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नर्सों की अहम भूमिका

नर्सों की अहम भूमिका

नर्सों की अहम भूमिका

“नर्स हर पल बीमार, घायल और बूढ़ों की सेवा करने के लिए तैयार रहती है। नर्स प्यार और ममता के साथ मरीज़ की देखभाल करती है, उसकी हिम्मत बढ़ाती है और उसकी रक्षा करती है।—आज की दुनिया में नर्सिंग—चुनौतियाँ, समस्याएँ और प्रवृत्तियाँ। (अँग्रेज़ी)

एक कुशल नर्स बनने के लिए सिर्फ त्याग की भावना होना ही काफी नहीं है। अच्छी नर्स बनने के लिए अच्छी ट्रेनिंग और काफी तजुर्बा होना भी ज़रूरी है। इसके लिए ज़रूरी होता कि एक से लेकर चार साल तक या उससे भी ज़्यादा समय तक पढ़ाई की जाए और प्रैक्टिकल ट्रेनिंग ली जाए। लेकिन एक कुशल नर्स में कौन-कौन से गुण होने चाहिए? इसके जवाब के लिए सजग होइए! ने कुछ तजुर्बेकार नर्सों के इंटरव्यू लिए जो यहाँ दिए गए हैं।

“ये बात सच है कि एक मरीज़ का इलाज डॉक्टर करता है, मगर उस मरीज़ की देखभाल नर्स करती है। वो मरीज़ के सिर्फ बाहरी ज़ख्मों पर ही नहीं बल्कि उसके अंदरूनी ज़ख्मों पर भी मरहम लगाती है। ऐसी मदद की ज़रूरत मरीज़ को तब और ज़्यादा महसूस होती है जब उसे बताया जाता है कि उसे कोई जानलेवा बीमारी है या वह कुछ ही दिनों का मेहमान है। रोगी के लिए एक नर्स को माँ बनना पड़ता है।”—कारमेन किलमार्टीन, स्पेन।

“एक नर्स में मरीज़ के दर्द और तकलीफों को समझने की काबिलीयत होनी चाहिए और दिल से उसकी मदद भी करनी चाहिए। मरीज़ के साथ अपनेपन और धीरज से पेश आना चाहिए। इतना ही नहीं बल्कि एक नर्स को अपने पेशे के बारे में और इलाज के नए-नए तरीकों के बारे में हमेशा सीखते रहने की ज़रूरत है।”—तादाशी हातानो, जापान।

“हाल के सालों में नर्सों को अपने पेशे के बारे में और भी ज़्यादा सीखने की ज़रूरत पड़ी है। इसीलिए पढ़ने की इच्छा और जो पढ़ा है उसे समझने की काबिलीयत होना बहुत ही आवश्‍यक है। इसके अलावा कभी-कभी ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं जब नर्सों को खुद जल्द-से-जल्द कोई निर्णय लेने और फौरन कदम उठाने की ज़रूरत आन पड़ती है।”—केको कावाने, जापान।

“एक नर्स का स्वभाव दोस्ताना होना चाहिए। हमदर्द होने के साथ-साथ उसमें बहुत कुछ सहन करने की भी हिम्मत होनी चाहिए।”—अरासेली गार्सिया पादीया, मेक्सिको।

“एक काबिल नर्स में नयी-नयी बातें सीखने की लगन होनी चाहिए। उसे दूसरों की ज़रूरतों का एहसास होना चाहिए और अपने पेशे में माहिर होना चाहिए। अगर एक नर्स में त्याग की भावना न हो या वह चिकित्सा के क्षेत्र में अपने ऊपर काम करनेवालों की सलाह न सुने तो वह अपने मरीज़ों और साथ काम करनेवालों के साथ अच्छा ताल-मेल नहीं बिठा पाएगी।”—रोसान्ज़ेला सान्तोस, ब्राज़ील।

“कुछ ऐसे गुण हैं जिनके बिना एक नर्स काम नहीं कर सकती, जैसे कि हालात के हिसाब से खुद को ढाल लेना, धीरज और सहनशक्‍ति से काम लेना। एक नर्स को दूसरों की सलाह मानने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। अपने साथ काम करनेवालों और अपने ऊपर काम करनेवालों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर काम करना चाहिए। और अपने काम में कुशल रहने के लिए अपने पेशे से जुड़े किसी भी नए तौर-तरीके को सीखने और उसे अमल में लाने से पीछे नहीं हटना चाहिए।”—मार्क कीलर, फ्रांस।

