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हमारे पाठकों से

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टाग्वा बीज सन्‌ 1954 से मैं आपकी हर मैगज़ीन पढ़ती आ रही हूँ। और हर बार इन मैगज़ीनों में हैरान कर देनेवाले लेख पढ़ने को मिलते हैं जिनमें यह बताया जाता है कि यहोवा की बनाई हुई चीज़ों को हम कितने सारे कामों के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। इन लेखों में से एक था “टाग्वा बीज—हाथियों का रखवाला?” (दिसंबर 8, 1999) इन लेखों के ज़रिए परमेश्‍वर की अद्‌भुत बुद्धि के लिए हमारी कदर और भी ज़्यादा बढ़ जाती है। इस मदद के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

डी. एच., अमरीका

मिलनसार मैं 16 साल की हूँ। “युवा लोग पूछते हैं . . . मैं किस तरह और भी ज़्यादा मिलनसार बन सकता हूँ?” (दिसंबर 8, 1999), यह लेख मेरे दिल को छू गया क्योंकि दूसरों के साथ बातचीत करना मुझे बहुत मुश्‍किल लगता है। खासकर कलीसिया के भाई-बहनों के साथ। हम जैसे शर्मीले नौजवानों के बारे में सोचने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। मैं इस लेख में दी गई बढ़िया सलाहों का इस्तेमाल करने की कोशिश ज़रूर करूँगी।

आइ. ए., फ्रांस

गानेवाले पंछी “युगल गायकों का अनोखा अंदाज़” (जनवरी 8, 2000) लेख के लिए मैं आपका धन्यवाद करना चाहती हूँ। लेख पढ़ते वक्‍त मैं कल्पना करने लगी कि ये पंछी पेड़ के डाली पर बैठकर कैसे इतना मधुर गीत गा रहे हैं! मैं हर रोज़ यहोवा का धन्यवाद करती हूँ कि उसने हमारे आनंद के लिए ऐसे कई प्राणी बनाए हैं।

वाई. एस., जापान

अंधविश्‍वास मैं एक भाषाविज्ञानी हूँ। मैं आपको बताना चाहता हूँ कि दिसंबर 8, 1999 की सजग होइए! के “अंधविश्‍वास—इतना खतरनाक क्यों है?” लेखों में आपने एक गलत बात छापी है। आपने यह कहा कि किसी के छींकने पर यह कहना, “भगवान तेरा भला करे” के लिए जर्मन शब्द गेज़ुनटहाइट का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन असल में इस जर्मन शब्द का अँग्रेज़ी अनुवाद “अच्छा स्वास्थ्य” है।

सी. सी., अमरीका

हमने यह नहीं कहा कि अँग्रेज़ी कहावत का एकदम सही अनुवाद “गेज़ुनटहाइट” है। बल्कि यह जर्मन शब्द दूसरी दो भाषाओं के शब्दों के साथ बताया गया था जिनका मतलब “एक-सा” माना जाता है और अँग्रेज़ी कहावत “भगवान तेरा भला करे” के लिए इस्तेमाल किया जाता है।—संपादक।

शर्मीलापन “युवा लोग पूछते हैं . . . लोगों से मिलने-जुलने के डर को मैं कैसे मिटा सकता हूँ?” (नवंबर 8, 1999) इस लेख को मैंने पढ़ा जिसके लिए मैं आपको तहे दिल से धन्यवाद करना चाहती हूँ। यह लेख वाकई सही वक्‍त पर दिया गया आध्यात्मिक भोजन है। मैं 17 साल की हूँ। बचपन से ही मैं शर्मीलेपन का शिकार रही हूँ। मसीही सभाओं में मेरी बिल्कुल भी हिम्मत नहीं होती कि मैं नए लोगों से मिल सकूँ या उनसे बात कर सकूँ। इस वज़ह से मैंने कई बार भाई-बहनों के साथ जान-पहचान बढ़ाने और दोस्ती करने के मौके हाथ से गवाँ दिए हैं। आपके इस लेख ने मुझे यह समझने में मदद दी कि शर्मीलापन एक आम बात है और इसे दूर किया जा सकता है।

बी. एच., अमरीका