहा। कहने की देर थी कि सारे बच्चे लाइन लगाकर खड़े हो गए।

यह लड़का असल में उस टीचर का भतीजा था। इसलिए वह बहुत अच्छी तरह जानती थी कि उस लड़के के माँ-बाप यहूदी जाति के नहीं हैं ना ही वे यहूदी धर्म को मानते हैं। वह लड़का और उसके माँ-बाप यहोवा के साक्षी थे, इसी वज़ह से यह टीचर उस लड़के से चिढ़ती थी। और उन पर अपना गुस्सा उतारने के लिए उसने अपने भतीजे को यहूदी कहा क्योंकि उस वक्‍त यहूदियों के खिलाफ लोगों में नफरत की आग भड़की हुई थी। इसके अलावा, वहाँ के पादरियों ने भी इस टीचर और बाकी छात्रों के दिल में यहोवा के साक्षियों के खिलाफ नफरत के बीज बोए थे। इस लड़के के माँ-बाप भी झूठे इलज़ामों का शिकार हुए थे, कभी उन्हें कम्यूनिस्ट कहकर तो कभी अमरीकी जासूस कहकर बदनाम किया जाता था।

किसी खास धर्म या जाति के खिलाफ नफरत की आग भड़काना कोई नयी बात नहीं है। आज से करीब 60 साल पहले जर्मनी और उसके आस-पास के देशों में यहूदियों के खिलाफ झूठा प्रचार करके उन्हें ऐसे ही बदनाम किया गया था। उनके बारे में न जाने क्या-क्या झूठी बातें फैलायी गयी थीं, और इसी वज़ह से लोगों ने समझा कि ऐसी जाति का खात्मा ना सिर्फ ज़रूरी है बल्कि जायज़ भी है। इसी झूठे प्रचार की आड़ में हिटलर ने नात्ज़ी यातना शिविरों में यहूदियों को बुरी तरह तड़पाया और ज़हरीली गैस से 60 लाख यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया।

किसी धर्म या जाति के खिलाफ नफरत भड़काने के अलावा आज हर तरह के लोग दूसरों को अपने चंगुल में फँसाने या उनका दिल जीतने के लिए “प्रोपगैंडा” या प्रचार-प्रसार करते हैं। ऐसे प्रोपगैंडा से कुछ चिन्हों के ज़रिए लोगों के मन में घृणा पैदा की जाती है, जैसे कि स्वास्तिका या कोई झंडा या फिर किसी वर्ग के लोगों के खिलाफ चुभनेवाला मज़ाक। नेता, पादरी, सेल्समैन, व्यापारी, पत्रकार, या एडवर्टाइज़र्स अपनी ज़ुबान का इस्तेमाल करके दूसरों के सोचने और व्यवहार करने के तरीके को ही बदल देते हैं।

माना कि प्रोपगैंडा को समाज की भलाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। दहेज-प्रथा, बाल-मजदूरी, ड्रग्स के खिलाफ प्रचार करने से बहुत फायदे हुए हैं। लेकिन प्रोपगैंडा का ज़्यादातर इस्तेमाल गलत कामों के लिए किया जाता है। मिसाल के तौर पर, सिगरेट-शराब की एडवरटिज़मेंट देकर लोगों को इन्हें पीने के लिए उकसाया जा रहा है। इनके बारे में खोजकर्ता एन्थनी प्रातकानिस और एलीयट एरॉनसन कहते हैं, “हर दिन हम हज़ारों एडवरटिज़मेंट देखते हैं। ये तर्क की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ते बल्कि इनके ज़रिए हमारे जज़्बातों से खिलवाड़ करके हमें काबू में करने की कोशिश की जाती है। चाहे समाज की भलाई के लिए हो या बुराई के लिए, एक बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हमारा ज़माना, प्रोपगैंडा का ज़माना है।”

प्रचार-प्रसार या प्रोपगैंडा का बीती सदियों के दौरान लोगों के सोच-विचार और व्यवहार पर कैसा असर हुआ? आप गलत किस्म की जानकारी या प्रचार-प्रसार से कैसे बच सकते हैं? क्या हमें कहीं से ऐसी जानकारी मिल सकती है जिस पर पूरा भरोसा किया जा सकता है? ऐसे सवालों के जवाब अगले लेखों में दिए जाएँगे।

[पेज 3 पर तसवीर]

झूठे प्रचार के ज़रिए जर्मनी में यहूदियों के खिलाफ नफरत की आग भड़काई गई