“एक नर्स में लोगों के लिए प्यार और उनकी मदद करने का जज़्बा होना चाहिए। नर्सिंग के पेशे में तो तनाव रहता ही है क्योंकि ज़रा-सी गलती या लापरवाही से लेने के देने पड़ सकते हैं। मगर एक नर्स को इस तनाव का सामना करना चाहिए और स्टाफ की कमी होने पर अगर उसे ज़्यादा काम करना पड़े तब भी उसे उतने ही अच्छे ढंग से काम करना चाहिए।”—क्लॉडिया रेकर-बाकर, नॆदरलैंड्‌स।

मरीज़ की सेवा —नर्स की ज़िम्मेदारी

आज की दुनिया में नर्सिंग (अँग्रेज़ी) किताब के अनुसार “नर्सिंग का मतलब हर तरह के हालात में मरीज़ की देखभाल करना है। इसलिए जब मरीज़ के इलाज की बात आती है तब हमें चिकित्सा और दवाइयों का ख्याल आता है मगर जब उसकी सेवा-टहल की बात आती है तब तुरंत हमारे मन में नर्स की तस्वीर उभर आती है।”

इसलिए मरीज़ की सेवा करना एक नर्स की ज़िम्मेदारी है। कुछ समय पहले 1,200 रजिस्टर्ड नर्सों से पूछा गया था कि “एक नर्स के तौर पर आपके लिए कौन-सी बात सबसे ज़्यादा अहमियत रखती है?” 98 प्रतिशत नर्सों का एक ही जवाब था, मरीज़ों की बढ़िया-से-बढ़िया सेवा करना।

कभी-कभी खुद नर्सें यह समझने में नाकाम रहती हैं कि मरीज़ों के लिए उनकी कितनी अहमियत है। कारमेन किलमार्टीन नाम की एक नर्स ने, जिसका ज़िक्र पहले भी हो चुका है और जिसे 12 साल का तजुर्बा है सजग होइए! से कहा: “एक बार मैंने अपनी सहेली से कहा कि मुझे ऐसा लगता है जैसे कि अपने बहुत ही बीमार मरीज़ों की मैं अच्छी सेवा नहीं कर पा रही हूँ। मैं सिर्फ उनके लिए एक ‘बैंड-एड’ के माफिक हूँ, इससे ज़्यादा कुछ नहीं। इस बात पर मेरी सहेली ने मुझसे कहा: ‘मगर यह “बैंड-एड” कोई ऐसा-वैसा नहीं है बल्कि बहुत चमत्कारी “बैंड-एड” है क्योंकि जब कोई बीमार पड़ जाता है, उस वक्‍त उसे सबसे ज़्यादा तुम्हारे जैसी एक हमदर्द नर्स की ज़रूरत होती है।’”

इससे साफ ज़ाहिर होता है कि मरीज़ों की इस तरह देखभाल करने से नर्सें काफी थक जाती हैं, क्योंकि उन्हें हर दिन 10 घंटे से भी ज़्यादा काम करना पड़ता है। इन नर्सों को, त्याग करके दूसरों की सेवा करने की प्रेरणा कहाँ से मिली है?

नर्स बनने का ही फैसला क्यों?

दुनिया की अलग-अलग जगहों पर सजग होइए! ने इंटरव्यू के दौरान नर्सों से एक सवाल किया: “आपने नर्स बनने का ही फैसला क्यों किया?” उन्होंने इस तरह से जवाब दिए।

टॆरी वेदरसन 47 साल से इस पेशे में है। फिलहाल वह इंग्लैंड के मैनचेस्टर शहर के एक अस्पताल में नर्स है। वहाँ वह यूरॉलजी विभाग में एक क्लिनिकल नर्स स्पेशलिस्ट की हैसियत से काम करती है। वह कहती है: “मेरी परवरिश एक कैथोलिक परिवार में हुई थी और मेरी पढ़ाई भी एक कैथोलिक बोर्डिंग स्कूल में हुई। जब मैं छोटी थी तो मैंने फैसला किया कि मैं बड़ी होकर या तो नन बनूँगी या एक नर्स। क्योंकि मेरी दिली-ख्वाहिश थी कि मैं दूसरों की सेवा करूँ। आप शायद इसे एक पेशा मानें। और जैसा कि आप देख रहे हैं मैंने बतौर नर्स काम करने का फैसला किया।”

