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उसे देखिए, जो आपकी नज़रों से परे है

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यूटर्न लेते वक्‍त ड्राइवर को दूसरी तरफ से आ रही गाड़ियाँ दिखायी नहीं देतीं। लेकिन अगर टर्निंग पर शीशा लगा हो, तो वह आते हुए ट्रैफिक को साफ-साफ देख पाता है। उसी तरह हम इंसान इस जहाँ के बनानेवाले परमेश्‍वर को देख नहीं सकते। तो फिर, परमेश्‍वर के वजूद को जानने में कौन-सी चीज़ हमारी मदद कर सकती है?

इसके बारे में पहली सदी के एक लेखक ने लिखा: “परमेश्‍वर के अदृश्‍य गुण, अर्थात्‌ उसकी शाश्‍वत सामर्थ्य और ईश्‍वरत्व संसार के आरम्भ से ही उसकी सृष्टि में स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं, अत: उन लोगों के पास कोई उत्तर नहीं है।”—रोमियों 1:20, नयी हिन्दी बाइबिल।

क्या इस सृष्टि को देखकर आपको एक बुद्धिमान परमेश्‍वर के होने का सबूत मिलता है? क्या आपको अपनी ‘मन की आंखों’ से दिखता है कि इस सृष्टि के पीछे कोई ऐसा है जो इंसान से ज़्यादा बुद्धिमान है? आइए कुछ उदाहरणों पर गौर करें।—इफिसियों 1:18.

सृष्टि में परमेश्‍वर के सबूत

क्या आपने चांदनी रात में, तारों भरे आसमान को कभी निहारा है, और क्या उस वक्‍त आपको परमेश्‍वर के वजूद का एहसास हुआ है? सदियों पहले एक आदमी ने तारों को निहारने के बाद लिखा: “आकाश ईश्‍वर की महिमा वर्णन कर रहा है; और आकाश मण्डल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है।” उसने आगे लिखा: “जब मैं आकाश को, जो तेरे हाथों का कार्य है, और चंद्रमा और तारागण को जो तू ने नियुक्‍त किए हैं, देखता हूं; तो फिर मनुष्य क्या है कि तू उसका स्मरण रखे, और आदमी क्या है कि तू उसकी सुधि ले?”—भजन 8:3,4; 19:1.

परमेश्‍वर के हाथ की करामात यानी सृष्टि इतने कमाल की है कि इंसान उसकी हू-ब-हू नकल हरगिज़ नहीं उतार सकता। इसीलिए एक मशहूर अँग्रेज़ी कविता में कहा गया है: “पेड़ सिर्फ परमेश्‍वर ही बना सकता है।” लेकिन एक छोटे-से बच्चे की रचना हमें पेड़ से भी ज़्यादा हैरान कर देती है, जिसके बढ़ने का एहसास भी उसके माँ-बाप को नहीं होता। जब पिता का शुक्राणु माँ के अंडाणु से मिलता है, तो इससे एक नया सॆल पैदा होता है और माँ के गर्भ में बच्चे की रचना अपने-आप ही होने लगती है। इस सॆल के DNA में फौरन ही बच्चे की पूरी रूप-रेखा तैयार हो जाती है। कहा जाता है कि “अगर DNA की इस जानकारी को लिखा जाए, तो 600 पन्‍नोंवाली एक हज़ार किताबें भर जाएँगी।”

मगर यह तो सिर्फ शुरुआत है। यह एक सॆल आगे जाकर दो सॆल में बँट जाता है, फिर चार, फिर आठ, सोलह और इस तरह वे बढ़ते जाते हैं। करीब 270 दिनों के बाद बच्चे का जन्म होता है, जिसके शरीर में अब 200 से ज़्यादा किस्म के अरबों सॆल होते हैं। ज़रा सोचिए, पहले सॆल में बाकी सभी 200 किस्म के अरबों सॆलों के बनने, अलग-अलग अंग बनने, और सही वक्‍त पर बच्चे के पैदा होने की सारी जानकारी मौजूद थी! क्या यह सब जानकर आपका दिल अपने बनानेवाले परमेश्‍वर का एहसान मानने के लिए नहीं करता? एक व्यक्‍ति ने एक भजन में लिखा: “तू ने मेरे भीतरी अंगों को बनाया है, तू ने मुझे मां के गर्भ में रचा है। मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, क्योंकि मैं भयानक और अद्‌भुत रीति से बनाया गया हूं।”—भजन 139:13-16, NHT.