जापान के साइटामा शहर में चीवा मतसुनागा का अपना क्लिनिक है जिसे वह पिछले 8 सालों से चला रही है। उसका कहना है: “मेरे पिता कहा करते थे कि ‘ऐसा कोई हुनर सीखो जिससे तुम्हें मरते दम तक काम मिलता रहे।’ इसलिए मैंने नर्सिंग का पेशा अपनाया।”

जापान में टोक्यो शहर की एट्‌सको कोटानी एक हेड-नर्स है और उसे 38 साल का तजुर्बा है। वह कहती है: “यह उस समय की बात है जब मैं स्कूल पढ़ती थी। एक दिन अचानक मेरे पिता गिर पड़े और उनका बहुत सारा खून बह गया। अस्पताल में अपने पिता की देखभाल करते वक्‍त ही मैंने ठान लिया कि मैं बड़ी होकर एक नर्स बनूँगी ताकि बीमार लोगों की सेवा कर सकूँ।”

कई लोग जब खुद बीमार पड़े और जैसा बर्ताव उनके साथ किया गया, उससे भी उन्हें इस पेशे को अपनाने की प्रेरणा मिली। मेक्सिको की एक नर्स, एनेडा बीएरा ने कहा: “छः साल की उम्र में ब्रॉन्काइटिस होने के कारण मुझे दो हफ्ते तक अस्पताल में रहना पड़ा और तभी मैंने सोच लिया था कि मैं एक नर्स बनूँगी।”

इससे साफ पता चलता है कि नर्स बनने के लिए बड़े-बड़े त्याग करने पड़ते हैं। आइए गौर करें कि इस नेक काम में क्या-क्या खुशियाँ मिलती हैं साथ ही कौन-कौन-सी चुनौतियों से जूझना पड़ता है।

नर्स बनने में जो खुशी है

नर्स बनने से क्या-क्या खुशियाँ मिलती हैं? इसका जवाब तो इस बात पर निर्भर करता है कि नर्स, नर्सिंग के किस क्षेत्र में काम करती/ते हैं। अब दाइयों को ही ले लीजिए। हर बच्चा जो उनकी मदद से जन्म लेता है उसे देखकर उनको कितनी खुशी मिलती है। नॆदरलैंड्‌स की एक दाई कहती है: “एक दाई गर्भ में पल रहे बच्चे की जाँच करती रहती है, और जब उसकी मदद से एक तंदुरुस्त बच्चा जन्म लेता है तो उस वक्‍त उसकी खुशी का अंदाज़ा कोई नहीं लगा सकता। वहीं की योलांदा कीलन-फान हॉफ्त कहती है: “एक बच्चे का दुनिया में कदम रखना माँ-बाप और एक दाई के लिए सबसे खूबसूरत अनुभव होता है। वाकई यह किसी चमत्कार से कम नहीं है!”

राशित असाम (पुरुष) जिसकी उम्र 40 से ऊपर है, फ्रांस के द्रू शहर में एक सरकार-मान्य नर्स है, जो मरीज़ों को एनस्थिज़िया देता है। उसे अपना काम इतना पसंद क्यों है? वह कहता है कि “जब कोई ऑपरेशन कामयाब होता है तो मुझे बड़ा संतोष मिलता है कि इस कामयाबी में मेरा भी हाथ है। साथ ही मुझे इस बात से भी खुशी मिलती है कि मैं एक ऐसे अद्‌भुत पेशे से जुड़ा हुआ हूँ जहाँ दिन-पर-दिन तरक्की हो रही है।” फ्रांस का आइज़ैक बांगीली (पुरुष) भी कहता है: “खासकर जब हम उम्मीद न होने पर भी मरीज़ को खतरे की हालत से बाहर निकालने में कामयाब हो जाते हैं, तब मरीज़ों और उनके परिवारवालों से मिलनेवाली दुआएँ मेरे दिल को छू जाती हैं।”

टॆरी वेदरसन जिसका ज़िक्र हमने पहले भी किया है, उसे भी एक बार धन्यवाद भरा खत मिला। एक विधवा ने उसे अपने खत में लिखा: “जब भी मैं यह सोचती हूँ कि किस तरह चार्ल्स की बीमारी के दौरान आपकी मौजूदगी ने हमारा हौसला बढ़ाया और हमें राहत दी तो बार-बार आपको धन्यवाद कहने का दिल चाहता है। आपका प्यार एक चट्टान की तरह मज़बूत था और उम्मीद की ऐसी किरण था जिसने हमें मुसीबत के उस तूफान का डटकर सामना करने की हिम्मत दी।”

चुनौतियों का सामना करना

नर्सों को इस पेशे से जुड़ी खुशियों के साथ-साथ कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। क्योंकि ज़रा सी लापरवाही होने से मरीज़ को भारी नुकसान हो सकता है! चाहे मरीज़ को दवा देनी हो, उसका खून टेस्ट करने के लिए शरीर से खून निकालना हो, नसों द्वारा शरीर में दवाइयाँ चढ़ानी हो या सिर्फ मरीज़ को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना हो इन सभी कामों में एक नर्स को बड़ी सावधानी बरतने की ज़रूरत पड़ती है। एक नर्स के लिए गलती करने की कोई गुंजाइश नहीं है और खास तौर पर उन देशों में जहाँ उसकी लापरवाही की वजह से मरीज़ उस पर मुकद्दमा दायर कर सकता है। कई बार ऐसा भी होता है जब नर्स बड़ी दुविधा में पड़ जाती है। मिसाल के तौर पर अगर एक नर्स को लगता है कि डॉक्टर ने मरीज़ को गलत दवा लिखकर दी है या डॉक्टर ने कुछ ऐसा करने के लिए कहा है जो मरीज़ के लिए अच्छा नहीं होगा। ऐसे में एक नर्स क्या करेगी/गा? क्या उसे डॉक्टर के आदेशों पर आपत्ति उठानी चाहिए? इसके लिए उसे हिम्मत, समझ-बूझ और व्यावहारिकता की ज़रूरत होगी, और ऐसा करने से शायद एक नर्स की नौकरी खतरे में पड़ जाए। दुःख की बात यह है कि कुछ डॉक्टर अपने नीचे काम करनेवालों की सलाह को कोई अहमियत नहीं देते हैं।

इस बारे में नर्सों का क्या कहना है? अमरीका के विसकॉनसन प्राँत में 34 साल से एक रजिस्टर्ड नर्स के तौर पर काम कर रही बारब्रा राइनेके ने सजग होइए! को बताया: “एक नर्स को हर हाल में हिम्मत से काम लेना चाहिए। क्योंकि वह मरीज़ का जो भी इलाज करती है या दवाइयाँ देती है, अगर उसकी वजह से मरीज़ को कोई नुकसान पहुँचता है तो कानूनी तौर पर नर्स को ज़िम्मेवार ठहराया जाता है। इसलिए अगर कभी डॉक्टर उसे कुछ ऐसा करने को कहे जो उसे लगता है कि उसकी प्रैक्टिस के दायरे से बाहर है या गलत है तो उसे डॉक्टर की बात मानने से साफ मना करने में संकोच महसूस नहीं करना चाहिए। आज नर्सिंग का पेशा बहुत बदल चुका है। अब फ्लोरेंस नाइटिंगेल के ज़माने की नर्सिंग या सिर्फ 50 साल पहले की नर्सिंग का ज़माना नहीं रहा। आज नर्सों को यह समझने की ज़रूरत है कि उसे कब डॉक्टर को ‘ना’ कहना होगा और कब डॉक्टर को मरीज़ की जाँच करने के लिए मजबूर करना होगा भले ही वह आधी-रात क्यों न हो। और अगर कभी नर्स गलत भी हो तो उसे डॉक्टर की चुभनेवाली बातों को सुनने के लिए भी तैयार रहना होगा।”

नर्सों की एक और समस्या यह है कि कई बार उन्हें अपने काम में हिंसा का शिकार होना पड़ता है। दक्षिण अफ्रीका से मिली एक रिपोर्ट के मुताबिक नर्सों के साथ “अस्पतालों में हिंसा और दुर्व्यवहार किए जाने का ज़्यादा खतरा रहता है। अपने काम के दौरान हमले का इतना खतरा तो पुलिस अफसरों और जेल के पहरेदारों को भी नहीं होता जितना कि नर्सों को होता है। 72 प्रतिशत नर्सों का कहना है कि वे अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं करतीं।” ब्रिटेन की भी यही हालत है। हाल में किए गए एक सर्वे के मुताबिक 97 प्रतिशत नर्सों ने कहा कि पिछले साल [1998] के दौरान ऐसे हादसे हुए जहाँ नर्सों पर शारीरिक रूप से हमला किया गया। आखिर उन्हें इतनी हिंसा का सामना क्यों करना पड़ रहा है? क्योंकि जिन मरीज़ों की वे देखभाल करती हैं उनमें वे लोग होते हैं जो ड्रग्स लेते हैं, शराबी हैं, तनाव-ग्रस्त हैं और दुःख से पीड़ित हैं। और नर्सें अकसर इन्हीं लोगों की हिंसा का शिकार होती हैं।