बच्चे की रचना की स्टडी करनेवाले लोग भी इस चमत्कार को देखकर दंग रह जाते हैं। शिकागो एण्ड इलिनॉय स्टेट मेडिकल सोसाइटी के भूतपूर्व अध्यक्ष डॉ. जेम्स एच. हटन कहते हैं कि उन्हें यह देखकर बहुत ही हैरानी होती है कि सॆल में “ऐसी जादुई शक्‍ति होती है कि वह दूसरे सॆलों को उनके काम आनेवाली सारी जानकारी पहले से ही दे देता है। वैज्ञानिक इस बात का पता लगा सके यह वाकई काबिले-तारीफ है। मगर असल में तारीफ तो हमें उस बुद्धिमान हस्ती की करनी चाहिए, जिसने ये सारा इंतज़ाम किया है।”

डॉ. हटन आगे कहते हैं: “मैं शरीर के सिर्फ एंडोक्राइन ग्रंथियों की स्टडी करता हूँ। और इनकी स्टडी करके मुझे पूरा यकीन हो गया है कि हमें ज़रूर ऊपरवाले ने ही बनाया है।” वो आगे कहते हैं: “कुदरत के इन चमत्कारों को देखने के बाद, मुझे लगता है कि ज़रूर किसी महाशक्‍ति और परम-ज्ञानी ने इस जहाँ को रचने से पहले अच्छी प्लानिंग की होगी, और इसे उतनी ही खूबसूरती से बनाया है और अब इसे कंट्रोल कर रहा है।”

अपनी राय ज़ाहिर करने के बाद वे आगे कहते हैं: “लेकिन मुझे नहीं लगता कि उस परमेश्‍वर को हम इंसानों की रोज़-मर्रा की ज़िंदगी में कोई दिलचस्पी है।”

लोग यह ज़रूर कबूल करते हैं कि सृष्टि के रचने में परमेश्‍वर का हाथ है। मगर वे यह कबूल क्यों नहीं करते कि परमेश्‍वर इंसानों की परवाह भी करता है?

क्या परमेश्‍वर वाकई हमारी परवाह करता है?

कई लोग कहते हैं कि अगर परमेश्‍वर को हमारी परवाह होती, तो वह हमारे दुःख-तकलीफों को दूर क्यों नहीं करता। वे पूछते हैं “जब मुझे मदद की ज़रूरत थी, तब वो कहाँ था?” दूसरे विश्‍व-युद्ध के दौरान जर्मनी के शिविरों में लोगों को बुरी तरह तड़पा-तड़पाकर मारा जा रहा था। वहाँ से ज़िंदा बचनेवाले एक व्यक्‍ति ने लोगों का दुःख देखकर कहा: “मेरी रगों में खून नहीं, ज़हर दौड़ रहा है।”

इसलिए कई लोग एक अजीब-सी कश्‍मकश में हैं। इस सृष्टि को देखकर उन्हें परमेश्‍वर के वजूद पर तो कोई शक नहीं होता, मगर वे यह समझ नहीं पाते कि अगर एक परमेश्‍वर है तो वह हमारी दुःख-तकलीफों को क्यों नहीं मिटाता? क्यों वह देखकर भी खामोश रहता है? सो, अगर हम चाहते हैं कि हम परमेश्‍वर को समझें, सच्चे दिल से उसकी भक्‍ति करें, तो हमें पहले इन सवालों के जवाब जानने होंगे। इनके जवाब हमें कहाँ मिल सकते हैं?

ये जवाब आपको एक ब्रोशर में मिलेंगे, जिसका नाम है क्या परमेश्‍वर वास्तव में हमारी परवाह करता है? इस मैगज़ीन के आखिरी पेज पर बताया गया है कि आप यह ब्रोशर कैसे मँगा सकते हैं। इस किताब में बताया गया है कि ‘परमेश्‍वर ने अभी तक दुःख-तकलीफ को क्यों खत्म नहीं किया,’ और “विद्रोह का परिणाम क्या हुआ है?” हमें यकीन है कि आपको इस ब्रोशर में अपने जवाब ज़रूर मिल जाएँगे।

[पेज 10 पर तसवीरें]

क्या आपको इनमें परमेश्‍वर का वजूद दिखता है?