तनाव की वजह से नर्सें (बर्नआउट) थककर पस्त भी हो जाती हैं। इसकी एक वजह है अस्पताल में नर्सों की कमी। जिस नर्स को अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास होता है अगर वह बहुत ज़्यादा काम की वजह से अपने मरीज़ की पूरी-पूरी देखभाल नहीं कर पाती है तो उसका तनाव बढ़ता जाता है। और इस समस्या से जूझने के लिए अगर वह ब्रेक के दौरान भी काम करती है, ऊपर से ओवरटाइम करती है तो उसकी कुंठा और भी बढ़ जाती है।

दुनिया-भर के कई अस्पतालों में नर्सों की बहुत कमी है। मैड्रिड की मुन्डो सानीटारयो मैगज़ीन रिपोर्ट करती है: “हमारे अस्पतालों में नर्सों की भारी कमी है। जिस किसी को बीमारी के दौरान देख-रेख की ज़रूरत पड़ी हो वह नर्सों की अहमियत को अच्छी तरह समझ सकता है।” नर्सों की इतनी भारी कमी क्यों है? क्योंकि अस्पताल पैसों की बचत करना चाहते हैं! वही रिपोर्ट आगे कहती है कि पैसे बचाने के चक्कर में मैड्रिड के अस्पतालों में 13,000 नर्सों की कमी है!

नर्सों में तनाव की दूसरी वजह है कि अकसर उन्हें काम ज़्यादा करना पड़ता है और तनख्वाह बहुत कम मिलती है। स्कॉट्‌समैन अखबार कहता है: “जन-सेवा यूनियन, ‘यूनिसन’ के मुताबिक ब्रिटेन में 20 प्रतिशत से भी ज़्यादा नर्सें और एक-चौथाई नर्सिंग असिस्टेंट अपना गुज़ारा चलाने के लिए नर्सिंग के अलावा दूसरी नौकरी भी करते हैं।” हर चार नर्सों में से तीन का कहना है कि उन्हें उतनी तनख्वाह नहीं मिलती जितनी मिलनी चाहिए। इस वजह से कई नर्सें इस पेशे को छोड़ने की सोच रही हैं।

ऐसी और भी कई बातें हैं जिससे नर्सों का तनाव बढ़ जाता है। दुनिया-भर में सजग होइए! ने जिन नर्सों का इंटरव्यू लिया उनकी बातों से यह साफ ज़ाहिर होता है कि किसी मरीज़ की मौत होने पर वे बहुत उदास हो जाती हैं। ईजिप्ट में पली-बढ़ी मैगदा स्वॉन्ग न्यू यॉर्क के ब्रुकलिन शहर में नर्स है। जब उससे पूछा गया कि आपका काम कब बहुत मुश्‍किल हो जाता है तो उसका जवाब था: “मैंने 10 साल में कम-से-कम 30 ऐसे मरीज़ों को मरते देखा है जिनकी बीमारी लाइलाज थी और जिनकी देखभाल मैंने खुद की थी। ऐसा अनुभव इंसान को पस्त कर देता है।” यही बात एक किताब कहती है कि “उन मरीज़ों की जी-जान से देखभाल करना जो अपनी ज़िंदगी की आखिरी घड़ियाँ गिन रहे हैं, वाकई एक ऐसा कड़वा अनुभव है जो एक नर्स को शारीरिक और जज़्बाती तौर पर बहुत ज़्यादा कमज़ोर कर देता है।”

नर्सों का भविष्य

टेकनॉलजी के क्षेत्र में हो रही तरक्की और इसके असर की वजह से आज नर्सिंग के काम में दबाव और भी बढ़ गए हैं। अच्छी-से-अच्छी मशीनों से मरीज़ों का इलाज और देखभाल करनेवालों के लिए एक बड़ी चुनौती यह है कि वे मरीज़ों के साथ मशीनी ढंग से नहीं बल्कि इंसानियत से पेश आएँ। क्योंकि कोई भी मशीन नर्स के हुनर और प्यार-भरी परवाह की जगह नहीं ले सकती।

एक पत्रिका कहती है: “नर्सिंग एक ऐसा पेशा है जो हमेशा बरकरार रहेगा। . . . जब तक इंसान रहेगा तब तक ऐसे लोगों की ज़रूरत पड़ती रहेगी जो प्यार और हमदर्दी के साथ दूसरों की सेवा कर सकें।” और नर्सें इन ज़रूरतों को बखूबी पूरा करती हैं। मगर स्वास्थ्य के बारे में हमारे आगे एक बेहतरीन आशा रखी गयी है। बाइबल बताती है कि एक ऐसा समय आएगा जब कोई नहीं कहेगा कि “मैं रोगी हूं।” (यशायाह 33:24) तब परमेश्‍वर की नयी दुनिया में अस्पतालों, डॉक्टरों और नर्सों की ज़रूरत नहीं होगी।—यशायाह 65:17; 2 पतरस 3:13.

बाइबल यह वादा करती है कि “परमेश्‍वर . . . उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।” (प्रकाशितवाक्य 21:3,4) जब तक वह नयी दुनिया नहीं आ जाती तब तक हमें उन करोड़ों नर्सों का शुक्रगुज़ार होना चाहिए जो हमारी सेवा में बड़े-से-बड़े त्याग करती हैं और जिनके बगैर अस्पताल में रहना हमारे लिए शायद नामुमकिन ना सही मगर एक अच्छा अनुभव न होता। इसीलिए यह सवाल अपने आप में कितना सही है कि “नर्सों के बिना हम क्या करते?”

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[पेज 6 पर बक्स/तसवीर]

फ्लोरेंस नाइटिंगेल—आधुनिक नर्सिंग की शुरूआत करनेवाली

फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म सन्‌ 1820 में इटली में हुआ था। वह एक अमीर खानदान में पैदा हुई थी और उसके अँग्रेज़ माता-पिता ने उसे नाज़ों से पाला था। फ्लोरेंस के लिए शादी के कई रिश्‍ते आए मगर उसने उन सबको ठुकरा दिया और गरीबों के स्वास्थ्य और देख-रेख से संबंधित विषयों पर गहरा अध्ययन शुरू कर दिया। फ्लोरेंस के माता-पिता इस फैसले से खुश नहीं थे मगर उनके विरोध के बावजूद उसने जर्मनी में काइज़र्सवर्थ शहर के नर्सिंग स्कूल में ट्रेनिंग हासिल की। उसके बाद उसने पैरिस में अपना अध्ययन जारी रखा। जब वह 33 साल की थी तब उसे लंदन में महिलाओं के एक अस्पताल की सुपरिंटेंडेंट बना दिया गया।

मगर उसकी असली परीक्षा की घड़ी तब आयी जब उसने क्रीमिया में घायल सैनिकों की सेवा करने का बीड़ा उठाया। सबसे पहले उसने 38 नर्सों के साथ मिलकर अस्पताल की सफाई की जहाँ चूहों ने तबाही मचा रखी थी। उनके लिए यह काम किला जीतने के बराबर था। क्योंकि उस अस्पताल में साबुन, वॉशबेसिन और तौलिए जैसी ज़रूरी चीज़ें नहीं थीं। साथ ही अस्पताल में बिस्तरों, गद्दों और पट्टियों की भी कमी थीं। फ्लोरेंस और बाकी नर्सों ने एक चुनौती समझकर इन सभी मुश्‍किलों का सामना किया। क्रीमिया युद्ध के खत्म होने पर, फ्लोरेंस ने दुनिया-भर में नर्सिंग के क्षेत्र में और अस्पताल चलाने के तरीकों में बहुत बड़े सुधार किए। सन्‌ 1860 में, लंदन के सेंट थॉमस अस्पताल में नर्सों की ट्रेनिंग के लिए उसने ‘नाइटिंगेल ट्रेनिंग स्कूल’ की स्थापना की। यह पहला ऐसा नर्सिंग स्कूल था जो बिना किसी धार्मिक संस्था की मदद के चलाया जा रहा था। बाद में किसी रोग की वजह से फ्लोरेंस बिस्तर से उठ नहीं सकी। मगर फिर भी वह रोगियों की देख-रेख के तौर-तरीकों और अस्पतालों के संचालन में सुधार लाने की कोशिश में लगी रही और इसके लिए उसने कई किताबें और पैमफ्लेट लिखे। आखिर में 1910 में वह चल बसी।

फ्लोरेंस नाइटिंगेल को त्याग और करुणा की देवी कहा गया है। मगर कुछ लोग इस बात पर एतराज़ उठाते हैं और कहते हैं कि ऐसे और भी बहुत से लोग हुए हैं जिनका नर्सिंग के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान रहा है और जिनकी सराहना की जानी चाहिए। इतना ही नहीं फ्लोरेंस के व्यक्‍तित्व को लेकर लोगों के बीच बहुत मत-भेद रहा है। नर्सिंग का इतिहास (अँग्रेज़ी) किताब बताती है कि एक तरफ कई लोगों का दावा है कि फ्लोरेंस “बहुत ही मूडी थी, हमेशा अपनी मनमानी करती थी, दूसरों पर रोब जमाती थी, बहुत ही ज़िद्दी और गुस्सैल भी थी।” तो दूसरी तरफ कुछ लोग न सिर्फ उसकी “कुशलता और होशियारी, उसके मनमोहक स्वभाव, उसकी हैरान कर देनेवाली स्फूर्ति से प्रभावित हुए हैं,” बल्कि वे उसके “व्यक्‍तित्व में दो एकदम अलग पहलुओं को देखकर भी प्रभावित हुए हैं।” फ्लोरेंस का स्वभाव चाहे जैसा भी था मगर एक बात तो पक्की है: नर्सिंग और अस्पताल चलाने में फ्लोरेंस नाइटिंगेल के तौर-तरीके इस कदर मशहूर हुए हैं कि इन्हें कई देशों ने अपनाया है। उसे आधुनिक नर्सिंग की शुरूआत करने का श्रेय दिया जाता है।

[तसवीर]

सेंट थॉमस अस्पताल, जहाँ पर नर्सों के लिए ‘नाइटिंगेल ट्रेनिंग स्कूल’ की स्थापना की गयी

[चित्र का श्रेय]

Courtesy National Library of Medicine

[पेज 8 पर बक्स/तसवीर]

नर्स की उपाधियाँ

नर्स: “एक व्यक्‍ति जिसने नर्सिंग की पढ़ाई और ट्रेनिंग पूरी की हो और नर्स बनने के लिए जितनी पढ़ाई-लिखाई और काम का तजुर्बा ज़रूरी है वह हासिल किया हो।”

रजिस्टर्ड नर्स: “एक नर्स जिसने स्टेट बोर्ड की परीक्षा देकर डिग्री हासिल की हो . . . और जो कानूनन ‘रजिस्टर्ड नर्स’ के नाम से काम कर सकती है।”

क्लिनिकल नर्स स्पेशलिस्ट: “एक रजिस्टर्ड नर्स, जिसने नर्सिंग के किसी एक क्षेत्र में खास ज्ञान, कौशल और काबिलीयत हासिल की हो।”

नर्स-मिडवाइफ (दाई): “एक नर्स जिसने नर्सिंग और प्रसव के क्षेत्र में ज्ञान हासिल किया हो।”

प्रैक्टिकल नर्स: “एक नर्स जिसे नर्सिंग के बारे में तजुर्बा तो है लेकिन उसने न तो नर्सिंग की पढ़ाई की है और न ही इस क्षेत्र में कोई डिग्री हासिल की है।”

लाइसेंस्ड प्रैक्टिकल नर्स: “एक नर्स जिसने प्रैक्टिकल नर्सिंग स्कूल में ट्रेनिंग हासिल की है . . . जो कानूनन रूप से लाइसेंस्ड प्रैक्टिकल नर्स के तौर पर काम कर सकती है।”

[चित्रों का श्रेय]

अमरीकी किताब डॉरलैन्ड्‌स इलस्ट्रेटेड मॆडिकल डिक्शनरी से

UN/J. Isaac

[पेज 9 पर बक्स/तसवीरें]

‘स्वास्थ्य-सेवा की बुनियाद’

जून 1999 में हुए नर्सों के अंतर्राष्ट्रीय काउंसिल के सौवें सम्मेलन में विश्‍व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के डाइरेक्टर-जनरल डॉ. ग्रो हार्लेम ब्रन्टलान ने कहा:

“स्वास्थ्य-सेवा के पेशे में नर्सों की अहमियत बहुत बड़ी है, इसलिए वे सारी दुनिया के लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत कुछ कर सकती हैं। . . . हर देश की स्वास्थ्य व्यवस्था में काबिल स्वास्थ्य-सेवकों में नर्सों और दाइयों की संख्या कुल मिलाकर 80 प्रतिशत है और इस संख्या से साफ ज़ाहिर होता है कि 21वीं सदी में ‘सबके लिए अच्छे स्वास्थ्य’ का लक्ष्य हासिल करने में वे स्वास्थ्य के क्षेत्र में ज़रूरी सुधार ला सकती हैं। सचमुच अलग-अलग तरीकों से स्वास्थ्य-सेवा करके उन्होंने बहुत बड़ा योगदान दिया है। . . . इसमें कोई शक नहीं कि नर्सें स्वास्थ्य-सेवा के ज़्यादातर दलों की बुनियाद है।”

मेक्सिको के राष्ट्रपति, अरनेस्टो सेदीओ पॉनसे दे लेऑन ने अपने भाषण में मेक्सिको की नर्सों की खास तौर पर तारीफ करते हुए कहा: “हर दिन आप सब . . . मेक्सिको के लोगों का स्वास्थ्य अच्छा रखने और बिगड़ने पर इलाज करने के लिए जी-जान लगाकर मेहनत करती हैं। हर दिन आप न सिर्फ लोगों को ज़रूरी मॆडिकल मदद देती हैं बल्कि प्यार, दिल से की गयी सेवा और सच्ची हमदर्दी के ज़रिए उनका ढाढ़स बँधाती हैं। . . . हमारी स्वास्थ्य संस्थाओं में आपका दल सबसे बड़ा है। . . . हर ज़िंदगी जो बचायी जाती है, हर बच्चा जिसे टीका लगाया जाता है, हर बच्चा जो इस दुनिया में आता है, स्वास्थ्य से संबंधित हर भाषण जो दिया जाता है, हर इलाज जो करवाया जाता है, हर मरीज़ जिसकी अच्छी देख-रेख की जाती है इन सबके पीछे हमारी नर्सों का हाथ होता है।”

[चित्र का श्रेय]

UN/DPI Photo by Greg Kinch

UN/DPI Photo by Evan Schneider

[पेज 11 पर बक्स/तसवीर]

एक एहसानमंद डॉक्टर

न्यू यॉर्क प्रेसबिटेरियन अस्पताल के डॉ. सन्दीप जौहर, अच्छी और काबिल नर्सों का एहसान मानते हैं। वह एक ऐसी घटना के बारे में लिखते हैं जब एक बार एक नर्स ने बड़ी सूझ-बूझ के साथ उन्हें यकीन दिलाया कि ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहे एक मरीज़ की जान बचाने के लिए, ज़्यादा मॉरफीन देना बेहद ज़रूरी है। आगे वह इस तरह से लिखते हैं: “अच्छी और काबिल नर्सें भी डॉक्टरों को बहुत कुछ सिखा सकती हैं। इंटेन्सिव केयर यूनिट जैसे खास वॉर्ड में मौजूद नर्सें अस्पताल की सबसे काबिल नर्सें होती हैं। जब मैं डॉक्टर बनने की ट्रेनिंग ले रहा था तो इन्हीं नर्सों ने मुझे दिखाया कि कैथीटर कैसे डालते हैं और ऑक्सीजन चढ़ाने की मशीन को कैसे ज़रूरत के हिसाब से एडजस्ट करते हैं। उन्होंने मुझे यह भी बताया कि मरीज़ों पर किन दवाइयों का इस्तेमाल ना करना बेहतर होगा।”

वह आगे कहते हैं: “नर्सें मरीज़ के विचारों और जज़्बातों को समझती हैं और उन्हें हिम्मत दे सकती हैं क्योंकि वे उनके साथ सबसे ज़्यादा वक्‍त बिताती हैं। . . . मैं खुद तुरंत एक मरीज़ को देखने नहीं जाता हूँ लेकिन जब एक भरोसेमंद नर्स मुझसे कह दे कि एक मरीज़ को देखना बेहद ज़रूरी है तब मैं फौरन जाता हूँ।”

[पेज 7 पर तसवीर]

“मेरी दिली-ख्वाहिश थी कि मैं दूसरों की सेवा करूँ।”—टेरी वेदरसन, इंग्लैंड।

[पेज 7 पर तसवीर]

“अस्पताल में अपने पिता की देखभाल करते वक्‍त ही मैंने ठान लिया कि मैं बड़ी होकर एक नर्स बनूँगी।”—एट्‌सको कोटानी, जापान।

[पेज 7 पर तसवीर]

‘एक बच्चे का दुनिया में कदम रखना एक दाई के लिए सबसे खूबसूरत अनुभव होता है।’—योलांदा कीलन-फान हॉफ्त, नॆदरलैंड्‌स।

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दाइयों की मदद से जब बच्चा जन्म लेता है तो उस वक्‍त उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता